________________ 38] राजप्रश्नीयसूत्र 61- तत्पश्चात् वज्ररत्नों से निर्मित गोलाकार कमनीय-मनोज्ञ, (गोल) दांडे वाला, शेष ध्वजारों में विशिष्ट एवं और दूसरी बहुत सी मनोरम छोटी बड़ी अनेक प्रकार की रंगबिरंगी पचरंगी ध्वजाओं से परिमंडित, वायु वेग से फहराती हुई विजयवैजयंती पताका, छत्रातिछत्र से युक्त, आकाशमंडल को स्पर्श करने वाला हजार योजन ऊंचा एक बहुत बड़ा इन्द्रध्वज नामक ध्वज अनुक्रम से उसके आगे चला। ६२–तयणंतरं च णं सुरूवणेवस्थपरिकच्छिया सुसज्जा सव्वालंकारभूसिया महया भडचडगरपहकारेणं पंच अणीयाहिबईप्रो पुरतो अहाणुपुवीए संपत्थिया / ६२–इन्द्र ध्वज के अनन्तर सुन्दर वेष भूषा से सुसज्जित, समस्त प्राभूषण-अलंकारों से विभूषित और अत्यन्त प्रभावशाली सुमटों के समुदायों को साथ लेकर पांच सेनापति' अनुक्रम से आगे चले। ६३-तयणंतरं च णं बहवे आभिप्रोगिया देवा देवीप्रो य सएहि सरहिं स्वेहि, सहि सहि विसेसेहि सएहि सएहि विदेहि, सरहिं सएहिं गेज्जाएहि, सरहिं सहि गेवत्थेहि पुरतो अहाणुपुवीए संपत्थिया। ६३-तदनन्तर बहुत से आभियोगिक देव और देवियाँ अपनी-अपनी योग्य-विशिष्ट वेशभूषाओं और विशेषतादर्शक अपने-अपने प्रतीक चिह्नों से सजधजकर अपने-अपने परिकर, अपनेअपने नेजा और अपने-अपने कार्यों के लिये कार्योपयोगी उपकरणों-साधनों को साथ लेकर अनुक्रम से आगे चले। 64 तयणंतरं च णं सूरियाभविमाणवासिणो बहवे बेमाणिया देवा य देवोश्रो य सम्बड्डीए जाव (सव्वजुईए, सम्वबलेणं, सबसमुदएणं सम्वादरेणं सम्वविभूईए सम्वविभूसाए सवसंभमेणं सब्वपुष्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सव्व-तुडिय-सह-सणिणाएणं महया इड्ढोए, महया जुईए, महया बलेणं, महया समुदएणं महया वर-तुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणव-पटह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि हुडुक्कमुरय-मुइंग-दुन्दुभिनिग्घोसनाइय) रवेणं सूरियानं देवं पुरतो पासतो य मग्मतो य समणुगच्छंति / ६४-तत्पश्चात् सबसे अंत में उस सूर्याभ विमान में रहने वाले बहुत से वैमानिक देव और देवियां अपनी अपनी समस्त ऋद्धि से, यावत् (सर्व द्युति, बल-सेना, परिवार रूप समुदाय, प्रादरसंमान, शृंगार-विभूषा, विभूति-ऐश्वर्य, संभ्रम (भक्तिजन्य उत्सुकता) सर्वप्रकार के पुष्पों, गंध, माला, अलंकारों, सर्व प्रकार के वाद्यों की मधुर ध्वनि, तथा अपनी विशिष्ट ऋद्धि, महान् द्युति, महान सेना, महान् समूदाय तथा एक साथ बजते हुए अनेक वाद्यों की मधुर ध्व 7 तथा एक साथ बजते हए अनेक वाद्यों की मधर ध्वनि एवं शंख, पणव. पटह-ढोल, भेरी, झल्लरी, खरमुखी, हुडुक्क, मुरज-मृदंग और दुन्दुभिनिनाद की) प्रतिध्वनि से शोभित होते हुए उस सूर्याभदेव के आगे-पीछे, आजू-बाजू में साथ-साथ चले। सूर्याभ देव का आमलकल्पा नगरी की ओर प्रस्थान ६५–तए णं से सूरियाभे देवे तेणं पंचाणीयपरिक्खित्तेणं वइरामयवट्टलटुसंठिएण जाव जोयण१. अश्व, गज, रथ, पदाति और वृषभ सेनानों के अधिपति / 2. देखें सूत्र संख्या 61 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org