________________ वनखंडवर्ती प्रासादावतंसक] इन प्रासादावतंसकों में महान् ऋद्धिशाली यावत् (महाद्य तिसम्पन्न, महाबलिष्ठ, अतीव सुखसम्पन्न और महाप्रभावशाली) एक पल्योपम की स्थिति वाले चार देव निवास करते हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं---अशोकदेव, सप्तपर्णदेव, चंपकदेव और आम्र देव / विवेचन-सुत्र में मात्र सूर्याभविमान के चतुर्दिग्वर्ती बनखंडों में निवास करने वाले देवों के नाम और उनकी प्रायुका उल्लेख किया है / इनके विषय में विशेष ज्ञातव्य यह है ये चारों देव अपने-अपने नाम वाले वनखंड के स्वामी हैं तथा सूर्याभ देव के सदृश महान् ऋद्धिसम्पन्न हैं एवं अपने-अपने सामानिक देवों, सपरिवार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सप्त अनीकों सेनाओं और सेनापतियों, आत्मरक्षक देवों का आधिपत्य, स्वामित्व आदि करते हुए नृत्य, गीत, नाटक और वाद्यघोषों के साथ विपुल भोगोपभोगों का भोग करते हुए अपना समय व्यतीत करते हैं। इन वनखंडाधिपति देवों की आयु का कालप्रमाण बतलाने के लिये 'पल्योपम' शब्द का प्रयोग किया है / जो अतिदीर्घ काल का बोधक है / - काल अनन्त है और इसमें से जिस समय-अवधिकी दिन, मास, और वर्षों के रूप में गणना की जा सकती है, उसके लिये तो जैन वाङमय में घड़ी, घंटा, पूर्वांग पूर्व, आदि शीर्षप्रहेलिका पर्यन्त संज्ञायें निश्चित की हैं / परन्तु इसके बाद जहाँ समय की अवधि इतनी लम्बी हो कि उसकी गणना वर्षों में न की जा सके, वहाँ उपमाप्रमाण की प्रवृत्ति होती है। अर्थात् उसका बोध उपमाप्रमाण द्वारा कराया जाता है। उस उपमाकाल के दो भेद हैं—पल्योपम और सागरोपम / प्रस्तुत में पल्योपम का उल्लेख होने से उसका प्राशय स्पष्ट करते हैं। पल्य या पल्ल का अर्थ है कुत्रा अथवा धान्य को मापने का पात्र विशेष / उसके आधार या उसकी उपमा से की जाने वाली कालगणना की अवधि पल्योपम कहलाती है। पल्योपम के तीन भेद हैं-१. उद्धारपल्योपम, 2. अद्धापल्योपम और 3. क्षेत्रपल्योपम / ये तीनों भी प्रत्येक बादर' और सूक्ष्म के भेद से दो-दो प्रकार के हैं। इनका स्वरूप क्रमश: इस प्रकार है---- उद्धारपल्योपम-उत्सेधांगुल* द्वारा निष्पन्न एक योजन प्रमाण लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा एक गोल पल्य-बनाकर उसमें एक दिन से लेकर सात दिन तक की प्रायू वाले भोगभूमिज मनुष्यों के बालानों को इतना ठसाठस भरें कि न उन्हें आग जला सके, न वायु उड़ा सके और न जल का ही प्रवेश हो सके / इस प्रकार से भरे हुए उस कुए में से प्रतिसमय एक-एक बालाग्रबालखंड निकाला जाये तो निकालते-निकालते जितने समय में वह कुआ खाली हो जाये उस कालपरिमाण को उद्धारपल्योपम कहते हैं / उद्धार का अर्थ है निकालना। अतएव बालों के उद्धार या निकाले जाने के कारण इसका उद्धारपल्योपम नामकरण किया गया है। उपर्युक्त वर्णन बादर उद्धार-पल्योपम का है। अब सूक्ष्म उद्धार-पल्योपम का स्वरूप बतलाते हैं१. अनुयोग द्वार में सूक्ष्म और व्यावहारिक ये दो भेद किये हैं। 2. पाठ यवमध्य का उत्सेधांगुल होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org