________________ उत्सवों में श्रेष्ठ उत्सव माना जाता था और सभी लोग बड़े उत्साह से इसे मनाते थे।१११ निशीथसूत्र में इन्द्र, स्कन्द, यक्ष, और भूत नामक महामहों का वर्णन है। जो क्रमशः आषाढ़, पासौज, कार्तिक और चैत्र की पूर्णिमानों को मनाया जाता था। इन्द्रमह आदि उत्सवों में लोग मनपसन्द खाते-पीते, नाचते,गाते हुए आमोद-प्रमोद में तल्लीन रहते थे। 12 इन उत्सवों में अत्यधिक शोरगुल होता था, जिससे श्रमणों को स्वाध्याय की मनाई की गई थी। जो खाद्य पदार्थ उत्सव के दिन तैयार किया जाता था, यदि वह अवशेष रह जाता तो प्रतिपदा के दिन उसका उपयोग करते / अपने सम्बन्धियों को भी उस अवसर पर बुलाते / / 13 'इन्द्रमह' के दिन धोबी से धले हए स्वच्छ वस्त्र लोग पहनते थे।१४ दूसरा उत्सव 'स्कन्दमह' का था। ब्राह्मण पौराणिक अनुश्रुतियों से अनुसार स्कन्द अथवा कार्तिकेय महादेव के पुत्र और युद्ध के देवता माने गये हैं। तारक, राक्षस और देवताओं के युद्ध में 'स्कन्द' देवताओं के सेनापति के रूप में नियुक्त हुए थे। उनका वाहन 'मयूर' था / 'स्कन्दमह' उत्सव प्रासौज की पूर्णिमा को मनाया जाता था।१५ _ 'रुद्रमह' तृतीय उत्सव था। वैदिक दृष्टि से रुद्र ग्यारह थे / वे इन्द्र के साथी शिव और उसके पुत्रों के अनुचर तथा यम के रक्षक थे। व्यवहारभाष्य के अनुसार रुद्र-पायतनों के नीचे ताजी हडिड्या गाड़ी जाती थीं।१६ _ 'मुकुन्दमह' चतुर्थ उत्सव था। महाभारत में मुकुन्द यानि बलदेव को लांगुली-हलधर कहा है।११७ हल उसका अस्त्र है। भगवान महावीर छद्मस्थ अवस्था में गोशालक के साथ 'पावत' ग्राम में पधारे थे। वहाँ पर वे बलदेवगह में विराजे१८, जहाँ पर बलदेव की अर्चना होती थी। 'शिवमह' पांचवां उत्सव था। हिन्दू साहित्य के अनुसार शिब भूतों के अधिपति, कामदेव के दहनकर्ता और स्कन्द के पिता थे। उन्होंने विष का पान किया तथा आकाश से गिरती हुई गंगा को धारण किया। उनके 111. (क) आवश्यकचूणि-पृष्ठ-२१३ (ख) इपिक माइथोलॉजी, स्ट्रासबर्ग 1915 / -डा. हॉपकिन्स ई., पृ. 125 (ग) भास --ए स्टडी, लाहौर-१९४०-पुलासकर ए. डी., पृ. 440 (घ) कथासरित्सागर, जिल्द-८, पृष्ठ-१४४-१५३ (ङ) महाभारत-१.६४.३३ (च) रंगस्वामी ऐयंगर कमैमोरेशन वॉल्युम, पृष्ठ-४८० 112. (क) निशीथ-१९।६०३५ (ख) रामायण-४।१६।३६ (ग) डा० हॉपकिन्स ई० डब्ल्यू०, पृ. 125 113. निशीथचूणि-१६. 6068 ! 114. आवश्यकचूर्णि-२, पृष्ठ-१८१ 115. आवश्यकचूणि, पृष्ठ-३१५ / / 116. व्यवहारभाष्य-७।३१३, पृष्ठ-५५. अ. / 117. महाभारत-देखिए, वैष्णविज्म, शैविज्म एण्ड माइनर रिलिजियस सिस्टम, पृष्ठ-१०२. आदि। 118. (क) आवश्यकनियुक्ति-४८१; (ख) आवश्यकचूणि, पृष्ठ-२९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org