________________ कारण चाहते हुए भी लिख नहीं पाया। तथापि संक्षेप में मैंने आगमगत विषयों पर चिन्तन किया है। तुलनात्मक और समन्वयात्मक चिन्तन करने की दृष्टि मुझे अपने श्रद्धय सद्गुरुवर्य, राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी, उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी म० से प्राप्त हुई, जो युवाचार्य श्री के स्नेही साथी हैं। उनकी अपार कृपा से ही मैं प्रस्तावना लिखने में सक्षम हो सका हूँ। वर्तमान युग में मानव भौतिकता की ओर अपने कदम बढ़ा रहा है, जिससे उसे शान्ति के स्थान पर अशान्ति प्राप्त हो रही है। ऐसी विषम स्थिति में यह आगम अध्यात्मवाद की पवित्र प्रेरणा देगा, उसे शान्ति की सच्ची रह बतायेगा। उसकी तनावपूर्ण स्थिति को समाप्त कर जीवन में धर्म की सुरीली स्वर-लहरियाँ झंकृत करेगा, इसी प्राशा के साथ विरमामि / धन तेरस —देवेन्द्रमुनि शास्त्री दि०१३ नवम्बर, '82 जैन स्थानक, सिंहपोल-जोधपुर (राज.) [ 39] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org