________________ [25 सूर्याभदेव की घोषणा की प्रतिक्रिया ] अकालपरिहोणा चेव अन्तियं पाउम्भवमाणे पासति, पासित्ता हद्वतु जाव' हियए आभिनोगियं देवं सद्दावेति, सद्दावित्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया। अणेगखम्भसयसंनिविटु लोलट्ठियसालभंजियागं, ईहामियउसभ-तुरग-नर-मगर-विहग-वालग-किनर-हरु-सरभ-चमर-कुञ्जर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं खंभुग. यवइरवेइयापरिगयाभिरामं विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्तंपिव प्रच्चीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिसमाणं भिभिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरोयरूवं घण्टावलिचलियमहरमणहरसरं सुहं कन्तं दरिसणिज्जं णिउणउचियभिसिभिसितमणिरयणघण्टियाजालपरिक्खित्तं जोयणसयसहस्सवित्थिष्णं दिव्वं गमणसज्ज सिग्घगमणं णाम जाणविमाणं विउवाहि, विउवित्ता खिप्पामेव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। २३-इसके पश्चात् विलम्ब किये बिना उन सभी सूर्याभविमानवासी देवों और देवियों को अपने सामने उपस्थित देखकर हृष्ट-तुष्ट यावत् प्रफुल्लहृदय हो सूर्याभ देव ने अपने प्राभियोगिक देव को बुलाया और बुलाकर उससे इस प्रकार कहा हे देवानुप्रिय ! तुम शीघ्र ही अनेक सैकड़ों स्तम्भों पर संनिविष्ट–बने हुए एक यान-विमान की विकुर्वणा-रचना करो। जिसमें स्थान-स्थान पर हाव-भाव-विलास लीलायुक्त अनेक पुतलियां स्थापित हों / ईहामृग, वृषभ, तुरग, नर (मनुष्य), मगर, विहग (पक्षी), सर्प, किन्नर, रुरु (मृगों की एक जाति विशेष-बारह सिंगा अथवा कस्तूरीमृग), सरभ (अष्टापद) चमरी गाय, हाथी, वनलता, पद्मलता आदि के चित्राम चित्रित हों। जो स्तम्भों पर बनी वज्र रत्नों की वेदिका से युक्त होने के कारण रमणीय दिखलाई दे / समश्रेणी में स्थित विद्याधरों के युगल यंत्रचालित-जैसे दिखलाई दें। हजारों किरणों से व्याप्त एवं हजारों रूपकों-चित्रों से युक्त होने से जो देदीप्यमान और अतीव देदीप्यमान जैसा प्रतीत हो। देखते ही दर्शकों के नयन जिसमें चिपक जायें। जिसका स्पर्श सुखप्रद और रूप शोभासम्पन्न हो / हिलने डुलने पर जिसमें लगी हुई घंटावलि से मधुर और मनोहर शब्द-ध्वनि हो रही हो / जो वास्तुकला से युक्त होने के कारण शुभ कान्त-कमनीय और दर्शनीय हो। निपुण शिल्पियों द्वारा निर्मित, देदीप्यमान मणियों और रत्नों के घुघरुषों से व्याप्त हो, एक लाख योजन विस्तार वाला हो / दिव्य तीव्रगति से चलने की शक्ति-सामर्थ्य सम्पन्न एवं शीघ्रगामी हो। इस प्रकार के यान-विमान को विकुर्वणा-रचना करके हमें शीघ्र ही इसकी सूचना दो। 24 –तए णं से प्राभिप्रोगिए देवे सरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हट जाव हियए करयलपरिग्गाहियं जाव पडिसुणेइ जाव पडिसुणेत्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीमागं प्रवक्कमति, अवक्कमित्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई जाव' अहाबायरे पोग्गले परिसाडति परिसाडित्ता प्रहासुहुमे पोग्गले परियाएइ परियाइत्ता दोच्चं पि वेउब्विय समुग्घाएणं समोहणित्ता अणेगखम्भसयमन्निविट्ठ जाव' दिव्वं जाणविमाणं विउविउं पत्ते यावि होत्था / 1. देखें सूत्र संख्या 8 2. देखें सूत्र संख्या 13 3. देखें सूत्र संख्या 13 4. देखें सूत्र संख्या 13 5. देखें सूत्र संख्या 13 6. देखें सूत्र संख्या 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org