Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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14- पिया! धारणीदेवी अज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि जाव महासुमिणं पासित्ताणं पडि.
बुद्धा, तं एयस्सणं देवणुप्पिया! उरालस्स जाव सस्सिरीयस्म महासुमिणस्स केमण्णे कलाणे फलवित्ति विसेसे भविसइ ? ॥ २८ ॥ तएणं से सुमिण पाढगा सेणिय सरण्णे अंतिए एयमटुं सोचाणिसम्म हट्टतुटु जाव हियया, तं सुमिणं सम्मओ गिणहइ २ ता इहं अणुपविसइ २ त्ता अण्णमण्णेणसद्धिं संचालेति २ ता तस्स सुमिणस्स लट्ठा गहियट्ठा पुग्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगयट्ठा सेणियस्सरण्णो पुरओ मुमिणसत्थाई उच्चारेमाणे २ एवं क्यासी-एवं खलु अम्हंसामी ! सुमिण
सत्थंसि बयालीसं सुमिणा, तीसंमहासुमिणा, वावतारसवसुमिणादिट्टा तत्थणं सामी ! उन स्वप्न पाठकों को ऐमा बोले- अहो देवानुप्रिय धारणी देवी आज रात्रिमें पुण्यवन्तके योग्य भुवनमें यावत् महास्वप्न देखकर जाग्रत हुइ.इसलिये अहो देवानुप्रिय! ऐमा उदार यावत् सटिक महास्वप्नका कल्याणकारी क्या फल विशेष होगा ? ॥ २८ ॥ श्रेणिक राजा की पास से ऐना मुनकर वे स्वप्न पावक बहुत हर्षित यावत् आनंदित हुए. उस स्वन की सम्यक् प्रकार से ग्रहण कीया. अर्थत् मुना, बुद्धि पूर्वक उस का विचार किया. और परस्पर इस को संचालना कर. उस स्वप्न का अर्थ प्राप्त कीया, ग्रहण कीया, पुच्छा व पूछकर निश्चय कीया, पीछे श्रेणिक राना की पास स्वप्न शाख को पकाश करते हुए रेमा गले असे
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी ।
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