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१९. माहिदे कप्पे देवाणं जहणणं
साहियाइं दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
१६. माहेन्द्र कल्प मे देवों की जघन्यतः/
न्यूनत: दो सागरोपम से अधिक स्थिति प्रजप्त है।
२०. जे देवा सुमं सुभकंतं सुभवण्णं
सुभगंधं सुभलेसं सुभफासं सोहम्मवडेंसगं विमारणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता।
२०. जो देव शुभ, शुभकान्त, शुभवर्ण,शुभ
गन्व, शुभलेश्य, शुभस्पर्ण, मौवर्मवितंशक विमान में देवत्व से उपपन्न है, उन देवों की उत्कृष्टतः दो मागरोपम स्थिति प्राप्त है।
२१. तेरणं देवा दोण्हं अद्धमासारणं
आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ।
२१. वे देव दो अर्धमासों/पक्षों में पान/
आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छ - वास लेते हैं, निःश्वास छोड़ते हैं।
२२. तेसि णं देवाणं दोहि वास-
सहल्सेहिं प्राहारळे समुपज्जइ।
२२. उन देवों के दो हजार वर्ष में आहार
की इच्छा समुत्पन्न होती है ।
२३. प्रत्येगइया भवसिद्धिया जीवा,
जे दोहिं भवग्गणेहि सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिरसंति परिनिवाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।
२३ कुछेक भव सिद्धिक जीव हैं, जो दो
भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, वुद्ध होगे, मुक्त होगे, परिनिर्वृत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे।
वाय-मुत्त
समवाय-२