Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
३२
भगवतीसूत्रे
भवति ? अकृता वा भवति, भगवानाह - ' गोयमे' - त्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'कडा कज्जइ नो अकडा कज्जइ' कृता क्रियते नो अकृता क्रियते, अकृतस्य कर्मणोऽभावात् कर्म तत्कृतमेव भवति नान्यथा क्रिययाऽजन्यत्वे - कर्मत्वमेव न भवेदिति । पुनः कर्मविषये एक प्रश्नयति 'सा मते ' इत्यादि, 'सा भन्ते किं अत्तकड़ा कज्जइ परकड़ा कज्जइ तदुभयकड़ा कज्जइ ? ' सा भदंत किम् आत्मकृता क्रियते परकृता क्रियते तदुभयकृता क्रियते, सा प्राणातिपातरूपा क्रिया किं स्वेन क्रियते परेण स्वपराभ्यां वेति प्रश्नः । भगवानाह - -' गोयमे ' त्यादि, 'गोयमा ' हे और जो ऐसी नहीं होती है वह अकृत कहलाती है । भगवान् इस का उत्तर देते हुए कहते हैं कि ( गोयमा ! कडा कज्जइ ) हे गौतम! प्राणातिपातरूप क्रिया कृत ही होती है। (नो अकडा कज्जइ ) वह अकूत नहीं होती है। जो अकृत होती तो वह क्रिया ही नहीं कहलाती । जो क्रिया होती है वह कृत ही होती है, अकृत नहीं होती। जो करने में आती है वह क्रिया है, क्रिया अर्थात् कर्म । जो कर्म है वह कृत ही होता है, अकृत नहीं होता। अकृत में कर्मस्त्र का अभाव है । क्रिया से उत्पन्न नहीं माना जावे तो वह कर्म ही नहीं हो सकता है । (सा भंते! किं अतकडा कज्जइ, परकडा कज्जइ, तदुभयकडा कज्जइ ?) हे भदन्त ! यह माना कि क्रिया कृत ही होती है पर वह क्या आत्मकृत होती है ? या परकृत होती है ? या आत्म पर दोनों द्वारा कुन होती है। यहां सर्वत्र "कज्जइ" पद "भवति" अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ऐसा जानना चाहिये । यह प्रश्न है । इस का उत्तर भगवान् देते हुए कहते हैं कि - ( गोयमा ! अन्तकडा कज्जइ, णो परकडा कज्जइ, नो तदुभयकडा
ક્રિયા જીવ વડે થાય છે તે ક્રિયાને કૃત કહે છે અને જે ક્રિયા જીવ वडे नथी थती तेने अमृत हे छे. उत्तर- (गोयमा ! कडा कज्जइ नो अकडा कज्जइ ) हे गौतम! प्राणातिपातयडिया देत न होय छे, अमृत होती નથી, જે અમૃત હાત તે તેને ક્રિયા જ ન કહી શકાત. જે ક્રિયા છે તે તે કૃત જ હાય છે, અકૃત હેાતી નથી. જે કરવામાં આવે તેનું નામ ક્રિયા અથવા ક છે. કર્મ તા કૃત જ હાય છે, અકૃત હેતું નથી. અકૃતમાં ક પણાને અભાવ જ હોય છે. જો ક્રિયામાં અકૃતપણું માની લેવામાં આવે તે ते उभ३४ स’लवी शडे नहीं अश्न - ( सा भरते अत्तकडा कज्जइ, परकडा कज्जइ, तदुभय कडा कज्जइ ? ) हे भगवन् शुद्ध ते डिया आत्मङ्कृत होय छे, हे परत હાય છે, કે તદુભયકૃત-આત્મા અને પર બન્ને મારફત કૃત હાય छे ? महीं " कज्जइ પદ " भवति " ના અર્થમાં ખધે વપરાયું છે उत्तर- ( गोयमा ! अत्तकड़ा फज्जई, णो परकडा कज्जइ, णो तदुभयकडा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
ܕܕ