Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी
पञ्चपिणह ॥ २५ ॥ तएसे पुरिसा सेणिएणं सरण्णा एवंवुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ जाव . हियया करयलपरिग्गहियं दसणहंसिरसावत्तं मत्थए अंजलिंकटु एवं देवो तहत्ति, आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति, सेणिएस्ससरण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता राय. गिहस्स.णयरस्स मज्झमझेणं जणव सुमिणपाढग गिहाणि तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सुमिण पाढए सद्दावेइ २ ॥ २६ ॥ तएणं से सुमिण पाढगा सेणिएसरण्णो कोडुविय पुरिसेहिं सहावियासमाणा हट्टतुट्ठ जाव हियया ण्हया कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता अप्पमहग्घाभारणालंकियसरीरा हरियालिय सिद्धत्थयकय सुद्धाणा, आज्ञा पीछी दो ॥ २५ ॥ श्रेणिक राजाने जब कौदाम्बिक पुरुष को ऐसा कहा तब वह बहुत हष्ट तुष्ट हुवा. यावत् आनंदित हुवा और करतल जोडकर दश नख से आवर्तश देकर मस्तक पर अंजली करके आपके वचन तथ्य हैं. यों विनय से श्रेणिक राजा की भाज्ञा धारन कर श्रेणिक राजा की पास मे नीकला और मध्य बझार में होते हुवे स्वप्न पाठक के गृह आकर स्वप्न पाठकों को राजा की आज्ञा सुनाइ ॥ २४ ॥ श्रेणिक राजा के कौटुम्बिक पुरुष से ऐसा सुनकर वे स्वप्न पाठकों भी हृष्ट तुष्ट हुबे और स्नान किया, पानी के कुल्ले किये, तिलमसादिक किये, अल्प वजनवाले व बहुमूल्यवाले वस्त्र आमरणों से शरीर अलंकृत
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी
भावार्थ
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