________________ पद्मवरवेदिका का वर्णन ] [87 १५६–से केण?णं भंते ! एवं बुच्चति पउमवरवेइया पउमवरवेइया ? १५६--गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से पूछा-हे भदन्त ! किस कारण कहा जाता है कि यह पद्मवरवेदिका है, पद्मवरवेदिका है ? अर्थात् इस वेदिका को पद्मवरवेदिका कहने का क्या कारण है ? १५७–गोयमा ! पउमवरवेइयाए णं तत्थ-तत्थ देसे तहि-तहि वेइयासु, वेइयावाहासु य . वेइयफलतेसु य वेइयपुडंतरेसु य खंभेसु, खेमबाहासु खेमसोसेसु, खंभपुडतरेसु, सूईसु, सूईमुखेसु, सूईफलएसु, सूईपुडतरेसु, पक्षेसु, पक्खबाहासु, पक्खपेरतेसु, पक्खपुडतरेसु बहुयाई उप्पलाई-पउमाई-कुमुयाई लिणाति-सुभगाई-सोगंधियाइं-पुडरीयाई-महापुडरीयाणि-सयवत्ताई-सहस्सवत्ताई सम्बरयणामयाई अच्छाई पडिरूवाई महया वासिक्कछत्तसमाणाई पण्णत्ताई समणाउसो ! से एएणं अट्ठणं गोयमा ! एवं बच्चइ पउमवरवेइया 'पउमवरवेइया'। १५७--भगवान ने उत्तर दिया-हे गौतम ! पदमवर-वेदिका के आस-पास की (समीपवर्ती) भूमि में, वेदिका के फलकों-पाटियों में, वेदिकायुगल के अन्तरालों में, स्तम्भों-स्तम्भों, की बाजुनों, स्तम्भों के शिखरों, स्तम्भयुगल के अन्तरालों, कीलियों, कोलियों के ऊपरीभागों, कोलियों से जुड़े हुए फलकों, कोलियों के अन्तरालों, पक्षों (स्थान विशेषों), पक्षों के प्रान्त भागों और उनके अन्तरालों आदि-आदि में वर्षाकाल के बरसते मेघों से बचाव करने के लिए छत्राकार--जैसे अनेक प्रकार के बड़े-बड़े विकसित, सर्व रत्नमय स्वच्छ, निर्मल अतीव सुन्दर, उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगंधिक पुडरीक महापुडरीक, शतपत्र और सहस्रपत्र कमल शोभित हो रहे हैं। इसीलिये हे आयुष्मन् श्रमण गौतम ! इस पद्मवरवेदिका को पद्मवरवेदिका कहते हैं। १५८-पउमवरवेइया णं भंते / कि सासया, प्रसासया ? गोयमा ! सिय सासया, सिय प्रसासया / से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ सिय सासया, सिय प्रसासया ? गोयमा ! दवट्ठयाए सासया, वन्नपज्जवेहि, गंधपज्जवेहि, रसपज्जर्वेहि, फासपज्जवेहि प्रसासया, से एएण?णं गोयमा ! एवं वुच्चति सिय सासया, सिय प्रसासया। पउमवरवेइया णं भंते ! कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! ण कयावि णासि, ण कयावि णस्थि, ण कयावि न मविस्सइ, भूवि च हवइ य, भविस्सइ य, धुवा णियया सासया अक्खया अन्वया अवट्ठिया णिच्चा पउमवर वेइया। १५८-हे भदन्त ! वह पद्मवरवेदिका शाश्वत है अथवा अशाश्वत है। हे गौतम ! (किसी अपेक्षा) शाश्वत नित्य भी है और (किसी अपेक्षा) अशाश्वत भी है। भगवन् ! किस कारण आप ऐसा कहते हैं कि (किसी अपेक्षा) वह शाश्वत भी है और (किसी अपेक्षा) अशाश्वत भी है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org