________________ 40] [राजप्रश्नीयसूत्र उस दिव्य यानविमान को खड़ा करके वह सपरिवार चारों अग्रमहिषियों, गंधर्व और नाट्य इन दोनों अनीकों सेनाओं को साथ लेकर पूर्व दिशावर्ती विसोपान-प्रतिरूपक द्वारा उस दिव्ययान विमान से नीचे उतरा। तत्पश्चात् सूर्याभ देव के चार सामानिक देव उत्तरदिग्वर्ती त्रिसोपान प्रतिरूपक द्वारा उस दिव्य-यान---विमान से नीचे उतरे / तथा इनके अतिरिक्त शेष दूसरे देव और देवियाँ दक्षिण दिशा के त्रिसोपान प्रतिरूपक द्वारा उस दिव्य-यान-विमान से उतरे। सूर्याभदेव का समवसरण में प्रागमन ६६-तए णं से सूरियाभे देवे चउहि अगमहिसीहि जाव' सोलसहि प्रायरक्ख देवसाहस्सोहि अण्णेहि य बहूहि सूरियाभविमाणवासीहि वेमाणिएहि देवेहि देवीहि य सद्धि संपरिबुडे सविड्ढोए जावर णादितरवेणं जेणेव. समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवंतं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिणपयाहिणं करेति, करित्ता वंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी 'अहं णं भंते ! सरियाभे देवे देवाणप्पियाणं बंदामि नमसामि जाव (सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं) पज्जुबासामि'। 66- तदनन्तर वह सूर्याभदेव सपरिवार चार अग्रमहिषियों यावत् सोलह हजार प्रात्मरक्षक देवों तथा अन्यान्य बहुत से सूर्याभविमानवासी देव-देवियों के साथ समस्त ऋद्धि-वैभव यावत् वाद्य निनादों सहित चलता हुआ श्रमण भगवान् महावीर के समीप पाया / पाकर श्रमण भगवान् की दाहिनी ओर से प्रारम्भ कर तीन बार प्रदक्षिणा की / प्रदक्षिणा करके वन्दन-नमस्कार किया और वन्दन-नमस्कार करके-सविनय नम्र होकर बोला _ 'हे भदन्त ! मैं सूर्याभदेव आप देवानुप्रिय को वन्दन करता हूं, नमन करता हूं यावत् अापका (सत्कार-सन्मान करता हूं और कल्याणरूप, मंगलरूप, देवरूप एवं चैत्यरूप आपकी) पर्युपासना करता हूं। 67-- 'सरियाभा' इ समणे भगवं महावीरे सरियाभं देवं एवं वयासो पोराणमेयं सूरियाभा! जीयमेयं सूरियामा ! किच्चमेयं सरियामा ! करणिज्जमेयं सूरियामा! प्राइण्णमेयं सूरियामा ! अन्भणण्णायमेयं सरियाभा! जंणं भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया देवा अरहते भगवते बंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तो पच्छा साई साई नाम-गोत्ताई साहिति, तं पोराणमेयं सूरियामा ! जाव अब्भणुण्णायमेयं सूरियामा !' 67 --'हे सूर्याभ !' इस प्रकार से सूर्याभदेव को संबोधित कर श्रमण भगवान् महावीर ने उस सूर्याभदेव से इस प्रकार कहा-'हे सूर्याभ ! यह पुरातन है / हे सूर्याभ ! यह जीत-परम्परागत व्यवहार है / हे सूर्याभ ! यह कृत्य है / , हे सूर्याभ! यह करणीय है / , हे सूर्याभ ! यह पूर्व परम्परा से 2. देखें सूत्र संख्या 19 1. देखें सूत्र संख्या 7 3. देखें सूत्र संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org