________________ 22] [ राजश्नीयसूत्र सूर्याभदेव को उद्घोषणा एवं प्रादेश १६-तए णं सरियाभे दवे तेसि प्राभियोगियाणं देवाणं अंतिए एयम सोचा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव' हियए पायत्ताणियाहिवई देव सद्दावेति, सहावेता एवं वदासी-- खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया! सूरियाभे विमाणे सभाए सुहम्माए मेघोघरसियगंभीरमहुरसदं जोयणपरिमंडलं सुसरं घंटे तिक्खुत्तो उल्लालेमाणे उल्लालेमाणे महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणे उग्घोसेमाणे एवं वयाहि-प्राणवेति णं भो! सूरियाभे देवे, गच्छति णं भो! सूरियाभे देवे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे प्रामलकप्पाए णयरीए अंबसालवणे चेतिते समणं भगवौं महावीरं अभिवदए, तुब्भेऽवि णं भो ! देवाणुप्पिया! सविड्ढोए जाव [सव्वज्जुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सम्वविभूईए सम्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सन्च-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सव्व-तुडिय-सह-सण्णिणाएणं महया इड्डीए, महया जुईए, महया बलेणं महया समुदएणं महया वर-तुडिय-जमगसमग-पवाइएणं संख-पणव-पडहभेरि-झल्लरि-खरमहि-हक्क-मरय-मअंग-दहि-णिग्घोस] नाइतरवेण णियगपरिवालसद्धि संपरिवडा साति सातिं जाणविमाणाई दुरूढा समाणा अकालपरिहोणं चेव सूरियाभस्स द वस्स अंतिए पाउब्भवह / १९-पाभियोगिक देवों से इस अर्थ को सुनने के पश्चात् सूर्याभ देव ने हर्षित, सन्तुष्ट यावत् हर्षातिरेक से प्रफुल्ल-हृदय हो पदाति-अनीकाधिपति (स्थलसेनापति) को बुलाया और बुलाकर उससे कहा हे देवानुप्रिय ! तुम शीघ्र ही सूर्याभ विमान को सुधर्मा सभा में स्थित मेघसमूह जैसी गंभीर मधुर शब्द करने वाली एक योजन प्रमाण गोलाकार सुस्वर घंटा को तीन बार बजा-बजाकर उच्चातिउच्च स्वर में घोषणा-उद्घोषणा करते हुए यह कहो कि-- हे सूर्याभ विमान में रहने वाले देवो और देवियो ! सूर्याभविमानाधिपति के हितकर और सुखप्रद वचनों को सुनो-सूर्याभ देव आज्ञा देता है कि देवो! जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में स्थित आमलकल्पा नगरी के आम्रशालवन चैत्य में विराजमान श्रमण भगवान् महावीर की वंदना करने के लिए सूर्याभ देव जा रहा है। अतएव हे देवानुप्रियो ! आप लोग समस्त ऋद्धि यावत् (आभूषण) आदि की कांति, बल (सेना) समुदय-अभ्युदय दिखावे अथवा अपने अपने आभियोगिक देवों के समुदाय, आदर-सम्मान, विभूति, विभूषा, एवं भक्तिजन्य उत्सुकतापूर्वक सर्व प्रकार के पुष्पों, वेश-भूषाओं, सुगन्धित पदार्थों, एक साथ बजाये जा रहे समस्त दिव्य बाद्यों--शंख, प्रणव, (ढोलक) पटह (नगाड़ा) भेरी, झालर खरमुखी, हडक्क, मुरज (तबला), मृदंग एवं दुन्दुभि ग्रादि के निर्घोष के साथ) अपनेअपने परिवार सहित अपने-अपने यान-विमानों में बैठकर बिना विलंब के-अविलंब, तत्काल सूर्याभ देव के समक्ष उपस्थित हो जाओ। २०-तए णं से पायत्ताणियाहिवती देवे सरियामेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे हद्वतु जाव' हियए एवं देवो! तहत्ति प्राणाए विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव समा सुहम्मा, जेणेव मेघोघरसियगम्भीरमहरसदा जोयणपरिमंडला सुस्सरा घंटा तेणेव 1. देखें सूत्र संख्या 13 2. देखें सूत्र संख्या 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org