Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International ॐ पंडित श्री मोहन विजयजी विरचित श्री चंदराजानो रास. याने शियल महात्म्य तथा कर्मना चित्र विचित्र स्वरुप प्रदर्शक पद्यात्मक चरित्र तेनुं शुद्ध गुजराती जाषांतराने रंगीन चित्रोसहित पावी प्रसिद्ध करनार शा० जीमसिंह माणेक मुंबई श्री निर्णय सागर प्रेसमां मुषितकयों 1 विक्रम संवत् २०६१ ई. स. १९०५ रजीस्टर सर्व स्वाधिन. For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. सर्व दर्शनवाला ब्रह्माचर्य व्रतनी पुष्टि करे . परंतु जे प्रकारनी. पुष्टि जैनदर्शनमा प्रदर्शित करेली ते पुष्टि अन्यदर्शनीउँना ग्रंथो अवलोकन करतां नाग्येज दृष्टि पथे आवशे. बाह्यथी ब्रह्मचर्य तथा अन्यंतरथी ब्रह्मचर्य शुं शुढे ते अन्यमतियो जाणवानेज असमर्थ . तेवी समजण सर्वज्ञ प्रणीत ज्ञानना जाणपणा शिवाय प्राप्त थई शकतीज नथी. चंदराजाना रासमां ब्रह्मचर्य व्रतनी अनुपम पुष्टि बे. कवि मोदन विजयजी महाराजे था रासनी जे रचना करी तेमां पदनी लालि त्यता, अर्थनी गौरवता. ऊमऊमक विगेरे एवी तो सुंदर रीते बतावेल बे के वांचनारने वारंवार अमुक ढालो वांचता हर्ष उत्पन्न थाय जे. जे जे स्थले जे जे रसमय रचनानी श्रावस्यकता लागी ते ते स्थले ते ते रसनुं पोषण करवामां कोपण प्रकारनी खामी राखी नथी. विद्यावृद्धि ना था नवा जमानामां कविताना तथा गद्य रचनाना ग्रंथना होंशीला वाचक सजनो या ग्रंथने पोताना हाथमांथी पण वाचता वाचता बोमता नथी. था ग्रंथ जो के गुजराती भाषानी पद्य रचनामां रचायेलो तो पण तेमां केटला एक स्थले कवितानो नाग वाचक वर्गने कठिन लागवाथी केटलाएक गृहस्थो तरफथी तेनुं सरल गुजराती भाषांतर करावी भाषांतर सहित मूल रास बपावी प्रसिक करवामा श्रावशे तो वांचनाराऊने बहुज लानकारक थशे एवी सूचना वाली मागणी थतां था ग्रंथ श्रमोए संक्षिप्त गुजराती भाषांतर सहित प्रसिद्ध करेल . जेथी वांचक वर्गने लोन मलशे तो श्रमे अमारो प्रयास सफल थयो मानीशं. था ग्रंथमां मतिदोषथी कां पण नूल चूक थर होय तेने माटे वाचक सङनोनी क्षमा मागी मिठामि मुक्कम चाहीए बीए. मुंबई संवत १ए६१ नीमसिंद माणक माहा सुद ५ नाणजी माया. ली. For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. नंबर विषय. पृष्टांक. १ प्रथम उल्हास-चंदराजानो जनम; वीरसेननी दिदा; वीरमतीने विधाप्राप्त थक्ष राणी गुणावलीने नोलववानी वीरमतीनी कपट जाल; विमलपुरीमा सासु, वहु, तथा चंदनुं श्रावद्वितीय उल्हास-चंदराजा श्रने सिंहल राजनो विमल पुरीमां मेलाप; सिंहल युवराज कनकध्वजनुं श्राख्यान; कुलि कनकध्वजना बदले चंदराजानुं प्रेमलालली साथे नाडा, परणेतर; चंद माता तथा पत्नी साथे श्राजापुरी पालुं श्रावq- ६१ ३ तृतीय उल्लास-विमलपुरीमा प्रेम लालचीनी दयाजनक अवस्था, चंदना विरदथी तेनुंफुरवू; वीरमतीने चंदना कार्यनी खबर पमवी; अने तेथी तेणीनुं चंदने कुकडानुं रूप आपवू; कुकडानुं शिवमाला नटीने अर्पण १२४ ४ चतुर्थ उल्लास-श्री विमलाचल उपर सूर्यकुंडना प्रनावे चंदराजानुं पुनः पुरुश रूप प्राप्त थ; वीरमतीनो वध; बाजानगरीए चंदनु पुतरागमन; संयम ग्रहण; अने मोद For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WAR Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सिद्धचक्राय नमः अथ चंद राजानो रास प्रारंभः A ॥दोहा॥ प्रथम धराधव तिम प्रथम, तीर्थंकर श्रादेय ॥ प्रथम जिणंद दिणंद सम, नमो नमो नान्नेय ॥१॥ अर्थ ॥ प्रथम राजा, तेमज प्रथम तीर्थकर अने प्रथम जिने एवा श्री नालिराजाना पुत्र ज्ञषजदेवनगवंत जे सूर्य समान महातेजस्वी तेउने वारंवार नमस्कार था ॥१॥ अमितकान्ति अनुत शिखा, शिर नूषित सोडाह ॥ प्रगट्यो पद्मजह थकी, सिंधु सलिल प्रवाह ॥२॥ अर्थ ॥ अपरिमित कान्तिवाली, मस्तक उपर सुशोजित एवी जेमनी अद्भुत शिखा, जाणे पद्मवह थकी सिंधुनदीना जलनो प्रवाह उत्साहथी प्रगट्यो होय, तेवी देखायजे ॥२॥ कुधासही केवल लही, दीधुं प्रथमज मात ॥ जननीवत्सल एमजे, तेजगजात सुजात ॥३॥ अर्थ ॥ जेठए तुधाने सहनकरी केवलज्ञान प्राप्तकर्यु अने जे प्रथम मातानेज आप्युं, एवा जननीवत्सल प्रनु था जगत्मा एकज उत्तम जन्म्या ॥३॥ जासवंश अवतंस सम, प्रजुतायुक्त सुजुक्ति ॥ विलसि मुकर निवासमे, वरी वधू जे मुक्ति ॥४॥ __ अर्थ ॥ जेमनो वंश आजूषण समान अने जेमने प्रजुता साथे उत्तम जोगविलासने, तेमळतां परिणामे आरिसा नुवनमां केवलज्ञान रूप विलास पामी मुक्तिरूप स्त्रीने जेर्ड वरेला ॥४॥ लघु वय श्छा शकुनी, पारण दिनपण तेह ॥ मिष्ट इष्ट प्रजुने सदा, मीठो मंगल एद ॥ ५ ॥ अर्थ ॥ बालवयमा प्रनुने शेलडीनी ला अश्हती अने जे प्रजुने पारणाने दिवसेपण प्राप्तथश्हती एवी ते मीठी वस्तु उत्तम मंगल रूप होवाथी प्रनुने प्राप्तथतां प्रनु पण मीठगे मंगल कहेवाय ॥ ५॥ गणधर छादश अंगिका, धारक सूत्र कदेव ॥ जंगमनाण तणा जलधि, पुंडरीक प्रणमेव ॥६॥ अर्थ ॥ बार अंगने धारण करनारा, सूत्रना कथन करनारा अने ज्ञानना जंगम समुप्ररूप श्री पुंडरिक गएधरने प्रणाम करूंबुं ॥६॥ तुं वरदा तुं शारदा, सचराचर थानास ॥ कहेतां शील संबंधनो, वस मुज मुख श्रावास॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. __ अर्थ ॥ हे सरस्वति! तमे वरदान आपनारगे अने स्थावर जंगम सर्व पदार्थोमां तमे प्रकाशी रह्यांगे ते श्रा शियस संबंधी रासनी रचना करवामां मारा मुख रूप मंदिरमां निवास करो ॥७॥ गुरू दरियो नरियो गुणे, तरियो किणविध जाय ॥ जास थकथ उपकार जर, प्रणमुं तेहना पाय ॥5॥ अर्थ ॥ गुणोथी परिपूर्ण एवो गुरू रूपी समुज कोनाश्री तो जाय, जेमनो उपकारनो समूह कही शकाय तेवोनथी, एवा गुरूना चरणमां दुं प्रणाम करूंवं ॥ ॥ चंद नरिंद तणो रचुं, शील गुणे सुचरित्र ॥ श्रोता श्रुति नूषण निपुण, परमधर्म सुपवित्र ॥ ए॥ अर्थ ॥ हुँ चंद राजानुं शियल गुणथी भूषित एवं उत्तम चरित्र रचुं नु, जे चरित्र श्रोताऊना कानने श्रानुषणरूप, बुधिवालुं अने परम धर्म युक्त होवाश्री बहुज पवित्र ॥ ए॥ एह कथा रस बागले, मुधा सुधा श्रायास ॥ ते सांजलजो रस रसिक, कविजन वचन विलास ॥१०॥ अर्थ ॥ श्रा कथा रसनी आगल अमृत मेलववानो प्रयास करवो ते वृथाने. तेथी हे रसमा रसिक एवा पुरूषो कविजननां वचननो विलास सांजलजो ॥१०॥ मधुर कथा रचना मधुर, वक्ता मधुर तेम होय ॥ मधुर एतो दीये मधुरता, जो होय श्रोता कोय ॥ १९॥ अर्थ ॥ जे मधुर कथा होय तेनी रचना मधुर होय, तेम वक्तापण मधुर होय पण जो तेमां को श्रोता उत्तम होयतो ते मधुरता पण उत्तम प्रकारनी श्रायः ॥ ११ ॥ ॥ ढाल पेहेली ॥ देशी चोपाईनी ॥ जंबुद्धीप जोयण लखजाम, जंबुवृद शोजित उद्दाम ॥ उत्तर कुरु पुर्वो? तेह, जंबुनदमय अतिससनेह ॥१॥ अर्थ ॥ जंबू नामना वृदयी सुशोजित अने उत्कट एवो लाख योजनना विस्तारवालो जंबुधीपने, तेना पूर्व अर्धनागमा उत्तर कुरूने, जे सघलो जंबुनद नामना सुवर्णथी व्याप्तः ॥१॥ पउमवेदि चिऊं दिशि मनोहार, मध्य पिठ वम जोयण विस्तार ॥ ऊंचो मणिमय जोयणचार, ते उपर जंबु तरूसार ॥२॥ अर्थ ॥ तेनी चारे दिशाए मनोहर पद्मवेदिका बे. तेना मध्य पीठ उपर एक योजन विस्तारवाटो वड. तेउपर चार योजन ऊंचो एक मणिमय जंबु वृदः ॥२॥ मूल वयर कंदे श्रारीठ, खंध वैडूर्य मयी सुगिरि ॥ ते तरू खंधे गाउ श्राप, चोविस गाउ विम एमपाठ ॥३॥ __ अर्थ ॥ तेनुं मूल वनमणिमय, तेनो कंद अरिष्ट मणिमयजे, तेनां थडीयां वैडूर्य मणिमयचे. ते वृर्नु अड आठ गाउनुंने अने चोवीश गाउने एवो पण कोर ठेकाणे पाठ ॥ ३ ॥ For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ चंदराजानो रास. शाखा चार पोहोली दो कोश, थायत पन्नर कोश उक्कोस ॥ सिकायतन विडमने अग्र, देव श्रणाढी रक्षक जय ॥४॥ अर्थ ॥ तेनी चार शाखन बे बे कोश पोहोली, वली ते लंबाई अने ऊंचाईमा पन्नर कोश प्रमाण. तेना अग्र उपर सिहायतन, जेनो रक्षक अणाढी नामे उग्र देवता ॥४॥ कंचन शाखा प्रशाखारूप, रयण वैडूर्य पलास अनूप ॥ तवणिजामय यश वृत्त विवृक्ष, जंबुनद पल्लव सुप्रसिद्ध ॥५॥ अर्थ ॥ तेनी शाखा अने प्रशाखा सुवर्णनी, तेना अनुपम पांदडां वैडूर्य रत्नमयजे. वली सुवर्णमय ते वृक्ष यश अने वृत्तांतथी वृद्धि पामेलो. तेनां सुवर्णमय पलवो प्रसिघने ॥५॥ राजत विममें पुप्फ फलपूर, शास्वत जंबुतरू ससनूर ॥ जंबुबहु बीजांडे समीप, थ प्रथा तेणे जंबुद्धीप ॥६॥ अर्थ ॥ तेनां पुष्प अने फलना समूह घणां शोजी रह्यांचे. आ प्रमाणे ते जंबुवृक्ष शास्वत अने तेजश्री प्रकाशी रहेल. तेनी नजीक बीजा अनेक जंबु वृदो. आवीरीते जंबुवृक्षश्रीज तेनी जंबु द्वीप एवी प्रख्याति थइ ॥६॥ तिहां षट खंडथी नारहवास, अष्टमी चं समो सुप्रकाश ॥ क्षेत्र सकलथी उत्तम एष, जिहां सिकाचलतीर्थ विशेष ॥७॥ अर्थ ॥ तेमां उ खंडवालो आ जरतक्षेत्र अष्टमीना चं जेवो प्रकाशित. ते सर्व क्षेत्रोमां उत्तम क्षेत्रने, कारणके त्यां सिद्धाचल नामनुं पवित्र तीर्थ सर्वथी विशेष ॥७॥ गंगा सिंधु जिहां निम्नगा, चऊद चऊद सहस नदी मगा ॥ . सामा पचवीश श्रारयदेश, बीजा थार्य नही लवलेश ॥ ७॥ अर्थ ॥ ज्यां गंगा अने सिंधु नामनी नदी, चौद चौद हजार नदीउनी साधे रहेली, जेमा साडी पचवीश आर्य देशने, बाकीनो एक पण आर्यदेश नथी ॥७॥ मध्यखंग ते नारदतणो, पूरवदेश तिहां सोहामणो ॥ रविपण उदय पामे जिणदेश, लहे जिनवर तिहां ज्ञान विशेष ॥ ५ ॥ अर्थ ॥ नरतक्षेत्रना मध्यखंडमां अति सुशोजित पूर्वदेश श्रावेलोने जे देशमा सूर्य उदय पामे अने ज्यां श्रीजिनेश्वर भगवंत केवलज्ञान प्राप्तकरे ॥ ए॥ निशिपतितेदेशे संचरे, सोल कला ते तव अनुसरे ॥ गंगापण तिण दिशि परवरी, देशतणो एम अतिशयचरी ॥१०॥ - अर्थ ॥ ते देशमां ज्यारे चंजमा संचरेने त्यारे तेने सोल कला प्राप्त थाय. गंगानदी पण ते दिशामां वहे. श्रावीरीते ते देश महत्वतावालो गणायने ।। १० ॥ तिहां नगरी एक थानापुरी; अखिलवस्तु शोनालंकरी॥ लंकापण शंका मन धरे, अलका सलकी न शके खरे ॥ ११॥ For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ ते देशमां श्राजापुरी नामनी एक नगरी बे. जे नगरी सर्व वस्तुनी शोभाथी अलंकृत. ते नगरीनी शोजापासे लंका पण पोतानी शोजामाटे शंका धारण करेबे छाने कालकापुरी तो ते नगरी पासे मी पण रहीशके तेमनथी ॥ ११ ॥ चोराशी चौटां विस्तार, जगती सम उत्तंग प्राकार ॥ ऊत्तम जनगण तेणें संकीर्ण, राजमार्ग बहु मणिय विकीर्ण ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ ते नगरीमां चोराशी चौटां बे, जगतीना कोट जेवो तेनो ऊंचो कोटडे. तेमां उत्तम मनुष्योनीज वस्तयां राज्यमार्गमां घणां मणिनो विस्तार ॥ १२ ॥ वर्ण सुवर्णे पूजित सर्व, दाने रविसुत दोय गर्व ॥ धनपति कठिन मेरू अधिकार, ते गुण जनमें नहीय लगार ॥ १३ ॥ अर्थ ॥ त्यां वसनारा सर्व उत्तमवर्णो सुवर्णश्री पूजितहता. तेज॑ना दानथी दातार कर्ण पण गर्व रहित थाय एम हतुं. सुवर्णनो मेरू धनपति बतां कठिन पण त्यां वसनारा लोकोमां तेवो गुण नहतो ॥ १३ ॥ व्यापारी जारी धनपात्र, नारी निरूपम निर्मल गात्र ॥ देरा देव सेवे बहु जेव, कयुं पुर वर्णन करि संखेत्र ॥ १४ ॥ ॥ अर्थ | त्यांना व्यापारी बहु धनवान हता. स्त्री निरूपम ने निर्मल गात्रवालीहती ने लोको देव देरासरनी बहु प्रकारे सेवा करताहता. श्राप्रमाणे संदेपमां तेनगरी वर्णवी ॥ १४ ॥ राज्यकरे वीरसेन नरेश, जास प्रजाव घरि लदे रूषि वेष ॥ देवल दंगादिक उपमाय, पुरम एहवो नृपनो न्याय ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ तेनापुरीमां वीरसेन नामे राजा राज्य करतो हतो. जे राजानी शक्ति एवी हती के तेना शत्रु तेना प्रजावथी मुनिनो वेष लइ जागी जाताहता. देवालयना दंडनी ऊपमाजेवो नगरमां राजानो न्याय तो हतो ॥ १५ ॥ वीरमती पटराणी तास, विलसे विषयिक जोग विलास ॥ जेहनो सुखदेखी सुरवंश, भूषण यह निशकरे प्रशंस ॥ १५ ॥ ॥ राजा वीरसेनने वीरमतीनामनी पटराणी हती, तेनी साथे राजा विषयभोगना विलासमां श्रानंदकरतो हतो. जेनुं सुख देखीने देवतार्जुना वंशमां आभूषण रूप एवो इंद्र पण निरंतर तेनी प्रशंसा करतो हतो ॥ १६ ॥ चरित्र पीठिका पेहेली ढाल, मोहन विजये कही रसाल ॥ श्रोता सुणजो तजि व्याघात, आगल यति मीठीढे वात ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ श्राचरित्रनी पीठिका रूप ने रसिक एवी पेहेलीढाल श्री मोहनविजयजी ए कहेली बे. हे ! श्रोता ! हवे विदेपनो त्यागकरी सांजलजो. आगल घणी मीठी वात श्रावे ॥ १७ ॥ Jain Educationa International ॥ दोहा ॥ हवे आव्या नगरीए, सोदागर शिरदार ॥ बहु मोला घोमातणा, करवाने व्यापार ॥ १ ॥ For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. · अर्थ ॥ एकदा ते आलापुरीमा घणा किंमती घोडाऊना व्यापार करवाने उत्तम सोदागर अावी चड्या॥१॥ कुक्कम कंधा लहुकना, उलट कटोरा चक्ष ॥ 'गति अधीक मन पवनथी, जंगम तद विपद ॥॥ अर्थ ॥ ते घोडाऊना कांध कुकडाऊना जेवाहता. तेउनी आंखो विशाल श्रने तीदणहती. तेउनी गति मन अने पवनथी पण अधिक हती अने तेजे जाणे पांखो विनाना चालता गरूम होयतेवा लागता हता॥२॥ वीज बुका जेम अलख, दृढवपु नलिय प्रचंड ॥ खुराघात पडतालथी, करे गिरि खंमोखंग ॥३॥ अर्थ ॥ वीजलीना जबकारानी जमे दणमां अलक्ष्य थ जाय तेवा हता. तेमनां शरीर दृढ हतां अने नालो प्रचंडहती. ते पोतानी खरीउना आघातथी पर्वतना खंडेखंड करे तेवाहता ॥३॥ तेजी तुरकी हंसला, कंबोजा एराक ॥ पाणीपंथा काबली,जातिअनेक ऊडाक ॥४॥ अर्थ ॥ तेतुनी तेजी, तुरकी, हंसला, कंबोज, एराक, पाणी पंथा, काबली ऐवी अनेक जाति हती ॥४॥ नूपे एवाइयवरा, श्राव्या जाण्या जाम ॥ सोदागरने धनद, सीधा सघला ताम ॥५॥ श्रर्थ ॥ श्रावा उत्तम घोडा आव्याने एवी वात राजाना जाणवामां आवतां, तेणे सोदागरने व्य आपी, सर्वे घोडा खरीदी लीधा ॥ ५॥ एक तुरंगम तेहमां, अति उत्तम श्राकार ॥ रंज्यो नूप लह्यो नही; तेहनो वक्राचार ॥६॥ अर्थ ॥ ते घोमाऊमां एक अति उत्तम आकारवालो घोडो हतो, जेनी उपर राजानो बहुज रागथयो. परंतु ते घोडो विपरीत गतिवालो हतो तेनुं जाण पणुं राजाने थयुं नहीं ॥६॥ साजकरी तेउपरें, नृपति थयो असवार ॥ मृगया हित सेना सहित, गयो गदन कांतार ॥७॥ अर्थ ॥ एक वखते राजा तेना उपर स्वारी करवा सारू तेने तैयारकरी तेना उपर बेसी मृगया के. शिकार करवाने घोर वनमां सेना सहित गयो ॥ ७ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ चैत्रे चतुर्नुज नाव्या, राधाजी करेरे विचार ॥ एदेशी॥ अथवा सुरति महिनानी देशी॥ नूमिसर अलवेसर, कानन फेरे तुखार ॥ वन श्वापद कर्या श्राकुला, तरू तरू थया असवार ॥ मृग संबर ससकादिक घाले घेरे धंध ॥ परमाधामी वस पड्या, जेम नारकी संबंध ॥१॥ अर्थ ॥ हवे राजा वनमां घोडाने फेरवतां फेरवतां वनना शिकार करवा लायक सर्व प्राणीने आकुल व्याकुल कर्या. दरेक काडे काडे घोडेस्वारो फरी वट्या. जेम परमाधामी पोताने वशपडेला नारकीउने घेरीले, तेम मृग, साबर अने ससलां विगेरे प्राणीउने तेमणे घेरी लीधा ॥१॥ For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. एक मृग यूथ विबूटो, दोगे तव नूमीश ॥ तुरग को तेकेडे,.. हिंसारव सुजगीश ॥ हरिण घणो फालेचड्यो, ते पकड्यो नविजायं ॥ जस जिवित अति तेढ्ने, कोथीकांश्न थाय ॥२॥ अर्थ ॥ तेवामां मृगना टोलामांथी एक मृग बुटो पड़ी गयेलो राजाना देखवामां आव्यो, तेनो शिकार करवाना चरसथी राजाए घोडाने तेनी पागल हंकार्यो. ते मृग घणो फाले चड्यो अने राजाथी पकमायो नहीं. ज्यां सुधी आयुष्य होय त्यां सुधी कोस्थी कांइपण अतुं नथी. ॥ ॥ . सेना को किहां रही, एकाकी राजान ॥ वक्र शिक्षित ते अश्वनी, गति न लही तिलमान ॥ मृग फुदी जिम कूदी,जूदी पकमी वाट ॥ तुरंग पयोधित रंगज्युं, रंगकरे बहु घाट ॥३॥ अर्थ ॥ राजानी सेना तो क्याई रही, ते एकलो अझ पडयो. ते घोडो वक्र (विपरीत) शिक्षा पाम्यो इतो, तेनी गति तिलमात्र पण राजाना जाणवामां आवी नहीं. पेलो मृग तो कुदीने जुदे मार्गे चाट्यो गयो. हवे था घोमो समुजनां मोजानी जेम बहु प्रकारना रंग करतो उन्लवा लाग्यो ॥ ३ ॥ वाग वसे नवि श्रावे, व्याकुल थयो महिपाल ॥ घोडे थोमा मांहे, उलंघी नूमि विशाल ॥ खेंची राख्यो नवि रहे, वहे जिम पवन प्रचार ॥ नासा वाजे वृहासनी, पग न बबे नुमि सार ॥४॥ अर्थ ॥ ज्यारे ते को ठेकाणे टक्यो नहीं एटले राजा व्याकुल थवा लाग्यो ने घोडाए अस्प काखमां विशाल नूमि उलंघन करी दीधी. राजा घणो खेंची राखे तो पण ते रहेतो नथी. जम पवन चाले तेम चाट्यो जाय . नासिकाना अवाजवी गाजता ते अश्वना पग भूमि उपर बता न हता.॥४॥ तुरंगनी दपट श्रने वलि, ऊपट अनिलनी गूढ ॥ वन गिरि तरूवर . निरखी, नरवर थयो दिग्मूढ॥पुष्करणी हित करणी, धरणीधव तिहां दीठ ॥ वम तरूवर एक गव्हर, उपकंठे उकिन ॥५॥ अर्थ ॥ ते घोडानी दोड, पवननी गूढ ऊपट अने वनगिरिना वृक्षोने निरखी राजातो दिगमूढ थई गयो. आगल जातां राजाए एक हितकारी वापिका दीी. तेना कांग ऊपर एक घणुं ऊत्कृष्ट गहन वडनुं वृह जोवामां आव्युं ॥५॥ नृपशोचे इयमोचुं, पोहचुं जो तरू माल ॥ खेंच्यो पोहोचेवा वे घणो, श्म बालोचे नूपाल ॥ मनन्नाव्यो तरू श्राव्यो, सघलो फाव्यो दाव ॥ धाईने वमवाई, तुरत संबाई राव ॥६॥ - अर्थ ॥ ते जो राजाए विचार्यु के, श्रा घोडाने गोडी था वडनी शाखाए पोहोचुं अने तेने खेंचवाथी त्यां पोहोंचाशे वली मननी धारणा प्रमाणे आ वृक्ष आव्युं अने सघलो दाव बराबर फाव्यो ने. श्रा विचारी राजाए धाश्ने ते वमनी वडवाई पकडवा हाथ पोचा कर्या ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ cafe MI2 REAT EL WW 01 on MOVIE na Thternationa waar al use only seibrary.org Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चंदराजानो रास. कुवली वाग पमीजव, तव रेवंत अंदन ॥ थंजपरें थई ऊनो महिपति पाम्यो श्रचंन ॥ वक्र शिक्षित ते जाण्यो, नाण्यो रोष प्रकाश ॥ ताण्यो अति थपिडाण्यो, फोकट कीध प्रयास ॥७॥ - अर्थ ॥ तत्काल घोमानी लगाम पडीगइ एटले तरत ते घोडो दंन रहित श्रइ स्तंजनी जेम उत्तो रह्योते जो राजा आश्चर्य पामी गयो. घोडाने विपरीत शिक्षावालो जाणी मनमां रोष श्राव्यो नहीं अने विचार्युके अरे में अजाणपणे तेने खेंची ताणी था बधो फोगट प्रयास कर्यो ॥ ७॥ सकृप तवनृप ऊतर्यो, बांध्यो हय वटबांहि॥ पाणी पीवा कारणे, पेठो पुष्करणी मांहि ॥ जलपूरी ससनूरी, नूताटंक समान। घटित जटित बहु फटिकना, निवम निवड सोपान ॥ ॥ अर्थ ॥ पनी राजा दयालु थइ नीचे उतर्यो अने ते अश्वने वडनी बाया नीचे बांध्यो. पोते पाणी पीवाने वापिकानी अंदर उतर्यो. ते वापिका जलथी परिपूर्ण हती. जाणे पृथ्वीरूपी स्त्रीनां श्राकोटां होय तेवां घडेलां अने जमेलां तेनां फटिकनां घाटां पगयी हतां. ॥ ॥ विमल कमल जल उपरें, परिमल बहुल प्रकार ॥ गुण लीणा वर कीणा, प्रीणा हिरेफ ऊंकार ॥नफरीसम सफरी तिहां, अविआर फरीय अनेक ॥ पंथ श्रम मंथर पथिकने, पुरथी करे जलरेक॥ए॥ अर्थ ॥ तेना निर्मल जलनी ऊपर बहु प्रकारनो सुगंध पसरी रह्यो हतो. जेमां गंध गुणमां लीन एवा मधुकरो त्रीणा स्वरे झंकार करी रह्या हता. वली ते उपर मोटी माउली अनेक रीते स्फुरणायमान यती हती अने मार्गना श्रमश्री मंद श्रयेला मुसाफरोना श्रमने पोताना पुंउमाथी जल सिंचन करती हती॥ए॥ मंद समीरने बंदे, उदित सानंद तरंग ॥ प्रगटेजास प्रसंगथी, अंग सुरंग अनंग ॥ सीतल बाया माया, माय सरखी तेहा॥ निरखी नयणे हरख, नरवर पाम्यो नेह ॥ १० ॥ अर्थ ॥ मंद मंद वाता पवनना योगयी ते वापिकाना तरंगो आनंद सहित उदित अता हता. जेऊना प्रसंगथी अंग उपर रंग करतो अनंग (कामदेव ) प्रगट श्रतो हतो. आवी माता जेवी तेनी शीतल - यानी मायाने नयनश्री नीरखीने राजा अत्यंत प्रसन्न श्रयो ॥ १० ॥ विधिपूर्वक जल पीधु, कीधुं मऊन तेम ॥ जलक्रीडा तजी व्रीडा, कीधी पूरण प्रेम॥श्रति श्रानंदे नरीदे, पीधो पद्ममकरंद ॥ तरण चरण क्रमणादिक, खेले नव नव बंद ॥ ११ ॥ अर्थ ॥ राजाए विधिपूर्वक जलपान करी तेमां स्नान कयु. श्रोमीवार खजा गेमी पूर्ण प्रेमथी जलक्रीड करी पनी अति आनंद पामी नरपतिए कमलनो मकरंद (रस) दीधो अने तरवानी अने चरण क्रमण विगेरे क्रीडाथी नव नव रंगे खेलवा लाग्यो ॥ ११ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. पुष्करणी बहुवरणी, शोनावी धरणीश ॥ जलग हिर्या उतार्या, पहिया वस्त्र जगीश ॥ वा विजोवे नृपहोवे, राजी चित्त अनंत ॥ जाली एक विशाली, तामनिहाली एकंत ॥ १ ॥ अर्थ ॥ ते बहुवर्ण वापिकाने राजाए शोजावी. पनी स्नान वस्त्र उतारीने बीजां वस्त्रो पेहेर्या. राजा चित्तमां अनंत पणे राजी थ गयो. त्यां गल एकांतमां एक विशाल जाली जोवामां श्रावी ॥१॥ फांखी जोवे जालिका मालिकाविविध सोपान॥नृप तिहां थश्ने ऊतर्यो, कर कर वाल प्रधान ॥ श्रागल जातां पातालमां, दीगे वन विस्तार ॥ निरनय नृप वीराग्रणी, सत्वसखा सहचार ॥ १३ ॥ अर्थ ॥ तेजालीने बराबर जोतां विविध पगथीयांनी माला जोवामां श्रावी राजा हाथमा मुख्य खड्ग बइ ते पगीयांनी श्रेणि थी ऊतो. त्यांची आगल जातां पातालमां एक विस्तारवालुं वन जोवामां आव्यु तेमां सत्त्वकेतां बल जेनो सहचर सखा चे एवो ते वीराग्रणी राजा त्यां निर्भय हतो ॥ १३ ॥ धन्या कोश्क कन्या, तेहनो स्वर सुणीकान ॥ विस्मय अतिपाम्यो तिहां, मन मोहे राजान ॥ ए असराल पाताल में, एस्यो वन विसवादाकिम श्हा रहे कोश्बालिका, करि करि करूणा साद॥१४॥ अर्थ ॥ त्यां कोई धन्य कन्यानो स्वर कानमां सांजली राजा मनमा अति विस्मय पाम्यो. तेणे विचार्यु के, आवा गहन पातालमां आq वन क्यांथी अहीं बालिका कोण हशे.जे करूणाना स्वर कर्या करे ॥१॥ नगन खडग करी चडवडी, श्रांणी मन उपकार ॥ तत्क्षण तिहां जश ऊनो, शब्दतणे अनुसार ॥ वचन तणी रचनायें, पत्नणी बीजी ढाल ॥ मोहन विजये कहे सुणो, श्रागल वात रसाल ॥१५॥ अर्थ ॥ तत्काल राजा नागी तलवार करी मनमां उपकार बुद्धि लावी ते शब्दने अनुसारे त्यां जश्ने उनो रह्यो. या प्रमाणे वचननी रचनाश्री श्री मोहनविजयजी ए बीजी ढाल कही. हवे आगल रसिक वात श्रावशे ते श्रवण करो ॥ १५॥ ॥दोहा॥ दृगमुऊित योगी सरू, कतिहां निरखे नूप ॥ करजपमाल बहु कुसुम, धूप धूम अति रूप ॥१॥ अर्थ ॥ राजा त्यां गयो तेवामां एक जोगी दृष्टि मीचीने रहेलो जोवामां आव्यो. तेना हाथमां जप माल हती. तेना अंग ऊपर घणां पुष्प, धूप अने धूम प्रसरी रह्यां हतां ॥१॥ पमी श्र मुख धागले, असी उघाडी एक ॥ अग्निकुंम तिम परजले, नृप जाण्यो अविवेक ॥२॥ - अर्थ ॥ तेनी श्रागल एक उघामी तरवार पडी हती. तेनी आगल अग्निनो कुंम प्रज्वली श्रतो हतो. राजाए या सर्व तेनो अविवेक जाणी लीधो ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CELOS Jangan asene and Private Uso weryfanelli Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. निवम बंध बांधी थकी, दीनी कन्या ताम ॥ रूदन करे मुख उच्चरें, एम वचन श्रनिराम ॥३॥ अर्थ ॥ तेनी आगल मजबूत बंधथी बांधेली कन्या जोवामां आवी. मुखथी पोकारी रूदन करती आ प्रमाणे ऊत्तम वचन कहेती हती ॥३॥ कर वाहर आना नृपति, वनितानी श्णवार ॥ विटल जटिल बलि श्रापशे, नहितो अग्नि मकार ॥४॥ अर्थ ॥ हे आजानगरीना राजा, आ वखते वनितानी वार कर. नहींतो आ नष्ट तापस योगी अग्निमां मारूं बलिदान आपी देशे ॥४॥ नारि वचन एह प्रगट, निसुणी निज अनिधान ॥ मुख श्रागल श्रावी नृपति, हलुएशुं करी शान ॥५॥ अर्थ ॥ ते नारीनुं एवं प्रगट वचन अने तेमां पोतानुं नाम सांजली राजा तेना मुख आगल शान करी इलवेथी आवी ऊलो रह्यो॥५॥ ग्रहि खड्ग ते जटिलने, बोलाव्यो नर राय ॥ मुजावे अबला तणो, बलि श्म किम देवाय ॥६॥ __ अर्थ ॥ राजाए खड्ग लश्ने तापसने बोलाव्यो. अरे पुष्ट, मारी आगल आम अबलानुं बलिदान केम अपाय ?॥१॥ रे! निघृण निर्दय नितुर, रे! पापी मतिहीन ॥ मूक मनोहर माननी, रे! परिग्रह कोपीन ॥ ७॥ अर्थ ॥ अरे! घृणा रहित, अरे! निर्दय, अरे ! क्रूर, हे! बुद्धिहीन पापी, हे ! कोपीननो परिग्रह करनारा तापस! आ मनोहर मानिनीने बोडीदे ॥ ७॥ था साहमो बोमीश नहीं, योगी निसुणी एम ॥ . नागे ध्यान तजी इसे, बांबी निज तनु खेम ॥ ॥ अर्थ ॥ तुं मारी सामो श्राव्य. हुँ तने गोडीशनहीं. आवां वचन सांजली ते योगी पोताना शरीरनी कुशलता श्छी ध्यान बोडीने नाशीगयो ॥७॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ प्राणी कर्मसमो नही कोय ॥ अथवा ॥ देव तणी इति जोगवी श्राव्यो ए देशी॥ गयो जोगी नागे वन मांहे, नृपे पण केड नकीधी ॥ विद्या साधन केरी तेहनी, सामग्री सवि लीधीरे ॥ सूरिजन सत्त्व समो नदी को॥ देव दानव विद्याधर मृगपति, सत्त्वेसवि वश होई रे॥सूरिजन ॥एषांकणी ॥२॥ अर्थ ॥ ते जोगी वनमां नाशी गयो. राजाए तेनी केड न लीधी पण तेनी विधि साधवानी सर्व सामग्री लाई लीधी. हे सूरिजन! जगत्मां सत्त्व समान कोइ नथी. देव, दानव, विद्याधर अने केसरीसिंह तेजेपण सत्ताथी वश थाय ॥१॥ For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० चंदराजानो रास. बंधन बोते बालानां बहु यादरे बोलावी ॥ रे नृपपुत्री निरूपम रूपा, एहने वश केम वीरे ॥ सू० ॥ २ ॥ ॥ पी राजा ते बालाने बंधन बोकी बहु श्रादरथी बोलावी के, हे अनुपम रूपवती सुंदरी, तुं तापसने वश केम यई ? ॥ २ ॥ मानगरीनो जे राजा, ते केम प्रीतम ताहारो ॥ ॥ केदनी तुं पुत्री कहे मुऊ आगल, जय मत आणीश माहारो रे अर्थ ॥ श्रानगरीनो राजा, ते केम तारो प्रीतम थाय ? तुं कोनी पुत्रीढुं ते मारी मारो जय जरापण राखीश नहीं ॥ ३ ॥ बाला सुकुमाला, वचन रसाला पजणे ॥ करी घूंघट निज प्रीतम प्रीबी, योगी जय मन न गणे रे ॥ सू० ॥ ४ ॥ ॥ ते सुकुमार ने विशाल हृदयनी बाला रसमय वचनो बोली अने पोतानो पति जाणीने वस्त्रनो घुंघट कर्यो. ते मनमां योगीनो जय गयो नहीं ॥ ४ ॥ सू० ॥ ३ ॥ गल जाव. जापुरी पचवीश जोयण, पद्मपुरी यति वारू ॥ तिदां नृप पद्मशेखर लवेशर, शुरवीर शिर दारू रे ॥ सू० ॥ ५ ॥ पुरी पचविश योजन अति सुंदर एवी पद्मपुरी नामे नगरी बे; तेमां पद्मशेखर नामे राजा बे. जे शूरवीर पुरुषोना मस्तकमां शिरोमणि बे ॥ ५ ॥ ॥ रतिरूपा तेहनी पटराणी, शारदा रूपसमाणी ॥ चंद्रावति हुं तेनी पुत्री, जिनधर्मिजग जाणीरे ॥ सू० ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ ते पद्मशेखर राजाने रति जेवी रूपवाली शारदा नामे राणी बे. तेनी चंद्रावती नामे पुत्री डुं बुं. जे जगत्मां जिनधर्मी तरीके जाणिती नुं ॥ ६॥ बालकता गई मुक तनु प्रगटी, यौवन वय ठकुराई ॥ तातें मुऊ निरखी मनमाहे, वरचिंता निरमाईरे ॥ सू० ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ मारूं बालक वय वीत्या पढी मारा शरीरमां यौवन वयनी ठकुराई प्रगट ई. एक वखते म यौवनवती जोइ, पिताना मनमां वरनी चिंता उप्तन्न थई ॥ ७ ॥ हवे एक निमित्तिये श्रावि, निमित्त प्रकाश्युं एह ॥ जानगरी पति ए पुत्री, केरो कंत गुण गेदरे ॥ सू० ॥ ८ ॥ ॥ वामां को एक निमित्तिए श्रावी मारा पिता पासे निमित्त प्रकाशयुं, के आजानगरीनो गुण वान राजा या तमारी पुत्रीनो पति थशे ॥ ८॥ हूवा अति दरषित, नैमित्तिकने सन्मान्यो ॥ मात पिता हुं पति रोमांचित हुई, प्रीतमनाम पहिचान्यो रे ॥ सू० ॥ ए ॥ ॥ ते सांजलीने मातापिता अत्यंत हर्ष पाम्यां; तेमणे ते निमित्तिनुं घणुं सन्मान कर्यु ने पतिनुं नाम जाणी हुंपण अति रोमांचित थई गई ॥ ए ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. तटिनी जल क्रीमाने कारण, सहित सखी हुँ श्रावी ॥ एवं तिहां कुटिल जटिलें मुऊने, ईज्जालें जरमावी रे ॥ सू० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ एक वखते ढुं सखीउनी साथे नदीमां जल क्रीडा करवाने गए हती, त्यां आ कपटी तापसे मने ईजजालमां नमावी दीधी ॥ १० ॥ दृष्टि बंधन सहनी करीने, अपहरी मुक सपराणी ॥ पुष्करणी जालीये उतारी, ए वनमांहे आणीरे ॥ सू० ॥११॥ अर्थ ॥ तेणे सर्वनी दृष्टि बंध करीने मने हरी लीधी. पनी मने वापिकानी जालिमाथी उतारी आ वनमा दाखल करी ॥११॥ ... मुजवखते तमे श्हां पधार्या, संकटथी बोमावी ॥ अंतरजामी तमे गुण सागर, शी कहं वात बनावी रे ॥ सू॥ १२ ॥ अर्थ ॥ श्रा वखते तमे अहीं पधारी मने संकष्टमांश्री गोडावी लीधी. अंतर्यामी अने गुणना सागर रूप एवा तमारी वार्ता शी कडं? ॥ १॥ पोतानी नारी उगारी, तेहमां शो पाम चडाईं ॥ मागण होऊं तो कीर्ति बोझुं, जश पडहो वजमावु रे ॥ सू० ॥ १३ ॥ __ अर्थ ॥ तमे तमारी पोतानी स्त्रीने उगारी तेमां दुं शो पाड मानु ? जो हुँ मागण होऊतो कीर्ति बोर्बु अने तमारा यशनो पटह वगडावं ॥ १३ ॥ उलख्यामें एहवे श्राचरणे, तमे वालेसर महारा ॥ नहितर इणवेला कुण श्रावे, पतिविण करवा वादाररे ॥ सू०॥ १४॥ अर्थ ॥ में तमने आचरण उपरथी उलखी लीधा , तमे मारा वाहाला नगे, नहींतो पति सिवाय श्रा वेलाए मने वाहार करवा कोण श्रावे? ॥ १४ ॥ वसुधा पति वीरसेन प्रशंसे, तेदने घणी सनमानी ॥ कीधी मुख बागल मन हरणी, जेहुंती नार पोतानीरे ॥ सू॥१५॥ अर्थ ॥ त्यारपती राजा वीरसेने प्रशंसा करी तेनुं घणुं सन्मान कर्यु अने ते मन हरणी बालाने पोतानी पागल करी. जे पोतानी स्त्री हती ॥ १५॥ __वन अतिक्रमि थईने सोपाने, तेह उलंघी जाली ॥ __पुष्करणीथी बाहेर श्राव्यां, जलथी देह पखाली रे ॥ सू० ॥१६॥ अर्थ ॥ पड़ी ते पगथीआनी श्रेणियी वन उलंघन करी पेली जालिमा थई शरीरने प्रक्षालन करी वापिकामांथी बाहेर आव्यां ॥ १६॥ सेनासवि श्रावीने पोहोती, प्रणम्यो पृथिवी पाल ॥ ___ मोहन विजये अतिहि रसाली, त्रीजी प्रकाशी ढाल रे ॥ सू ॥१७॥ अर्थ ॥ सेनापति त्यां श्रावी पोहोंच्यो अने राजा वीरसेनने प्रणाम कर्यो. आ प्रमाणे श्री मोहन विजयजीए आ त्रीजी ढाल प्रकाश करी.॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ॥ दोहा ॥ सकल सुनट क्षिति मुकुटने, करजोडी कहे जाम ॥ नव नीक लिये एकला, इम मृग माटे स्वाम ॥ १ ॥ ॥ सर्व सुटो पृथ्वीना मुगटरूप राजाने हाथ जोडीने कहेवा लाग्या के हे स्वामी, वी ते मृगने माटे एकला नीकलवुं न जोइ ॥ १ ॥ रतन जतन करि राखवा, तुमने नर शिरताज ॥ १२ सनथी दुर्जन घणा, मोहोटाने महाराज ॥ २॥ अर्थ ॥ हे ! लोकोना शिरताज महाराज, तमारां जेवां रत्नने तो यतना करीने राखवां जोइए. हे महाराज, मोटा पुरुषोने समनश्री दुर्जन घणा होय बे ॥ २ ॥ धावल पगथी धूंसीयें, उढाए जरतास ॥ जे जेवा नर तेने, तेदवा होय प्रयास ॥ ३॥ अर्थ ॥ हे ! राजा, धाबलीथी पग लुंवायडे, अने जरीयान वस्त्र उढाय बे, तेम जेवो माणस होय तेवो तेने प्रयास थाय ॥ ३ ॥ मोटुं जाग्य जुजाबली, कुसलें मलिया नूप ॥ पण ए कन्या को अबे, कहियें तास स्वरूप ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ अमारूं मोटुं जाग्य के जे श्राप भुजाबली राजा पाना कुशल- देम प्राप्त थया. या कन्या कोण बे, तेनुं स्वरूप कहो ॥ ४ ॥ दय पुष्करणी जालिका, योगी कन्या खेद ॥ अवनीशे निमेषमें, जाख्यो सघलो नेद ॥ ५ ॥ अर्थ ॥ राजाए विपरीत शिक्षावाला अश्वनी, वापिकानी, जालीनी, योगीनी ने कन्याना संकष्टनी बधी वात जणावी तत्काल तेनो बधो भेद खुल्लो कर्यो ॥ ५ ॥ सव सामंत या खुशी, नृपनी करे प्रशंस ॥ ख्याग त्याग वाचा अचल, धन क्षत्री अवतंस ॥ ६ ॥ ॥ ते सांजली बधा सामंतो खुशी थया ने राजानी प्रशंसा करवा लाग्यो के, दान ने वचनथी अचल एवा क्षेत्रीय कुलमां आभूषण रूप तमने धन्य बे ॥ ६॥ ले कन्या सेना सहित, नृपति थयो असवार ॥ श्राव्या निज नगरी तिहां, वरत्या जय जयकार ॥ ७ ॥ ॥ राजा कन्याने लई सेना साथे घोमेस्वार थयो ने पोतानी नगरीमां श्रावी पोहोंच्यो. त्यां जय जयकार वरती रह्यो ॥ ७ ॥ Jain Educationa International ॥ ढाल चोथी ॥ सरवरीयारी पाल, थांबा दोय रावलां ललना ॥ ए देशी ॥ For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ காலமாக கு * araat MIUIANAVAAIITIS W2008 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. खबर करी तत्खेव पद्मशेखर नणी ॥ ललना ॥ बे श्राजापुरी मांदेके पुत्री तुम ती ॥ ० ॥ वहेला मलवा काजके राज पधारजो ॥ ० ॥ प्रे वचन मन आणिके लाज वधारजो ॥ ल० ॥ १ ॥ जानगरीमां अर्थ ॥ तत्काल ते राजकन्याए पोताना पिता पद्मशेखरने खबर करी के, तमारी पुत्री d. मा मलवाने वेला पधारजो, अने मनमां विवेक वचन लावीने आपनी लाज वधारजो ॥ १ ॥ तातथी मलवा काज जाणी सुता श्रातुरी ॥ ल० ॥ पद्मपुरीपति तुरत व्याजापुरी ॥ ० ॥ श्रादरदे वीरसेन मल्या हेजे घणे ॥ ल० ॥ चंद्रावती संबंध सयल मांडी कह्यो || ल० ॥ २ ॥ अर्थ | पोतानी पुत्री पिताने मलवाने घणी आतुर ने एम जाणी पद्मपुरीनो पति पद्मशेखर राजा तत्काल श्राजापुरी मां श्राव्यो. राजा वीरसेन घणा आदरथी अने हेतथी तेने मध्यो. पनी तेणे चंद्रावतीना संबंधन सर्व वृत्तांत कही संजलायो ॥ २ ॥ अति उबरंगे उढंग धरी निज बालिका ॥ ल० ॥ तातें प्रकाशी प्रगटके हित परनालिका ॥ ल० ॥ पद्मशेखर करजोडी कहें वीरसेनने ॥ ० ॥ ए मोहोटो उपगार श्रमने तुमे कर्यो ॥ ० ॥ ३ ॥ अर्थ | पी राजा पद्मशेखरे पोतानी बालिकाने हर्षथी उत्संगमां बेसारी ने अतिशे अंतरना तनी परनालिका प्रगट करी बतावी ने पी पद्मशेखरे हाथ जोडी वीरसेनने कयुं के, तमे अमारो या मोटो उपकार कर्यो बे ॥ ३ ॥ १३ तमगुण अपरंपार के केम जणीजीयें ॥ ल० ॥ ए कन्या शिरताज के राजपरिपीजीयें ॥ ० ॥ धूरथी निमित्त वचनथी एह तुम गेहनी ॥ ल० ॥ मानी वचन महाराज राखो रीत ते नी ॥ ल० ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ हे राजा, तमारा अपरंपार गुणो बे, तेनो बदलो केवी रीते यापी शकाय, पण हे मुगटधारी राजा तमे या कन्याने परणो. आजथी या बाला वचनथीज तमारी स्त्री थई चुकी बे. मारूं वचन स्वीकारी तेनी रीत राखो, एटले तेनी टेक राखो ॥ ५ ॥ लग्न लेवामी शुद्ध तुरत परणावीया ॥ ल० ॥ शशिवदनी मृगनयणीयें सोहला गावीया ॥ ल० ॥ वीरमतीविण नगरवासी सवि दरखिया ॥ ० ॥ वाला घर ससनेह तथा मेद वरषीया ॥ ल० ॥५ ॥ ॥ पी राजा तुरत लग्ननो शुद्ध दिवस नक्की करी ते बन्नेने परणाव्यां. ते प्रसंगे चंद्र जेवा मुखवाली मृगनयणी सुंदरीउंए मंगल गीत गायां. मात्र एक राजानी राणी वीरमती शिवाय नगरना बधा amite पाया. स्नेही संबधीना घरमा स्नेहना मेघ वर्षवा लाग्या ॥ ५ ॥ पद्मशेखर परणावी इम निज अंगजा ॥ ल० ॥ निज नगरे गयो ता ते नृपनी लेइ रजा ॥ ल० ॥ चंद्रावती थी वीर नृपति सुख जोवे ॥ ० ॥ दिन दिन नवले नेहशुं दीदां जो गावे ॥ ० ॥ ६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. __ अर्थ ॥ राजा पद्मशेखर आ प्रमाणे पोतानी पुत्रीने परणावी, राजा वीरसेननी रजा लइ सत्वर पोतानी नगरमां गयो. राजा वीरसेन चंत्रावतीनी साथे सुख जोगववा लाग्यो. प्रत्येक दिवसे नवा नवा प्रेममा मग्न श्रवा लाग्यो ॥६॥ वीरमति चित्त शोक संबंध वहे सदा ॥ लम् ॥ चंडावती मनमांहे न थाणे ते कदा ॥ लम् ॥ जे जेहने मन प्रेम हुवे जे उपरे ॥ ॥ल० ॥ तेदने शोकने लोक कहो कांई करे ॥ लग ॥७॥ अर्थ ॥ राणी वीरमती हमेशां चित्तमां शोक कर्या करती हती, पण चंत्रावतीना मनमां तेनु कां पण लागतुं नहीं. जे जेने मनमां जे उपर प्रेम उपजे, कहो नाश्तेना मनमां शोक शुं करवा होय ? ॥७॥ चतुर चंद्रावती चित्त पियुनु जालवे ॥ल॥ प्रीतम गुण बहुनांति मधुर स्वरें चालवे ॥ ल० ॥ कोश्क पुण्यवंत जीवते गर्ने उपनो ॥ ल० ॥ चंज सुपनथी सुचित सुत दोशे नूपनो ॥ ल०॥ ७ ॥ अर्थ ॥ हमेशां चतुर चंावती पोताना पतिनी मरजी उठगवती हती. अने प्रियतमना बहु गुणने मधुर स्वरथी गाती हती. एम करतां को पुण्यवंत जीव चंावतीना गर्नमां आव्यो ते वखते राणीने चंजन स्वप्न आव्यु. जेथी राजाने सारा चरित्रवालो पुत्र अशे ॥ ७॥ प्रसव्यो पुत्र रत्न चंद्रावतीयें तदा ॥ लहो नृपजिम मुमक पामीने संपदा ॥ ल०॥ दीधा अरथी धनके सयण संतोषीया ॥ लम् ॥ सयणाजणी पकवान थकी अति पोषीया ॥ ल० ॥ ए॥ अर्थ ॥ समय श्रावतां चंघावतीए पुत्रने जन्म आप्यो. जेम निर्धन पव्य पामीने हर्ष पामे तेम राजा हर्ष पाम्यो. उत्तम याचकोने दान आपी संतोष पमाडया अने तेमने पक्वान्न जमाडी पुष्ट कर्या. ॥ ए॥ दी, बालक नामके चंड जयंकरू ॥ ल ॥ दीपे सुत ससनूरके जो दीनकरू ॥ लम् ॥ वृद्धि पामे सुत पांच धावें पालीजतो ॥ल ॥ अंगुठे पीयूष सुरंगो पीजतो ॥ ल ॥ १० ॥ अर्थ ॥ ते पुत्रनुं नाम विजयकारी चंद्र एवं पाडयु. ते पुत्र तेजना नूरथी जाणे सूर्य होय तेम दीपतो हतो. पांच धावमाताथी पालन श्रतो ते पुत्र वृद्धि पामतो हतो. अने पोताना अंगुगमा अमृतने पीतो हतो ॥ १० ॥ सुत देखी वीरसेन जनम लेखे गणे॥ल॥श्रति रलियायत होयते कहितां नवि बने ॥ लग ॥ खेल नव नव खेलते बाल पणा घणा ॥ लम् ॥ चंडावती वीरसेन जतन राखे घणा ॥ ल० ॥११॥ अर्थ ॥ ते पुत्रने देखी राजा वीरसेन पोतानां जन्मने लेखे गणतो हतो. तेना मनमां एवो आनंद आवतो ते कही शकतो नहीं. राजा कुमार बालपणाना नव नवा खेल खेलतो इतो. चंप्रावती अने वीरसेन तेनी घणी यतना राखता हता.॥११॥ For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2367 es Education totematica ersonal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. चंदकीरण सम चंड कुंवर शोनानिलो ॥ लग ॥ जीम सुरतरूनो बोक वधे दिन दिन जलो ॥ ल॥ मनमथ सरिखो बालक दीसे फूटरो ॥ला ॥ सुललित बचने तेदके बोले परवमो ॥ लम् ॥१२॥ अर्थ ॥ चंपनी कलानी जेम शोजतो ते चंज कुमार जेम कटप वृदनो गेड वधे तेम दिन दिन प्रत्ये वधवा लाग्यो. ते बाल कुमार कामदेव जेवो स्वरूपवान् हतो. ते मीगं वचनो बोलबा लाग्यो. ॥१॥ - चंडावती निज धर्म मांहे कुशली घणुं ॥ ल ॥ तास प्रसंगथी नूप तजे हिंसक पणुं ॥ल०॥ वीरनृपतिने चित्त वसी जिन वासना ..॥ ल० ॥ शिख्यो जिननी जक्ति सुसाधु उपासना ॥ ल० ॥ १३ ॥ अर्थ ॥ राणी चंजावती जैन धर्ममां घणी कुशल हती, तेना प्रसंगी राजाए हिंसकपणुं गेडी दीधुं. वली तेना चित्तमां जिन धर्मनी वासना वसवाथी ते जिन नक्ति अने उत्तम साधुनी उपासना शीख्यो.॥१३॥ सत संगति गुण होय जिहां चिरिज किस्यो ॥ ल०॥ लटथी नमरी होयते संगति फल इस्यो ॥ला निपजाव्या प्रासाद जला जिन राजना ॥ लम् ॥ वृत धारी बहु रंग संतोष्या साजना ॥ ल॥१४॥ अर्थ ॥ सत्संगधी गुणवाय, तेमां शुं आश्चर्य ? जुवो ने एलनो कीडो नमरी थईजाय बे. ए संगतिनुं फल जे. राजाए जिनराजनो सुंदर प्रासाद कराव्यो अने वृत धारीने साज करी संतोष कर्यो ॥१४॥ श्म करतां सुत चं वर्ष थयो श्राउनो ॥ ल० ॥ सुरगुरु समोवम तेह कलागुण पाउनो ॥ल०॥ चोथी ढाल रसाल कही प्रीते घणी ॥ ल० ॥ दवे मोदन कहे वातते वीरमतीतणी ॥ लम् ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ एम करतां चंज कुमार आठ वर्षनो अयो, ते कला गुण पठन करी बृहस्पतिना जेवो अयो. श्रा प्रमाणे या चोथी ढाल घणी प्रीतिथी कही संजलावी. हवे श्री मोहन विजयजी राणी वीरमतीनी वार्ता कहे १५ ॥दोहा॥ तुवसंत प्रगटीतिसे, सफल थया सहकार ॥ काम कला कोकिल कहे, जनने वारंवार ॥१॥ अर्थ ॥ एक वखते वसंत ऋतु प्रगट थई हती, आंबाना वृदो सफल श्रवा लाग्या, कोयल पक्षी लोकोने वारं वार टहुकाथी काम कला कहेवां लाग्यां. ॥१॥ केसु श्रति कुसुश्रमित थयां, रंग सुरंगा लाल ॥ खेले फाग वसंत नृप, तेहनो लाल गुलाल ॥२॥ अर्थ ॥ केसुडानां पुष्पो विकास पामी लाल रंग प्रगट करवा लाग्यां. राजा लाल गुलालथी फागुन वसंत खेलतो हतो॥२॥ सुमन थ वनघन प्रजा, मधुनृप श्राव्यो जाणि ॥ फल दल दल लेई नेटणो, स्तवे विहंगी वाणि ॥३॥ For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ॥ वसंत रूपी राजाने आवेलो जाणी घाटी वन लता रूपी प्रजा पुष्पथी वधावी फल दल रूपी नेट आपवा लागी छाने पछि मधुर वाणीथी स्तुति करवा लाग्यां ॥ ३ ॥ घटिता चंपक कुसुम, मुकुलित वृक्ष समीप ॥ जाएं तु राजाजी, कीधा मंगल दीप ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ वृक्षोनी समीप कलीरूपे रहेलां चंपकनां पुष्पो जाणे वसंतरुतु रूपी राजाना दीप कर्या होय तेवा लागता हता ॥ ४ ॥ सपरिवार जानृपति, प्रजा सहित सोहंत ॥ १६ वनमां कामवश, रमवा काज वसंत ॥ ५ ॥ ॥ श्रानगरीनो राजा वीरसेन कामदेव वश थई परिवार साथे प्रजाजन सहित वसंत रमवाने वनमां श्रव्यो ॥ ५ ॥ बांटे आगल मंगल सर बांट, लाल गुलाल सोहंत ॥ सोहे मध्याने गगन, जाणे थयो प्रजात ॥ ६ ॥ अर्थ | वसंत क्रीडामां लाल गुलाल साथे केसरनां बांटणां थवा मांड्यां ते जाणे मध्यान्ह काल बतां प्रजात थयो होय तेम देखावा लाग्यं ॥ ६ ॥ चंद कुमर सेवक सहित, कुसुम थकी क्रीमंत ॥ वीरमतीने देखिने, मन निसनेह धरंत ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ चंद कुमार सेवकोनी साथे पुष्पक्रीडा करे बे, ते जोइ राणी वीरमती मनमां स्नेह धरे बे ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ वल वालोरे उमियाजीने लागुं पाय एवर आलोरे ॥ एदेशी ॥ राजा राणी रंगधीरे, खेले अनोपम खेलरे || नवली दीवी नायो, तिहां शशिवदनी गजगेल ॥ सुणो जवि प्राणीरे, चंद नरिंद संबंध | प्रतिरस अति रस श्राणी रे ॥ १ ॥ ए कणी ॥ ॥ राजा वीरसेन ने राणी वीरमती अनोपम रंगथी खेले बे, त्यां बीजी गजेंद्रना जेवी गतिवाली नवनवी चंद्र वदनी नारी पण जोवामां आवे छे. हे नविप्राणी मनमां तिरस लावी या चंदराजानो रास सांजलो. ॥ १ ॥ काचित तडें करीरे, उजी चंपक बायरें ॥ श्रांबा मानें फुलणां बांधी बाल हिंडोले माय ॥ सु०॥ २ ॥ • ॥ कोइ माता बालकने केड उपर तेडी चंपक वृदनी बाया नीचे उभी रही हती, कोइ खांबांनी डा साथे फुलं बांधी बालकने हींगोलामां हींचोलती हती ॥ २ ॥ र निज बालनेरे, जीने हीयडा साथरे ॥ के शिखावे हींडावj, निज सुतना ग्रही हाथ ॥ सु० ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ कोइस्त्री पोताना बालकने हाथमां लऽ हृदय साथे प्रेमथी दबावती हती तो कोई पोताना बाख पुत्रने हाथ पकडी हीडवाने शीखवती हती ॥३॥ रमकडां बहु जातीनांरे, सुखडली वलि देरे ॥ रोता राखे बालने, श्म तरू तरू नारी के२ ॥ सु० ॥४॥ अर्थ ॥ कोइनारी झाडे काड फरी पोताना बालकने जात जातनां रमकमां अने वली सुखडी थापी गना राखती हती ॥४॥ स्तन पयपाने पोषतीरे, सुत सुर तरूनो बोम रे ॥ युवती श्म वनमें बहु, मनमानां पोहचामे कोड॥ सु०॥५॥ अर्थ ॥ कोई युवती पुत्रने कहप वृदना बोड जेवो मानी स्तन पानथी पोषती हती. या प्रमाणे स्त्री वनमा पोत पोताना मनना कोड पूरा करती हती. ॥ ५॥ देखी वीरमती तदारे, मुख मेले नीशासरे ॥ वन क्रीडा नूलीगई, थयुं व्याकुल चित्त उदास ॥ सु ॥ ५॥ अर्थ ॥ श्रा देखाव जोइ राणी वीरमती मुखम-थी निशास नांखवा लागी अने वनक्रीमा जुली गई. तेनुं चित्त व्याकुल अने उदास अझ गयुं ॥६॥ देवने दे उलंजडोरे, कुंवर न दीधो केम रे॥ सुतविण हुँ शा कामनी, जिम मन विण का रिमो प्रेम ॥ सु॥७॥ अर्थ ॥ ते दैवने उलंजो आपवा लागी के, हे दैव ! मने पुत्र केम न आप्यो ? जेम मन वगरनो प्रेम होय तेम पुत्र विना हुँ शा कामनी ! ॥ ७॥ जिम मंदिर दीपक विनारें, जिव विण जिम देहरे ॥ जिम कुसुमविण वासना, जिम जलविण उनह्यो मेह ॥ सु० ॥ ॥ छानविना जेहवी दयारे, मानविना जिम दानरे ॥ असन जिस्यो दशनो विना, वलि कंठविण जिम गान ॥ सु० ॥ ए॥ अर्थ ॥ जेम दीपकविना मंदिर, जेम जीवविना देह, जेम सुगंधविना पुष्प, जेम जलवगरनो मेघ, शा. नविना जेवि दया, मानविना जेवू दान, जेम लवणविना नोजन अने जेम कंवविना गायन-तेम पुत्रविना इं शा कामनी बं? ॥ ७ ॥ ए॥ अंगज लेश जलंगमारे, न रमाड्यो जिणे नाररे॥ ते कां सरजी संसारमां, धिक् धिक् तस अवतार ॥ सु०॥ १० ॥ अर्थ ॥ जे नारीए उत्संगे लई पुत्रने रमाड्यो नथी, ते नारी आ संसारमा शा माटे सरजी १ तेना अवतारने धिक्कार ॥ १० ॥ पुत्र विना शुं कीजीयेरे, जनपद नगर नंडार रे ॥ संयमी पंखी प्राहुणां, कोइ नावे तस श्रागार ॥ सु० ॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ घणा देश शेहेर के भंडार होयतो पण पुत्र विना ते शा कामना ? जेने पुत्र न होय तेने घेर संयमी, पक्षी, अने को अतिथिपण आवता नश्री. ॥ ११ ॥ में कुण कुण पूर्व नवेरे, प्रौढां पातक कीधरे ॥ केसर वरणो नानडो, एवो एके दैव न दीध ॥ सु० ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ में पूर्वनवे शां मोटां पाप कर्या हशे के जेथी केसर जेवा वर्ण वालो नानकडो एक पुत्र पण दैवे दीधो नहीं ॥ १ ॥ श्म कहेती धरती लखेरे, सजड सखुण नयणरे ॥ थया अणगमता काननें, निज वालि सखीनां वयण ॥ सु० ॥ १३॥ __ अर्थ ॥ श्रा प्रमणे कहेती वीरमती नीचुं जोई जूमि उपर लखवा लागी. तेना सुंदर नेत्रमा जल श्रावी गयां. ते वखते पोतानी वाली सखीनां पण वचन कानने अणगमतां श्रई पड्यां. ॥ १३ ॥ पूजे तिहां सघली सखीरे, बाई तुमे केम एम रे ॥ दीसोडो श्रामण उमणा, केणे उहाव्यां कहो धरीप्रेम ॥ सु० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ ते वखते सघली सखीए मली तेने पुव्वा लागी के, बाई तमे आम चिंताश्री पुर्बला केम दीसो गो? तमने कोणे फुच्यां ते प्रेम धरीने कहो. ॥१५॥ कंत ए काम सहोदरूरे, ए वन खेले वसंत रे॥ चंद सपत्नी पुत्र ए, तुमे किम दीसो सचिंत ॥ सु० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ आ तमारा स्वामी कामदेव जेवा स्वरूपवान् , ते आ वनमा वसंत खेली रह्या ने, वली श्रा तमारी शोकयनो पुत्र चंदकुमार केवो सुंदर ? ते उतां तमे चिंता वालां केम लागो गे? ॥ १५॥ पण न जणावे कोश्नेरे, वीरमती मन वात रे ॥ पूरव पुण्ये श्राविड, शुक आंबाडाले सुजात ॥ सु० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ राणी वीरमती कोने आ मननी वात जणावतां नश्री. तेवामा पूर्वना पुण्यश्री कोश् शुक पक्षी आंबानी डाल उपर आवी बेगे ॥ १६॥ मोदन विजयें मनोहरू रे, पत्क्षणी पांचमी ढालरे ॥ श्रोतानिसुणजो सुवटो, कदेशे हवे वचन रसाल ॥ सु० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ श्री मोहन विजयजीए आ पांचमी मनोहर ढाल कही बे. हवे ते शुक पदी जे रसिक वचन कहेशे ते श्रोता ध्यानश्री सांजलो. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ हित श्राणी जाणी घj, राणीने दिलगीर ॥ बोल्यो नरवाणी तिहां, आंबा डाले कीर ॥१॥ __ अर्थ ॥ ते शुक पक्षी राणीनुं हितजाणी अने तेने घणी दिवगिर देखी आंबानी डाली उपरथी मनुष्य वाणी बोस्यो. ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए चंदराजानो रास. रे! सुंदरी रूदती थकी, रंगनंग कर्ये केम ॥ शी चिंता ने कहे मुखे, जाणुं कांश्क जेम ॥२॥ अर्थ ॥ हे सुंदरी तुं रूदन करीने रंगनो जंग केम करे ले ? तारे शी चिंता ? ते मने कहे, ते कांक मारा जाणावामां आवे ॥२॥ वीरमती निसुणी वचन, निरखे जंचो जाम ॥ शुक दीगे सोहामणो, वचन रसिलो ताम ॥३॥ अर्थ ॥ ते सांजली वीरमतीए लंचुं जोयु, त्यां रसिक वचन बोलनारो ते सुंदर शुक जोयो. ॥३॥ नृप प्रेमदा अचरज लही, कहे वचन बहुनांत ॥ शु तुं पूजे पंखिया, मुज मनडानी वात ॥४॥ अर्थ ॥ राजप्रमदा वीरमती आश्चर्य पामीने बहु ब्रांतिथी वचन बोलीके, हे ! पंखिडा, तुं मारा मननी वात केम पुढे जे ? ॥४॥ फल नदी पदी लघु, अंबर चारी एक ॥ वनवासी तिर्यंच तुं, कहेवाये अविवेक ॥५॥ अर्थ ॥ वली तुं एक फल खानारो, अने आकाशमा उमनारो, एक लघु पदी बुं; वली तुं वनमा रहे नार अविवेकी तिर्यंच पक्षी कहेवाय. ॥ ५॥ मुख नांगे जो तुज थकी, तोको कहिये गुह्य ॥ जण जण आगल ते कहे, जे को होय अबुध ॥६॥ अर्थ ॥ जो ताराथी मुख लागे तेम होय तो हुं मारी गुह्य वात कहुं. जे कोश् अबुध-अज्ञानी होय ते प्रत्येक जन आगल पोतानी वात कह्या करे . ॥६॥ तव शुक त्रटकीने कहे, राणी किम पोमाय ॥ जे जे पंखीथी हुवे, ते नरथी नवि थाय ॥ ७ ॥ __ अर्थ ॥ पड़ी शुक पदीये ताटकीने कयु के, हे ! राणी केम शंका लावे ? जे जे काम पंखीथी होय ते माणसथी अतुं नश्री. ॥ ७॥ ॥ ढाल ठी॥ ॥ चांदलियानी देशी ॥ कहे राणी रे रे सूडा, एम बोल म बोलो कूमा ॥ नरथी पंखी केम रूमारे, रंगीला ॥ तव विबुध वचन शुक बोले, राणीना श्रु ति पट खोले ॥ कहो पंखीने कोण तोले रे ॥ रंगीला ॥१॥ अर्थ ॥ राणीये कडं के,हे शुक, एवं कुठं बोल नहीं ! माणसथी ते पंखी केम उत्तम होय?ते सांजली शुक एवां विपत्ता नरेखां वचन बोल्यो. जे सांजली राणीना श्रवण पट खुली गया. तेणे कयं के जगत्मां पदीनां जे कोण ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० चंदराजानो रास. दामोदरनो जगमां जडवा, समरथ नहीं कोई तस नडवा ॥जुन तेहने गरू म डे चडवारे ॥ रंगीला ॥ कवि मुख मंगण वर दाई, श्रुति वेद पुराणे गाई ॥ थई सघले हंस वडाई रे ॥ रंगीला ॥२॥ अर्थ ॥ आ जगत्मां विष्णु जे कोइ वीर नश्री, तेने पराभव करवाने कोइ समर्थ नथी. ते विष्णुने चडवाने गरूम पक्षी जे. वली कविऊना मुखना आजूषणरूप अने वरदान आपनारी, वेद अने पुराणोमां सघले हंसनी वडाइ गणावी . ॥२॥ एक पंखीडाने काज, मेल्या केश विहंगम राज, रतनागर श्राण्यो वाजरे ॥ रंगीला ॥ थर हूंती कामातुर नारी, तस सूवटे राखी वारी ॥ शुक बहुतेरी तें शुं न धारीरे ॥ रंगीला ॥३॥ अर्थ ॥ एक पदीनी खातर को कोई मोटा पदी राजाने ज्ञाति बाहेर मुकी रत्नाकरने हराव्यो हतो. वली कामातुर श्रयेली नारीने एक शुक पक्षीए वारी हती, ते शुक बोहोतेरी शुं नथी जाणी? ॥ ३ ॥ वली नल संबंध अवधार, थयो दमयंती जरतार ॥ तेतो हंसतणो उपगार रे ॥ रंगीला ॥ श्रमे एक अक्षर जो वाचुं, तिणे जीव दयायें राचुं ॥ कहो ए खोटुं के साधु रे ॥ रंगीला ॥४॥ अर्थ ॥ वली नलराजा दमयंतीनो लग थयो हतो, ते पण एक हंसनो उपकार हतो. तेमज जो श्रमे एक अक्षर वांचीए तो जीव दयाथी राजी श्रश्ए. कहो ए खोटुं के साचुं ? ॥ ४॥ पंखी ने श्रागम जाखी, रह्यो पांचमुं गुण गणुं राखी ॥ तस शास्त्र अ केश साखी रे ॥ रंगीला ॥ श्रमे वातो सघली जाणुं, न्यायें श्रमे श्राप वखाणुं ॥ हठ साचं मानवथी ताणुं रे ॥ रंगीला ॥५॥ अर्थ ॥ पक्षी आगम नाखीने पांचमे गुण गणे रह्यो बे. तेनी शाख शास्त्रमा पुराय . तेथी हे ! राणी, अमे सघली वातो जाणीए, अने पोतानी प्रशंसा करीए बीए, ते न्यायेले. हुं मनुष्यथी मोटाईने माटे हग्थी ताणुं बु, ते वात साची बे. ॥ ५॥ ईम निशुणी हर्षिराणी, कहे शुक तुतो बे प्रमाण ॥ घणो डा. ह्योने मीठी वाणीरे ॥ रंगीला ॥ मुज प्राण समो तुं जाव्यो, वखतें तुं इणवन श्राव्यो ॥ एहवो कोणे जणाव्यो रे ॥ रंगीला ॥६॥ अर्थ ॥ आ प्रमाणे सांजली राणी हर्ष पामी बोली के, हे शुक, तुं प्रमाणिक वं, तेमज घणो माह्यो बुं. तारी वाणी मीठी लागे जे. तुं मने प्राण जेवो वाहालो लागे जे. श्रा वखते तुं वनमां श्राव्यो ते तने कोषे बताव्युं ? ॥६॥ तव शुके श्म श्म उत्तर जाख्यो, विद्याधरे मुजने जांख्यों ॥ तेणे प्राणसमो करी राख्यो रे ॥ रंगीला ॥ सोवन पंजरमां रेहेतो, ते खेचर जे जे कहेतो ॥ ते सघलो हँ सहदेतो रे ॥ रंगीला ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ ते सांजली शुकपक्षीए उत्तर प्राप्यो के एक विद्याधरे मने पकमी प्राण समान करी राख्यो हतो. हूं सुवर्णना पांजरामा रहेतो हतो, ते विद्याधर जे जे कहेतो ते सघलुं हुं जाणतो हतो. ॥ ७॥ एक दिन विद्याधर तेह, कर धरीने माहरो गेह ॥ गयो मुनि दन ससनेह रे ॥ रंगीला ॥ इषि निरखी पातक नीठगे, उपदेश कह्यो तेणे मीगे ॥ तव मुजने पंजरमां दीगे रे ॥रंगीला॥७॥ अर्थ ॥ एकदिवसे ते विद्याधर मने हाथमां बई कोइ मुनिने स्नेहश्री वंदन करवा गयो. मुनिनां दर्शनथी मारां पाप नाशी गया. मुनिए मधुर उपदेश कर्यो. त्यां मने पांजरामा रहेलो दीगे. ॥७॥ तिर्यंच बंधन अधिकार, कह्यो विवरी धागल अनुसार ॥ मुज बोमवी कर्यो उपकार रे ॥ रगीला ॥ इहां श्राव्यो हुँ रमतो रमतो, केशवन उप वन अति क्रमतो ॥ बेठो तरू दीगे मन गमतो रे ॥ रंगीला ॥ ए॥ अर्थ ॥ मुनिए आगमशास्त्रने अनुसारे तिर्यंच्ने बांधवामां केटलु पाप थाय ने ते अधिकार विस्तारथी जणाव्यो, अने उपकार करी मने पांजरामांथी गेडावी दीधो. त्यारपती केटलां एक वन तथा उपवनने उलंघन करी रमतो रमतो हुँ अहीं आवी चड्यो. अने आ वखते मन गमतो दुं वृक्ष उपर बेठेखो जोवामां श्राव्यो ॥ ए॥ कही तुज श्रागल पोतानी, जे वात हुती कहेवानी ॥ तिणे मुजथी काई न बानीरे ॥ रंगोला ॥ रे राणी वाणी सुण माहरी, जुठी नही देखं जलारी॥कहे चिंता नांजीश हूं तारीरे॥१॥ अर्थ ॥ श्राप्रमाणे जे मारी पोतानी खरी वात कहेवानी हती, ते में तारी आगल कही दीधी बे. हवे तुं तारी वात माराथी गनी राखीश नहीं. हे ! राणी, मारी वाणी सांजल. हुँ जुतुं कहेतो नथी. जे तारी चिंता हशे, ते ढुं जांगी नांखीश ॥ १० ॥ तव राणी हृदय विमासी, जाण्यो शुक शास्त्र विलासी॥ सुत चिंता तास प्रकाशी रे ॥ रंगीला ॥ मंत्र यंत्र जमीने तुं जाणे, कुण जाण पणुं ते प्रमाणे ॥ जों तुं काम नावे ण टाणे रे ॥रंगीला ॥ ११॥ अर्थ ॥ पठी राणी वीरमतीए हृदयमां विचारतां ते शुक पहीने शास्त्रनो विलासी जाण्यो. अने पोतानी जे पुत्रनी इच्छा हती ते तेनी आगल प्रगटपणे जणावी कडं के, हे! शुक, तुं मंत्र, यंत्र, औषध जाणे ने. जो तुं मारा था कार्यमां न आवे तो पड़ी तारुं जाणपणुं शा कामर्नु ! ॥११॥ दशरावे जे नवि दोडे, कहो शुं करीए तिण घोडे ॥ घणो जाण तुं शुक कहे थोडेरे ॥रंगीला ॥ तुं प्यारो प्राणथी कीर, में मान्यो करीने वीर ॥ तुं मोटो साहस धीर रे ॥ रंगीला ॥१॥ अर्थ ॥ ज्यारे वार श्रावे ते वखते जे घोडो न दोडे तो पनी कहो ते घोडो शा कामनो ! तेम तुं For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चंदराजानो रास. घणो जाण बुं पण थोड़ें कहे . हे ! कीर, तुं मने प्राणथी पण प्यारो K अने में तने वीर-लाई करीने मान्यो बे. वली तुं मोटो साहसिक अने धीर बु ॥ १२॥ तुज श्रापुं नवलखो हार, वली कुर कपूर थाहार ॥ हुँ मानीश बहु उपकार रे ॥ रंगीला ॥ आण तुं हवे माणस उले, कहुं तुजने जावे नोले ॥ हवे हुं ताहरे खोले रे ॥ रंगीला ॥१३॥ अर्थ ॥ हे ! लाई, तने नवलखो हार आपीश, वली उत्तम कर्पूरनो आहार करावीश, अने हुँ तारो बहु उपकार मानीश. माटे हवे तुं मने माणसनी ओलमां लाव्य. हुं तने नोले नावे कडं , अने हवे ढुं तारे खोले छु ॥ १३ ॥ शुक नाखे देश दिलासा, रे राणी मकर विमासा ॥ प्रजु पूरशे ताहरी थाशा रे ॥ रंगीला ॥ थाईश तुज दिशि दाता, तुंडे माहरीधर्मनी माता ॥ चिंता तज धर तुं शातारे ॥रंगीला॥१४॥ अर्थ ॥ शुक दिलासो आपी बोटयो. हे राणी, तुं खेद करीश नहीं, प्रनु तारी आश पूर्ण करशे. ढुंतने दिशा बतावी सुख दाता थईश. तुं मारी धर्मनी माता के चिंता बोडी दे अने हृदयमां शाता धर्य ॥१॥ कही मोहन विजयें ढाल, ए ठी निपट रसाल ॥ तमे सुणजो . बाल गोपालरे ॥ रंगीला ॥ जे परपुःख नंजन सुरा, ते सघली वातें पूरा ॥ तस प्रगटिया पुण्य अंकूरा रे ॥रंगीला ॥१५॥ अर्थ ॥ आप्रमाणे श्रीमोहन विजयजीए रसिक एवी बठी ढाल कही. ते तमेबाल गोपाल सांभलजोजे पुरुषो परपुःख लंजन अने शूराजे, तेओ सघली वाते पूरा होय बे, अने तेमनां पुण्यना अंकूरा प्रगटे ॥१५॥ दोहा॥ हितवाणी राणी निसुण, शुक कहे तजी संवाद ॥ ए वनमा उत्तर दिशे, अबे झपन प्रासाद ॥१॥ अर्थ ॥ शुके कह्यु, हे राणी, तुं संवाद गेडीने तारा हितनी वाणी सांजल. या वनमा उत्तर दिशामां एक झपन प्रनुनो सुंदर प्रासाद ॥१॥ तिहां चैत्री पूनिमनिशा, उबव करवा काज ॥ श्रावशे अनुपम अपरा, लेई नाटिकनो साज ॥२॥ अर्थ ॥ ज्यारे चैत्री पूर्णिमानी रात्रि श्रावशे त्यारे ते प्रासादमां एक अनुपम अप्सरा एक नाटकनो साज लई उत्सव करवाने आवशे ॥२॥ मुख्या एक तेहमां थडे, नीलांबर साम्राज ॥ तास वस्त्रजो कर चढे, तो तुज सीजे काज ॥२॥ अर्थ ॥ तेश्रोमां एक नीलां वस्त्रवाली मुख्य अप्सरा . तनुं वस्त्र जो तारे हाथ श्रावे तो तारु कार्य सिद्ध श्राय ॥३॥ For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UIERE LED A 1193 26 SA Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. पहिला चैत्री पुन्यमे, विद्याधरने संग ॥ थाव्यो हुं ए देहरे, तिणे सविलहुं प्रसंग ॥४॥ अर्थ ॥ पहेली चैत्री पूर्णिमाएपेला विद्याधरनी साधे हुँते प्रासादमां श्राव्यो हतो, तेथी या प्रसंगजाणुं वं ॥॥ रे !जननी ते रजनी, विण सजनी धरि हेत ॥ तिहां जाजे एकाकिनी, जूलीशमां संकेत ॥ ५॥ . अर्थ ॥ हे ! माता, ते रात्रिये सखी वगर तुं एकली त्यां प्रेमथी जाजे. ते संकेत जूलीश नही ॥५॥ श्म कही अंबर मारगें, शुक चाल्यो गुण गेह ॥ वीरमती तस विरहथी, नयणे दाख्यो नेह ॥६॥ श्रर्थ ॥ श्राप्रमाणे कही गुणना स्थानरुप शुक पदी आकाश मार्गे चाट्यो. ते वखते राणी वीरमतीए तेना विरहथी नेत्रमा स्नेह बताव्यो ॥६॥ नृप श्रादि नर नागरिक, खेली फाग प्रकाश ॥ पूरमां सबि संध्या समय, व्या निज श्रावास ॥७॥ अर्थ॥हवे राजा वीरसेन विगैरे सर्वनगरजनोवसंतखेलीने संध्याकाळे नगरमा पोतपोताना श्रावासमां श्राव्या. ॥ढाल सातमी॥ हमीरियानी देशी ॥ चैत्री पूनम अनुक्रमे, श्रावी परम पवित्र ॥ सनेही ॥ श्राव्युं वचन शुक राजनुं, वीरमतीने चित्त ॥ सनेही ॥ खारथ सहुने वालहो ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ अर्थ ॥ अनुक्रमे चैत्रमासनी पवित्र पुनम श्रावी, ते समये वीरमतीने शुकराजनुं वचन मनमां याद श्राव्यु. स्वार्थ सौने व्हालो होय जे ॥१॥ स्वारथ जगमंमाण ॥ स० ॥ उद्यम जीव करे घणो, प्रापति करम प्रमाण ॥ स० ॥ स्वा॥॥ अर्थ ॥श्रा जगत्नुमंडाण स्वार्थ उपर बे, तेने आधारे जीवघणो उद्यम करे, पण कर्मप्रमाणे प्राप्तिथायने ॥२॥ थई संध्या शशि उगम्यो, सोल कलायें शुक॥ सम्॥ जाणीयें काम नरेशनो, चक्र गगन प्रति बुध ॥ स स्वा० ॥३॥ अर्थ ॥ संध्याकाळ अयो. चं सोल कलाए प्रकाश्यो. जाणे कामदेवरुपी राजानुं श्राकाशमां जागतुं चक्र होय तेवो ते देखावा लाग्यो ॥३॥ अंगतणी रखवालिका, तेहने जणावी गेह ॥ स० ॥ वेश परावर्त राणीये, कीधो अधिके नेह ॥ स ॥ स्वा० ॥४॥ - अर्थ ॥ ते समये राणी वीरमतीए पोताना अंगनी रक्षण करनारी विश्वासु दासीने घर नलावी अधिक बेहली वेशनो फेरफार कर्यो ॥५॥ For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ चंदराजानो रास. एकाकी पुर बाहिरे, श्रावी एकाकी तेह ॥ स ॥ जोया न होयतो जोयजो, नारी चरित्र ते एह ॥ स० ॥ स्वा०५॥ अर्थ ॥ पोते एकली नगरनी बाहेर नीकली पडी. ते स्त्री चरित्र न जोयुं होय तो जोई खेजो ॥५॥ उज्वल चंजनी चंडिका, वनशोना बहु नंत ॥ स० ॥ चाली वनमो चावमी, ते चतुरा निदचंत ॥ स ॥ स्वा० ॥६॥ अर्थ ॥ चंनी उज्वल चांदनीश्री वननी शोना घणी प्रकाशती हती, तेमां ए चतुर बाला निश्चित अई चालती हती ॥६॥ दीतुं जिनमंदिर तिहां, सोवन कलश सनूर ॥ स०॥ श्रम परिहरवा कारणे, जाणीयें बेगे सुर ॥ स ॥ स्वा० ॥७॥ अर्थ ॥ ते समये सुवर्णना प्रकाशथी सुशोजित जिन मंदिर जोवामां आव्यु. ते सुवर्णनो कलश जाणे दिवसना श्रमने उतारवाने सूर्य बेगे होय तेवो लागतो हतो॥७॥ पवने पताका फरहरे, श्राकर्षण करे सान ॥ सम्॥ वीरमती हरषी घणी, सद्य चढी सोपान ॥ स ॥ स्वा० ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ तेनी पताका पवनयी फरकती हती, जाणे लोकोने बोलाववा आकर्षणनी सान करती होय तेम देखाती हती. ते जोई राणी वीरमती घणो हर्ष पामी तत्काल तेना पगथी उपरचडी ॥७॥ जरत पिता नेट्या जलें, ललि ललि प्रणम्या पाय ॥ स॥ शविनयखामि प्रबन्नपणे, रहि केडे हित लाय ॥ स ॥ स्वा० ॥ए॥ अर्थ ॥ तेणीए जरत चक्रवर्त्तिना पिता श्री शषजदेव प्रजुने लेटी वारंवार चरणमां नमी प्रणाम कर्या. अने एक तरफ गुप्त रीते रही अविनयने खमावी श्रआत्मानुं हित कर्यु ॥ ए॥ अप्सरगण श्राव्यो ईसे, प्रणम्या झषन जिणंद ॥स०॥ अव्य पूजा पहेली करी, शुचितायें सानंद ॥ स ॥ स्वा० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ तेवा समयमा पेली अप्सराओनो गण श्राव्यो, तेमणे प्रजुने प्रणाम कर्यो. प्रथम आनंदी शुचिपणे अन्य पूजा करी ॥१०॥ नाव पूजा जवजयहरू, प्रारंने रस लुब्ध ॥ स० ॥ अरप तरप संगीतथी, नाटक नाचे शुद्ध ॥ स० ॥ स्वा ॥ ११ ॥ अर्थ ॥ पनी रसमां लुब्ध श्रयेली ते सुंदरीओए संसारना नयने हरनारी लाव पूजा आरंजी शुद्ध संगीतथी नृत्य करी नाटक करवा मांमयुं ॥११॥ सारीगम पधनी स्वरे, यंत्र करत नेद कोमि ॥ सम्॥ ताधीधौना गति मृदंगनी, वाजे विकट परमोम ॥ स ॥ स्वा० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ सारी गम पधनी ए सात स्वरो साथे वीणायंत्रमा कोटी जेद थवा लाग्यो. तां तां धिक् धिक् ए प्रमाणे मृदंगनी गति चालवा लागी ॥१५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. एक तालो जगमो चोतालिज, सुर फागने जेत मान ॥ स ॥ ब्रह्म, ताला दिक तालनां, विकट बहु थनिधान ॥सा स्वा॥१३॥ नाटकनाची अपहरा,श्रमपामी तेणिवार सवस्त्र उतारी थापथापणां, गश्पुष्करणी मजार ॥सणास्वा॥१४॥ अर्थ ॥ एक ताल, त्रिताल, चोताल, वसंतना सूरनो ताल, अने ब्रह्मताल विगेरे विविध नामवाला ताल प्रवर्त्तवा लाग्या ॥ १३ ॥ते अप्सराओ नाटक नाची बहु श्रम पामी गई, पनी पोत पोतानां वस्त्रो ऊतारी त्यां रहेली एक वापिकामां गई ॥१४॥ हसे रमे क्रीमा करे, सहु को निरबीक ॥सण॥ राणी अवसरबटकली, श्रावी वस्त्र नजीक ॥ स० ॥ स्वा० ॥ १५ ॥ नीलवस्त्र शुकने को, अप इयु प्रछनवृत्ति ॥ स ॥ हारजडी प्रजुचरणर्नु, शरण ग्रह्यु दृढ चित्त ॥ स० ॥ स्वा० ॥१६॥ अर्थ ॥ ते सर्व अप्सराङ हास्य करती निर्जय थई क्रीडा करवा लागी. तेवामां ते अवसरनो लाल खेवाने राणी वीरमति तेऊना वस्त्र नजीक आवी.॥१५॥ पेला शुकराजना कहेवा प्रमाणे तेणीए गुप्तरीते नीलवस्त्र हरी लीधुं. पली प्रनुना चरणतुं शरण लश् दृढ चित्तथी घार पासे उनी रही. ॥ १६॥ __ कारिज सिझ थयुं हवे, चिंते थई उजमाल ॥ स ॥ मोदन विजयें मनोहरू, पनणी सातमी ढाल ॥ स० ॥ वा ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ पोतानुं कार्य सिद्ध थयु एटले तेनुं चित्त उज्वल थइ गयु. या प्रमाणे श्री मोहनविजये मनो हर एवी सातमी ढाल कही. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ जल मजान करी बाहिरे, श्रावी सघली जाम ॥ नीलांबर मुख्यातणो, तिहां नवि दी ताम ॥ १॥ निज निज वस्त्रने अपरा, उलखी पहियां सर्व ॥ मुख्या वस्त्राविना रही, पूजे थई अगर्व ॥२॥ अर्थ ॥ सर्व अप्सरा जलमां स्नान करी बाहेर श्रावी, त्यां पेली मुख्य अप्सरानुं नीलवस्त्र जोवामां श्राव्युं नहीं. ॥१॥ बीजी अप्सराए पोत पोतानां वस्त्रो उलखी पेहेरी लीधां. ते मुख्य अप्सरा एकज वस्त्र विनानी रही. ते गर्व गोडी बीजीउने पुरावा लागी. ॥२॥ हासा मिस नीबुं वसन, जोकिणे अपहर्यु होय ॥ श्रापो बहेनी हुँ कहुं, करजोडीने दोय ॥३॥ सहु समखाईने कहे, हेमुख्यामदाराय ॥ हासुं तुम अंबर तणुं, ते श्रमथी किम थाय ? ॥४॥ अर्थ ॥ ते बोली के, हे ! बेनो, कोइए उपहास्यने खातर मारूं नील वस्त्र हरी लीधुं होय तो ते मने श्रापो. हुँ तमने बे कर जोडीने विनंति करूं बु.॥३॥ पनी बधी अप्सराए सोगन खाईने कह्यु के, हे! मुख्या, तारा वस्त्रनी हांसी अमाराथी केम थाय ? ॥४॥ आसंगो किणविध हवे, जास धरीजे आस ॥ खोटो मधरो स्वामिनी, श्रम उपर विश्वास ॥ ५॥ देवल उघाडं इतुं, दीधां दीसे हार ॥ ए महि निश्चे हशे, वस्त्र चोर निरधार ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदरांजानो रास. अर्थ ॥ हे ! स्वामिनी, जेनी उपर अमे आशा राखीए बीए एवी श्रम उपर तमे आ खोटो विश्वास राखी नहीं. ॥ ५॥ आ देवल उघार्नु हतुं अने तेनां घार दीधेलां देखाय , तेथी तेनी अंदर जरूर कोई वस्त्रनो चोर हशे. ॥ ६॥ मुख्यादिक सघमी मली, श्रावी देहरा बार ॥ कहे उघामो कवण बो, मानो अम मनुहार ॥ ७॥ श्रर्थ ॥ पनी मुख्या विगेरे अप्सरा एकवी मली देहराना पार पागल श्रावी. तेजेए कह्यु के, धार उघामो. तमे कोण गे? अमारूं वचन मान्य करो. ॥ ७॥ ॥ढाल श्रामी॥ ॥ तुंगियागिरि शिखर सोहे ॥ ए देशी ॥ देव वनिता एम पजणे, वस्त्र सोंप सनूररे॥रात थोडी प्रात थशे, जावं अतिहि घरे, देव वनिता एम पत्नणे ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ विबुध वस्त्र ए काम न आवे, नर तणे सही मान रे॥जाणशुं श्रम नृत्य निरखी, कर्यु ते ए दान रे ॥दे॥२॥ अर्थ ॥ अप्सराए कडं के, तमे अमारूं वस्त्र सोंपो, हवे रात्री थोडी रही, प्रातः अई जशे श्रमारे अति दूर जावू जे. ॥१॥ तमे जो माणस हशो तो तमने आ देवता, वस्त्र काम श्रावशे नहीं, ते मा. नजो. जो तमे वस्त्र आपो तो तमे अमारूं नृत्य जो दान कर्यु एम जाणलं. ॥२॥ वाथवा कोई काज माटे, दयु होये जो एहरे ॥ श्राप पाडो श्रमे ता इरो, काज करशुं तेहरे ॥ दे० ॥३॥ नरहुन वा नारि हुन, उघाडो ए कपाट रे ॥ वचन ने श्रम तणुं खोटी, करोडो श्यामाट रे? ॥दे॥४॥ अर्थ ॥ अथवा जो कोई कार्य माटे ए वस्त्र हर्यु होय तो तमे पाबु आपो. अमे तमारूं कार्य सिद्ध करीशु.॥३॥ तमे नर हो के नारी हो, पण आ कमाड उघाडो, अमे तमने वचन आपीए बीए. शा माटे वृथा खोटी करोगे ? ॥४॥ छार तत्क्षण वीरमतीयें, उघाड्यां अवि दंन रे ॥ अपरा तव नारी निरखी, रही पामी अचंजरे ॥ दे ॥५॥ कहे राणी मधुर वाणी, तो आपुं पटकूल रे ॥ काज मारूं करो जो कोश, थश्ने अनुकूल रे ॥दे ॥६॥ अर्थ ॥ ते सांजली वीरमतीए दंन गोडी तत्काल द्वार उघाड्या. त्यां अप्सराश्रो स्त्रीने जोईने आश्चर्य पामी गई. ॥ ५॥ राणी मधुर वाणी बोली. हे ! देवी, ! जो तमे अनुकूल थईने मारूं कार्य सिद्ध करो तो हुँ तमने ते वस्त्र श्रापुं ॥६॥ कहे मुख्या अरे सजनी, बेकिस्यो तुज काजरे?॥वस्त्र ए हुं पडे वेश, कहो बोमी लाज रे ॥ दे० ॥ ७॥ कहे राणी शोक मादरे, तेदने - सुत चंद रे ॥माहरे सुत नही तेणें, कर्या एहवा फंदरे ॥ दे॥७॥ अर्थ ॥ मुख्या बोली, अरे सजनी, कहे, तारे शुं कार्य के ? जे कार्य होय ते लजा गेडीने कहे, ई For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वास जरूर धार मारे मा कटे २ २ २४ १५ 21 A २३ Wa MAVAL jite SAVA Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. वस्त्र पनी लईश. ॥ ७॥ राणी बोली, मारे एक शोक्य , तेने चंद नामे पुत्र ने अने मारे पुत्र नथी, तेथी में फंद करेल .॥ ॥ वचन शुकने शहां श्रावी, वस्त्र ली, एह रे॥ कही मननी वात खोली, टालो चिंता तेहरे ॥ दे० ॥ ए॥ ताम मुख्या अवधि प्रयुंजी, कहे सुण - तुं नार रे ॥नाग्यमा सुत नथी ताहरे, निसुण एह विचार रे॥ दे॥१०॥ अर्थ ॥ एक शुकराजना कहेवाथी हुँ श्राही आवी अने श्रा वस्त्र में हरी लीधुं. आ प्रमाणे खुसी वात कहुं . हवे मारी चिंता दूर करो. ॥ ए॥ पठी मुख्या अप्सराए अवधि ज्ञानथी जोईने कडं के हे ! स्त्री, तारा जाग्यमां पुत्र नथी, आ विचार सांजल जे. ॥ १० ॥ गगन चरणी शत्रु हरणी, विविध करणी रूप रे ॥ नीर तरणी श्रादि विद्या, देखें तुऊ अनूप रे ॥ दे ॥ ११ ॥ राज्य ताहारूं प्रजातारी, चंद पण सुत तुकारे ॥ खेद म धरिश श्रवर सुतनो, वचन मान तुं मुऊ रे ॥ दे ॥ १५ ॥ . श्रर्थ ॥ हुँ तने श्राकाशमां चालवानी, शत्रुने हरनारी, विविध कार्य करनारी अने जलने तारनारी श्रनुपम श्रादि विद्या आपुं. ॥ ११ ॥ ए विद्याने प्रजावे राज्य, प्रजा अने चंद कुमार पुत्र तारा श्रश्ने रहेशे. तुं बीजा पुत्रनो खेद करीश नहीं. आ मारूं वचन मानजे. ॥१२॥ पण रखे तुं चंदसुतने, कदी देती फुःखरे ॥ राखजे तुं पुत्रनी पेरे, होशे एहथी सुखरे ॥ दे ॥ १३ ॥ नूपकांता सुणी एहवं, अतिहि हुई निराश रे ॥ तोहि पण ते ग्रही विद्या, अपहराने पास रे ॥ दे० ॥ १४ ॥ . अर्थ ॥ पण रखे तुं ते चंद पुत्रने दुःख श्रापती, तुं एने पुत्रनी जेम राखजे, एथी तने सुख अशे. ॥१३॥ राणी था वचन सांजली घणी निराश अई गइ. पण तेणीए अप्सरा पासेथी ते विद्या ग्रहण करी१४ वस्त्र पार्बु तास श्राप्यु, खमीने अपराध रे ॥ थपछरा गई वस्त्र लेई, थानके निराबाधरे ॥ दे॥१५॥ वीरमती हवे ले विद्या, षन प्रणमी पाय रे ॥ फरि पाडी घरे थावी, लडुं नही कांश रायरे॥ दे० ॥१६॥ अर्थ ॥ पठी अपराध खमावी तेणी ए वस्त्र पार्नु आप्युं, ते वस्त्र लइ अप्सरा निराबाधपणे पोताने स्थानके गइ. ॥ १५ ॥ वीरमती विद्या लश् श्री शपन्न प्रजुना चरणमां नमी पाठी घेर श्रावी. आवातनी राजाने कां पण खबर न पमी. ॥१६॥ थयुं प्रजात दिणंद उग्यो, नृपवधु मन रंग रे॥साधवा विद्या तेदमांमी, करी विविध प्रसंग रे ॥ दे ॥ १७ ॥ थई विधासिक सघली, टली सकल जंजाल रे॥मोहन विजयें नली नाखी, थामी ए ढाख रे॥दे॥१॥ अर्थ ॥ प्रजात काले ज्यारे सूर्यनो उदय अयो, एटले ते राणी मनमां श्रानंद पामी विविध प्रसंग करी ते विद्या साधवा मांडी ॥ १७॥ सर्व विद्या सिद्ध भइ अने सर्व जंजाल मटी गई. श्री मोहन विजये श्रा आठमी रसिक ढाल कही बे. ॥१०॥ For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ चंदराजानो रास. ॥ दोहा॥ वीरमती विद्याथकी, मदमाती निरबीह ॥ जिम अहि पंखालो थयो, जिम पाखरीयो सिंह.॥१॥मंत्रादिक योगे करी, कंतादिक वस कीध ॥ अतिही वीरमती थई, देश विदेश प्रसिक ॥२॥ अर्थ ॥श्रा विद्याथी राणी वीरमती मदमाती अने निर्जय थई. ते पांखवाला सर्पनी जेम तथा पाखरीश्रा सिंहनी जेम देखावा लागी. ॥१॥ तेणे मंत्रादिकना योगथी पति वगेरेने वश करी लीधा. अने एथी ते देश विदेशमा प्रख्यात श्रइ. ॥२॥ चंद कुंवर मोटो थयो, ताते पंडीत पास ॥ विद्या शीखावी सकल, शस्त्र शास्त्र सुविलास ॥३॥ जोग योग लक्षण गणित, शब्द काव्य रस बंद ॥ इत्यादिक मांहे थयो, घणो निपुण सुत चंद ॥४॥ अर्थ ॥ अहीं चंद कुमार मोटो थयो. पिताए तेने पंडितोनी पासेथी शास्त्र अने शास्त्रना विलास स. हित विद्या शिखावी. ॥ ३॥ कुमारचंद लोग, योग, लक्षण, गणित, शब्द, काव्य, रस अने बंदमां घणो निपुण थयो. ॥४॥ गुणशेखर पुत्रीनणी, परणावी बहु प्रेम ॥ नारी नाम गुणावली, श्रनिनव रंजा जेम ॥ ५॥ नित नित नवलां बाजरण, निति नित नवला वेष ॥ नित नित नवली रति कला, करे चंद सुविशेष ॥६॥ अर्थ ॥ गुणशेखर राजानी गुणावली नामे पुत्री के जे रंजाना जेवी स्वरुपवान हती, तेने घणा प्रेमश्री चंद उमारने परणावी. ॥ ५॥ चंद कुमार नित्य नवां नवां आभूषणोथी, नव नवा वेषयी अने नव नवी रति कलाथी तेनी साथे विलास करवा लाग्यो.॥ ६॥ चंडावतिथी चंदने, चाहे घणो विमात ॥ श्रोता सांजलजो हवे, निपट रसीली वात ॥७॥ अर्थ ॥ अपर माता वीरमती चंदने तेनी सगीमा चंावतीथी पण अत्यंत चाहती हती. हे ! श्रोता, हवे आगल रसिली वार्ता सांजलजो. ॥ ७॥ ॥ ढाल नवमी ॥ नयन हमारे लागनां, जिन तित लागे घाय बहुरियां ॥ ए देशी॥ वीर नृपति श्रन्यदासमे, जोवरावे शिर केश ॥सनेह ॥ चंद्रावति पासे तिहां, रही एकांत प्रदेश ॥ सनेह ॥ वी० ॥१॥ उलेचिकुर करी कांकसी, सींचे तेल फुलेल ॥ सम्॥ शोहे राणीनी आंगति, कसवटी कंचन रेह ॥ स॥२॥ अर्थ ॥ एक समे वीरराजा ऐकांतमा स्नेहथी पोताना मस्तकना केश चंजावतीती पासे जोवरावतो हतो ॥१॥ कांसकीथी तेना बाल चोली तेमा फुलेल सिंचन करती हती. ते वखते सुवर्ण रंगनी प्रजावाली रापीनी श्रांगती घणी सुंदर लागती हती. ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. दो पली नृप मस्तकें, उज्वल जेम शशि रेख ॥ स० ॥ राणी वदन कैरव परें, संकोचाणुं विशेष ॥ स ॥ वी० ॥३॥ चंडावति कहे कंतने, प्रीतम प्रगट्यो पूत ॥ स ॥ तुम जयपण न गण्यो किशो, मोटो खोटोधूत ॥स०॥वी॥४॥ अर्थ ॥ वाल उलतां राजाना मस्तकमां चं जेवं उज्वल एक पली जोवामां आव्यु. ते जोई राणीनु मुख कमलनी जेम विशेष संकोच पामी गयु. ॥३॥ चंजावतीए पोताना स्वामीने कह्यु के, हे प्रियतम एक दूत प्रगट अयो, ते मोटा धूतारा दूते तमारा जयने पण गण्यो नहीं. ॥ ४ ॥ तुमथी श्ररि वार्या रह्या, पण एक न रह्यो एह ॥ स ॥ईम निसुणि राजा कहे, श्हा कुणा दूत ने तेह ॥ स ॥ वी० ॥ ५॥ ते किम आवे अंते उरे, उलंघियाणा वाम ॥सा एहने श्रति देखें सजा, ते एकवार देखामासावी॥६॥ श्रर्थ ॥ हे ! राजा, तमाराथी शत्रु वार्या रह्या हता, पण आ एक दूत वार्यो रह्यो नहीं. ते सांजली राजाए कह्यु, थहीं कोण दूत आव्यो ? ॥ ५॥ ते दूत मारी श्राज्ञा उलंघीने अंतःपुरमां शीरीते श्रावे ? तेने बताव्य, दुं सजा करूं.॥६॥ जोय नृपति परूं, पूत न दीगे ताम॥सातव राणी कहे रायने, थाकुल केम हुथा श्राम ॥ स॥ वी०॥७॥ अंदर किम श्रावी शके, दूत धरावे देह ॥ ॥ स० ॥ श्राव्यो पूत जरा तणो, धवल पली शिर एह ॥सणावी ॥ अर्थ ॥ राजा श्राम तेम जोवा लाग्या, पण दूतने दीगे नहीं, त्यारे राणीए कह्यु, श्राम आकुल व्याकुख केम था बगे? ॥ ७॥ जे दूत देह धारी होय ते अंदर केम आवी शके ? पण था तो जरावस्थानो दूत मस्तकमा पलिया रूपे श्राव्यो बे. ॥ ७ ॥ निसुणी रायने ऊतर्यो, क्रोध चड्यो हतो जेम ॥ स ॥वी खरी जाणी जरा, एहवे थनोपम देह ॥ स वी० ॥ ए॥ बाल्यो काम सदाशिवें, लोक कहे एम ॥ स ॥ तेम बाली नहीं किम जरा, शोच न होतो जेम ॥ स०॥ वी॥१॥ अर्थ ॥ ते सांजली राजाने जे क्रोध चड्यो हतो, ते उतरी गयो. अने आवा अनुपम देहमां जरावस्था वी, ते खरी रीते जाणी लीधी. ॥ ए॥ लोको कहे ने के, शंकरे कामदेवने बाली नांख्यो, पण श्रा ज-, रावस्थाने केम न बाली, के जेथी कोस्ने शोक न थात. ॥ १० ॥ रजकवधूसम ए जरा, श्यामता तजि करे श्वेत ॥ स०॥राजन कहे निज चित्तने, रे रे चेतन चेत ॥ सम्॥ वी० ॥ ११ ॥ बाह्य प्रकाश जरा करे, नीतर न कर तुं केम ॥ स० ॥ राज्य नरक दायक सदा, त्यां किम मुंज्यो एम ॥सवी ॥१२॥ अर्थ ॥श्रा जरावस्था धोबीनी स्त्रीना जेवी ने के जे श्यामता त्यजीने श्वेत करे . राजा पोताना चित्तने कहे जे के, हे चेतन !तुं चेती ले.॥ ११ ॥ हे ! चेतन! श्रा जरावस्थाबाहेरनो प्रकाश करे , तुं अंतरनो प्रकाश केम करतुं नथी ! राज्य हमेशां नरक आपनारूं , तेमां तुंकेम मोह पामी रहे ॥१२॥ For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. रे! श्रातम ! करशे तुने, परमात्म गुण अंश स॥ गुण ए जोय जरा तणा, कागनणी करे हंस ॥ स०॥ वी० ॥ १३ ॥ कारिका नित्य तणी जरा, थाणा एहनी अखंग ॥ स ॥ दंत सखा रसना तणा, तसये पातन दंड ॥ स ॥ वी० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ अरे! आत्मा, तने परमात्मानो अंश गुण करशे. अने जरावस्थानो गुण तो कागडाने जेम हंस गुण करे तेवो जे. ॥१३॥ आ जरावस्थानी आज्ञा अखंडणे प्रवर्ते , तेनी आज्ञा जिव्हाना सखारूप एवा. दांतने पाडी देवानो दंड आपे ॥१४॥ पलित ए खग जरा तणुं, काम सुजट हणनार ॥ स ॥ तो चतुरा तजिने हवे, से संजम जार ॥ स ॥ वी० ॥ १५ ॥ नृप चंडावतिने कहे, थाशुं श्रमे श्रणागार ॥ स० ॥ लोग जोगवतां श्राविज नृपति तणो उद्गार ॥ स० ॥ वी० ॥१६॥ अर्थ ॥ आ माथार्नु पलि ने ते कामदेव रूपी सुलटने हणवान खड्ग , तो हे ! चतुरा स्त्री, हवे श्रा बधुं बोडी दई संयमनो लार ग्रहण करशुं ॥ १५॥ राजाए राणी चंघावतीने कडं के, अमेतो हवे अणागार अईशं. अने राजाने श्रा उद्गार लोग लोगवतां श्राव्यो. ॥ १६॥ विषयने वचने राणीए, जोलव्यो घणोहि नूपाल ॥ स० ॥ नवि नोलवाणो मोहन कहे, नवली नवमी ढाल ॥ स ॥ वी० ॥१७॥ अर्थ ॥ राणीए विषयनां वचनथी राजाने घणो खोजाव्यो, पण ते लोनायो नहीं. श्री मोहनविजये श्रा नवली नवमी ढाल कही . ॥ १७ ॥ ॥ दोहा॥ वीरमती चंडावती, घणो समजावे कंत ॥ वचन न माने नारिनां, थयो संयमी एकंत ॥१॥ पीयुने कहे चंडावती, हुं पण वेश दीख ॥ वीरमतीने चंद सुत, सोंप्यो देई शीख ॥२॥ श्रर्थ ॥ राणी वीरमती अने चंावती राजाने घणुं समजाववा लागी तो पण राजाए तेमनुं वचन न मान्युं अने एकांत संयमी थवा तत्पर थयो.॥१॥चंजावती राणीए पोताना स्वामीने कडं के पण तमारी साथे दीदा लईश, एम कही पोताना पुत्र चंदने शिखामण पापी वीरमतीने सोंप्यो. ॥२॥ राज्य समप्यु चंदने, खोले दीध विमात ॥ वीरसेन चंडावती, ग्रह्यो संयम विख्यात ॥३॥ मुनि सुत्रत जिन राजाने, वारे के. वल नाण ॥ राजझषी चंदावती, पाम्यां पद निरवाण ॥४॥ अर्थ ॥ अपर माता वीरमतीए चंदने खोले लई राज्य अर्पण कर्यु. अने वीरसेन अने चंडावतीए प्रख्यात पणे संयम ग्रहण कर्यो. ॥ ३॥ ते वखते मुनि सुव्रत स्वामीनो वारो चालतो हतो; राजर्षि वीरसेन अने साध्वी चंद्रावती केवल ज्ञान पामी निर्वाण पदने प्राप्त अयां. ॥४॥ वीरनृपति चंडावति, तास तणा श्रवदात ॥ कह्या करी संदेपथी, सुगुण सुणी हरषात ॥५॥ वीरमतीने चंदनु, सुणो चरित्र चित्त लाय ॥ पण निसुणी करता रखे, अंध वारसी न्याय ॥६॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jaminame BO ETUS SEG Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास, ३१ अर्थ ॥ श्रा प्रमाणे वीरसेन ने चंद्रावतीनुं ऊज्ज्वल वृत्तांत संदेपथी कयुं, जे सांजली सद्गुणी पुरुष हर्ष पामे बे. ॥ ५ ॥ हवे वीरमती अने चंदनुं चरित्र ध्यान दइ सांजलो. पण ते सांजलीने रखे श्रांधला पासे आरसी जेवुं करता नहीं. ॥ ६ ॥ चंदन रिंद गुणावलि, वीरमति जे विमाय ॥ एहनी जिम हुई कथा, ते तिमहिज कहेवाय ॥ ७ ॥ ॥ राजा चंद, राणी गुणावली अने पर माता वीरमती, तेउनी जे कथा बनी ते यथार्थ कहेवामां श्रवशे ॥ 9 ॥ ॥ ढाल दशमी ॥ दवे राणी पदमावती ॥ तथा मेरो मन मान्यो पठाण शुं ॥ ए देशी ॥ वीरमती कहे चंदने, बेसीने एकत्र ॥ चिंता रखे धरतो कशि, हुं हुं तारे त्र || वी० ॥ १ ॥ कहेतो इंद्रासन इंद्रनुं श्रणुं मति मंत ॥ कहेतो बांधु पायगे, रविरथ रेवंत ॥ वी० ॥ २ ॥ ॥ एक वखते वीरमतीए पोतानी सपत्नीना पुत्र चंदने एकांते बेसीने कह्यं के, पुत्र! तुं कोइ जातनी चिंता करीश नहीं, हुं तारा शिरनुं वत्र बुं. ॥ १ ॥ हे ! बुद्धीमान्, जो तुं कहे तो इंद्रनुं इंद्रासन लावी 'पुं, जो कहेतो पायगामां सूर्यना रथनो रेवंत अश्व लावीने बांधुं ॥ २ ॥ कतो, रुद्धि कुबेरनी, जरूं लेई जंडार ॥ कहेतो कंचन गिरि लेइने, धरूं ताहरे यागार ॥ वी० ॥ ३ ॥ कहे तो सुरनी कन्यका, परणां तु ॥ जूठ रखे सुत मानतो, एहवी शक्ति बे मुङ्ग ॥ वी० ॥ ४ ॥ ॥ जो कहे तो कुबेरनी समृद्धि तारा भंडारमां जरूं; कहेतो सुवर्णनो पर्वत ( मेरू) लावीने तार घरमा राखुं ॥३॥ जो कहेतो देवतानी कन्या तने परणावुं. या विषे रखे तुं जुबुं मानतो, मारी एवी शक्ति बे. वचन न लोपीश महारूं, यौवनने हो जोर ॥ बुं राची रस वेलमी, विरची विषनी कोर ॥ वी० ॥ ५ ॥ महारा वचन विना को करतो काम || बिन जोश माहरां, जो वांबे आराम ॥ वी० ॥ ६ ॥ रखे ॥ ! पुत्र, यौवनुं जोर राखी मारूं वचन लोपीश नहीं, जो हुं राजी रहीश तो रसनी वेल बुं, अने जो नाराजी ईश तो विषनी वेल ॥ ५ ॥ जो तुं सुखाराम इबतो होय तो मारा वचन विना कां काम करीश नहीं ने मारां बि जोश नहीं. ॥ ६ ॥ चंद कहे करजोमीने, निसुखो तुमे मात ॥ कथन न लोपिश तमतयुं, जो माथे जात ॥ वी० ॥ ७ ॥ तात तमे माता तमे, तमे इश्वर रूप ॥ अन्न दाता त्राता तमे, तमे माहरे भूप ॥ वी० ॥ ८ ॥ अर्थ ॥ चंद कुमारे हाथ जोडीने कयुं के, हे ! माता ! तमे सांजलो, जो मारे माथे जात होय तो ढुं तमारूं वचन लोपीश नहीं ॥ ७ ॥ तमे मारा पिता बो, तमे माता बो, तमे इश्वर बो, तमे अन्न दाता बो, तमे रक्षक बो, काने तमे मारा राजा बो. ॥८॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. हं श्रन्न शेर तणो धणी, ए जे तुम तणुं सर्व ॥ तुम करूणा ते महारे, धन संख्यायें खर्व ॥ वी० ॥ ए॥ वीरमती हरखी घj, सुणी चंदनी वाण ॥ बुचकारी कहे बाबुमा, तुंडे जीवन प्राण ॥ वी० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ सर्व तमारुंज ने, हुं तो मात्र शेर अन्ननो धणी व तमारी कृपाथी मारे खर्व संख्या जेटलुं प्रव्य .॥ ए॥ चंदनी आवी वाणी सांजली वीरमती घणो हर्ष पामी. पनी तेणीए चुंबन लश्ने का के, हे! वत्स, तुं मारा जीवननो प्राण . ॥ १० ॥ राज रमणी विलसो सुखें, मुजयी मत बीहीश॥ कोम कल्याण हुन तुजने, श्म दिलं तु श्राशीश ॥ वी० ॥ ११॥ श्म कही वीरमति गई, निज मंदिर ताम, राज्य करे चंद नरवरू, अभिनव सुत्राम ॥ वी० ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ हे! पुत्र! तमे राजा अने राणी सुखे विलास करो, माराथी जरापण जय राखशो नहीं. तमारूं कोटि गमे कट्याण था एम हुँ आशीष आपुं बं ॥ ११ ॥ आ प्रमाणे कही वीरमती पोताना मंदिरमां चाली गई. राजा चंद नविन इंज जेम राज्य करवा लाग्यो. ॥ १२॥ गुण सुरसरिता गुणावली, चंद चतुर हंस ॥ काम कला कुवलय लता, विलसे सुप्रशंस ॥ वी० ॥ १३ ॥ दोगंडक सुरनीपरे, विलसे सुख तेह ॥ पुण्य कर्यां जेणे प्रवे, तेदनां फल एह ॥ वी० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ राणी गुणावली गुणनी गंगारूप ले. अने चंदराजा हंस समान , ते बन्ने वचे कामकला रूप कमललता प्रशंसनीय पणे विलास करती हती. ॥ १३ ॥ ते राजदंपती दोगंडक देवतानी जेम सुख विलास करतां हता. जेए पूर्वे पुण्य कर्या होय तेनां फल आवां जे. ॥१५॥ पाणी दूध तणीपरे, दंपतीने प्रेम ॥ जुगति जोमी बिहु तणी, जिम मणिने हेम ॥ वी० ॥ १५ ॥ अहर्निश वीरमती तणुं, चित्त जालवे राय ॥ तिमहिज राणी गुणावली, नित प्रणमे पाय ॥वी॥१६॥ अर्थ ॥ जल अने दुधनी जेम ते दंपतीने प्रेम हतो. अने मणि अने सुवर्णनी जेम तेनी जोडी मली हती. ॥ १५ ॥ राजा चंद हमेशां वीरमतीनुं मन राखतो हतो. अने राणी गुणावली हमेशां वीरमतीन धरणमां पडती हती. ॥ १६॥ चंदन नरिंद तणो थयो, जग सुजश विशाल ॥ मोहनविजयें सुधा समी, कही दशमी ढाल ॥ वी० ॥१७॥ अर्थ|चंदराजानो यश विशालपणे जगत्मां प्रवो मोहनविजये अमृत जेवी श्रा दशमी ढाल कही.॥१॥ ॥दोहा॥ लघुवयश्री रतिपति समो, राजे चंद नरीद ॥ तखते शोने अति वखत, उदयाचलें दिणंद ॥१॥ मदजलतनु काली घटा, देत दामनी रंग ॥ पाउसपरें दरबारमा, उद्धत अति मातंग ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ३३ ३५ RCHAL ३६ 101 119 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३३ अर्थ ॥ राजा चंद लघुवयथी कामदेव जेवो शोजतो हतो. अने उदय गिरि उपर सूर्यनी जेम ते तख्त उपर दीपतो हतो. ॥ १ ॥ तेना दरबारमां गजेंद्रो मदजल रूपी काली घटाथी, अने दांत रूपी विजली थी मेघनी जेम उद्धत हता. ॥ २ ॥ सर पिचरकी, फीण अबीर लसंत ॥ दीप धमाल गुलाल गति, खेले तुरग वसंत ॥ ३ ॥ नृपमयंक वाणी सुधा, प्रजाकर्ण जिमसीप || वितथ मोती निपजे, सदा शरद् उद्दीप ॥ ४ ॥ ॥ अर्थ ॥ तेना घोडा नासिका रूप केसरनी पीचकारीथी ने फीणारूपी बीलथी, हेषारव रूपी धमालथी ने वर्णरूपी गुलालथी वसंत खेलता होय तेम देखाता हता. ॥ ३ ॥ राजा रूपी चंद्रमांथी वारूपी मृत नीकली प्रजाना कर्ण रूपी बीपमां श्रावी सत्यरूपी मोतीने नीपजावतुं हतुं, तेथी शरतुनुं उद्दीपन युं हतुं ॥ ५ ॥ नितनित नवल नेटणां, मुख अगल दीयंत ॥ कीधां धान खला मनुं, तु श्रावे हेमंत ॥ ५ ॥ जयहिमयी श्रानन कमल, दाधावेपथु शीत ॥ नमी जे खावी नम्या, तिहां शिशिर सुपवित्त ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ राजा चंदना मुख आगल नित्य नित्य श्रावतां नव नवां जेटणां रूपी धान्यनां खलां यवाथी हेमंत तु देखाती हती ॥ ५ ॥ जयरूपी बरफश्री मुखरूप कमलने संकोच करता अने शरीरमां शीतनी जेम कंपारो बोडता एवां नहीं नमनारा शत्रु यावीने नमवाथी शिशिर रुतुनो पवित्र देखाव तो हतो ॥ ६ ॥ नयपुर नचघर नचवनें, नही जक कोई न श्राध || अन्य देश राजा जणी, सदा दुरंत निदाघ ॥ ७ ॥ विलसे सुख नृपपद तथा, नित नित चंद भूपाल ॥ यतपत्र धारी थका, थयां ांग रखवाल ॥ ८ ॥ ॥ बीजा देशना राजाउने नगर, घर छाने वनमां रही शकातुं नथी, तेथी तेजनी प्रत्ये हमेशां कुरंत ग्रीष्म ऋतु हतो ॥ ७ ॥ राजा चंद प्रति दिन राज्यपदनां सुखमां विलास करतो हतो. तेनी उपर वत्र धारी छाने अंग रक्षको बन्या हता ॥ ८॥ ॥ ढाल ग्यारमी ॥ ॥ कर्म परीक्षा करण कुमर चल्यो रे ॥ ए देशी ॥ पंमित पांचसे पूजित परषदारे, सवि सुरगुरु प्रतिरूप ॥ तवेत्ताते षट्शास्त्रनारे, गुणथी रंजित भूप ॥ पं० ॥ १॥ सौगत सांख्य जैन नैयायिकारे, वैशेषिक चार्वाक || निज निज युक्ति करे षट् दर्शनीरे, एकएकथी यार्वाक ॥ प० ॥२॥ ॥ चंदराजानी परिषदामां पांचसो पंडित पूजाता हता, ते बुहस्पति जेवा ने अद्भुत षटू शास्त्रा वेत्ता हता. तेज॑ना गुणोथी राजा रंजित यतो हतो ॥ १ ॥ तेनी सजामां बुद्ध, सांख्य, जैन, नैयायिक, वैशेषिक, चार्वाक विगेरे पंकितो पोत पोतानी युक्ति करता हता, अने ते सर्वे षट्दर्शनी एक एकथी चडीयाता यता हता. ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ चंदराजानो रास. शून्यपणुं चार्वाकमति कहेरे, माने प्रत्यक्ष प्रमाण ॥ वस्तु सकल डे क्षणिक अनुमानथी रे,ए सौगत मति जाण ॥६॥३॥ शब्दप्रमाण प्रमाणे वैशेषिकारे, सांख्य शब्द सानुमान ॥प्रगटानुमान शब्द उपमानने रे,एनैयायिकसान ॥५॥४॥ अर्थ ॥ चार्वाक मतवाला जगतने शून्य गणी प्रत्यक्ष प्रमाणने मानता हता; बौद्ध मतवाला “ सर्व वस्तु क्षणिक" एम अनुमान प्रमाणथी मानता हता॥३॥ वैशेषिक मतवाला शब्द प्रमाण मानता हता, सांख्य मतवाला शब्द अने अनुमान प्रमाणने मानता हता, अने न्याय मतवाला प्रगट अनुमान, शब्द भने उपमानने मानता हता ॥४॥ प्रत्यक्ष श्रने अनुमान प्रमाणने रे, नाखे जैन अनूप ॥ कोइ कहे ए कर्त्ताये कों रे, सुंदर जगत् सरूप ॥६॥५॥ जगत् ए ज्ञानमयी कोश्क कहेरे, स्वजाव जनित कहे कोय ॥ को कहे जग शशकश्रृंगोपमारे, वंध्या सूत सम होय ॥ पं० ॥६॥ अर्थ ॥ जैनमतवाला प्रत्यक्ष अने अनुमान प्रमाणने मानता हता. कोश आ जगतना सुंदर स्वरूपनो कर्ता एम मानता हता ॥५॥ कोई आ जगत्ने ज्ञानमय कहेता हता. कोश् जगत्ने स्वजाव जनित कहेता हता, कोश् ससलाना शींगडा जेवू एने वंध्याना पुत्र जेवू असंजवित कहेता हता. ॥६॥ घटपटघटना म सहुको घटे रे, अंधगयंदने न्याय ॥ व्युत्पत्ति शब्दतणी करे शाब्दिकारे,उदर नरण उपाय ॥५॥७॥ वेदोच्चार करे बहु वेदीयारे,करता कर श्रास्फाल ॥ साहित्य पाठी साहित्य उच्चरे रे, प्रश्न करे नूपाल ॥ ५० ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ न्याय जाणनारा घटपटनी घटनाथी सर्व घटावता हता; शब्द जाणनारा उदरनुं नरण करवाना उपायरूप शब्दनी व्युत्पत्ति करता हता ॥ ७॥ वेदीआ लोको हाथ उगली वेदनो उच्चार करता हता. साहित्य जाणनारा साहित्य कहेता हता, अने राजा चंद प्रश्न करता हता ॥ ७॥ काव्य करे वेत्ता अलंकारना रे,पूरे समश्या संघ॥वांचे पुराण पौराणीक परवडारे, रामायण संबंध ॥पंगा जल अन पय तरू फल दल फूलनारे,गुण कहे जोई शास्त्र ॥ निपुण श्रादान निदान चिकित्सा विषेरे, वैदश्शा बुद्धिपात्र ॥ पं० ॥१०॥ अर्थ ॥ श्रलंकार जाणनारा काव्य करता अने समश्या पूर्ति करता हता, अने पुराणी, पुराण अने रामायण वांचता हता॥ ए॥ निदान अने चिकीत्सा करवामां कुशल एवा बुद्धिमान वैद्यो शास्त्र जोश्ने जल, अन्न, वृक्ष, फल, पत्र अने पुष्पना गुण कहेता हता ॥१०॥ घन मूल वर्गमूलादिक गणितनो रे,अति परिचय ने जास जाणे समबेदादिक मानने रे,करे पंचांग प्रकाश पं॥११॥ साधे रव्यादिक ग्रह गगने थकारे, वर्ते ग्रहण शशिसूर ॥ जाणे खगोल अने नूगोलने रे, हृदय सिफांते पूर ॥ पं० ॥१॥ अर्थ ॥ केटलाएक घन मूल अने वर्गमूल विगेरे गणितनो परिचय करनारा हता, अने ते समच्छेद विगेरे जाणी पंचांगनो प्रकाश करता हता ॥ ११ ॥ केटलाएक सूर्यादिक ग्रहोने आकाशमाथी साधता हता, सूर्य चंजनुं ग्रहण वर्तता हता अने हृदय सिद्धांतथी खगोल अने जूगोल जाणता हत्म ॥१२॥ For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 。 C兰二三 作 WUUUUJIULIETTE LIFIEL.ASIA SEL55419 su ucaticina International For Personaland Private Use Only wwelnetar Zorg Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३५ नृप दरबार एहवा ज्योतिषीरे, जाणे नक्षत्र ग्रहचार॥रंज्यो तेहने चंदनरेसरूरे, थापे गरथ नंडार ॥५॥१३॥ रूपक गीत बंद तुक हडारे, कहे श्म विविध बनाय ॥ पिंगल पाठी पामे चंदनो रे, पगपग लाख पसाय ॥ पं० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ नक्षत्र अने ग्रहचार जाणनारा एवा ज्योषि राजाना दरबारमा हता तेमना गुणोथी रंजन थतो चंदराजा तेमने व्यना जंडार आपी देतो हतो ॥१३॥ पिंगल पाठी कवि विविध जातनां रूपक, गीत, बंद, तुक अने दोहा बनाघी चंदराजा पासेश्री पदेपदे लाखोना नाम लेता हता ॥ १४ ॥ एहवी चंद नरिंदतणी सजारे,चकित होये शशिसूर ॥ नगिनी जाणे ७ सजातणीरे,दिन दिन प्रबल पर ॥॥१५॥ जीममुगणमां दीपे निशाकरूरे, सुर... गणमां जिम इंद ॥ तिम सचिवादि सजाये शोजतो रे,चावो चंदनरिंद ॥५॥१६॥ श्रर्थ ॥ श्रावी चंद राजानी सजा जोर चंड अने सूर्य चकित थ जता हता अने ते सजा जाण इंज सजानी बेन होय तेम दिन दिन प्रबल रूप धरती हती॥ १५ ॥ जेम नक्षत्र गणमां चं शोले, देवताना गणमां जेम इंज शोजे, तेम मंत्री विगेरेनी सन्जामां सुंदर चंदराजा शोजतो हवो ॥ १६॥ पंडित मोहन विजये नली कहीरे, एह ग्यारमी ढाल ॥ श्रोता सुणुजो सहु मन थिरकरी रे, श्रागल वात रसाल ॥ पं० ॥१७॥ अर्थ ॥ पंडित मोहनविजये था उत्तम अग्यारमी ढाल कही . हे ! श्रोता जनो ! हवे ध्यान दश्ने सांजलो. आगल रसिक वारता श्रावशे ॥१७॥ ॥दोहा॥ एकदिन तेह गुणावली, जोजनपिउ संतोष ॥ पोते पण तृपति थर, श्रावी बेठी गोख ॥१॥ करे सखी केई पवन, आपे केश मुख वास ॥ केई जल अमृत नरी, दासी उत्नी पास ॥२॥ अर्थ ॥ एक घखते राणी गुणावली लोजन करी संतोषयी तृप्त थ गोखे श्रावीने बेठी ॥१॥ कोइ सखी तेने पवन नांखती हती,कोइमुखवास बापती हती अने कोदासी अमृत जेवु जल पासेलश् उनी हती ॥२॥ केश विलेपन ग्रही रही, कुमकुम् बांटे केई॥ केश्क उनी श्रागले, दरपण करमा लेई ॥३॥ केश हसाडे साहसे, दीपे दंत उदार ॥ वायु थकी दामिम फले, जाणे थ दरार ॥४॥ - अर्थ ॥ को विलेपन खर उनी हती, कोश् कुम्कुम्ने गंटती हती, अने कोइ हाश्रमां दर्पण लइ श्रा गल उनी हती ॥ ३ ॥ कोइ साहसथी हसावती हती, ते वखते तेना सुंदर दांत वायुश्री फलीने फाटी गयेला दाडिम ज़ेवा लागता हता ॥४॥ केई राणी कंठे ज्वे, पंच वर्ण शुज दाम ॥ जाणुं अतिफुलित थयो, मदन तणो श्राराम ॥ ५॥ जाणी चंदनी पदमिनी, करे रवि मुदित थायास ॥ पण युदले राणी वदन, लह्यो अधिक विकास ॥६॥ अर्थ ॥ को राणीना कंठमां पंचवर्णी हार नांखती हती,ते हार जाणे काम देवनो बाग प्रफुलित अयो For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. होय तेम शोलतो हतो ॥ ५॥ पद्मिनी होय ते चांदनीने जाणी रविना कीर्ण मेलववानो प्रयास करे बे. पण था चंदनी राणीनुं मुखकमल चांदनीमां पण अधिक विकास पामतुं हतुं ॥६॥ रवि रथ खेंचीने रह्यो, मध्यान्हे आकाश ॥ जोवा नृप कांता तो, रूप रंग सुविलास ॥७॥ अर्थ ॥ सूर्य मध्यान्ह काले पोतानो रथ खेंची आ राणीनां रूप रंगनो विलास जोवाने रह्यो होय, तेम देखावा लाग्यो ॥ ७॥ ॥ ढाल बारमी॥ ॥ धन धन संप्रति साचो राजा ॥ ए देशी ॥ एडवे वीरमती तिहां श्रावी,वेश रची बह जांत रे॥करवा गोष्टि गुणावली साथे मध्यान्हे एकांतरे ॥ एहवे वीरमती तिहां श्रावी ॥१॥ दीठी गुणावलीये श्रावंती, निजमंदिरमाहे सासूरे॥बाई विनय करो कहे सजनी,बहु थावु फासूरे ॥ए॥२॥ "अर्थ ॥ ए समये मध्यान्ह काले वीरमती घणो सुंदर वेष धरी गुणावली साथे एकांत गोष्टी करवाने त्यां श्रावी ॥१॥ पोताना मंदिरमा सासुने श्रावती जोइ गुणावलीने तेनी सखीए कह्यु के, बाइ विनय करो, तेनी आगल मोटाइ राखवी ॥२॥ हाल हुकम तुमचो श्रम उपर, पण तुम उपर एहनो रे ॥ तुम प्रीतम एहने कहे चाले,जे जेहनो ते तेदनो रे ॥ए॥३॥ एहवे सजनी वचने हसती,उमी जर्ये आजरणे रे ॥ दोमी गुणावति विनयथी लागी, सासूजीने चरणे रे ॥ ए० ॥४॥ अर्थ ॥ हाल तमारो हुकम अमारी उपर ने अने तेनो हुकम तमारी उपर बे, वली तमारा स्वामी पण तेना कह्याप्रमाणे चाखे बे, जे जेनो ते तेनो समजवो. ॥ ३ ॥ एवां सखीनां वचन सांजली आजूषणोथी जरपूर थयेली गुणावली उमीने हसती दोडी अने विनयथी सासुनां चरणमां पडी ॥४॥ जाखे कृतारथ मुजने कीधी,जे तुमे शहां पांउ धार्यां रे ॥ धन्य घमी धन्य आज'नीवेला,सघलां काज सुधार्यां रे ॥ए॥५॥ बाजी श्राज करी तुमे मुजने, मेथकी पण मोटी रे ॥ कल्पलता मुज श्रांगणे प्रगटी,कहेती नथी कांश खोटी रे ॥ए॥६॥ अर्थ ॥ हे ! सासुजी, तमे अहीं पगलां कर्या तेश्री मने कृतार्थ करी बाजनी घडी धन्य , तमे मारां संघलां कार्य सुधार्या ॥५॥ हे! बाइजी,आजे तमे मने मेरू पर्वतथी पण मोटी करी. आजे मारा श्रांगणामां कटपलता प्रगट अश्. श्रआमां जरापण हुं खोटुं बोलती नश्री ॥६॥ हरषी वीरमती वह वचने, आशिष् दे बुचकारी रे॥ ताहरो सुहाग सदा होजो । अविचल,जिहां लगे जग ध्रुवतारी रे॥ए॥॥ सासूडीने अधिक सनेहे, श्रासने बेसामी रे ॥ बेठी गुणावली बेहु करजोडी, मुख आगल मनुहारी रे ॥ ए० ॥७॥ अर्थ ॥ पोतानी पुत्रवधूनां आवां वचनश्री वीरमती घणो हर्ष पामी अने चुंबन करी तेने आशीष आपी के, ज्यां लगी आ जगत् अने ध्रुवनो तारो रहे त्यां लगी तारूं सौनाग्य सदा अविचल रहेजो ॥७॥ पळी पोतानी सासुने अधिक स्नेहथी आसने बेसाडी गुणावली बे हाथ जोमी तेनी सामे बेठी ॥ ७ ॥ For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ പി | സിപി 1 1 1 1 022 1 1 1 T ( 1 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ चंदराजानो रास. वीरमती अति विनये रंजी, बहुअरने सनमानी रे ॥तुं कुलवंति बहु गुणवंति, विन. यवति नही गनी रे ॥ए॥ए॥ तुज मुख विनय वचन जे प्रगटे,तेहमांशी अधि. काई रे ॥ वरशे तेहमांहे \ केहेबु, शशीहुँति जे सुधाई रे ॥ ए० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ तेना अति विनयथी राजी श्रयेली अने वहुथी घणुं सन्मान पामेली वीरमती बोली के, हे! वधु! तुं कुलवंती, बहु गुणवंती, अने विनयवती बु, ते वात गनी नथी ॥ ए॥ तारा मुखमांथी विनय वचन नीकले , तेमां शी नवाने ? चंडमांथी अमृत करे तेमां शुं कहेवू? ॥१०॥ कमलथकी सौरज्य जे पसरे,तिहां अचरज शुंधरवू रे?॥श्नु रसमां जे मधुरता होवे,तिहां संदेह शो करवो रे॥ ए॥१९॥ तिम तुं रूप विनय हे बहुअर,जीवजो ... क्रोम दीवाली रे ॥ थ तुं मुजने प्राणथी वाहाली,मनमानी तुं बाली रे॥ए॥१॥ अर्थ ॥ कमलमांथी सुगंध प्रसरे तेमां शुं आश्चर्य? इझुरसमांथी मधुरता नीकले तेमां शो संदेह ॥११॥. हे! वधु, तेवी रीते तारामांश्री विनय श्राय तेमां शुं आश्चर्य ? तुं क्रोड दीवाली जीवजो. हे बाला, तुं मुजने प्राणथी पण वाहाली लागे जे ॥१२॥ जे जोश्ये ते कहेजे मुझने, न गणिश श्हमां अचंनो रे॥चंदजो कहीये दुहवशे ' तुऊने,तो हूं देश उलंनो रे॥ए॥१३॥ चंदविचे तुजविचे नही अंतर, बेहु नयणां समबेहु रे ॥ सासू वहु उपर हेत राखे, तेहमां कहेवू केहुं रे ॥ ए॥१५॥ अर्थ ॥ जे जोइए ते मने कहेजे, एमां कां अचंनो राखीश नहीं. जो चंद तने जरापण जुनवे तो हूँ तेने उलंलो दश्श ॥ १३ ॥ चंद अने तारी वच्चे मारे जरापण अंतर नथी. मारे बे आंख सरखी जे. सास पोतानी वढु उपर हेत राखे, तेमां शुं कहेवार्नु होय ? ॥ १५ ॥ में परखी तुजने वहु बेटी, तुजमां नहीं हुंसा तुंसो रे ॥ कहिये कथन न लोपीश माहरूं, एहवो श्राव्यो जरोंसो रे॥ ए॥१५॥जो मन माहरा पूल चालीश, कहेण करीश जो माहरूं रे॥ तो ए विद्याश्रादे महारूं तेसघलुं तदारुं रे ॥ए॥१६॥ अर्थ ॥ में तने पुत्री झपे गणी , वली तारामां कांश खटपट नथी. मने जरूंसो ने के, तुं मारूं वचन लोपीश नहीं. ॥ १५ ॥ जो तुं मारा मन प्रमाणे अनुसारीने चालीश अने मारूं कहेण करीश तो आ जे मारी विद्या ने ते सघलु तारूंज ॥१६॥ श्म सासु वहुअर परचावी, हीयडा आगल राखी रे॥ बारमी ढाल रसाल वचनश्री, मोहन विजये जाखी रे ॥ ए॥१७॥ - अर्थ ॥ आप्रमाणे कही सासुए वहुने हृदयश्री चांपी आलिंगन कर्यु. श्रा बारमी ढाल श्री मोहनविजये रसिक वचनथी कहेली . ॥१७॥ दोहा॥ वीरमती लटपट करे, गुणावलीथी ताम ॥ पण जोली समजेनही, सासू तणा विराम ॥१॥ दास सवि आपापणुं, जश्ने काम करत ॥ सासु वहुधरने कहे, अवसर लहि एकंत ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० चंदराजानो रास. अर्थ ॥ एवी रीते वीरमती गुणावली साथ लटपट करवा लागी. पण ऐ लोला दिलनी वहु सासुना शादाने समजी नहीं. ॥१॥ पठी सर्व दासी जइ पोतानुं काम करवा लागी. ए अवसरे एकांत जोश सासुए वहुने नीचे प्रमाणे कडं. ॥२॥ रे वत्से तुं नृप सुता, मुज सुत तुज जरतार ॥ ते मदथी गणती हईश, सफल करी संसार ॥३॥ तुं मनमां लेती हुश, हं रूडी निरधार ॥ पण हुं लेखे नवि गणुं, रे! वधु तुज अवतार ॥४॥ अर्थ ॥ हे ! वत्से, तुं राजपुत्री ने, अने मारो पुत्र तारो स्वामी ने, एवा मदथी तुं तारा संसारने सफल मानती हईश. ॥३॥ वली मनमां मानती हश्श के, हुं रुडी बु. पण हुं तारा अवतारने लेखामां गणती नथी.॥४॥ निसुणी कहे गुणावली, सासूजी कहो केम ॥ विण गुनहे मुजने तमे, कुवखाणो को एम ॥ ५॥ हय गय रथ कंचन रयण, घणा तेम पट कूल ॥ सकल वस्तु ले माहरे, परिकर पण अनुकूल ॥६॥ अर्थ ॥ ते सांजली गुणावली बोली, हे ! सासुजी, तमे आम केम बोलो गे? गुना वगर मारी निंदा केम करो गे? ॥ ५॥ अश्व, गज, रथ, सुवर्ण, रत्न अने घणां पटकुल वस्त्र तथा सर्व वस्तु मने मले ने, वली मारो परिवार पण मने अनुकूल वे ॥६॥ बाई मुज सरखी सुखी, कुण नारी संसार ॥ तुम सरिखी सासू बते, लेखे मुज अवतार ॥७॥ ___ अर्थ ॥ हे! बाइजी, मारा जेवी बीजी कर स्त्री संसारमा सुखी बे ? वली तमारा जेवी मारे सासु । तेथी मारो अवतार लेखे .॥७॥ ॥ढाल तेरमी॥ ॥ तमे पीतांबर पेहेल्जी मुखने मरकलडे ॥ ए देशी॥ सासु कहे कर साहीजी, वचन कोई नांतनो ॥ वहतें न लह्यो कांजी, मरोम ए वातनो ॥१॥ अधरतणे फुरकारेंजी, समजे जे को ॥ ते संसारे सारेंजी, विरला को हो ॥२॥ अर्थ ॥ सासुए कह्यु के, हे ! वहु, आ वचननो अने आ वातनो मरोड तारा जाणवामां आव्यो नहीं. ॥१॥जे एक होउना फरकवा उपरथी समजी जाय, तेवा को आ संसारमा विरला . ॥२॥ जाणपणो जगमांहेलो, वहथर दोहेलो ॥ मूरख ते पण चा. चा. ..... हेजी, धन करी सोहेलो ॥३॥ रूपे कोई न हरषेजी, गुण हरखे सह ॥ श्राउल कुसुमने सरखेजी, दीसे के तुं वह ॥४॥ अर्थ ॥ हे! वधू, श्रा जगत्मां जाणपणुं दोहेलु ! मूर्ख होय ते पण धननो उपनोग चाहे जे. ॥३॥ को रूपथी हर्ष पामे नही; सर्वे गुणश्री हर्ष पामे वे. हे ! वधु, तुं तो पुष्पना जेवी मृउ लागे . ॥४॥ For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३ए पहेरी जंढी तुं जाणजी, वस्त्र दीरोदकी ॥ पण तुजमां एक दाणोजी, समजण कयां थकी ॥५॥ एकदिश चार वेदजी, एक दिश चातुरी॥नेदालक लहे नेदजी, सुण कामातुरी ॥६॥ अर्थ ॥ तु उधना जेवां उजलां वस्त्रने उढी जाणे चे पण तारामां समजणानो एक दाणो पण नथी. ॥५॥ एक तरफ चारे वेद अने एक चातुरी , तेनो नेदतो खरो नेऊ होय ते जाणे. हे ! कामातुर स्त्री, ते सांनल. ॥ ६॥ जाणती हुश्श ढुं माहीजी, पण पशु सारखी ॥ श्रमे चतुराई ताहारीजी, बोलतां पारखी ॥७॥ निसुणी सासू वाणी जी, बोली गुणावली ॥ निपट एम अजाणीजी, किम मुज अटकली ॥७॥ अर्थ ॥ तुं एम जाणे ने के, हुँ डाही बुं पण तुं तो पशु सरखी वं. अमे तारी चतुराश्ने बोलवामांज पारखी लीधी. ॥७॥ सासुनी आवी वाणी सांजली गुणावली बोली के, हे ! बाइजी ! मारी अक्कलनी तमे जाण्या विना केम अटकल करी. ॥ ७ ॥ माहारा मनथी हूं जाणुंजी, सहुथी ढुं माही ॥श्राप किस्युं हं व. खाणुंजी, पण तुमे नवि चाही ॥ ए ॥ प्रीतम तम सुत जेहवोजी, माहारे मन मीगे ॥ त्रिजुवनमां नर एहवोजी, बीजो न कोई दीगे ॥१०॥ अर्थ ॥ ९ मारा मनश्री जाणुं बु के हुँ सजश्री डाही वं, पण हुं मारा पोतानां वखाण करूं ते शाकामनां ? तमे तो पण चाही नहीं. ॥ ए ॥ तमारा पुत्र जेवो स्वामी मारे मनतो बहु मीगे , त्रण नुवनमां बीजो कोइ तेवो नर दीगे नथी. ॥ १० ॥ हूंतो वखतावारजी, बाईजी तमे सुणो ॥ माहरोए अवतारजी, किम करी अवगुणो ॥ ११ ॥ वीरमती तव जाखेजी, सांजल वहुथारू ॥ तुं जे एवमी राखेजी, डंस ते शासारू ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ हे ! बाइजी सांजलो हुँ तो धन्य बुं, मारो अवतार तमने अवगुण नरेलो केम लाग्यो ? ॥११॥ वीरमती बोली, हे ! वहु, सांजल, तुं आवडी होंश शामाटे राखे ? ॥ १२ ॥ ए चंद नृपती कुण लेखेजी, एहने कुण जाणे ॥ अवर जो तुं नर देखेजी, तो हठ नवि ताणे ॥ १३ ॥ सायर लहैर शुं जाणेजी, मी डक कूपनो ॥ कुबजा ते शुं प्रमाणेजी, गुणरति रूपनो ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ ए चंदराजा शा लेखामां ने, अने कोण उलखे ? जो तें बीजा नर जोया होत तो आवी हव करते नहीं. ॥१३॥ कुवानो देडको समुन्नी लेहेरने शुं जाणे? कुब्जा स्त्री रतिनारूपनो गुण शुं समजे?॥१॥ जिणे नालियर नवि दीपाजी, थलिया बापडा ॥ माढे लागे मीगंजी, तास कोछिबडा ॥ १५ ॥ नागरजन पुर साहीजी झुं लहे जंगली ॥ जाणे शुं बनात वसाजी, उढी जिणे कंबली ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० चंदराजानो रास. ___ अर्थ ॥ जे जे बीचाराए नारीएलनां फल दीगं न होय तेने कोठीबडां मीनां लागे . ॥ १५ ॥ जंगली लोकोने नगरजननावैनवनीशी खबर पडे? जेणं कांबल उढी होयते बनातनी लेहेजत शुं जाणं?॥१६॥ सरसुधी जाई श्रावेजी, हय जिनदासनो॥रविहय नेद न पावेजी, गमन विलासनो ॥ १७ ॥ जेणे प्रवहण नवि दीगंजी, प्रीयतस तुंबडां ॥ शास्त्र सुण्यां नही मीगंजी, तस रूचे हुंबडा ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ जिनदासनो घोडो के जे सरोवर सुधी जाई ने आवे ते सूर्यना घोडानी गति विलासनो भेद शी रीते जाणे ? ॥ १७ ॥ जेणे वहाण दीगं नहोय तेने तुंबमां प्रिय होय बे, जेणे मधुर शास्त्रो सुण्यां न होय तेमने ढुंबडां (हलुल ) उपर रूचि श्राय . ॥१७॥ जाणशुं हलद पेटीजी, बलदजे घांचीनो ॥ तु तो ले सुण बेटीजी, मांकड मांचीनो ॥रए ॥ एकेक नर डे एहवाजी, रूपे सुंदरा अभिनव रतिपति जेहवाजी, प्रगट पुरंदरा ॥ २०॥ . अर्थ ॥ घांचीनो बलद हल खेडवानुं शुं जाणे ? तेम हे ! बेटी ! तुं तो मांचीनो मांकड बु.॥ १५ ॥ बीजा एक एक पुरूष रूप वडे एवा सुंदर डे के जाणे नवीन कामदेव होय अथवा प्रगट इंश होय तेवा लागे ॥२०॥ मोहनविजये नाखीजी, ढाल ए तेरमी ॥ चरित्र करीने साखीजी, सुगुण जणी गमी ॥ २० ॥ अर्थ ॥ श्री मोहन विजये आ तेरमी ढाल कही, ते चरित्रवडे करीने वाचतां सद्गुणी पुरुषोने गमी के. ॥दोहा॥ माताजी श्म मत कहो, चंदथी श्रधिक अनेक ॥ पण तुम कुल उद्योत कर, चंद चंदसम एक ॥१॥ सिंह जणे एक सिंहणी, वह वनमा शीयाल ॥ कोश्क मृगकस्तुरिज, श्रवर मृगोनी माल ॥२॥ अर्थ ॥ गुणावलीए कडं. हे! माता! एम कहो नहीं! बीजा अनेक पुरुषो चंथी अधिक हशे पण तमारां फुलने उद्योत करनार चंना जेवा तो एकज चंद .॥१॥ सिंहण एकज सिंहने जणे ! वनमां शीयाल घणां थाय . कस्तुरी मृग कोज होय अने बीजां मृगलानी तो श्रेणि होय ॥२॥ किहां चंद किहां अवर, अंतर प्रात बियाल ॥ चंद चरण नख सारिखा, बीजा सवि नूपाल ॥३॥ तोलाए गयवर जिहां, खर ते वलि पासंग ॥ चोलरंगसम चंद नृप, बीजा रंग पतंग ॥४॥ अर्थ ॥ तमारा पुत्र चंद क्या ? अने बीजा नर क्या ? तेमनी वच्चे घणो अंतर जे. बीजा सर्व राजा चंदना चरण नखना जेवा बे. ॥ ३ ॥ ज्यां मोटा गजेन्ज तोलाय त्यां गधेमा पासंगमां जाय ! तेम चंदराजा चोलना रंग जेवा के अने बीजा पतंगना रंग जेवा . ॥४॥ जिहां तरु सुरतरु सारिखा, सफल सुशोनित होय ॥ मूलाफल वलि काडमां, लेखे नाणे कोय ॥ ५॥ बाई तुम सुत सारिखो, नहीं को अवर संसार ॥ मुज शिरते प्रीतम बते, लाखेको अवतार ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ ज्यां कटप वृक्ष जेवां वृक्षो सफल अने सुशोनित होय त्यां मूलानां फलने को काडमा लेखे नहीं. ॥ ५॥ हे! बाइजी, तमारा पुत्र जेवो कोई बीजो संसारमा नथी. तेवो पुरुष मारा शिरपर स्वामी ने तेथी मारो अवतार लाखेणो जे. ॥६॥ . नाग्ये श्राव्यो नागमें, ते महारे जगवान ॥ जाणे श्राव्युं जेहने, ते तेहेने पकवान ॥॥ अर्थ ॥ जे लाग्यश्री मारे जाग श्राव्यो ते मारे जगवान् बे. नाणे जेने जे श्राव्यं ते तेने पकवान्न ले. ॥७॥ ॥ ढाल चौदमी॥ ॥ डोरी माहरी आवे हो रसिया कडतले ॥ ए देशी॥ वीरमती कहे निसुण गुणावली, ने मुज चंद सुजात ॥ सलूणी ॥ कहुं बुं हुं तो ए तुज श्रागले, उठे आवी जे वात ॥सावी॥१॥ पण बहुरत्ना एह वसुंधरा चंदथी अधिक अनेक सादेश विदेश जोतें निरख्यो हवे तोतुंजाणे सुविवेक॥सवीना॥ अर्थ ॥ वीरमती बोली. हे ! गुणावली ! सांजलो, ए मारो पुत्र चंद उत्तम ने. तो तारी आगल जे वात होठे आवी ते कडं बु.॥१॥ पण आ पृथ्वी बहुरत्ना वे. चंदथी अधिक अनेक पुरुषो के. देश विदेशमां जो तें जोया होय तो तेनो विवेक तारा जाणवामां श्रावे. ॥२॥ तें एक दीठी एह थानापुरी, तुजने एटली गम्य ॥स०॥ वात झुं जाणे अवर पुरीतणी, शुलदे रम्य श्ररम्य ॥सणावी॥३॥ तिणे अवतार श्रलेखे तुज गणुं, सांजलन धरीश रीश सादीग नही जो विनोदणे झते, तो पडीक्यारे जोश॥सणावी॥ अर्थ ॥ तें एक श्राजापुरी दीठी चे एटले तने एटलीज गम जे. बीजी नगरीनी वात तुं शुं जाणे? श्रने श्रा रमणीय ने श्राश्ररमणीय एनी तने शी खबर पडे ! ॥३॥ तेथी करीने हुं तारो अवतार अलेखेग[.श्रा सांजल जे, रीस करीश नही. जो आवा समयमां तें विनोद जोया नहीं तो पनी कयारे जोश ॥४॥ हुंतुज वखते सासू सांपमी, तुंहजी थाणे संकोच ॥सा कौतुक कोन दीगे तें वहु, ए मुज सबल थालोच ॥सणावी॥५॥ वनना कुसुमतणी परे तादरो, ए जाए श्रवतार ॥ स०॥ तुं शुं सराहिस मानव जव नणी, नवि जोश देशाचार ॥सावी॥६॥ अर्थ ॥ तारा योग्य वखतमां मारा जवी तने सासु मली अने तुं हजी संकोच सावे , हे, वहु ! तें कांइ हजु कौतुक जोयु नहीं, ए मने प्रबल विचार थया करे . ॥ ५॥ वननां पुष्पनी जेम तारो अवतार व्यर्थ जाय जे. जो तुं देशाचारने जोईश नहीं तो पड़ी आ मानव नवनो शो लावो लश्श! ॥६॥ नव नव तीरथ नव नव गिरिवरा, नव नव नगर निवेश ॥ स ॥ नव नव कुंड नवी नवी निम्नगा, वन उपवन सुविशेष ॥ स० ॥ वी० ॥ ७॥ नव नव नरवर नव नव नृप वधू, नव नव नात विनोद ॥ स ॥ नव नव रंग सुरंगा मानवी, नव नव गीत स्वरोद ॥ स० ॥ वी० ॥ ॥ विविध पवित्र चरित्र विदेशनां, जे निरखे तस धन्य ॥ स ॥ तेतो वलि माताये पुत्रीउ, जोई होशे For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % ४२ चंदराजानो रास. अन्य || || श्रश्वमुखा दयकर्णा मानवी, कर्णोवगरणा ए तेम ॥ स०॥ इगचरणावली गूढ दशनधरा, शुद्धरदा वलि तेम ॥ स० ॥ वी० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ नव नवां तीर्थो, नव नवा पर्वतो, नव नवां शेहेरो, नव नवा कुंडो, नव नवी नदीर्ज, नव नवां उपवनो, नव नवा नरवरो, नव नवी राणीर्ड, नव नवा विनोदो, नव नवा रंग बेरंगी मानवीर्ड, नव नवां गीत स्वर, विविध जातना पवित्र विदेशनां चरित्रो जे निरखे बे तेने धन्य बे ने तेवी पुत्री ने कोइ माताज जन्म पे डे. ॥ ७ ॥ ८ ॥ ए ॥ कोइ देशमां श्वमुखा मानवी बे; कोइ देशमां घोडाना जेवा कानवाला मानवी बे; कोइ ठेकाणे कर्णना उपकरणा मानवी बे; कोइ ठेकाणे घणा चरणवाला थाय d; कोई गुप्त होवाला थाय बे ने कोई ठेकाणे उज्वल दांतवाला थाय बे. ॥ १० ॥ दीगं विण शुं जाणे बापमी, तुं शुं नारीने उल || स० ॥ दवे तुं श्रशन सुखेकरी, बेठी फांद पंपोल ॥ ०॥ वी० ॥ ११ ॥ न्यारो पेडो बे चतुराईनो, चतुरनी दूर बलाय ॥स०॥ चातुरी मूल ए पंच प्रकारथी, शास्त्रे एम कहाय ॥ स० ॥ वी० ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ तेवा माणसो जोया विना तुं बापडी शुं जाणे ? अने शुं तुं स्त्रीउनी हारमां गणाय बे ? हवे तुं खान पान करी जंढी पेहेरीने फांद काढी सुखे बेटी तेमां शुं श्रयुं ? ॥ ११ ॥ चतुराईनो पेडो तो न्यारोज बे. चतुरनी बात जुदीज बे ने चतुराई पांच प्रकारथी मले बे, एम शास्त्रमां कं बे. ॥ १२ ॥ तुजी ए रूमापंखेरू या, कौतुक निरखे अनंत ॥०॥ ताहरे रंकतणां गुलनी परे, सकल पदारथ कंत ॥ स० ॥ वी० ॥ १३ ॥ नेह अने निसदनेदनी वातकी, ते किम जाणी रे जाय ॥ ०॥ जे कोई नर परदेश फिर्यो हुए, मुंडी नवि ते जोलाय ॥स०॥वी ॥१४॥ अर्थ | ताराश्री तो पक्षी पण उत्तम बे के जेट जमीने अनंत कौतुक जुए बे ने तारे रांकना गोलनी जेम सर्व पदारथ एक स्वामीज बे ॥ १३ ॥ स्नेहज ने स्नेह वगरनी वात जाणी केम थाय ? जे मास परदेशमां फर्यो होय ते कोइ दुर्जनथी जोलवाई जाय नहीं. ॥ १४ ॥ घरसूरा ने वलिम पंमिया, ते ण समजूरे दोय ॥ स०॥ पण परभूमि फरी श्रादर लहे, विरला ते वारे कोय ॥०॥ वी० ॥ १५ ॥ पाम्यानुं फल एह जे दीजीयें, कोईने लव लेश ॥०॥ जीवितनुं फल एह जे जोईयें, कौतुक तीर्थ विदेश ॥ स०॥वी०॥१६ ॥ अर्थ || जे पुरुष घरशूरा ने मठपंडित होय ते बने जातना पुरुषो ऋणसमजु बे. पण जे परभूमिमां फरीने आदर पामे वो पुरुष कोई विरलो होय . ॥ १५ ॥ कोइने लवलेश पीए ते पाम्यानुं फल बे; जे देश फरी तीर्थ के कौतुक जोइए ते जीवितनुं फल बे ॥ १६ ॥ सासुयें इम परचावी वहूजणी, ए कही चौदमी ढाल ॥ स० ॥ मोहन विजय क व सांजलो, आगल वात रसाल ॥ स० ॥ वी० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ श्रा प्रमाणे सासुए पोतानी वहुने कयुं. या चौदमी ढाल कही, श्री मोहनविजय कहे बेके, विप्राणी ! सांजलो आगल रसिक वात श्रावशे. ॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ४३ ॥ दोहा॥ सासु वचन गुणावली, निसुणी जंपे एम ॥ बाई देश विदेश ते, जोया जाए केम ॥१॥ श्छाचारी कौतुकी, वली निरंकुश जेह ॥ मननी मोजे संचरे, देश विदेशे तेह ॥२॥ अर्थ ॥ गुणावली आवां सासुनां वचन सांजली बोली, हे ! बाइजी ! देश विदेश आपणाथी केम जोवाय? ॥१॥ जे स्वेच्छाचारी, कौतुकी, निरंकुश अने मनमोजी होय ते देश विदेशमा विचरे . ॥२॥ हूं नृपनी पटरागिणी, बाहिर पण न देवाय ॥ बाईजी कहो मुज थकी, एवातो किम थाय ? ॥३॥ तुम वचनामृतथी थयु, जोवाने मन जोर ॥ पण किम करीये चरणने, नाची जोवे मोर ॥४॥ अर्थ ॥ हुँ तो राजानी स्त्री बुं तो कहो बाजी माराथी बाहार पगशी रीते देवाय? अने ए वात केम बने? ॥ ३ ॥ तमारां वचनामृतथी मने देशांतर जोवानी जोरथी उत्कंग थने, पण केम करवू ? मोर नाचीने चरणनी सामुं जोवे बे तेम मारे पण .॥४॥ जे अणशिख्यु कीजियें, ते श्रावे किम वग्ग॥श्रामतरे तेतो नले, पण किम तरशे कग्ग ॥ ५॥ हूं अबला प्रीतम थकी, अधक्षण न रही दूर ॥ किम तेहथी करीये कपट, साखी ने शशि सूर ॥६॥ अर्थ ॥ जे शिख्यावगरनुं करवा जाईए ते वगमां केम आवे? पाणी उपर तरशे पण कागलथी शी रीते तराशे ? ॥ ५॥ हुं अबला बं; वली मारा प्रियतमधी अर्धी क्षण पण दूर रही नश्री, तो हवे तेनाथी कपट केवी रीते कराय ? चंड अने सूर्य तो तेना साही . ॥६॥ कवही कपट होवे प्रगट, जो जाणे प्राणेश ॥ तिहां थामा श्रावे नहीं, जोया देश विदेश ॥ ७॥ प्रीतम विण परदेशडे, नारीयें न जवाय ॥ पंखी पुरुष श्रने पवन, जिहां नावे तिहां जाय ॥७॥ अर्थ ॥ जो कदाचित् करेलुं कपट प्रगट श्राय अने ते प्राणेशना जाणवामां आवे तो ते वखते जोयेसा देश परदेश आडा आवे नहीं ॥ ७॥ कोइपण स्त्रीए प्रियतम विना परदेश जवाय नहीं. पदी पुरुष श्रने पवन ज्यां मरजी पडे त्यां जश् शके . ॥७॥ ॥ ढाल पंदरमी ॥ ॥ कपूर होवे श्रति उजलो रे ॥ ए देशी॥ वहुने वीरमती कहेरे, वातो विविध बनाय ॥ कारज जे नारी करे रे, ते नरथी नविथाय ॥ नविकजन, निरखो नारि चरित्र॥ एषांकण ॥१॥हरिहरब्रह्म पुरंदरा रे, वनितायें वश कीध ॥मुनिवर सरिषा जोलव्यारे, ग्रंथें नाम प्रसिद्ध ॥ न ॥२॥ अर्थ ॥ वीरमतीए वहुने विविध वातो बनावी कहेवा मांडी. अरे! बाइ, तमे शुं जाणो ! जे कार्य नारी करे ते नरथी पणा बनतुं नश्री. हे नविक जन! हवे नारी चरित्रने निरखो. ॥१॥ हरि, हर, ब्रह्मा ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ चंदराजानो रास. इंद्र जेवाने पण वनिता वश कर्या बे; अने मोटा मुनिवर सरखाने पण जोलवी नांख्या बे. जेमनां नाम ग्रंथमां प्रसिद्ध बे. ॥ २ ॥ जोलि नारि चरित्रनो रे, पाम्या नही कोई पार ॥ जे नवि जोलव्या नारिये रे, ते विरला संसार ॥ ज० ॥ ३ ॥ नारि विषम गिरिवर चढेरे, वश आणे अहिराज ॥ श्रति गंभीर नदी तरे रे, युवती कपट जिहाज ॥ ज० ॥ ४ ॥ ॥ अरे ! जो वहु ! कोइ पुरुष नारी चरित्रना पारने पाम्यो नथी. जे नारीश्री जोलवायानथी, तेवा पुरुषो संसारमा विरला बे. ॥ ३ ॥ नारी मोटा विषम गिरि उपर चडी जाय बे ने मोटा शेष नागने पण वश करे बे. कपटना वाहाणरूप युवति मोटी गंभीर नदीने पण तरी जाय बे. ॥ ४ ॥ सिंहकी नवि उसरे रे, खेले अखिला खेल ॥ राची जेदवी सुरलतारे, विरची विषनी वेल ॥ ज० ॥ ५ ॥ पीउथी जे बीदति रहे रें, तास ज नमक ॥ नारीने कुण शीखवेरे, चरित्र ग्रहीने हक्क ॥ ज० ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ स्त्री सिंहथीपण बीती नथी. ते बधा खेल खेली जाणे बे. जो ते राजी यइ होय तो कल्पलता नाराज थई हो तो विषलता बे ॥ ए ॥ जे स्त्री पतिथी जय पामती रहे तेनो जन्म कष्टरूप थायडे. नारीने नारी चरित्र हृदयमां बापी कोण शीखवे बे ? ॥ ६ ॥ मोर मा कु चितरे रे, हंस जणी गति सार ॥ कुण शीखवे मृगराजने रे, करिवर कुंज प्रहार ॥ ज० ॥ ७ ॥ जाति स्वभाव शिख्याविनारे, श्रावे गुण निरधार ॥ जीति चंद नरिंद्रनीरे, न धरीश चित्त मजार ॥ ज० ॥ ८ ॥ अर्थ ॥ मोरनां इंडांने कोण चीतरे बे ? हंसने गति को शीखवे बे ने गजेन्द्र उपर प्रहार करवाने केसरी सिंहने कोण बतावे बे ? ॥ ७ ॥ जाति स्वभावना गुणो शीख्या विनाज वे बे. तेथी हे ! वडु, तुं तारा मनमां चंद राजानी बीक राखीश नहीं ॥ ८ ॥ गगन गामनी विद्याथकी रे, जोशुं विनोद विख्यात ॥ रात रमी घरे श्रावसुं रे, होशे जाम प्रजात ॥ ज० ॥ ए ॥ जे रामत रमशुं निशारे, ते शुं जापशे राय ॥ चंचा पुरुष ते शुं वली रे, पुरुषमांहि कदेवाय ॥ ज० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ मारी पासे आकाशगामी विद्या बे, तेनाथी बधा प्रख्यात विनोद जोइ बधी रात्रि रमी ज्यारे प्रजात यशे त्यारे तो पाना घरे श्रावीशुं ॥ ए ॥ जे आपणे रात्रे रमत रमीशुं ते राजा शीरीते जाएं। शके ? जे पुरुषाकृति चामीयो कर्यो होय पुरुषमां गाय बे ? ॥ १० ॥ शुं ययुं चंद जो जाणशे रे, पण केम खेल मूकाय ॥ जेम मशक उतपातथी रे, सदन शुं मूकी जवाय ॥ ज० ॥ ११ ॥ वचन सुणी सासुतषां रे, हरषि गुणावली चित्त ॥ जोईश सासु सहायथी रे, नवली क्रीमा नित्य ॥ ज० ॥ १२ ॥ अर्थ || कदी चंद जाणे तोपण शुं थयुं ? आप खेल केम बोमी देवाय ? मशलाना उत्पातथी शुं घर मुकी नाशी जवाय बे ? ॥ ११ ॥ श्रावां सासुनां युक्तिवालां वचन सांजली गुणावली मनमां हर्ष पामी सासुनी सहायथी नित्य नित्य नवली क्रीडा जोश एम खुशी थवा लागी ॥ १२ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ चंदराजानो रास. ए सासुमांहे बडे रे, बहु विद्या श्रनिराम ॥ तेणे लेई नवि शके रे, नरपति महारूं नाम ॥ न ॥ १३ ॥ राणी सासुने कहे रे, हुंडं तम तणी गोद ॥ देखाडो सुखेरे, नवला देश विनोद ॥ ज० ॥ १४ ॥ - अर्थ ॥ वली श्रा सासुमा घणी विचित्र विद्या , तेथी राजा मारूं नाम लश् शकशे नहीं. ॥ १३ ॥ राणीए सासुने कह्यु, बाजी! हुँ तमारे श्राधीन बं. मने सुखेथी नवनवा देश अने विनोद बतावो. ॥१॥ पण बाजी मादरी रे, तुम हाथे ले लाज ॥ नही अलगी तुम वचनथी रे, तुमे माहरे शिरताज ॥ ज० ॥ १५॥ अद्भुत जे कौतुक हूवे रे, ते देखाडो श्राज ॥ जे कोइ बेठी नाचवा रे, धुंघटनुं हुं काज ॥ ज० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ पण हे ! बाईजी ! मारी लाज तमारा हायमां बे. हुं तमारां वचनथी जुदी रहीश नहीं, ! तमे रा शिरताज नगे.॥ १५॥ हवे जे अदनुत कौतुक होय ते मने बतावो. जे नाचवा बेठी तेने पनी घुघट करवानुं शुं काम ? ॥ १६॥ पण को मंत्र प्रयोगथी रे, वास करजो नूपाल ॥ मोहन विजये हेजथी रे, कही पनरमी सुंदर ढाल ॥ ज० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥पण कोइमंत्र प्रयोगथी तमे राजाने वश करजो. आप्रमाणे मोहनविजये सुंदर पंनरमी ढाल कही. ॥दोहा॥ वश श्रावी जाणी वहु, सासु कहे ते वार ॥ विद्या अवस्वापनी, मुज पासे निरधार ॥१॥ कहे तो नगरी जन जणी, करूं दृषदने तुल्य ॥ नृप करवो आपण वसु, तेहमां शुं बहु मुख्य ॥२॥ अर्थ ॥ पोतानी वहु वश अई एवं जाण। सासु वीरमती बोली के, मारी पासे अवस्वापनी विद्या .॥१॥जो कहेतो बधी नगरीना लोकोने पथर जेवा करी नांखु, तो पनी एक राजानो वश करवो तेमां शी बीसात ॥२॥ कौतुक जोवा जो थयुं, मन तुज विश्वावीश॥ तो सांजल तुजने कहं, अचरज एक जगीस ॥३॥ नगरी कोश अढारसे, विमल पूरी बे एक ॥ महिपति मकरध्वज तिहां नृप वश कीध अनेक ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ जो विश्वनां कौतुक जोवानुं बराबर मनथयु होयतो सांजल, तने एक मोटुं आश्चर्य कई ॥३॥ अहींथी अढारसो कोस उपर विमलपुरी नामे एक नगरी के तेमां मकरध्वज नामे राजा ने. तेणे अनेक राजाने वश कर्या बे. ॥४॥ तनुजा नामे प्रेमला, लबी सुंदर देह ॥ विधिना हाथे निरममी, निपट करीने नेह ॥ ५॥ सिंहलपुर सिंहरथ नृपति, सुत कनक ध्वज राज ॥ तेहने परणशे प्रेमला, मुहुरत रजनी आज ॥६॥ For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ तेने लक्ष्मीना जेवा सुंदर देहवाली प्रेमला नामे एक पुत्री बे. तेने विधि घणो स्नेह धरीने पोताने हाथे निर्माण करी बे. ॥ ए ॥ सिंहल पुरमा सिंहरथ नामे राजा बे, तेनो पुत्र कनकध्वज ज रात्रि मुहूर्त्तमते प्रेमलानी साथे परणशे ॥ ६॥ कौतुक जोवा सारिखुं, अबे खाजतो तेह | जो श्रावेतो तुज जणी, ॥ जे जोवा जेवुं ते कौतुक बे. जो तुं हुं देखाडुं तेह ॥ ७ ॥ वे तो तने ते बतावुं ॥ ७ ॥ ॥ ढाल सोलमी ॥ ॥ नदल बिदलिदे ॥ तथा ॥ सीता रूपे रूमी, जाणो खांबा डाले सुमी दो, सीता को हरी ॥ ए देशी ॥ सासु वहुने राणी, घणो हीयडे हेज जरांणी हो । संगत फल एहवां, तु सासुजी गुण धामी, हुंतो पूरण वखते पामी हो ॥ सं० ॥ १ ॥ कोश अढारसे इहांथी, एक रजनीये पहोंचीये किहांथी हो ॥ सं० ॥ कोई देवी होए ते जाय, पण मनुष्य थकी केम याय हो ॥ सं० ॥ २ ॥ अर्थ ॥ सासुनां आवां वचनथी राणीना हृदयमां हर्ष थयो. संगतनां फले तेवां होय बे. राणी कहे हो ! सासुजी, हुं पूर्ण वखते तमारा जेवी गुणीयल सासुने पामी बुं. ॥१॥ ते नगरी ऋहीं थी अढारसो कोशळे, त्यां एक रात्रिमां शी रीते पोची शकाय ? जो कोइ देवी होय तो ते त्यां जइशके. मनुष्यथी केम जइ शकाय ? ॥२॥ सुवहु सासु जंपे, बहु कोश सुणी किम कंपे हो ॥ सं॥ एक गगन गामिनी मुज पासे, विद्या परम विलासे हो ॥ सं०॥३॥ लाख जोजन जइ श्रावुं, पण एटलामां शुं जावं दो ॥ सं०॥ ए एक डगलुं माहारुं, चित्त कायर म करीश ताहारुं हो ॥ सं०॥४॥ अर्थ ॥ सासुए कह्युं, हे ! वहु सांजलो, घणा कोशनुं नाम सुणी केम कंपी चाले बे? मारी पासे श्राकाश गामी विद्या उत्कृष्टपणे विलास पामे बे ॥ ३ ॥ डुं तो एक लाख जोजन जइ वुं तेवी नुं, तो एटलामां शुं जावुं बे ? या तो मारुं एक डगलुं बे! तुं तारा चित्तने कायर करीश नहीं. ॥ ४ ॥ निसुणी गुणावली रंजी, जाणी वीरमतीने गंजी हो ॥ सं०॥ एहतो विद्या सारी, तुम बाइजी बलिहारी हो || सं०॥५॥ सुणी सासुजी, किम ताकको मेलशो तापी दो ॥०॥ हमाथी सजा जे पूराशे, ते जिहां लगे संध्या याशे हो ॥ सं० ॥६॥ अर्थ ॥ ते सांजली गुणावली राजी याने पोतानी सासुने चमत्कारी जाणी बोली के, बाइजी, ए विद्या तो बहु सारी, तमने बलिहारी . ॥ ९ ॥ हे सासुजी! मारी वाणी सांजलो, वो ताकडो शी रीते मेलवशो? हमणांथी हिं एवी सजा एकठी थशे के जे संध्या काल सुधी चालशे ॥ ६ ॥ एक पहोर निशा जब जावे, तव पीउडो महोले थावे हो ॥ सं०॥ वलि दास विलासे सजनी, इम करतां दोवे मध्य रजनी हो ॥ सं० ॥ ७ ॥ एक पड़ोर पोढे नृप रागे, वलि पाबले पहोरे जागे हो ॥ सं०॥ क्षण श्रवकाश न पावुं, तो हुं किम तुमसंगे श्रावुं हो ॥ सं० ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A עירון מנהגנגקוק ן גווווווווו Education International For Persona le del Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ४७ ॥ ज्यारे एक पोहोर रात्रि जशे त्यारे प्रियतम मेहेले श्रवशे, पबी हास विलास करतां मध्य रात्रि थइ जशे ॥ ७ ॥ राजा रागथी एक पोहोर पोढे बे, अने पनी पावले पोहोरे जागे बे, एवी रीते हुं एक क्षण पण अवकाश पामती नथी तो पनी हुं तमारी साथे शी रीते यावुं ? ॥ ८ ॥ तव सासु देइ दिलासा, वहु जोय तुं मुज विलासा हो ॥ सं०॥ एतो वे कार्य सोहिलो, आज तुज पति वशे व हिलो हो | सं॥ पीउ परचावीने विलासे, पढी यावजे तुं मुज पासे हो ॥ सं०॥ इम वहूने घणो परचावी, निज मंदिरे सासु श्रावी हो ॥ सं०॥ १० ॥ अर्थ ॥ सासुए दिलास आपी कयुं, अरे ! वहु ! तमे मारो विलास जुर्ज, या कार्य तो सेहेलुं बे, खाजे तारो पति वहेलो वशे. ॥ ए ॥ तुं तारा पतिने विलासथी संतुष्ट करी ने सुवाडी मारी पासे यावजे . श्राप्रमाणे पोतानी वहुने घणो संतोष पी सासु पोताने मंदिरे यावी. ॥ १० ॥ सासुनां वचन संजारे, मन राणी एम विचारे हो | सं० ॥ मुज सासुतो गुण पात्र, ए तो घर सरखी नही पात्र हो ॥ सं० ॥ ११ ॥ ए तो कहि गई वातो मोहोटी, पण दीसे वे सासु खोटी हो ॥ सं०] ० ॥ श्राज श्रावशे जो व हिलो प्यारो, तव एहनो श्रावे पतियारो हो ॥ सं० १२ ॥ ॥ पी गुणावली सासुनां वचन संजारी मनमां विचार करवा लागी के, मारी सासु गुण पात्र बे. घरनी योग्यता प्रमाणे ते ठीक न कहेवाय. ॥ ११॥ ए सासु तो मोटी मोटी वातो कही गई, प ते खोटी लागे बे. जे जो प्रियतम वेहेला यावे तो तेनो पतियार मालम पडी जशे ॥ १२ ॥ दवे वीरमती कपटाई,तुमे सांजलो सहु चित्तलाई हो ॥ सं० ॥ संध्या पहिली सद्या, ति साधवा मांड विद्या हो ॥ सं० ॥ १३॥ सुर प्रगट्यो वचने बांध्यो, किम नारी मुजने श्राराध्यो हो ॥ सं०॥ साजा श्राकर्ष्या खर्थे, कोइ कोइने तेडे नहीं व्यर्थे हो ॥ सं०॥ ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हवे अहिं वीरमतीए जे कर्यु ते सौ चित्त दने सांजलो. तेणीए संध्या पेहेली पोतानी विद्या साधवा मांडी. ॥ १३ ॥ तेवामां विद्यानो अधिष्ठायक देव जे वचनथी बंधायो हतो ते प्रगट थयो, ते कयुं. अरे ! स्त्री ! तें मने केम आराध्यो? ते बोली. में कोई कार्यने कार्थे तमारूं आकर्षण क बे. कोइ कोने वृथा तेडे नहीं. ॥ १४ ॥ को हवो रचो तमे फंद, मुजपुत्र बे नृप चंद हो ॥ सं०॥ कांई तुमर्थ एहवं यावे, सुत दिवस ते घर वे दो ॥ सं०॥१५॥ सुर कड़े एहमां शुं कर, अंजली जलमां शुं तर हो ॥ सं०॥ राणी मन वात ते जाणी, देव रचे ते सुणो प्राणी हो ॥ सं० ॥ १६ ॥ अर्थ || हे देव! तमे कोइ एवो फंद रचो के मारो पुत्र चंद बे ते हुं धारुं तेम करे. तमाराथी कांई ऐ बने के, ते मारो पुत्र दिवस बतां घेर आवे? ॥१५॥ देवताए कयुं, अरे बाइ, एमां ते शुं करवुं बे? अंजलि जेटला जलमा शुं तर ? राणीना मननी वात जाणी हवे देवता जे रचे ते सर्व सांजलो. ॥ १६ ॥ वीरमती शोलमी ढाले, करे कपट ते पुत्र विचाले हो ॥ सं० ॥ कहे मोहन शीयल टंको, तस वाल न होवे वंको हो ॥ सं० ॥ १७ ॥ सोलमी ढाले वीरमती कपट करी पुत्रने चलित करे बे. मोहन विजय कहे बे के, शीयमां टंक एवा ते चंदनो एक वाल पण वांको नहीं थाय ॥ १७ ॥ अर्थ | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ॥दोहा॥ उर्जन जन मन जेहवी,श्याम घटा घन घोर ॥ उत्तर वाली उन्हही, मोर करे कींगोर ॥ १॥ दह दिश दमके दामिनी, जिम मनमथ कर वाल ॥ गुहिरो अति गाजे गयण, कोरण वहे विचाल ॥२॥ अर्थ ॥ ते समये उर्जन लोकोना मन जेवी उत्तरमांधी मेघनी घन घोर श्याम घटा चडी आवी अने मोर टौका करवा लाग्या.॥१॥ जाणे कामदेवनी तरवार होय तेवी विजली दशे दिशामां चमकवा लागी. आकाशमां गर्जना श्रवा लागी अने चारे तरफ घमघोर अश् रह्यु.॥२॥ जलधारा निबम पडे, शीतल पवन प्रसार ॥ सकर ककर सम उडे, उममंडे जलधार ॥३॥ एहवी धनमाला रची,अति सुविशाला जाम॥ कहीने वीरमती जणी, सुर पोतो निज ठाम ॥४॥ अर्थ ॥ जलनी घाटी धारा पडवा लागी; शीतल पवन प्रसरवा लाग्यो. साकरनी जेम करा उडवा लाग्या अने झमी साथे जल धारा पमवा लागी. ॥३॥ श्रावी विशाल मेघमाला रचीने अने ते वीरमतीने जणावीने ते देवता पोताने स्थाने चाली गयो. ॥ ४ ॥ प्रसर्यो घन तिम चिहुं दिशे, सत्ता विसर्जीराय ॥ मंदिर श्राव्यो दिन बते,राणी विस्मय थाय॥५॥सासु वचन तणो थयो,राणीने विश्वास । दोकर जोमी गुणावली, उत्नी प्रीतम पास ॥६॥ अर्थ ॥ आवी रीते चारे दिशामां मेघने प्रसरी गयो जोइ राजाए सजाने विसर्जन करी अने दिवस उतां ते राणीना मंदिरमां आव्यो. ते जोइ राणी गुणावली विस्मय पामी गइ. ॥ ५॥ आधी राणीने सासुना वचन उपर विश्वास आव्यो. गुणावली बे हाथ जोडी पोताना प्रियतमनी पासे उनी रही. ॥६॥ आज घणा वहिला तमे, श्राव्या मंदिर एम ॥ दीसो श्रामण मुमणा, कहो प्राणेश्वर केम? ॥७॥ अर्थ ॥ ते बोली हे ! प्राणेश्वर ! आज तमे मंदिरमा घणा वेला पधार्या अने श्राम आकुल व्याकुस लागो . तेनुं शुं कारण ते कहो. ॥ ७॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ श्रावी उरहीजा परी हे॥के वेरण मत तरसावे जीवके॥रतन सोनारमी हे एदेशी॥ चंद कदे राणी जणी हे॥ के साजन, विणसतु वरसे मेहके ॥ नवली चंदनी हे, के ललना केरां जुन चरित्र के ॥ शीतल पवन ऊकोलथी हे ॥ केसा ॥ कंपे कोमल देह के ॥ न॥२॥ गंगातट वेलु जिसी हे.॥केसा॥ सखरबिदाई सेज के ॥ परनां उसीसां धर्यां हे ॥ केसा॥ राणी मनमे हेजके ॥ न॥२॥ अर्थ ॥ चंद राजाए राणीने कह्यु, प्रिया, श्रा ऋतु विना मेघ वर्षे ने, (हे नविन चंदनी नवल नारीनुं चरित्र जु.) हे! बाला, आ शीतल वायु वाय बे, जेश्री मारी कोमल काया कंपी चाले . ॥ १॥ ते For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. वखते गंगानी रेती जेवी कोमल शय्या बिगवी अने सुंदर उसीका मुकवामां आव्यां, पाथी राणीना मनमा आश्चर्य थयु.॥२॥ बेगे पर्यंके पीउदे ॥ केसा ॥ घरमां बांधी कान के ॥ नारी थापे नेहशु के॥ केसा॥ मृगमद अंबर पानके ॥न॥३॥ श्रासव नवनव नांतिनां हे ॥ केसा॥ राणी करावे पानके॥नारायणादिक तेलना हे॥केसााकरे अन्यंग विधान॥न॥ अर्थ ॥ प्रियतम कान बांधी घरमां पलंग उपर बेगे. राणी गुणावली स्नेहथी कस्तुरी अने अंबर श्रापवा लागी. ॥ ३ ॥ वली राणी नव नवी जातना आसव ( सरबत ) ना पान करावी ने नारायण प्रमुख सुगंधी तेल चोलवा लागी. ॥ ॥ अगर चंदनअंगीठिका हे॥ केसा॥ पसर्यो परिमल पूके ॥ तेणे नृप तनुश्री थयो हे केसा॥ शीत परानव पूरके ॥न॥५॥ सुखजर सेजें पोढीउहे ॥ केसा॥ चंद चतुरतेणि वारकेचतुरा चरण चंपी करे हे॥केसााथादर विविध प्रकारकेन०६ अर्थ ॥ अगर चंदननो सुगंध प्रसराव्यो. आथी राजाना शरीरमां शीतनो परानव श्रइ गयो. अने ते दूर अश् गइ. ॥ ५॥ पनी सुखश्री नरपूर अश् चतुर चंदराजा शय्यामां सुश् गयो. अने चतुरा गुणावली विविध प्रकाराना आदरथी तेनां चरणने चांपवा लागी. ॥६॥ राणी जगाडे रायने हे॥केसा॥ दणक्षण सो सो वारके ॥ क्षणवारें करीरीसडीहे॥ केसा॥ वनिताने वसु धारके ॥नाश्म करतां संध्या थई दे॥केसा॥ पाम्यां चंद विश्राम के ॥ राखे सुरत जाग्या तणी हे ॥ केसा॥ वनिता पगपग जामके ॥ना॥ अर्थ ॥ वली राणी गुणावली राजाने जगामवा लागी, दणे क्षणे सो सो वार जगाडे ने अने वली क्षणवारे ते वनिता रीस करवा लागी. ॥ ७॥ एम करतां संध्याकाल श्रयो एटले चंद राजा विश्रांत अश् सुइ गयो. राणी पोहोरे अने पगले पगले जागवानी सुरत राखवा लागी. ॥७॥ उठे क्षण बेसे वली हे ॥केसा॥चंचल राणी चित्तके ॥ संजारे ते गुणावली हे॥ केसाासासूनो संकेत के ॥नाए॥ निरखे अंबर अंतर हे ॥केसा॥ कपट निसाये नूपके ॥राणी नवि जाणी शकी हे ॥ के० ॥ वालिम केरुं खरूपके ॥ न॥१०॥ अर्थ ॥ ते चंचल गुणावली कण वार उपती अने क्षणवार बेसती हती अने चपल चित्तथी सासुनो संकेत संजारती हती. ॥ ए॥ राजा कपट निजा करी वस्त्रनी अंदरथी जोवा लाग्यो. पतिनुं आ आचरण राणी जाणी शकी नहीं. ॥ १० ॥ वनिता चल चिंता घणी हे ॥केसा॥ जाणीने राजानके॥ मांडी मनथी विचारणा हे ॥केसााएतो कोश्क विज्ञानके ॥न॥११॥ कां करे एह फुःशीलता दे ॥केसा॥प्रगट - सुशीला एहके॥बिगमी कोश्क फुःसंगथी हे॥॥ एहमां नही संदेह के ॥न॥१२॥ अर्थराजा चंद विचारमा पडयो के, आ वनितानुं चित्तचपल देखाय . तेना मनमां को विचार उत्पन्न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अयो बे. अथवा कांइक जाणवानुं बे. ॥ ११॥ आ स्त्री सुशीला ने एतो प्रगट पणे जणाय बे. ते बता आवी 5:शीलता केम करे ? अथवा कोई संगथी ते बगडी जे एमां संदेह नथी. ॥ १२ ॥ मुज सरिखोप्रीतम बते हे॥केसा॥ केहथी बांधी प्रीतक।नीच संगति नारी हुएहे॥ केसा॥ एहवी दीसे रीतके ॥न॥१३॥ सोहेला सोवन नवी गमे हे॥के॥ कुत्सित टंकण खारके ॥ जिम मूर्षित अंगारथी हे ॥०॥ थिर रहे ए घनसारके ॥ न० ॥१४॥ अर्थ ॥ मारा जेवो पति बतां तेणीए कोनी साथे प्रीति बांधी हशे? अथवा नीचना संगयी नारी बगमे बे, एवी रीति जे. ॥ १३ ॥ नगरो टंकणखार उत्तम एवा सुवर्णने गमतो नथी अने अंगाराथी मूर्ग पामेलु कपूर स्थिर रहे बे. ॥१५॥ प्रिय अंगार चकोरने हे॥केसा॥ बकुलने मदिरा दायके ॥ जो कोई वस्तु नली हुवे हे ॥ केसा ॥ मध्यम तास सुहायके ॥ न० ॥ १५ ॥ तिम माहारी पटरागणि हे ॥ केसा ॥ श्म मुजने नरमाय के ॥ किहां श्क जावा मन करे हे ॥ केसा ॥ पण मुजथी संकोचायके ॥ न० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ चकोर पक्षीने अंगारा प्रिय लागे जे. बोरसलीना वृदने मदिरा पल्लवित करे बे. जो कोइ जणी वस्तु होय तेनी सहाय मध्यम होय . ॥ १५ ॥ तेम आ मारी पटराणी मने नरमावीने कां जवानुं मन करे ने पण ते माराथी संकोचाय बे. ॥१६॥ पण किम माह्या श्रागले ॥ केसा ॥ चाले कपट डूमाल के ॥ सत्तरमी नाखी जली दे ॥ केसा ॥ मोहन विजये ढाल के ॥ न० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ पणा डाह्या माणस आगल कपटनो डोल शी रीते चाली शके ? श्रा प्रमाणे मोहन विजये सत्तरमी ढाल कही बे. ॥१७॥ ॥दोहा॥ बल ताकी संध्यासमय, गुणावली गजगत्ति ॥ गृहथी बाहिर परवरी, नरपति लही निरति ॥ १॥ खुणसधरी लेई खङ्ग, कंते कीधी केम ॥ मली गश् काली निशा, न लह्यो नारि निवेड ॥२॥ अर्थ ॥ संध्यानो समय श्रयो एटले गुणावली उलताश्री गजेन्जना जेवी चाल चालती राजाने निजामां मूकी घरनी बाहेर नीकली. ॥ १॥ पळवामे राजा तीक्ष्ण खड्ग लई तेनी केमे पड्यो. काली घोर रात्रि थई गई. स्त्री तेने जोर शकी नहीं. ॥२॥ थव संध्या सासु जूए, वधू तणी ते वाट ॥ एहवे उघमाव्यां जाई गुणावलीये कपाट ॥३॥ वीरमती हरखी घj, वहुने श्रादर दीध॥कीरति निज विद्यातणी, लघुताथी तिणे कीध॥४॥ अर्थ ॥ अहीं सासु वीरमती संध्याकाल श्रयो एटले वहुनी वाट जोती हती. तेवामां गुणावलीए श्रावी कमाड उघडाव्यां. ॥ ३॥ वीरमतीए घणो हर्ष धरी वहुने आदर आप्यो अने तेणीए लघुताथी पोतानी विद्यानी कीर्ति करी.॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 足疗足另又只反反? CLERMMA VITI LILL III lill A | Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. वचन थकी श्रावी हां प्रीतमथी प्रचन्न ॥ नवि मुकाणो तुम तणो, बाश्जी दाबिन्न ॥ ५॥ जेह हवे मुजने कहो, ते हुं करूं प्रमाण ॥ वहिली जिम जाजं वली, जागशे जीवन प्राण ॥६॥ अर्थ ॥ वहु बोली-बाजी, हुँ तो तमारा वचन उपर प्रियतमथी बुपी रीते अहिं आवी . तमारो प्रेम माराथी मुकाणो नहीं. ॥ ५॥ हवे मने जे कहो ते प्रमाणे करूं अने जेम बने तेम वेहेली जाऊं. नहीं तो मारा जीवन प्राण जागी जाशे. ॥६॥ चंद नृपति द्वारांतरें, अवलोके अवदात ॥ ___थ संपे सासू वहु, करवा मांगी वात ॥७॥ अर्थ ॥ चंदराजा घार उपर उनो रही आ चरित्र जुए जे. सासु वहुए एकसंप श्रश्वात करवामांडी.॥७॥ ॥ढाल अढारमी॥ ॥ नाद अबोला बेश रह्या ॥ ए देशी ॥ वीरमती कहे रे वह, उपवन लगे जावो ॥ कंबा एक कणे. रनी, दोडी लेश्यावो॥९॥ नारी कांई जाणे नही,मति तु क हावे ॥ ते पण राति पडे, पानहीश्री जावे ॥ ना ॥२॥ अर्थ ॥ वीरमती वहुने कहे , तुं उपवन सुधी जा अने कणेरना वृदनी एक कंबा (सोटी) लइ दोडती आव. ॥१॥ राणी गुणावली कांइ जाणती नश्री. स्त्रीनी मति तुम्ब होय , ते पण रात पडे त्यारे गमे ते करे .॥२॥ मंत्री थापीश तुजने, तेद कणेयर कंबा ॥ जिहां प्रीतम पोढ्यो हुवे, जाजे तिहां अविलंबा ॥ ना ॥३॥ देजे तुं निरजय थकी, तस उबका तीन॥ तेहथी चंद नरेशरू, होसे निजाधीनना०॥४॥ अर्थ ॥ ते करेणना वृदनी कंबा ढुं तने मंत्री आपीश. पनी ज्यां तारो पति पोड्यो होय त्यां सत्वर ज पहोंचजे ॥३॥ ते कंबावडे तुं निर्जय अश्त्रणवार उबकारजे एटले ते चंदराजा निजाधीन अश्जशे ॥३॥ श्रावणुं प्रात समय थये, आपण बीडं ज्यारे ॥ चंद महीपति जागशे, सेजमीथी त्यारे ॥ ना ॥ ५॥ वचन सुणी सासूतणां, वहु तुरत उजाणी ॥ रात तणी राजातणी, कांश नीति नाणी ॥ ना० ॥६॥ अर्थ ॥ ज्यारे आपण बन्ने प्रातःकाले आवशुं त्यारे चंदराजा शय्या उपरथी जागशे.॥ ५॥ आवां सासुनां वचन सांजली तत्काल वहुउजमवाली श्रइ. ते वखते तेणीने रात्रिनो के राजानो कांइ नय लाग्यो नहीं.।६। राजा पण केडे थयो, जाणीने अबला ॥ पण नजक समजे नही, सांकल्या एणे सबला ॥ ना० ॥७॥ वाडीमाहे राणी ग, निशि निपट अंधारी ॥ ते सघवं खो, दिवा, बीहे जे जे नारी॥ ना० ॥ ७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ राजा चंद तेने अबला जाणी केडे पड्यो. पण नजिकपणे जाण्यु नहीं के ते श्रवलाए कोश्क सबलाने सांकली लीधा . ॥ ७॥ अंधारी रात्रे राणी एकली वाडीमा गइ. कहेवाय ने के जे स्त्री दिवसे पण जय पामे . पण ते सघलुं खोटुंबे.॥॥ कुशली कंबा कणेरनी, राणीये लीधी ॥ तत्क्षण ते श्रावी फरी, सासूने दीधी ॥ ना॥ ए॥ चंद तो श्राव्यां पाधरो, जिहां निज सजा ॥ जाणे हमणां श्रावशे, कंबा ले नजा ॥ ना ॥१०॥ अर्थ॥ राणीए कणेरनी कुमली कंबा लीधी अने तत्काल पानी फरी ते सासुने आपी.॥ए। राजा चंद परजार्यो ज्यां शय्या हती त्यां आव्यो. तेणे जाण्यु के ते स्त्री कंबा लश्ने पोतानी शय्या पासे हमणा श्रावशे. सेज उपर एक वस्तुनो, करी पुरुष पोढाड्यो ॥ चंदनृपे तेद उपरे, एक वस्त्र उढाल्यो ॥ ना० ॥१०॥ दीपक पुंठे विपी रह्यो, जिम स्त्री नवि देखे ॥ पुरुषतणा बल श्रागलें, नारी कुण लेखे ॥ ना ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ राजा चंदे वस्त्रनो पुरुष करी शय्या उपर सुवार्यो भने तेनी उपर एक वस्त्र उढाडयु. ॥११॥ पोते दीपकनी पळवाडे स्त्री देखे नहीं तेम लुपाइ रह्यो. पुरुषना उल आगल स्त्री शा लेखामां ? ॥१५॥ वीरमतीये वहुमणी, वांसे करथापी ॥ ते कणयरनी कांबली, मंत्रीने थापी॥ ना० ॥१३॥ जयनाणीश मन नूपनो, धीरज चित्त धरजे ॥ जे विधि में नाख्यु अजे, ते विधि तुं करजे ना०॥१५॥ अर्थ ॥ पली वीरमतीए वहुना वांसामा करनो थापो मार्यो भने ते कणेरनी कंबाने मंत्रीने आपी. ॥१३॥ हे वधू, तुं मनमां राजानो जय राखीश नही अने चित्तमां धीरज राखजे. अने जे विधि में कह्यो ने ते विधि तुं करजे. ॥१४॥ राणी ताम उतावली, कंबा लेश् श्रावी ॥ जुली चतुर थातुरी, नवि जोयो जगावी ॥ ना० ॥ १५ ॥ कपट पुरुषने उपरे कंबा उब कावी ॥ चंद चिंते धन्य मातने, वहु रूडी शीखावी ॥ ना ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ राणी गुणावली कंबा लईने उतावली उतावली आवी अने ते चतुर अश् ने नुली गई अने पोताना स्वामीने जगाडी पण जोयो नहीं. ॥१५॥ तेणीए श्रावी पेला कपट पुरुष (बनावटी पुरुष) नी उपर कंबाने त्रणवार पगडी. दीवा पाउल उनेलो चंद मनमां चिंतवे के, माताने धन्य ने के तेणे वहुने सारी शिक्षा आपी. ॥ १६॥ राणी कृतकृत्या थर, गश् सासू पासे ॥ नृपपण चरित्र निहालवा, थयो नारीने वांसे ॥ ना ॥ १७ ॥ तिम जश् उन्नो छारांतरे, नवि बीहे राजा ॥ कठण हृदय बीहे कीशु, लख वाजे जो वाजा ॥ ना० ॥२७॥ अर्थ ॥ राणी कृतार्थ थई सासु पासे आवी, राजा पण तेमनुं चरित्र जोवाने तेमनी पाउल पड्यो. ॥ १७॥ राजा प्रश्रमनी जेम बार पासे उत्तो रह्यो. जरा पण जय पाम्यो नहीं. लाखो वाजां वागे तो पण जे कठण हृदयनो होय ते बीए नहीं. ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. मोहन विजयें अढारमी, कही ढाल पवित्र ॥ श्रोता श्रागल सांजलो, सासु वहुनां चरित्र ॥ ना० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ मोहन विजये था अढारमी पवित्र ढाल कही. हे ! श्रोता जनो, हवे ते सासु वहुनां चरित्र सांजलो. ॥दोहा॥ वहुयें सवि मामी कह्यो, कंबतणो अधिकार ॥ दीधी शाबासी घणी, सासुये तेणिवार ॥ १॥ जाखे एम गुणावली, तुमे अवधारो मात ॥ नगरलोक जागे सह, रखे लहे को वात ॥२॥ अर्थ ॥ वहुए श्रावी कंबानुं बहु वृत्तांत मांझीने कह्यु, ते सांजली सासुए तेने घणी शाबासी आपी. ॥१॥ गुणावलीए कह्यु, हे माता, एक वात विचारो. श्रत्यारे नगरना सर्वे लोक जागे के रखे कोश वात जाणी जाय. ॥२॥ जो कोश् नृपने जश् कहे, तो मुज गति शी थाय ॥ तेणे ए नगरी लोकनो, कोश्क करो उपाय ॥ ३ ॥ कहे सासू सुण रे वहू, मुजने तुं शुं कहीश ॥ माहरे तो श्म हिज गया, पापड वणतां दिश ॥४॥ अर्थ ॥ जो कोई आवात जाणी राजाने कहेशे, तो पनी मारी गति शी थाय ? तेथी तमे आ नगर लोकोनो कांक उपाय करो. ॥ ३ ॥ सासू बोली-हे वहू, तुं मने शुं कहीश! माहरे तो तेवा केटला एक पापड वणता दीसता हता. ॥४॥ मुज गृहछारावधि लगे, न होए नींद प्रवेश ॥ पण नगरी जन सवि थशे, निनावश सुविशेष ॥५॥ चंद विचारे ढुं हां, उनो एहने छार ॥ ए विद्या मुज उपरे, नही चाले निरधार ॥६॥ अर्थ ॥ मारा घरना घार सुधी निजानो प्रवेश श्रवानो नथी. बाकी सर्वे नगरीना लोको विशेष निजाने वश थर जशे. ॥ ५॥ अहिं चंदराजाए विचार्यु के दुं तेना घरने पार उनो लु तेथी ए विद्या मारी उपर चालशे नहीं. ॥६॥ वहुने बेसारी तिहां, वीरमती स्वयमेव ॥ गर्न गृहमांहे गझआनंदे तत्खेव ॥७॥ अर्थ ॥ पळी वीरमती वहुने त्यां बेसारी पोते तत्काल आनंदश्री अंदरनां गृहमां चाली गइ.॥॥ ॥ ढाल जगणीशमी ॥ ॥ गणां वीणण हुँ ग रे ॥ ए देशी॥ वीरमतीय रच्यु रे, अनुपम गर्दनी रूप ॥ सनेहा सांजलो ॥ छारतणे बिन रहीरे, निरखे कौतुक नूप ॥ स ॥१॥ गर्दलरूपे ते करे रे, क्रूरस्वरे खर नाद ॥ स ॥ तिणे नगरी मांहे थयो रे, निमानो उन्माद ॥ स ॥ २ ॥ अर्थ ॥ पनी वीरमतीए गधेडीचं रुप लीधुं. सर्वे स्नेही सांजलजो. राजाचंद घारनां विषयी ते कौतुक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ चंदराजानो रास. तो हतो. ॥ १ ॥ पीए गधेडीना रूपे क्रूर स्वरथी खरनो नाद कर्यो, तेथी श्राखी नगरीमां निशानो उन्माद वधी पड्यो. ॥ २ ॥ नगरी लोक मूति ययारे, वीरमतीयें विरुद्ध ॥ स० ॥ चक्रीदलजो नीसरे रे, तो पण न लहे शुद्ध ॥ स० ॥ ३ ॥ इम विद्या श्रवस्वापिनीरे, मूकी मन उलास ॥ स० ॥ सासू रूपे मूलगेरे, श्रावी वहुअर पास ॥ स० ॥ ४ ॥ ॥ वीरमतीनी विरुद्ध एवा नगरीना लोको मूति थई गयां. ते वखते कदी चक्रवत्तनुं दल नीकले तोप कोने शुद्ध रहे नहीं. ॥ ३ ॥ श्रा प्रमाणे वीरमतीए मनमां उल्लास लावीने छावस्वापिनी विद्या मूकी, पबी पोताना मूल रूपे ते वदुनी पासे वी. ॥ ४ ॥ रे हू में केद कर्फ्यू रे, नगरी लोक विकाय ॥ स० ॥ बार मणो नाजो घुरे रे, तोहे पण शुं थाय ॥ स० ॥ ५ ॥ चालो चंदनी वामीयें रे, तिहां बे प्रथम सहकार ॥ ० ॥ तहां बेसीने जाय शुं रे, विमल पुरीयें लगार ॥ स०॥६॥ ॥ ते बोली- अरे वहु, में केवुं कर्यु ? नगरीना लोकं अचेत थर गया. कदि या वखते बार मनो नाजो धुरे तोपण शुं थाय ? ॥ ५ ॥ हवे चालो चंदनी वाडीए जइए, त्यां एक बानुं वृक्ष बे, ते उपर बेसीने विमलपुरीमां जइ पहोंचीशुं ॥ ६॥ नगरी कोश अढारसें रे, वे अलगी यति तेह || स० ॥ पण तुजने श्रनिमेषमें रे, देखामीश धरी नेह ॥ स० ॥ ७ ॥ निसुणी वचन विमातनां, रे सहसा चंद भूपाल || स० ॥ वाडी मांदे गयो वही रे, दीगे वृक्ष रसाल ॥ स० ॥ ८ ॥ अर्थ ॥ ते नगरी अही थी अढारसो कोश लगी बे. तो पण एक निमेष मात्रमां तने स्नेहथी देखाडीश. ॥ ७ ॥ श्रवां परमातानां वचन सांजली राजा चंद वाडीमां गयो त्यां एक बानुं वृक्ष जोवामां श्रव्यं ॥ ८ ॥ ae कोटर मiही रह्यो रे, बानो लेइ करवाल ॥ स०॥ कौतुक जोवा चंदनुं रे, चित्त थयुं उजमाल ॥ स० ॥ एं ॥ नृपचिंते मुजनारिमां रे, अवगुण नही एक टांक ॥ स० ॥ मुंगर फेरविया फिरे रे, ए सवि मातनो वांक ॥ स० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ ते वृक्षनी कोरमां हाथमां खड्ग लड़ गुप्तरीते रह्यो, छाने चंदनुं चित्त कौतुक जोवाने उत्कंति. ॥ ए ॥ राजाना मनमां एम श्राव्युंके, मारी स्त्री गुणावली मां जरापण अवगुण नथी. मुंगरने फेरववो होय तो फरी शके या बधो मारी अपर मातानो वांकडे. ॥ १० ॥ ए कोटर मां रही रे,जोजं सकल चरित्र ॥ स० ॥ नारी विमलपुरी जाइ रे, शुं शुंकरशे विचित्र ॥ स० ॥ ११ ॥ एहवे बिंदु सासू वहु रे, श्रावी तिऐ राम || स० ॥ नृप चिंते लेतीखरे रे, बीजे तरु विश्राम ॥ स० ॥ १२ ॥ ॥ हवे कोरमां रहीने तेनुं बधुं चरित्र जोवुं, ते नारी विमलपुरीमां जईने शुं शुं विचित्र करशे! ॥ ११ ॥ एहवामां सासु ने वड्डु बने तेउद्यानमां आव्यां. पेला कोटरमां बेठेला राजा चंदने चिंताथ के रखे ते बीजा वृक्षमां विश्राम करे ! ॥ १२ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SEE ATITE PUEDAS OTA KOD BIT F . 09 DAW me o WA 22 n Lucalianalerna soal Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ५५: तो इहां रहीश हुं फूलतो रे, कौतुक जोश केम ॥ स० ॥ तिथे सहकारे एहवेरे, या बहुधरी प्रेम ॥ स० ॥ १३ ॥ नृपने तिषे निरख्यो नही रे, कोटर . मां ॥ ० ॥ बेठी सहकारे चढीरे, सासुबहु हरषेण ॥ स० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ जो तेम थशेतो पनी हुं हिंया फुलतो रहीश ने पी तेमनुं कौतुक शी रीते जोश ! राजा एम चिंतवेळे त्यां बने स्त्री प्रेम धरीने ते वृक्षपासे आवी ॥ १३ ॥ तेमणे कोटरमा रहेला चंदरा जाने निरख्यो नही अने ते बने सासु वहू हर्ष धरती बाउपर चडीबेटी ॥ १४ ॥ वीरमतीए सहकारनेरे, दीधो कंब प्रहार ॥ स०॥ विमलपुरी देखाडतुं रे, श्रमने हो सहकार ॥ ० ॥ १५ ॥ वीरमती वचने तदा रे, चाल्यो तरु श्राकाश ॥ स० ॥ देव विमान तपी परे रे, अप्रतिहत गति तास ॥ स० ॥ १६ ॥ अर्थ | पी वीरमतीए आंबाना वृक्षनी उपर पेली कंबानो प्रहार कर्यो ने कह्यं के, हे श्रांबानावृक्ष तुमने विमलपुरी देखाड ॥ १५ ॥ वीरमतीनां श्रवां वचनथी ते वृक्ष देवताना विमाननी जेम न काय तेवी रीते आकाश मार्गे चाल्युं ॥ १६ ॥ इगणीशमी ढालमांरे, पाम्यो नृपति प्रमोद ॥ स० ॥ मोहन विजय कदे सुणो रे, श्रगल विविध विनोद ॥ स० ॥ १७ ॥ अर्थ | उगणीशमी ढालमां राजा चंद घणो हर्ष पाम्यो. श्री मोहनविजय कहे बे के, आगल विविध प्रकारनो विनोद थशे. ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ नृप कोटर आवरणथी, रह्यो अप्रगट सुजाण ॥ जिस्यो, जीवने केवलनाथ ॥ १ ॥ मनथी पहिलो सहकार || निरखे देश विदेश नृप, वन उपवन ॥ वृना कोरना आवरणथी अप्रगट रहेलो राजा चंद केवल आवरणश्री आवृत एवा जीवने केवल ज्ञाननी जेम देखा तो हतो. ॥ १ ॥ ते बानुं वृक्ष मनथी पण वधारे वेगमां चालवालाग्यं. मां रहेलो राजा चंद देश, विदेश, वन तथा उपवनना विस्तारने जोतो हतो. ॥ २ ॥ Jain Educationa International केवल श्रावरणे संचरे, गगने ते विस्तार ॥ २ ॥ चाले चंद्रातपविचे, ते तरु मंत्र प्रजाव ॥ जेवी कीर समुद्रमां, तरती दीसे नाव ॥ ३ ॥ रे रे निरख गुणावली, वीरमती कहे एम ॥ नगरीजं जो केहवी अबे, सुंदर अलका जेम ॥ ४ ॥ अर्थ | मंत्रना प्रजावथी चंद्रनी कांतिमां चालतुं ते वृक्ष, दीर समुद्रमां जेम तरतुं नाव चाले तेम देखातुं हतुं ॥३॥ वीरमती बोली- हे गुणावली, जो, कुबेरनी अलका नगरी जेवी या नगरी केवी सुंदर लागे बे१४ नवरंगा गंगा निरख, पुण्य प्रसंगा जेह ॥ कलिमल कंद निकंदवा, असि पुत्री समएट् ॥ ५ ॥ इंदीवर नयणे निरख, कालंदी पंकिल ॥ ए धरणी तरुणी तो, जाप सही धम्मिल्ल ॥ ६॥ For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ जो, आ नवीन रंगवाली गंगानदी , जेनो प्रवित्र प्रसंग ने एवी ए गंगा कलिकालना मल रूपी कंदने नाश करवाने तरवार जेवी . ॥ ५॥ आ कादववाली श्याम यमुना नदी के तेने तारा नेत्र रूपी कमलश्री निरख. ते नदी पृथ्वी रूपी स्त्रीनो जाणे चोटलो होय तेजी लागे . ॥६॥ कर संज्ञायें गगनथी, निरखाडे हित श्राण ॥ देश नगर वन शैल पह, वापी नदीथ निवाण ॥७॥ अर्थ ॥ वीरमती हेतकरी हाधनी संज्ञाथी आकाशमारही नव नवा देश, नगर, वन, पर्वत, प्रह, वापिका, नदी अने नवाणो गुणावलीने बतावती हती. ॥७॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ ॥ श्ररज श्ररज सुणोनें रूडा राजीया होजी ॥ ए देशी ॥ एहतुं एहतुं जोय गुणावली दोजी, श्रष्टापद गिरि एह ॥ जरतें जरतें कराव्यो चिहुंमुखो होजी,कंचनमणि जिन गेह॥ निरख निरख विनोद ए नव नवा होनी ॥एशांकणी ॥१॥ संजवादि संजवादि चार दक्षिण दिशा होजी, एहवो प्रगट डे पाठ॥पश्चिम पश्चिम हार जिनेश्वरा होजी, सुपादिक पाठ॥ नि॥२॥ अर्थ ॥ हे गुणावली जो, श्रा अष्टापद पर्वत बे. तेमांजरतचक्रीए चोमुख कांचनमणिनो जिन प्रासाद कराव्यो . आ नवनवा विनोदने निरखीले. ॥१॥ ते विषे एवोपाठ ने के, तेनी दक्षिण दिशामां संभवनाथ विगेरे चार तीर्थकरो , तेना पश्चिम दिशाना घारमा सुपार्शविगेरे आठ तीर्थकरो रह्याने. २ धर्मादि धर्मादि दश तीर्थंकरा होजी, उत्तर दिशि एह ॥षन षन अजित दोय जिनवरा होजी, प्राची दिशि ससनेह ॥ नि॥३॥ शहां जिन शहां जिन नाम उपार्जशे होजी, दश मुख लंका नूपाल ॥ तीरथ तीरथ एद जगमा वडो होजी, सुर नदी वलय विशाल ॥ नि॥४॥ अर्थ ॥ तेनी उत्तर दिशामां धर्मनाथ विगेरे दश तीर्थकरो ने अने पूर्व दिशामां श्रीऋषभ अने अजितनाथ ए बे तीर्थकरो . ॥३॥ लंकानो राजा रावण अहिं आवीने जिननाम कर्म उपार्जन करशे, जेनी श्रासपास वलयाकारे गंगानदी , एवो श्रा गिरि जगत्मां मोटुं तीर्थ जे. ॥४॥ तिमज तिमज देखाड्यो पूरथी होजी, पर्वत शिखर समेत ॥रे! वह रे! वह तमेकरो वंदनाहोजी,हियडे श्राणीजी हेत॥नि॥॥पहिलो पहिलो बारमोबावीशमो होजी, चोवीशमो जिन जाणाचारे चारे विना विंशति जिना होजी,तास निर्वृत्ति निरवाण॥६॥ अर्थ ॥ तेवी रीते दूरथी समेत शिखरनो गिरि बताव्यो अने कह्यु के, अरे वहु,तमे हृदयमां हेत लावी श्रा तीर्थने वंदना करो. ॥५॥ पहेला, बारमा, बावीशमा अने चोवीशमा तीर्थकर ए चार जिनशिवाय विश तीर्थकरोना निर्वाण आ समेतशिखर उपर श्रवाना . ॥६॥ संप्रति संप्रति सत्तर तिथंकरा होजी,पाम्या श्ण गिरि मुक्ति ॥श्हांवलि शहां वलि त्रिण्य त्रिजुवन धनी दोजी,लहेशे अविचल मुक्ति॥ नि॥॥तिमवै तिमवै नार जुन वह होजी,वलीअर्बुदाचल श्च ॥ एहवे एहवे थाव्योपंथमें होजी, श्रीसिकाचल तिल ॥॥ For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ да о а Сіра на ЕК Зер 000 00 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T HDAILSIA SARE पाटामा PANJARA JULHILDINE OTA इसका RWA SA FORECRUIREDA Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ५७ ॥ हाल सुधीमां सत्तर तीर्थकरो या पर्वत उपर मुक्ति पाम्या बे ने हवे त्रण जगत्पति तीर्थकरो हिं विचल मुक्तिने प्राप्त करशे ॥ 9 ॥ तेम करता वैजार गिरि श्रव्यो एटले वीरमती कहे, हे वधू, जुवो वैचारगिरि, जुवो अर्बुदाचल (बु) गिरि, एम करतां मार्गमां सिद्धाचल तीर्थराज आव्यो. वढू सुवहू तीर्थ मोटको होजी, नामे डुरित पलाय ॥ तो जिए तो जिए नय निहाली होजी, तस तिहुं श्रण जस गाय ॥ ॥ पूरव पूरव नवाएं समोसर्या होजी, जग गुरु यादि जिणंद ॥ सिद्ध सिद्ध अनंता इहां हुआ दोजी, केइ थया ज्ञान दिणंद ॥ नि०॥१०॥ अर्थ ॥ वद्दु, सांनलो श्रा सर्व तीर्थमां मोटो बे, तेनुं नाम लेवाथी पाप दूर भागी जाय बे, तो जेणे नेत्रथी जोयो होय तो तेना यशने त्रण भुवनना लोको गाय बे ॥ ए ॥ हिं पूर्वे नवाएं पूर्व समोसर्या जगद् गुरु श्री आदिनाथ प्रभुपण अहिं समोसर्या बे, ते शिवाय अहिं अनंत सिद्ध यया वे कक ज्ञानना सूर्य या बे ( केवल ज्ञान पाम्या बे. ) ॥ १० ॥ प्रथम प्रथम उद्धार श्रीजरतनो होजी, बीजो तेम दंडवीर्य ॥ त्री जो त्रीजो उद्धार इशानें नोहोजी, चोथो महेंद्रपति धीर्य ॥ ११ ॥ ब्रह्मे ब्रह्मे कर्यो पांचमो होजी, बो जुवनपति की ॥ सगर सगरनो सातमो श्रावमो होजी, व्यंतरपति सुप्रसिद्ध ॥ नि० ॥ १२ ॥ ॥ तीर्थनो प्रथम उद्धार श्रीभरतचक्रीए कर्यो हतो, बीजो उद्धार दंडवीर्ये कर्यो बे, त्रीजो उद्वार इशानइंद्रे कर्यो ने अने चोथो उद्धार धीर एवा महेंद्रपतिए कर्यो बे ॥ ११ ॥ पांचमो उघार ब्रह्मे कर्यो हतो, वो उच्चार जुवनपतिए कर्यो हतो. सातमो उद्धार सगर राजाए कर्यो हतो, अने - मो उदार व्यंतरपतिए करेलो प्रसिद्ध बे ॥ १२ ॥ नवमो नवमो उद्धार चंद्रयशातणो दोजी, चक्रधर दशमो उद्धार ॥ आगे श्रागे उद्धार वली हुशे दोजी, रामादिकना उद्धार || १३ || ३णि गिरि इणि गिरि श्राव्याथी दुवे होजी, सफल मानव अवतार ॥ त्रिविधे त्रिविधे करो तुमे वंदना होजी, ए नवतारणहार ॥ १४ ॥ अर्थ | नवमो उद्धार चंद्रयशाए कर्यो हतो, अने दशमो उद्धार चक्रवर्तीनो हतो. एम राम प्रमुखना बीजा उचारो आगल थशे. ॥ १३ ॥ आ गिरिए आववाथी मनुष्यनो अवतार सफल थाय बे. तेथी हे बहु, तमे मन वचन कायाए करी तेने वंदना करो, ए तीर्थ जवमांथी तारनार बे ॥ १४ ॥ गे श्रागे वली निरखो वहू होजी, तीरथ श्री गिरनार ॥ मुगति मुगति वधू इहां पर शे होजी, राजुलनो जरतार ॥ नि||१५|| पुंरिक पुंरिक गिरिवर सारिखो दोजी, महिमा उदधिथी ठंड ॥ खूतो खूतो पद गजमल्लनो होजी, तिणे इहां गजपद कुंम ॥ नि० ॥ १६॥ अर्थ ॥ श्रगल जुर्ज, आ श्री गिरनारनुं तीर्थ बे. अहिं राजेमतीना स्वामी श्रीनेमनाथ प्रभु मुक्तिरूपी वधूने पर. ॥ १५ ॥ श्र पुंरुरिकगिरि पुंमरिकना सरखो बे, तेनो महिमा समुद्रथी जंको ( गंजीर ) बे; अहिं ऐरावत गजेंद्रनो चरण खुचवाथी एक हाथी पगलानोकुंड थयेलोबे ॥ १६ ॥ Jain Educationa International तीरथ तीरथ एम नवनवा दोजी, अवलोकावे रसाल ॥ पजणी पजणी वींशतिमी जणी दोजी, मोहन विजये ढाल || नि० ॥ १७ ॥ For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ आ प्रमाणे वीरमती पोतानी वहु गुणावलीने नवनवा तीर्थो बतावती हती; आ रसिक एवी विशमी ढाल श्रीमोहनविजये कही . ॥१७॥ दोहा ॥ नदी समुफ अलगां थकी, रे वह तुं अवलोक ॥ मध्य छीप वींटी रह्यो,विविध रतनना थोक॥पहोलो जोयण लाख दो, लांबो वलयाकार ॥ वारि वृद्धितिम जंम पण,तटथी तास विचार ॥२॥ ___ अर्थ ॥ वीरमती कहे बे:-हे ! वहु, श्रा नदी अने समुज्ने अलगां करी जुवो, ते मध्यवीपने वींटाइने रहेलो समुफ जे. तेमां जातजातना रत्नोना श्रोको. ॥१॥ ते पेहेलो समुज बे लाख योजन लांबोडे, ते वलयाकारे रहेलो , तेज प्रमाणे तेना जलनी वृद्धि अने जंमा तेना तटथी जणाय जे. ॥२॥ पट जोयण दश सहस तिहां,मो जोयण हजार ॥ सोल सहस जोयण तिहां,उंची शिखा विचार ॥३॥ ते उपर दोय कोशनी, वेल वृद्धि सदीव ॥ चिहुं दिशें कलसाकार चउ, नाषे नुवनपश्व ॥४॥ अर्थ ॥ दश हजार योजन तेनो पटले, हजार योजन ते लंडो ने अने सोल हजार योजन तेनी उंची शिखा (शग) . ॥ ३ ॥ ते उपर बे कोश हमेसा वेल आवे , तेनी चारे दिशाए कलशना जेवी श्रा. कृतिए चार नुवनपति शोने. ॥४॥ तल मुख जोयण सहस दस, दल ग जोयण सहस्स ॥ पोहला ठंडा एग लख, मान सदा श्म तस्स ॥५॥ तिहां जल रक्षक सुर घणा, सदा शास्वता नाव ॥ एहवो लवण समुन ए, एहनो प्रबल प्रनाव ॥६॥ अर्थ ॥ दश हजार योजन तलीयु ने अने एक हजार योजन तेनुं दलीयुं , अने एक लाख पोहोला अने जंडा जे. श्रा प्रमाणे तेनुं मान .॥ ५ ॥ त्यां जलना रदको घणा देवता ने अने ते शाश्वता , आवो ते लवण समुपजे. तेनो प्रभाव पण प्रबल ॥६॥ श्म वातो करते थके, ते सहकार सुरंग ॥ श्राव्यो विमलपुरी जणी, सीमाये अनुषंग ॥७॥ अर्थ ॥ आम सासु वढु वार्ता करतां हता, त्यां ते आम्रवृक्ष आनंद साथे विमल पुरीना सीमाडा उपर श्राव्यो .॥७॥ ॥ ढाल एकविशमी॥ ॥तुने कान बोलावे हो नवरंग चूडावाली ॥ ए देशी ॥ राणी नव पल्लव नव कुसुमा, निरखे तिहां वनराजी ॥ ते शोजाये सुरपतिनुं वन,उईलोक गयो लाजी ॥ रूडे चंद निहाले॥ हो नवरंग नारी चेष्टा ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ अंब कदंब निंबतरू जंबु, मुनिघुम ताल त. माला ॥ नाग पुन्नाग प्रियंगुं सुरंगा, मधुप न्यग्रोध विशाला ॥ रू०॥५॥ For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ए ॥ राणी गुणावलीए त्यां नवपलव वाली अने नवीन पुष्पथी सुशोजित वननी श्रेणि दीवी. तेनी एवी शोजा हती के जेने देखी इंधनं नंदनवन लऊपामीने उर्ध्व लोकमां चायुं गयुं बे. चंदराजा asia नवीन चेष्टा जोवेढे. ॥ १ ॥ तेमां त्रांबा, कदंब, लींबडा, जांबू, सप्तपर्ण, ताड, तमाल, नागरवेल, नागकेशर, प्रियंगुलता, महुडा, अने विशालवड हता ॥ २ ॥ उपवन तेम मनोहर निरखे, जाई जुई नवमल्ली ॥ चंपक केतकी कुंद सेवंत्री, उज्वल फुली वली ॥ रू०॥३॥ उज्वल कुसुम ते दहदिशि फुल्यां, परिमल पवन सुहायो ॥ ज्योतिष् चक्र गगनथी मानुं, अवनी उपर आयो ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ ते वृक्षोथी मनोहर एवं उपवन जोता हता. वली तेमां जाइ, जुइ, नवमलिका, चंपो, केतकी, डोलर ने सेवंत्री ना वृक्ष उज्वलपणे फुल्या हता ॥ ३ ॥ दशे दिशामां उज्वल पुष्पो फुली रह्यां हतां, तेना सुगंधने पवन प्रसारतो हतो. जाणे पृथ्वी उपर ज्योतिष्चक्र श्राव्यं होय तेम देखातुं हतुं ॥ ४ ॥ जल उज्वल जलाशय केरु, चंदनीयें करी दीपे ॥ नौतन धरणी चंद ए प्रगटयो, गगन चंदने जीपे ॥ रू०॥५॥ श्रायत पृथु चक्र वसाने, जल मृत वापी जगीसा ॥ मानुं विमलपुरीनी निजद्युति, जोवाना खारीसा ॥०॥६॥ ॥ चंनी कांतिथी जलाशयनुं जल उज्वलपणे दीपतुं हतुं. जाणे आकाश चंडनी स्पर्धानी पृथ्वी उपर बीजो नवीन चंद्र प्रगट थयो होय तेम लागतुं हतुं ॥ ५ ॥ तेना बेडा उपर विशाल ने गोलाकार वापिका जलथी नरेली हती, ते जाणे विमलपुरीने पोतानी कांति जोवाना छारीसा होय तेवी देखाती हती. ६ आगल नगरी निरखी राणी, विस्मय करी मन हिंसे ॥ जे कैलास कहावे ते एवा, रोहणाचल दीसे ॥ रू०||७|| प्रति मंदिर दीपकथी नगरी, नेत्रोपमाये हरखे ॥ मानुं वनमां श्राव्यो जाणी, चंदनरिंदने निरखे ॥ रू० ॥ ८ ॥ ॥ ते नगरीने अगल जोइ राणी विस्मय पामी मनमां विचार करवा लागी के, जे कैलासपर्वत कहे बे, ते या हशे ? अथवा रोहणाचल कहे बे, ते हशे ? || ७|| ए नगरी नेत्रनी उपमाने पामेला प्रत्येक मंदिरना दीपकथी जाणे वनमां श्रावेला चंदराजाने हर्षश्री नीरखती होय तेम देखाय बे. ॥ ८॥ पूढे राणी कहो तुमे बाई, ए नगरी ते केही ॥ वीरमती कहे निसुणो इम कही ते सहकार गगनथी, तत् जी, विमलपुरी ते ही ॥०॥ क्षण आव्यो देवो ॥ मूकयो उपवन मांहे तेणे, नृपति जूएबे बेठो ॥ रू०॥१०॥ पुच्छं, बाइजी, कहो, या कइ नगरी? वीरमती बोली- हे बहु, जे विमलपुरी कहेवाय बे तेज . ॥ ए ॥ एम कहुं, तेवामां तो ते श्रान्नवृक्ष तत्काल श्राकाशथी नीचे उतर्यो. वीरमतीए तेने उपवनमां मूक्यो, राजा चंद बेगे बेगे ते जुवेबे ॥ १० ॥ ॥ सासु बहू हू तय तरुथी, नगरी साहमी चाली ॥ मांदो मांदे ताली देती, करती तिही खुशाली ॥ रू०॥ ११ ॥ नरपति पण ते बेदु न जाणे, तिम पूंवल परवरि ॥ विद्या एम विमातनी निरखी, तोही पण नव डरी ॥ रू० ॥ १२ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० चंदराजानो रास. अर्थ ॥ सासु अने वहु बने वृक्ष उपरथी नीचे उतर्या, मांहे मांहे ताली देतां अने अति खुशालीवतावतां ते नगरीनी सामे चाट्यां. ॥ ११॥ राजा चंद ते बंने जाणे नहीं तेवी रीते तेमनी पाउल पाल चाट्यो. पोतानी अपर मातानी आवी विद्या जोइ तोपण ते जरापण डों नहीं. ॥१२॥ ते जेम बेहु चडवडती चाली, तिमहिज नृपति विराजे ॥ अनुक्रमे एम करतां श्राव्या,नगरीने दरवाजे ॥ रू० ॥१३॥ वहुनो हाथ ग्रहीने सासू, नगरी कीध प्रवेश ॥ पावन पोल माहे मन हरषे, श्राव्यो चंद नरेश ॥ रू० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ ते बंने जेम चालती तेम राजा पण पाउल चालतो. एम चालता अनुक्रमे नगरीने दरवाजे आव्यां. ॥ १३ ॥ सासूए वहुनो हाथ पकडी नगरीमा प्रवेश कर्यो. राजा चंद पण मनमा हर्षपामी नगरीनी पवित्र पोलमां आव्यो. ॥१४॥ सासूए वहुने तेमीने,नगरी अवलोकावी ॥ पाणिग्रहण तणो जिहां मंझप, ते बेहु तिहां श्रावी ॥ रू० ॥१५॥ गीत नृत्य वाजिन विविध गति, धवल मंगल बहु होवे ॥ गुणावली तिम वीरमती बेहु, श्रति मनरंगे जोवे ॥ रू० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ सासुए वहुने तेडीने बधी नगरी बतावी. पनी बने ज्यां पाणिग्रहणनो मंझप हतो त्यां श्रावी. ॥ १५॥ त्यां गीत, नृत्य, विविध जातनां वाजित्रो अने घणां धवल मंगल पातां हता. गुणावली अने वीरमती बने मनमां आनंद पामी ते जोती हती.॥१६॥ नगरी माहे श्राव्यो राजा, मन वंबित सवि सीधी॥सेवक निजस्वामी श्रादेशे, नृपने प्रणिपत्य कीधी ॥ रू०॥१७॥ श्रोता निसुणो थानास्वामी,विविध विनोद ते करशे ॥ विमल पुरीये प्रेमला लगी,चंद नरिंद ते वरशे ॥ रू० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ राजा नगरीमा आव्यो, तेणे पोताना मननी वांगना सिद्ध करी. सेवके पोताना स्वामीनी श्राज्ञाथी राजाने प्रणाम कर्यो. ॥ १७ ॥ हे श्रोता सांजलो, आनानगरीनो राजा चंद अहिं विविध जातना विनोद करशे अने विमलपुरीनी प्रेमला लक्ष्मी चंदराजाने वरशे. ॥ १७ ॥ एकविश ढाले चंद चरित्रनो, एह प्रथम उदास ॥ पंडित रूपविजय सुपसाये, मोहन वचन विलास ॥ रू० ॥१॥ अर्थ ॥ एकविश ढाले चंद राजानां चरित्रनो प्रथम उल्लास पूरो थयो. पंडित रूपविजयजीना पसायथी श्रीमोहनविजयनां वचननो आविलास जे. ॥ १५ ॥ सर्व गाथा ॥ ५१४॥ ॥ इति श्रीप्राकृत प्रबंधे चंदचरित्रे वीरसेनदिदा चंदनजन्मवीरमतीविद्या प्राप्ति वधू विप्रतारण वचनरचना विमलपुर्यागमनरूपानिरानिश्चतस्मृनिः कलानिः प्रतिपादितः प्रथमोबासः ॥ ॥ प्रथम उल्हास समाप्त.॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ॥ अथ द्वितीयोबासः प्रारज्यते ॥ ॥दोहा॥ शांति सुधारस सकल विजु, परम सौख्य दातार ॥ सोलसमो जिनवर नमुं, जगगुरु जगदाधार ॥१॥ चंद नरिंद चरित्रनो,बीजो रचिश उदास ॥ शील कला कलना थकी, प्रगट जास सुप्रकाश ॥२॥ अर्थ ॥ शांति रूप अमृत रसे नरेला, सर्वना स्वामी, परम सुख जे मोद तेने आपनारा, जगत्ना गुरू अने जगतना आधार रूप एवा सोलमां तीर्थकर श्रीशांतिनाथ प्रजुने नमुं बु.॥१॥ हवे चंदराजाना चरित्रनो बीजो नल्लास रचीश, जेमां शीलव्रतना कलाना वर्णननो उत्तम प्रकाश प्रगट थाय .॥२॥ रचना प्रथम चरित्रनी, करी घणे कविरत्न ॥ तो पण सुगुणे श्राणवो, लेखे मुज परयत्न ॥३॥ जगमां वचनादिक अधिक, यद्यपि कला अशेष ॥ धेनु सकल पयदायिनी, पण सुरधेनु विशेष ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ आ चरित्रनी प्रथम घणां कविरत्नोए रचना करी ने तोपण, उत्तम गुण कहेवामां मारो प्रयल लेखे ॥३॥ जगत्मा जो के सर्व कला पण तेमां वचनादिकनी कला अधिक बे. बीजी सवे गायो मुध आपनारी ने पण कामधेनु विशेष कहेवाय ॥४॥ ताम्र तणुं कंचन करे, पारद जेम अनूप ॥ तेम विरसनो रस करे,वचन रसायन रूप ॥५॥ मीठ वचने रस दीये, मीठो चंद संबंध ॥ तिम निसुणो मीही सना,ए सोनुं ने सुगंध ॥६॥ अर्थ ॥ जेम पारो तांबार्नु अनुपम सुवर्ण बनावे , तेम रसायण रूप वचनो विरसने सरस करी दे ले. ॥ ५॥ आ चंदराजानुं चरित्र मी बे, अने तेनां मीगं वचन होय तो रस आपे ने तेम हवे जो मीठी सभा तेने सांजले तो ए सोनुं अने सुगंध .॥६॥ श्राव्यो नगरी तणी, पहिली पोले राय ॥ निसुणो श्रागल तेहनो, जे संबंध कहेवाय ॥ ७॥प्रथम पोल रक्षक जना, करे वखाण अखंग ॥ जय जय चंद नरिंद तुं, गुण गण रयण करंग ॥ ७॥ अर्थ ॥ राजा चंद विमलपुरानी पेहेली पोले आव्यो बे, हवे तेनो जे संबंध आवे ते सांजलो. ॥७॥ ते राजाने जोर पेली पोलना रक्षकजनो अखंडपणे वखाण करवा लाग्या के, हे चंद राजा, तमे जय पामो. जे तमे गुणोनागणरूपी रत्नोना करंडीया रूप ॥ ७ ॥ जले तुमे करुणा करी, आज मिट्यो उच्चाट ॥ बीज निशाकर जिम अमे,जोता हूंता वाट ॥ पाउ धारो श्रागल तमे,चंद चरित्र विचित्र ॥ सिंहलपुर स्वामी तणी, कीजे सजा पवित्र ॥ १० ॥ अर्थ ॥ हे राजा, तमे करुणा करी जले पधार्या, आज अमने उचाट मटी गया. बीजना चंनी जेम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय उदास. अमे तमारी राह जोता हता. ॥ ए ॥ विचित्र चरित्रवाला हे ! चंद राजा तमे आगल पगलां करो, अने सिंहलघीपना स्वामीनी सनाने पवित्र करो ॥ १० ॥ वचन सुणी सेवक तणां, चिंते चित्तनरिंद ॥ अपरिचित्ते परिचितपरें, किम करी जाण्यो चंद ॥ ११॥ अर्थ ॥ आवा सेवकोनां वचन सांजली राजाचंद चित्तमा विचार करवा लाग्यो के, आ अपरिचित लोकोए परिचितनी जमे हुँ चंदराजा एम शी रीते जाणी लीधुं. ॥११॥ ॥ ढाल पहेली॥ ॥ईडर थांबा थांबली रे; ईडर दाडिम जाख ॥ ए देशी ॥ कहे नगरी थाना धणी रे, निसुणो श्रदो प्रतिहार ॥ कुण चंद नरेशरूरे प्रश्न तुज थाकार ॥ चतुरनर ॥ बोल विचारी बोल॥ए श्रांकणी ॥१॥चंदतो गगने उगियोरे, बीजो ते कुण चंद ॥ जावादे इन किम करेरे, फोगट एशा फंद ॥ च ॥२॥ अर्थ ॥ आनानगरीनो राजा चंद बोल्यो अरे प्रतिहार, सांजल, चंदाजा कोण जे? तुं आकृति जो नुट्यो. हे चतुरनर, विचारीने बोल.॥१॥ चंद तो आकाशमां उग्यो बे, बीजो चंद कोण ? मने जवादे हठ केम करे ? आवा फोगट फंद शा करे ? ॥२॥ पय प्रणमी कहे पोलीउरे, कांई बिपो मामूर ॥ ढांक्यो किमरहे बाबमे रे, जल हल उग्यो जे सूर ॥ च ॥३॥ बानी किम करीने रहे रे, मृग मद केरी वास ॥ साचा तुमने उलख्या रे, थान चंद प्रकाश ॥च०॥४॥ अर्थ ॥ प्रतीहार चरणमां नमी बोट्यो-हे राजा, तमे बुपावोमां. जाजलमान प्रगट थर ऊगेलो सूर्य गबडे ढाक्यो केम रहेशे? ॥३॥ कस्तुरीनी सुगंध शी रीते गनी रहे ? में तमने साचे साचा उलखी सीधा बे, राजा चंद प्रकाश था.॥४॥ हठ करीने कर ग्रही रह्यो रे, मांडी खेंचा ताण ॥ नृप कहे वलगे ले किशु रे, अलगो रहे तुं अजाण ॥ च ॥५॥ तुं नूलो कुण रातनो रे, शठ हठ मांडे केम ॥ दीसे सूतो अगासडे रे, अणजाएयु कहे केम ॥ च॥ ६ ॥ नाले चंदने मुखथकी रे, जूलीशमा अविवेक ॥ चंद सरीखा तो हशे रे, पोदवी उपर अनेक ॥ च० ॥ ७॥ कुण जलवे निज नामने रे, एडवो कुण ने उठ॥ किम लेवा देवा विना रे, श्म कांई जंपे जूठ ॥ च ॥७॥ अर्थ ॥ पनी प्रतीहार हठ करी तेनो हाथ पकडी उनो रह्यो, माहे मांहें खेचताण श्रवा लागी. राजा चंदे कयु, अरे नाइ केम लडे बे? तुं अजाण . माराथी अलगोर हे. ॥५॥ अरे शठ, तुं रात्री ए जुली गयो लागे बे. आवी खोटी हठ शा माटे मांझे बे ? तुं अगासे सुतो होश, आवु अणजाण्यु केम कहे जे ? ॥ ६॥ तुं चंदने मुखश्री नाले , अविवेकथी नलीशमा, चंदना जेवा पृथ्वीउपर अनेक हशे. ॥७॥ पोताना नामने उलवीदे एवो कोण मुष्ट होय ? तुं लेवा देवा विना शामाटे जुतुं बोले ? ॥७॥ For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ६३ पोलें लागत ताहरी रे, जोये लागत होय ॥ तो श्रापुं नागीश नही रे, दधे दुर्बल कुण होय ॥ च० ॥ ए ॥ एके किम खडो फरे रे, टांके बे शा माट | वेला वनमां बहु थई रे, मात जोती हशे वाट ॥ च० ॥ १० ॥ ॥ जो पोलनो तारो कांई लागो होय तो हुं पुं हुं जागी जाइश नहीं. देवामां कोण डुर्बल होय || || तुंमको फरीने केम रोकेडे, अने शामाटे: टोंके बे ? मने वनमां घणी वेला थई बे, मारी माता वाट जोती हशे ॥ १० ॥ कड़े सेवक प्रभु तम तणुं रे, ग्रहतो ढारसें कोश | जावाद्यो जोलामणी रे, मुजशुं मकरो रोष ॥ च० ॥ ११ ॥ तुम सरिखा मोहोटा मृषा रे, जाखे इम जो अबे ॥ तो किम जार घरे धरा रे, किम जग वरषे मेद ॥ च० ॥ १२ ॥ अर्थ | प्रतिहार बोयो हे प्रभु, तमारुं गृहतो हिंथी अढारसो कोश दूरबे, मारी साथे जोलामणी करवी जावाद्यो, रोष करशो नहीं. ॥ ११ ॥ तमारा जेवा महान पुरुषो ज्यारे श्रम मृषा बोलशे तो पबी आ पृथ्वी केम चार उपाडशे अने जगत् उपर मेघ केम वर्षशे ॥ १२ ॥ तुम जेवा सेवुं श्रमे रे, तिथे सवि लहिए निरति ॥ जिहां जेवा नर से वियेंरे, तिहां तेवी फल पत्ति ॥ च० ॥ १३ ॥ मुज स्वामीने तुम थकी रे, कारिज बे महाराज || मानो माहरी वीनती रे, चंद गरीब निवाज ॥ च० ॥ १४ ॥ _ ॥ तमारा जेव पुरुषोनी मे सेवा करी ए बीए तेथी मने बधी समजण पडे, ज्यां जेवा नरने सेविए त्यां तेवां फलनी प्राप्ति थायडे ॥ १३ ॥ हे महाराज, मारा स्वामीने तमारी साथे एक काम बे, तेथ हे गरीब नवाज चंदराजा, मारी विनंति मान्य करो. ॥ १४ ॥ नूप विचारे मातजी रे, जो सांजलशे नाम ॥ लहिषानुं देवं थशे रे, जग नुं नही काम ॥ च० ॥ १५ ॥ सेवक वचने नरवरू रे, श्राव्यो आगल सार ॥ पगपग प्रणमे चंदने रे, बहुलो जन परिवार ॥ च० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ राजा चंदे मनमां विचार्य के, जो मारूं नाम माता वीरमती सांजलशे तो लेणानुं देवुं य‍ जशे, माटे हवे वधारे ऊगडो करवानुं काम नयी ॥ १५ ॥ पक्षी सेवकनां वचनथी राजा चागल चाल्यो. घणो परिवार ते चंदराजाना चरणमां प्रणाम करतो हतो. ॥ १६ ॥ मोहन विजये पहिली कही रे, बीजा उल्लासनी ढाल ॥ गल यति मीठी कथारे, सुणजो थइ उजमाल ॥ च० ॥ १७ ॥ ॥ श्री मोहन विजये या बीजा उल्लासे पहेली ढाल कही. गल घणी मधुर कथा श्रवशे, सर्वे उत्साह धरी सांजलजो. ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ कधी संप्रतिहार चद, बीजी पोल प्रवेश ॥ तिहां पण रक्षक कहे नमी, श्रावो चंद नरेश ॥ १ ॥ श्रम स्वामी तुम वाटडी, जोये घणुं सदीव ॥ चाहे कायिक जावने, जिम संसारी जीव ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय उवास. अर्थ ॥ राजा चंदे आगल नीजी पोलमा प्रवेश कर्यो. त्यांपण ते पोलना रक्के नमीने कां के, चंद राजा पधारो. ॥ १॥ अमारा स्वामी हमेसा तमारी राह जोवे. संसारी जीव जेम दायिक नावने चाहे तेम ते तमने चाहे जे. ॥२॥ तुम श्रावे श्रमनूपनी, होशे कारिज सिकि ॥ जेम चक्र प्रगटये थके, चक्रीघर नव निधि ॥३॥ नूप कहे रे चंदने, ब्रम जूलो बो केम ॥ नाषे कनक तरू जिम को, दोडे लेवा हेम ॥४॥ अर्थ ॥ जेम चक्रवर्तीने चक्र प्रगट अवाथी नवनिधि सिथाय. तेम तमारा आववाश्री अमाराना कार्यनी सिधि थशे. ॥ ३ ॥ राजा ए का-जेम सुवर्णतुं वृद्ध नासवाश्री ज्रमित माणस सोनुं लेवाने दोडे. तेम अरे प्रतिहार, तमे चंदना ज्रमथी केम नुलोगे ? ॥४॥ जण्या जणाउ नाईयो, सहुए एक निशाल ॥जे श्रागल सेवक तमे, नणे तेह नूपाल ॥ ५॥ तुम नृपढूंती माहरे, कुण दिननो पहि चान ॥ शुं कारिज डे मुज थकी, एतो त्रीजो तान ॥६॥ अर्थ ॥ अरे नाईल, तमे सर्वे एक निशाले लण्या जणागे. जेनी आगल तमे सेवकगे ते राजापण जलो लागे . ॥ ५॥ तमारा राजानी साथे मारे कया दिवसनी पिगण , वली तेने मारी साधे शुं काम बे ? ए तो वली त्रीजो तान . ॥ ६॥ दीसो बो धूरत तमे, किहां शीख्या अविवेक ॥ चंद चंद एहवं कही, धूत्या होशे अनेक ॥ ७॥ __ अर्थ ॥ तमे बधा धूर्त लागो बो, आवो अविवेक क्यां शीख्यागे? तमो ए चंद चंद एवं कहीने अनेकने धूती लीधा हशे. ॥७॥ ॥ ढाल बीजी॥ ॥ वाला अलगा रहो ॥ ए देशी ॥ रक्षक कहे अमे सिंहल नृपना, सेवक बुं मन जाव्याजी ॥ श्रमने एक संकेत कहीने, पोले पोले पगव्या ॥१॥साचं बोलोजी, चंद नरिंद महाराज, साचुं बोलोजी ॥ ते संकेते तो तुमे खामी, नगरी मांहे श्राव्या जी ॥ चंद नरिंद कहीने तेथी, अमे तुमने बोलाव्या ॥ सा ॥२॥ अर्थ ॥ रक्षक बोट्यो-महाराज, अमे सिंहल राजाना मनगमतासेवक जीए. ॥ राजाये एक संकेत कहीने अमने पोले पोले पढावी बेसार्या ॥ १॥ हे चंदराजा, तमे सत्य बोलो. ते संकेतथी तमे आ नगरीमा आवोगे अने तेथीज अमोए तमने चंदराजा कहीने बोलाव्या ॥२॥ नृप कहे ते संकेत कहो मुज, कहे अनुचर करजोमीजी॥ सिंहल नूपे श्रमने तेडी, जाख्युं अंतर गेमी ॥ सा ॥३॥पूरव पोले जश्ने बेसो, पहोर राति जव जावेजी ॥ पोलमांहे दोय नारीकेडे, एक पुरुष जे श्रावे ॥ सा॥५॥ For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ चंदराजा बोल्यो. ते संकेत मने जणावो. सेवके हाथ जोडीने कह्यु, हे महाराज, अमारा स्वामी सिंहलराजाए अमने बोलावी अंतर गेमीने आ प्रमाणे कडं. ॥३॥ हे सेवको, तमे पूर्वने दरवाजे जइने बेसो, एक पोहोर रात्रि गया पनी पोलमां बे स्त्रीनी के एक पुरुष जे आवे. ॥४॥ तेहने चंद नरिंद कहीने,नमजो श्रादर देजी।मुज पासे तुमे श्रावजो वहिला,तेहने संगे खेसा ॥५॥ स्वामी वचने श्रमे प्रति पोले,बेग थश्ने धीगजी ॥ एडवे दो नारिने पंग्ल, पोले तमने दीग ॥ सा ॥६॥ अर्थ ॥ तेने चंदाजा कहीने नमस्कार करी आदर आपजो अने तेउँने साये तेडी मारीपासे वेहेला श्रावजो. ॥ ५॥ एवा अमारा स्वामीनां वचनथी अमे प्रत्येक पोल उपर धीव पणे बेग हता, तेवामा श्रा पोलमां बे स्त्रीनी पाउल आवता तमने जोया. ॥६॥ तेहथी श्राना नगरी स्वामी,चंद नरिंद प्रमाणुंजी॥सिंहल नूप वचनथी जाण्या,बीजं किम करी जाणुं ॥सागा॥ स्वामी वचन ते किम लोपाये, मनमां तुमे श्रवधारोजी॥ते माटे तमे सिंहल नृपना,मंदिर सुधी पधारो ॥सा ॥ अर्थ ॥ ते संकेतश्री हूं तमने आना नगरीना स्वामी चंदराजा जाणुं इं. आ बधुं अमारा स्वामीनां वचनथी जाण्यु ने, नहीं तो शीरीते जाणुं ॥ ७ ॥ तमे मनमां विचारोके स्वामीनु वचन अमाराथी केम करीलोपाय? माटे हे राजा, तमे सिंह राजाना मंदिर सुधी पधारो. ॥ ॥ लाख वचन जो कहिये तोपण, मोटा केम वश थावेजी ॥ काने काल्यो केम करीने,कोश्थी गज घर श्रावे ॥सााए। सुललित वचन सुणी सेवकनां, मनमा चंद विचारेजी ॥ जो माहरा शहां किंकर होवे,तो ते एहने वारे ॥ सा ॥ १०॥ अर्थ ॥ अमे लाखो वचन कहीए तोपण मोटा लोको केम वश थाय? मोटो गजें काने काट्यो केम करी घरमा श्रावे? ॥ ५ ॥ सेवकनां आवां सुंदर वचन सांजली चंदराजाए मनमां विचार्यु के, जो मारा सेवको अहिं हाजर होय तो तेढ श्रा प्रतिहारने वारे. ॥ १० ॥ मात तणो जय सिंहल नृपनो, वली एहवो पलचेमोजी ॥ हं एकाकी नगर परायो, करवो केम निवेडो सा॥१९॥ समजाव्या पण ए नही समजे, करवी शी कचपच एहथीजी॥जेहबुं जेहथी कारिज थाये, बांध डोम ते तेहथीसा॥१२॥ अर्थ ॥ मारे अहिं मातानो लय, वली श्रा सिंहस राजानो आवो आग्रह, हुं एकलो अने श्रा नगर पारकुं तो हवे आनो निवेडो केम लाववो.? ॥ ११ ॥श्रा लोको समजाव्या समजता नथी. हवे एमनी साथे शी माथाकूट करवी ? जेनाथी जेवं कार्य थाय, तेनी साथे तेवी बांध गोड करवी ते युक्त जे. ॥१२॥ चंद कहे तुमे चालो जाई, जिहां कहो तिहां हुं श्रादुंजी ॥ मुंढामुंढ तुमारा नृपने, श्रावीने समजावु ॥ सा ॥१३॥ श्रागल चंदने सेवक पुंठे, श्रावे जूया जूश्राजी ॥ साथे पोल तणा जे रक्षक,श्रावी नेला दृथा ॥ सा ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ आव॒ विचारी चंदराजा ए कहूं, चालो लाइ, ज्यां तमे कहो त्यां हुं आएँ, तमारा राजाने मोठे For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ द्वितीय उल्हास. थर हुँ तेमने समजावं. ॥ १३ ॥ एम कही चंदराजा आगल चाख्यो अने सेवको पाउल जुदा जुदा आववा लाग्या. अने जे बीजी पोलोना रक्को हता, ते पण आवीने नेला श्रया. ॥ १४ ॥ खमा खमा चंद रायने करता,पग पग तिम मनुहारजी॥ ते श्म करता थाव्या तेडी, सिंहल नृप दरबार॥सा॥१५॥ राजाने श्रागलथी जणाव्यु, चंद महीपति श्राव्याजी॥ सिंहलराये निशाण सुरंगा, जीत तणा वजडाव्या ॥ सा०॥१६॥ अर्थ ॥ चंदराजाने पगले पगले खमा खमा कहेता ते तेने सिंहल राजाना दरबारमा तेडी लाव्या. ॥ १५॥ सेवकोए जश् राजाने आगलथी जणाव्युं के चंदराजा श्रावे . एटले सिंहल राजाए विजय निशाननां वाजां वगडाव्यां. ॥ १६॥ श्रादर देश तेड्या मंदिर, चतुर चंद महीपालजी ॥ बीजा उदास तणी कही बीजी, मोहनविजये ढाल ॥ सा ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ तेणे आदर आपीने चतुर एवा चंदराजाने पोताना मंदिरमां तेडया. श्रीमोहनविजये श्रा बीजा उसासनी बीजी ढाल कही. ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ सिंहल नूपे चंदने, गृह श्रावंतो दीव ॥धाईने जाई मल्यो, लोचन श्रमीय पश्च ॥ १॥ जले पधार्या चंद नृप, वीरसेन कुल चंद ॥ आज कृतारथ हुं थयो, आज घणो आणंद ॥२॥ अर्थ ॥ सिंहल राजाए ज्यारे चंदराजाने पोताने घेर आवतो जोयो ते वखते ते नेत्रमा हर्षना अश्रु लावी दोडीने तेने नेटी पडयो.॥१॥ ते बोस्योके, वीरसेन राजाना कुलमां चंड समान एवा चंदराजा नले पधार्या, आज हुँ कृतार्थ थयो अने मने घणो श्रानंद अयो. ॥२॥ उत्कंठा मिलवातणी, हुंती घणी माहाराज ॥ पूर्व लेख लख्या थकी,सफल थई ते श्राज॥३॥पूर थका पण तुमे हता, मनहुँती श्रासन्न।पूर सूर जिम धरणीथी,विकसे पंकज वन्न ॥४॥ अर्थ ॥ मने तमने मलवानी घणी उत्कंठा हती, पण ते पूर्वना जे लखेल लेख ते प्रमाणे आजे सफल थः ॥ ३ ॥ जेम सूर्य पृथ्वीश्री घणो दूर ने तथापि कमलना वन विकाश पामे . तेम तमे दूर हता तो पण मारा मननी नजिक हता.॥४॥ किहां चकोर हिमकर किहां.किहां मोर किहां मेह॥श्रलगा तो पण ढूकमा,साचो जिहां सनेह ॥५॥संबंधे जे सांजरे, शी श्रधि काई तेह ॥ विण संबंधे सांजरे, सयण वमप्पण एह ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ क्यां चकोर पदी अने चंद्रमा ! क्यां मोर अने मेघ! तेढ घणा अलगाने तथापि ज्यां साचो स्नेह ने तो तेउ नजिक . ॥ ५ ॥ जे संबंधश्री सांजरे, तेमां शी नवाइ ? पण जे संबंध वगर सांजरे ते सजननी वडाइबे. ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. सिंधु व्यसन उदये शशि, संबंधे तिम होय ॥ विण संबंधे शीत गुणे, प्रीति कुमुदिनि जोय ॥॥कपट वचन रचना श्सी,सिंहल राये कीध ॥ निज सिंहासन बेसवा, चंद नृपतिने दीध ॥ ७॥ अर्थ ॥ चंना उदयश्री समुज्ने होल थाय, ते संबंधने लीधे ने अने संबंध वगर चंनी शीतलताश्री पोयणीने प्रीति जोवामां श्रावे . ॥ ७॥ आ प्रमाणे सिंहल राजाए कपटनी रचना करी अने चंद राजाने बेसवाने पोतानुं सिंहासन आप्यु.॥ ७॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ ___नायतारे तमे चालया गढईमरे रे, धणने खेजो साथ रे लाल जोवन वसिन नाय तो रे ॥ ए देशी॥ साहिबारे सिंहल नृप श्रादेशथी रे, बेगे गुणावली कंतरे लाल ॥देश विदेश जिहां तिहां रे, पोषाये जाग्यवंत रे लाल ॥ जाग्य प्रबल नृप चंदनुं रे ॥ ए यांकणी ॥१॥ सा ॥ योजन योजन रस कुंपिकारे, पग पग प्रगटे निधान रेलाल ॥ अणवाहाला वाहला होये रे, मोहोटुं जाग्य प्रधान रे लाल ॥ना॥२॥ अर्थ ॥ सिंहल राजानी आज्ञाथी गुणावतीनो स्वामी चंदराजा सिंहासन उपर बेगे. लाग्यवंत देश के विदेशमा जाय तो पण पोषायचे तेम चंद राजानुं नाग्य प्रबल चे. ॥१॥ जेनुं सारु लाग्य होय तेने योजने योजने रसकूपी मले , तेने पगले पगले व्यना निधान प्राप्त थाय ने अने जे उश्मन होय ते पाहाला मित्र थाय ने. सर्व ठेकाणे लाग्य प्रधान ने.॥२॥ सा सिंहल नृप कहे चंदने रे, डो कुशल्या माहाराज रे लाल ॥ अंतरयामी बो तमे रे,रायजादा शिर ताज रे लाल ला॥३॥ सा चाहे चातक जिम मेहने रे, वाजणी जिमगायरे लाल॥तिम श्रमे तमने चाहतारे,दिन एता माहारायरे लाल॥ना॥४ अर्थ ॥ सिंहल राजा चंद राजा प्रत्ये बोट्या, केम महाराजा कुशल गे? तमे अमारा अंतर्यामी अने मस्तकना ताज गे. ॥ ३ ॥ हे महाराजा, श्राटला दिवस अया, चातक जेम मेघने चाहे, अने गाय जेम वालमाने चाहे तेम श्रमे तमने चाहीए बीए.॥४॥ सा ते तमे श्राज पधारिया रे,लेखे थयो अवतार रे लाल॥शा पुरुषानो मेलो मलेरे, जो तुषे किरतार लाल नाणायासाशी कीजे परदेशमारे, तमतणी नक्ति नरिंदरे लाल ॥ तुम मुख शशि दी थयुरे, विलसित मन अरविंदरे लाल ॥ ना ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ ते तमे श्राजे खेगए पधार्या, तमारा मलवाथी मारो अवतार लेखे अयो. जो किरतार प्रनु संतुष्ट थाय तो शा(सजन) पुरुषनो मेलाप थाय बे. ॥ ५॥ हे राजा, परदेशमां तमारी शी नक्ति करीए? तमारो मुख चं जोवाथी मारं मन रूप अरविंद विकाश पाम्युं . ॥ ६॥ सा० शहां तो श्रमतणी मानजोरे,श्रादर ते मनुहाररे लालाजिम पुर्बल माता तणेरे,जामणडे व्यवहाररे लालाना॥सा गजबगस बोथें सहीरे, तुमतणी । मोकुं वींजरे लाल।तो श्रमे तुमनेशंथापीयेरे,जेणे तमे पामोरीफरे लाल॥जाणा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ द्वितीय उदास. - अर्थ ॥ अहीं अमाराथी जे बने ते आदर मानी लेजो.उर्बल माता पोताना बालकने मात्र हुलामणाथी प्रेमनो व्यवहार करे .॥ ७ ॥ हाथी अश्व विगेरे वाहनोथी तमे मोज करोगे तो अमे तमने शुं आपीए के जेथी तमे रीझाइ जाउं? ॥ ७॥ सा तमे पाउ धार्या होत जोरे,श्रम तणे देश कदेयरे लाल॥तो नजरे करता अमे रे,गाम नगर पुर केयरे लाल ॥नापासा श्रमे अवसर चूकू नहीरे,रखे श्रम जाणता मूढरे लाल ॥ श्हां तमे अमे बेहु सारिखारे, कहीये जे तमने अगूढरे लाल ॥१॥ __ अर्थ ॥ जो तमे अमारा देशमां कदि चरण पधराव्या होत तो अमे तमने गाम, नगर के पुर क्यारना नजर कर्या होत. ॥ ए॥ अमे हवे अवसर चुकीशुं नहीं, रखे तमे अमने मूढ जाणता, अहीं तमे अमे सरखा बीए. आ वात तमने खुले खुसी कहीए बीए. ॥ १० ॥ सा एहवा सिंहल रायनारे, निसुणी वचन विलासरे लालचंद वदन थकी कर्यो रे,दंत मयुष प्रकाशरे लालाना॥११॥साप चंद जरोसे मुझनेरे, एवडं शुं सन्मानरे लाल ॥ तूं परदेशी पाहुणोरे, तमे मोटा राजान रे लाल ॥ ना० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ सिंहल रायना श्रावा वचन विलास सांजली, चंदराजा पोताना मुखमांथी दांतना कीरणोने प्रकाश करता बोट्या.॥११॥ मारी उपर चंदराजानो नरसो राखी आटर्बु बधु सन्मान शुं आपोगे? हुं एक परदेशी मेमान लु अने तमे मोटा राजा बगे. ॥१५॥ सा चतुर थई चूको करुंरे,खोटे नरमे सुजाण रे लाल ॥ शी मनुहार ए कारमीरे, कुण दिननी जलखाण रे लाल ॥ना॥१३॥सा चंद पूरव दिशानो धणी रे,हुँतो क्षत्री पुत्ररे लाल ॥ देखी पेखी विण स्वारथेरे, किम कहिये उत्सूत्ररे लाल ॥ना॥१४॥ अर्थ ॥ हे राजा, तमे चतुर अने सुज्ञ था केम चुको बो? आ खोटो चूम ले. तमारे अने मारे कया दिवसनी उलखाण? ते विचारो.॥ १३ ॥ चंदराजा पूर्व दिशानो स्वामी ने, हूं तो एक क्षत्रिय पुत्र बु, स्वार्थ वगर देखी पेखीने शामाटे खोटुं बोलीए? ॥ १४ ॥ सा दीठो तमे चंद सारिखोरे,मुक मांहे अनुसाररे लाल॥ ते नूले नूलो खरे रे, सरिखा केई संसाररे लालाना॥१५॥साराचे गुण जाण्या विनारे,सरिखासरिखे कुण रे लाल॥बेहु उज्ज्वल पण सांजलोरे,कपुर किहां किहां गुणरे लाल ॥ ना॥१६॥ अर्थ ॥ तमे मने चंद जेवो देखो बगे, मारामां तेना जेवो अनुसार (अणहार) हशे. रखे तमे चुलोगे. श्रा संसारमा कश्क सरखे सरखा मली आवे . ॥ १५ ॥ गुण जाण्याविना सरखे सरखा जोश्ने कोण राजी थाय? जुवोने कर्पूर अने लुण बने उजलां वे पण गुणमां केटलो फेर बे? ॥ १६॥ सा मूकी द्यो नोलामणीरे, कहे सिंहल महीपालरे लाल ॥ मोहन विजये त्रीजी कहीरे, वीजा उल्हासनी ढालरे लाल ॥ ना ॥ १७ ॥ अर्थ॥हे सिंहल राजाए कह्यु,आq नोलपण मूकीद्यो.मोहनविजये था बीजा नलासनी त्रीजी ढाल कही. १७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ६ए ॥ दोहा ॥ सुपुरुष बानो किम रहे, आचारे अवसूंब ॥ लख जो जलमे बिपाडीये, जिम तरी थावे तुंब ॥१॥ मृगमद परे डाना रहो, गुण पण अंबर चूर ॥ प्रगट करे ते तुम नणी, रहो जो यद्यपि दूर ॥२॥ . अर्थ ॥ आचारथी उज्वल एवो सत्पुरुष उलखाया विना गनो रहे नहीं. तुंबडाने लाखवार जलमां मुबाडी बुपावीए तो पण ते तरी आवे . ॥१॥ कस्तुरी लगावी नाना रहो पण तेना वस्त्र साथे लागेला गुण तमे दूर रहेशो तो पण तमने प्रगट करशे. ॥२॥ अवधि गणंते साहिबा, हवे मख्या बो श्राज ॥ नाम कहो थाउ प्रगट, ह न करो माहाराज ॥३॥ एम कहेते थके आवीज, सिंहल मंत्री ताम ॥ कपटी कुटिल कदाग्रही, धर्मति हिंसक नाम ॥४॥ अर्थ ॥ हे साहेब, केटला दिवसनी अवधि गणतां आज तमे मली आव्या गे. हे महाराजा,हवे तमारु नाम कहो अने प्रगट था, हठ करो नहीं ॥३॥ एम कहेतामां ते वखते सिंहल राजानो मंत्री तत्काल श्रावी चडयो. ते कपटी, कुटिल अने कदाग्रही हतो; वली तेनुं मुर्मति एवं हिंसक नाम हतुं.॥४॥ जल कहे तिहां थल पण नही, चलवे माकडमाल ॥ रवि उदयास्त · लगे सदा, खोटिहालने चाल ॥ ५॥ प्रणमी चंद नरिंदने, बेगे तेह श्रासन्न ॥ तिणे प्रारंजी कुटिलता, करी वदन सुप्रसन्न ॥६॥ श्रर्थ ॥ ते ज्यां जल कहे त्यां स्थलपण न होय. ते बधु डाकडमालश्री चलवे सूर्य उगे त्यारथी श्रस्त थाय त्यां सुधी ते खोटी हाल चाल करे. ॥ ५॥ ते मंत्री चंदराजाने प्रणाम करी तेनी नजिक बेगे; पठी तेणे मुख प्रसन्न करीने कुटिलता आदरवा मांडी. ॥६॥ ॥ ढाल चोथी॥ नंद सलूणा नंदना रे लो ॥ तें मुने नांखी फदमां रे लो॥ ए देशी ॥ सांजलो चंद नरेसरूरे लो॥ रायजादा अलवेसरूरे लो ॥श्राज विहंगम मीठमारे लो,नयणे तुमने दीउमारे लो ॥१॥ सिंहल नृपनी विनतिरे लो,तमे नथी मानता श्यावतीरे लोन करो श्म बहु कानीय रे लो,रढीयाला रढमानीय रेलो ॥२॥ अर्थ ॥ हे पृथ्वीपति रायजादा तमे हुँ कहुं ते सांजलो. आज मारे पदी मधुर श्रया (सारां शुकन थयां) के जेश्री तमे मारा नयनवडे जोवामां याव्या. ॥१॥ हे राजा, तमे अमारा सिंहल राजानी विनति शामाटे नश्री मानता? एवी घणी हठ करो नहीं, हे रढीआला रढ मानीए. ॥२॥ जूठे किम कुल उलवोरे लो,शुं तमे बालक जोलवोरे लो॥अतुं श्रमे नयी नाषतारे लो,वाद तजो थाल उतारे लो॥३॥ मानता नथीशे वांकडे रे लो ॥ अहो श्राजा नगरी धणीरे लो, आशा तमथी श्रने घणी रे लो ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ तमे जुटुं बोली तमारा कुलने केम गोपवो जे? शुं तमे बालकनी जेम जोलवो गे? अमे असत्य For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय उल्लास. १० बोलता नथी माटे वाद करवो बोडी दइने बता था. ॥ ३ ॥ तमे श्रमारा शा वांके मानतानथी ? हवे काममा व्या बो, क्यां जाशो? अरे आजा नगरीना धणी, मारे तमारी पासेथी घणी श्राशा वे. ४ देव वचने श्रमे लख्या रे लो, नाम ठाम कुल पारख्या रे लो || मांगे अंधारुं कूटी ये रे लो, ते वाते किम बूटी येरे लो ||५|| रात थोडी वेशतो घणारे लो, थें बो साच कोमामा रे लो ॥ तमने शुं कहीये वलीरे लो, पाणी न खमे पातली रे लो ॥६॥ ॥ देवीनां वचनथी तमने उलखी लीधा बे. वली तमारां नाम, गम ने कुल पारखी लीधां बे. जो डांगी अंधाराने कूटवा मांगीए तो ते वातथी केम बुटाय ? ॥ ५ ॥ रात थोडी वे छाने वेष घाले. माटे हे! कोमामा राजा, दवे सत्य कहो. तमने वली शुं कहीए ? पातली होय ते पाणीने खमे नहीं. ॥६॥ दरणी पण उंची वही रे लो, थोडी घणी रयणी रही रे लो ॥ श्रति ताएयुं खमतुं नथी रे लो, बीजा नथा एकथी रे लो ||७|| लागो सचिव हव सुंदरू रे लो, बोल्यो चंद नरेशरू रे लो ॥ शुं कारिज बे चंदथी रे लो, अवर जला शुं कोइ नथी रे लो ? ॥८॥ ॥ हरणी पण उंची चावी बे एटले मृगशर नक्षत्रना तारा उंचे श्राव्या वे, तेथी रात घणी थोडी रही . हवेति ताएयुं खमे तेम नथी, अने तमे एकथी बीजा यता नथी. ॥ ७ ॥ मंत्री हव करी सुंदर पणे बोलवा लाग्यो त्यारे चंदराजा बोल्यो, तमारे चंदराजानुं तेवुं शुं काम बे ? शुं कोइ बीजा तेना जेवा जला नथी ? ॥ ८ ॥ आजा नगरीये हुं हुं रे लो, हवे तमने साधुं कहुं रे लो || चंद करे तेहुं करूं रे लो, मानजो ते सघलुं खरुंरे लो || || सिंहल नृप हरख्यो घणुंरे लो, लागुं वचन सोहा रे लो ॥ युं तनु फणस तणी परेरे लो, हिंसक वली इम उच्चरेरे लो ॥ १० ॥ ॥स्यो, हुं तमने साचे साधुं कहुं हुं के हुं श्राजानगरीमां रहुं बुं. जे चंदराजा करे ते डुं करूं, श्रातमे सघलुं खरं मानजो. ॥ ए ॥ सिंहल राजा घणो हर्ष पाम्यो, तेने या वचन घणुं सारुं लाग्यं तेनुं शरीर फणसना फलनी जेम प्रफुल्लित थयुं. ते वखते हिंसक मंत्री बोल्यो. ॥ १० ॥ प्राणी रे लो, चिंताटालशे आपणी रे लो ॥ बानुं शुं बे चंद राजी रेलो, कारिज विषशे लाजथी रे लो ॥ ११ ॥ चंद चतुर चित्त चिंतवे रे लो, ए हिंसक इम शुंल वे रे लो ॥ का रिजशुं एहवं हशे रे लो, ते किम की मुजयी यशे रे लो ॥१२॥ ! ॥ हे प्रभु, जानगरीना धणी बे, ते आपणी चिंता टालशे. चंदराजाथी आपणे शुं बानुं राखवानुं बे, लाज राखशुं तो आपणुं काम बगडशे. ॥ ११ ॥ चतुर चंदराजा चित्तमां चिंतववा लाग्यो के, हिंसक मंत्री शुं वे बे? एवं शुं कारज हशे अने ते माराथी केम करीने यशे ? ॥ १२ ॥ व्यो वश हुं शुं करूं रे लो, ए धूरत टोलुं खरूं रे लो || एहनी गतिमें पारखी रे लो, यात्रा नही घर सारखी रे लो ॥ १३ ॥ सिंहल कहे शीघ्रोच्चमें रे लो, चंद पड्या शुं आलोच में रे लो ॥ ठग करी रखे तमे जाणतारे लो, रखे कंटक मे ताणता रे लो ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हुं हिं श्रववश थइ पयो; हवे शुं करूं? या तो बधुं धूतारानुं टोलुं बे. तेमनी गति में पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. रखी सीधी. घर जेवी यात्रा होय नहीं ॥ १३ ॥ सिंहले शीघ्रताथी कही वाट्युं के, हे चंदराजा,विचारमा केम पड्या? रखे तमो अमने उग जाणता अने रखे अमोने कांटामां ताणता ? ॥ १५ ॥ संशय धरो जो शा थकी रे लो, कदीये लिये श्म थातुर थकी रेलो॥ पर उपकारने कारणे रे लो, सुत कोश्क माता जणे रे लो ॥ १५ ॥ दिनकर अजवायूँ करे रे लो, कुण तस पेसकसी धरे रे लो ॥ वृद ___फले फल फूलथी रे लो, मणि वेचाये बहु मूलथी रे लो ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ तमे शामाटे संशय करो बो? श्रमे था आतुरताश्री कहीए बीए. पर उपकारन माटे कोश्क माता पुत्रने जणे जे. ॥ १५॥ सूर्य प्रकाश आप्या करे , तेने कोण पेशकसी (कर) नरे बे? वृदो फल फुल आपेडे अने मणि बहु मूल्यथी वेचाय ॥१६॥ निश दिन जे सरिता वहे रे लो, तस कुणशीदापण कहे रे लो॥ सरस निरस तृण श्रादरीरे लो, आपे दूध पयोधरी रे लो ॥ १७ ॥ उपकारी तुम जेवमा रे लो, ते जग थोमा दीठमा रे लो ॥ तुम उ पर श्राशा खरी रे लो, कारज करो करुणा करी रे लो ॥ १७॥ अर्थ ॥ नदी रातदिवस वह्या करेले तेने कोण शिखामण श्रापेठे ? गाय अने नेंस नीरस घास खाइने श्रादरथी सरस दूध आपे . ॥ १७॥ तमारा जेवा उपकारी जगत्मां थोडा जोवामां आवे ,अमे तमारी उपर खरी श्राशा राखी ने, माटे करुणा करीने अमारुं कार्य सिद्ध करो. ॥१०॥ ढाल ब्रह्मा मुख जासनी रे लो, सुंदर बीजा उदासनी रे लो ॥ पुण्य घणुं ए नूपर्नु रे लो, मोहन कदे कविरूपनुं रे लो ॥ १ए ॥ अर्थ ॥ श्रा बीजा उवासनी सुंदर चोथी ढाल कही . मोहनविजय कहे जे के,ए राजानुं अने कविना रूपर्नु घणुं पुण्य .॥ १५॥ ॥ दोहा॥ सिंहल नृप सिंहलप्रिया, तिम हिंसक मंत्रीश ॥ कुष्टि कनकधज तनुज, कपिला धावजगीस ॥१॥ गे चंदनरेसरू, मध्यपरिब्द एह ॥ जिम पंचेखिये सहित, मन सोहे ससनेह ॥२॥ अर्थ ॥ सिंहसराजा, सिंहलराजानी प्रिया, हिंसक मंत्री, कुष्टि (कोडीयो) कनकध्वज पुत्र अने कपिला धाव्य ॥ १॥ तेमां बगे चंदराजा-जे मध्य परिछेदमांजे-ते पांचजियोमा जेम मन शोले तेम पांचेमां शोले ॥२॥ तव श्राजापति उच्चरे, अहो सिंहल नूपाल ॥ कहो काज पडदो तजी, जिमहूं लहूं दयाल ॥२॥ पांचे चिंतातुर तमे, दीसो बो कहो केम ॥ बाहिरतो विवाहनो, मांड्यो मोहोगव एम ॥४॥ अर्थ ॥ आनापति चंद बोड्यो, अरे सिंहसराजा, तमे पडदो बोडी जे कार्य होयते कहो. जेथी हुँ ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ द्वितीय उबास. विषे दया नावे विचारूं. ॥३॥ तमे पांचे जणा चिंतातुर केम लागो बगे? अने अहिं बाहेर तो विवाहनो महोत्सव मांड्यो रे ॥४॥ नाम गम कुल गोत्र मुज, किम जाणो सहु कोय ॥ ते सघर्धा मांडी कहो, जे कांश व्यतिकर होक ॥५॥ जावू दे थानापुरी, थई जाशे प्रजात ॥ कह्या विना किम जाणीये, तुम मनमानी वात ॥६॥ __अर्थ ॥ तमे सौ मारुं नाम, गम, कुल अने गोत्र शीरीते जाणो? ए बधुं जे कांइ वृत्तांत होय ते मने मांडीने कहो. ॥५॥ मारे आजापुरीमां जावं , रखे प्रत्नात अई जाशे. तमारा कह्याविना तमारामननीवात शीरीते जाणीशकाय? ॥ ६॥ ॥ ढाल पांचमी॥ ॥ मन मोहनां लाल ॥ ए देशी॥ सिंहल नृप श्रादेशथीरे, मन मोहना लाल॥ हिंसक थयो वाचाल हो, जग सोहना लाल ॥ वीर नृपति सुत साहिबारे ॥ म ॥ विनति कडं महीपाल हो ॥जात्राता धाता कार्यना रे ॥मा दायक शाता खाम हो ॥ज॥ श्यो पनदो तुमथी हवे रे ॥म॥ अहो थाशा विश्राम हो जा॥ अर्थ ॥ सिंहल राजानी आज्ञाथी हिंसक मंत्री वाचालथयो. अर्थात् ते बोड्यो हे, जगशोजित वीरराजाना कुमार, हुँ तमने विनति करुं बु॥१॥ हे राजा, तमे त्रातागे, श्रमारा कार्यना कर्ताबो, शातानादातागे अने स्वामीनो हवे तमारी वचे शो पडदो राखवो. कारण के तमे अमारी आशाना विश्राम गो?५ किम दोहणुसंताडीये रे ॥मा लेवा जावं तक हो॥जणानाचे बांधी घूघरारेमा शो तिहां बूंघट वक्र हो॥ज॥३॥ सेवक रहे सेवा विषे रे ॥मा तिणे केही करवी लाज हो ॥ज॥श्रवधारोथई एकमनारेमाश्रम उलंग महाराज हो ॥ज०॥४॥ अर्थ ॥ बास लेवा जावीने दोणी संतामवी ? ज्यारे घुघरा बांधीने नाचवू होय तो पनी वांको धुंघट शामाटे ताणवो.? ॥ ३ ॥ सेवक सेवामा रहे तेमां तेणे शामांटे लज्जा राखवी? हे महाराज, आप एक चित्तम अमारा अभिप्रायने बराबर ध्यानमा राखो. ॥४॥ ए सुत सिंहल रायनो रे ॥ म ॥ कनकध्वज सुकुमाल हो ॥ ज० ॥ प्रेमलालडी एहने रे ॥ म ॥ परणी थापो कृपाल हो ॥ ज० ॥५॥ पर उपकारी सेहरा रे ॥ म ॥ ए जे तुमथी काम हो ॥ ज ॥ हो जो श्रमयी तेहवा रे ॥ म ॥ जे जेहबुं तुम नाम हो ॥ ज०॥६॥ अर्थ ॥ हे कृपालु, श्रा कनकध्वज नामे कोमल कुमार सिंहलरायनो पुत्र ने तेनी साथे प्रेमला खक्ष्मीने परणावी आपो. ॥ ५॥ तमे पर उपकारि बो, तेथी आ काम तमाराथी थवानुंचे. जेवु वमारूं नाम तेवा तमे अमारी सा वर्त्तजो. ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. प्राचीपति कहे सचिवने रे ॥म॥ श्म किम कहो उच्चूत्रहो ॥ज०॥ में तो सांजत्युं प्रेमला रे ॥मा परणशे सिंहल पुत्र हो ॥ ज० ॥ ७॥ हूं तो ते जोवा जणी रे ॥ म ॥ श्राव्यो बुं निश एणह रे ॥ ज० ॥ कनकध्वज परणे नही रे ॥म ॥ कहो ते कारण केण हो ॥ज०॥॥ अर्थ ॥ पूर्वदिशाना पति महाराजाए मंत्रीने कडं के, तमे आएँ अघटित केम कहोगे ? में तो सांनट्यु ने के, प्रेमला सिंहलराजाना कुमारने परणशे ॥ ७ ॥ हूं तो आ रात्रे ते महोत्सव जोवाने आव्यो बुं. कनकध्वज कुमार तेने परणे नहीं तेनुं कारण शुं जे? ते कहो. ॥ ७॥ कनकध्वज वधू प्रेमला रे ॥ म ॥ श्म सवि जाणे संसार हो ॥ ज०॥ तो किम कूडे बोलडे रे ॥ म० ॥ मुजने चढावो बो नार हो ॥जए॥ चंद जणी हिंसक कहे रे ॥ म ॥ सिंहल नृपनो जे जातहो ॥ ज० ॥ कुष्टि पूरव कर्मथी रे ॥ म ॥ अकथानी वात हो ॥ ज० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ कुमार कनकध्वजनी वधू प्रेमला जे एम सर्व जगत् जाणे ते उतां तमे आवा कुडा बोलथी मारा उपर नार केम चडावोगे ? ॥ ए॥ हिंसक मंत्रीए चंदराजाने कह्यु के, सिंहल राजानो कुमार पूर्वकर्मना योगथी कोमी . ए वात कथी जाय तेवी नश्री. ॥ १०॥ लेख लिखितथी प्रेमला रे ॥ म ॥ केरो हुन विवाह हो ॥ ज० ॥ पण स्वामी ए वातनो रे ॥ म॥ तुम हाथे निरवाह हो ॥ ज० ॥ ११ ॥ पनन प्रयोगे जश् चढ्यो रे ॥म ॥ जिम जर दरीये नाव हो ॥ज॥ तुम सरीखा खेवट थकी रे ॥ म ॥ कोश्क फावे दाव हो ॥ज॥१२॥ 'अर्थ ॥ लेख लखवाश्री प्रेमलानो विवाह भयो , पण हे ! स्वामी, ए वातनो निर्ण्य हवे तमारे हाथे श्रवानो बे. ॥ ११॥ पवनना तोफानथी जेम वाहाण जरदरीए जइ चडे तेम आ बन्यु जे. हवे तमारा जेवा चतुर खलासीथी वखते कोइ दाव फावतो आवे तेम जे. ॥१५॥ ए सिंहल अवनीशनी रे ॥ म ॥ हवे तुम हाथे लाज हो ॥ ज०॥ श्राशा अंबर जेवडी रे ॥ म० ॥ जे तुमथी माहाराज हो ॥ ज० ॥१३॥ हिंसकने शशिनृप कहेरे ॥ म ॥ किम अज्ञान ए कीध हो ॥ ज० ॥ शुंबे वेर प्रेमला थकी रे ॥मं॥कनकध्वजने जे दीध हो ॥ज॥१४॥ अर्थ ॥ हे महाराज, ए सिंहलराजानी लाज हवे तमारे हाथे जे. अने तमाराथी श्रमे श्राकाश जेवमी आशा राखीने बेग बीऐ. ॥ १३ ॥ राजा चंदे हिंसक मंत्रीने कर्वा के, तमे आq अज्ञान केम कर्यु? तमारे प्रेमला साथे | वैर हतुं के तेने कनकध्वज जेवा कोडीश्राने आपी ? ॥ १५ ॥ केम बिगाडो सहु मिली रे ॥ म ॥ श्म अबला अवतार हो ॥ ज० ॥ किम सांसहे ए वातथी रे॥ म ॥ कलिमल हरकीरतार ॥ ज० ॥१५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SH द्वितीय उदास. मकरध्वज नृपनी सुता रे ॥ म ॥ में किम परणी जाय हो ॥ ज०॥ ते पण तमने श्रापवी रे ॥म०॥ ते मुजथी किम थाय हो ॥ज॥१६॥ अर्थ ॥ तमे सर्व मलीने आ अबलानो अवतार केम बगाडो बगे? आवी वात कलिकालना मलने हरनारा परमेश्वर केम सहन करे? ॥१५॥ मकरध्वज राजानी पुत्री माराथी केम परणी जाय? तेम ते तमने आपवी ते पण माराथी केम थाय? ॥ १६॥ चंदतणी चतुराश्ये रे ॥ म ॥रंज्यो सिंहल नूप हो ॥ ज०॥ पांचमी ढाल मोहन कही रे ॥ म ॥ बीजे जबासे अनूप हो ॥ ज० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ राजा चंदनी आवी चतुराईथी सिंहल राजा राजी श्रयो था प्रमाणे श्री मोहनविजयजीए बीजा उवासनी पांचमी मोहन ढाल हे ! मोहन कही ने ॥१७॥ ॥दोहा॥ चंद नृपति हिंसक जणी, कहे वचन एकंत ॥ श्म किम मुजने उपदिशो, अणघटता उदंत ॥१॥ मुज तुम मेलो थाजनो, जोरे कीधो चंद ॥ मुज बागल मांड्या तमे, फोगट कूडा फंद ॥२॥ अर्थ ॥ चंदराजा हिंसक मंत्रीने एकांते कहे , के हे ! मंत्री तमे अण घटतावृत्तांतनो उपदेश मने केम आपो गे? ॥१॥ तमारो ने मारो आ मेलाप करवामां आव्यो ने तेमां तमे मारी आगल फोगटना फंद मांडी बेग ते ठीक नहीं. ॥२॥ निपट कपट रचना विकट, शी मुज आगल मित्त ॥ जावाद्यो काढण नथी, हे हिंसक सुविदित्त ॥३॥ पोढी कन्या प्रेमला, कोढी ए व राज ॥ ए जोडी बोडी दियो, न करो एह अकाज ॥४॥ अर्थ ॥ अरे मित्र, आवी कपटनी विकट रचना मारी आगल शा माटे करोगे? हे विधान मंत्री, ए वात जावाद्यो. तेमां कां सार नथी. ॥३॥ ए मकरध्वजनी कन्या उत्तम ने, अने जे तेनो पति करवा धारो गे ते कोडी . माटे ए जोडीने करवी गेमीद्यो. आq अकार्य न करवानुं करो नहीं. ॥४॥ देश कवण तुम नूपनो, कवण नाम किहां वास ॥ किम अनुचित संबंध ए, मेल्यो करो प्रकाश ॥५॥ साचुं सवि संदेपथी, कहो मुजने प्रबन्न ॥ तुम केलं निसुण्या पली, राजी करशुं मन्न ॥६॥ अर्थ ॥ तमारा राजानो कयो देश ? तेमनुं नाम शुं? तेमनो निवास क्या ? तमे श्रावो अनुचित संबंध केम मेलव्यो ? ते प्रकाश करो. ॥ ५॥ ते साचे साचुं गुप्त होय ते पण कहो. तमारुं वृत्तांत सांजड्या पजी श्रमे मनने राजी करीशु. ॥६॥ अथ हिंसक संदेपथी, नाखे कथा स्वकीय ॥ ग्राहक बुझे सांजले, चंद राय कमनीय ॥७॥ अर्थ ॥ पजी हिंसक मंत्री पोतानी कथा संदेपथी कहेवा लाग्यो. अने ते मनोहर राजा चंद ग्राहक बुद्धिए सांजलवा लाग्या.॥७॥ For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ॥ ढाल बी ॥ ॥ रामचंद के बाग ॥ चपो मोरी रह्यो री ॥ ए देशी ॥ मनोहर सिंधु देश, परिसर सिंधू नदीरी ॥ गंगा समदृह ढूंति, श्री सरित् वदीरी ॥ १ ॥ गिरिवर शिखर पडूर, डुरथी भूरि मेरी ॥ गगने शंकाणो सूर, निरखे रथांग भ्रमेरी ॥ २ ॥ अर्थ ॥ सिंधुनदीना प्रदेश उपर मनोहर एवो सिंधु देश बे. ज्यां सिंधुनदी गंगा नदी जेवा मोटा 5हवाली आवी रहेली बे. ॥ १ ॥ जेमां दूरथी देखाता मोटा पर्वतना शिखरो घणां ऊचांबे, के जेने सूर्य श्राकाशमां शंका पामी रथना चक्रना चमथी जुवे बे. एटले जाणे रथचक्र होय तेवा धारे बे. ॥ २ ॥ जिहां करे सरिता संकेत, उगमी जल निधि जावा ॥ डूत पएं करे तेम, विचमा फिरती नावा ॥ ३ ॥ नहीं जन मांहे खार, सहुको सरल स्वावी ॥ देश गुणे माधुर्य, महोदधिमां पण यावी ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ ज्यां समुप्रप्रत्ये जती एवी सरितार्ज संकेत करे बे ने तेनी वचमां फरती नाविका मां दूतपणानुं काम करे बे. ॥ ३ ॥ ते देशना लोकोमां कोइ द्वेषी नथी. सर्व सरल स्वभावी बे. ते देश खारा समुद्रमां आवेलो बे तथापि माधुर्यना गुण वालो बे. ॥ ४ ॥ उ जिहां गज सरज शरीर, मदकर गुहिरा गाजे ॥ वन घन नित्य सपंक, निरखी घनाघन लाजे ॥ ५ ॥ श्रहो थाना नगरीश, बे इम देश नवीनो || तिहां प्रति मुख्य प्रसिद्ध, सिंहल नगर नगीनो ॥६॥ अर्थ ॥ जे देशमां हाथीज॑नां शरीर रज नरेलां वे अने ते मदकरता गाजे बे. घाटावनमां कादववाला हाथीने जोइ मेघ पण लका पामे बे. ॥ ५ ॥ हे ! श्राजानगरीना राजा, एवो ते नवीन सिंधु देश बे, मां ति मुख्य रीते प्रसिद्ध एवं सिंहल नगर बे. ॥ ६ ॥ मुगता चतुःपथ मांदे, विगलित पार परारी ॥ जाणे करी जन जार, दंतुर हूई धरारी ॥ ७ ॥ सुरपुर सहोदर जाण, जिणे निरख्यो ते नर कोण, लंका देखी वखाणे ॥ ८ ॥ ॥ Jain Educationa International ॥ जेना चोकमां परंपराए गली पडेलां मोती जाणे लोकना जारथी दबाइने पृथ्वीए दांत बाहेर काढ्या होय तेवां देखाय डे. ॥ ७ ॥ जेणे ते नगर जोयुं होय ते तेने स्वर्गना नगरनुं सहोदर जाणे बे. नागल लंकाने जुवे तोपण तेना वखाण कोण करे ? ॥ ८ ॥ गढ मढ मंदिर पोल, तिम चौउटा चोराशी ॥ जे जन तिहां उत्पन्न, ते सही पुण्य विलासी ॥ए॥ तिहां कनकरथ नूप, रूपे काम जिश्योरी ॥ श्ररि तरु नमनने काज, पवन प्रचंड निश्योरी ॥ १० ॥ अर्थ ॥ ते नगरनां किलो, मढ, मंदिर, दरवाजा अने चोराशी चउटा अति सुंदर बे. तेमां जे माणस उत्पन्न For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ द्वितीय उवास. थाय ते खरेखरा पुण्यना विलासी जे. ॥ ए॥ ते नगरमा रूपमा कामदेव जेवो कनकरथनामे राजा ले. जे शत्रुरुपी वृदोने नमाववाने प्रचंड पवन जेवो . ॥ १० ॥ पटराणी महानाग, एह ने कनकवतीरी ॥ पतिजगती रतिरूप, सुकृतकारि सतीरी ॥ ११॥ प्राकृत पुरुष हुँ तास, स्वामी हिंसक नामे ॥ मुजने नृप बहुमान, पदोचुं सघले कामे ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ तेने कनकवती नामे महा लाग्यवती पटराणी जे. जे पतिनी नक्तिवाली, रतिजेवा रूपवाली, सुकृत करनारी अने सती ने. ॥११॥ हुँ हिंसक नामे तेनो प्रकृतिपुरुष एटले प्रधान . राजा मने बहुमान आपेठे अने हुं राज्यना सर्वकाममा पोहोचीशकुं. ॥ १२ ॥ वाहतुं सहुने काम, वादलु चाम नहीं री ॥ साची ए जगरीत, चंदजी जाणो सहीरी ॥ १३ ॥ चोथी ए कपीला धाव, ब्रह्मा पुत्री जिसीरी॥ पियूष पयोधर एड, नहीं जगनारि इसीरी॥१४॥ अर्थ ॥ हे राजा चंद, सर्व ने काम वाहालुं होय जे कोश्ने चाम एटले त्वचावालुं शरीर वाहालुं होतुं नश्री अने ए जगत्नी साचीरीत . ॥ १३ ॥ चोथी कपिला नामे तेने धात्री (धाव्य) ने, जे ब्रह्मानी पुत्री सरस्वती जेवीने. तेना स्तन अमृतथी जेरेला. जगत्मां तेना जेवी कोई स्त्री नश्री. ॥ १५ ॥ हय गय रथ सुपदाति, गणतां सुरगुरु नूले ॥ एहनी झछि निहालि, धनदो पण नवि फूले ॥ १५ ॥ ए नृपने दरबार, शत्रुकार सुरंगा ॥ लगाती हुई तेण, पूर्वानिमुखी गंगा ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ तेना घोडा, हाथी, रथ अने पेदल ने गणता देवतानागुरू वृहस्पति पण नूली जाय वे. तेनी समृधिने जो कुबेर भंडारी पण फुल मारी शकतो नश्री. ॥ १५॥ ए राजाना दरबारमा शत्रुना पराजवने माटे एवी सुरंगा (खाइ), जेनाथी लजापामीने गंगानदी पूर्वाभिमुखी एटले पूर्व दिशा प्रत्ये ज नारी श्रइ गइ . ॥ १६ ॥ सकल प्रजा धनपात्र, सधजा सौध उत्तंगा ॥ नूप रजाथी सर्व, विगर सजाते सुरंगा ॥१७॥ पंडित मंमित वाद, नाद सुकंबु वि राजे ॥ तिम जनवजनो साद, दधितिणे गाजतो लाजे ॥१०॥ अर्थ ॥ तेनी सर्व प्रजा धनपात्र बे. तेनी नगरीमां ध्वजावाला उंचा मेहेलो ने अने राजानी आझाथी सर्व लोको लारे शिक्षा वगरना होवाश्री सदा आनंदमां रहे . ॥ १७ ॥ त्यां पंडितोना पोताना मतने मंझन करवाना ध्वनि शंखना जेवा शोनेने अने शेहेरमां लोकोना समूहनो नाद एवो चाले के जेश्री गर्जना करतो ससुज शरमा जाय . ॥ १० ॥ चपला श्रचपल नाव, थव पुरमांहे रही री ॥ जाणे नको दरिज, एहमां कूड नही री ॥१५॥ एहवे बागल वात, तुमने । यथास्थित नाखी॥तुमथी का तिलमात्र, अंतरको नहीं राखी ॥२०॥ अर्थ ॥ ते नगरमा चपला एवी लक्ष्मी स्थिर थइने रही बे. त्यां कोई दरिती जोवामांज आवतुं नश्री. For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. 99 ॥ १५ ॥ हे राजा चंद, या प्रमाणे जे वात हती ते में तमारी आगल यथार्थ पणे कही बे. तेविषे तमारी गल जरापण अंतर राखेल नथी. ॥ २० ॥ ए बीजे उल्लास, बवी ढाल सुरंगी ॥ एही आगल वात, मोहन कड़े प्रति चंगी ॥ २१ ॥ अर्थ ॥ श्रा बीजा उल्लासमां मनोहर एवी बठी ढाल श्री मोहन विजयजीए कहेली बे. हजु श्रागल तेनाथी पण रसिक वात श्रवशे. ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ राणी कनकावती, बेठी निज श्रावास ॥ हिाडे सुत चिंता धरे, मुख मेल्हे निःश्वास ॥ १ ॥ सजल नयण बाती सकुच, सखी वचन न सुहाय ॥ जिम तट बाहिर माबली, जब विदूषी अकुलाय ॥ २ ॥ ॥ एकवखते राणी कनकावती पोताना मंदिरमां बेसी मन मुखमांश्री निसासा मुकती हृदयमां पुत्री चिंता करवालागी . ॥ १ ॥ तेना नेत्रमां आंसु श्राव्यां हतां, स्तनवाली बाती थडकती हती, सखीनां 'वचन तेने गमतां नहता. जेम कांठा उपर माउली तरुफडे तेम ते आकुल व्याकुल थती हती. ॥२॥ राजा श्रगल धसमसी, दासी कहे विरतंत ॥ श्रवीने नूपति तुरत, बोलावे एकंत ॥ ३ ॥ हे वनिते चंद्रानने, इम केम तुं दिसुश्री जीनो कर्यो, किम इम दखणी चीर ॥ ४ ॥ लगीर ॥ अर्थ ॥ राजानी गल दासीए यावी ते वृत्तांत जणाव्यो, तत्काल राजाए एकांते श्रावी तेने बोलावी. ॥ ३ ॥ हे चंद्रमुखि वनिता, तुं दिलगीर केम थाय बे? तें तारा सुश्री तारा वस्त्रना पालवने केम जीनो कर्यो ? ॥ ५ ॥ केणे लोप्युं होये वचन, तो तस जाषो नाम ॥ जिम तेहने देनं सका, एड्वां न करे काम ॥ ५ ॥ धण कण कंचण मणि रयण, देश नगर जंकार ॥ खामी नही कोई वस्तुनी, तुं मुज प्राणाधार ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ हे बाला, जेणे तारुं वचन लोप्युं होय तेनुं नाम प. अरे ! हुं तेने शिक्षा श्रपुंजे फरीवार एवां काम करे नहीं. ॥ ए ॥ हे ! प्रिया ! धन, धान्य, सुवर्ण, मणि, रत्न, देश, नगर ने चंडार तैयार बे. मारे कोइ वस्तुनी खामी नथी. तुं मारी प्राणाधार बुं. ॥ ६ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ ॥ थापरवारी हुं साहिबा, काबिल मत चालो ॥ ए देशी ॥ प्रेमदा प्रीतमने, कहे जरी दीरध श्वासा || स्वामी तुम सुप्रसादथी, संपूरण आशा ॥ १ ॥ वचन उलंघी कुण शके, तम सुन. जरे स्वामी ॥ प्राणेश्वर तुम सारिखो, हूं जाग्ये पामी ॥ २ ॥ अर्थ ॥ लांबा नीसासा मूकती कनकवती राणीए पोताना प्रियतमने कह्युं के, हे स्वामी, तमारा प्रसादथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय उवासमारी सर्व आशा संपूर्ण जे. ॥१॥ हे स्वामी, ज्यां सुखी तमारी मारी उपर सारी नजर बे, त्यां सुधी मारूं वचन कोण जलंघन करी शके ? हुँ सारा नाग्यश्री तमारा जेवा स्वामीने पामी बु.॥२॥ पहे वेष ते नव नवा, जे शचिये न दीग॥जोजन मुखने नावतां, करुं बहु विध मीगं ॥३॥ क्षण क्षण नूषण नव नवां, मणि रयणे जमीया ॥ निरखी सुर शंसय धरे, जे ए केणे घमीयां ॥४॥ अर्थ ॥ हे! नाथ! इंशाणीए पण जे जोया नहोय तेवा नव नवा वेष हुँ पेहेरूं बुं; वली मुखे नावे तेवां बह प्रकारनां मधुर जोजन करुवं. ॥३॥ हे स्वामी, मणि रत्नोथी जडेलां एवां नव नवां श्रानुषणो हं कणे कणे पेहेरूं बुं, जेने जोड्ने देवता 'आ कोणे घड्यां हशे' एवो संशय करे .॥॥ मृग मद सोधा अरगजा, सखी हाथ न सूके ॥ मधुकर तेणे परिमले, मुज संग न मूके ॥ ५॥ जाणूं तो डे सुख घणां, पण तृण समजाj॥ अनोपम एक अंगजविना, जीवित प्रमाणुं ॥६॥ अर्थ ॥ कस्तुरी अने अगरुचंदनथी मारी सखीना हाथ सुकाता नथी; तेनी सुगंधथी जमरा मारो संग गेडता नथी. ॥ ५॥ हुँ विचारूं तो मारे घणां सुख के, पण ते बधां हुँ तृण जेवा गणुं बुं. पण एक अनुपम पुत्र विना मारु जीवित नकामुं . ॥६॥ कानन कुसुम तणी परे, मुज अवतार अलेखे ॥ सुत विण धनवंतने सहू, रवि उदय उवेखे ॥ ७॥ तनु धूसरी तलटूरिया, तोतलाता हसता ॥ पडता रडता लोटता, जिमता कसमसता ॥ ७॥ अर्थ ॥ वननां पुष्पनी जेम मारो अवतार अलेखे जाय . पुत्र वगर कदि धनवंत होय तो पण तेनुं मुख सर्वे सूर्यना उदय वखते जोता नथी. ॥ ७ ॥ पुत्रना शरीर धूलथी धूसरा अश् गया बे, जेना माथा ऊपर केशतालटुरीश्रा ने, जे तोतलु बोली हसे बे, जे पडे, रमे, आलोटे अने जमता करे , ॥७॥ रवि साहमा उन्ना रही, आतप प्रारथता ॥ वारी करता विवदता, असमंजस कथता ॥ए॥शेरमीयें फिरता थका, थई दंमा सवारा ॥ एहवा सुत सुखजेहने, धन्य तस अवतारा ॥ १० ॥ अर्थ ॥वली जे सूर्यनी सामे उन्नारही तडाकामां पण बाया साथे सामा श्राय , जे विवाद करी जेम तेम बोलता फरे . ॥ ए॥ जे लाकडी उपर स्वारी करी शेरीमा फरेने, एवा पुत्रनां जेने सुख तेना अवतारने धन्य बे॥१०॥ कीर्ति विस्तारक संपदा, सुतवंश विस्तारू ॥ जससुत तेहने वनविषे, वसवू पण वारू ॥ ११ ॥ सुतथी संपत् संपजे, गतग्रास . लहीजे ॥ वृद्धपणे सुतथी पीयु, श्रानंद रस पीजे ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ संपत्ति कीर्त्तिने वधारे के अने पुत्र वंशने वधारनार बे, तेथी जेने पुत्र ने तेने वनमा वसवू पण सारं .॥११॥ पुत्रधी संपत्ति सार्थक थाय अने ग्रास लश्ए ते पण लेखे थाय अने हे ! पति, वृक्षपपामां पुत्रथी आनंद रस पीवाय ॥१५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. पए सुतनी चिंता साहिबा, मुज मनडे खटके ॥ मन मोहन ते दिन केहो, सुत मुखने मटके ॥ १३ ॥ बेठी डं ते बालोचमें, नही चिंता बीजी ॥ निसुणी पाजण्यु नरवरे, मुखथी कहे जी जी॥१४॥ अर्थ ॥ हे स्वामी, ते पुत्रनी चिंता मारा मनमां खटके , पुत्रना मुखने मटकेश्री मारूं मन मोहन पामे ते दिवस क्यारे आवशे? ॥ १३ ॥ हुँ तेना विचारमा बेठी बु. मारे बीजी कां चिंता नथी. ते सांजली राज मुखथी जी जी एम कही बोटयो. ॥ १४ ॥ प्राण प्रिये चिंता तजो, जुन हरषित होइने ॥ एतो मोटी वातडी, नवि हाथे कोश्ने ॥१५॥ प्रयत्न मंत्रादिक योगना, करशुं सुविलासे ॥ ताहरे नाग्ये लिख्यो हशे, तो अंगज थाशे ॥१६॥ अर्थ ॥ हे ! प्राणप्रिया! चिंता गेडीदो. हर्षित थई जा. एवात मोटी, ते कोश्ना हाथमां नश्री.॥१५॥ आपणे सारा आनंदश्री मंत्रादिकना प्रयोग करवामां प्रयत्न करीशं. तेम करतां जो तारा जाग्यमां लख्यो हशे तो पुत्र थाशे. ॥१६॥ राणीने राजा इसी, देईने दिलासी ॥ तेडाव्यो मुजने तिहां, मूकीने दासी ॥ १७ ॥ मुज श्रागल वनिता तणी, कही वात विस्तारी ॥ में पण नृपने विनव्यु, एक बुद्धि विचारी ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ श्रा प्रमाणे राजाए पोतानी राणी कनकावतीने दीलासो श्रापी एक दासी मोकलीने मने तेडाव्यो. ॥ १७ ॥ राजाए पोतानी राणी विषेनी बधी वात मारी आगल विस्तारथी कही बतावी. पनी में एक बुधिए विचारी राजाने विनंति करी. ॥ १० ॥ अठम तपथी नरवरू, कुल देवी आराधो ॥ तास वचन अनुजायिथी, सुतनुं सुख साधो ॥ १॥ नूपति मन रंज्यो घणुं, एह वाते स्वामी ॥ श्रागल चंदजी सांजलो, सुकथा रस पामी॥२०॥ अर्थ ॥ हे नरवर, अठम तप करी तमे कुलदेवीनी आराधना करो. ते देवीनां वचनने अनुसरी पुत्रनुं सुख साधो.॥१॥ एवात सांजली राजानुं मन खुशीथयु. हे ! चंदराजा, हवे आगलते कथा रसथी सांजलो. बीजा उल्हासनी सातमी, कही ढाल रसाल ॥ ए पागल मोहन कहे, घणी वात विशाल ॥१॥ अर्थ ॥ श्रा बीजा उल्लासनी सातमी रसिक ढाल कही, श्री मोहन विजयजी कहे ले के, आगल घणी विशाल वात आवशे. ॥१॥ ॥ दोहा ॥ ए राजाये प्रहसमे,करी योति सुप्रकाश ॥ कुल देवी श्राराधवा, कर्या त्रण्य उपवास ॥१॥त्रीजे दिन तप जप थकी, सुचिता थकी अनूप ॥प्रगट थई कुल देवता, मनोहर सुंदर रूप ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ថ០ द्वितीय उदास. अर्थ ॥ राजाए हर्ष पामीने पोतानुं तेज प्रकाशित कर्यु अने कुलदेवी आराधवाने प्रथम त्रण उपवास कर्या. ॥ १॥ त्रीजे दिवसे तप अने जप करवायी प्रसन्न अइ, अनुपम सुंदर मनोहर रूपवालां कुखदेवी प्रगट श्रयां ॥२॥ चतुरंगुल दितिथी श्रधर,कुसुम दाम अमलान।अनिमिष नयन शक्ति अति,दिन दिन वधते वान॥३॥कर सायुध सुप्रसन्न मुखे, लोचन करुणा पात्र ॥ पद कटि नूषण वर मुखर,पावन निर्मल गात्र ॥४॥ ___ अर्थ ॥ ते देवी पृथ्वीथी चार आंगल उंचे रह्यां हतां. नहीं करमायेलां पुष्पनी माला पेहेरी हती, तेनां नेत्र निमेष वगरनां हता, तेनामां शक्ति घणी हती अने प्रतिदिन तेनो वान (वर्ण स्वरूप ) वधतो हतो. ॥३॥ तेना करमां आयुध हतां, मुख प्रसन्न हतुं, नेत्रमा करूणा हती, कटिनां आभूषणथी अने पगना जांजरथी ते मधुर शब्द करती हती. तेनुं शरीर पवित्र अने निर्मल हतुं. ॥४॥ एहवी कुल देवी तिहां,थई प्रसन्न मनरंग ॥कहे किम श्राराधी नृपति, मुजने अधिक उमंग ॥५॥हूं तूठी तुज उपरे, जूठी नहीं लिगार ॥ माग माग श्रापिश तुने, मन चितित निरधार ॥६॥ अर्थ ॥ आवां कुलदेवी मनमां प्रसन्न श्रश्ने बोट्यां, हे राजा, मने केम आराधी? मारा मनमां अधिक उमंग . ॥ ५॥ ९ जरापण जुतुं कहेती नथी, खरेखर तारी उपर संतुष्ट अश् . जे मन वांछित मागवू होय ते मागीले. ॥६॥ प्रगट वचन देवी तणां, निसुणी तव राजान ॥ कर जोमी सुत विनति, पजणे तास प्रधान ॥ ७॥ अर्थ ॥ कुलदेवीनां आवा वरदाननां वचन प्रगट रीते सांजली राजा पोतानी पुत्र विषेनी मुख्य विनंति बे कर जोडी करवा लाग्यो.॥७॥ ॥ढाल थामी ॥ ॥ वारी हुँ उदया पुर तणी ॥ ए देशी ॥ तुं कुलदेवी सेवी सदा, कुल वृद्धि समृद्धि करणार ॥ सखीरे ॥ श्रहो जननी सुत कारणे,मेंतो कीधो एह प्रकार ॥ सखीरे॥तुंकुणाए श्रांकणी ॥१॥ श्रासन सुतथी सांकडु, तिम हैयहुं ज्ञान संकीरण ॥ स॥ गृह संकीर्ण साधुथी, ए तो होये जो सुकृत जीर्ण ॥ स ॥ तुं॥२॥ अर्थ ॥ हे कुलदेवी, जो सर्वदा तमने सेव्यां होय तो तमे कुलनी वृद्धि अने समृद्धि करनारां गे. हे माता, पुत्रने माटे में आ प्रकारे प्रयास कर्यो बे.॥१॥ हे माता, जो पूर्वनां जुनां सुकृत होय तो माणसने पोतानुं आसन पुत्रधी संकीर्ण होय, हृदय ज्ञानश्री संकीर्ण होय अने घर साधु पुरुषोथी संकीर्ण होय. For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १ तुमे पण पूजा किण विधे,अंगजविण पामशो एम ॥सा प्रारथना पूर्या विना; कुल देवी कहाशो केमासण्तुं॥३॥सायर तटवासी जना, तसहोय जो दारिज साजासातेदनी लाज सायर जणी, तटवासी जणी नही लाज ॥सातुं॥४॥ अर्थ ॥ हे देवी ! मारे पुत्र न होय तो तमे पण आवी रीते पूजा क्याथी पामशो ? अने मारी प्रार्थना पूरी कर्याविना तमे शी रीते कुलदेवी कहेवाशो ? ॥३॥ समुज्ने किनारे रहेनारा लोकोने जो दारिज रहे तो समुज्नी लाज जाय , तेमां कांश ते समुजतटना वासीनी लाज जती नथी. ॥४॥ तेम कुलमा जो सुत नही, ते लाज तुने ने मात स॥ श्रापो अंगजवर मुने, शतवात तणी एक वातासणातुंयावनिता वचन श्राग्रह थकी,एम थाराधीमें तुज ॥ स ॥ ते माटे सुप्रसन्न थर्शसुत श्राप तुं जननी मुज ॥ स॥ तु॥६॥ अर्थ ॥ तेम जो कुखमां पुत्र न होय ते लाज तमारी जाय ने तेथी सो वातनी एक वात के, हे माता! तमे मने पुत्रनुं वरदान आपो. ॥ ५॥ हे जननी ! मारी स्त्रीना श्राग्रहथी में तमारी आराधना करी ने, माटे प्रसन्न अस्ने तमे मने पुत्र आपो.॥६॥ कुलदेवी नृपने कहे, तुज वचने हुई संतुष्ट ॥स॥ सुत थाशे एक ताहरे, पण तेहनी देह सकुष्ट ॥सण॥ तुंगा॥ श्म निसुणी नृप उच्चरे,मुज रोग रहित द्यो जात ॥सापाये पडं करूं विनति,अवधारो अरज मुज मात ॥ स॥ तुंग॥॥ अर्थ ॥ कुलदेवीए राजाने कह्यु, हे राजा, तारां वचनथी हुँ संतुष्ट अ . तारे एक पुत्र अशे, पण तेना शरीरमा कुष्ट ( कोड ) नीकलशे ॥ ७॥ देवीनां आवां वचन सांजली राजाए कह्यु, हे माता ! तमे मने रोग विनानो पुत्र आपो. ९ तमारा चरणमां पडीने विनंति करुं . आमारी अरज मनमा धारो.॥॥ तव देवी कहे नूपने,थई डायो मूढ कां होय॥साबांध्यां करम जेणे खरां,तस टाली न शके कोय ॥सतुंगाए। जिन चक्री हरि हलधरा, ते जोगवे कीधां कर्म ॥सा जीव दुःखी ते नवि होवे,जिणे कीधो पूरण धर्म ॥ सातुं॥१०॥ अर्थ ॥ देवीए राजाने कडं, हे राजा! तुं डाह्यो श्रश्ने मूढ केम पाय जेणे जे खरां कर्म बांध्यां होय तेने कोइ पण टाली शके नहीं. ॥ ए॥ हे राजा ! श्रीजिनेश्वर, चक्रवती अने बलदेव, ते पण करेला कर्मने लोगवे जे. जे प्राणी पूर्ण रीते धर्म करे ने ते जीव कदि मुखी यतो नथी. ॥१०॥ सुत कुष्टी दीधोतुंने,वर टाली न शके तेह ॥स॥ तुज वखते मुज मुख थकी, एम नीकट्युं वायक एह ॥स०॥तुंग॥१९॥ नृप कहे तुं तूती थकी,किम समयों कुष्टी जात ॥स॥ तस कारण देवी कहे,सुण वह तुं माहरी वात ॥ सातुं०१२॥ अर्थ ॥ हे राजा ! में तने कोढीया पुत्रनुं वरदान प्राप्यु. ते कोश्थी फेरवी शकाय तेम नथी. कारण के, मारा मुखथी जे वचन नीकली गयुं ते फरशे नहीं. ॥ ११॥ राजाए कह्यु, हे देवी ! तमे संतुष्ट श्रश्ने श्रावो कोढीयो पुत्र केम आप्यो? देवी बोड्यां-हे वत्स! तेनुं कारण शुंने ? ते मारी वात सांजल. ॥ १२॥ For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ द्वितीय उवास. मुज ववन सुरसेहरो,दोय देवी बुं श्रमे तास स॥ नित नित नवला जोगवं, प्रिय हुँती लोग विलास ॥ स॥ तुं॥१३॥ मुजथी गनो नाहले, मुज शोकने दीधो हार ॥स॥ तेहनी निरत मुजने थई,तिणे प्रगव्यो हियडे खार ॥सण्तुं॥१४॥ अर्थ ॥ सुरशेखर नामे मारो एक पति , तेनी अमे बे देवी स्त्रीजीए.अमे बने प्रियनी साथे नित्य नव नवा लोग नोगवता हता. ॥ १३ ॥ एक वखते ते पतिए माराथी गनो मारी शोक्यने हार आप्यो. तेनी मने जाण अवाथी मारा हृदयमां खार उत्पन्न अयो. ॥ १३ ॥ वलगी अमे बिहु बेनडी,करी कंते तेहनी नीर ॥सामुजने कटुक लागु घj, तिणे हुई हुँ दिलगीर ॥सातुं॥१५॥ चिंतातुर बेठी हती, एहवे आकर्षी मुज ॥ स ॥ हुं शहां श्रावी धसमसी,ए तुजने कडं में गुज ॥ स॥ तुं॥१६॥ अर्थ ॥ श्रमे बने बेनोए तेनी वढवाड करी. ते वखते पतिए ते शोक्यनो पक्ष को. तेथी मने घj मातु लाग्युं बने हुँ हृदयमां दिलगीर अश्॥ १५॥ चिंतातुर श्रइ बेठी हती, तेवामां तें मने आराधीने बोलावी एटले हुं रीसमां धमधमती श्रावी. या गुह्य वात में तने जणावी .॥१६॥ थाराधी पुमनी थकी,तेणे थाशे कुष्टी पुत्र ॥ स० ॥ श्रमे देवी थई नवि जपुं, मुखथी एहवं उत्सूत्र॥सातुं॥१७॥ अबताथी तो बतो नलो,श्म हृदय विमासे नूप ॥सा देवी वर शिरपर धर्यो,गृह पोहोती देवी अनूप ॥ स॥ तुं॥॥ अर्थ ॥ मारुं मन कचवातुं हतुं ते वखते तें आराधी, तेथी तारे कोढी पुत्र श्राशे. हवे देवी अश्ने अमे मुखथी उत्सूत्र (विपरीत-करे तेवू ) वचन बोलीशुं नहीं. ॥ १७॥ मुदल न होवाथी कोढी पण पुत्र होय ते सारो आवो हृदयमा विचार करी राजाए देवीना वरदानने माथे धर्यु. पळी ते अनुपम कुलदेवी पोताने स्थाने चाली गइ. ॥ १० ॥ बीजा उसासनी आठमी, कही मोहन विजये ढाल ॥ स० ॥ कहे हिंसक थाना धणी,वलि निसुणो वात रसाल स॥ तुंगारणा अर्थ ॥ श्रा बीजा नसासमी आवमी ढाल श्रीमोहन विजयजीए कही चे. हिंसक मंत्री कहे -हे धालानगरीना राजा चंद हवे आगल रसिकवात सांजलो. ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ निज थानक पदोती सुरी,पूरे तप राजान॥देवी वर राणी जणी, नाख्यो वधते वान ॥१॥ मुजने पण तेमी कह्यो, सफल सुरी विरतंत ॥ में तस दीधी धारणा, करशे जलुं नगवंत ॥२॥ - अर्थ ।। कुलदेवी पोताना स्थानमा पोहोची गइ. राजाए ते तपस्या पुरी करी. पोतानी राणीने राजाए वधता उमंगे ते वरदाननी वात कही. ॥१॥ पजी राजाए मने बोलावीने पण ते देवीनो सर्व वृत्तांत कह्यो. पली में तेने धारणा आपी के, जगवंत तमारु नखं करशे. ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. राजन देवी वचनथी, जो एहवोए थाय ॥ तो तस कुष्ट निवारशुं, करशुं विविध उपाय || ३ || राणी मुज वाणी यकी, रंजी चित्त मकार ॥ कोइक जीव तिपहिज निशा, उदर धर्यो अवतार ॥४॥ ॥ वली में कांके, हे राजा, कुलदेवीना वचनथी कदि ते कोढी पुत्र थाय, पठी विविध उपाय करी तेना कोढने आपणे निवारशुं ॥ ३ ॥ मारां वचन सांजलीने राणी चित्तमां राजी थइ. रात्रे तेना उदरमां कोइ जीवे अवतार धर्यो. ( गर्भधारण कर्यो . ) ॥ ४ ॥ भूमि निलय में जामिनी, राखी जतने भूप ॥ जिम लोजीनी संपदा, रहे सुरंगे कूप ॥ ५ ॥ गर्न स्थिति पूरे थये, प्रसव्यो सुत कुमाल || निसु सुजग वधामणी, आपे तव भूपाल ॥ ६ ॥ ८३ ॥ जेम लोनी माणस पोतानी संपत्ति सुरंगामां के कूवो करी तेमां गुप्तराखे तेम राजाए पोतानी गर्भिणी राणीने जूमिगृह ( जोयरा ) मां जतनाथी राखी ॥ ए ॥ गर्जनी स्थिति पूरी यतां कोमल पुत्रनो प्रसव थयो. ते उत्तम वधामणी सांजली राजाए तेने इनाम प्राप्यं ॥ ६ ॥ ॥ ढाल नवमी ॥ यां हारो सहेर जलो योधाणो राजाजी ॥ श्रवर जलेरो यांहारो मेमतोजी ॥ एदेशी ॥ सुतव मांड्यो नूप राजिंदा, नेर मूंगल वजडावी यांजी ॥ बांध्यां तोरण सरिसा द्वार राजिंदा, धवल मंगल वजडावी यांजी ॥ १ ॥ जायो पुत्र रतन ससनूर ॥रा०॥ नगरमा वात ते विस्तजी ॥ घणुं दरख्या नागर वृंद ॥रा०॥ जिम घनथी कादंबरी जी ॥२॥ अर्थ ॥ राजा पुत्र जन्मनो महोत्सव आरभ्यो. जेरी, जुंगल वगेरे वाजत्रो वगडाव्यां. राजद्वार उपर aai तोरण बांध्यां ने धवल मंगल गवराव्यां ॥ १ ॥ तेजस्वी पुत्र रत्नना जन्मनी वात श्राखा नगरनां प्रसरी गइ. नगरना लोकोना समूह मेघने जोइ मयूरनी पंक्तिनी जेम घणो हर्ष पाया ॥ २ ॥ कर्यो चंद्रादिक विधि सर्व ॥रा०॥ पुरजनथी प्रछन्न पणेजी ॥ सुत केरुं कनकध्वज नाम ॥०॥ उल्लाप्यं श्रादर घणोजी ॥३॥ सुत जन्म वासरथी तेह ॥रा०॥ पीमित कुष्ट रोगथीजी ॥ नवि औषध टेकी होय ॥रा०॥ पुरव कर्म प्रयोगथीजी ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ नगर लोकोथी गुप्तपणे चंद्रादिक ( जातकर्मादिक ) सर्व विधि कर्यो अने घणा श्रादथी पुत्र नुं नाम कनकध्वज एवं पाड्युं ॥ ३ ॥ पुत्र जन्म्यो तेज दिवसथी कुष्टरोग वडे पीकावा लाग्यो. पूर्वक ना योगथी ते उपर कोइ औषधनी टेकी लागती नथी ॥ ४ ॥ Jain Educationa International सुत वाधे भूमि ग्रहांदे ॥रा०॥ खायमे रयण तणी परेजी ॥ पुरवासी सघला लोक ॥ रा० ॥ मनमांहे चरिज धरेजी ॥५॥ जन यावे नृप दरबार ||रा०॥ कुंवर तणुं मुख निरखवाज ॥ लेई देश विदेशी ललाम ॥रा०॥ भूषण तिम हिंज नवनवाजी ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ जेम खाणमा रत्न वधे तेम पुत्र मिगृह मां वधवा लाग्यो. सघला नगरवासी लोक मनमां For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय उल्लास ४ आश्चर्य धरवां लाग्यां ॥ ५ ॥ लोको नवनवा देश विदेशी रत्ननां श्राभूषणो लइ कुमारनुं मुख जोवाने राज दरबार श्राववा लाग्यां ॥ ६ ॥ दूंतो उत्तर देनं तास ॥रा०॥ रूप अधिक नृप जातनोजी ॥ सुरकुंवर इसो नही स्वर्ग ॥रा०॥ संशय नहीं ए वातनोजी ॥७॥ कोई दुष्ट नयन संताप ॥रा० ॥ होवे देत कुतथीजी ॥ लघु बालक नूईरां मांहिं ॥रा०॥ राखीये तिथे संकेतथीजी ॥ ८ ॥ अर्थ | आवता लोकोने हुं उत्तर देतो के, राजकुमारनं रूप अधिक बे. एवो स्वर्गमां देवकुमार पण नहीं होय. ए संशय वगरनी वात बे ॥ ७ ॥ कोई दुष्टदृष्टिवालो आवे तेनी दृष्टि पडे तो संताप याय मां कुहेत जाय. तेथी श्रमे ए लघुबालकने जोयरामां राखीए बीए. ॥ ८ ॥ सहू 'माने साची वात ॥रा०॥ कोइ जेद लड़े नहीजी ॥ पुरवासीने दीए शीख ॥रा०॥ उत्तरएम की कहीजी || || सुप्रसंशा थई पुरमहिं ॥रा०कुंथर कुलो द्धर उपन्योजी ॥ कड़े सहुको मुखथी एम ॥रा०॥ प्रगटी पुन्याई नूपनीजी ॥१०॥ ॥ वात सर्वे साची मानता, कोइ तेनो जेद लेतु नहीं. या प्रमाणो उत्तर आपी श्रापी नगर ना लोकोने समजावी शीख श्रापता हता. ॥ ए ॥ श्रथी नगरमा 'राजाने घेर कुलनो उद्धार करे तेवा कुमारवर्या ने राजाना पुण्य प्रगट थया' एम सदु कोइ मुखथी कहेवा लाग्या. ॥ १० ॥ araj रवि दुर्लन ॥रा०॥ धन्य कुंवर अवतारनेजी ॥ कया यतन करवा अनंत ॥०॥ शास्त्रे पदारथ सारनेजी ॥ ११ ॥ इम लोक वचनथी वात ॥रा०॥ देश विदेशे विस्तरीजी ॥ ब्रह्मा पण नलदे नेद ॥रा०॥ परचित्त वृत्ति कपटचरीजी ॥१२॥ ॥ ' कुमारना अवतारने धन्य बे के जेनुं मुख सूर्यने निरखवं फुर्लन बे. कारण के, उत्तम पदार्थोनी अनंत जतना करवाने शास्त्रोमां कह्युं बे.' ॥ ११ ॥ श्रा प्रमाणे लोकोनां वचनथी ते वात देश विदेशमां विस्तार पामी. बीजानी कपट जरेली चित्तवृत्तिनो जेद ब्रह्माना जाणवामां पण तो नथी . १२ दवे लेइ किरियाणा को डि॥रा० ॥ श्रमारा पुरना व्यवहारीयाजी ॥ एणे विमलपुरीयें ते ॥०॥व्यापारे पाठ धारीयाजी ॥ १३ ॥ ईहां मकरध्वज भूपाल ॥रा०॥ महके सुजस पदो घणोजी ॥ व्यापारीये भेट्यो राय ॥रा०॥ पाम्युं मान घणुं घणुंजी ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ एवा समयमां अमारा नगरना व्यापारी कोटी करियाणा लइ विमलपुरीमां याव्या. त्यां व्यापार करवाने चरण धारण कर्या. एटले मुकाम कर्यो. ॥ १३ ॥ विमलपुरीमां मकरध्वज नामे राजा हतो. तेन सत्कीर्त्तिनो पडघो घणो वागी रह्यो हतो. ते व्यापारी राजाने मलवा श्राव्या. तेने घणुं मान प्राप्त थयुं ॥ १४ ॥ नृप व्यापारी करेवात ॥रा०॥ श्रावी सुता तव प्रेमलाजी ॥ जई बेठी तात उढंग ॥रा०पिंडीनूत चोसठ कलाजी ॥ १५ ॥ नव यौवना शशि मुख शुद्ध ॥राणतस स्तुति करतां न वि बजी ॥ परदेशी पाम्या श्रचंन ॥ राणा दीवी सुता आदर घणेजी १६ ॥ राजाने व्यापारी वचे वात थती हती, तेवामां राजानी प्रेमला नामे पुत्री यावी, ते पिता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ना उत्संगे जर बेठी. जाणे पिंझाकारे चोसतकला एकठी थर होय तेवी ते लागती हती. ॥ १५॥ ते नव यौवनवाली हती. तेनु मुख शुक्ल पक्षना चं जेवं हतं, तेनी स्तुति करीए तो पार आवे तेम न हतं ते कुमारीने घणा आदरथी जोइने विदेशी व्यापारी आश्चर्य पाम्या. ॥१६॥ ढाल नवमी बीजे उल्लास ॥ रा॥ मोहनविजये ए कहीजी ॥ मन हरणे चंद नरिंद ॥ रा॥ हिंसक मुख हारद लहीजी ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ श्रा बीजा जबासनी नवमी ढाल श्रीमोहनविजये कही . हिंसकमंत्रीना मुखनो श्रावो हार्द ख राजा चंद मनमा हर्ष पाम्या.॥ १७॥ ॥दोहा॥ अमपुर व्यापारी नणी, पूजे विमल पुरीश ॥ तमे कुण पुरथी श्रावीया, कुण तिहां नूप जगीश ॥ १॥ श्रम बागल नाषो तमे, तास सकल अधिकार ॥ तेणे पण श्रम नूपनो, मांडयो यश विस्तार ॥२॥ अर्थ ॥ विमलपुरीना राजाए ते अमारा नगरना व्यापारी ने पुज्यु. तमे क्या नगरथी श्राव्या? ते नगरमां राजा कोण .१ ॥१॥ ते सर्व वृत्तांत मारी पांसे कहो. पनी ते व्यापारीए अमारा राजाना यशनो वि. स्तार कहेवा मांड्यो. ॥ २॥ सिंधु देश सिंहल पुरी, अलकाने अवतार ॥ राज्य करे तिहां कनकरथ, गुण पूरण वसुधार ॥ ३॥ कनकध्वज सुत तेहने, कामरूप सुवि चार ॥ विधाताये तस सारिखो, नवि निर्यो संसार ॥४॥ अर्थ ॥ सिंधुदेशमा सिंहलपुरी नगरी जे. ते जाणे अलकापुरीनो अवतार होय तेवी लागे बे. तेमां गुणोथी पूर्ण एवो कनकरथराजा राज्य करे बे. ॥३॥तेने कामदेव जेवो स्वरूपवान् अने सारा विचारवालो कनकध्वज नामे पुत्र . विधिए आ संसारमा तेना जेवो को निर्माण कर्यो नथी. ॥४॥ कोई कुनयन नीतिथी, राखे नुश्रा मांह ॥ तस दरिस ए जोवा तणो,सहुने अधिक उबाद ॥५॥ श्रम हूंती केती कहुँ, कुंवर रूप प्रशंस ॥ एहमां जूठ रखे गणो, अहो श्रवनी अवतंस ॥६॥ अर्थ ॥ कोश्नी कुदृष्टि न पसे तेवा भयश्री तेने जोयरामा राखे बे. तेना दर्शन करवानो सर्वने अधिक उत्साह बे. ॥ ५॥ हे पृथ्वीना आजूषण रूप राजा! अमे ते कुंवरना रूपनी प्रशंसा केटली करीए.? तेमां तमे रखे जुलु मानता. ॥ ६॥ एम निसुणी हरष्यो घj, मकरध्वज नूपाल ॥ कीधा एम देशी जणी, शुचिवेशी सुविशाल ॥७॥ अर्थ ॥ आ सांजली राजा मकरध्वज घणो हर्ष पाम्यो. ते अमारा देशना व्यापारी तरफ तेणे पोतानी विशाल दृष्टि आरोपण करी. ॥ ७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ द्वितीय उवास. ॥ ढाल दशमी॥ ॥हरीया मन लागो॥ ए देशी ॥ मकरध्वज नृप सांजली,कनकध्वजनी ख्यात रे ॥ आजापति निसुणो, व्यापारी कीधा विदा,कमु वली श्रावजो प्रजातरे ॥ श्राजा ॥१॥ विमलपुरी मांदे करे, व्यापारी व्यापार रे ॥श्रामकरध्वजे तेमावीने,मंत्री बुद्धि नंमाररे ॥॥॥ अर्थ ॥ हे आनापति! राजा मकरध्वजे आ प्रमाणे कनकध्वजनी विख्याति सांजली ते व्यापारीउने विदाय कया, अने कह्यु के प्रजातकाले पाग आवजो. ॥१॥ ते व्यापारी विमलपुरीमां व्यापार करवा लाग्या. पठी राजा मकरध्वजे बुधिना नंडार रूप पोतानो मंत्री बोलाव्यो. ॥ २॥ कनकध्वजना रूपनी, संजलावी सवि वात रे ॥ आमंत्री कहे अम धागले, किम तस कहो श्रवदातरे ॥ श्रा॥३॥ नृप कहे प्रेमला मुजसुता, वर प्रापति थई एहरे ॥श्रा॥ ए सरिखो वर जो मिले, तो मुज उपजे सनेहरे ॥श्रा०॥४॥ अर्थ ॥ तेनी आगल कनकध्वज कुमारना रूपनी वार्ता कही संजलावी. मंत्री ए कडं, तमे मारी था. गल तेनी वार्ता केम करोगे ? ॥ ३ ॥ राजाए कह्यु, मारी प्रेमला कुमारी वरने योग्य अश्वे. जो तेने लायक वर मले तो मने घणो स्नेह उपजे.॥४॥ ए कनकध्वज सारिखो,नही कोई वर संसार रे ॥श्रा॥जो मन माने तुमतणुं, तो करीये निरधार रे ॥श्रा० ॥५॥ मंत्री निसुणी विनवे, तमे निसुणो महाराय रे ॥ श्रा० ॥ परदेशीनी वातमी, ते किम मानी जाय रे ॥ आ ॥६॥ अर्थ ॥ ए कनकध्वज जेवो वर कोइ आ संसारमा नश्री. जो तमालं मन मानतुं होय तो आपणे आ कार्य करीए. ॥५॥ मंत्रीए ते सांभली राजाने विनंति करी के, हे राजा ! एक वात सांजलो. एवा परदेशीनी वात आपणाथी केम मनाय? ॥ ६ ॥ जूडो नलो पण आपणो, परदेशे शंसाय रे ॥आ॥ पोतानी माता जणी, किणे शाकिनी कहिवायरे ॥ था ॥७॥ कंटक प्रिय निज देशना, कुसुम विदेशी न काय रे ॥ श्रा० ॥तेम ए वचन व्यापारीनां,श्रम मन किम पति थायरे ॥याणा॥ अर्थ ॥ पोतानो लुडो होय के नलो होय पण ते परदेशमा वखणाय. पोतानी माताने कोण डाकण कहे? ॥ ७ ॥ पोताना देशना कांटा प्रिय लागे ने अने विदेशनां पुष्प पण प्रियं लागतां नथी, तेम आ वि देशी व्यापारीनां वचन उपर अमने केम विश्वास आवे? ॥ ७॥ को श्रवर जो कुंअरनो,रूप वखाणे श्राय रे॥श्रा॥तो ते वाते साहिबा,श्रम मन निश्चय थायरे ॥ श्रा॥ ए ॥ एम निसुणी नृप हरषीयो, कुंअरी विसर्जि गेहरे ॥ आ॥ तत्दण रयवाडी चढ्यो, सेन सहित ससनेहरे ॥ श्रा० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ हे स्वामी! जो कोइ अवर माणस ते कुंवरनुं रूप वखाणे तो आपणा मनमा तेना रूपनो नि For Personal and Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ८७ श्चय थायः ॥ ५ ॥ ते सांजली राजा हर्ष पाम्यो. पबी प्रेमला कुमारीने घरमां विदाय करी तत्काल स्नेह सहित मोटी सेना लइ शीकारे नीकल्यो. ॥ १० ॥ मृग मृगयाने कारणे, पुहतो भूप कांतार रे ॥ श्र०॥केडेथी श्रावी मिल्या, मंत्री सवार रे ॥ ० ॥ ११ ॥ केई श्वापद सापद कर्या, सश्रम थयो भूपाल रे ॥ श्र० ॥ लीधो विसामो जइ, उंची सरोवर पाल रे ॥ ० ॥ १२ ॥ ॥ राजा मृगया करवाने जंगलमां श्रावी पोहोच्यो ने तेनी पळवाडे मंत्री घोने स्वार थ‍ तेने जड़ मया ॥ ११ ॥ ते वनमां राजाए कक प्राणीजने आपत्तिमां नाख्या. पती राजाने श्रम पडयो, एटले विसामो लेवाने एक सरोवरनी उंची पाल उपर बेठो ॥ १२ ॥ rea कोइक देशना, सोदागर धनवंत रे ॥ श्र० ॥ जल पीवा आव्या वही, ते सरपाले महंत रे ॥ श्र०|| १३|| निर्मल जल पीधुं तिथे, पाढा निवर्त्या जाम रे ॥ ० ॥ बोलाव्या मकरध्वजे, अति आदरथी ताम रे ॥ श्र० ॥ १४ ॥ ॥ वामां को देशना धनवान् सोदागरो ते सरोवरनी मोटी पाल उपर जल पीवाने आव्या. ॥ १३ ॥ सरोवरना निर्मल जलनुं पान करी ते जेवामां पावावस्या, तेवामां राजा मकरध्वजे तेमने यादरथी बोलाव्या. ॥ १४ ॥ तमे परदेशी पंथीया, विचरो देश विदेश रे ॥ था। जो दीठो होयतो कहो, रिज को विशेष रे ॥ श्र० || १५ || दीसो विचक्षण गुण धरा, पूरो श्रम मन कोमरे ॥ ॥ तव नृप आगल विनवे, सोदागर कर जोमरे ॥ श्र० ॥ १६ ॥ ॥ राजा पुत्र त परदेशी मुसाफरबो; देशविदेशमां विचरो बो; जो कां पण विशेष आश्चर्य दी होय तो ते कहो. ॥ १५ ॥ तमे विचक्षण ने गुणवान् देखाउं बो, माटे कांइ चमत्कारी वात कही मारा मना को पूरा करो. पी ते सोदागरो राजानी गल कर जोमी विनववा लाग्या ॥ १६ ॥ बीजा उल्लासन मोहने, जाखी दशमी ढाल रे ॥ श्र० ॥ चंद यागल ए वातडी, करे हिंसक सुविशाल रे ॥ ० ॥ १७ ॥ ॥ श्री मोहन विजयजीये बीजा उल्लासनी दशमी ढाल कही बे. या विशालवार्त्ता हिंसक मंत्री चंदराजा पासे कड़े . ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ स्वामी सोदागर श्रमे, पोहोता सिंधु देश ॥ सिंहल नगरी कनकरथ, दीठो एक नरेश ॥ १ ॥ कनकध्वज इक तास सुत, रूप रंग जंडार ॥ देश विदेशे तेहनो, थयो कीर्त्ति विस्तार ॥ २ ॥ अर्थ || हे स्वामी! अमे सोदागरो सिंधुदेशमां गया हता, त्यां सिंहलनगरीमां कनकरथ नामे एक राजा जोवामां ॥ १ ॥ तेने कनकध्वज नामे एक पुत्र बे, ते रूप रंगनो भंडार बे. तेना रूप गुएनी कीर्त्तिनो देश विदेशमां घणो विस्तार थयो बे. ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Go द्वितीय उल्लास. पण रामदे रहे, बाहिर नाणे राय ॥ तस तनु जो लागे पवन, तो कुसुम जिम कुम्लाय ॥ ३ ॥ रूप छलौकिक तेहनुं, पण नवि निरख्यो के ॥ ए चरिज निसुल्यो श्रमे, लोक तणे वयणेण ॥ ४ ॥ ॥ राजा ते कुमारने जोयरामां राखे बे. कोइ दिवस बाहेर काढता नथी. कारणके, जो तेना शरीरे पवन लागे तो ते पुष्पनी जेम कुमली जाय बे ॥ ३ ॥ तेनुं अलौकिक रूप बे पण कोइए तेने नीरख्यो नथी. मे श्राश्चर्य लोकोना मुखश्री सांजस्यु. ॥ ४ ॥ निसुणी सोदागर विदा, कर्या ताम भूपाल ॥ वर निरधार्यो मनथकी, घोथई उजमाल ॥ ५ ॥ व्यापारी वचने थयो, नूप जणी विशवास ॥ वनहूंती संध्या समय, श्राव्यो निज श्रावास ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ सांजली राजा ते सोदागरने विदाय कर्या नेज वर धार्यो. ॥ ५ ॥ ते व्यापारीजेनां वचन उपरथी काल यो एटले पोताने घेर श्राव्यो. ॥ ६॥ ने पोते उत्साद धरी पोतानी पुत्रीमाटे तेराजाने पूर्ण विश्वास यावीगयो. वनमां संध्या भूपे सोदागर वचन, संजलाव्यां मंत्रीश ॥ तेणे पण सुप्रशंस्यो घणुं, सुंदर वर सुजगीश ॥ ७ ॥ अर्थ || राजा ते सोदागरनां वचन मंत्रीने संजलाव्यां. अनेकां के, तेमणे पण ते वरनी सुंदरता विषे घणी प्रशंसा करी ॥ ७ ॥ ॥ ढाल गीयारमी ॥ ॥ दारे लाल नवारेनगरना सोनीमा, मारे वीढीएको घमी लावरे लाव | गोरीने पाये वीबी जमकाव्यो माजिम रातरे लाल ॥ प्यारो लागे वीबीज ॥ ए श्रकणी ॥ हांरे लाल मकरध्वजने विनवे, तस मंत्री मीठी वाचरे लाल || स्वामी श्रवण न पतीजीये, जे निरखीये नयणे ते साचरे लाल || मकरध्वजने विनवे ॥ ए देशी ॥१॥ कोइक सेवक आपणो, तिहां जइ जुए तस रू परे लाल ॥ ते पाढो श्रावी इहां, करे वर्णन तेम अनूपरे लाल ॥०॥२॥ ॥ मंत्री मधुरवाणीथी मकरध्वजने विनंति करी के स्वामी सांजलवा उपर प्रतीति न कराय. नेत्री जोइए ते साची वात समजवी ॥ १ ॥ कोइ आपणो सेवक त्यां जइ तेना रूपने जुवे ने ते पाढो अहीं श्रावी ते अनुपम रूपनं वर्णन करी बतावे ॥ २ ॥ Jain Educationa International तो साचे परावी, ए प्रेमला लठी तास रे लाल ॥ ए न्हानी नदी वातडी, कवो बोल्यो बे तपास रे लाल ॥ म० ॥ ३॥ मंत्री वचने व्यापारीया, तेमाव्या भूपे साम रे लाल ॥ देई आदर नरवर कड़े, कीजे एक महारूं कामरे लाल ॥ म० ॥ ४ ॥ ॥ तो पक्षी जेवी प्रेमलाने तेनी साथे परणाववी श्री वात नानी सुनी नथी. तेनो पूरो For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * ԵՍ चंदराजानो रास. तपास करवो जोश्ए. ॥ ३ ॥ पनी मंत्रीनां वचनश्री राजाए ते व्यापारीउने बोखाव्या. तेमने आदर श्रापी राजाए कह्यु, के, तमो एक मारुं काम करो ॥४॥ तमे वहिला सिंहलपूरे, जाउ मुज तेमी प्रधान रे लाल ॥ कुंअर रूप देखाडजो, आणा लेई तुम राजान रे लाल ॥ म ॥५॥ मुज कुंथरी सरि हुवे, ते कुंवर रूप सोबाहरे लाल ॥ तो तमे सही निरधारजो, श्रीफल देविवाहरेलालाम॥६॥ अर्थ ॥ तमे मारा एक प्रधानने साथे तेमी सिंहलपुरमा सत्वर जालं. त्यां राजानी आझालश् ते प्रधा नने कुंवरचं रूप बतावजो. ॥ ५॥ ते कुमारनुं रूप जो मारी कुंवरी जेवं होय तो तमे उत्साहथी श्रीफल थापी विवाह-सन्न निर्धार जो. ॥६॥ पाम तमारो मानशुं नही जुलीये ए उपगाररे लाल ॥ तव व्यापारी विनवे ए कामे किसो इसो जार रे लाल ॥ म० ॥७॥ इहां तम पुत्री प्रेमला, तिहां कनकरथनो. पुत्र रे लाल ॥ ए बिहुमां कहेवु किशुं, ए बेहु सरिखं घर सूत्र रे लाल॥म ॥ अर्थ ॥ श्रा काम करवाश्री अमे तमारो पाड मानीशं. ए उपकार जुलीशुं नहीं. ते सांजली व्यापारी बोड्या-महाराज,! एकाममा बाटलाबोधो नार केम मूको गे? ॥ ७॥ अहिंश्रा तमारी कुमारी प्रेमला अने त्यां कनकरथना कुमार कनकध्वज तेबंनेमां शु कहेवानुं होय ? तेवनेनुं सरखं घरसूत्र अशे ॥ ७॥ खोड नही ए जोडीये, बोडीजे स्वामी वकील रेलाल ॥ एवाते महाराजनी, कोडीनी नवी कीजे ढील रे लाल ॥माए॥ श्रमथी जे थाशे चाकरी, तेहमां नहीं राखीये उबरे लाल ॥ लाल होये जे वातमां, ते वाते कुण करे बोउरे लाल ॥ म॥१०॥ अर्थ ॥ हे महाराज! ए जोडीमां कोई जातनी खोम नथी. तमे खुशीथी वकिलने (मंत्रीने) मोकलो. श्रावातमां जरापण ढील करवी नहीं. ॥ए॥ अमाराधी जे कांई सेवा अशे, तेमां जराए उंगश नहीं राखी ए. जे वातमां लाल होय ते वातमां कोण न्यूनता राखे! ॥१०॥ तव मकरध्वज हरषीउ, व्यापार कीध पसाय रे लाल ॥ चार मंत्री बुद्धिागला, तस संगे सोप्या राय रे लाले ॥म॥१९॥ ते व्यापारी चलिश्रा, संगे करी चार प्र. " धान रे लाल ॥ हरष जर्या वाटे वहे, निरखंतावन सानुमान रे लाल॥म॥१२॥ अर्थ ॥ ते सांजली राजा मकरध्वज हर्षपाम्यो अने ते व्यापारी ने प्रसन्न कर्या. पी राजाए पोताना चार बुधिमान् मंत्री ने तेजना संगमां सुप्रीत को. ॥११॥ ते व्यापारी चार प्रधानोने संगे लश्ने चाट्या. मार्गमा वन अने पर्वतो हर्षथी नीरखता हता. ॥१५॥ सिंहल नयरी आवीया, व्यापारी मंत्री तेह रे लाल ॥ पोहोतासह आपापणे, गृह मंत्री सहित ससनेह रे लाल म॥१३॥जोजन जुगते संतोषीश्रा, थई संध्या प्रगट्यो दीप रे लाल ॥ तेव्यवहारी श्रावीश्रा, कनकरथराय समीप रे लाल ॥ म॥१५॥ अर्थ ॥ तेम करतां ते व्यापारी मंत्रीउनी साथे सिंहल नगरीमा श्राव्या, त्यां मंत्रीसहित ते स्नेह धरता पोत पोताने घेर गया. ॥ १३ ॥ मंत्रीने युक्तिथी जोजन करावी संतोष पमाड्यो. त्यां संध्या कालथयो, एटले दीपक प्रगट कर्या. पनी व्यापारी कनकराजानीपासे श्राव्या. ॥ १४ ॥ १२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए द्वितीय उवास नेटयो नृपधरी नेटएं, कही देशनी वात रे लाल ॥ विधिशुं विमल पुरीतणा, संजलाव्यासकल अवदातरे लालाम॥१५॥तिहां कनकध्वजनां रूपना,सविलोके कीधांवखाण रे लाल मकरध्वज तिहाराजिन, निसुणी घणुं हरख्यो सुजाण रेलालाम॥१६॥ अर्थ ॥ राजाने बेटी लेट आगल धरी.पनी देश विदेशनी वात करी. ते प्रसंगे विमखपुरीनो सर्ववृत्तांत विधियी संजलाव्यो. ॥ १५॥ तेजेए जणाव्यु के, अमे सघलाए कुमार कनकध्वजना वखाण कयी. ते सांजली त्यांना सुझ राजा मकरध्वज घणो हर्ष पाम्या.॥ १६ ॥ तिणे नृपे श्रमने तेडी, पूज्या वली सकल स्वरूप रे लाल ॥यथारथ अमे पण कद्यु, तिणवाते खुशी थयोनूपरे लाल ॥म॥१॥ प्रेमला लबी तेहने, जे पुत्री रूप निवा सरे लाल ॥ तुम सुतथी विवाहनो, मांड्यो बे राये प्रयास रे लाल ॥ म ॥१॥ अर्थ ॥राजाए श्रमने तेडावी कुमारनुं सर्व स्वरूप पुंज्यु. अमो ए जे यथार्थ हतुं ते कडं, तेवा तथी राजा खुशी थया. ॥ १७ ॥ ते राजाने प्रेमला नामे लक्ष्मीसम स्वरूपवान् पुत्रीने. तेनो विवाह तमारा पुत्र सा) करवाने राजाए प्रयास करवा मांज्यो . ॥ १० ॥ पजणी ढाल ग्यारमी, एतो मोहन विजये उदास रे खाल ॥ बागल चंदजी सांजलो, कहुं तमने वात प्रकाश रे लाल ॥म॥ १ ॥ अर्थ ॥श्रीमोहन विजयजीए श्रा अगीयारमी ढाल उदासथी कहीजे. हिंसकमंत्री कहेने, हे चंदराजा, तमने जे आगल प्रकाशकलं ते सांजतो. ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ ते माटे मकरध्वजे, श्रम साथे राजान ॥ मुकया डे मंत्रीश्वत, चारे बुझिनिधान ॥१॥श्रावी श्रमे तुम नेटीया, थासंगे सु. जगीश ॥ पण उन्ना धारांतरे, ते चारे मंत्रीश ॥२॥ अर्थ ।। राजा मकरध्वजे अमामाथे बुद्धिना जंडाररूप पोताना चार मंत्रीउँने ते माटेज मोकझ्यावे. ॥१॥ अमे तो तरत श्रावीने आपने मझ्यालीये अने ते चारे मंत्री धार उपर श्रावीने उजाले. ॥२॥ तव व्यवहारी वचनथी, अति हरष्यो राजान ॥ दास पासे तेमावीया, प्राहुणमा परधान ॥३॥ प्रणिपति करी नेटयो नृपति, श्राणी अधिक उमेद ॥ चिहुं मुख स्तुति तिम नवनवी, जिम ब्रह्मा मुख वेद ॥४॥ अर्थ ॥ ते व्यापारीनां वचनश्री राजा अतिहर्ष पाम्यो भने ते मीजमान श्रयेला मंत्रीउने सेवकने मो. कली पासे तेमाव्या. ॥ ३॥ चारे मंत्रीए अधिक उमेद धरी राजानी नेट करी; जेम ब्रह्मा चारे मुखश्री वेद उच्चारे तेम तेउए चारे मुखे नव नवी स्तुति करी.॥॥ चिरं नंद सानंद नृप, श्म कही उना तेह ॥ हरषित थया सिंहल धणी, सन्मान्या ससनेह ॥५॥ बेसामया मंत्रीसरा, पुनी कुशल प्रवृत्त ॥ किहांथी श्राव्या किहां खगे, केणे परव्या मित्त ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ 'हे राजा ! चिरकाल आनंद सहित रहो,' एम कही ते उजा रह्या. तेथी सिंहलपति खुशी यया अने तेमने स्नेह सहित सन्मान प्राप्यु.॥ ५ ॥ ते मंत्रीउने आसन उपर बेसारी कुशल वृत्तांत पुग्धु.पहुंके,सने की भाज्याने सुक जाकर समले कोडे मोकामा ९५६॥ चार महिने एक चतुर,अवसर वचन प्रवीण ॥ मामी वात नरेशथी, जिम करी कहे कुखीण ॥७॥ अर्थ ॥ ते चार मंत्रीठमां एक घणो चतुर अने अवसरे बोखवामां प्रवीण हतो, तेणे कुखीन पुरुषनी जेम राजानी साथे वात करवा मांडी.॥७॥ ॥ ढाल बारमी॥ ॥राग रामगिरी॥श्राज ढुंगश्ती समवसरणमांत कौतुक दीÉरे॥ए देशी॥ मंत्री कहे एक राज सजामा,सोरथी श्रमे श्राव्या रे॥मकरध्वज राजा श्रम केरो,तिणे तुम पासे पगव्यारे॥मा॥अहो सिंहल प्रजु तुम नगरीना,श्राव्या एह व्यापारी रे ॥ श्होणे थावी राजा बागल, वात सयल उच्चारी रे॥4॥२॥ अर्थ ॥ ते मंत्री कहे . हे राजा! श्रमे श्राराजसज्जामा सोरठ देशमांधी श्राव्या बीए. श्रमारा राजा मकरध्वज ने, तेमणे श्रमने तमारी पासे मोकड्या .॥१॥ हे सिंहल प्रनु!श्रा तमारा नगरना व्यापारी त्यां आव्या हता, तेमणे श्रावीने आ बधी वात राजानी पागल कहेली ॥२॥ रूमी तुम तणी कीर्ति विस्तारी,व्यापारीये श्क मां रे॥परदेशे जे होए आपणनो, ते रुडं देखाडे रे ॥ मं० ॥३॥ तुम सुत रूप प्रशंसा कीधी, ते न बने कां कहेतां रे॥अहो खामी प्रस्तावे कहिवाये, दश लहेता दश वहेता रे ॥ मं॥४॥ अर्थ ॥ श्रा व्यापारीए तमारी उज्वल कीर्ति घणी विस्तारी. जे पोतानो देशी विदेशमां होय ते आपणुं सारी करी बतावे. ॥ ३॥ तेमणे तमारा पुत्रनी एवी प्रशंसा करी के, ते अमाराथी कही शकाय तेवी नथी. दश खहे अने दश वहे-ए कहेवत प्रमाणे हे स्वामी ते वात प्रस्तावे कहेवाय . ॥४॥ तिमज वली वणजारे नाखी, तम सुत रूप प्रशंसा रे ॥ नृप सुत रूडो तिहां शो अचरज,हंस कुले होए हंसारेगमपुत्री एकश्रमारा नृपने,नामे प्रेमला लछी रे ॥ तुम सुतथी विवाहतणी गति, अंतर गतिथी श्वी रे ॥ मं॥६॥ अर्थ ॥ तेम वली कोई वणजोर पण तमारा पुत्रना रूपनी प्रशंसा कहेली हती. ते घटे जे. राजानो पुत्र स्वरूपवान् होय तेमां शुं श्राश्चर्य ने ? हंसना कुखमां तो हंसज थाय .॥५॥ अमारा राजाने एक प्रेमला खजी नामे पुत्री ले. तेमणे ते पुत्रीनो विवाह तमारा पुत्र साथे करवाने अंतर्थी श्ला करी ॥६॥ जो एहवो वर वरवा श्रावे, अंगण रूहुं दीसे रे ॥ एकन्या ए वर निरधार्यो, जोमी मेली जगदीशे रे ॥ मं० ॥॥ ए व्यापारी श्रमे चिहुं मंत्री, दीधा संग बगाईरे ॥ मूक्या खामी तमारे चरणे, सुतथी करण सगाई रे ॥ मं ॥॥ अर्थ ॥ तमारा पुत्र जेवो वर वरवाने आवे तो आंगणुं सारं लागे. ए कन्यानोए वर निर्धारी मुक्यो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय उल्हासश्रा योग्य जोडी जगप्ततिए मेलवी जे. ॥ ७॥ आ तमारा व्यापारीए अमो चार मंत्रीउने साये लीधा ने श्रने तमारा कुमारनी साथे सगाई करवाने अमोने मोकळ्या जे. ॥७॥ ए कारण स्वामी श्राव्या बु,करीश्र घणी सुघमाई रे॥श्रम नूपे कडं ते अमे नाख्यु, हवे तम हाथे वमाई रे॥मायातमे जिम सिंहल देश तणा पति,तिम ते पति सोरठनो रे ॥ सरिखं नाकार म कहिशो,काम नहीं हां हठनोरे॥१॥ श्रर्थ ॥ हे स्वामी ते संबंधने माटे अमे सुघडाइ करीने श्राव्या बीए. अमारा राजाए जे कर्जा ते श्रमे कही बताव्यं! हवे तमारा हाथमां वडाइजे.एहे राजा! तमे जेम सिंहल देशना राजा बो. तेम ते सोरचना राजा बे. तमे बने सरखा गे. माटे ना पाडशो नहीं. ा विषे हठ करवानुं काम नथी. ॥१०॥ किहां सोरठ किहां सिंहल जनपद,थाव्या नूमि उद्धंघी रे॥मेल्या विवाह विना नवि जालं, श्रमे चारे एक संगी रे॥मं॥११॥ उपदिशो उत्तर एहनो विचारी, कहे सिंहल शिरदारो रे॥रे नाईल तमे पाणी पहिला,मोजा कांई उतारो रे ॥१॥ अर्थ ॥ क्यां सोरठ देश ? अने क्या सिंहलदेश ? अमे घणी जूमि उलंघन करीने अहीं श्राव्या जीए. अमे एक संगे रहेनारा चारे मंत्री विवाहनो निर्णय कर्या विना जश्शुं नहीं. ॥११॥ तमे एनो उत्तर विचारीने आपो सिंहलना सरदारोए कह्यु, अरे लाल! तमे पाणी पेहेला मोजा केम उतारो गे? ॥१॥ उतावल कीधे रस नवि होवे,धीरपणामां सवादोरे॥पालीश्रमा उतावल केरा, धीरा केरा प्रासादो रे॥मं॥१३॥ तुम नृपने मूके तुमे श्राव्या,घणुंज घणुं जली कीधी रे ॥जे तमे वात कही ते अमे पण,माथे चढावी लीधी रे ॥ मंग॥१४॥ अर्थ॥ उतावल करवामां रस होतो नथी. धीरजमांज स्वाद होय . उतावलथी पालो आय ने अने धीरजश्री मेहेल थाय ॥ १३ ॥ तमे तमारा राजाना मोकट्या आव्या ते घणुं सारं कर्यु तमे जे वात्तों कही ते अमे माथे चडावी लीधी जे. ॥१४॥ थाउ खस्था विचारी तमने,एहनो उत्तर देणुं रे॥रदेशांतरथी तमे श्राव्या, किम दिलगीर करेशुं रे ॥मं॥१५॥रे सचिवो माहारो बालूडो,हजीब लगे डे बोटो रे ॥ विवाहनी वातुं तव करशुं, जब थाशे सुत मोटो रे ॥ मं० ॥१६॥ अर्थ ॥ तमे जरा स्वस्थ था. अमे विचारीने तेनो उत्तर आपीशुं. तमे श्राटले दूर देशांतरधी श्राव्या. तेमने अमे दीलगीर केम करीशुं ? ॥ १५ ॥ हे मंत्री! मारो कुमार हजी बालक के. ज्यारे ते मोटो थाशे त्यारे तेना विवाहनी वात करीशु.॥ १६॥ हजीय लगण अंगण नवि दीवं,नुरां मांहे रहे ले रे ॥ श्राज लगण खोले न रमाड्यो, विवादनुं शुं कहे जे रे ॥ मं॥१७॥ दीग विण तुम नृपनी पुत्री, केम सगाई कीजे रे॥जो उतावल तमने होवे,जोवो वर कोई बीजे रे ॥ मं० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ हजु सुधी मारा कुमारे घरनुं आंगणुं पण दीतुं नथी. ते हजी जोयरामां रहे. आज सुधी तेने खोले बेसारी रमाड्यो नथी, त्यां तो तमे विवाहनी वात शुं कहो नगे? ॥ १७ ॥ तमारा राजानी पुत्री जोया वगर, सगाई केम कराय ? जो तमारे उतावल होय तो कोइ बीजे ठेकाणे जर वर जुवो. ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास.. मूक्या इम कही सचिव उतारे, प्रतिदिन उत्तर वाले रे ॥ कही मोहने बीजे उल्लासे, रस घणो बारमी ढालेरे ॥ मं० ॥ १७ ॥ अर्थ | श्राप्रमाणे कही ते चार मंत्रीउने उतारे मोकल्या. तेवी रीते हमेसा उत्तर वास्या करे. श्री मोदन विजये या बीजा उल्लासनी बारमी ढाल कही. ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ सिंहल नृपे मुजने कयुं, करवो किशो उपाय ॥ इम दिन दिन देशा उरी, जोलवीया किंम जाय ॥१॥ धन्या कन्या सुत सगद, किम रहिशे प्रन्न ॥ वात व वेधे पमी, परदेशी ने वयन्न ॥ २ ॥ अर्थ | एक वखते सिंहल राजाए मने कां, दे मंत्रि हिंसक, दवे शो उपाय करवो? श्रावी रीते प्रति दिन देशावरी लोको केम जोलव्या जाय १ ॥ १ ॥ श्रा कन्या धन्य बे पण आपणो पुत्र रोगी बे, ए वात गुप्त केम रहेशे श्रावात खरेखर परदेशीनां वचनथी मोटा वेधमां पमी. ॥ २ ॥ ย हिंसक कूम न कीजीये, कूड कुकर्म कुठार ॥ गुणची डूलो कूम बे, कूम कलि अवतार ॥ ३ ॥ आशा जर मंत्री श्वरा, जे श्राव्या बे एह ॥ साच कही संप्रेडीये, जलो जलपण ते ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ हे हिंसक मंत्री ! कदिपण कूड करवुं नहीं. कूड एवं कुकर्म कूवाडा जेवुं बे. कूड ए गुणने नाश करनार ने कलियुगनो अवतार बे ॥ ३ ॥ जे या मंत्री श्वरो आशा जर्या श्राव्या बे, तेमने सत्यवात जावीपणे विदाय करीए. तेज जलानी जलाइ बे. ॥ ४ ॥ कुण करे, सुर कन्या सम प्रेमला, एतो कोढी जात ॥ देखत पेखत घटती ए वात ॥५॥ कूड घणां कीधां दशे, पूर्व वे निशंक ॥ तो सुत कनकध्वज जणी, थयो सकुष्ट कलंक ॥६॥ अर्थ ॥ तेनी पुत्री प्रेमला देवकन्या जेवी बे ने आपणो पुत्र कोढी बे. देखी पेखीने श्रावी घटती वात कोण करे. ॥ ५ ॥ पूर्व नवे निःशंक थइने घणां कूडा काम कर्या दशे, तो आपणो कुमार कनकध्वज कुष्टना रोगथी कलंकित थयो छे. ॥ ६ ॥ मुज मन तो चाले नहीं, करतां ए अन्याय ॥ हिंसक जे तुजने रुचे, ते तुं कर हित लाय ॥ g ॥ अर्थ ॥ श्रवो अन्याय करतां मारुं मन चालतुं नथी. हे मंत्री हिंसक ! तने जे रूचे ते तुं हित खाने कर्य. ॥ ७ ॥ ॥ ढाल तेरमी ॥ ॥ जूता बोलारे यादवा ॥ तेने कली न शके कोय ॥ ए देशी ॥ हांजी हांजी के सिंहल रायने में कयुं, तुम सुत कर्म वसेण ॥ कुष्ट बे पण ते दजी, नवि जायो बे केण ॥ मीठो जूगे संसारमां ॥ १ ॥ जूट बे संपत्ति मूल ॥ जूठे कोट पालटीये ॥ जूठे वश प्रतिकूल ॥ मी० ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एस द्वितीय उवास अर्थ ॥ में सिंहख राजाने कां, हे स्वामी! तमारो कुमार कर्मना वशयी कुष्टी ने. पण ते हजी कोना जाणवामां नथी. आ संसारमा जूठी वात मीठी खागे . ॥१॥ संपत्तिनुं मूल जूनमा ने. जूतथी कोट पलटाइ जाय . अने जे प्रतिकूल होय ते पण जूतथी वश थ जाय ॥२॥.. हो० ॥ एता दीह जे जुरे ॥ राख्यो सुत शे काज ॥ जूतो मूलथी एडवो ॥ करवो न हतो महाराज ॥ मी० ॥३॥ हो० ॥ बीहो जो जूठ थकी हवे, ए शो बालक खेल ॥ दीहां जिहां लगे पापरा, तिहां लगे रूपारेल ॥ मी० ॥४॥ अर्थ ॥ हे महाराज!श्राटला दिवस सुधी कुंवरने जोयरामां केम राख्या? मूलथी ए जूलाइ करवीज नहती.॥३॥ हवे तमे जूतथी बीहो बगे ए केवी वात कहेवायी श्रावो बाखकनो खेल केम करो गेज्यां खगी पाधरा दिवस होय त्यां खगी रुपारेख होय ॥४॥ हांग ॥ आव्या जे परदेशथी, मोटी राखीजी चाह ॥ राजिंद केम न कीजीये, मन गमतो विवाह ॥मी०॥५॥हा॥ कुल देवी श्राराधशु, करशुं पुत्र निरोग ॥ हीयडाथी रखे हारता, मेलशुं सर्व संजोग॥ मी०॥६॥ अर्थ ॥ हे राजेंज ! जे मोटी चाहना राखी परदेशी श्रहिं आव्या ने, तेमना मनने गमतो विवाह केम न करीए. ॥५॥स्वामी, श्रापणे कुखदेवीनी आराधना करीशुं अने पुत्रने निरोगी करीशं. रखे हृदयमां हारी जता. सर्व संयोगने मेलवशु.॥६॥ हांाचोरीये नर जे पेसशे,राखशे तेहनी सार॥ कोडी एकनी शोचना, राखशोमां वसुधार ॥ मी०॥७॥ हां०॥ सिंहसराय सुणी श्स्युं, मुजने ढाली शेष ॥ जोगव तुं ताहरु कयु, हुं न लहुं लवलेश ॥ मी० ॥७॥ अर्थ ॥ हे पृथ्वीपति ! जे माणस चोरी करवा पेशे ते तेनी (पोतानी) सारवार राखे . तमे एक कोमी मात्रनी शोचना राखशो नहीं. ॥७॥ सिंहलराजाए ते सांजलीने मने कह्यु के, हे मंत्री | तुं तारं कर्यु लोगव्य. हुं तेमा लव खेश जाग सहीश नहीं. ॥७॥ हां॥श्म कहितां तिहां वीया,ते चारे मंत्रीशासिंहल नूपने विनव्यु, सुण यवनीना ईश ॥ मी० ॥ए॥ हां ॥ वातडीये विरमाविया, अमने एता दीह ॥ जोरे प्रीत बने नहीं, रे क्षत्रीवर सिंह ॥मी०॥१०॥ अर्थ ॥ एम कहेता त्यां चारे मंत्री श्राव्या. तेए सिंहलराजाने विनंति करी के, हे पृथ्वीपति, श्रमारी एक अरज सांजसो. ॥ए॥ अमोने आटला दिवस वार्ता करतांज वीतावी दीघा. हे क्षत्रिय सिंह, बखाकारे प्रीति थाय नहीं. ॥१०॥ हांगा बीजी को कन्यका,परणशे तुमचो पुत्र ॥ तो अमे चोरी शी करी, श्यों उलव्यो घर सूत्र ॥ मी॥११॥ हांगा नृप सुतने नृपनी सुता, परणे एह प्रतीत ॥ ते तो तुमे करता नथी, नवली जगमा रीत ॥ मी० ॥१२॥ अर्थ ॥ ज्यारे तमारो पुत्र को बीजी कन्या परपशे, तो श्रमे शी चोरी करी अने कोघरसूत्र बगा For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. एए ड्युं ! ॥ ११ ॥ राजाना पुत्रने राजानी पुत्री परणे ए वात प्रतीत बे. ते वात तमे करता नयी ए जगत्मां नवी रीत बे ॥ १२ ॥ दां०॥ तुम सुतनी श्रम कन्यका, स्त्री कहेवाणी आज ॥ ते बीजाने आपशुं, शीरदेशे तुम लाज ॥ मी० ॥ १३॥ दांगली चाली श्रवी घरे, कुण वेषे ते ॥ किमडाह्या थर साहिबा, अवसर चूको एह ॥ मी० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ श्रमारा स्वामीनी कन्या तमारा पुत्रनी स्त्री कहेवाणी, हवे ते श्रमे बीजाने पशुं तो पी तमारी शी लाज रहेशे ॥ १३ ॥ घेर खमी श्रावे तेनी कोण उपेक्षा करे ? हे साहेब ! आप सुरु यइने श्रा अवसर केम को बो १ ॥ १४ ॥ में तव रायने विनव्युं, अवधारो अरदास ॥ श्रश विबुद्धा श्रविद्या, ते किम कीजे निराश ॥मी||१५|| दां०॥ पाय उपामी जे खावीया, फोगट फरशे केम ॥ ए कनकध्वज प्रेमला, परणे वधशे प्रेम ॥ मी० ॥ १६ ॥ ॥ समये में रानाने विनंति करी के, स्वामी, या मंत्रीजनी विनंति ध्यानमां ब्यो. ते आशा जरेला श्राव्या ने तेमने निराश केम कराय १ ॥ १५ ॥ जे परदेशी पग उपाकी आव्या बे, ते पाला फोगट केम फरशे. १ वा कनकध्वज ने प्रेमला परणे, तेथी तेमनो प्रेम वधशे ॥ १६ ॥ tion पथी उपर वट थई, में मेल्यो विवाद ॥ भूप जणी गमिजं नही, देखी निपट कुरा ॥ मी० ॥ १७ ॥ हां०॥ श्रीफल ताम अंगीकयुं, वदेच्यां फोफल पान ॥ हीयडे रंग रली थया, ते चारे सुप्रधान ॥ मी० ॥ १८ ॥ अर्थ ॥ पढी राजानी उपर वट थइ में विवादनी हा पाडी. अंदर राजाने तेमां कपट लागवाथी ते वात मी नहीं. ॥ १७ ॥ मनुं श्रीफल अंगीकार कर्यु. सर्वने फोफलपान वेहेंचवामां श्राव्यां. तेथी चारे प्रधानो हृदयमां आनंद मग्न अइ गया. ॥ १० ॥ हां०॥ तेरमी बीजा उल्लासनी, मोहने जाखी ढाल ॥ आगल चंदजी सांजलो, कूड कथा सुविशाल ॥ मी० ॥ १७ ॥ ॥ श्रीमोहन विजये बीजा उच्चासनी तेरमी ढाल कही बे. हे चंदराजा ! तेनी श्रागस जे विशाल कूड थयां बे ते सांजलो. ॥ १९ ॥ ॥ दोहा ॥ सय सयल जेलां मस्यां, थई वधाई जोर ॥ गुणिश्रण घणा गह कीया, जिम पावस ऋतु मोर ॥ १ ॥ ते चिहुं जण दरखी कहे, की धो श्रम उपकार ॥ पण श्रमने ते कुंअरनो, देखाडो देदार ॥ २ ॥ अर्थ ॥ सानो एकठां मस्यां. जोरथी वधामणी पुरुषो हर्ष पामवा लाग्या. ॥ १ ॥ ते चारे प्रधानोए कर्यो, पण मोने ते कुमारनी मूर्ति देखाडो. ॥ २ ॥ Jain Educationa International प्रवर्त्तमा लागी. वर्षा ऋतुमां मयूरनी जेम घणागुणी हर्षश्री कां, मंत्रीराज, तमे श्रमारो मोटो उपकार For Personal and Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय उदास. जीम श्रम स्वामी श्रागले,कहीशेज विरतंत॥कनकध्वज जोवा जणी, घणी अमने मन खंत ॥३॥ थाशे कृतारथ प्रेमला, परणीने महाराज ॥ नयणे देखामी श्रमजणी, करो कृतारय श्राज ॥४॥ अर्थ ॥ ते कुंवरने जोइ अमे ते वृत्तांत अमारा राजानी पासे जणावीए. कुमार कनकध्वजने जोवानी श्रमने घणी खंत ले. ॥३॥ हे महाराज! राजकुमारी प्रेमला तेने परणीने कृतार्थ श्राशे अने अमोने नजरे बताजी आज कृतार्थ करो.॥४॥ में तव बुद्धि रची कडं, कुंअर रहे मोसाल ॥ इहांथी जोयण दोढसे, अलगो जणे विशाल ॥५॥ पण नूमी गृहमा रहे, एक धाव तस संग ॥ अध्यापक बाहिर रही, कला शिखावे चंग ॥६॥ अर्थ ॥ हे चंदराजा ! ते वखते में बुधिनी युक्ति रची कडं के, कुमार तेमना मोशालमा रहे बे. ते श्रहीथी दोढसो योजन ने. त्यां अलगा रहीने निशाले लणे .॥५॥ त्यां पण नूमिगृहमा रहे . तेनी साये मात्र एक धाव्य . तेनो अध्यापक (शिक्षा गुरू) पण बाहेर रहीने उत्तम कला शीखवे.॥६॥ ते दरिसण अति दोहिखो, तुम चीडं ए शी श्राश ॥ रवि पण फरसी नवि शकयो, तो तुमशी गुंजाश ॥ ७॥प्राहणडे हठ मामीउ, कुंवर निरखण जाम ॥ ते चिहूं तेमी श्रावीउ, मादरे मंदिर ताम ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ तेमना दर्शन अति सुर्खन जे. तमारा चारेने तो ए आशाशी राखवी. १ सूर्य पण तेने फरसी शकतो नथी, तो तमारी शी गुंजास १॥ ७॥ ते मीजमानोए कुंबर जोवानी हठ करवामांडी पनी हुँ ते चारे मंत्रीने तेडी घेर श्राव्यो. ॥ ॥ . ॥ ढाल चौदमी॥ ॥ कानूडे एम शुं की, रे, माहरुं मनडुं हरीने लीधुं रे ॥ ए देशी ॥ मंदिर तेड्या मंत्री रे, जे हंता सोरठ गंत्री रे ॥ तैलादिक योगे नवाड्या रे, केशर घनसार अमाज्यारे ॥१॥ आसण वासण मंडाव्यारे, जोजन जुगते \ जमाव्यारे ॥ तिम दीधां पान सोपारी रे, कर्या सीत समीर बेसारी रे ॥२॥ अर्थ ॥ सोरत देशमा जनारा ते मंत्रीउँने मंदिरमां बेसार्या. पी तैल विगेरेनो योग करी तेमने न्हवराव्या श्रने केशर कपूरना विलेपन को,॥१॥ पजी श्रासनपर बेसारी पात्र मंगाव्यां. तेमां उत्तम जोजन पीरसी प्रेमश्री तेमने जमाख्या. पनी पानसोपारी आपी बेसारीने शीतल पवन ढोखाव्या.॥२॥ चाह चूरण पाव्या खांमी रे,श्म तेहथी लटपट मांमीरेशानूषण मणिमांजरीयांरे, आगल लेई तेहने धरीयरेि ॥३॥ सन्मान्या नूषण थापी रे, जग लोजसमो नही पापीरे ॥ परदेशी करे वली श्राडोरे,अमने नृप पुत्र देखाडोरे ॥४॥ अर्थ ॥ पळी चाहनाथी खांडेला चूर्ण खवरान्यां. एवी रीते तेमनी खटपट करवा मांडी. पनी मणिजडित आजूषणो तेमनी पागल धर्या ॥३॥श्राजूषणो साथे पोशाक श्रापी सन्मान कयु. श्रा जगत्मा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2012 因此 2 006 9 10 年 THU CHI TIẾT THI HÀNH Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ए खोलना जेवो कोई पापी नश्री. तेटालु कर्यां बता पण ते परदेशी मंत्री ए आई पुज्युं के, अमने ते राजपुत्र बतावो. ॥४॥ में जाख्यो कुंअर रूपालो रे फरि फरि शुं उत्तर वालोरे ॥ जे वाते तुम नृप खीजे रे,ते वातो श्रमे किम कीजे रे ॥५॥सात गलणो गली जल पीजेरे कीजे कपट कोई थल बीजेरे॥ए कुंअर नथी कांईनोरेतुमे जाईज सही करीमानोरे॥६॥ अर्थ ॥ में खात्रीश्री कां ने के, कुंवर रूपाला . वारेवारे शुं पुगे गे, जे वाते तमारा राजा गुस्से थाय, ते वात अमे केम करीए ?॥ ५॥ सात गलणे गलीने पाणी पीए जीए. जो कपट करवू होय तोबीजे ठेकाणे करीए. ए कुंवर काइ बानो नथी, ए वात सही करीने मानजो. ॥ ६॥ श्रमे कीधुं ने काम विमासीरे,नहीं होए तुमारी हांसीरे॥श्रम योग्य नही ए ठेकाएं रे,तुम वचन श्रमे न लोपाणुं रे ॥७॥ कोई शुकन नले तुमे श्राव्यारे, कर्या कारज सवि मन जाव्यारे ॥प्रेमला सरखी नही बीजीरे, मन साचे गौरी पूजीरे ॥ ७ ॥ - अर्थ ॥ अमे आ काम विचारीने कर्यु बे. या कार्यमां तमारी हांसी थशे नहीं. अमारे योग्य तमारं ठेकाणुं नथी, पण तमारं वचन अमाराथी लोपी शकाणुं नहीं. ॥ ७॥ तमे कोइ सारा शुकने आवेला के जेथी तमे मन गमतुं कार्य कयु. प्रेमला जेवी कोइ बीजी लाग्य शाली नहीं. तेणीए साचा मनश्री गौरीनी पूजा करी हशे. ॥७॥ हठ एम करोशा माटेरे,अमे वेच्चो अरहट रोटोसाटेरे॥तुमे न करो निपट उगाई रे,थई लेख लिखित सगाईरे ॥णा फोसलाव्या वश नवि श्राव्यारे,कोमि कोकि टके ललचाव्यारे॥तव पाडो उत्तर नवि कीधोरे,जाणो मांज निलाडे कीधोरे ॥१॥ अर्थ ॥ हे मंत्री, तमे कुंवर जोवानो हठ शा माटे करो गे? अमे एक रोटला माटे सोनयो वेच्यो बे. हवे तमे उगाइ करो नहीं. एतो लेखे लखेली सगाइ अझ चुकी.॥ ए॥ एवी रीते फोसलाव्या पण ते वश थया नहीं, पड़ी तेमने कोटी कोटी रूपीथा आपवानुं कही ललचाव्या. तरतज ते ए पागे उत्तर श्राप्यो नहीं. जाणे डाम दीधो होय तेम अश् गया. ॥ १० ॥ हुँता जे नीला पीलारे, पण देखी टका थया शीलारे ॥ फेरव्या वचने तेणे चारे रे, अमे कहूं बुं लगन दिन क्यारेरे ॥११॥ नृप पासे सहु फिरि श्राव्यारे, पंडित जोशी तेमाव्यारे ॥ षट्रमासे लगन निरधार्युरे. फिरि पावं किणे न पचार्युरे॥१२॥ अर्थ ॥ जे लीलापीला अता हता, ते रूपीआ देखीने शीला श्रइ गया. ते चारे ने वचनथी फेरवीदीधा अने पुब्यु के, हवे लग्ननो दिवस क्यारे बे? ॥ ११॥ सर्वे फरीने राजा पासे आव्या. त्यां पंडित जोषीउँने बोलाव्या. तेमणे त्यारथी उ मासे लग्न निर्धार्या. ते पाचु कोइए फेरव्यु नहीं. ॥१२॥ सनमान्या सिंहल नूपेरे,शीख मागी चिहुंजणे चोपेरे॥चाल्या परदेशी हरषी रे,वाटमली सोरहनी निरखीरे॥१३॥धागलथी दाम चलाव्यारे,श्म करतां विमल पुरी श्राव्यारे॥ नूपतिने प्रणमी सुणारे, चोकस कीधी जे सगारे ॥ १४ ॥ १३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एज द्वितीय उल्हास. __ अर्थ ॥ सिंहल राजाए तेमनुं सन्मान कर्यु. चारे जणे सत्वर जवाने शीखमागी. पठी शीख आपवाथी । ते चारे विदेशी हर्षथी सोरग्नी वाट जोता चाट्या ॥ १३ ॥ तेमणे मखेला रूपीआ आगलथी मोकलाव्या. ते विमलपुरीए श्रावी पोहोच्या. राजाने प्रणाम करी संजलाव्यु के,प्रेमला लक्ष्मीनी सगाई करी.॥१॥ मकरध्वज चिहुने प्रसिहारे,चार लाख पसाय ते दीधारे॥कांश कूकुं हीये नवि आएयु रे,धोलु सविध ते जाएयुं रे॥१५॥ पुंठलथी अमे सुप्रसि हिरे, सामग्री जाननी कीधीरे ॥ सिणागार्या गज रथ घोडारे, जानश्या सबल सजोमारे ॥१६॥ अर्थ ॥ राजा मकरध्वज खुशी अयो. ते चारे प्रख्यात मंत्रीउने प्रसादश्री चार लाख सोनैया आप्या; तेना हृदयमां कां पण कपट लाग्युं नहीं. जेटलुं धोलुं तेटलु उध जाएयु.॥ १५ ॥ पालथी श्रमे प्रसिद्ध पणे जाननी सामग्री तैयार करी. हाथी, घोडा अने रथ शणगार्या. समान वयना सरखा सबल जानैया तैयार कर्या. ॥१६॥ पुरलोक मिली सह पुढेरे,एह हलफल कारण शुं रे॥नाखे सह एह जणाई रे,नृप नंदन परणवा जाई रे ॥१७॥ रूपे जे जे श्राफरीवारे, पुरवासी जोवा टरपरीथा रे ॥ श्रमे कीधी सयल सजाई रे, मोटां निसाण वजाई रे ॥ १० ॥ अर्थ ॥ नगरना लोकी मलीने पुव्वा लाग्या के, आ धामधूम अवानुं शुं कारण ले ? त्यारे सर्वे कहेवा या के, राजकुमार परणवा जायचे.॥१७॥ कमारना रूपने माटे जे लोको श्राफरी गया हता, ते तेने जोवाने तरफमीश्रा मारवा लाग्या. पनी अमे सर्व प्रकारनी तैयारी करी मोटा निशाण वगडाव्यां ॥१॥ ढाल चौदमी बीजे जबासे रे कही मोहन वचन विलासे रे ॥ इम जे जे हिंसक कहे जे रे, हारद नृप चंद लहे रे ॥१॥ अर्थ ॥ बीजा नसासनी आ चौदमी ढाल श्रीमोहनविजये वचनना विलासश्री कही जे. एम हिंसक मंत्री जे जे कहे तेनो हार्द चंदराजा लेता जाय . ॥ १५ ॥ ॥दोहा ॥ नोलो सिंहल नूपति, नाषे मुज शिरताज ॥ रे जुमा कन्या . तणो, कांश बिगाडे काज ॥१॥ चोरीमां चावू थशे, कनकध्व जनुं रूप ॥ किम परणशे प्रेमला, श्म मुज नाषे नूप ॥२॥ अर्थ ॥ मारा मस्तकनो ताज लोलो सिंहलराजा बोल्यो. अरे! मुंडा हिंसक मंत्री, ते कन्यागें कार्य शा माटे बीगा? ॥ १ ॥ वली कनकध्वजनुं रूप चोरीमा प्रगट थशे. मने एबुं नासे ने के, पनी प्रेमला तेने शी रीते परणशे? ॥ ५॥ थाराधी कुल देवता, थई प्रगट सुप्रवीण ॥ क्षण क्षण किम तुं मुजाने, थाकर्षे थई दीण ॥३॥ नूप जणे माता सुणो, करे अयुक्त प्रधान ॥ पण तुम हाथे जीतवं मूज एह तान ॥४॥ अर्थ ॥ पनी अमे कुलदेवीने आराधी, एटले ते प्रवीणवी क्षणमां प्रगट अयां भने का के,अरे! राजा For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90 10 774799 ८३ G3 TAG Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. სს तुं दीनय क्षणे क्षणे मने केम आकर्षी बोलावे बे ? ॥ ३ ॥ राजा बोल्यो. माता सांजलो, श्रा प्रधान युक्त कार्य करे बे. पण मारे तो तमारे हाथे जितवानुं बे ने मूलथी मने एज तान बे ॥ ४ ॥ रोग रहित सुत करो, तुं कुल त्राता संत ॥ श्रवे बीक यदा तदा, सहु दिनकर निरखंत ||२|| तव देवीये उपदिश्युं, कर्म रोग विजय || पण वारिश चिंता सकल, कोक करी उपाय ||६|| ॥दे माता ! तमे कुलनी माता बो, श्री कुमारने रोग रहित करो. ज्यारे बींक आवे त्यारे सर्व सूर्यन सामुंजुवे . ॥ ५ ॥ त्यारे देवीए उपदेश कर्यो के, राजा ! कर्मनो रोग जतो नथी, पण कोइक उपाय करीने तारी सर्व चिंता टाली नाखीश ॥ ६ ॥ लगन समय जानृपति, नारि विमात सहेत ॥ श्रावी परशे प्रेमला, ए तुम श्रम संकेत ||७|| एम कही देवी गई, थई धीरज मनमांह | सिंहल नृप दूउ खुशी, जान सजी उठाह ॥ ८ ॥ ॥ ज्या लग्ननो समय आवशे, त्यारे प्रेमलाने आजा नगरीनो राजा नारी तथा विमाता साथे यावी परशे, ए मारो संकेत बे. ॥ ७ ॥ या प्रमाणे कही ते देवी चाली गइ राजाना मनमां धीरज यावी, पबी सिंहलराजा खुशी थयो ने उत्साहथी जान तैयार करी ॥ ८ ॥ ॥ ढाल पंदरमी ॥ ॥ कसीयाने तंबु. ठाकोर मारा खमाकीया हो माहरा साहिबा ॥ ए देशी ॥ कसयाने तंबु सिंहल राये खमा कीया हो ॥ माहारा०॥ निज कुल देवी तणे रे वचन, रसियाने केसरीया कमधज कीधा जानीयाहो ॥ मा०॥ जाणो के विकसित पंकज वन ॥क०॥१॥ कालोने मतवालो वरसालानो सहोदरूरे ॥ मा० ॥ मदर शि गार्या मातंग, मांगी बामी परुदावासी जरकेसी हो। विण तु जावडानो हो रंग २ ॥ सिंहल राजा कसी तंबु खमा कर्या. ने पोतानी कुलदेवीनां वचनथी रसिया ने केशरी जानैया तैयार कर्या. ते जाणे विकाश पामेलुं कमलवन होय तेवा लागे बे. ॥ १ ॥ मेघनो जाणे सहोदर होय तेवा मदकरतो कालो हाथी शणगार्यो. तेनी उपर जरकसी पडदावाली एक अंबाडी मांडी. ते शतुवगर जाऊवडाना रंग जेवी लागती हती. ॥ २ ॥ कनकध्वज ते मांहे चाहेशुं बेसामीज हो ॥ मा०॥ निपट कपट यतन करी बहूनंत, केणेही नवि जाण्यो जे श्रमे श्रायो जानमें हो ॥ मा०॥ पोढी खामी मांगी मोढी अनंत ॥क०॥३॥ परहुँती पधराव्या श्राव्या ए श्रामंबरे हो | मा० ॥ क्रमता अनुक्रमे सुंदर पंथ, चावीने छामे मलिया विमलपुरीना रायने हो || मा० ॥ एहमां जूठ नथी कांई अंत ॥४॥ ॥ अंबाडी पर कनकध्वजने कपट जरेली घणी जातनी यतनाथी बेसार्यो. तेने जानमां लाव्या बे एम कोइना जाणवामां श्राव्यं नहीं. तेनी खाडी मोटी चोकी वाली दोठी बेसारी दीधी. ॥ ३ ॥ मोटा चाडंबरे श्रावेला अमने नगरमा पधराव्या. अनुक्रमे सुंदर मार्गे चालता मे वी विमलपुरीना राजाने मझ्या. मां कोइ जुबुं नथी. ॥ ४ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० द्वितीय उदास. दीधो ने उतारो अवधारोजी श्रम जणी हो॥मा॥ जोजन योजन युगति अतुल, पाणी ग्रहणनी रजनी राजन ए जे आजनी होगमावरशे श्रमसुत प्रेमलालबाक० ५ कुलदेवी संकेते तुमचे हेते सेवका होमा॥ कही तस नाम श्रने रे निसाण, ए पुरनी उकफोले साते पोले मूकीया हो ॥मा॥अवसर दिवस तणो अवसान ॥ क॥६॥ अर्थ ॥ राजाए अमोने उतारो दीधो. नोजन पाननी युक्ति घणी उत्तम करी के. हे राजा चंद! श्राजे ते पाणिग्रहण करवानी रात्रि ले. अमारा कुंवर प्रेमला लक्ष्मीने आज वरशे. ॥ ५ ॥ कुलदेवीना संकेत प्रमाणे तमारं नाम अने निशाण कही आ नगरना साते दरवाजे सेवकोने मोकलाव्या बे. लग्ननो अवसर दिवसना अस्त श्रये ॥६॥ नारी बिहुँनी जोडे केडे तुमने निरखियाहोमा॥प्रणम्या तेहुणे कही नृप चंद, पधराव्या मननाव्या हेजे तमने अम लगे हो।मा॥श्रमे पण देखी पाम्या आनंदाका॥ नाखी ए जे वातो हुंती सातो धातनी होगमा॥ तुमथी साच वयनो अंश, एहमां जो कोश कूमुतो, अम नृपना पय बबूं हो॥मा॥ अहो अहो बानापुर अवतंस ॥कणा॥ अर्थ ॥ तेवामां बे स्त्रीनी जोमे तमने नीरख्या. राजा चंद गे एम जाणी प्रणाम कर्यो. पनी मन जावता एवा तमने अहीं अमारा लगी पधराव्या. अने अमे देखीने आनंद पाम्या.॥ ७ ॥ हे आना नगरीना श्रलंकार, जे खरेखरी वात हती, ते तमारी आगल निवेदन करी . तमारी साथे साचवटनोज अंश . जो आमां कांश कूड़ें होय तो मारा राजानो पगे हाथ . ॥ ७ ॥ श्रवधारो विनतडी सारो कारज मादरूं हो ॥मा० ॥ परणी श्रापे ए प्रेमला नार, नाडे जो नही परणोतो अमे धरणो घालशुं हो ॥ मा॥ हवे तम शरणे श्ण सं सार ॥ क० ॥ ए॥ ए पांचे जीवाडो बोडो थामो चंदजी हो ॥मा॥ हवे रखे हं साडो उर्जन जन्न, जाशो जो करी ताडो आमो पाडो जागशे हो॥मा० ॥ नरपति केरुं ने सदन श्रासन्न ॥ क० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ हे राजा, अमारी विनंति ध्यानमां लइ आ कार्य सिद्ध करो. ए प्रेमला लक्ष्मीने नाडे परणी आपो. जो नापाडशो तो अमे पाग जश्शुं नहीं; हवे आ संसारमा तमारूं शरण . ॥ ए॥ हे राजाचंद, ए पांचे ने जीवाडो; आ आ आव्युं ते काढो. रखे हवे उर्जनोने हसावता, जो तमे ताड करी चाट्या जाशो तो पली अहीं आडोश पामोश जागशे. अहीं राजानुं घर नजिक . ॥ १० ॥ पहिला पण नर नाडे लाडे परण्या बेघणा हो ॥ मा०॥ तो श्हां तुमने नही को दोष, रयणी तो विहाणी रदेशे कहाणी जुगो जुगे हो ॥ मा०॥ किम तुमे थई रह्या महीनो पोस॥ क० ॥ ११॥ तुममांहे श्रम सुतमां अंतर को डीनो नही हो ॥ मा०॥ श्रम कुलदेवी वचनथी चंड, आनंदे श्म चंदे बंदे सांजव्युं हो ॥ मा० ॥ अंशक हिंसक वालाजी फंद ॥ क० ॥१५॥ अर्थ ॥ हे राजा,पूर्वे आवी रीते घणा पुरुषो नाडे परण्या चे. तेथी तमने श्रा कार्य करवामां कांइ दोष For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १०१ नथी. श्रा रात चाली जशे अने जुगेजुग आकहाणी रही जशे. तमे पोष मासनी जम अंडा केम अश् रह्या गे? ॥ ११॥ तमारा अने मारा पुत्रमा कोमीनो पण अंतर नथी. हे चंञराजा, कुलदेवीनां वचनश्री अमे कहीए बीए. श्राप्रमाणे चंज राजाए हिंसक मंत्रीना फंदने गणी बधु सांजली लीधुं. ॥ १२ ॥ सिंहल नृपने चंदे परमानंदे विनव्यु हो ॥ मा० ॥ ए तुम करवी न घटे श्र नीत, हिंसकने उलंजो दीजे केही वातनो हो ॥ मा० ॥ दीसे डे तुमची खोटीजी रीत ॥ कम् ॥ १३ ॥ परणीने किम श्रापुं पानी श्राबी गेहिनी हो॥ ॥ मा ॥ किण विध लाजवीयें दात्रीवट, राजाये मत्रीये चंदनुं चित रीज व्युं हो ॥ मा० ॥ जिमतिम करीकूम कपट ॥ क० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ पी चंघराजाए परम आनंदथी सिंहल राजाने विनंति करी के, आई अनीतिनुं काम करवू तमने घटित नथी. या बाबत आ हिंसक मंत्रीने कश्वातनो संलो देवो ? आ तेनी रीत घणी खोटी ने. ॥१३॥ कदि जो हुँ परणुं तो पी ए स्त्रीने पानी केम आपुं. ! तेम करी दत्रिवटने केम खजावं.! पनी राजा श्रने मंत्रि हिंसके चंदना चित्तने घणा घणा कुड करीने रीऊव्यु.॥ १४ ॥ जंमी मत बालोची चंदे हाकारो लण्यो हो ॥ मा० ॥ हरषित मन दूज सिंहल महीपाल ॥नाषी मोहन विजये ए बीजा उदास नीहो ॥ मा० ॥ पावन पनरमी ढाल रसाल ॥क० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ जेवटे चंदराजाए जंडो विचार करी हापाडी; एटले सिंहलराजा हर्ष पाम्यो. श्रीमाहेन विजयजी ए था बीजा उल्लासनी पवित्र अने रसिक पंदरमी ढाल कही . ॥ १५॥ ॥दोहा॥ चंचल चंद चकोर जिम, नवि चूको अविसाण ॥ कर पीडण नावीवशे, कीधो ताम प्रमाण ॥१॥ सिंहलराये चंदनु, की परमपवित्र ॥ पदेराव्यो बहु मूलनो, वरनो वेश विचित्र ॥२॥ अर्थ ॥ चकोरपक्षीनी जेम चंचल एवो चंदराज अवसान चुक्यो नहीं. नावि योगे पाणिग्रहण कर वानुं कबुल कयु.॥१॥ सिंहल राजाए चंदना शरीरने परम पवित्र कर्यु. अने वरनो बहूमूट्यवालो वि चित्र वेश तेने पेहेराव्यो.॥२॥ रथसेजवाला सज कीया, जोड्या वृषन तुरंग ॥ रणण नणण बहु रणफणे, रंगाचंगसुरंग ॥३॥ बुंब कुंब कावा लुलित, श णगारी सुखपाल ॥ जाणीये दरख समुघमां, नावा तरय विशाल ॥४॥ अथरथनी सा बखद अने घोडा तैयार करी जोड्या. ते सुंदरपणे आनंदश्री टणटण शब्द करवा लाग्या. ॥ ३ ॥ ढुंब कुंब करतां सणगारेला सुखपाल जाणे हर्षना समुजमां विशाल नाव तरता होय तेम देखाया॥॥ गणणे गुमी गयण लगें, पंचरंग बहुत ॥ जाणीयें सुरकन्या मणी, वरराजा निरखंत ॥५॥ फरहरीया नेजा पवन, खिंख णीउ ऊणणंत ॥ खबर करे मनु सुरजणी, चंद जेह परणंत ॥६॥ For Personal and Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ द्वितीय उल्लास. अर्थ ॥ पंचरंगी बहुजातनी गौरी आकाश सुधी उंचे रही जोती हती, ते जाणे देव कन्या मी व राजाने निरखती होय तेवी लागती हती. ॥ ५ ॥ नेजा पताका पवनमां फरकवा लाग्या. तेमां रहेली घुघ Adनो घमकार थवा लाग्यो. ते जाणे चंदराजा परणे बे-ए खबर देवताने पती होय तेम जणाय बे. ॥ ६ ॥ बंद टकोरा गमगडे, वाजे गुहिर निसाण ॥ नादे पूराणो गया, संकासुरराण ॥ ७ ॥ सांबेला शिणगारीया, मह मह गंध म हिल ॥ वरघोडे जोडे चडे चढीया लगन पहिल ॥ ८ ॥ ॥ बंदना कोरा गाजता हता. गंभीर निशान वागी रह्यां तां. आकाश नादथी जराइ गयुं. तेथी देवराज इंद्र शंका पामवा लाग्यो. ॥ ७ ॥ सांबेला शणगारवामां आव्या. जेट सुंगंधथी बेहेकी रह्यां दतां; लग्नना समय उपर वर घोडानी साथे चड्या हता. ॥ ८ ॥ ॥ ढाल सोलमी ॥ श्राव्या चोमासाना दाहामारे, चडजो चाखमीयें ॥ सासु पूबे बहूवात, वे वर लटकतो ॥ ए देशी ॥ राग मल्हार ॥ जोवे विमलपुनावासी, गोखे गोखे मृगादी रे ॥ वे सिंहलनो बावो, परणवा प्रेमलालबी रे ॥ १ ॥ अर्थ || विमलपुरीना लोको जोवा श्राव्या. मेहेलना गोखे गोखे मृगना जेवा लोचनवाली स्त्री श्रावी कहेवा लागी के, जुड़े या प्रेमला लक्षीने परवाने सिंहलनो राजकुमार परणवा वे बे. ॥ १ ॥ वे वर लटकतो, कनकध्वज नरराज ॥ गलियें अटकतो ॥ ए श्र की ॥ १ ॥ सहसगमे दीवा जगमगते, रवि निशि मानी रे ॥ पण परणवा चंदने मानुं कीधा किरणने जानी रे ॥ श्रा० ॥ २ ॥ • अर्थ ॥ या कनकध्वज राजा लटकंतो ने गलीए गलीए अटकंतो खावे बे. या हजारो दीवार्ड ऊ गम बे. तेथी रात्री मानीने सूर्य तो न श्राव्यो पण या कीरणोने जोइ चंद्र ( चंद ) परणवा श्रावे बे. एम हुं मानुं बुं ॥ २ ॥ चंद चढ्यो दिन करने वाहाने, ए पण चरिज जाणो रे ॥ चंद तणे गमे कनकध्वज, सोहला मांदे गवाणो रे ॥ श्र० ॥ ३ ॥ पंखा पवन करंता जनने, फिर फिर कहे मम बीजो रे ॥ नही नही नही ए क नकध्वज, एतो वर कोण बीजो रे ॥ श्र० ॥ ४ ॥ ॥ सूर्य बाने चंद चड्यो --ए आश्चर्यनी वात बे. तेम चंदने ठेकाणे कनकध्वज गवाणो ए प आश्चर्यनी वात बे. ॥ ३ ॥ लोकोने पवन करता पंखार्ज जाणे कहेता होय के, तमे खीजशो नहीं, या क नकध्वज वर नथी पण कोइ बीजो बे. ॥ ४॥ Jain Educationa International कानेरे जेहवो वर सांजलता तेहवोज नयणे दीठो रे | आपण डा नृपतनुजा केरो, पूरव पातक नीठो रे ॥ श्रा० ॥ ५ ॥ श्रो For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. धाता धन एहनी माता, जायो सुत देदारुरे ॥ एहने आग ल सुर कुप लेखे, रूप बन्यो बे वारू रे ॥ ० ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ ते समये लोको वातो करवा लाग्या के, जेवो वर पणे काने सांजलता तेवोज आपणे जोयो d. पण राजानी पुत्रीनां पूर्वनां पाप तो नाशी गयां ॥ ५ ॥ अहो, विधाता तने धन्य बे. अहो यानी माताने धन्य बे, जे वा पुत्रने जन्म पे ! चानुं रुप एवं बन्युं वे के, तेनी गल देवपण शा लेखामां बे१६ श्म पुरमांदे सुंदर वर वर, घर घर निपट सुदाव्यो रे ॥ ढोल मृदंग निशान वाजंते, वरवा तोरण श्राव्यो रे ॥ श्र० ॥ ॥ सोरठ मारू राग जाती, रंगेरंग बनाया रे ॥ जीवती रातत u स्वर जीणे, सोहवे सोदला गाया ॥ ० ॥ ८ ॥ अर्थ ॥ एम नगरमा घेरघेर ए सुंदर वरनी प्रशंसा चाली. एम करतां ढोल, मृदंग ने निशान वगाड तो ए वर वरवाने तोरण आव्यो. ॥ ७ ॥ ते वखते सोरठ, मारु ने खंजाती रागनी रंग गाजी रह्यो जी ती रात्रे ए मधुर जीणा स्वर सुशोजितपणे गवाता हता. ॥ ८ ॥ २०३ सिंदल राजा जूठो मंत्री, पगपग वर पडखावे रे || वरनी लागत लेता लेता, तोरण सूधी आवे रे ० ॥ ए ॥ जे विध तोरण करवो हूतो, सासुयें ते विध धारे ॥ सुरगुरु ते पण जाखी न शके, उचव जे जे कीधा रे ॥ श्र० ॥ १०॥ ॥ सिंहलराजा ने जुगे मंत्री वरने पगले पगले पडखावे बे, वरनी लागत लेता ते तोरण सुधी . ॥ ॥ जे विधिए वरने तोरण कराय ते विधि सासुए लेवा मांड्यो ते वखते जे जे उत्सवकर्यो तेनुं वर्णन देवता गुरु बृहस्पति पण कहीश के तेम नथी. ॥ १० ॥ माहिरामां यो वरराजा, अयुगत वयणे गाई रे ॥ धन्या कन्या प्रेमला लछी, पण तेवी बनाई रे ॥ ० ॥ ११ ॥ अहो हो लोक कहे कनकध्वज, प्रेमला ली तेवी रे ॥ मनमथ रायने ए रतिराणी, जुगती जोमी जेहवी रे॥१२॥ ॥ युक्त-न बाजे तेवां वचनोनां गीत गाइ वरराजाने मायरामां लाव्या. कन्या प्रेमला लक्षीने धन्य बे, तेने पण तेवी बनावी ॥ ११ ॥ लोको कहेवा लाग्या हो या कनकध्वज ने प्रेमला ल मीनी जोडी मन्मथराय ने रतिराणीनी जोड जेवी जुगते मली बे ॥ १२ ॥ रहेजो खंड ए वर वहुं जोमी, रखे प्रभु लागती खामी रे ॥ एहने ऊंनोवायु न दोजी, वारी हुं अंतर जामी रे ॥ श्रा० ॥ १३॥ वीरमती वली तेम गुणावली, नयरी निरखी श्री रे ॥ कौतुक जोवा मंडप उजी, रसनरि रंग लगावी रे ॥ श्रा०॥१४॥ ॥ वली शीघ्र पे बे के, या वर छाने वधूनी जोडीने प्रभु खं राखजो - तेमां रखेखामी श्रवश नही; हे अंतरजामी, एने उनोवा पण वाशो नहीं हुं तेनी उपर वारी जाउं बुं. ॥ १३ ॥ वीरम गुणावली बधी नगरीने निरखी त्यां श्रावी. पबी रसजरी रंग लगावी कौतुक जोवाने मंडपमां बनी. १४ एहवे लगन ती थई वेला, वरकन्या पधराव्यांरे ॥ चोरीये चारे मंगल वरती, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ द्वितीय उवास. वेद विदे परणाव्यारे॥श्रा० ॥१५॥ तेहवे गुणावली कहे सासुने, ए वरतो उल खीतो रे ॥ बाई तुमतको ए नानमीयो, वीशे विश्वा वदी तो रे ॥ श्रा॥१६॥ अर्थ ॥ एवामां लग्ननी वेला थई एटले वर कन्याने पधराव्यां. चोरीमा चारे मंगल वर्ती वेद जाणनारा गृही गुरुए तेमने परणाव्या. ॥ १५॥ तेवे समे गुणावलीए सासुने कडं, बाजी, या वरतो उलखीतो जे. वली तमारोए विशवसा नानडी जे होय एम लागे . ॥ १६॥ सासुये वहुनुं कर्वा न विमान्युं, जोवे मन थिर राखी ॥ बीजा उन्हा सनी मोहन विजये, सोलमी ढाल ए नाखीरे ॥ श्रा० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ सासुए वहुनुं कर्तुं मान्यु नहीं अने मनने स्थिर राखी जोवा लागी श्रीमाहेन विजये था बीजा उहा सनी सोलमी ढाल कही ॥१७॥ ॥दोहा॥ बाई वर बीजो नही, ए मुज प्रीतम कोक॥ थई खरी ए प्रेमला, साची सुंदर शोक ॥१॥ आव्या जिम आपण बेहु, तीम किम श्राव्या एह ॥ बाजी मुज उपन्यो, ए साचो संदेह ॥२॥ अर्थ ॥ गुणावली कहे जे-हे बाजी, आ वर बीजो कोई नहीं, मारो प्रितम चंद ने. आ प्रेमला लक्ष्मी मारी खरेखरी सुंदर शोक्य अश्. ॥ १॥ हे बाजी, मने एक संदेह थाय ने के, जेम आपणे बंने श्राव्या तेम ए केम आव्या हशे? ॥२॥ कहे सासू कचपच मकर, मुधा मधर संदेह ॥ चंद रह्यो था नापुरी, वर कनकध्वज एह ॥३॥ हूंजे कहेती चंदथी, डे रूडा नृपचंद ॥ प्रगट निरख तुं पार, शुं ऊंखे के चंद ॥४॥ अर्थ ॥ सासु कहे -हे गुणावली, तुं कचपच कर नहीं अने एवो खोटो संदेह न कर्य-चंदराजा तो आलापुरीमा रह्यो अने आ तो कनकध्वज वर .॥३॥ हूं कहेती हती के, जे राजकुमार कनकध्वज चं दश्री रुडा , ते पारखं तुं प्रगटपणे जो. अहीं चंदने शुं ऊंखे बे. ॥५॥ तुज पीयु मंत्र्यो मंत्रथी, गारुमीयें जिम नाग ॥ तिहां जाशें तव बूटशे, मान वचन महा नाग ॥ ५॥ चंद तणे नोले वहू, जुलीशमां धरी डंस ॥ सरिखा जगत्मां, डे मुगधे लखपुंस ॥६॥ अर्थ ॥ हे महानाग वधू, तारोपति गारुडी जेम मंत्रश्री नागने मंत्री राखे तेम त्यां राखेलो ते ज्यारे त्यां जश्शुं त्यारे बुटशे. ए मारुं वचन मानजे. ॥ ५॥ हे वधू ! चंदनी आकृति उपरथी तुं नोलवी जश्श नहीं. हे मुग्धे ! आ जगत्मां लाखो पुरुषो सरखे सरखा मलता आवे . ॥ ६॥ माने नही गुणावली, सासू वचन लगार ॥ सना सह हवे सांजलो, वरकन्या अधिकार ॥७॥ For Personal and Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ श्राप्रमाणे सासुए कडं, तोपण गुणावलीए सासुनां वचन जरापण मान्यां नहीं. हवे सर्व सन्ना जन वर कन्यानो अधिकार सांजलो. ॥७॥ ॥ ढाल सत्तरमी॥ दिल लगावो वापुर वरणी॥ ए देशी ॥ श्री मकरध्वज राजा हरख्यो, निरखि रूप जामाता॥ मन हरणी प्रेमला परणी, हुई कनकध्वज घरणी ॥ मन ॥ ए श्रांकणी ॥ नरनुरूप अनोपम एहवं, किम घमी शक्यो विधाता ॥ म॥१॥ बेटी जेहवी गुणनी पेटी, वर पण तेहवो पामी ॥ म ॥ जोग संयोगे अविचल जोमी,रहेजोन होजोखामी ॥मा॥ अर्थ ॥ राजा मकरध्वज जमानुं रूप जोड्ने मनमां हर्ष पाम्यो. मनोहर प्रेमला लक्ष्मी परणी कनकध्वजनी गृहिणी अइ. श्रावु नरनुं अनुपम रुप विधाता केम घडी शक्यो ? ॥ १ ॥ जेवी पुत्री गुणनी पेटी जे, तेवा ते वरने प्राप्त थ. हवे लोग संयोगे श्रा जोडी अविचल रहे जो. तेमां कांई खामी आवशो नहीं.५ हाथ मेलावा मोचन वेला, दीधा गज रथ घोमा ॥ म॥ मणि मुक्ताफल सोनूं रु', असन वसन संजोडाम॥३॥षण रहित नूषण बहु नाजन, सुंदर सेज तलाई॥ मग ॥ जे मुख माग्युं तेते श्राप्युं, पण नवि जाणि खलाई॥म०॥४॥ अर्थ ॥ कर मोचन ( हाथेवालो गेडवा) वखते राजाए हाथी, घोडा, रथ, मणि, मुक्ताफल, सोनु, रुपे, लोजन, वस्त्र प्राप्यां ॥३॥ निर्दोष श्रानूषण, घणापात्रो, सुंदर सेज अने तला जे मुखे माग्युं ते आप्यु. तेमनी खलता कांइपण जाणवामां आवी नहीं. ॥४॥ वरकन्या कंसार श्रारोग्या, परिमित कवल सरखे ॥ म ॥ धुंघटना पटमांहे प्रेम ला, वालिमनु मुख निरखे ॥ म॥५॥ हुं बलिहारी धाता ताहारी, मुजवरसुर अवतारी ॥म ॥ हुँ परवारी जग निरधारी, नारी श्रवर विचारी॥म ॥६॥ अर्थ ॥ वर कन्या परिमित अने सरखा कोलीया लइ कंसार आरोग्या प्रेमला धुंघटना पटमाथी पोताना वालमर्नु मुख नीरखवा लागी. ॥ ५॥ प्रेमला कहे बे- हे विधाता, तने बलिहारी . मारोपति देवनो श्रवतार जे. जगत्नी बीजी नारीने विचारता हूं तो परवारी बं. ॥ ६॥ एहवे दाहिण नयन फुरकी, हरखी तेहवी विलखी॥म०॥ डाह्यापणे न जणाव्यु कोश्ने, रही समजी मन सरखी ॥ म०॥ ७॥ लागेको लाडो लाडी, परण्या हुई वधाई म॥ दाने माने अर्थी संतोष्या, जीत निसाण वजाई ॥ म ॥७॥ अर्थ ॥ तेवा समयमा प्रेमलानी जमणी आंख फरकी. एटले जेवी हरखी हती तेवीज विलखी अश् गइ. माहापणने सीधे ते वात कोश्ने जणावी नहीं; मनमां समझीनेज रही. ॥ ७॥ एवी रीते लाडो अने लाडी कोडथी परण्यां. बधे वधामणी प्रसरी गइ. दान अने मानथी याचकोने संतोष्या अने विजय निशाण वगडाव्यां. एहवे कंचन चोकी मांडी, दाव मांड्यो अतिहासे॥ म ॥ दंपती सामा सामां बेग, रमवा सारी पासे ॥ म ॥ए ॥ कोमलकर कमले लक्ष पासा, चंद करे चालवणी॥म॥जिम सिंहलादिक कोश्न जाणे, कही समस्या बालवणीम॥१० For Personal and Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ द्वितीय उल्हास. अर्थ ॥ ते पनी सुवर्णांनी चोपाटमांडी; अति हास्यथी दाव मांडी ते स्त्री पुरुष सामे साम सोगा पासे रमवा बेठां.॥ ए॥ राजाचंद पोताना कर कमलमां पासा लश् चालाकी करवा लाग्या अने जेम सिंहल राजा विगेरे कोइ जाणे नहीं तेवी रीते नीचे प्रमाणे समश्या कही. ॥ १० ॥ गाथा ॥ थाना पुरंमि निवसइ, विमलपुरे ससिहरो समुग्गमिउँ ॥ अपछि अस्सपिम्मस्स, विहि हत्थे हव निव्वाहो ॥१॥ अर्थ ॥ आला नगरीमा रहेनारो चंड विमलपुरमा लग्यो . हवे तेनो निर्वाह विधिने हाथे पाय जे.१ चंदनृपति एम गाथा कश्ने, रणऊण पासा नाखे ॥म॥ चिंते चतुरा प्रेमलाल नि, प्रीतम ए शुं नाखे ॥ मग ॥ ११॥ बीजो नेद किशो नविलाधो, नारीए सीधा पासा ॥म॥ दाखवापियुनेनिज चतुराइ, गाथा कीध प्रकासा ॥ म॥१२॥ अर्थ ॥ चंदराजा ए गाथा बोलीने रणकण करता पासा नाखतो हतो. ते सांजली चतुर प्रेमला लक्ष्मी प्रियतम आ शुं बोले ने तेनुं चिंतवन करती हती. ॥ ११॥ बीजो नेद कांई मट्यो नहीं; पण ते नारीए पासा लीधा अने पोतानी चतुरा बतावा नीचेनी गाथा प्रकाश करी. ॥ १५ ॥ ॥गाथा ॥ वसि ससि श्रागासे, विमलपुरे जग्गम जहा जहा सुख्कं॥ जेणानिजुट जोगो, स करिस्त तस्स निब्वाहो ॥१॥ अर्थ ॥ चंद आकाशे वस्यो ने अने विमलपुरीमा उग्यो होय तो “जहा सुखं” (जले उग्यो ). जेणे ते तेनो निर्वाह करशे. ॥१॥ प्रेमला एम कहीने पासा, नाखे हेज जराणी ॥ म०॥ दरख्यो चंद विचारे चि त्तमें, निपुणाये वात न जाणी॥ म० ॥ ७॥ नाखे पासा श्म रस वाह्या, पुनर पि कथता गाथा ॥ म॥प्रगटपणे समजावे पीउमो, निजवनिताने सनाथा ॥१४॥ अर्थ ॥ ए गाथा बोली प्रेमलाए पासा नाख्या. तेनो चित्तमा विचार करी चंदराजा हो के आ नि पुण स्त्रीए वात जाणी नथी. ॥ १३ ॥ एवी रीते बंने स्त्रीपुरुष वारंवार ए गाथा कहेतां कहेतां पासा नाखतां हता. पनी प्रियतमे प्रगटपणे पोतानी सनाथ स्त्रीने समजाववा मांड्यु.॥१५॥ पुरवदिशि एक बाजा नगरी, चंद नृपति तिहां राजा ॥ म ॥ जे तस मंदिर रमवाजेवा, सारी पासा ताजा॥म ॥१५॥नवि ने एहवी क्यांहिं सजा, तेहो यतो यहां रमिये॥ म॥ फोगट इण रमवे गुणवंती, रातडली किम गमीये॥ १६॥ अर्थ ॥ चंद कहे बेः-पूर्व दिशामां एक आना नगरी जे. त्यां चंदराजा ने तेना मंदिरमा सोगी अने पासा ताजा के ते रमवा जेवा . ॥ १५ ॥ एवी नवी सजाइ अहीं क्यांही बे ? जो तेवी होय तो आपणे रमीए. हे गुणवंती आम फोगट रमवाथी रात्रि केम निर्गमन थाय?॥ १६॥ एम कही जव पासा परव्या, कंते रमतां दावे ॥ सतरमी ढाल ए बीजे उसासे,कही मोहन जन जावे ॥ म० ॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ΑΘεε,8 XXXO ΥΘΥΟ ΧΡΟΧΟΟΥΥΟΥ ΚΑΠΟΤΕ Κ ΥΡΙΕΣ ΕΠΕΞΕ και ο Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ एम कही स्वामीए रमवाने दावे पासा नाख्या. श्री मोहनविजये मनमां नाव धरी बीजा नशासनी या सत्तरमी ढाल कही . ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ वचन सुणी वालिम तणां, चमकी नारि तिवार ॥ असमंजस एशुंका, कांक खरो विचार ॥१॥ सिंहलदेश सिंहलपुरी, तिहांथी श्राव्या तेह ॥ मुजने परणी अति हठे, मुखे किम नाएयुं तेह ॥२॥ अर्थ ॥ पोताना पतिनां आवां वचन सांजली प्रेमला चमकी गइ. श्रा पति आएँ अघटित केम कहे जे.? आमां कांक खरो विचार लागे .॥१॥ सिंहल देशनी सिंहलपुरीमाथी ए आव्या ने, अने अति हरश्री मने परण्या, ए वात मुखमां केम लावता नथी.॥२॥ किहां पूरव श्रानापुरी, किहां चंद किदां सार ॥ एतो जंमी वात मी, श्रवसर करीश पचार ॥३॥ सिंहल सुत मिषथी रखे, ए मुज परणे चंद ॥ लह्यो नेद में वचनथी, दीसे फंद अमंद ॥४॥ अर्थ ॥ पूर्वमा रहेली आलापुरी क्यां? चंदराजा क्या ? आ वात तो ठंडी लागे . तेनो प्रचार अवसरे करीश. ॥३॥ रखे सिंहल राजाना पुत्रना मिषथी आ चंदराजा मने परणता हशे. श्रावो नेद तेमनां वचन उपरथी जणाय . या वातमां घणो फंद बे.॥४॥ श्म करते पुरो थयो, सारी पासा खेल ॥ ललना लीन थई गई, मूरति मोहन वेल ॥५॥ लगी लगन चित्त चटपटी, जागी पूरव प्रीति ॥ रागी त्रिकरणथी थक्ष, नवल सनेही रिति ॥६॥ अर्थ ॥ एम करतां सोगी पासानो खेल पूरो थयो. मोहन वेल जेवी मूर्ति जोर ललना लीन अश् गइ. ॥५॥॥ तेना चित्तमां चटपटी लागी अने पूर्वनी प्रीत जाग्रत थ अने ते बाला नवल स्नेह रीते मन वचन कायामां पूर्ण रागी श्रश्. ॥ ६॥ वालिम वचन न विसरे, वनिताने क्षण एक ॥ उ बक चित्तो उलक्यो, जु नारी विवेक ॥ ॥ अर्थ ॥ ते प्रेमी वनिताने पोताना व्हालानां वचन हणवार पण विस्मरण श्रतां न हतां. श्रने तेणीए तेनुं उत्सुक चित्त उलखी लीधुं. जुवो नारीनो विवेक केवो जे? ॥ ७॥ ॥ ढाल श्रढारमी॥ ॥नयरो नगीनो माहारो साहिबो, ढोला मारु घडी एक करहो मुकारहो ॥एदेशी॥ सिंहल नृप कहे चंदने, राजिंद मोरा सुत लामकमा उठहो ॥ रात थोमी रामत घणी ॥ राण ॥ जुर्व विचारी पुंठहो ॥ सकलगुणे एतो सा चनो शुरो नृपचंदजी ॥राण ॥ नाग्यतणी बलिहारीहो, ए श्रांकणी For Personal and Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ {០ថ្ងៃ द्वितीय उल्हास. ॥१॥ पुर्खन मेलो ए मुकतां ॥ रा॥ वहेतुं नथी तुममन्न हो, को डी मेला एहवा मेलशुं ॥रा ॥ श्रम तुम जोए जतन्नहो ॥ स ॥२॥ अर्थ ॥ सिंहलराजा चंदने कहे जेः-हे! लाडकवाया पुत्र! उठ रात श्रोमी ने अने रमत घणी जे. पानव विचारी जुवो. सर्व गुणे पूरो अने सत्यनो शूरो ए चंदराजा जे. जाग्यनी बलिहारी . ॥ १॥ श्रावो मुर्खन मेलो बोडता तारुं मन अतुं नथी, पण एवातो कोटी गमे मेला मेलवशं. अमारे अने तमारे तेवा यत्न करवा जोइए. ॥ ॥ वातडली वेधालीये ॥ रा॥ उठ्यो चंद तस जोयहो ॥ तेजी न सहे ताजणो ॥रा॥ कयुं अकयु केम होय हो ॥ स० ॥३॥ रण शूरा शुरा जले ॥रा०॥ वचन शुराते शुरहो, एक वचनने कारणे॥ रा०॥परिहरि परणी पूरहो॥४॥ अर्थ ॥ श्रावा मर्मनांवचन सांजली तत्काल चंदराजा उगी नीकडयो. तेजी घोडी चाबुकने सहन करती नथी. जे वचन कह्यु बे ते न कह्यं न थाय. ॥ ३ ॥ जे रणशूरा बे ते नले शूर हो, पण जे वचनना शूरा तेज शूरा जे. एक वचने कारण चंदे परणेली नारीने दर गेडी दीधी.॥४॥ रथ असवारी सनारीश्री ॥ रा॥ कीधी दीधां दानहो । सिंहल नृपगृह उत र्या ॥ रा॥ हरख्या सहु राजान हो ॥ स ॥ चंद नृपति वली प्रेमला रा॥ बेग पुण एकंतहो ॥ पण चतुरानिज नाथनुं ॥ राग चंचल चित्त निरखंतहो ॥६॥ अर्थ ॥ पनी नारी साधे रथनी स्वारी करी. याचकोने दान आप्यां, सिंहल राजा घेर उतर्या अने सर्व लोको अने राजा हर्ष पाम्या. ॥ ५॥ चंदराजा अने प्रेमला फरीवार एकांते बेगं. ते वखते प्रेमलाए पोताना पतिनुं चित्त चंचल जोयु.॥ ६ ॥ रंग हतो जे परणतां॥राण ॥ ते रंग नही खेलंतहो ॥ ए रंगमें ते रंगमें ॥रा॥ अंतर अनंतानंत हो॥ स०॥७॥ करपहवीये हिंसके ॥रा॥ एहवे समश्या कीधहो ॥ चंदे स्वारथीया तणी ॥ रा॥ जाणी विदा जे दीधहो ॥७॥ अर्थ ॥जे रंग परणती वखते हतो, ते रंगनो खेल देखातो नथी. आ रंग अने ते रंगमां अनंतगणो तफावत . ॥ ७॥ पठी हिंसके करपदवी (करचे ) श्री समश्या करी. ते जो चंदे जाण्युं, जे तेणे स्वार्थी श्रइ मने विदाय गीरी आपी. ॥ ७॥ पण था मेलो ए रातडी ॥रा ॥ सांजरशे अवतारहो ॥ ए घमी विसरशे नही। रा०॥ साखी सरजण हारहो ॥ स ॥ए वीउमता वहाला थकी राखरी दो हिली वातदो॥ ए हवे चंद चकोरने ॥रा॥चितचमी ते विमातहो ॥ स ॥१०॥ अर्थ ॥ पण आ मेलो अने आरात श्रा अवतारमा सांजरशे. तेमज आ घमी को दिवस नुलाशे नहीं. तेना सादी परमेश्वर . ॥ए॥ पोताना वाटहा थकी जुडं पडq ए खरी दोहली वात , एवे समयेचंदरुप चकोरने पेली अपरमात चित्तमां याद श्रावी. ॥१०॥ जाती रखे तरु वेश्ने ॥रासाची विमासण एहहो॥जे जाडे परणो प्रिया ॥ रा॥ जूगे तेथी श्यो नेहहो ॥ स॥१९॥ जेम अहि बंडे कंचुकी ॥रा ॥ उठ्यो नारी उवेखदो ॥रे पिउ पूरे प्रेमला ॥रा॥ उगेडो केण विशेषहो स॥१२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १०॥ अर्थ ॥ रखे ते वृक्ष लश्ने जाय ए खरेखलं विचारवान बे. अने जे था नाडे स्त्री परण्यां, तेनी साथे खोटो स्नेह शुं राखवो? ॥ ११॥ जेम सर्प कंचुकीने त्यजीदे, तेम ते प्रेमलानी उपेक्षा करी बेठो अयो. त्यारे प्रेमलाए पुग्युं, प्रियतम, तमे केम उगे गे? ॥१२॥ कहे पिउदेह चिंतामणी ॥राजाश्श गृह अनुषंगहो ॥ नारीपण कारी जरी ॥राजाणीकपटथर संगहो ॥स॥१३॥ पिनवारी पण नविरही ॥रानवली गति कोश्नेहहो ॥ चंदनो दाव फाव्यो नहीं ॥रा॥श्राव्यो करी शुचिदेहहो॥१४॥ अर्थ ॥ चंदे कां, देह चिंता माटे जq . तेथी हुँ या घरनी पासे जश् श्रावं. प्रेमला ते कपट जाणी कारी जरी साथे चाली. ॥ १३ ॥ पतिए साथे आववाने वारी पण ते वारी रही नहीं. नेहनी गति को नवली . चंदनो दाव फाव्यो नहीं. ते देहनी चिंता मटामी शौच करी पागे आव्यो. ॥१५॥ अन्योक्ते हिंसक कहे ॥रा॥ वहेलो था निशि नूपहो ॥ दिनकर जो तुज देख शेरा॥ पडशे प्रगट सविरूप हो ॥स॥१५॥ निसुणी चंद नरेसरु ॥रा॥ क्षण क्षण थावे पुवारहो ॥ कुसुम पुंठल जेम वासना ॥राणातम हुश्संगे नारदो।स०१६ अर्थ ॥ ते समये पेला हिंसक मंत्रीए अन्योक्तिथी कह्यु के, हे राजा ! रात्रि ने त्यांसुधी उतावल कर्य. जो सूर्य तने देखशे, तो पनी था बधुं स्वरूप प्रगट थशे. ॥१५॥ ते सांजली चंदराजा घार पागल श्राव्या करे अने पुष्पनी साथे वासनानी जेम प्रेमला तेना संगमा रह्या करे.॥ १६॥ बेल शक्यो नही तरी ॥राणा नेहे घेली नारहो ॥ जोरे करग्रही कंतनो॥राणा श्राण्यो गेह मोकारदो ॥ स॥१७॥ सेजे बेसार्यों हेजथी॥रामांमीघणी म नुहारदो ॥ दणक्षणमें एम केम करो ॥रा॥ कहो मुज प्राणाधारहो ॥ स॥१०॥ अर्थ ॥ चद डेल पोतानी प्रेम नरेली प्रियाने बेतरी शक्यो नहीं. ते पोताना कांतनो जोरथी कर पकडीने घरमां सावी.॥ १७ ॥ हेत करीने तेने शय्या उपर बेसार्यो. अने घणी विनंति करवा मांडी, पनी कडं के, हे मारा प्राणाधार! दणे क्षणे आम केम करोगे? ते कहो. ॥ १०॥ मोदने बीजा उबासनी ॥ रा० ॥ नाखी अढारमी ढाल हो ॥सत्यवा दी जननी जणे ॥ रा॥ चंद जिस्या महीपाल हो ॥ स ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ श्रीमोहन विजयजीए था बीजा उसासनी श्रढारमी ढाल कही. चंद जेवा सत्यवादी राजाने कोश्कज माता जन्म आपशे. अथवा चंद वा राजाने सत्यवादी माताज जन्म आपे.॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ क्षण बाहिर क्षण नीतरे, एम केम करो अधीर ॥एतो कारण मु जजणी, कहो नणदीना वीर ॥१॥मांड्यो प्रथम समागमे, कपट निहेजा कंत ॥ किम रहेशे इण लक्षणे, प्रीतरीत मतिमंत ॥२॥ अर्थ ॥ हे नणदीनावीर. क्षणमा बाहेर अने कणमां अंदर एम अधीराइ केम करो गे? तेनुं कारण मने कहो. ॥ १॥ हे कांत, प्रथमनाज समागममा तमे श्रा, कपट करवा केम मांड्यु. ? हे बुद्धिवंत, तेवा वरुण राखशो तो पनी प्रीतिनी रीत केम रहेशे? ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय उवास. प्रथमज कवले मक्षिका, शो तेमांहे सवाद ॥ स्वामी अबला उप रे, एवमो शो उन्माद ॥३॥ पेहेली रामतमा प्रजु, काढी बेग वेश ॥ आगल केम निरवाहशो, मुजथी नेह विशेष ॥४॥ अर्थ ॥ पेहेलाज कोली आमां मक्षिका आवे तो पनी तेमां शो स्वाद ? हे स्वामी, अबलानी उपर आवो उन्माद शुं करो गे? ॥ ३ ॥ हे प्रनु, पेहेलीज रमतमा वेष काढीने बेठा तो पनी मारी साथे श्रागल स्नेहनो निर्वाह केम करशो? ॥४॥ मूकीयो चलचित्तता, करो सुरंगो नेह ॥ जिणे तुमथी खलता तस मुख पम खेह ॥५॥ वाला तुम मलवा तणो, शलजो इतो अनंत ॥ पण मननी मनमां रही, इण श्राचरणे कंत ॥६॥ अर्थ ॥ चित्तनी चपलता गेडी द्यो. सुरंगी नेह करो. जेणे तमारी साथे खलता करी के तेना मुख उपर धूल पडशे.॥ ५॥ हे व्हाला, तमने मलवानो कोड अनंत हतो, पण हे कांत तमारां आवां श्राचरणथी ते मननी वात मनमां रही. ॥६॥ जे गाथा कही तुमे, पामीळ तस नेद ॥ जावा नही देखें हवे, ते तुमे जाणो वेद ॥ ॥ अर्थ ॥ जे गाथा तमे कही हती, तेनो नेद हुँ समजी वं. तेथी हुँ तमने जावा दश नहीं. तेनो वेद तमे जाणो. ॥७॥ ॥ ढाल गणीशमी ॥ . हुं तुज पागल शी कहुं केशरीश्रालाल ॥ ए देशी॥ श्रलवेसर अवधारीये ॥ केशरीया लाल ॥ अबलानी अरदासदो ॥ के० ॥ पा मीश्राशना पासमां ॥ के ॥ केम हवे कीजे निराशहो ॥ के ॥ रहोरदो राजे सरा ॥ रहोणा॥१॥ कहो ते करुं हुं कबुलहो ॥ के० ॥ पण फोगट शाने ददो ॥ के० ॥ करी करी कूमा कुशूल हो ॥ के० ॥ रहो ॥२॥ अर्थ ॥ हे केसरीश्रा लाल, आ अबलानी अरज अवधार जो. मने आशाना पाशमां पाडीने हवे केम निराश करो गे? माटे हे राजेश्वर, अहिं रहो. ॥१॥ जे तमे कहो, तेहुँ कबुल करुं, पण मने आवा कुमा कुशूलथी फोगट शामाटे बालो गे ? ॥२॥ महिल कहिल कारी इस्या ॥ के० ॥ टहिलनी हुं करणारहो ॥ के० ॥ . तोपण मनमाने नही ॥ के० ॥ अहो जोवन शिणगारदो ॥ केणारहो ॥३॥ हुँ तुम पगनी उपानही ॥1॥ तुमे मुज शिरनामोमहो ॥॥ गोद बिगडं पाये पहुं॥ के ॥ केम रह्या मुंह मचकोमहो ॥के॥ रहो ॥४॥ अर्थ ॥ दे यौवनना भंगार, याची सर्व सामग्री जे. ९ वचन प्रमाणे वर्तनार अने टेखनी करनार हुँ, For Personal and Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ते उतां तमारं मन मानतुं नथी. ॥३॥ हुँ तमारा पगनी मोजडी बु, अने तमे मारा माथाना मोड नगे. हुँ गोद बीगq बुं अने पगमा पमु बं; ते उतां तमे मुख मरडीने केम रह्या गे?॥४॥ जे मन राखी शकी नही॥ के० ॥ ते खमजो अपराध हो ॥ के० ॥ बाल क बुझे लहेती नयी ॥॥ रखे कांश राखता खाध हो ॥कारहोण्य॥ विमलपुरी नगरी किहां ॥ के० ॥ किहां थाना अवदात हो ॥ के० ॥ किहां श्रमतुम मेलावडो ॥॥ थ को लिखित ए वातहो ॥णारहो॥६॥ अर्थ ॥ जे तमारूं मन राखी शकी नहीं ते मारा अपराध क्षमा करजो. हुं बालक बुद्धि बु. कां समज तीनश्रीः रखे कांड मनमां खेद राखता. ॥५॥ विमलपुरी नगरी क्या ? अने उज्वल एवीआना नगरी क्यां ! अमारो अने तमारो मेलाप क्यां? आ वात को पूर्व लखश्री अश् ॥६॥ अणजाएयुं जातुं नथी॥ के०॥ रखे कही गणता गमारहो ॥ के० ॥ ल शकोनही तरीके॥ ते तुमे राखो करार होरहो।केगारहोगा। जाण्यो ग्रह पीछे नही ॥ के० ॥ तेहमां मीन न मेष हो ॥के०॥ एम क रतां जो उवेखशो ॥ के॥ तो तुम शोना विशेष हो ॥ के॥ रहोणा॥ अर्थ ॥ कां वात अजाणी रहेली नथी, रखे तमे मने गमार करी गणता? हे बेल,तमे एवो करार करी राखजो के मने बेतरी शकशो नहीं. ॥ ७॥ जाणे तो ग्रह पीडे नहीं, ए वातमा मीन मेष नथी एम करतां जो तमे मारी उपेक्षा करशो तो तमारी शोजा विशेष अशे. ॥ ७ ॥ रढीश्राला रढमानीए ॥के०॥ निपट न था कठोरहो ॥ के० ॥ मोटा किण वातनी ॥ के॥ थाशोजो चाकरी चोरहो ॥ केारहो॥ ए॥ तम सुसरे नवि उहव्या ॥ के०॥ लदेणे देणे लगार हो ॥ के ॥ ला लच होय को वातनी के कहो सुखे न करो विचारहो ॥केण॥ रहो ॥१॥ अर्थ ॥ हे रढीबाला, रढ मानो. अत्यंत कठगेर था नहीं. जो तमे चाकरी चोर यशो तो पड़ी करवातनी मोटाइ गणाय? ॥ ए॥ तमारा सासराए तमने सेवादेवामां लगारपण दूजव्या नथी. जो कोइ वातनी हजु लालच होय तो सुखे कहो, जरापण विचार करो नहीं. ॥ १० ॥ होवे जमा लाडका ॥ के० ॥ जेम रुसे तेम रंगहो ॥ के ॥ पण विणं स्वारथ रुसणुं ॥॥ तेतो बालक ढंगहो ॥ के० ॥ रहो ॥ ११॥ एतो दशामुनिराजनी ॥ के० ॥ तमने नघटे एहहो ॥ के० ॥ ए वेला रसनी खरी ॥ के ॥ केम करी दीजे बेहहो ॥ के० ॥ रहो० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ जे लाडका जमाइ होय ते तो जेम रीसाय तेम रंग श्रावे. पण जे स्वार्थ वगर रीसाइ बेसे ते तो बालकना ढंग बे. ॥ ११॥ श्राम स्त्रीने गेमी चाट्या जवू, ए दशा तो मुनिराजनी जे. तमने ए घट. तुं नथी, श्रा वेला तो बराबर रसनी . ते उपर शी रीते बेद अपाय? ॥ १२॥ For Personal and Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ द्वितीय उल्लास. सारी पासानी वातडी ॥ के० ॥ लखीने हैडे जेहहो ॥ के॥ वालिम ते नवि विसरे ॥ के० ॥ नही तिलमात्र संदेहहो ॥ के० ॥ रहो॥१३॥ जोरे उवेखी जो जायशो ॥॥पणहुंमलीश विहाणहो॥केापूरवदि शि श्राजापुरी ॥ के० ॥ नूलीश नहीं अहिगण ॥ के० ॥ रहो ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हे वाहाला, सोगी पासा वखते तमे जे वात कही हती, ते मारा हृदयमा लखाइ गइ . ते कदि विसरी जवानी नथी. तेमां तिलमात्र पण संदेह नथी.॥ १३ ॥ जो तमे मने जोरथी नवेखीने चाल्या जशो, तोपण दुं तमने मलीश. तमारी आजापुरी पूर्वदिशामां जे. ए रहेगण हुं जुलीश नहीं. ॥ १५ ॥ चंद कहे हठ शुंकरो ॥ के० ॥ उर्जन करशे अदेखहो ॥ के०॥ अणु न घटे वाधे नही॥ के०॥ जे विधि लखिया लेखहो ॥ के रहोण॥१५॥ अकथ कथाले अंगने ॥ के०॥ बांधी मुठी लाखदो ॥ के० ॥ चतुर थ चूके किस्युं ॥ के० ॥ मन हटकीने राखहो ॥ के॥ रहो० ॥१६॥ अर्थ ॥ चंदे कह्यु, तमे श्रावो हशो करोगे? पुर्जनो आपणी अदेखा करशे. जे विधिए लेख लख्या होय, ते अणुमात्र पण घटता के वधता नथी. ॥ १५ ॥ हे अंगना, ए कथा कहेवाय तेवी नथी. बांधी मुगी लाखनी . तुं चतुर श्रश्ने केम चुके ? तारुं मन हगवीने धीरज राख.॥ १६॥ रहेतां वचन रहेनही ॥ के० ॥ नेहपण नवि मूकायहो ॥ के ॥ ग्रही श्रणजाणे बुंदरी ॥ के० ॥ पन्नग जेम पस्ताय हो ॥ के रहोणारा तोए पण ते प्रेमला॥ के०॥ माने नही लवलेशहो ॥ के० ॥ अहो धन्य जन जेणे जीतीया ॥ के ॥ पुर्जय नेह कलेश हो॥के० ॥ रहो॥१०॥ अर्थ ॥ जो अहीं रहुं तो वचन रहे तुं नथी अने जातां स्नेह मुकातो नथी. जेम सर्प अजाणे. बुंगरगली होये पगी ते पस्तावो करे ने तेम थयुं ॥ १७ ॥ तथापि प्रेमला लवलेश पण मानती नथी. अहो! तेवा माणसने धन्य बे के जेणे उर्जय एवा स्नेहना मुःखने जिती लीधा बे. ॥ १० ॥ बीजा उबासनी मोहने ॥ के० ॥ कही उंगणीशमी ढालहो ॥ के० ॥प्रेमलाल बीने चंदनी ॥ के० ॥ श्रागल वात रसाल हो ॥ के० ॥ रहो ॥ १ ॥ अर्थ ॥ श्रीमोहन विजये था बीजा उवासनी उंगणीशमी ढाल कही जे. प्रेमला लक्ष्मी श्रने चंदनी श्रागल रसिक वात श्रावशेः ॥ १५॥ ॥दोहा॥ प्रेमला पालव नवि तजे, चंदघणुं अकलाय ॥ एहवे हिंसक धसमसी, थाप्यो भृकुटी चमाय ॥१॥ कठिन वचन कहीने तिणे, पालव पक ड्यो जेह ॥ मूकाव्यो माटीपणे, विषम करमगति एद ॥२॥ अर्थ ॥ प्रेमला चंदनो पाखव गेडती नश्री. राजाचंद घणो अकलाय ले तेवामां हिंसक मंत्री नगुटी For Personal and Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nin POOJO TURIMLANDIRILIRILDUNU N nerek DOLCOTEATEEL ZOOLOD AU GOOOONA 440.2012 TEMITTING TENNIS S AUNA an SET CR09 LOADINING TALTUN (ANTEQUAMY ALSO an Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ११३ चडावीने आव्यो. ॥१॥ तेणे कठण वचनो कही; जे पालव पकड्यो हतो, ते बलात्कारे मूकाव्यो. कर्म नी गति एवी ॥२॥ गोरी उरमीमें गश्करी सचीवनी लाज ॥ परणी घरणी परिहरी, चाल्यो चंद महाराज ॥३॥ सिंहल नृपने जर कडं, सिहां स घला काज ॥ पण रुदती सुंदरीतणी, तुम हाथे बे लाज ॥४॥ अर्थ ॥ प्रेमला गौरी मंत्रीथी लजा पामी, लाजकाढी उरडीमा गइ. पळी चंदराजा परणेली गृहिणीने परिहरी चाल्यो गयो. ॥ ३ ॥ सिंहल राजानी पासे आवी कह्यु के, सघलां कार्य सिद्ध थयां, पण ए रुदन करती सुंदरीनी लाज तमारा हाथमां ॥४॥ शीखल सिंहलतणी, श्राजा धणी तेवार ॥ ग्रही करवाल उता वलो, श्राव्यो जिहां सहकार ॥ ५ ॥धरी धीर पेठगे धसी, कोट रमांदे श्रबीह ॥ गिरि कंदरमांहे जिस्यो, जश् विराजे सिंह॥६॥ अर्थ ॥ आला नगरीनो पति चंदराजा सिंहल राजनी शीख लश् हाथमा खड्ग लइ ज्यां पेलु श्रआंबानुं वृद हतुं त्यां आव्यो. ॥ ५ ॥ धीरज धरीने ते वृदना कोटरमां पेगे. ते पर्वतनी गुहामां सिंहनीजेम शोलतो हतो. ॥६॥ अंबा कर कंबा ग्रही, श्रावी वधू समक्ष ॥ चढी तिहां वाही मी, चाख्यो गगने वृद ॥ ७॥ अर्धजाम रही जामिनी, ते अवसर सहकार ॥ पूरवदिशि श्राजापुरी, तिहां मंडी श्रलगार ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ पेली तेनी माता हाथमां कंबा लश् वहूनी समद आवी. अने ते उपर चडी गइ. पळी वृक्ष आकाशमां चाख्यो. ॥ ७ ॥ज्यारे रात्री अर्ध पहोर बाकी रही, ते वखते ते आम्र वृक्ष पूर्वदिशामां आवेली आनापुरीमां आव्यु.॥७॥ ॥ ढाल विशमी॥ ॥ हो कोश् श्रान मिलावे साजना ॥ ए देशी ॥ हो वीरमती कहे रे वहू, निरखी ॥तें नगरी एहहो॥हो कनकध्वज कि हांदेखती, जो तुं रहेती गेहहो ॥ वी० ॥१॥हो दिनप्रते कौतुक एहवा, देखाडीश हुँ तुज हो॥हो पुरीश होंश हुँ ताहरी, जोमनराखीश मुजहो॥वी॥२॥ अर्थ ॥ वीरमती कहे जे के, हे वधू, तें ए नगरी केवी जोइ ? जो तुं घेर रही होत तो कनकध्वज राजाने क्यांथी जोत ? ॥ १॥ हुँ तने दिन दिन प्रत्ये वा कौतुक देखाडीश. जो तुं तारु मन मारी तरफ राखीश, तो हुँ तारी बधी होंसो पुरी करीश. ॥२॥ हो मुज विण कोण अतिक्रमे, ए श्राकाशनो पंथ हो ॥ के निसुण्या सिका तमें, वलि चारण निर्मथहो॥वी ॥३॥ हो पंखीनी गति केटली, बार जो यण लगे सीमहो॥पण मुग्धे मुजमंत्रनी, गतितुं जाण अनीमहो ॥वी॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ द्वितीय उदास. अर्थ ॥ हे सुंदरी, मारा शिवाय श्रा आकाशनो मार्ग कोण नवंघन करी शके ? सिद्धांतमां श्राकाशमां गमन करनारा चारणमुनिज संजलाय .॥३॥ हे मुग्धा! पदीनी गतिनी सीमा बार योजन सुधी बे. पण मारा मंत्रनी गति सीमा वगरनी ॥४॥ जिहां किहां पवन न संचरे, तिहां मारो संचारदो ॥ तेते कारज हु करूं, जे न करे किरतार हो । वी० ॥५॥ कहे सासुने गुणावली, सघली ए साची वात हो ॥ परतद दीतुं में पार, रुडी बाजनी रातहो ॥ वी० ॥६॥ अर्थ ॥ ज्यां पवन पण. संचरे नहीं, त्यां मारो संचार थाय जे. जे कार्य किरतार न करी शके, ते कार्य हुँ करुं वं. ॥ ५॥ गुणावलीए पोतानी सासुने कथु के, तमे कहोगे ते बधी वात साची जे. में तो प्रत्यद पारखु जोयु. आजनी रात्रि रुमी . ॥६॥ पण तमे बाजी पांतर्या, एक वाते निरधार हो ॥ श्राज जे परण्यो प्रेमला, ते महारो जरतार हो ॥ वी॥७॥जो एहमां कुठं पडे,तो मुज देजो गाल हो। सासु कहे रहो रहो वहु, देती मुज सुत बालहो ॥ वी० ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ हे बाजी पण तमे एक वाते अजाण्या रह्या नो. जे आज रात्रे प्रेमलाने परण्या ते मारा नर्त्तार .॥७॥ जो ते वात खोटी तरे तो मने गाल आपजो. ते सांजली सासु बोली, अरे वहु, राखो, मारा पुत्र उपर एवं बाल चडावो नहीं. ॥ ७॥ जे नर निरखीश रुथमा, ते शुं कहीश तुं चंद हो ॥ जाएयु में माहापण ता हलं, मुज वश मुज नंददो ॥ वी० ॥ ए॥ चंद सुणी चित्त चितवे,रखे मुज लहेती विमात हो॥हो परएयुं पाधरं श्राणशे, जो ए जाणशे वातदो॥वी॥१॥ अर्थ ॥ जे पुरुषने तुं सुंदर देखीश, ते बधाने शुंतुं चंद कहीश ? में तारुं डाहापण जाण्यु. मारो चंद पुत्र तो मारे वश बे. ॥ ए॥ ते वात सांजली चंद मनमा विचार करे ने के, मारी विमाता रखे आ वात ध्यानमा लेती ! जो ए जाणशे तो पनी था परण, पाधलं लावशेः ॥ १० ॥ एम पंथे वदेतां थकां, निरखतां कौतुक क्रोडदो ॥ हो पुरगिरिवर उद्धंघता, नमता तीर्थ करजोम हो ॥ वी० ॥ ११॥ तेदवे दीग पूरथी, श्राजापुरी अहि गण हो॥ तेदवे करायुध बोलीया, दिनतणा बागेवानहो ॥ वी० ॥१५॥ अर्थ ॥ एम मार्गे वृक्ष उपर चालतां, कोटी कौतुको निरखतां, शेहेर तथा पर्वतोने उलंघता अने तीर्थने बेकर जोडी नमता ते चाट्यां श्रावे . ॥ ११॥ तेम करतां तेमण दूरेथी आजापुरीने दीनी. ते समये दिवसना आगेवान एवा कुकडा बोलवा लाग्या. ॥१२॥ पामी अचरिज देखीने, प्राची दिशि आनंद हो॥हो उदय थया उद्धंगमें, दि नकर जेम नृपचंद हो ॥ वी० ॥ १३ ॥ प्रह विकसी सुवसी जिसे, ननचारी सहकार हो ॥ श्रावी उतर्यो श्राराममें, निज थानक निरधार हो ॥ वी० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ सूर्यने उदय थवानुं आश्चर्य जो पूर्व दिशा आनंद पामी अने चंदराजानी जेम तेना उत्संगमां सूर्यनो उदय थयो.॥ १३॥ प्रजात विकाश पाम्यं, अने सुगंध प्रसरवा लाग्यो. ते समये याकाश चारी आम्रवृक्ष आराममां पोताना स्थानमां श्रावीने उतो. ॥१५॥ For Personal and Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AR Te Cocsatage THULIES நீர் HIS SEGI Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ११५ . श्रापणी ए श्राजापुरी, ए आपणडो बाग हो ॥ रे वह तरुथी उतरो, कदेसासु महानाग हो ॥ वी० ॥ २५ ॥ महा रुथी बिहुँ उतरी, कोटर केडे तेहहो । हो चंदनणी जोवे नही, पुण्यतणुं फल एह हो ॥ वी० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ सासुए कह्यु, हे महानाग्यशाली वहु ! आ आपणी आजापुरी श्रावी, आपणो बाग ने, माटे हवे आमवृह उपरथी उतरो. ॥ १५ ॥ ते बंने आवृद उपरथी उतरी. तेनी पडखेना कोटरमां चंदराजा चे, तेने कोइ जोर शक्यु नहीं, ए पुण्यनुं फल . ॥१६॥ शुचि थावा सासु वहू, ग पुष्करणी जामहो ॥ कोटरमांहिथी निकल्यो, चंद नरेश्वर तामहो ॥ वी० ॥ १७ ॥ श्रानंदे मंदिर श्रावियो, हैडे धरतो हेज हो ॥ हो नौतन वेषरची करी, सुखजर सूतो सेजहो ॥ वी० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ ते पनी सासु अने वहु बंने पवित्र थवाने वापिकामां न्हावा गइ, एटले चंदराजा तत्काल कोटर मांहीथी बाहेर नीकली गयो. ॥ १७ ॥ ते आनंदश्री पोताने मंदिर श्राव्यो. हृदयमा हाम धारण करतो ते नवो वेष धारण करीने पागे शय्या उपर सुखे सुतो. ॥ १० ॥ हो हसतां रमतां श्रावियां, सासु वहु पण गेह हो ॥ वीशमी ढाल मोदने कही, बीजा उसासनी एह हो ॥ वी० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥सासु अने वहू हसतां रमतां घेराव्या. श्रीमोहन विजये आ बीजा उदासनी विशमी ढाल कही. ॥दोहा॥ वीरमती कंबा दक्ष, गुणावलीने ताम ॥ पहोती नवरंग नेहशु, कुटिला तव निजधाम॥१॥ प्रचला पुरनी अपहरी, कोश्क मंत्र प्रयोग ॥ तत्क्षण नरनारी सकल, जाग्रत थयां अशोग ॥२॥ अर्थ ॥ पनी वीरमतीए पेली कंबा गुणावलीने आपी अने ते कुटिला स्त्री नवरंग स्नेह धरती पोताने घेर श्रावी पोहोची.॥१॥ कोश् मंत्र प्रयोगथी नगर उपर नाखेली प्रचला निजाने हरी लीधी एटले नगरना सर्व नरनारी शोक रहित पणे जाग्रत थयां ॥२॥ थयो प्रात सवि साचवे, जेजे निज षट्र कर्म ॥ जप अध्ययनादि क सकल, प्रारंने निज धर्म ॥३॥ वात थ जे रातनी, नही केणे निरत्ति ॥ गुणावली राणी तणी, निसुणो हवे प्रवृत्ति ॥४॥ अर्थ ॥ प्रातःकाल अयो, सर्व लोको पोतपोतानां षटू कर्मो साचववा लाग्यां अने जप, अध्ययन विगेरे पोतानो सर्व धर्म आरंजवा लाग्यां. ॥ ३॥ रात्रे जे वात बनी, तेनी कोस्ने खबर पडी नहीं. हवे गुणावली राणीनुं वृत्तांत सांजलो.॥४॥ मंदिर पेठी धसमसी, निरख्यो सेजे नाह ॥ कंतेपण निरखी प्रिया, करकंबासोबाह ॥५॥ में पापिणीए कंतने, एम निझाव श कीध ॥ सुतो कंत जगाडवा, कंबा उबका दीध ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१६ द्वितीय उवास. अर्थ ॥ ते गुणावली मंदिरमा उतावली पेठी, त्यां शय्या उपर पतिने सुतेलो जोयो. अने पतिए पण हाथमां कंबावाली ते प्रियाने उत्साहसहित जो. ॥ ५॥ गुणावलीए विचार्यु के, में पापिणीए मारा स्वामीने श्राम निघावश कर्यो अने पानी सुतेला कंथने जगाडवाने ते कंबा उबकारी.॥६॥ कपटे बालस मोडिने,जाग्योचंद नरेश॥राणी अणजाणी थकी, नाषे वचन विशेष॥७॥ अर्थ ॥ चंदराजा कपटश्री आलस मरडी बेगे थयो;ते वखते राणी गुणावली अजाणी अइने बोले .७ ॥ ढाल एक वीशमी ॥ जागो जागो हो मारा चमर सुजाण के, निजमी वेरण परिहरो ॥ ए देशी ॥ रयणी विहाणी प्रह थयो, तमे उगोहो नणदीना वीरके॥रुमापंखी कुकमा, सहु पेहेलां हो जागे थ धीरके ॥ निजमी नाह निवारीए ॥ ए श्रांकणी ॥१॥दिन उदयेहो सूवे नर कोयके, जेहसूतां रवि उगमे॥ तसवीरज दो धीरज नवि होय ॥२॥ अर्थ ॥ हे नणंदना वीर, रात्रि वीती गइ, प्रातःकाल थयो तमे जाग्रत था. जुवो आ सुंदर पदी कुकडा सर्वनी पेहेला धीर श्रश्ने जागे . तेथी हे ! नाथ ! निजाने निवारो.॥ १॥ दिवस उगतां कोण सुश् रहे ? जे नर दिवस जगतां सुवे तेने वीर्य अने धैर्य होतां नथी. ॥ २॥ जेनर होयनिरुद्यमी, वली मूरख हो शेखर होय जेह के ॥ वेला करण नरेश नी,घमीये हो फोगटगमे तेहकानि॥३॥राति अलेखे श्राजनी,तमे कीधां हो नविश्राज विलास के ॥में तुमकाजे उजागरो,नोगवीने हो कीधो श्रायासके॥निणा॥ अर्थ ॥ हे राजा, जे पुरुष निरुद्यमी होय अथवा मूर्खनो शेखर होय ते निजाश्री करणराजानी वेला फोगट गुमावे . ॥३॥ हे नाथ, आजनी रात्रि तो तमे अलेखे करी. तमे आज विलास पण कर्या नहीं. में तमारे माटे उजागरो जोगवीने प्रयास कर्यो. ॥४॥ जागवतां नवि जागिया, सोहणडे हो कां पाम्या बो राज के ॥ के परण्या कोश गेहिनी, एम सुख नरहो सूताने थाजके ॥नि॥५॥जागो निभानु नाहला, उदया चलहो उदयो दिनकार॥अंतर्यामी प्रातनो,निरखावो हो मुजने दीदारके निणा॥ अर्थ ॥ हे प्रिय, तमे जगाडतां जाग्या नहीं. शुं कां अस्वस्थ गे? के कोइ बीजी स्त्री परण्या डो.? आजे आम सुखन्नर केम सुता बगे.? ॥ ५॥ दे ! निघालुनाथ, ! जाग्रत था. दिवसने करनार सूर्यनो. उदय उदयाचल उपर श्रयो जे. हे अंतर्यामी, आ प्रातःकालनो देदार मने बतावो. ॥६॥ उनीनरी गंगाजली,दंत धावन हो करी करो मुखशुद्ध के ॥ए वेला नरवर करे, श्राखामे हो उन्ना मलयुक के॥निणा॥अवसर राज सनातणो, थयो जागो हो सासुनाजातके॥देशे उलंजोजोजाणशे,श्रावीनेहो तमने विमातके॥ नि०॥॥ अर्थ ॥ हुँ गंगाजली (कारी) नरीने उजी वं. हे नाथ, दांतण करीने मुखने शुद्ध करो. आ वेलाएतो राजा जी कसरत शालामा मल्लयुद्ध करे . ॥७॥ हे सासुना जाया, हवे जागो, राज सना करवानो अवसर थयो . जो आ खबर तमारी माता जाणशे तो आवीने तमने उबको आपशो. ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ चंदराजानो रास. जाग्यो कपट निसातजी, स्त्रीवचने हो हलफलतो चंद के ॥ रेरे वेला बहु थइ, नवि जाण्यो हो उदयो जे दिणंद के॥ निगाए। रजनीए जे थयुं मावहुं, घेराणुं हो तेह थी मुज दिलके ॥तेणे सेजडीथी उठतां, यश् मुजने हो राणीजी ढीलके नि० ॥१०॥ अर्थ ॥ आ प्रमाणे स्त्रीनां वचनथी राजाचंद कपट निषा बोडी बेबाकलो जागी उठ्यो. अने कहेवा लाग्यो के, अरे बहु वेला यश् गइ. सूर्यनो उदय थयो ए वाततो जाणवामांज श्रावी नहीं. ॥ ॥ राजा चंदे कडं के, हे राणीजी, रात्रिए मावतुं श्रयं दतुं, तेथी मारुं दिल घेराइ गयु. तेथी करीने शय्यामांश्री उठतां मने वार थश्वे. ॥१०॥ तमे पण दीसो उजागरां, श्राचरणे हो जाणु बुं एम के ॥ श्राज तो वात घणी नली, दिन उदयथी दो तमे मांड्यो जे प्रेमके ॥ नि॥११॥ वात रसीली श्राजनी, लागे के हो बानिकनो रंग के ॥ जाणीए किहां क क्रीडा करी, आज एवा हो दीसे डे ढंग के ॥ नि ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ तमारां आचरण उपरथी जणाय ने के, तमारे पण उजागरो थयो लागे जे. तेमां आजनी वात तो घणी सारी के तमे सर्यना उदयश्री प्रेम करवा मांड्यो. ॥११॥आज वात रसिली अने रंगी ली लागे जे. जाणे तमे आज को ठेकाणे क्रीडा करी होय तेवो ढंग वर्ताय ॥१२॥ कहोजी कहो मुज श्रागले, रातडीए हो रामत किहां कीध के ॥ पठी श्रमने प्रतिबोधजो, कही कहीने हो वातो अप्रसिद्धके । नि० ॥१३॥ कहे राणी राजा नणी, रामतडी हो जाणुं नवि कोय के ॥ हुं किहां जा साहिबा, ए मूकी हो चरणांबुज दोयके ॥ नि० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हे राणी, मारी आगल वात कहो, तमे आज रात्रे क्यां रमत रम्यां ? पनी अमने अप्रसिद्ध वातो कही प्रतिबोध श्रापजो. ॥१३॥राणी ए राजाने का, हं को जातनी रमत जाणत हेब, श्रा तमारां बे चरण कमल मुकीने दुं क्यां जालं? ॥ १५॥ जोली नेद लहे नही, मुखे मीठी हो करे पिउथी वात के ॥ तमे पिज क्यां एक श्राजनी, रमी श्राव्या हो दीसोडो रातके ॥ नि० ॥ १५ ॥ हुँ अबला थाझा विना, किम विण कहे हो बाहिर धरूं पायके ॥रे रढी श्राला राजिया, मबराला हो मानो महाराय के ॥ नि० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ ते नोली स्त्री कांश नेद समजे नहीं अने पोताना प्रिय साथे मीठी मीठी वार्ता करवा लागी अने पुग्यं के, हे प्रिय ! आजनी रात तमे क्यांश्क रमी आव्या हो, तेम लागो गे.॥ १५ ॥ हुँ अबला स्त्री तमारी आझाविना घरनी बाहेर पग केम मुकुं ? हे रढीपाला, अने मनराला राजा, ए मारी वात जरूर मानजो. ॥१६॥ मोहने बीजा उदासनी, एकवीशमी हो कही सुंदर ढाल के ॥ जावी कथा नृपचंदनी, एह बागल हो अतिही डे रसाल ॥ नि ॥ १७ ॥ For Personal and Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ द्वितीय उल्लास. __ अर्थ ॥ मोहन विजये बीजा नसासनी आ एकवीशमी सुंदर ढाल कहीजे. चंद राजानी जावी कथा चागल अति रसिली बे. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ वचन सुणी वनिता तणां, चिंते चंद नरेश ॥ वांक नही वनिता तणो, वांक विमात विशेष ॥१॥ एकज रजनी संगते, नारी थ निःशंक ॥ जे कांश चरित्र न जाणती, वदती वचन श्रवंक ॥२॥ अर्थ ॥ वनितानां वचन सांजली चंदराजा चिंतववा लाग्यो के, ा स्त्रीनो वांक नथी, पण आमां विमातानो विशेष वांक बे.॥१॥ एक रात्रिनी संगतथी था स्त्री शंका वगरनी अश् गर नहीं तो श्रा स्त्री कांश स्त्री चरित्र जाणती न हती अने वांकां वचन बोलती पण न हती. ॥२॥ लाग्यो संग विमातनो, तेणे पलटाणी नारि ॥ जेम विष होय बरासथी, नालिकेरने वारि ॥३॥ पुःसंगतिथी साधुजन, पामे विकृति विकार ॥ यंत्रघटी संगत थकी, जबरी सहे प्रहार ॥४॥ अर्थ ॥श्रा स्त्रीने अपरमानो संग लाग्यो, तेथी पलटाइ गइ. जेम बरासनो नालीएरना जलमां संबंध श्रवाश्री विष थाय बे, तेम आयु. ॥३॥ नगरी संगतथी सऊन पण विकार पामे वे. घटीयंत्रनी संगतथी कालरने प्रहार सहन करवो पडे ॥४॥ पुष्ट संग अंगार सम, रस विरसे एक रंग ॥ श्याम करे शीतल हुतो, जष्ण तपावे अंग ॥५॥ नारि, वारि, तरवार, सम नेत्र, तु षार, नरेश ॥ जे जेम वाले तेम वले, वालणहार विशेष ॥६॥ अर्थ ॥ 5ष्ट माणसनो संग अंगारा जेवो . ते एक रंगी रसने विरस करी नांखे . जो अंगारो शीतल होय तो अंगकालु करे अने उनो होय तो अंगने तपावे . ॥ ५॥ स्त्री, जल, तरवार, नेत्र, घोडो, अने राजा एटला जेम वलावनार होय तेम वले बे. बलावनारनी बलिहारी जे. ॥६॥ प्राणनाथ कहे हे प्रिये, मूको नारि चरित्र ॥ रातरम्या किहां श्राजनी, पेहेरी वेश विचित्र ॥७॥ नोलववा पिउ नामिनी, कल्पित कहे अवदात॥अवधारोजी विनवू, राततणी जे वातजा अर्थ ॥ प्राणनाथे का, हे प्रिया, हवे स्त्री चरित्र करवा जोमी द्यो. आवो विचित्र वेष पेहेरीने आजनी रात्रि क्या रम्यां. १ ॥ ७ ॥ पोताना प्रियने नोलववाने नामनीए एक कल्पित वृत्तांत कहेवा मांड्यो. हे ! नाथ, हुँ रातनी जे वार्ता कहुं, ते ध्यानमां घ्यो.॥७॥ ॥ ढाल बाविशमी॥ ॥ सलूणी योगणी रुडीवे ॥ एदेशी ॥ गिरि वैताढ्य विशाला नगरी, मणिप्रज खेचराधीश ॥ चंदलेखा तस गेहिनी, अतिविलसे सुख निशदिश ॥ १ ॥ सखुणा सुणजो नारि चरि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ११ए त्र॥ अरेहां पण अवसाने पवित्र ॥ स ॥श्रांकणी ॥ कीधां एक म नावी आज्ञा, खेचर अवर अनेक ॥ रीत ए सत्पुरुषो तणी, जिन्न जिन्न नणी करे एक ॥ स० ॥॥ अर्थ।वैताब्यगिरि उपर विशाला नामे एक नगरी बे. त्यां मणिप्रन नामे एक विद्याधरनो राजा ने तेने चंप्रलेखा नामे स्त्री जे. ते रात्रि दिवस सुख विलास करतां हतां. सजनो, आ नारी चरित्र सांजलजो. जे अवसाने (बेवटे) पवित्र गणाशे. ॥१॥ बीजां घणा खेचरोने तेणे आज्ञा मनावीने एक कर्या हतां, सत्पुरुषोनी ए रीति ने के, जे जिन्न निन्न होय तेने एकत्र करे. ॥२॥ यात्रादिक गुरु मुखथी निसुणी, प्रगव्यो नाव अनंत ॥ ताम विमान रचीन, सकलन नेट्या जगवंत ॥ स ॥३॥ ते विद्याधर श्राजनी, श्राव्यो श्राजारा ति ॥ जे घन शहां वुट्यो हतो, तेणे पसर्यो प्रजंजन नांति ॥ स ॥४॥ अर्थ ॥ ते मणिप्रनने, गुरुना मुखश्री यात्रादिकनो प्रस्ताव सांजली अनंत नाव प्रगट अयो. तत्कग्ल एक नवं विमान रची ते स्त्री सहित नगवंतने नेटवा चाट्यो. ॥३॥ नगवंतने जेटी ते विद्याधर आज रात्रे आजानगरी उपर आव्यो. जे मेघ अहीं आजे वो हतो तेनाश्री घणो वायु प्रवर्त्तवा लाग्यो.॥४॥ अटक्युं विमान न चाले गगने, कीधां कोडि प्रकार ॥ पामी अचरज खेचरी, तेणे विनव्यो निज जरतार ॥ स० ॥५॥ विणरुतु श्हां केम वुव्यो वरषा, केम थंजाणु विमान ॥ करीए प्रसाद ए मुजने, खेचर तणा सुलतान स॥६॥ अर्थ ॥ तेथी आकाशमां विमान अटकी गयु. तेणे कोटी उपायो कर्या पण विमान चाले नहीं. ते जो खेचरी आश्चर्य पामी अने तेणीए पोताना पतिने विनववा मांड्यो ॥५॥हे ! खेचर पति ! वर्षा ऋतुविना अहिं वर्षाद केम वो ! अने आपणुं विमान केम श्रोनायुं ? ते वार्ता मेहेरबानी करी मने जणावो. ॥६॥ खेचर कहे ए वचन अगोचर, रे नारि न कहाय ॥ करीए कथा जे पारकी, श्रापणने नफो शो थाय ॥ स ॥७॥ बमणो हठ मांड्यो खेचरीए, स्त्री हठ _ जगारि ॥ मणि प्रने निज कांताजणी, कीधो पाडो सकल प्रकार ॥स०॥७॥ अर्थ ॥ खेचरमणिप्रत्ने कडं, हे स्त्री ए वात अगोचर बे. ते कहेवाय तेवी नथी. अने पारकी वात करवामां आपणने शो नफो श्राय ? ॥ ७॥ खेचरीए बमणो हठ कर्यो. स्त्रीनो हठ जगत्मा फुःखे निवारवा योग्य जे. पनी मणिप्रने पोतानी स्त्रीने सघलो प्रकार कहेवा मांड्यो. ॥ ७॥ श्राजापुरपति उपर सुरकोश, कुपित वैरविकार ॥ नृपने श्रति परितापवा, तेणे विरच्यो ए जलधार ॥ स० ॥ ए ॥ ते नृपनी पुण्याश्ये, थंन्यु थापणुं एह विमान ॥ ए कारण ले हे प्रिये, कहे नारी वचन परधान ॥ स ॥ १० ॥ अर्थ ॥ बालानगरीना राजा उपर कोई देवता वैरना विकारथी कोप पाम्यो बे. राजाने अति परिताप करवा तेणे श्रा मेघने रच्यो . ॥ ए॥ पण ए राजाना पुण्यथी आपणुं विमान थोलायुं बे. हे स्त्री, तेनुं ए कारण जे. त्यारे चंघलेखा मुख्य वचन बोली.॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० द्वितीय उदास. डे का सामर्थ्य प्रीतम तुममें, जेम एह उगरे नूप ॥ तो उपगार करो प्रजु, उपगार जे धर्म सरुप ॥ स० ॥ ११ ॥ विद्याधर कहे मुजश्री शुं होवे, पण एक जाणुं उपाय ॥ तेह जो नृपमाता करे, तो विघन विलय सवि जाय ॥ स ॥१५॥ अर्थ ॥ हे प्रियतम, आ आलानगरीना राजा उगरे एवं कां सामर्थ्य तमारामां ने ? तो दे! प्रनु तेना उपकार करो. ए धर्मर्नु स्वरुप बे.॥११॥ विद्याधरे कयुं, माराथी शुं श्रश्शके, पण हुँ एक उपाय जाणुं वं. पण जो ते राज माता करे तो या सर्व विघ्न विनाश पामी जाय. ॥१॥ श्रावी विद्याधरी निजपति लेश, वीरमतीनी पास ॥ तुज सुतने कल्याणनो, रे बा सुण अवकाश ॥ स॥ १३ ॥ बिंब मनोहर सोलमा जिननो, थापो थान पवित्र ॥ पंचमंगल दीवो करी, जरो फूलनो पगर विचित्र ॥ स० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ पनी ते विद्याधरी पोताना पतिने लश् वीरमती माता पासे आवी, अने कह्यु. हे ! बाइ,तारा पुत्रना कट्याणनो उपाय तुं ध्यानथी सांजस्य. ॥ १३ ॥ सोलमा तीर्थकर श्रीशांतिनाथर्नु मनोहर बिंब पवित्र स्थानमा स्थापन कर्य. तेनी आगल पंच मंगल दीवो करी विचित्र पुष्पोनो पगर ( अंजलि ) नर्य. १४ मारी विद्याधरी वली नृपपत्नि, तेम तुं नृपनी विमात ॥ जिनगुण गार राती जगो, करो ज्यां लगी थाय प्रजात ॥ स॥१५॥ परी एक श्रापुं कणयर कंवा, फरसो नूप शरीर ॥ तो सूत ए वीरसेननो, सजा होवे फरी वमवीर ॥सम्॥१६॥ अर्थ ॥ आमारी विद्याधरी, राजानी पत्नी, अने तुं राजमाता ए बधा जिनगुण गातां गातां ज्यांसुधी प्रनात थाय त्यांसुधी रात्रि जगो करो. ॥ १५ ॥ पनी एक कणेरनी कंबा श्रापुं, तेनाथी राजाना शरीरनो स्पर्श करो. जेथी ते वीरसेननो शुरवीर पुत्र चंदराजा फरीथी सङ थशे. ॥१६॥ बाइए तरत तेडावी मुजने, सयल सुणावी वात ॥ विद्याधर वचने अमे, प्रजु नक्तिथी निगमी रात ॥ स ॥ १७॥ श्री जिनराजनो रास रम्या श्रमे, तुम माटे प्राणेश ॥ कंबाथी तुमने जगावीने, गयो विद्याधर निज देश॥ सम्॥ १० ॥ अर्थ ॥ पछी तमारी माताए मने तेडावीने सर्व वार्ता संजलावी. ए विद्याधरनां वचनश्री श्रमे प्रनु नक्तिमांज बधी रात्रि निर्गमन करी.॥१७॥ प्राणेश, अमे पड़ी तमारे माटे श्रीजिनराजनो रास रम्यां अने ते विद्याधर तमने कंबाथी जगामी पोताना देशमां चाट्यो गयो. ॥१७॥ ए बाजुनी रजनी रामत, पिउजी में कीधी प्रकाश ॥ मोहने ढाल बावीशमी, कही मनोहर बीजे उदास ॥ स० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ हे ! प्रिय ! आप्रमाणे आजनी रात्रिनी रमतनो वृत्तांत में प्रकाश को. श्रीमोहन विजये आ बीजा उल्लासनी बावीशमी मनोहर ढाल कही . ॥ १५ ॥ ॥दोहा ॥ चंद कहे चतुरा निसुण, ए कह्यो साचोमर्म ॥ जे होय नारि प तिव्रता,तेहनो एहिज धर्म ॥१॥ अकृत करे पिउ कारणे, सुकृ त करे विशेष ॥ प्रकृति ए सतीयो तपी, होय पुराकृतदेष ॥२॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WIELUILT UIT TETTEK LILLA 32 TITA TE 1992 BUITIRILITETIT Em Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १२१ ॥ चंद राजा कहुं, हे चतुरा, तमे जे साचो वृत्तांत कह्यो, ते सांजस्यो, जे स्त्री पतिव्रता होय तेनो एवोज धर्म बे ॥ १ ॥ पतिने माटे न करवानुं करे ने विशेषथी सुकृत करे, ए सतीउनी संस्कार पामेली प्रकृति होय . ॥ २ ॥ सुती माता हित करे, पतिभक्ति होय नार ॥ शी अधिकार ते हमें, वे जग स्थिति व्यवहार ॥ ३ ॥ मुज कारण उजागरो, कर्यो तमे बहुरीत ॥ जली थs करुणा करी, म तुम साची प्रीत ॥ ४ ॥ ॥ माता पुत्र उपर हेत करे ने स्त्री पति जक्ति करे, तेमां शुं अधिक बे ? ए तो जगत् स्थितिनो व्यवहार बे. ॥ ३ ॥ तमे मारे माटे बहु प्रकारे उजागरो कर्यो, ए मोटी दया करी. तमारीमारा उपर साची प्रीति बे. ॥ ४ ॥ जुम कहो तमे, मान्यां वचन विराम ॥ जो जुलुं जाषो तमे, तो वायस होय श्याम ॥ ५ ॥ जो प्रभु रास रम्यो नही, मुज माटे तमेनार ॥ तो सायर खारो हुवे, दिनकर वमे तुखार ॥ ६ ॥ ॥ तमे जुबुं शामाटे बोलो! तमारां वचन में शांतिथी मान्यां बे. जो तमे जुतुं वोलो तो कागमो श्याम थर जाय ॥ ५ ॥ हे स्त्री ! जो तमे मारे माटे जिन प्रजुनो रास न रम्यां हो तो सागर खारो थाय सूर्यमाथी जानुं वमन थाय. ॥ ६ ॥ तुम वि कुप पतिना जतन, करे अवर संसार ॥ श्राव्यो मालव देशनो, चांपल देनें जार ॥ ७ ॥ ॥ संसारमा तमारा शिवाय बीजी कोण स्त्री पतिनी जतना करे. मारे घेर तो मालवदेशनुं रन व् बे ॥ ७ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ ॥ सखीरी खायो वसंत घटारको, सुरिजन खेले फाग चतुरजन सोहना ॥ ए देशी ॥ सखीरी चंद कहे चंद्रानने ॥ चंद्रा० ॥ तुम वचने बे प्रतीत | सुगुण जन सांजलो ॥०॥ पण मुज विनति चित्त धरो ॥ चि० ॥ कहे कहेवाये ए रीत ॥ सु० ॥ १ ॥ स० ॥ रास मंगल जिनराजनो ॥ जि० ॥ उदय किहांथी थाय ॥ सु० ॥ स० ॥ एवं जाग्य कहां थकी ॥ कि० ॥ जे जिनगुण गवराय ॥ सु० ॥ २ ॥ || चंद्र कहे - हे चंद्र मुखी, मारे तमारां वचन उपर प्रतीति बे. पण सद्गुणीजन, सांजलो विनंति मनमां धरो. ए कहेबानी रीत बे. ॥ १ ॥ श्रीजिन प्रजुनो रास क्यांथी उदय थाय. अने श्री जिनराजन गुण गवाय एहवं जाग्य क्यांथी होय ? ॥ २ ॥ ०॥ जिननी नक्ति जो कीजीये ॥ जो० ॥ तो लहीये जवपार ॥ सु०॥ स०॥ केवल ल दीने ते होवे ||(पाठांतरे ) || जिन गुण गातां बहु थया ॥ ० ॥ ज्योति वधु जरतार 00 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ द्वितीय उदास. ॥ सु० ॥ ३॥स॥ जेम तमे प्रजुगुण थालवी ॥श्रा॥ मुजने कीध कल्याण ॥सु॥ स ॥ तेम श्रमे पण सुपर्नु लयं ॥ सु०॥ मध्य निशाने प्रमाण ॥सु० ॥४॥ अर्थ ॥ जो श्रीजिनराजनी नक्ति करवामां आवे तो संसारनो पार लेवाय जे. श्रीजिन प्रनुना गुण गावाथी घणां स्त्री पुरुष ज्योतिरूप ( तेज स्वरूप-मुक्त) श्रया बे. ॥३॥ जेम तमे प्रजुना गुण गाइ मारु कल्याण कयु. तेम मने पण आजे मध्य रात्रे स्वप्न आव्युं हतुं. ॥४॥ ॥स॥ तुमे श्रा थानानगरीश्री॥ न॥ जोयण श्रढारसे सीम ॥ सु॥ सणा जाणुं विमलपुरीतमे गया ॥त॥ सासुपण समीप ॥ सु० ॥५॥ स ॥ तिहां कोश्क नर परणतो ॥ प० ॥ देखो को बेहु तेह ॥ सु०॥ स० ॥ जाग्यो एहवे हुं श्हां ॥ हुं० ॥ कौतुक सुपन श्योएह ॥सु॥६॥ __ अर्थ ॥ जाणे तमे आजानगरीथी अढारसो योजन उपर रहेली विमलपुरीमां गया, त्यां तमारी सासू पण समीप हतां. ॥ ५॥ तमे बन्ने ए त्यां कोई पुरुषने परणतो जोयो हतो, ए पनी हुँ जागी गयो. ए : स्वमानुं शुं कौतुक हशे. ॥६॥ स ॥ तुम कथने मुज सुपनमे ॥ सु० ॥ अंतर रजनी दीस ॥ सु०॥ स ॥ ए बेहुँमांहि कियुं खलं की॥ ए जाणे जगदीश ॥ सु॥७॥ स० ॥ में जाएयुं अनुमानश्री ॥ ॥ सुपननीशी परतीत ॥ सु॥ स॥ सुपन दृष्टांते संसारनी ॥सं॥ खोटी कही रीत ॥ सु० ॥७॥ अर्थ ॥ तमारा कहेवामां अने मारा स्वप्नामां रात्रि दिवसनो अंतर जे. ए बेमां कयुं सत्य .ए पूजा जाणे ॥ ७॥ में अनुमानश्री जाण्यु के, खमानीशी प्रतीति ने. कारण के, संसारनी रीत खोटी कहेवामां स्वप्नानुं दृष्टांत अपाय . ॥ ७॥ ॥स ॥ तमे अनुनवीयुं ते खलं ॥ ते ॥ खोटुं निझा जाल ॥ सु॥ स॥ साची सदैव होवे सती ॥॥ कहे एम चंद जुपाल ॥सु॥ ए॥ स॥ पिज वचने विस्मित थ॥ वि०॥ निसुणी निशा संबंध ॥ सु॥ स॥ पण पिउ खोटो पाडवा ॥पा॥ कल्प्यो एक प्रबंध ॥सु० ॥१०॥ अर्थ ॥ जे तमे अनुलव्यु ते खरं . अने हमेसा सती स्त्री साची होय. आप्रमाणे चंद राजा ए कडं. ॥ ए॥पतिनां वचनथी रात्रिनो संबंध सांजली राणी विस्मय पामी गश्. पण पोताना पतिने खोटो पाडवा तत्काल एक नवो प्रबंध कट्पनाथी उन्नो कर्यो. ॥१०॥ ॥स० ॥ कहे राणी स्वामीसुणो ॥ स्वा०॥ शिव सेवक हुतो एक ॥सु॥ स॥ सुपनमे दीतुं देहरुं ॥दे॥ सुखडी जो सुविवेक ॥ सु०॥ ११॥ सम् ॥ उठी उधांगले नोतर्या ॥ नो॥ निज न्यातिला सर्व ॥ सु० ॥ सम्॥ पालो श्रावीने जुए ॥ ने ॥ खाली शिव उपवर्ग ॥ सु० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ राणी कहे -हे राजा, सांबलो. एक शिवनो सेवक हतो, ते विवेकीए स्वप्नामां सुखडीश्री न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LIETU >>222222 LIB KELGUD 31130 MAGNITION WWW WILLOT THE BINI CULTURA IN mu vwvwwvipo WwWMA Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HULI A Education Internati v For Personal and Private Uscio Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १५३ रेखो एक शिवनो प्रासाद जोयो. ॥ ११॥ ते उपरथी तत्काल उठीने पोतानी सर्व ज्ञातिने नोतरं आप्यु अने पनी ज्यां शिव मंदिर जोवा जाय त्यां ते तो खाली जोवामां आव्यु.॥१२॥ ॥स ॥ अपहरी श्शे सुखा शिका ॥सु॥ जाणे हो सेवक मूढ ॥सु॥ सा देश प्रासाद पूज्या विना ॥पू॥ पोढयो ज्ञातिथी गूढ ॥सु॥१३॥ स॥ पोहोर दिवस रह्यो पाबलो ॥पा। ज्ञात जगामे हो जोय ॥सु॥ स॥ कयु रे मूर्ख नोजनतणी ॥नो॥ ढील करे एम काय ॥सु॥१४॥ अर्थ ॥ तेणे जाण्यु के, शंकरे बधी सुखडी लइ लीधी, तेथी ते मूढ पूजन कर्या वगर देरुं बंध करी शातिथी गूढ पणे जइ ते देहेरामां सुश् गयो. ॥ १३ ॥ ज्यारे दिवसनो पाउलो पोहोर बाकी रह्यो एटले जमवाने आवेला झातिजनो तेने जगाडवा लाग्या. अरे मूर्ख, जाग्रत था. नोजननी ढील केम करे जे.॥१४॥ ॥स॥ नोज्य सामग्री दिसे नही दि॥ सहीतो तें हांसु कीध ॥सु॥ स॥ ज्ञाति नणी उत्तर श्स्यो ॥॥ शंकर पूजके दीध ॥ सु० ॥१५॥ स॥ क्षण एक थोजो जो तुमे ॥जो जरुं सुखमीये प्रासाद ॥सु०॥ स०॥ सुपनमें देखु पुरव परे ॥पूणा तो जमा सवाद ॥ सु०॥ १६ ॥ अर्थ ॥ वली अहिं नोज्यपदार्थनी सामग्रीपण जोवामां श्रावती नश्री. शुं तें उपहास्य कर्यु बे? ते सांजली ते शिव नक्ते ज्ञातिने नीचे प्रमाणे उत्तर आप्यो. ॥ १५ ॥ जो तमे एक दाणवार खमो, तो पागे पूर्वनी जेम स्वप्नामां आ प्रासाद सुखडीथी नरेलो देखुं तो तमने जमाटुं. ॥१६॥ ॥सा॥ सद कहे सुपननी सुखडी ॥सु॥ तेणे केम नांजे नूख ॥ सु॥ स॥ पस्तावो पूजारो करे ॥पू॥ खोटो ए सुपन सबुख ॥ सु० ॥१७॥ स॥ तेम तमे सुपन मांहे प्रनु ॥मां॥ विमल पुरी मुज दी ॥ सु॥ स० ॥ हुँतो उनी तुम श्रागले ॥तु॥ जूठ शुं बोलो अनीठ ॥सु॥१०॥ अर्थ ॥ सर्वे बोट्या-अरे आतो स्वप्नानी सुखडी, तेनाथी नुख केम नांगे? पूजारे पनी पस्तावो को अने कह्यु के, स्वप्नानी वात उपर विश्वास करवो नहीं. ॥ १७ ॥ तेम हे नाथ, तमे स्वप्नामां मने विमल पुरीमां दीनी. ते स्वप्नानी वात जे. हुं तो अत्यारे तमारी आगल उनी . तमे आई खराब जुलै | बोलोगे?१७ स॥ जाते वलते त्रीशसें ॥3॥ कोश होवे महाराज ॥ सु०॥ सवातते मानवानी नही ॥ न०॥ श्रावे ए वाते लाज ॥ सु०॥रए॥ स० ॥ रे राणी राजा कहे ॥रा० ॥ हुँतो करुं बुं हास ॥ सु० ॥ स० ॥ मुजने तारां वचननो ॥ व० ॥ पुरो ने विशवास ॥ सु० ॥२०॥ अर्थ ॥ हे महाराज,! ते विमलपुरी जतां श्रावतां त्रीशसो कोश श्राय जे. ते वात न मानवी जोइए एवी वात तो कहेतां पण लाज श्रावे. ॥१५॥ राजाचंदे कडं, हे राणी, हुँ तो तारी मस्करी करुं बु. मने. तारां वचननो पूरो विश्वास . ॥२०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय उल्लास ॥ सु० ॥ स० ॥ रंगरली राजा घडे ॥ रा० ॥ सहु को अबे निज गेह स०॥ आगल संबंध मीठो ॥मी ॥ तेम वली नवले नेह ॥ ० ॥२१॥ ० ॥ वीशे ढालेको ॥ ढा० ॥ मोहने बीजो उल्लास ॥ सु०॥ ० ॥ श्री जिन धर्म थकी लहे ॥ ०॥ चंद नरिंद प्रकाश ॥ सु०॥ २२ ॥ अर्थ ॥ राजा पोताना रंगे खुशी रह्यो. बीजा पोतपोताने घेर रह्या बे; हवे श्रावातनो संबंध चागल मीठो आवे बे. तेमां वली नवीन स्नेह नरेलो बे. ॥ २१ ॥ या बीजा उल्लासनी त्रेव शमी ढाल श्रीमोहन विजये कही बे. राजाचंद श्रीजैन धर्मश्री पोतानुं तेज प्राप्त करे बे ॥ २२ ॥ १२४ ॥ इति श्रीचंद चरित्रे प्राकृत प्रबंधे चंदसिंदल मिलनस्वरूपा ( १ ) कनकध्वजकथाश्रवणरूपा ( २ ) जाटकपाणिग्रहणात्मिका (३) पुनरा पूरी नगरीगमनका ( ४ ) या निश्चतसृभिः कला जिः प्रबोधोद्वितीयो वासः समाप्तः ॥ सर्व गाथा १००० श्री चंदराजाना चरित्रना प्राकृत प्रबंधमां १ चंद ने सींहल राजानो मेलाप, २ कनकध्वजनी कथानुं श्रवण, ३ चंदराजाए जाडे करेलुं पाणिग्रहण, अने ४ पुनः श्राजापुरीमां गमन ए चार कलाउंथी युक्त एवो आ बीजो उल्लास समाप्त थयो. ॥ सर्व गाथा १०९ ॥ ॥ अथ तृतीयोल्लास प्रारभ्यते ॥ ॥ दोहा ॥ विनाशी काशीधणी, शिववासी हरितंग ॥ स्वर्ग निवासी दा सजस, नमो पास जिन रंग || १ || चिदाकार विज्ञानघन, चि दानंद चिप ॥ चिदानास करुणाथकी, होवे त्रिलोकी नूप ॥२॥ अर्थ | जे विनाशने पामता नथी, जे काशी नगरीना स्वामी, मोक्ष्मां निवास करनारा ने जेना शरनो रंग नीलो बे, वली जेनी देवतार्ज सेवा करे बे एवा श्रीपार्श्वनाथ प्रजुने हर्षथी नमस्कार था ॥ १ ॥ जे चैतन्य आकृतिवाला बे, जे चैतन्य ज्ञान समूह रूप बे, जे श्रानंद स्वरूप बे जे चैतन्य रूप बे, एवा चैतन्य स्वरुपी परमात्मानी करुणाथी आत्मा ऋण लोकनो नाथ थाय बे ॥ २॥ ॥ जे दर्शन दर्शन विना, दर्शन ते प्रतिपक्ष || दर्शन दर्शन होय जिहां, ते दर्शन प्रत्यक्ष ॥ ३॥ जंग जाल नरवाल मति, रचे विविध प्रयास || तिहां दर्शन दर्शन तो नही निदर्शना जास ॥४॥ ॥ जे दर्शन श्रात्म स्वरूपना अनुभव विनानुं बे, ते दर्शन ( मत ) विरोधी मतवालुं बे ने जे दर्शनमात्मस्वरुपना अनुभवरूप सम्यग् दर्शन थाय बे तेज दर्शन प्रत्यक्ष दर्शन बे. ॥ ३ ॥ जे पुरुष ज्ञान बुद्धि अनेक प्रकारना प्रयास करी वचनोना जंग जालनी रचना करे बे तेना मतमां शुद्ध आत्म दर्शननो अनुव नथी परंतु ते मात्र दर्शनानास बे. ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 936 A 60G Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ चंदराजानो रास. ललित त्रिनंगी नंगजर, नैगमादि नय नूरि ॥ शुझा शुद्ध तरो क्तथी, नाषे जगगुरु सूरि ॥५॥ मान्यो कर्त्ता तो किशु, अणमान्ये शो विशेष ॥ मन मान्यो मान्याविना, न ग ममता रेष ॥६॥ अर्थ ॥ जे जगद्गुरु सूरि जगवंत ने ते त्रिलंगीथी सुंदर, युक्तिना समूहवाला, नैगमादि घणां नयश्री युक्त अने शुद्ध अशुधनो निर्णय करी अति शुद्ध एवां वचनो बोले बे. ॥ ५॥ कदि जगत्नो कर्त्ता माने तो शुं एमां शो विशेष ने ? ज्यांसुघी मनमान्यो माने नहीं त्यांसुधी एक रेखामात्र पण ममता गइ नश्री, एम जाणवू. ॥६॥ मत मत जनक ममत्वता, सिझ जनक श्रममत्व ॥ धन्य गणे सम ना वथी, मत अनेक एकत्व ॥७॥ जे सम दर्शी सरल गति, आत्म शक्ति संप्राप्त ॥ ते नर चंद नरिंद परे, विजुवन होवे व्याप्त ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ जुदा जुदा मतने उत्पन्न करनारी ममता ने अने निर्ममता सिधिने उत्पन्न करनारी जे. जे अने क मतमां समजावथी एकत्व गणे तेवा नरने धन्यवे. ॥ ७ ॥ जे पुरुष समदृष्टिवालो, सरखगति राखनारो अने आत्म शक्ति जेणे सम्यक् प्रकारे प्राप्त करी ते पुरुष चंदराजानी जेम त्रण नुवनमां प्रसिद्ध थाय . चंद तृतीय उदास श्रथ, निसुणो सुत्नग अखंग ॥ जास मधुरताथी थर, खंड ते खंमो खंड ॥ ए॥ कवि श्रोता कारण करे, ग्रंथरचन श्रा यास ॥ समजे कोण श्रोता विना, कविजन वचन विलास ॥१०॥ अर्थ ॥ हे सुजगजनो, हवे चंदराजाना रासनो त्रीजो उल्लास अखंडितपणे सांचलो. जेना माधुर्यनी श्रा गल खांझ शरमाइने खंडे खंड अश् गइ.॥ ए॥ कवि श्रोताने माटेज ग्रंथ रचवानो प्रयास करे . कारण के, उत्तम श्रोताविनां कविलोकना वचनना विलास कोण समजे.? ॥ १० ॥ यथा शक्ति वक्तावदे, क्षयोपशम अनुसार ॥ पण श्रोता नेदालका, ते विरला संसार ॥ ११ ॥ एक चित्त हुंती सना, निसुणो हवे अधि कार ॥ गुणावली हवे चंदथी, केवा करे प्रकार ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ वक्ता हमेसा पोताना श्योपशमने अनुसारे यथाशक्ति वदे ने पण तेना नेदने जाणनारा श्रो ता था संसारमा विरला बे. ॥११॥ सजा बधी एक चित्त अश्या चालतो अधिकार सांबलो. हवे राणी गुणावली चंदनी सा केवी युक्तियो करे ? ॥ १२॥ ॥ ढाल पेहेली ॥ हो मतवाले साजना, रजनी आजनी रहीने रे ॥ ए देशी ॥ ॥पूरव पतिने गुणावली, विनवे बेहुकर जोमी रे ॥ सुपनतणी श्रांटी तमे, वालिमजी द्यो बोमी रे ॥ वात चित्त विमासी कीजीये ॥१॥ जे वाते रस वाधे रे ॥ जे नर अणघटती कहे, ते श्यो स्वारथ साधे रे ॥ वात॥॥ अर्थ ॥ गुणावली पतिने बे हाथ जोडी विनवे . हे वालिम, तमे स्वप्नानी वातनी जे श्रांटीवाली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ तृतीय उल्लास. वार्त्ता विचारीने करवी जोइए. ॥ १ ॥ जे वात करवाथी रस वे तेज करवी जोइ घटती होय ते कहेवाथी शो स्वार्थ सधाय. ॥ २ ॥ को रजनी उजागरो, ते तमे नाण्यो लेखे रे ॥ तो वालेशर शुं ययुं, परमेश्वर तो देखे रे ॥ वात० ॥ ३ ॥ घोमो दोडे वेगथी, पण सवार बोडी दो. ए ने जे वात न जाणे रे ॥ ते खाणो तमे कयों, एहवी रीऊने टाणे रे ॥ वात० ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ मे जे रात्रिनो उजागरो कीधो ते तो तमारा लेखामां व्यो नहीं, हे वाहाला, तेथी शुं श्रयुं ? ते परमेश्वर तो देखे . ॥ ३ ॥ घोडो वेगथी दोडे पण ते तेनो स्वार जाणे नहीं. या कहेवत तमेाहर्षने वखते करी बतावी. ॥ ४ ॥ हांसी मांदे काढो तमे, प्रीतम तमने परख्या रे ॥ जुंकुं न मानशो साहिबा, वणिक कला किहां शिख्या रे ॥ वात०॥२॥ जगत् सकल जूठो गणे, जे नर होवे जूठो रे ॥ निज अवगुण जाणे नही, वांक देखाडे पूठो रे ॥ वात० ॥ ६॥ ॥ प्रियतम में तमारी परीक्षा करी सीधी. तमे बधीवात हांसीमां काढो बो. मारा साहेब खोडं लगाडशो नहीं. श्रावी वणिक कला क्यां शीख्या ? ॥ ५ ॥ जे पुरुष जुठो होय ते खा जगत्ने जुगे गणे बे. ते जुठो माणस पोतानो अवगुण जाणे नहीं ने बीजानो वांक गलथी देखाडे बे. ॥६॥ उलटो चोर चोरी करी, जेम तलारने दंडे रे || देखाडो बो दबामणी, तेम ते मकरीने वितं ॥ वात० ॥ ७ ॥ हुं जोली समजी नही, तमने साची में जाखी रे || समजण मांही तुमारमी, तमे पण उंब न राखी रे ॥ वात० ॥ ८ ॥ ॥ जेम चोर चोरी करीने कोटवालनो दंग करावे तेम वितंडावाद करी दबामणी देखाडो बो || ७ || ढुं जोली स्त्री समजी नहीं, जे वात साची हती, ते कही आपी. तमारी समजणनी शीवात करवी ? तमे पण कांप राखी नहीं. ॥ ८ ॥ ॥ वरजुं हुं हांसी मत करो, हांसीए होवे विमासी रे ॥ किहां हुं किदां विमला पुरी, तमने ए मति शी जासी रे ॥ वात|||| नर परघरजंजा घणा, नारी नही कोइ खोटी रे ॥ नर परणावे अदेखता, वात करी करी मोटी रे ॥ वात० ॥ १० ॥ ॥ हुं ते वात बोडी दजं तुं. हवे तेवी हांसीश्री खेद थाय बे. क्यां हुं ! छाने क्यां विमलपुरी ! तमने याशी बुद्धि सुकी. ॥ ए ॥ घणा पुरुषो पारका घरने जांगनारा होय बे. कोइ नारी खोटी होती नथी. पुरुषो तो देख्या वगर मोटी मोटी वातो परणावी दे बे. ॥ १० ॥ ॥ उलंघी घरनो जंबरो, न गइ किदां गइ धीवी रे ॥ तो तमे कोश अढारसें, उपर किदां मुज दीठी रे ॥ वात० ॥ ११ ॥ चंद कहे राणी तमे, रीस मुधा म चढावो रे ॥ जेम तुम मन राजी रहे, ते विध गावो बजावो रे ॥ बात ०॥ १२ ॥ अर्थ ॥ हुं या घरनो नंबरो बोडी उद्धत थइ क्यांइप गइ नथी. तो तमे अढारसो गाउ उपर मने क्या दीवी ॥ ११ ॥ चंदराजाए कयुं, राणीजी, तमे फोगट रीस शामाटे चडावो बो? जेम तमारुं मन राजी रहे, तेवी रीते गावो ने बजावो. ॥ १२ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १७ सुपन तणी वाते तमे, नाके सलकां श्राणो रे ॥ हसवानी मुज देव बे, रहोगे नेलां शुं न जाणो रे ॥ वात० ॥ १३॥ पण मुज सुपन जुवं नही, मुज निरधार बे एह रे ॥ सासु वहु मोजो करो, जोड़ें मत्युं जोइए तेवु रे ॥ वात ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हे राणी! या स्वप्नानी वातमां तमे नाक शुं चडावो गे.? मारे हसवानी टेव . तमे नेगा रहो गे, शुं नथी जाणता.? ॥ १३ ॥ पण मने निश्चय ने के, माझं स्वप्न जुतुं नश्री. तमे सासु अने वहू मोज करो. जेवू जोइए तेवू जोड़ें मट्युं . ॥ १४ ॥ पण मुजने करी कृपा, देखाडजो को कीडा रे ॥ मारी रखे कां आणता, म . नडामांहे ब्रीडा रे ॥ वात॥१५॥ तुम कारज मांहे माहरु, नेबुं काज सुलीजे रे ॥ जेम खीचमीनी बाफथी, वचमां ढोकबुं सीजे रे ॥ वात ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ पण कृपा करीने कोई क्रीडा मने बतावजो. रखे मारी मनमां शरम राखता? ॥ १५ ॥ जेम खी चडीना बाफश्री तेनी वचमां नाखेलुं ढोकलुं नेगुं चडी जाय ने तेम तमारा कार्यमा मारु नेगुं कार्य थ जशे ॥१६॥ ॥ गोदमी मांहे गोरख तमे, प्राण प्रिये तुज दीठी रे ॥ तीजे जल्बासे पेहेली कही, ढाल ए मोहने मीठी रे ॥ वात ॥१७॥ अर्थ ॥ हे प्राणप्रिया, में तने गोदडीमा राखेला गोरखनी जेम दीनी हती. आ त्रीजा नलासनी पेहेली मीठी ढाल श्रीमोहन विजये कही . ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥वाहाला वगर गुने श्श्या, मोसा बोलो केम ॥ एणे वचन पातलो,कीधो दीसे प्रेम ॥१॥ थर निहेज निःशंक शें, हसतां नांजो हाड ॥ जा एंबु को तुम तणे, काने लाग्यो चाड ॥२॥ अर्थ ॥ हे वाहाला, वगर गुने आवा मृषा बोल केम बोलो गे? तमारां श्रा वचनथी प्रेम पातलो कर्यो होय तेम लागे .॥१॥श्राम स्नेह वगरना अने निःशंक अश् हसता हसता हाडने लागी नाखो गे? हुँ जाणुं बुं के, तमारा काने कोश् चाडी आव्यो .॥२॥ ॥नाएं वांकी वाड तले, चालु खंमाधार ॥ प्राण नाथ दीजे नही, वेहेता वृषनने श्रार ॥३॥ सूतो वेचे कंतने, ते को बीजी नार ॥ रंग विरंगा मद बक्या, बोलो केम थविचार ॥४॥ अर्थ ॥ हुँ वांकी वाड नीचे पण आq नहीं, खगनी धार उपर चालुं बु. हे प्राणनाथ, चालता बलद ने आर मारो नहीं. ॥ ३ ॥ पोताना पतिने सूतो वेचे-एवी स्त्री को बीजी होय, ने. तमे रंग नरेला अने मदमां बकी गयेला श्र केम आवां अविचारी वचन बोलो बो.? ॥४॥ ॥शंगे विलोक्युं नारीयें, पेख्यो परणित कंत ॥ थक्ष विलखी जाण्या खरा, विमलपुरी उहंत ॥ ५॥ तोपण प्रीतम श्रागले, माने नहीं लगार ॥ जमाडे प्राणेशने, गुणावली तेणी वार ॥ ६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ तृतीय उदास. __ अर्थ ॥ पछी राणीए चंदनुं शरीर जोयुं त्यां पोतानो पति परणेलो जोवामां आव्यो. तत्काल ते विलखी यश् गइ. अने मनमां विचार्यु के, आणे विमलपुरीनो वृत्तांत जाण्यो हशे खरो. ॥ ५॥ तोपण ते प्रिय तमनी आगल ते वात लगारपण मानती नथी. पठी गुणावली राणीए पोताना प्राणनाथने जमाड्यो.॥६॥ गश् वहू' सासूकने, नाह न जाणे तेम ॥ वात कही सघली तिहां, चंदे नाषी जेम ॥ ७॥ ___ अर्थ ॥ पनी ते वह पति जाणे नहीं तेम सासु पासे गइ. त्यां जश्ने चंदे जे वात कही हती ते बधी जणावी.॥७॥ ॥ ढाल बीजी ॥ ॥ घोमी श्राश् थाहरा देशमा मारुजी,खिरणीदे पानी वालहो, मृग नय पीरा थांशुं बोढुं नही ॥ मारुजी ॥ ए देशी ॥ श्रावी हुँ देवा लंजडो ॥सासूजी॥ मुजथी रीसाणो नाहहो, रढियालो रसनवि मेलवे ॥सासूजी॥ जाणी रातनी वातमी सा॥ कही सवी करीने कुचाहहो॥हन जीनो नवलमति केलवे ॥सा॥१॥ तुम विद्या तृण सारखी सा॥ मकरो फूल अनं तहो ॥रढि०॥ दीगे में तुमथीघj ॥सा मुज पीउ विद्यावंत हो ॥ ॥२॥ अर्थ ॥ सासूजी, हुँ तो तमने उलंलो देवा श्रावी बु. मारा पति माराथी रीसाया बे. ते रढीयाला नाथ रीस बोडता नथी. तेणे रातनी बधी वात जाणी लीधी बे. तेणे मने बधी युक्तिथी कही आपी. ते हीलो नाथ नवीन बुद्धिने केलवे . ॥१॥ हे बाजी, तमे घणी फुल मारशो नहीं, तमारी विद्यातो तेनी आगल तृण समान . में मारो पति तमाराथी वधारे विद्यावंत जोयो. ॥२॥ तुम श्रम विमल पुरीतको सा॥ फोगट पड्यो प्रयासहो ॥ र०॥ पियु तिहां परण्यो प्रेमला ॥ सा ॥ एहनी विद्या साबास हो॥ ह० ॥३॥ में तिहां तमने कडं हतुं ॥ सा० ॥ ए मुज परणे जे कंत हो ॥ र०॥ ते तमे कथन वेद्यं नहीं ॥ सा० ॥ पण अंते थयु तंत हो ॥ ६ ॥४॥ अर्थ ॥ तमारो अने मारो विमलपुरी संबंधी बधो प्रयास फोगट पड्यो. मारो पति तो त्यां जश्ने प्रेमखाने परण्यो, तेनी विद्याने साबासी घटे बे. ॥ ३॥ में तमने त्यां कह्यु हतुं के, आमारा पति परणे . ते वात तमे मानी नहीं पण अंते ते खलं ज्यु.॥४॥ ॥ यद्यपि कामनी माही ॥ सा॥ जगती तले कोड हो ॥ र ॥ तो पण पुरुष डाह्या घj ॥सा॥ नरनी केम होवे होड हो ॥ ६ ॥५॥ श्रापणा बेहुं जणीए मली सा॥ जाएयु बेतरीय डे एह हो ॥ र॥ पण एणे बेहुने बेतर्या सा॥ एकलडे मति गेह हो ॥ ० ॥६॥ अर्थ ॥ जो के आ पृथ्वी उपर कोटी गमे कामिनी डाही हशे तोपण पुरुषो तेमनाथी वधारे डाह्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ए चंदराजानो रास. बे. नरनी साथे होड केम कराय? ॥ ५॥ आपण बने एम जाणतां हतां तेने तरीए बीए. पण बुद्धिना घर रुप ए पुरुष एकले आपण बनेने बेतरी दीधां बे॥६॥ ॥ पेहेलां मे तुम विनव्यु सा॥ मुज पियु समनही कोय हो ॥ ह ॥ पण ते तमे नवि मानता ॥साणा जुवो ते साचुं एह हो ॥ ॥७॥ पण पुर्बलने कहे थके ॥ सा ॥ कोइ न रांधे दीर हो ॥ हा ॥ केम नोलवाये नारीथी ॥ सा ॥ जे रणथंगण धीर ॥ ह ॥७॥ अर्थ ॥ में पेहेला तमने विनव्यु हतुं के, मारा पति जेवो कोय पुरुष नथी, पण तमे ते मानतां न हता. जुवो आ ते साचुं पडयु.॥ ७ ॥ उर्बलना कहेवाथी कोइ खीर रांधे नहीं. तेम मारुं वचन तमे मान्यु नहीं. जे रण मिमां धीर होय ते नारीश्री केम लोलवाय ? ॥ ७ ॥ ॥ नकरुं हुं संगति केहनी ॥ सा ॥ कीधो तुमतणो संगहो ॥ ह ॥ चालीहुं वचन तुमतणां ॥ सा ॥ तो एहवो थयो रंगहो ॥ ० ॥ ए॥ उदय थाव्युं जे जेहने ॥ सा ॥ ते तेहथीहिज थाय हो ॥ ६॥ करवा जाये जो कोश् नबुं ॥ सा ॥ तो पाटुं पसताय हो ॥ ४० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ हुँ कोश्नी संग करती न हती, में तमारो संग कर्यो अने हुँ तमारा कहेवा प्रमाणे चाली, तो तेनुं परिणाम आq श्राव्यु.॥ ए॥ जेने जे उदय श्राव्युं होय तेज तेनाथी श्राय बे. जो कोइ नवं करवा जाय तो ते पाउल पस्ताय .॥ १० ॥ ॥ बाजी कर्वा तुमतणुं ॥ सा ॥ हवे मुजश्रीनवी होय हो ॥ ह॥ वालेसरने हवे ॥ सा०॥ सुख पामी डे कोय हो ॥ ह० ॥ १ ॥ तुम कने रहो कला धारण। ॥ सा० ॥ रहो विद्या तुम पास हो ॥०॥ कोश्नो श्ररथ न बगाडीये॥ सा०॥करी करी एदवी लफासहो इ० ॥१२॥ अर्थ ॥ हे बाजी, हवे तमारु कयुं माराथी बनी शके नहीं. पोताना व्हालाने मुखावी कर स्त्री सुख पामी ?॥ ११॥ जे तमारे कला होय, जे विद्या होय, ते तमारी पासज रहो. आवी डंफास मारी कोश बीजीनो अर्थ बगामशो नहीं. ॥२॥ ॥ पीउ उपरांठगे जे थयो ॥सा॥ किम वश श्रावशे तेह हो ॥ ह०॥ हवे कौतुक ए तुमतणा ॥ सा० ॥ रहेवाद्यो तुम गेह हो ॥४०॥ १३॥ देश विदेश जोतां थकां ॥ सा ॥ मुहव्यो बेल सुलतान हो ॥ ह० ॥ श्रावी नाक विंधाववा ॥ सा ॥ ग ते विंधावी कान हो ॥ ह० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हवे जे प्रियतम मारी उपर रोष जर्यो थयो, ते पागे शी रीते वश श्रशे ? तमारा जे कौतुक होय ते तमारे घेरज राखो.॥ १३ ॥ देश विदेशना कौतुक जोवा जतां मारो सुलतान बेल मुखायो. डें तो नाक विंधावा श्रावी पण कान वींधावीने गश्ते, बन्युं ॥१५॥ १७ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० तृतीय उखास. ॥पीन श्रागल मान्यु नथी ॥ सा॥ में इजु ए तिलमात्र हो ॥ ६ ॥ पण एम कीधे शुं होवे ॥ सा ॥पीउघर सम नदीयात्र हो॥ह ॥१५॥ नयणे चरित्र जे दीठमां ॥ सा० ॥ माने ते केम नाकार हो ॥ ह० ॥ जुवं पम्वं ते साहमुं॥ सा॥ करवो शो तेहनो प्रकार हो॥ हा ॥१६॥ अर्थ ॥ में हजी प्रियतम आगल ए वात खगार मात्र पण मानी नथी. पण एमकहेवाथी शुं वले ? मारे पतिना घर जेवी प्राणयात्रा क्यांश नथी. ॥ १५॥ जे चरित्र तेणे पोतानी नजरे जोयां होय, ते ना कहेवाश्री केम माने ? सामु जुतुं पडवा जेवु थाय जे. हवे एनो उपाय शुं करवो ? ॥ १६ ॥ कहे सासु वहु मतधरो ॥ सा ॥ चिंता शोक लगार हो ॥ ४०॥ बीजी ढाल मोहने कही ॥ सा॥त्रीजा उल्हासनी सार हो ॥ ॥१७॥ अर्थ ॥ सासु कहे, हे वहू, तमे मनमां जरापण चिंता के शोक करो नहीं. आ त्रीजा नलासनी बीजी ढाल श्रीमोहन विजये कही . ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ वीरमती वहुने वचन, यश् क्रोधवश जोर ॥ उठीकर क रवाल ग्रही,करीने हृदय कगेर ॥१॥ श्रावी चंदकने तुरत, जाखे वचन विमात ॥अरे पुष्ट पापिष्टनर, शी कही वहुने वात॥२॥ अर्थ ॥ वहुनां वचनश्री वीरमती जोरथी क्रोधने वश श्रश् गइ. तत्काल करमां खड्ग लश् अने हृदय कगेर करी उनी . ॥ १॥ ते अपर माता चंदराजानी पासे आवी अने कहेवा लागी. अरे इष्ट ! पापिष्ट, तें वहुने शी वात कही ? ॥२॥ न्हाने मुख मोटां वचन, कदेतो दीसे चंद॥ मीयांनीवादेचणा (पागंतरे) मीण तणे दांते चणा, चावे कांमतिमंद ॥३॥ जोवा मांड्यां आजथी बिमारां एम ॥ वृद्धपणे तुं श्रमतणी, नक्ति करिशरे केम ॥४॥ अर्थ ॥ तुं नाने मुखे मोटां वचन कहेवा शीख्यो लागे जे. अरे मतिमंद, मीणने दांते चणा केम चावे ने ? ॥ ३ ॥ तें आजथी अमारां निषो आम जोवां मांड्यां तो पनी वृतावस्थाए अमारी लक्ति केम करी शकीश? ॥४॥ सुर शंकाए मुज थकी, तो शुं तुज बल मूढ ॥श्रा जू कीमी बापमी, सोनये थारुढ॥५॥देश नगर जंडार जम, में जो सोप्या प्राज्य ॥ तेंतो जाएयुं श्रावीयु, काकीमाने राज्य ॥६॥ अर्थ ॥ हे मूढ, माराथी तो देवता पण शंका पामे तो तारुं बल कोण मात्र ? जुर्जीने बापडी कीडी सोनैया उपर चमी बेठी?॥ ५॥ देश, नगर भरपूर जंडार में तने सोंप्या, तेथी तुं जाणे ने के, कांकीडाने राज्य मट्यु.॥६॥ For Personal and Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TSATT elelbe Əoele Kont 2 CWU .3 3 BS RAS Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १३१ हुं तुज ने मुकीश नही, जाश्श किहां तुं देव ॥ इणवेला संजारतुं, इष्ट होवे जे देव ॥७॥डातीपर बेठी चमी, थयो स नयनृपचंद॥ कहे सासुने गुणावली, करी करीवर मंद ॥७॥ अर्थ ॥ हुँ तने बोडीश नहीं. तुं हवे क्यां जश्श? श्रा वखते जे तारा इष्ट देव होय तेने संजारी ले. ॥७॥ वीरमती एम कहीने चंदनी गती उपर चडी बेठी. चंद जयनीत अश् गयो. गुणावली मंद स्वरश्री सासुने कहेवा लागी. ॥ ७ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥ कठडारावाजाहो नणदलवाजीया, कठमारा घुरिया निसाण ॥ मोरीनोली नणदी, पुर्जनहससेदो गुन्हो बगसीए॥ए देशी ॥ तुमचा सुतने हो उपर एवमो, न करो बाइजी रोष ॥ हारे मोरी जोली माजी, फुरिजन इससे हो गुनहो बगसीए ॥ एवठं तुमने हो करवो न विघटे, नहीमुज प्रीतम दोष ॥ मो० ॥ 5 ॥१॥ अविचल राखो हो माहारो जो तुमे, जीवितसुधी सोहाग ॥ मो० ॥ तो तुमे मुको हो बाजी एहने, कहुं बुं पाउले लाग ॥ मो० ॥ ॥२॥ अर्थ ॥ हे बाजी तमारा पुत्र उपर आवडो रोप करो नहीं. हे मारा नोला माजी, उर्जन हांसी करशे अने गुण ढंका जशे. तमारे आम करवू घटे नहीं. एमां मारा पतिनो बीलकुल दोष नथी. ॥१॥ जो तमे मारूं सौजाग्य जीवित सुधी अविचल राखवा मागता होतो तमे एने गेडी मुको. हुँ पगे पडी विनवू बु.२ गोद बिगहो बाजी सांजलो, ए मुज कीजीए माफ ॥मो० ॥ मात जी तुमचीहो हुन सही शकुं, क्रोधानल तणी बाफ ॥मो० ॥ ॥३॥ कां एणे जोयां हो ताहरां बिग्रने, में पण कांश कह्यांतुऊ॥मो॥ डाही हुँ दृती हो तोपण पांतरी, सबली विमासणमुक ॥ मो० ॥ 5 ॥४॥ अर्थ ॥ हे बाइजी, सांजलो हुँ पालव पाथरीने कढुं . मने माफ करो. हे माताजी, ढुं तमारा क्रोध रूप अग्निनी बाफ सहन करी शकती नश्री. ॥३॥ एमणे तमारां निज शां जोयां ? अने में तमने का कह्यां ने ? हुँ डाही तोपण बेतराणी, मारी समजण सबलबतां पस्तावो करवा जेवी श्र. ॥४॥ बोरु कुबोरु होता सांजल्या, पण नवी मात कुमात ॥ मो॥ एहनी वय सामु कांस्तो जुर्ज, समजे शुं जात विजात ॥ मो० ॥ पु० ॥५॥ मारे पीउ विण हो जग शा कामनो, शंकर मंदिर सेज ॥ मो० ॥ सासु ना जायाने हो जीवित दीजीए, मुजथी जो राखो बो हेज ॥ मो० ॥६॥ अर्थ ॥ बोरु कुगेरु थाय. एम सांनट्युं जे पणं माता कु माता श्राय ? तमे एनी वय सामुं तो जुवो. जात के विजातमां शुं समजे?॥ ५॥ मारे पति विना था जगत शा कामर्नु बे.? पनी हुं मंदिर के शय्यान शुं करुं? जो ! तमे मारी उपर हेत राखतां होतो आमारा सासुना जायाने जीवित दान आपो.॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ तृतीय उवासः माणस जो ए होशे हो तो घणुं ए थयुं, हवे उतारोजी रोष ॥मो॥ कट कीन कीजे हो कीडी उपरे, तृण उपर स्योजी शोष ॥मोऽणालाम कवायो दो कांश लेतो नथी, तुम वो ए निश्चंत ॥ मो० ॥ कहे q होय ते हो कहो मुज ए वती, पण मूको मुज कंत ॥ मो॥॥॥ अर्थ ॥ हे सासुजी, जो ए माणस हशे तो हवे समजी जशे, रोष उतारी नाखो. कीडी उपर कटक शुं काम जोए ? तेमज तृण उपर रोष शो राखवो ? ॥ ७॥ ए मारो पति तमारे लीधे लाडकवायो अने नि चिंत रहे जे. जो कां कहे होय तो मने कहो अने मारा पतिने बोडी मुको. ॥७॥ श्रलगी रहे कहे सासु हो तुंसमजे नही, ए सुतविण डंसारीस ॥मो॥ मूकीश नही हुँ एहने हो समडे ताहरा, जोतुं लाख वारीस ॥ मो० ॥ पु० ॥ए॥ तेणे शुं रुडे हो सोने कीजीए, बेटे जेहथी कान ॥ मो० ॥ कोबीजी न मलीहो एहने जायगा, मांड्यो मुजथी जेतान॥मोणा॥१॥ अर्थ ॥ सासुए कह्यु, तुं अलगी रहे, कांश समजती नथी. आ वगर हुँ हलावी लश्श. तुं लाख वार वारीश तोपण हुं तेने बोडीश नहीं. गेहुं तो तारा सोगन बे. ॥ ए॥ जेनाथी कान तुटी जाय ते सोनुं शा कामनुं. आपुत्रने को बीजं ठेकाणुं मट्युं नहीं के जे मारी साथे तान मांझी बेगे? ॥ १० ॥ लाग्यो ए माथे हो गया थापवा, एहनो ए प्रतीकार ॥ मो॥ एम क हीने जव श्राणी हो कंठे चंदने, ते करवालनी धार ॥ मो० ॥ ॥१९॥ जश्ने हाथे वलगी हो सासूने वहु, वमती थांसुनी धार ॥मो॥ मारी उ पर आपीहो बाजी दया, श्रापो ए प्राणाधार ॥ मो॥ पु० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ ए मारे माथे गणा थापवा लाग्यो -तेनो उपाय तो आज जे. एम कहीने ते चंदना कंठ उपर खड्गनी धार मुकवा लागी. ॥११॥ ते वखते श्रांसुनी धारा पाडती वहु आवीने सासुने हाथे वलगी पमी. हे बाजी मारी उपर दया करी मने आ मारो प्राणाधार आपो. ॥ १५॥ की, एणे अविचार्यु हो हवे एम नही करे, जो होशे एहने लाज ॥ मोण बालोचोतमे जंमु हो कोण करशे पड़ी, श्रापणी नगरीनु राज ॥मो॥3 ॥१३॥ जोरो नवी चालेहो कोइए चंदनो, होवे जे होवणहार॥मो॥ वहु नुं कर्तुं मान्युं हो सासुए तदा, परही करी तरवार ॥ मो० ॥ पु० ॥१४॥ अर्थ ॥ तेणे ए काम अविचार्यु कर्यु बे, जो तेने लाज हशे तो एम करशे नहीं. माताजी, तमे लंडो विचार करीने जुवो के जो ते न होय तो पी आपणी नगरीनु राज्य कोण करशे.?॥ १३॥ चंदनुं जोर कांपण चालवानुं नहीं. जे थवानुं होय ते करे बे. पनी सासुए वहुनुं कडं मान्युं अने तरवार कंठ उपरथी लश् लीधी. ॥ १४ ॥ डंसीली नवि मुके हो डंस नरेशथी, कीधो एक प्रकार ॥ मो० ॥ दवरक एक कीधो हो मंत्र्यो मंत्रथी, वीरमतिये तेणीवार ॥ मो० ॥ पु० ॥१५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GoubeventN 329 3RG DOP Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १३३ दोरोख बांध्यो हो कंठे चंदने, माये श्रति अविचार ॥ मो०॥ तेहथी नृप हु हो सुंदर कूकमो, अ अ सरजणहार ॥ मो० ॥ पु०॥ १६ ॥ अर्थ ॥ तो पण ए डंसीली वीरमतीए डंस मुक्यो नहीं. तरत एक दोरोलीधो भने ते वखतेज मंत्रथी मंत्री लीधो. ॥ १५॥ ते अविचारी माताए ते दोरो चंदना कंठ उपर बांध्यो. ते वखते चंदराजा एक सुंदर कुकडो थइ गयो. अहा ! स्रष्टानी लीला केवी जे.? ॥ १६॥ त्रीजी ए जाखी हो त्रीजा उन्हासनी, मोहन विजयेजी ढाल ॥ मो॥ आगल थश्सुणजो होश्रोता एकमना, चंद संबंध रसाल ॥मोण्॥॥ अर्थ ॥ श्रीमोहन विजये आत्रीजा उबासनी त्रीजी ढाल कही बे. हे श्रोता आगल तेनो रसिक सं बंध श्रावशे, ते एक मने सांजलजो. ॥१७॥ ॥दोहा॥ दीगे पति थयो कूकडो, गुणावलीये जाम ॥ वीरमतिने विनवे, रुदती करी प्रणाम ॥१॥ बाजी थर उतावलां केम अकारज कीध ॥ नरटाली तिर्यंच्पएं,मुज प्रीतमने दीध ॥२॥ अर्थ ॥ गुणावलीए पोताना पतिने कुकडो थयेलो जोयो एटले तरत ते रुदन करती करती वीरमतीने प्रणाम करी विनववा लागी. ॥१॥ हे बाजी, तमे उतावला अश् श्रावं अकार्य केम कर्यु? मारा पतिने नर मटाडी तिर्यंच पणुं केम श्राप्यु.१ ॥२॥ मानोमारी विनती,जु जगत् स्वरुप ॥ कहीए क्यांये न सां जल्यो, पक्षीरुपे नूप ॥३॥थ नर समजण नवि धरे, ते तो पंखी प्राय ॥ पंखी कीधे ते घणी, शी अधिकार थाय ॥४॥ अर्थ ॥ तमे मारी विनति मान्य करो अने आ जगत्तुं स्वरूप विचारी जुवो. को ठेकाणे कोइए राजाने पदी रुपे सांनट्यो नश्री. ॥ ३ ॥ जे नर श्रश्ने समजण राखे नहीं ते प्राये करीने पक्षी जेवोज . तो पनी तेने पक्षी करवाथी अधिक शुं ? ॥४॥ जूडो जलो तोही नृपति, शस्त्रनही तोही सुर ॥ दंत नहीं तोपण हिरद, कोह्यो तोए कूर ॥५॥ नृपने नररुपे करो, रोष निवारो मात ॥श्रापण बेहुँ जण वचे, एटली एह वसात ॥६॥ अर्थ ॥ लुंडो के जलो पण ते राजा कहेवाय जे. शस्त्री न होय तो पण जे शूरवीर ते शूरवीर कहेवाय. दांत न होय तो पण हाथी घिरद (बे दांतवालो ) कहेवाय अने कोही गयेल होय तोपण कूरा ते कूरा कहेवाय. ॥ ५॥ हे माता, रोष गेडी दो अने आ राजाने नररुपे करो. श्रापण बनेनी वच्चे तेने आटली शिदा श्रश् चुकी. ॥६॥ बाजी तुमे वृक्ष बो, हुँ तो न्हाने वेश ॥ कहे तो घट तुं नथी, पण न करो संक्वेश ॥७॥ कहे सासु कहेरे वहु, लेती वात निवेड ॥ तुंपण कांदोय कूकमी, मुजने घणुं मत म॥॥ For Personal and Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय उल्लास. १३४ अर्थ ॥ दे बाजी, तमे वृद्ध बो अने हुं तो नानी बुं, तेथी तमने कहेतुं घटे नहीं, हवे यावो क्लशे करो नहीं. ॥ ७ ॥ सासु ए कयुं, अरे वहु, तुं वली श्र वातनो निवेडो ले नहीं, तुं पण रखे कुकडी जमने वधारे बेडीश नहीं. ॥ 11 श्श. ताम्रचूड करी चंदने, वहुनो वचन वेख ॥ पहोती वीरमती घरे, ऐ ऐ विधिना लेख || अर्थ ॥ या प्रमाणे चंदने कुकडो बनावी ने वनां वचनने जवेखी ते वीरमती पोताने घेर चाली ग. हा, विधिना लेख केवा बे ? ॥ ए ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ ॥ दक्षिण दोहिलो होराज, दक्षिण दोहिलो रे लुंजा पाणी लागणो ॥ ए देशी ॥ गे लीधो हो लाल ॥ राणीयें कूकडो राज || गदगद कंठेरे जासे उ त्तर मर्मनो । जिणे शिरवालो हो लाल ॥ मुगट विराजतो राज || दैवे कीधो रे बोगो राता चर्मनो ॥ १ ॥ जिणे तनु कींवा दो लाल || पेहेरा ता वाघा हो राज || ते तनु नागारे विट्यां फिर्के पांखडे | जिसे कही बांधता हो लाल ॥ ताता तेगादो राज ॥ शस्त्र वनाइ रे कीधी नखने यांकडे ॥२॥ ॥ ॥ पी राणी गुलावलीए ते कुकडाने पोताना खोलामां लीधो अने गदगद कंठे मर्मनां वचन कहेवा लाग. अरे राजा, जेना मस्तक उपर शिखावालो रातो मुगट विराजतो हतो, तेना मस्तक उपर दैवे त्यारे राता चर्मनुं बोनुं कर्यु ? ॥१॥ हे राजा, जे शरीर उपर बारीक जरी आनी वाघा पेहेरवामां श्रावता ते शरीर नग्न बे ने उपर पीठाना पांखडा वींट्या बे. जे कटी उपर तगतगती तरवार बांधता, ते ठेकाणे हवे नखना श्रांकडामां शस्त्रोनी शोजा यावी बे ? ॥ २ ॥ रवि उगे हो लाल ॥ जागता सेजथी राग ॥ जागता कीधा रे देवे पाठ ली रातकी ॥ करताजे मीगंहो लाल ॥ जोजन जावताराज ॥ यवकर जो तारे हो या जु कोइ वातडी ॥३॥ जिणे मुख कहता हो लाल || अक्षर परवमा राज ॥ तिथे मुख कहता रे कीधा कूकूकूकडू ॥ बेसता खामी हो लाल ॥ तखत जमावने राज ॥ ते केम कीधां रे देवे बेसतां उकडु ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ जे सूर्योदय वखते शय्या उपरथी जागता ते अत्यारे दैवे पाबली रात्रे जागता कर्या. जे मीठगं जावतां जोजन करता ते अत्यारे उकरडामांथी जोजन शोधे बे. जुवो या केवी वात ! ॥ ३ ॥ जे मुखमां परवडा रो बोलता ते त्यारे मुखश्री कुकुकुकु एवा शब्दो बोले बे. जे रत्न जडित तख्त - पर बेसता, तेमने अत्यारे दैवे उकरडा उपर बेसतां कर्या बे. ॥ ४ ॥ हे हिंडोले हो लाल || जे नर हिंचता राज ॥ ते नर हिंचतारे कीधा देवे पांजरे ॥ एम विलपंती हो लाल ॥ राणी मुरबाणी राज ॥ नयणे यांसु मोटागिरिकरणा करे ॥ ५ ॥ जाग्रत कीधी हो लाल || सही यें समीर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SOLAGANICHARGHos १३३ Forecast and Private Use Onlar Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ चंदराजानो रास. थी राज ॥ वचने मीठे रे लागी ते समजाववा ॥ दोष न कोश्नो हो लाल ॥ दोष ए करमनो राज ॥ फोगट श्याने कोश्ने थाल चढाववा ॥६॥ अर्थ ॥ जे नर सोनाना हीडोला उपर हिंचता हता, ते नरने दैवे पांजरामां हींचता कर्या ने.ा प्रमाणे विलाप करती राणी नेत्रमांथी पर्वतना ऊरणानी जेम मोटां आंसु पाडती मूर्ग पामी गइ. ॥५॥ सखी ए पवन नाखी तेने जाग्रत करी. पळी ते मीगं वचनयी समजाववा लागी. हे राणी, आमां कोनो दोष नश्री; कर्मनो दोष ले. तो बीजाने फोगट पाल शामाटे चडाव. ? ॥६॥ शुंकरे ताहरे हो लाल ॥ वखते न बज्युं राज ॥ दैव अटोरो रे कहीये कोनुं न सांसहे ॥शुं करे माता हो लाल ॥ वहु पण शुं करे राज ॥ लखितनुं वातु रेते तो कोण कोइने कहे? ॥७॥ पूरव नवनोहो लाल ॥संचि त जे कोराज॥ श्ह नवे प्राणी रे राणी एम सुख दुःख जोगवे॥जे जिन राया होलाल॥कर्मे नचाया हो राज॥जेणे जेम कीधारे ते तो तेम हीज योगवे॥॥ अर्थ ॥ हे राज, तेमां तमे शुं करो ? ते वखते गज्यु नहीं. दैव अटारो ने ते को सहन करी शकतो नश्री. माता शुं करे अने वहु पण शुं करे ? जे वात लखी होय ते कोण कोश्ने कहेवा जाय.? ॥ ७॥ दे बाइ! पूर्व नवना जेवां संचित होय ते प्रमाणे आ नवे प्राणी सुख सुःख जोगवे जे. जुवोने श्रीतीर्थकरोने पण केम नचाव्या ! जेणे जे कर्या ते तो ते लोगवे बे. ॥७॥ ज्यांलगी रहेशे हो लाल ॥कुशल ए कूकमो राज ॥ त्यांलगे ताहरो रे डे वालेसरु ॥ एम मनवालो हो लाल ॥ समय निहालो राज ॥ सासु सरखी रे माथे जे वालेसरु ॥ ए॥ एम जे कहो जोहो लाल ॥ सासुजी जाणशे राज ॥ तो वली करशे रे कांावीने नवं ॥रहो श्रण बोल्या हो लाल ॥ पालो ए कूकडो राज ॥ हवे न जणावोरे कोश्ने थर्बु जे हतुं थयु ॥ १० ॥ अर्थ ॥ ज्यांलगी आ कुकडो कुशल रहेशे त्यांसुधी तमारा चंदराजा कुशल ने एम मन वालो अने समयने अनुसरी वर्तो. तमारे माथे सासु जेवा वालेसरी बे. ॥ए॥ जो तमे आम क्लेश करोगे, ते जो सासुजी जाणशे तो ते आवी वली कां नवं करशे माटे अण बोल्या रहो अने श्रा कुकडानुं पालन करो. कोइने आवात जणावशो नहीं. जे अवार्नु हतुं ते अयुं ॥१०॥ जिनजी ए नाषी हो लाल॥ कर्म विचित्रता राज ॥ ते केम होवे रे को थी करीने अन्यथा॥ थयो जेहवादहा हो लाल ॥ बाजीनी श्रागले राज ॥फलतमे पाम्या रे तेवा तिम योग्ये यथा ॥११॥ए कोण टाले हो लाल ॥ कीधी जे कूकमो राज ॥ किमपि न चाले रे जोरो दैवथी आपणो॥ हैडे खगाडी हो लाल ॥एहने राखवो राज॥ ए केम लागे रेकोश्ने बाश्थलखामणो१५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ तृतीय उल्लास. ॥ श्री जिन गवंते कर्मनी विचित्रता जांखी बे, ते कोइनाथी अन्यथा केम थाय ? तमे बाजी - नी गल वधारे व्हाला थया तो तेनुं तमे योग्य फल पाम्या बो. ॥ ११ ॥ हवे या राजाने कुकडो कर्यो तेने कोण मटाडी शके ? दैवनी साथे आपणुं कांइ जोर चाले नहीं. हवे तो आप ए कुकडाने हृदयनी साथे राखवो. हे बाइ, ए कोने अलखामणो लागे. ? ॥ १२ ॥ ari जो करशुं हो लाल ॥ राजी जीजीने राज ॥ ते फरी करशे रे पहेलां दतो तेवो ॥ एम समजावी हो लाल ॥ सखीए गुणावली राज ॥ सासूने नीसासारे नांखे डुंगर जेवो ॥ १३ ॥ क्षणिक उढंगे हो लाल ॥ ण एक बातीये राज ॥ क्षण एक राखे रे राणी हाथे कूकको ॥ श्वान मंजारी हो लाल ॥ प्रन्न तेहथी राज ॥ प्यारो राखे रे नारी निशदिन कूकडो ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हे बाइ, जो आपणे हमणा तेने श्राजीजी करी राजी करीशुं, तो ते या कुकडानो प्रथम हतो वो चंदराजा करी देशे. या प्रमाणे सखीए गुणावलीने समजावी. ते सासू उपर पर्वत जे वा नि सासा नाखती हती. ॥ १३ ॥ राणी गुणावली ते कुकडाने क्षणमां उत्संगे ने क्षणमां बातीए राखती छाने पोताना हाथमां राखती हती. वली पोताना प्याराने श्वान ने मार्जारथी प्रतुन्नपणे राखी रात दिवस पोतानी पासेज राखती ॥ १४ ॥ नवनव मेवा हो लाल ॥ जलदल वन फलराज ॥ श्रापे राणी रे चांचे दाडिमनी कली ॥ त्रीजे उल्लासे हो लाल ॥ ढाल ए चोथी राज || मोहन विजये रे जाखी द्वाख थकी गली ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ राणी गुणावली नवा नवा मेवा, जल, दल, वनफल तेने पती हती ते कुकडो पोतानी चांश्री दामिनी कली लेतो हतो. श्री मोहन विजये या त्रीजा उल्लासनी चोथी ढाल कही, जे प्राक्षाथी मधुबे ॥ १५ ॥ Jain Educationa International ॥ दोहा ॥ ताम्र चूमने कर धरी, गइ वढू सासु पास ॥ बेठी पयप्रण मी करी, दीरघ जरी उसास ॥१॥ केम यावी ए दुष्टने, बेइ मुज अनुषंग ॥ राखपरो देखाममां, मकर रंगमें जंग ॥ २ ॥ अर्थ ॥ वढु ते कुकडाने हाथमां लइ पोतानी सासु वीरमती पासे श्रावी, सासुने पगे पडी लांबो नीसासो नाखी श्रगल बेटी ॥ १ ॥ वीरमती बोली- ए दुष्टने लइ मारी पासे केम यावी ? तेने मने बतावीश नहीं. रंगमां जंग न कर्य. ॥ २ ॥ 'दूर राख वादालो बे तुजने हजी, राखे चंद समान ॥ वली नहीं तु जने वहू, हजी लगण कांइसान ||३|| एहने तो पेहेला प्रथ म, कीधो बे तिर्यच् ॥ पण एहने जोतो खरी, यागल करूं जे संच ॥४॥ For Personal and Private Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १३७ अर्थ ॥ हे वहू, शुं तने हजी ए वाट्हो लागे , तुं एने चंदनी जेम राखे ले. अरे, शुं तने हजी सुधी कांश सान वली नथी! ॥३॥ हजु प्रथम में आने तिर्यंच कों ने पण बागल जे हजु करुं ते तुं जोतो खरी. ४ जोतुं मुख एहनु, ए जोगवशे राज ॥ एम कीधाविण एहने, नोली न वले लाज ॥५॥ उतुंलेश एहने, रखजे पीजरमांहि ॥ श्राणीशमां तु मुज कने, ज्यांलगी न कहुं त्यांहि ॥६॥ अर्थ ॥ तुं आनुं मुखतो जो, ए राज्य शुं जोगवशे! हे जोली स्त्री, एम कर्या वगर तेने साज वनशे नहीं. ॥५॥ जा तुं एने लश् उनीजा. तेने पांजरामा राख. ज्यांसुधी हुँ कहुं नहीं त्यांसुधी एने मारी पासे खावीश नहीं. ॥६॥ खेर प्रीतम पंखीयो, गइ गुणावली गेह ॥ सो वन पिंजरमां व्यो, सयल सजा लेह ॥७॥ अर्थ ॥ पनी गुणावली पोताना पंखी प्रियतमने लश्ने घेर चाली गइ. तेने सुवर्ण पांजरामा राख्यो. अने तेनी सघली रीते सार संजाल करे ॥७॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ ॥ मोतीडानी देशी॥ सोवन पिंजर जमीयो रतने, राख्यो वीहंगम तेमांहि जतने ॥ निश्चय होये जावी कडं वं सर्वने समजावी॥जल कंचनने कचोलडे पावे, खाये मीग मेवा जेनावे ॥ नि० ॥१॥ दणदण कुंकुंमश्री पग धोवे, तिरडे कटादें पीउमुख जोवे ॥निखोले हुं राखीश करीने जीजी, विपदेतजे ते नारी बीजी ॥ नि॥२॥ अर्थ ॥ रत्नश्री जमेला सुवर्णना पिंजरमां ते पक्षीने यतनाथी राख्यो. सर्वने समजावीने कहुँ बुं के, जावी होय ते अवश्य बने . ते पक्षीने सुवर्णना पात्रे जल पाय ने अने जे जावे ते मेवा मीगइ खवरावे .॥१॥ गुणावली क्षणे क्षणे पदीना पग कुंकुमथी धोती हती अने तीरग कटाक्षथी प्रियतमनुं मुख जोती हती. ते बोली-नाथ, हुं तमने खोलामांज राखीश. जे विपत्तिमां पतिने गेडी देते बीजी स्त्री हुँ तेवी नथी. ॥२॥ तुं मुज प्राणजीवन पीयुप्यारो, मूकीश नही अधक्षण तुज न्यारो ॥ नि० ॥ पंखी थयानी न धरशो शंका, सरजित जो तो देशुं डंका ॥ नि० ॥ ३ ॥ मोटा माथे श्रावी पडे बे, विपद् संपदमां श्रावी नमे ॥ नि० ॥ रवि शशी ग्रहण जाणे जगसारा, पण नाण्या किणे गणती तारा ॥ नि ॥४॥ "अर्थ ॥ तुं. मारो प्राण जीवन अने प्यारो बुं, तने अर्ध दण पण जुदो मुकीश नहीं. हे नाथ, तमे पक्षी अ गया ते विषेनी शंका राखशो नहीं. जो दैव श्चा हो तो श्रापणे विजय डंको दश्शु. ॥ ३ ॥ मोटा होय तेने माथे विपत्ति श्रावी पडे ने अने ते संपत्तिमां श्रावी नडे ने. सर्व जगत् जाणे ने के, सूर्य चंजन ग्रहण थाथ बे, तारानुं ग्रहण अतुं नथी. ते गणत्रीमां पण नथी.॥४॥ १८ . For Personal and Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ तृतीय उल्लास. नदीवीर हैये मत दारो, करशुं लीला प्रभुने संजारो ॥ नि० ॥ एम एम गुणावली करत विखासा, कूक्कडराजने देइ दिलासा नि० ॥ ५ ॥ दुःखनी दाधी नही मन डुजे, पिंजर देहरासर परे पूजे ॥ नि० ॥ जेम जेमते पांखो फरकावे, तेम तेम राणी दोडी आवे ॥ नि० ॥ ६॥ ॥ हे नणंदना वीर, हृदयमां हारी जशो नहीं. प्रजुने संचारजो. आपणे आगल लीला करीशुं. प्रमाणे गुणावली कुकड राजने दीलासा श्रापती छाने मनमां खेद करती दती. ॥ ५ ॥ राणी गुणादुःखी बीजे मन राखती नहीं. ते पक्षीना पांजराने देरासरनी जेम पूजती हती. ज्यारे ते कुकडो पांखो फरकावतो त्यारे तरत ते राणी दोडी आवती हती. ॥ ६॥ वली सार संजाल करे क्षणक्षणमां, उंबन राखे डाहापणमां ॥ नि० ॥ प्रीतम तनना गुणसंजारे, तेम वली पाहुं मनने वाले ॥ नि० ॥ ७ ॥ एक दिन मुनिजन अंगण श्राव्या, राणीए मोदक लइ वोहराव्या ॥ नि० ॥ aa पिंजरमांहि दीठो, कहे उपदेश तपोधन मीठो ॥ नि० ॥ ८ ॥ अर्थ ॥ क्षणे क्षणे तेनी सार संजाल लेती हती. पोताना ते विषेना डाहापणमां बप राखती नहती. वारंवार प्रियतमना शरीरना गुणने संचारती ने वली पोतानुं मन पण पालुं वालती हती. ॥ ७ ॥ एक दिवसे को मुनि तेना प्रांगणामां श्राव्या. राणीए तेने लामु वोराव्या. तपस्वी मुनिए कुकडाने पांजमां जोयो एटले ते मधुर उपदेश श्रापवा लाग्या ॥८॥ शुं पंखी न्याये चाल्यो, जे एम लइ पिंजरमां घाल्यो ॥ नि० ॥ तुमे तो कंचन पिंजर परखो, एहने मनकाराग्रह सरखो || नि० ॥ ए॥ बोमीयो बंधनथी पक्षी, कोणए राखे कीटक जी ॥ नि० ॥ प्रातः शमे हिंसक मुख जोतुं, ते तो सामुं सुकृत खोतुं ॥ नि० ॥ १० ॥ अर्थ | या पक्षी शा अन्याये चाल्यो हतो के तेने लड़ पांजरामां नाख्यो बे? तमे या सुवर्णनुं पांजरू जुवो बो, पण ते पक्षीने ते कारागृह सरखुं बे. ॥ ए ॥ ए पक्षीने बंधनमांथी बोडी मुको. कीडाने क्षण करनारा ते पक्षीने कोण राखे? वा हिंसक प्राणीनुं मुख सवारे जोवुं ते तो सामुं सुकृत खोवा जेवुंबे. १० कहे राणी मुनिवात घणी बे, नही पक्षी ए घरनो धणी बे ॥ नि० ॥ ताम्रशेखर मुज सासुए कीधो, पामी हुं पूर्वे जेवो दीधो ॥ ११ ॥ राखु ढुं पिंजरमांहे तेथी, अवर अर्थ शो सरवो एहथी ॥ नि० ॥ कही हितनी वात तमे पंखी संपेख्यो, पण मुजी केम जाए उवेख्यो ॥ नि०॥१२॥ | गुणावली बोली - मुनिराज ! ए वात मोटी बे. या पक्षी नथी पण या घरनो धणी बे. मारी. सासु तेने कुकडो करी दीधो बे. जेवुं में पूर्वे आप्यं तेनुं हुं पामी ढुं. ॥ ११ ॥ तेथी हुं तेने पांजरामां राखुं बुं. एनाथ बीजो मारे शो अर्थ सरे बे. तमे तो पक्षीने जोइ हितनी वात कही, पण माराथी एनी उपेक्षा केम थाय? ॥ १२ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १३ए मुनि कई बार श्रमे नवि जाण्यो, फोगट पंखी संशय श्राएयो ॥ नि॥ कर ए वीरमतीने न घटे, एम निज अंगजने जे विघटे ॥ नि॥१३॥ चंदने चंद समान कहीजे, एहने एवी श्रवस्था न दीजे ॥ नि ॥ ताह राशील प्रनावे बाइ, रुदन म कर हवे थाशे नला॥ नि० ॥१४॥ अर्थ ॥ मुनिए कडं, बाइ, अमारा जाणवामां नहीं तेथी अमने श्रा पक्षी बे एवो फोगट संशय आव्यो. वीरमतीने तेम करवु घटे नहीं. तेने तो पोताना अंगजनी जेम राखवो जोइए ॥ १३ ॥ श्राने तो चंदना जेवाज गणवो. तेने एवी हलकी अवस्था आपवी नहीं. हे बाइ, तुं रुदन कर नहीं, तारा शीयलना प्रजावधी बधुं सारं अशे. ॥१४॥ पंखी थयो नृपपद पलटाएं, अश् अश् कर्म न चुक्यो टाणुं ॥ नि० ॥ रविशशि हरिहर इंश प्रसिका, कर्मे सहुने सीधा कीधा ॥ नि ॥१५॥ कर्म करे ते न करे कोश, जावी न जाए कोश्थी धो॥ नि० ॥ ए श्रम शिक्षा हैडे धरजो, एहनो अर्थ सरे तेम करजो ॥ नि० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ राजा पक्षी थइ गयो, राजपद पलटाइ गयु. अहा, कर्म केवु बे, ते पोतानुं टाणुं चुकतुं नथी. सूर्य, चंज, विष्णु, शंकर अने इंज जेवा प्रख्यात देवताउँने पण कर्मे सीधा कर्या बे. ॥ १५ ॥ जे कर्म करे ते कोथी कराय नहीं. नावी कोश्नाथी धोवाय नहीं; आ अमारी शिदा हृदयमां धारण करजो अने श्रा पहीनो अर्थ सरे तेम करजो. ॥१६॥ एम कही संयमधारी वलिया, राणीनां दुःख दोहग टलियां ॥ नि॥ त्रीजा उल्हासनी पांचमी ढाल, मोदन विजयनां वचन रसाल॥नि॥१॥ __ अर्थ ॥ आ प्रमाणे कहीने ते संयम धारी मुनि पाना वड्या. तेमना उपदेशश्री राणीनां मुःख टली गयां. श्रा त्रीजा जलासनी पांचमी ढाल पूरी अश्. जेमां श्रीमोहनविजयनां वचन रसिक बे. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ते जब बोले कूकमो, ऊंचे स्वर सुप्रजात ॥ तव राणी जागी कहे, करती आंसु पात ॥१॥ अंतर जामी मुरगडा, घमी घमी म पुकार ॥ ताहरे मन कांश नही, पण मुजे वज्र प्रहार ॥२॥ अर्थ ॥ ते कुकडो ज्यारे प्रत्नातकाले उंचे स्वरे बोलतो, त्यारे राणी गुणावली जागीने अश्रुपात करती श्रा प्रमाणे कहेती हती. ॥१॥ हे मारा अंतर्यामी मुरघा, तुं घडीए घडीए पोकार कर नहीं. तारे मन तो कांश नथी, पण मने ते वज्रना प्रहार जेवा लागे . ॥ २॥ कायर थर कूकू कदी, तें न कह्यो एक वार ॥ तो कां हवे मुख उच्चरे, जीवन प्राणाधार ॥३॥रयणी रमता रस नरी, प्राणेशर पर्येक ॥ तव कूकर को बोलतो, लागतो तुम विषडंक ॥४॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० तृतीय उदास. अर्थ ॥ हे नाथ, तें कोश्वार कायर अश्ने श्राम कुकु जेवा पोकार कर्या नथी, तो हे जीवन प्राणाधार, हवे आम मुखथी केम पोकार करो गे? ॥ ३ ॥ हे प्राणेश, ज्यारे तमे रसथी पलंग उपर रजनीमा रमता हता, ते वखते जो कोई कुकडो बोलतो, तो तमने ते विषना दंश जेवो लागतो हतो. ॥५॥ देवेते तुमने कर्या, सरला नरता साद ॥ रखे जगमां को करो, लखित लेखथी वाद ॥५॥ ए स्वर प्रिय होतो हशे, तुम मा ताने कान ॥ पण मारे मन साहीबा, स्वर ते सरने मान ॥६॥ अर्थ ॥ ते दैवे तमने तेवा सरल साद करता करी दीधा. अहा, जगत्मां लखेला लेखनी साथे कोपण वाद करशो नहीं. ॥ ५॥श्रा तमारो स्वर तमारी माताने कानमा प्रिय लागतो हशे, पण हे साहेबा मने तो जालाना जेवो लागे ॥६॥ एम निश दिस गुणावली, जूरे वाही प्रेम ॥ समजे घj ए कूकमो, श्रवस पड्यो करे केम ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ एम गुणावली रात दिवस प्रेममा जुरती हती. कुकडो बंधु ते समजतो हतो पण शुं करे? ते परवश पडयो हतो. ॥ ७॥ ॥ ढाल ६ ठी॥ पेहेरण दखणी चीर उढण पीली पामरी मारा लाल ॥ ए देशी ॥ एक दिन पिंजर देश बेठीसा गोखडे ॥ मारा लाल ॥प्रीतम नगर स्वरूप ते जेम नजरे पडे ॥ मा० ॥ जे जेम बोले लोक ते कूर्कट सांजले ॥ मा॥ निरखे राणी सन्मुख तेम बांसुढले ॥ मा॥१॥ कहे चौटा मांहे लोक वातो एम परवडी ॥माणापेदेला आपणी नगरी दीसती फुटडीमा॥ हवे तो बाजानी थाना दीसे ले विसंस्थलीमा॥ राह थकी मुकाणी जेम शशीनी कलामा॥॥ अर्थ ॥ एक दिवसे राणी पोताना पतिने नगरनुं स्वरूप नजरे पडे तेवा हेतुश्री पक्षीपांजरूं खर गोखे बेठी हती. ते जो लोको जे बोलता ते पक्षी सांजलतो अने राणीना मुख सामु जो आंसु पाडतो हतो. ॥ १॥ लोको चौटामां चालता था प्रमाणे खुसी वात करता हता के, प्रथम आपणी नगरी घणी सुंदर लागती हती. हालतो आजानगरीनी आना (शोला) राहुथी मुक्त अयेला चंजनी कलानी जेम शिथिल देखाय ॥२॥ नजरे न श्राव्यो कोश्ने नगरीनो धणी ॥मा०॥ ए तो दीसे ले वात कोश्क जाण्या तणी ॥ मा॥ कहे एक एकने वातते कानमा ढकमो ॥माण॥ कीधो ले चंदने वीरमती ए कूकमो मा॥३॥देखीए चंद देदार प्रजा नाग्य कयां थकी ॥मा० ॥ निसुणे कुक्कड चंद इसी नगरी वकी ॥ मा० ॥ नृप स्तुति मातानी निंदा नर नारीए कही मा॥ लोक तणा मुख बागल गलगुं तो नही मा०॥॥ अर्थ ॥ श्रापणी नगरीनो धणी कोश्नी नजरे आवतो नथी. आ वात तो जाणवा.जेवी के. वली कोश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 LTERULUI A SITES ADDRUKY DEMON ANNUN Lill candle sonal and Private Use Only www.laineibrary.org Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ४१ कोइना कानमा नजीक आवी कहे जे के, वीरमतीए चंद राजाने कुकडो बनाव्यो जे. जुवो आ रह्यो.॥३॥ जुवो आ चंदना देदार, प्रजाना लाग्य सारां नथी. या प्रमाणे चंद राजा नगरना लोकोनी वातो सांजले जे. तेमां नर अने नारी राजानी स्तुति अने मातानी निंदा करे ले. लोकोने मोढे गलणुं बंधाय नहीं. ॥५॥ उंचु जोवे लोक नृपतिना घर जणी ॥ मा० ॥ दीगे कुक्कम रूप पंजर मांहि आफणी ॥ मा॥ कही कही चंद नरेश, सह प्रणिपति करे ॥ मा॥ तेम तेम पंखीनां नयण थकी बांसु करे ॥ मा॥५॥ वीरमतीये वातडी सांजली एहवी ॥ मा॥ श्रावी दोडी तुरत बेटी हती जेहवी ॥ मा॥ रे रे वहु तुं ऊठ बेठी . शुं गोखमें ॥ मा० ॥ कुर्कटने एम केम राखे बे जोखमें ॥ मा॥६॥ अर्थ ॥ लोको राजाना घर तरफ ऊंचु जुवे, त्यां पांजरामा राजाने कुकडा रूपे जोयो. सर्वे लोको चंद राजा एम कही जेम जेम प्रणाम करे तेम तेम पक्षीनां नेत्रमांथी आंसु पमतां जाय . ॥ ५॥ वात वीरमतीए सांजली एटले ते तरत ज्यां गुणावली बेटी हती त्यां दोडी आवी. अरे, वहु, तुं गोखमां शुं बेठी बुं? अने श्रा कुकडाने आम जोखममां केम राखे ले ? ॥६॥ पंखीने जोतुं राखे को दिन जीवतो॥ मा॥ तो तुं न करीश कहुं हुं पुरमांदे बतो॥ मा० ॥ बानी वात प्रकाशता शो फल पाइए ॥ मा० ॥ नोली थापणो गोल चोरीने खाइए ॥ मा॥॥ आज पठी वातायन पिंजर जो धयु ॥ माग तो तुं जाणीश बापमी तुं ताहरुं कर्यु ॥ मा० ॥ गुदरं बुं एकवार हवे गुदरीश नही ॥ मा० ॥ जो एहनी कोश्थागल वातडीउ कही ॥ मा० ॥ ७॥ श्रर्थ ॥ जो तुं पक्षीने कोइ दिवस जीवतो राखवा धारती होय तो तेने नगरीमा बतो करीश नहीं. गनी वातने प्रकाश करवाथी शुं फल मले? अरे नोली स्त्री आपणो गोल थापणेज चोरी खाइए. ॥७॥ जो श्राज पनी तेनुं पांजरूं गोखमा राखीश तो अरे बापडी, तारु कर्यु तुं जाणीश. आज तो हुँ एकवार दर गुजर करुं पण हवे दरगुजर करीश नहीं. जोजे कोश्नी आगल पानी वात कहेती! ॥ ७ ॥ मत बतलावे एहने चंद श्शुं कही ॥ मा० ॥ वात न पुडीए जिण वाटे जावू नहीं ॥ मा॥ एम कीधे तुज श्ररथ सरे नही मोकले ॥ मा०॥ जेम दव नही उलवाय बांटे मुख कोगले ॥ मा०॥ ए॥ जो वालो होये एहतो नूषण पेहे. रावीए ॥मा॥पण लोकोनी नयणे घणुं न देखाडीए ॥ मा० ॥ एम कहीने वीरमती मंदिर ग ॥ मा॥ चंद तणी राणीने चित्त धीरज थ॥ मा० ॥१०॥ अर्थ ॥श्रा चंद ने एम कही कोने बतावीश नहीं. जे वाटे जावु न होय तेनी वात पुरवी नहीं. एम कदेवाथी तारो अर्थ सरसे नहीं. मुखना कोगला गंटवाथी दावानल उलवाय नहीं. ॥ ए॥ जो तने ए पाहालो होय तो तेने आजूषणो पेहेरावीए पण लोकोनी नजरे घणुं देखाडीए नहीं. आ प्रमाणे कहीने वीरमती पोताने मंदिर गइ अने चंदनी राणीना मनमां धीरज श्रावी.॥१०॥ For Personal and Private Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय उल्लास. पेहेराव्यां श्रारण पंखीने शोजतां ॥ मा० ॥ वारणे कीधी पीउने उपर लोजता ॥ मा० ॥ एम निशदिन करे कांता पीउ प्रतिपालना ॥ मा० ॥ जेम गुलाबनी मधुकर करे नित चालना ॥ मा० ॥ ११ ॥ चाले जगत् मंमाण सकल श्राशावडे ॥०॥ आठे मासे चातक मुख जल लव परे ॥ मा० ॥ अनलाना इंडा जे ते आशा वधे ॥ मा० ॥ श्राशा जाल विशाल बंधाणी बे बधे ॥ मा० ॥ १२ ॥ गुणावली ते पक्षीने शोजतां आभूषणो पेहेराव्यां ने पति उपर लोनाइने वारी गई. या प्रमाणे जेम नमरो नित्य गुसाबनी पालना करे तेम ते कांता पोताना पतिनी प्रतिपालना करती हती. ॥ ११ ॥ जगत्नुं मंकाण आशा उपर चाले बे. आशाथी रहेला चातक पक्षीना मुखमां श्र मासे जलनुं बिंदु पh ने अनला जातना प्राणीना ईमा आशाथीज वधे बे. एवी विशाल श्राशा जाल बधे बंधाणी बे. ॥ १२ ॥ | १४२ लोपे नही सासूनुं वचन गुणावली ॥ मा० ॥ बीहे रखे मन मांदी कांइ करती वली ॥ मा० ॥ तेमज चके सहकार तेमज नज अतिक्रमे ॥ मा० ॥ सासु वहु खगराज त्रिहुं स्वेछा रमे ॥ मा० ॥ १३ ॥ जोवे कौतुक क्रोडते देश विदेशना ॥ मा० ॥ निरखे सयल स्वरूप ते नवनव वेषना ॥ मा० ॥ राणी सासुनी बीके न धुके ताकडो ॥ मा० ॥ जोगी वश जेम पडीयो नाचे मांकको ॥ मा० ॥ १४ ॥ अर्थ | गुणावली सासूनुं वचन लोपती नहीं छाने रखे ते कांइ बीजुं करे तेम मनमां जय राखती हती. सासू, वा पक्षी - ए त्रणे पेला श्राम्र वृक्ष उपर चडी आकाश उलंघी खेच्चाए रमतां हतां ॥१३॥ ते देश विदेशना कोटी कौतुको जोतां हतां छाने नवीन नवीन वेषना स्वरूपने तेज निरखतां हतां. राणी गुणावली जेम मदारीने वश थयेलो मांकको नाचे तेम सासुनी बीकधी वर्तती ने ताकको चुक्ती नहीं. १४ शुंकरे चंदनी नार सासुने वंश पकी ॥ मा० ॥ पिंजर पण नवि मूके अलग एक घमी ॥ मा० ॥ एम गुणावली चंद नृपति दिन निगमे ॥ मा० ॥ मांड्यो तप सुपवित्र जेणे दुःख उपशमे ॥ मा० ॥ १५ ॥ दवे जवि निसुपो प्रेमला लछीनी कथा || मा०॥ कोइ वचे व्याघात न करशो सर्वथा ॥ मा० ॥ बठी त्रीजा उल्लासन ढाल जली कही ॥ मा ॥ मोहन विजये जेहवी शास्त्र थकी लही ॥ मा० ॥ १६ ॥ ॥ चंदनी स्त्री शुं करे, ते तो सासुने वश पडी हती. ते पक्षीना पांजराने एक घमी पण अलगुं राखती नहीं. एवी रीते चंद राजा ने गुणावली दिवस निर्गमन करतां हतां. ने जेश्री पोतानां दुःख उपशमे तेवां पवित्र तप करतां तां ॥ १५ ॥ हे जव्य प्राणी, हवे पेली प्रेमलालक्ष्मीनी कथा सांजलो. कोइ वचमा व्याघात करशो नहीं. श्रा त्रीजा उखासनी बठी उत्तम ढाल श्रीमोहन विजये जेवी शास्त्रयी जाणी तेवी कही बे ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UITSESELERUDELLEEN UNTUK WIELERLE Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १४३ ॥ दोहा॥ चंदे परणी प्रेमला, विमल पुरीए जाय॥ सिंहल शीखे श्रावियो, आजा थाना राय ॥१॥ हिंसके वारी प्रेमला, लाजी श्रावी गेह ॥ मनमें जाणे नाहले, सहितो दीधो बेद ॥२॥ अर्थ ॥ चंदे परणेली प्रेमला विमलपुरीमा रही अने सिंहल राजानी शीखलइ आजापति चंद पोतानी बालानगरीमा आव्यो.॥१॥ हिंसक मंत्रीए वारेली प्रेमला खजाथी घरमां जश् बेगी अने तेणीए मनमा जाण्यु के जाणे, पतिए मने बेह दीधो. ॥॥ जब लागी वेला घणी, जो घणीए वाट ॥ नाव्यो कंत गयो तजी,घणा उलंघी घाट ॥३॥ हजीयन श्राव्यो वबहो,गयो गलती रात ॥ बाजी बाजीगरतणी, खेली करी अखीयात ॥४॥ अर्थ ॥ पति फरीवार आवतां वेला घणी श्रश्. तेणीए घणी वाट जोइ पण स्वामी श्राव्यो नहीं. तेथी तेणीए धार्यु के तेतो घणो दूर गयो. ॥३॥ प्रेमला चिंता करवा लागी के, हजु कांत श्राव्यो नहीं,जरूर ते मारी साथे बाजीगरनी बाजी खेलीने आ गलती रात्रे चाट्यो गयो, अने तेणे अख्यात राखी. ॥ ४॥ जग्यो हतो विमल पुरी, सोलकलाये समेत ॥ चंद गयो घर श्रापणे, न कह्यो कोश संकेत ॥५॥ एम थालोचे प्रेमला, हिंसक मंत्री ताम ॥ कनकध्वज कुंवर जणी, मुक्यो कुंवरी धाम ॥६॥ अर्थ ॥ जे चंद (चंज) ा विमलपुरीमा सोल कलाए लग्यो हतो, ते पोताने घेर चाट्यो गयो तेणे कोनी आगल संकेत पण कह्यो नहीं. ॥ ५॥ प्रेमला था प्रमाणे विचारती हती, तेवामां हिंसक मंत्री पेखा कनकध्वज कुंवरने ते कुमारीना घरमां मोकट्यो. ॥ ६॥ प्रीतम निरख्यो प्रेमला, लडीए आवंत ॥ तव सन्मुख श्रावी । वही, जुए तो ते नही कंत ॥७॥ तव लबी तेहने कहे,नूलो मुज श्रागार ॥ पाली रात परोमीये, कीण ए श्रावणहार ॥७॥ अर्थ ॥ प्रेमलाए ते श्रावता प्रियतमने जोयो एटखे ते सन्मुख श्रावी. ज्यां बराबर जुवे त्यां ते पोतानो कांत नथी एम जाण्यु.॥ ७ ॥ तत्काल प्रेमलाए कह्यु, तुं कोणगे ? अने पाउली रातने परोढीए तुं घर नुट्यो लागे . ॥ ७॥ ॥ ढाल सातमी॥ हरणी जव चरे लखना ॥ ए देशी॥ कुष्टी कहे इण मंदिरे ललना ॥ कोश् नो हो श्हां नही पग फेर, जुडंगति कर्मनी ॥ ल० ॥ इहां तो पवन न संचरे ॥ ला कीडीनेहो पण लागे जे वार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ तृतीय उल्लास. ॥ ० ॥ १ ॥ एक घडीने अंतरे ॥ ल० ॥ यया दीसो हो तमे श्रणलखीत ॥ जु० ॥ तो यागल शीराखशो ॥ ल०॥ मुज हुंती हो शी वधती प्रीत | जु॥२॥ अर्थ ॥ कुष्टी बोल्यो- अरे ललना, या मंदिरमां कोनो पगफेर थाय नहीं यहीं. तो पवन पण संचरे नहीं ने कीडीने वतां पण वार लागे छे. अहा, कर्मनी गति केवी बे! ॥ १ ॥ अरे प्रिया, एक घमीने अंतरे तमे लखीतां केम थइ गयां ? तो आगल तमे शी उलखाण राखशो? मारी साथै प्रीति तमारी केवी रीते वधती थशे ? ॥ २ ॥ दीसे बे फररी फुटरी ॥ ल०॥ पण दीसे दो समजण नविनार ॥ जु० ॥ श्रांगण आयो न उलखे ॥ ल० ॥ जे परण्यो हो रयणी जरतार ॥ जु० ॥३॥ एम कही बेठोढोलीए ||ल|| ते कुष्टी हो घणो कपट भंडार ॥ जु०॥ सानाशी लगी रही ||ल०॥ जेम सुरजी हो वृक देखी उदार ॥ जु० ॥ ४ ॥ ॥ हे स्त्री, तुं देखावमा घणी सुंदर लागे बे, पण तारामां समजण लागती नथी. जे जर रात्रे परण्यो ते प्रांगणे आव्यो तो पण तुं उलखती नथी. ॥ ३ ॥ श्रा प्रमाणे कही ते कपटनो भंडार कोडी कनकध्वज तेना ढोलीया उपर बेठो, एटले ते प्रेमला नवीने लगी उभी रही श्राने जेम मोटा वरूथी गाय नासे ते दूर रही. ॥ ४ ॥ बेदु गति उन्मत्त कुसुमनी ॥ ०॥ चढे शिवने हो अथवा भूमिपात ॥जु० तीन शरीरी ||०||पतिफरसे होके अनि संघात ॥जु ॥२॥ कनकध्वज कहे प्रेमला ॥||ल|| केम उजी हो एम मुह मचकोम ॥ जु०॥ श्री सो क्रीडा करो || ल || जोको मध्यो हो दैवे संघोड || जुo॥६॥ • ॥ जेम धतुराना पुष्पनी बे गति बे, कांतो शिवने माथे चके अथवा तो पृथ्वी उपर पडीजाय, तेम सती स्त्रीउनां शरीरनी बे गति बे. कांतो तेने पति स्पर्शे अथवा तो मृत्यु वखते निनो समूह स्पर्श करे. ॥ ५ ॥ कनकध्वजे कयुं, हे प्रेमला, श्रम मुख मरडीने केम उभी रही? वो हसो अने क्रीडा करो, दैवे पण जोड मेहेनते मेलवी बे. ॥ ६॥ ए यौवन दिन चारनो || ल० ॥ प्रादुण्डो हो जाता नदीवार ॥ जु० ॥ प्रथम समागमे वो ॥ ० ॥ नवि की जे हो कलह प्रीतमयी नार ॥ जु०॥ ॥ सोरठ नृपनी तुं पुत्रिका | ल०॥ सिंहलनो हो हुं तो ढुं श्रधीश ॥जु०॥ ए तो मेलो तो मले ॥ ल० ॥ जो तूठे हो पूरण जगदीश ॥ जु० ॥ ८ ॥ ॥ चार दिवसनुं यौवन बे तेने मिजमाननी जेमजातां वार लागशे नहीं. प्रथम समागममांज स्त्रीए पोताना प्रियतम साथै आवको कलह करवो न जोइए. ॥ ७ ॥ तुं सोरठना राजानी पुत्री ने हुं सिंह देशनो अधिपति. आपणा बनेनो मेलो जो इश्वर संतुष्ट थाय तोज मले. ॥ ८ ॥ एम कही ज‍ जव कर ग्रह्यो || ल०॥ तवत्रटकी दो कड़े प्रेमला बोल | ॥० ॥ श्रलगो रहेने पापीया ॥ ०॥ तुं तो दीसेहो कोई फूटो ढोल ॥जु० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४५ चंदराजानो रास. ॥णारूपेरूडेशुं एहवे ॥ल॥ तुज राख्योहो केम जोयरा मोकार ॥ जुग॥ तुज जणते श्राणी नही ॥ लग ॥ जननीए हो कां लाज लगार ॥ जु० ॥१॥ अर्थ ॥ एम कही ज्यां तेणे प्रेमलानो हाथ पकड्यो त्यां ते तरोडीने बोली-अरे पापी, तुं माराथी अलगो रहे, तुं तो कोइ फुटेला ढोल जेवो लागे . ॥ ७ ॥ तने शुं आवा रूडा रूपे केवी रीते जोयरामां राख्यो हतो. तारी जननीने तने जणता लगारे खजा केम न आवी. ॥ १० ॥ तुं कुष्टी कंत केहनो ॥ ल॥ उठ शहांथी हो तुज तातना सुंस ॥ जु०॥ रे मूरख तुजने थ॥ लण॥ मोतीनी हो घुघरीनी डंस ॥ जु॥११॥ बेग माटे सेजमी ॥ लम् ॥ थावा वांडे हो पीउ एकली ताक ॥ जु०॥ सोवन कलश बेठा थकीला शुं होवे हो गरूडोपम काक॥जु॥१॥ अर्थ ॥ अरे ! तु कोमी कोनो पति थाय ? अहींथी उठीजा. तने तारा बापना सोगन ने. अरे मूर्ख, शुं तने मोतीनी घुघरीउनी होंस थ ?॥ ११॥ तुं शय्या उपर बेगे एटले एकली देखीने पति अवा श्छे बे ? कागडो सुवर्णना कलश उपर बेसे एटले गरूड जेवो अश् जाय ? ॥ १॥ राखे के होश मल्यातणी ॥ ला जो तारो हो पेहेला श्राकार ॥ जु॥ मुज प्रीतम जेणे उलव्यो ॥ला ते लमजोहो अनंत संसार॥जु॥१३॥ एम रगळग करता थकां ॥॥ तिहां श्रावी हो ते कपिलाधाव ॥जु॥ ते पण कहे रे रे वहु ॥ ला केम उत्नी हो एम वदन बुपाव ॥ जु० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ तुं मलवानी होंस राखे ले पण पेहेला तो तारो श्राकार जो. जेणे मारा पतिने उलव्यो होय, ते अनंत संसारमा जम्या करजो. ॥ १३॥ एम रगऊग थती हती, तेवामां पेली कपिला नामे धाव्य माता श्रावी. तेणे कडं, अरे वहु, तुं मोढुं बुपावीने केम उनी बु.॥१४॥ जेम प्रीतम कहे तेम करोलारखे श्राणो होमादरी कांइ लाज ॥जु॥ वर बीजो एम केम होवे लापरणाव्यो होते एहवर राज ॥जु॥१५॥ प्रेमला लबी धावने ॥ला कहे बार हो एवात मकाढ ॥जु॥ मकहो मिथ्या घरमी थ॥ ला मुखमामां हो नविदिसती दाढ ॥ जु० ॥ १६ ॥ अर्थ॥जेम था तारा प्रियतम कहे तेम कर्य. मारी शरम रखे राखती. बीजो वर शी रीते होय? में आ घर राजानेज तारी साथे परणान्यो . ॥ १५ ॥ प्रेमला लक्ष्मीए धाव्यने कह्यु, अरे बाइ, तुं श्रावी मिथ्या धात बोल नहीं. तु श्रावी वृक्ष थइ मिथ्याशुं बोले . तारा मोढामां दाढ पण देखाती नथी. ॥ १६ ॥ सुकुलनी जाइ जे सती ॥ ॥ एम कीधे होते केम नोलवाय ॥ जु॥ त्रीजा उल्हासनी सातमी ॥ ल॥ ढाल नाखीहो मोहने रस लाय ॥ जु॥१॥ अर्थ ॥ सारा कुलमा जन्मेली जे सती स्त्री होय ते एम मिथ्या कहेवाथी जोलवाय नहीं. श्रात्रीजा उधासनी सातमी रसिक ढाल श्रीमोहन विजये कही . ॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ तृतीय उल्लास. ॥दोहा॥ थयो प्रजात उग्यो तपन, ते कपिला तेणीवार ॥ घरथी बाहिर निकली, करती निपट पोकार ॥ १॥धा धा को जे, होवे विद्या पुष्ट ॥ थयो कनकध्वज कुमरनो, तनु सरोग सकुष्ट ॥२॥ अर्थ ॥ प्रातःकाल अयो अने ज्यारे सूर्य उग्यो ते वखते पेली कपिला धाव्ये घरनी बाहेर नीकलीने मोटा पोकार करवा मांड्या. ॥ १ ॥ को विद्याथी पुष्ट होय ते वारे धाजो श्रा मारा कुमार कनकध्वजनी काया कोडना रोगवाली अश् गइ. ॥२॥ श्राव्यो हिंसक धसमसी,तेम वली सिंहल नूप ॥ कुष्टीनी माता तेमज, सुतनो निरखे रूप ॥३॥ को रडे, को पडे, कोश सरज करे शिश ॥ को करथी गती दणे, अहो कपट जगदीश ॥४॥ अर्थ ॥ ते सांजलतांज हिंसक मंत्री धसमसतो दोडी आव्यो. ते पनी सिंहल राजा अने कुमारनी माता श्रावी. माता पण पुत्रनुं तेवु कोमीयुं रूप निरखे . ॥३॥ कोशोवा लाग्युं, कोश पडता मुकवा लाग्यु कोइ मस्तकने पगडी धुलवालुं करवा लाग्युं अने हाथवझे बाती कुटवा लाग्यु. अहो प्रनु! कपट केतुं छे !॥॥ माता रूदन करी कहे, जंचे स्वर उत्सूत्र ॥ ए विष कन्या पापिपी, कांतुं परण्यो पूत्र ॥५॥ तात कहेरे जात तुज, किहां गयो ते रूप ॥ जे जोवाने श्रावता, घणा विदेशी नूप ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ कुमारनी माता जंचेस्वरे रुदन करती मिथ्या बोली के, अरे पुत्र, आ विष कन्याने तुं क्याथी परण्यो ? ॥ ५॥ पिता सिंहल राजाए कह्यु, हे वत्स, ते तारं रूप क्यां गयु ? के जे सुंदर रूपने जोवाने देश विदेशना घणा राजा आवता हता. ॥६॥ ए कन्या श्रण जाणते, में परणावी केम ॥ वेरण पूरव जन्मनी, कनक विटंब्यो एम ॥७॥ उनी निसुणे प्रेमला, पामे अच रिज चित्त ॥ दी नही तल जेवहुं, बोल्या मांहि वित्त ॥ ७॥ __ अर्थ ॥ अरे श्रावी कन्या में श्रजाणे केम परणावी ? एतो पूर्व जन्मनी वेरण थइ. के जेणे था कनक ध्वज कुमारने आवी विडंबना पमाडी. ॥ ७ ॥ प्रेमला उनी उनी ते सांजले ने अने मनमां आश्चर्य पामेले. तेमना बोलवामां तलना दाणा जेटलुंपण वित्त तेना जोवामां आव्युं नहीं. ॥ ७॥ ॥ ढाल आउमी॥ थाहरां महोला उपर मेह ऊबूके विजली हो लाल ऊबुके विजली ॥ ए देशी॥ पोहोती खबर तुरत कन्याना तातने हो लाल ॥ कण्॥ श्रावी निरख्यो सकुष्ट तेणे जामातने हो लाल ॥ते॥रोतां राख्या सर्व पु श्रवदातने हो लाल ॥ यु॥ पण जोलो नूपाल पाम्यो न वातने हो लाल॥ नार॥ For Personal and Private Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७ चंदराजानो रास. कहे कन्यानो तात कुंवरने शुं थयुं हो लाल ॥ कुं० ॥ एहनुं सुंदर रूप क्षणेकमां किहां गयु हो लाल ॥ ६ ॥ कहे हिंसक कर जोडी कह्यानुं नहीं हो लालक॥देश पराये कोण सुणे अमतणी कही हो लाल ॥सु॥२॥ अर्थ ॥ आ खबर तत्काल कन्याना पिताने पोहोची, तेपण त्यां आव्यो. ज्यां जुवे त्यां जमाश्ने कोडी जोयो. तेणे बधांने रोता राखी ते वृत्तांत पुग्यो. पण ए नोलो नूपति ए वात पामी शक्यो नहीं.॥१॥ प्रेमलाना पिताए कह्यु, श्रा कुमारने शुं थयुं ? तेनुं सुंदर स्वरूप एक दणमां क्यां चाट्युं गयुं ? हिंसक मंत्रीए कर जोडीने कर्वा के, हे राजा,कां कहेवानी वात नथी. अमारी वात परदेशमां कोण सांजवे तेम ॥२॥ रतिपति सरखो कुंवर तुमे दीगे हतो हो लाल ॥तु॥अमे शहां कर्मने जोग शाने कीधो बतो हो लाल ॥ शा॥ तुम पुत्री कर स्पर्श थकी ए निपज्यु हो लाल ॥ थ॥ कन्या ए माहाराज ने मोती बीपर्नु हो लाल ॥॥३॥ तुम मंदिर ए निरंतर रे जो धारणी हो लाल ॥रे॥ ए विष कन्या सत्य नही हितकारणी हो लाल ॥ना विणगे पुरुष रतन्न क न्यानी संगते हो लाल का कहीए बीएलश्जासहुनी संमते हो लाल ॥सन्धा अर्थ ॥ कामदेवना जेवो सुंदर कुमार तमे जोयो हतो. अमारा कर्म योगे तेने अहीं बतो कर्यो. तमारा पुत्रीना करना स्पर्शश्रीश्रा बनाव बन्यो . महाराज, श्रा कन्या जीपनं मोती . ॥३॥ श्रा धारणी हमेशा तमारा मंदिरमा रहेजो. आ तो विष कन्या बे. ते हित करनारी नथी. श्रा कन्यानी संगते था पुरुष रत्न विनाश पामी गयु. हवे अमे कहीए बीए के, सर्वनी संमतिथी तेने अहींथी लश् जालं.॥४॥ मकरध्वजे सविवात मानी साची करी हो लाल ॥ मा॥डुब्बल कन्या होय नरेशर ते खरी हो लाल न॥ प्रेमला उपरे क्रोध जनकने उपनो हो लाल ॥ज॥ कुष्टिए तेणीवार ग्रह्यो कर नूपनो हो लाल ॥ ग्र॥५॥ नही तुम पुत्री दोष नहीं तेम माहरो हो लाल ॥ना नही मुज जनकनो दोष, नही तेम ताइरो हो लाल ॥न॥ सघलो कर्मनो दोष निवा रीये हो लाल ॥ ए॥ स्त्री हत्यानुं पातिक हैडे विचारीए हो लाल है॥६॥ अर्थ ॥ राजा मकरध्वजे या सर्व वात साची मानी अने मनमा निश्चय कर्यो के, श्रा राजकन्या ख रेखर तेवी हशे. तत्काल पोतानी पुत्री प्रेमला उपर ते पिताने क्रोध उत्पन्न अयो, ते वखते पेला कोडी याए राजानो हाथ काली कह्यु. ॥ ५॥ राजा, तमारी पुत्रीनो दोष नथी तेम मारो पण दोष नथी. मारा पितानो के तमारो दोष नथी. श्रा बधो कर्मनो दोष ने, माटे रोष गेडी दो अने आथी स्त्री हत्यानुं पाप थाय एम हृदयमां विचारो. ॥ ६॥ कनकध्वजने वचन स्वसुर रंज्यो घणुं हो लाल खणकयुं तुम वार्या उपर एहने नही हणुं हो लाल ए॥ एम कही प्रेमला तात स्वमंदिरे श्रावीयो हो लाल ॥स्वा पोतानो सद्बुद्धि प्रधान तेमावीयो हो लाल ॥प्रणा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० . तृतीय उल्लास. रे मंत्री विषकन्या प्रेमला सांजली हो लाल ॥प्रेणा चीजडामांहे वराक्ष अचिंती निकली हो लाल ॥ श्र० ॥थयो कुष्टी जामात कमाइ थापणी हो लाल कण॥ श्रावी श्रापणे पेट कन्याए पापणी हो लाल ॥ क० ॥ अर्थ ॥ आवां कनकध्वजनां वचनथी तेनो सासरो घणो खुशी अयो. अने तेणे कर्वा के, तमारा वार वाश्री हवे ढुं पुत्रीने हणीश नहीं. आप्रमाणे कही ते प्रेमलानो पिता पोताने घेर आब्यो. अने त्यां पोता ना सद्बुद्धि प्रधानने तेडाव्यो. ॥ ७॥ राजा बोल्यो. अरे मंत्री, सांजलो, आपणी प्रेमला विष कन्या बे. श्रा तो चीनडामांश्री अकस्मात वराल नीकली . एना स्पर्शथी आपणो जमाइ कोडीयो थइ गयो बे. ए आपणुं नशीब समजवू. था पापणी कन्या आपणे पेट श्रावी . ॥ ७॥ कहे मंत्री करजोड नृपति तुमशुं हवं हो लाल ॥ नृण ॥ कुष्ट पुरातन एह नही एतो नदुं दो लाल नृणा एक पोहोरमां एम पुगंध नउबले हो लाल ॥ ० ॥ सटित न होवे चर्म अश्रृगपण नविगले हो लाल॥षणाए॥ अवगुण पुत्रीमांहे रखे तुमे जाणता हो लाल ॥र॥ सघर्चा एकपट रखे हठ ताणता हो लाल ॥ र ॥ तोपण नृपनो क्रोध नकांश उपशमे हो लाल ना कहे मंत्री महाराज करो जेम तुम गमे हो लाल कार॥ अर्थ ॥ मंत्रीए बे हाथ जोडी कडं, राजाजी, श्रा तमने शुं थयु जे? ए कोडनो रोग पूर्वनो , नवं कां थयु नथी. एक पोहोरमांज एवी रीते ऽगंध उबले नहीं अने चांमडी सडीने तेमांश्री रुधिर गलवामांडे नहीं. ॥ ए॥ तमे पुत्रीमां अवगुण जाणशो नहीं. श्रा सघटुं कपट . रखे तमे हठ पकडता? श्रा प्रमाणे कडं तोपण राजानो क्रोध शमतो नश्री एटले मंत्री बोटयो के, महाराज, तमने गमे तेम करो. १० कन्या श्रावी मात समी धसमसी हो लाल ॥सण माताना मनमांदे ते विष कन्यावसी हो लाल ते॥ दीधो नही सनमान न पुबी वातमी हो लाल न॥ न मटे लिखितजे लेख लख्या बठी रातमी हो लाल ल॥११॥ ताते कोडंबीक पुरुष तेमाव्या तत्क्षणे दो लाल ॥ते॥ क्रोधारुण करी नेत्र नरेशर एमजणे हो लाल ॥नृ०॥ सोंपो कुमरी एहके हाथ चंडा बने हो ॥के॥ पुजजो वधनी नूमि धारा करवालने हो लाल ॥धा॥१२॥ अर्थ ॥ कन्या दोडती दोडती माता पासे आवी. माताना मनमां पण ए विष कन्या ने, एम उसी गयुं हतुं, तेथी तेणीए कांश सन्मान प्राप्यु नहीं तेम कां वात पण पुनी नहीं, पीनी रात्रे जे लेख खखेला होय ते केम मटे ? ॥ ११॥ राजाए तत्काल कुटुंबना लोकोने बोलाव्या अने क्रोधश्री रातांनेत्र करी ते बोल्यो-के, आ पुत्री चंडालने हाथ सोंपी द्यो अनेखगनी धारावडे वध मिनी पूजा करावो. १५ ले चाल्या तेद सुता साथे ग्रही हो लाल ॥ सु०॥ पण राजाए चित्त दया थाणी नही हो लाल ॥दण॥ कुंवरीनी एक वात कोइए नवि सांज लीहो लाल को॥ मंत्री कहे नृप पागल घणुं ए वल वली हो लाख ॥॥१३॥ For Personal and Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 口 回回回回 For Personal and rentals LIDO Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २४ए खर प्रेमला लबी श्राव्या चहुटा लगे हो लाल यामाहाजन पण तत खेव मल्या मन उमगे हो लाल ॥माथाव्या ते दरबार तेमीने पुत्रीका हो लाल तेणा विनवे नूपति आगल जे हती वृत्तिका हो लाल ॥ जे॥१४॥ अर्थ ॥ ते प्रेमलाने साथे लश् चाल्या. राजाना चित्तमां जरापण दया श्रावी नहीं. कुंवरीनी एक वात पण कोइए सांजली नहीं. मंत्रीए राजानी श्रागल घणुं करगरी कहेवा मांड्योः ॥ १३ ॥ प्रेमला लक्ष्मीने ला ते चौटामां आव्या. त्यां तत्काल तेमने महाजन मट्युं ते पाग कुंवरीने लश् दरबारमा श्राव्या अने राजाने जे कहेवार्नु हतुं ते कही विनववा लाग्या. ॥ १५ ॥ अहो इश्वर अवतार सुताए उगरे हो लाल ॥ सु०॥ कुष्टी थयो जामात तेमां ए शुं करे हो लाल ॥ते॥ पंचनो वचन प्रमाण करो अलवेसरू हो लाल ॥॥ एम पुत्रीथी कोप न कीजे हित करु हो लाल ॥न॥१५॥ बगसो गुन्हो महाराज काज न कीजीए हो लालपानिज संततिनी उपर एम केम खीजीए हो लाल ए॥ पुत्रीनी एकवार तो वातडी सां जलो हो लाल ॥वा॥ उर्जन वाते स्वामीन राखो आमलो हो लाल ॥न॥१६॥ अर्थ ॥ महाजन कहेजे- हे इश्वरावतारी राजा,श्रा पुत्रीनेजगारवी जोइए. ते पुरुष कुष्टी श्रयेलो तेमां श्रा पुत्री शुं करे? राजाजी, आ पंचनुं वचन प्रमाण करो. श्रावो कोप पुत्री उपर न करवो जोश्ए. ॥१५॥ हे महाराजा, कदि अपराध थयो होय तोपण श्रा, अकार्य न करवू जोश्ए. पोतानी संतति उपर श्रा प्रमाणे खीजवावु न जोइए. एकवार तो ए पुत्रीनी वात सांजली ट्यो. पुर्जन लोकोनी वात सांजली मनमां आमलो राखो नहीं. ॥ १६ ॥ आग्मी ढाल रसाल ए बीजा उदासनी हो लाल ॥ए॥मोहन कहे मन रंगथी पुण्य प्रकाशनी हो लाल ॥पु॥ शीलढुंती उपसर्ग सयल रहे वेग ला हो लाल साशील थकी सुखजोग लहेशे प्रेमला हो लाल ल॥७॥ अर्थ ॥ श्रा प्रमाणे आ रस नरेली त्रीजा उवासनी आग्मी ढाल श्रीमोहन विजये कहेली . श्रा ढाल मनमां नंद अने पुण्यने प्रकाश करनारी जे. शीलवती स्त्रीनी पासेथी बधा उपसर्गो वेगला रहे. वटे प्रेमला लक्ष्मी शीलवडे करीने सुखलोग प्राप्त करशे.॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ माने नही माहाजन तj, एके वचन लगार ॥क्रोध कषाय जुजंगविष, धार्यो अति वसुधार ॥१॥ साजन जन तिहां शुं करे, राजन जिहां कगेर ॥ माहाजन पोहोता सहु घरे, न बने कीधे जोर ॥२॥ अर्थ ॥ राजाए महाजननुं वचन जरापण मान्यु नहीं अने उखटो तेणे क्रोध कषाय रुप सर्पना फेरने धारण कयु. अर्थात् क्रोध को. ॥१॥ ज्यां राजा कोर हृदयनो होय त्यां साजन के महाजन शुं करी शके १ पनी ते महाजन सोको घेर चाट्या गया. जोर करवाथी ते वात बनती नथी. ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० तृतीय उदास. स्वपंचोने क्षितिपति कहे, केम करो श्राण जंग ॥ विष कन्याथी जश करो, प्रहरण तणो प्रसंग ॥३॥ जो जीवित चाहो तमे, तो नवि करो विलंब ॥ नृप वचने कन्या जणी, ते कहे चालो अंब ॥४॥ अर्थ ॥ राजाए ते पोताना माणसोने कह्यु के, तमे मारी आझानो नंग केम करो बो ? जाउँ, तमे ते विष कन्या उपर प्रहार करो.॥३॥ जो तमारे तमारा जीवितनी श्वा होय तो तमे या कार्यमां विलंब करशो नहीं. राजानां आवां वचनथी तेए कन्याने कडं के, माता चालो.॥४॥ बागल कीधी प्रेमला, चाल्यो ते चंडाल ॥ हाहारव नगरी थयो, अकृत करे नूपाल ॥ ५॥ ते कन्यावध थानके, तेणे श्राणीत त्काल ॥ बेसाडीने अंत्यजे, कर पकडी करवाल ॥६॥ अर्थ ॥ प्रेमला लक्ष्मीने आगल करी अने पाउल ते चंडाल चाट्यो. आथी नगरीमा हाहाकार अश् गयो के राजा न करवानें काम करे .॥ ५॥ ते कन्याने चंडाल वध स्थान उपर लश् गयो. पनी तेने त्यां बेसारी चंडाले हाथमा तरवार लीधी. ॥६॥ ___ कहे मातंग रे नृपसुता, जजतुं ताहरो श्ष्ट ॥ हवे तो हां करशुं श्रमे, जे नूपे श्रादिष्ट ॥७॥ अर्थ ॥ चंडाल बोल्यो- अरे राज कुमारी, तुं तारा इष्ट देवने याद कर्य. हवे राजानी श्राज्ञा प्रमाणे श्रमे तारो नाश करी शु.॥७॥ ॥ ढाल नवमी राग धोरणी॥ ॥बे करजोडी तामरे नमाविनवे ॥ ए देशी ॥ कहे विनये चंडाल रे, अहो नृप पुत्रिका, अमे किंकर पेटारथीए ॥ तुं उत्तम अमे हीन रे, मातुं वध बाला, ए कर घटतुं नथी ए॥१॥ श्हां अमे थया अकुलीन रे, पूव कर्मथी, तोए बूटशुं किहां वलीए ॥ तुज सरीखं स्त्री रत्न रे, एम विणासवं, धिग अंत्यज कुल मंगलीए॥२॥ अर्थ ॥ चंडाल फरी विनववा लाग्यो- हे राजकुमारी, अमे पेटने माटे सेवक थया बीए. तमे उत्तम गे अमे नीच जात जीए. तमारा जेवी बालानो वध करवो घटित नथी.॥१॥ अमे आजवे पूर्वना कर्मथी अकुलीन नीच श्रया बीए. वली तारा जेवू स्त्रीरत्न आम हणीने पाग क्या बुटी शुं ? एम विचारतां अमारा जेवी अंत्यजजातिनी मंडलीने धिक्कार .॥२॥ आणा राजा केरी रे, फेरी कोण शके, वांक नहीं हां श्रमतणोए ॥ श्रमे तो हुकमना बंदा रे, करीए नृप कह्यु, धर्म संजारो आपणोए ॥३॥ काढ्यो कोशथी खङ्ग रे, एम कहीने तेणे, तव कन्या खम खम हसीए॥ नाण्यो जय तलमात्र रे, सत्व न अवगण्यो, असि देखीने जबसीए॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ राजानी आज्ञाने कोण फेरवी शके? अमारो आमां जरापण वांक नथी. अमे तो हुकमना ताबेदार बीए. तेथी राजाए जे हुकम कर्यो ते प्रमाणे करीए बीएं. हवे तमे तमारो धर्म संसारो. ॥ ३ ॥ श्रा प्रमाणे कही ते चंडालोए म्यानमांथी तरवार काढी ते जोश राज कन्या खडखड हसी पडी. तेने जरापण जय लाग्यो नहीं. पोताना सत्त्वनी अवगणना करी नहीं अने तरवार देखीने खुशी श्रवा लागी. ॥४॥ नाण्यो रोष लगार रे, तातनी उपरे, वधकनो वांक गण्यो नहीए ॥ क हे कन्या हे वीर रे, मकर विचारणा, जुप वचन करतुं सहीए ॥५॥ पाम्यो विस्मय चित्त रे, अंत्यज बापमो, अलगो जश् उनो रह्योए ॥ केम हसो तमे मात रे, निरखी श्रसिधारा, मेंतो नेद नको लह्योए ॥६॥ अर्थ॥ कन्याए पोताना पिता उपर जरापण रोष को नहीं. तेम वध करनारा चांडालनो वांकपण गयो नहीं. ते बोली- अरे वीर, विचार कर्य नहीं. राजानी आज्ञा प्रमाणे कर्य.॥५॥ ते चंडाल चित्तमां विस्मय पाम्यो. बिचारो अलगो जश् उनो रह्यो. ते बोल्यो, माता आ तरवारनी धार जोइ तमे केम हसो गे? हुँ तो तेमां कां पण समज्यो नथी. ॥ ६॥ तवकहे प्रेमला लही रे, तुजने शुं कहुँ, वात कह्या सरखी नथी ए॥ जोनरवर मुज पुढे रे, तव तेहने कडं, लेखे नावे इहां कथी ए॥७॥ ताते मारी वात रे, काने न सांजली, ते मुज खटके २ घणुं ए॥ अण जाएयु करे नूपरे, कोश्नो जोलव्यो, घरन विचारे श्रापणुं ए ॥ ॥ अर्थ-त्यारे प्रेमला लक्ष्मी बोली. नाई! तने शी वात कडं. वात तने कह्या जेवी नथी. जो राजा मने पुगे तो हुँ तेमने कहूं. अहीं केहेवाथी कां लाल श्राय तेम नथी. ॥ ७॥ पिताश्रीए मारी वात सांजली नही, एज मने बहु खटके ले. कोश्नाथी नोलवायेलो मारो पिता (राजा) अजाणपणे आ करे. पोताना घरनो विचार करतो नश्री. ॥ ७ ॥ निसुणी वचन चंमाल रे, मुकी तिहां कन्या, श्राव्यो मंत्रीनी कन्ढे रे ॥ अहो अहो मंत्रीराज रे, वांडे प्रेमला, श्रावq नूपति श्रासने ए॥ ए॥ एतो नहीं विष कन्या रे, परखीमें रूडो, तो कां अणजाएयुं करो ए ॥ नूपतिने समजावो रे, तेमो पुत्रिका, वात कहे ते चित्तधरो ए॥१०॥ अर्थ-कन्यानां वचन चमाल सांजली तेणीने त्यां मुकी, मंत्रीनीपासे ते आव्यो, अने कहेवा लाग्योके हे मंत्रीराज ! महाराजजी पासे श्राववाने प्रेमला इच्छे बे.॥ ए॥में सारी रीते परीक्षा करी के ते विष कन्या नथी, तेथी अजाणपणे आवं शुं काम करोगे? श्राप राजाजीने समजावो, तेमनी दीकरीने तेमावो अने ते जे वात कहे ते ध्यानमा स्यो. ॥१०॥ परदेशीनी वात रे, एम नवी कीजी ए, पस्तावो करशो पबी ए ॥ अं त्यज वचने मंत्री रे, रायने विनवे, स्वामि एक विनती थडे ए ॥११॥ ने कन्या निरविख रे, में निश्चेकर्यु, एकवार तेडावो फरी ए ॥ केम ह पीए अविचारे रे, रोष निवारी ए, नूंगी तो ए दीकरी ए॥१२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ . तृतीय उदास. अर्थ-परदेशीने वात सांजली, आमकरवं ते वीकनथी, पनी पस्तावो करवो पमशे. चंमालनां वचनथी मंत्रीए राजाने कर्तुं के साहेब एक विनंति करवानी जे. ॥११॥ आपनी कन्या निर्विष श्रने ते वातनो में निश्चय कर्यो, आप एकवार तेमाववानी आज्ञाकरो. अविचारश्री तेने मारवी योग्य नथी. आपकोधने शांत करो, जुमीने तोए पोतानी दीकरी जे. ॥१५॥ एह नामननीवात रे, तेकी सांजलो, करजो पनी मनने गमे ए ॥ जो जाणो विषकन्या रे, तो पमदे रही, विनवशे जे अतिक्रमे ए ॥ १३ ॥ कहे नृप तेगोतेह रे, थलगी राखजो, मत बाणो मुज श्रागले ए॥ कीधुं वचन प्रमाण रे, मंत्री ए कन्यका, तेमावी महा मंगले ए॥१४॥ अर्थ-पुत्रीने तेमावी तेना मननी वात तो सांजलो, पळी आपने गमे तेम करजो. जो विषकन्या आपने लागे तो परदे राखजो अने पजी ते पोतानी वात आपने कहेशे. ॥ १३॥ राजाए कह्यु के कन्याने तेमावो पण दूर राखजो, मारी पासे लावशो नही. ते वचन प्रमाणकरी मंत्रीए कन्याने बहु खुशी सा तेमावी. ॥ १५ ॥ परिश्रच अंतर राखी रे, ललीप्रेमला, मंत्री नृपने विनवे ए ॥ स्वामी कर्ण पसाय रे, पामे बालका, विनती सफल करो हवे ए॥ १५ ॥ नृप श्रादेशे पुत्री रे, कहे हरखित थई, तात सुणो मुज विनती ए॥ नहीं जा असत्य रे, चरणे तुमतणे, उत्तमजन नाखें बती ए॥१६॥ . अर्थ-वचमा पमदो राखीने, प्रेमला सदमीने बेसाडी. पजी मंत्री राजाने विनवे बे. हे स्वामी आपना पसायथी पुत्री श्रावी तेनी विनती हवे सांजली तेनी उपर कृपाकरो. ॥ १५ ॥ राजाना हुकमथी पुत्रि ए राजी अई कडं के हे पिताजी मारी विनती सांजलो. श्रापनी हजुरमा हुं कदापि असत्य नहीं बोलु. उत्तम मनुष्य साचीज वात बोले. ॥१६॥ नवमी त्रीजा जल्वासे रे, ढाल जली कही, मोहन विजये रंगथी ए॥ मिलसे प्रेमला लडी रे, चंदनरेशथी, पूरण पुन्य प्रसंगथी ए ॥ १७॥ अर्थ-मोहन विजयजी ए हर्षथी श्रीजा नक्षासनी नवमी :रूमी ढाल कही. पूर्ण पुण्यना योगथी चंदराजानीसाथे प्रेमला खदमी मलशे. ॥१७॥ ॥दोहा॥ वात असंजव तातजी, कहेतां श्रावे लाज ॥ पण विण कहे व नतुं नथी, लाजे विणसे काज॥१॥ जेहने परणावी तमे, ते नहीं प्रीतम एह ॥ जाणुं बुं अनुमानथी, एहमां नही संदेह ॥२॥ अर्थ-हे पिताजी श्रा वात नहीं संजवे तेवीने अने ते कहेतां मनमा लाज श्रावेने. परंतु कह्याविना चाली शके तेम नथी, कारणके शरम राखवाथी कार्यनो नाश थाय ॥१॥ जेनी साथे आपे मने पर. णावी ते मारो प्राणनाथ श्रा नथी.एवात हुँ खरा अनुमानश्रीजाणुं . तेमां खेशमात्र मने संदेह नथी.॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SOYEKC K bH १४६ फन्त्र ART Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal and Private Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १५३ पुरव दिशी श्रानापुरी, वीरसेननो जात ॥ चंद नृपति पति मा हरो, तमे अवधारो तात ॥३॥ जो एहमां जुटुं पडे, तो मुजने महाराज ॥ करजो गति जे चोरनी, कहं व बोडी लाज ॥४॥ अर्थ-मारी साथे लग्न करनार मारो पति पूर्व दिशामां आवेली आलापुरी नगरीना वीरसेन राजानो पुत्र चंद राजाने, ते वात हे पिता! खात्रीथी तमे मानजो ॥ ३ ॥ हुँ जे कहुं बु ते हे महाराज! जो जुतुं पडे, तो जेवी चोरनी गति श्राय तेवी गति मारी करजो. श्रावात हुं शरमोडीने कईं बं. ॥४॥ कहे मंत्री तें चंदने, केम करी जाण्यो कंत ॥ तात तणा मुख था गले, कहो साचो विरतंत ॥ ५॥ निसुणो पनणे प्रेमला, परणी मुज नरतार ॥ रमवा बेठो मनमगे, मुजथी रामत सार ॥६॥ अर्थ-मंत्रीए पुगयुं के हे राजकुमारी ! चंदराजा तमारो स्वामी थयो ए केवीरीते तमे जाणी शक्यां? माटे जे वृत्तांत साचो बन्यो होय ते तमारा पिताश्रीपासे कहो. ॥ ५॥ प्रेमला लच्छीए कह्युके, मारी साथे मारो जरतार परण्या पनी हुँ अने ते सोगग बाजी रमवा बेगं, परंतु रमतमां तेनुं मन उचक हतुं.॥६॥ तेणे रमतां मुखथी कह्यु, थाना पति नृपचंद ॥ सारी पासा तस घरे, सुंदर रस कंद ॥७॥ ते जो इहां श्राण्या होवे, तो रामत रस होय ॥ पण ते कोश थारसे, थाणी नापे कोय ॥ ७ ॥ अर्थ-तेणे रमत रमतां कडं के आला नगरीना राजा चंदने घेर रमत रमवाना जेवी बाजी अने पासाने ते जाणे रसनो कांदो होय नहीं तेवां सुंदर . ॥ ७॥ ते जो श्राहीया लाववामां आव्यां होय तो रमवामां बहुज रस श्रावे. परंतु ते अहींथी अगरसो गाउ बे, ते कोण लावी आपे? ॥ ७॥ ॥ ढाल दशमी ॥ ॥ हारे हुँतो नरवा गश्ती तट जमुनाने नीरजो ॥ ए देशी॥ हारे हुँतो अचरज पामी स्वामी वचने तामजो, पूरव दिशी किहां तिहां बाजा केम जाणी ए रे लोल ॥ हारे ए तो थाव्या पश्चिम दि शिथी किहां नृप चंद जो, जाएयु में एह श्रागल कही होशे किणे रे लोल ॥१॥ हारे तिहां अथवा होशे प्रीतमनो मोसाल जो, तेहथी ए सं जारे पासा सोगगरे लोल ॥ हारे हुँतो बोले जावे जाणी नशकी चोज जो, धार्यु में वली पुनीश रहेQ वे एकगं रे ॥ लोल ॥२॥ अर्थ-मारा स्वामीनां वचन सांजली हुँ आश्चर्य पामी, में विचार्युके पूर्व दिशा क्या ? ए वात हुँ केवी रीते जाणुं ? कारणके आ मारा नृपचंतो पश्चिम दिशामांथी श्राव्याडे. पनी विचार आव्यो के तेमनी आगल कोइए ए वात करी हशे. ॥१॥ वली मारा मनमा एम श्राव्युं के त्यां मारा पतिनुं मोसाल हशे जेथी तेने ए सोगग बाजी तथा पासा सांना करे बे. हुं अंतःकरणमां निर्मल तेथी बुपो लेद कांय पण जाणी शकी नही. वलीमें धार्युके हवे एकगं रहेवू ने तेथी आगल उपर पुरीश. ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૫૭ तृतीय उवास. हारे वली मोदक खातां वहाले माग्युं नीरजो, पायुमें शुनवासित जल प्रेमातुरी रे लोल ॥ हारे कडं पिउडे गंगाजल जो इहां कणे होय जो, मोदकनीतो लागे मुजने माधूरी रे लोल ॥ ३ ॥ हारे हुँ तो पामी विस्मय निसुणी सरिता नामजो, ते तो डे पूरवनी दिशे सुर वाहिनी रे लोल ॥ हारे वली कीधां थाना नगरीना व्याख्यान जो, वाणीतो कोण मीठी हूती नाहनी रे लोल ॥४॥ अर्थ-मारा स्वामीए लाडु खातां पाणी माग्युं तेथी प्रेमनी श्चक एवी में तेने सारू सुगंधी जल आप्यु, मारा स्वामीए कह्यु के जो अहींथा गंगाजल होय तो आ लामुनी मिगश मने बहुज लागे. ॥३॥ ते नदीनुं नाम सांजली हुँ अत्यंत आश्चर्य पामी कारणके ते गंगानदी तो पूर्व दिशामांज वहे . वली तेमणे आनापुरीना बहुज वखाण कर्या. श्राहा! मारा स्वामीनी वाणीमां शुं मिगश हती! ॥ ४॥ हारे एम करतां श्राव्यो हिंसक मंत्री तत्र जो, उगड्यो पिउ महारो को शमस्या करी रे लोल ॥ हारे मुज वारी राखी पात कीए करी रीस जो, पाडो ते नवी श्राव्यो जे गयो परिहरी रे लोल ॥५॥ हारे गृहमांहे आव्यो ए पुष्टी मातंग जो, मुंजश्रीतो तेणे खोटी प्रीतलडी धरीरे लोल ॥ हारे में तो एके एहनुं वचन न मान्युं कोय जो, मुजने एणे सघले विषकन्या करी रे लोल ॥६॥ अर्थ-एटलामां हिंसक मंत्री त्यां आव्यो. तेणे शमस्या करीने मारा पतिने मारी पासेथी उगड्यो. ए पापीए मारा जपर गुस्सोकरी मने रोकी राखी अने मारो नाथ मने तजी चाल्यो गयो, ते पागे आव्यो नही. ॥ ५॥ ते कोढी चंमाल पनी घरमां आव्यो अने तेणे मारी साथे खोटी प्रीत करवा मांमी. में तेनुं एकपण वचन मान्युं नही एटले तेणे सर्वनी पासे कडं के आ तो विषकन्या ने. ॥ ६ ॥ हारे ए तो कुष्टी एहनी स्त्रीनो होशे कंत जो, महारो तो प्राणेशर थानानो धणी रे लोल ॥ हारे एणे सिंहले तातजी तुमने जो लव्या ठीक जो, विण वांके एणे मुजथी कीधी डे घणी रे लोल ॥७॥ हरे में नाखी तुमने जे मुज मननी वातजो, साचुं जो करी मानो तो घणुं ए नलु रे लोल ॥ हारे जो तुमने एहना वचन तणी परतीत जो, कीजे जे मन मान्युं कहीए केटबुं रे लोल ॥॥ अर्थ-ए कोढी एनी स्त्रीनो धणी हशे. मारो प्राणनाथ तो आना नगरीनो राजा . ते सिंहल राजाए, हे पिताजी! आपने खुब बेतर्या ने अने वगरवांके मारा उपर पण करवामां बाकी राखी नथी.॥७॥ मारा मनमा जे वात हती ते में आपने कही. ते वात जो साची मानो तो घणुं सारूं; परंतु जो सिंहल राजानी उपरज आपने विश्वास होय तो आपना मनमां होय ते करो. हुँ हवे वधारे शुं कहुँ ? ॥ ७॥ For Personal and Private Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १५५ हारे निज पुत्री उपर कोप करे जो तात जो, कोश्नो नवि चाले जोरो एहमारे लोल ॥ हारे पण काज विचारी करीए तो यश होय जो, तुमने के अधिकार तातजी तेहमारे लोल ॥ ॥ हारे होय नाग्य सुतानुं तात तणो श्रायत्त जो, ताते जे जाएयुं ते पु त्रीने खलं रे लोल ॥ हारे जो जीवामे न जीवामे तोपण तात जो, पुत्र अने पुत्रीमा मोटुं अंतरूं रे लोल ॥ १० ॥ अर्थ-पिता जो पोतानी पुत्री उपर कोप करे तो तेवे वखते बीजानुं शुं जोर चाले? परंतु हे पिताजी ! आप विचारीने काम करशो तो यश संपादन करशो अने तेमांज आपनी वाई . ॥ ए॥ पुत्रीनु नाग्य पिताने आधीन ले. पिताए जे पुत्रीने माटे धार्यु होय तेज पुत्रीने खरूं समजवं. कारणके जीवाडे के मारे तोपण पिता एज पिता बे. पुत्र अने पुत्रीमा मोटो अंतर तेज . पुत्रनुं नाग्य तेना पोताना स्वाधीनमां ने अने पुत्री- पिताने आधीन जे. ॥ १० ॥ हारे एम पुत्री वचन सुणीने ते मंत्रीश जो, विनयशु मकरध्वज नृपने विनवेरे लोल ॥ हारे प्रजु नहीं ए जुतुं पुत्री वचन लगार जो, कुष्टीतो पति नैवच वचने ए हवेरे लोल ॥ ११॥ हारे हवे थापने थाना नगरी करशुं शुकि जो, होशे जो तिहां चंदतो सघळु ए खरूं रे लोल ॥ हारे प्रजु राखो त्यां लगी कन्या श्रा पणे गेह जो, करशे जो विश्वंजर पमशे पाधलं रे लोल ॥ १२ ॥ अर्थ-ते राजपुत्रीनां वचन सांजली श्रेष्ठ मंत्री मकरध्वज राजाने विनय पूर्वक विनववा लाग्या के हे राजन् ! राजकुमरीनुं वचन लेशमात्र असत्य नथी. एना बोलवाथी, कोढी तेनो पति नश्रीज नथी, एम मने लावे .॥ ११॥ हवे आपणे आला नगरीमां तपास करावीए. जो त्यां चंद राजा हशे तो आ सघलु खरूं समजवू; माटे त्यां सुधी श्राप कन्याने घरमां राखो. जो परमेश्वर करशे तो सर्व पांशरू पमशे.१२ हारे हवे तुमने न घटे हणवी कन्या एह जो, साचाने जूगर्नु लाधे पारखं रे लोल ॥ हारे तव मंत्री वचने नूपति चिंते चित्त जो, पुत्रीनी वाते तो जोवा सारखं रे लोल ॥ १३ ॥ हारे कहे राजा मंत्री पुत्री राख तुं गेह जो, साचुं ते तरशे ने जूतु नहीं तरे रे लोल ॥ हारे जुर्व जगमां नविजन जीवित जो बलवंत जो, ते उपर नृप रूशीने ते शुं करे रे लोल ॥ १४ ॥ अर्थ-हे नाथ! हवे आपने आपनी पुत्रीने मारी नांखवी ते योग्य नथी. साचा अने जुगनी परीक्षा करवी जरूरनी जे. मंत्रीनां एवा वचन सांजली राजा मनमां विचारवा लाग्यो के राजकुमारीनी या वात तपास करवा जेवी . ॥ १३ ॥ पनी राजाए कह्यु के हे मंत्री! राजकुमारीने तमारे घेर राखो. साची Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ तृतीय उहास. वात हशे ते तरी श्रावशे अने जुवात कदापि नहींज तरे. (हवे कवि कहे) हे नव्य जीवो ! जगतमां जेनुं आयुष्य बलवंत ने तेना उपर राजा पण जो कोप करे तोपण ते तेने शुं करीशके तेम ? ॥१४॥ हारे नृप वचने सचिवे प्रेमला थाणी गेह जो, बेसामी जमामी राखी नेहथीरे लोल ॥ हारे मंत्री पुत्री म करीश शोच ल गार जो, मेलीश हुँ तुज तेहने परणी जे हथी रे लोल ॥१५॥ हारे एम वचने कुंवरी चित्ते धीरज दीध जो, श्राणीशमां तुं हैडे चिंता तातनी रे लोल ॥ हारे तुज उपर काले तात होशे सुप्रसन्न जो, राखीशमां विमासण कोश् वातनीरे लोल ॥१६॥ अर्थ-पनी राजाना दुकमश्री मंत्रीये प्रेमला बहीने पोताने घेर आणी. पोताना घरमां आस्वासन आपी स्नेहपूर्वक जमामी. पठी मंत्रीए राजपुत्रीने कडं के तमे जरापण शोक करशो नहीं. जेमनी साथे तमारूं परणेतर थयु ने तेमनेज हुँ मेलवी आपीश. ॥ १५ ॥ एवी रीते मंत्रीश्वरे कुंवरीना चित्तमा सारां वचनोश्री धीरज आपी. वली कह्यु के बेटा ! मनमां जरापण पिताश्रीनां वचन संबंधी चिंता करशो नही. तमारा पिताश्री कालेज तमारा उपर प्रसन्न थशे तेथी कोइपण बाबतमां तमे मुजवण राखशो नही.॥१६॥ हारे रही प्रेमला मंत्री मंदिर परमानंद जो, हु ते संबंधी प्रेम प्रकाशनी रे लोल ॥ हारे एम ढाल दशमी ते मोहन विजये रसाल जो, नाखी हितकारी त्रीजा उहासनी रे लोल ॥१७॥ अर्थ-हवे कवि मोहनविजयजी महाराज कहे . त्यारबाद प्रेमला लजी मंत्रीना घरमां आनंद सहित रही. ए प्रमाणे त्रीजा उवासनी अत्यंत हितकारी ए प्रेमनो प्रकाश करनारी रसाल दशमी ढाल कवि मोहन विजयजी कही. ॥१७॥ ॥ दोहा॥ थयो अंबर राते वरण, फुली सांज अशस्त्र ॥ नाह्यो रविमांगें उदधि, कयुं कषायक वस्त्र ॥१॥ मकरध्वज राजा नणी, मंत्री करी प्रणाम ॥ सना समदे विनवे, स्वामी सुधारक काम ॥२॥ अर्थ-संध्या खीलतां अर्थात् सूर्यास्त समये आकाश लाल रंगमय अइ गयु. जाणे समुअमांथी सूर्ये न्हाश्ने काथा रंगनुं वस्त्र धारण कर्यु होयनी ? ॥१॥ते समये मंत्री प्रणाम करी मकरध्वज राजाने, सना समक्ष स्वामीनुं कार्य सुधारवामाटे विनंति करे ॥२॥ चार सचिव सिंहल दिशा, मूक्या हृता जेह ॥ कुंवर तेणे दीगे दशे, माटे तेडावो तेह ॥३॥ ते विनवशे श्राफणी, कनकध्वज तनु स्पर्श ॥ जेम हाथे कंकण बते, शुं कारण आदर्श ॥४॥ अर्थ-तेणे कडं के जे चार मंत्रीउने सिंहलपुर नगरे मोकल्या हता, तेए कुंवरने ते वखते दीगे हशे; माटे तेउने बोलावो. ॥३॥ तेए कनकध्वज कुंवरना शरीरनो स्पर्श कर्यो हशे, तेवू सेहेजे कहेशे. हाथमां कंकण होय तेवे वखते आरसीमां तेने जोवानी शी जरूर ? ॥४॥ For Personal and Private Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. नृप जाखे साधुं कयुं, एम जणाशे ठीक ॥ तेाव्या ते चा रने, नृपनी ताम नजीक ॥ ५ ॥ साच कहो रे मेलते, कुंवर थकी विवाद || निरख्यो ढुंतो ए तमे, के नविनिरख्यो चाह ॥ ६ ॥ - राजा कह्युं के तमे साधुं कां. तेमने पुब्वाथी ठीक खुलासो थशे पनी चारे मंत्रीउने राजानी सन्मुख बोलाव्या. ॥ ५ ॥ मंत्री श्राव्या एटले राजाए कह्युं के दे मंत्री कुंवरनीसाथे विवाह करवा तमोने मोकट्या ते वखते ते कुंवरने तमे चाहीने जोयो हतो. ? जे साधुं होय ते कहो. ॥ ६ ॥ जूठ न कदेशो सर्वथा, कहो यथास्थित रूप ॥ ते बानुं नहीं रहे कूरु महाजव कूप ॥ ७ ॥ तव ते चार परस्परे, समजी संज्ञा की ॥ प्रथम तिहां एके जणे, नृपने उत्तर दीध ॥ ८ ॥ अर्थ-तमे जरापण असत्य कहेशोनही. जे साचुं होय ते कहेजो. कारण के बेवटे पाप बानुं नहारहे, कूड ते महाजव कूप बे. ॥ 9 ॥ ते सांजली चारे जाए अंदर अंदर शमस्या करी. त्यार बाद प्रथम मांथी एक जाए राजाने या प्रमाणे उत्तर आयो ॥ ८ ॥ ॥ ढाल ११ मी ॥ थारे केशरी कशबीरे बोगे मोही रही मारुजी. ए देशी ॥ पेलो कति वातरची नृपने कदे || साहिबजी ॥ तुमची तो कोइ वात बानी नवि रहे ॥ सा० ॥ ढुंतो खासो दास प्र काशुं मारुं ॥ सा० ॥ न करुं खाधुं दराम जे निमक ताहरु || सा०॥ १ ॥ करवा मांगी वात सगाइ यसरी ॥ सा० ॥ मुद्री महारी ताम उतारे विसरी ॥ सा० ॥ गयो हु लेवा काज तृष्णा एलव्य ॥ सा०॥ पुंवलथी एणे त्रिहुजणे विवाह मेलव्यो ॥ सा० ॥२॥ ॥ पेहेलो मंत्री खोटी वातनी रचना करी राजाने कहेवा लाग्यो के हे राजन् ! श्रापनाथी कोइ वात बानी रहेवानी नथी. हुं तो आपनो खास सेवक बुं. मारा मनमां जे बे ते कहुं बुं. में आपनुं लू खाधुं बे ते दराम करनार नथी. ॥ १ ॥ मोए वेशवाल संबंधी वात करवा मांडी एटलामां मने सांजरी वयं के में मारी वींटी उतारे विसारी दीधी. ते उपरथी तृष्णाथी उश्केरावाथी ते वींटी लेवाने माटे उतारे हुं गयो एटले पालथी ए त्रणे जाए वेशवाल करी दीधुं बे. ॥ २ ॥ Jain Educationa International १५७ में नवी दीठो कुंवर स्वरूप हुं शुं लहु ॥ सा० ॥ प्रभु तुम आगल जेवुं बे तेहवं ते कहुं ॥ सा० ॥ थयो हुं चाकरी चोर गुन्दो एतो पड्यो ॥ सा० ॥ नूपे लीधो नेद जे वाते लडथड्यो ॥ सा० ॥ ३ ॥ तेम बीजो वली अरज करे जो थइ ॥ सा० ॥ हुं नवि बोलुं स त्य कहीश सत्यामइ ॥ सा० ॥ वांको चाले जुजंगम बिलतो पा धरो ॥ सा० ॥ तुम श्रागल केम चाले जूठो थइ खरो ॥ सा० ॥४॥ For Personal and Private Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ तृतीय उवास. अर्थ ॥ में कुंवरने दीगे नथी तेथी तेनु केवु स्वरूप ने ते हुं शुंजाणुं. ? हे नाथ ! तमारी आगल जेवू बन्यु ने तेवुज कहुं बु. हुं आपनी चाकरीनो चोर थयो बुं ते माटे गुन्हेगार K. राजाए खरो मर्म जाणी लीधो अने निश्चय कर्यो के आ पोतानी वातमां लथड्यो अर्थात् जूगे लागे जे. ॥ ३ ॥ हवे बीजो मंत्री जनो श्र राजाने अरज करवा लाग्यो के हुँ आपनी पासे जुतुं बोलीश नहीं. सत्य कहीश. सर्प बहार वांको चाले के परंतु दरमां तो सिधोज चाले जे. आपनी पासे जूनो होय ते साचो केम थश्ने चाली शके? ॥४॥ पेहेलां दिन- अपक्व जोजन मुजने थयो॥ सा॥ विवाह श्रव सर देह चिंताए हुँ गयो ॥ सा ॥ पुंठल मेव्यो विवाह श्रावु फरी जेटले ॥ सा ॥ मारीन जोश्वाट टुंगणती केटले ॥सा ॥५॥ कालो गोरो कुंवर में तो दीगे नही सा॥ मारा मननी होंश तेम नमांदे रही ॥ सा ॥ निसुणी वचन नरिंद संशयमांहे पडयो ॥ सा ॥ जाएयु ए पण डिंगमोले डे अणघड्यो॥ सा ॥६॥ अर्थ ॥ प्रथमने दिवसे में खाधेलं ते अजीर्ण अवाथी वेशवाल करवाने समये हुँ जंगल जवाने गयो. हुँ जेटलामा श्रावी पहोंचं खं तेटलामां मारी पाउल तेजए वेशवाल करी दीधुं. मारी राह पण न जोइ. ९ तेउनी शुं गणतीमा ? ॥ ५॥ए कुंवर कालो के के गोरो ते कांइपण दुं जाणतो नथी. मारा मननी होंश मारा मनमांज रही जे. बीजानी वात सांजली राजा संशयमां पड्यो अने तेणे विचार कर्यों के आपण अएघड ने अने डिंगमारे ने अर्थात् साचुं बोलतो नथी. ॥६॥ त्रीजो बोल्यो प्रधान कपटश्री जांचलो ॥सा॥ मारी विनती एक प्रजुजी सांजलो ॥सा॥ मेट्यो जाम विवाह पासे ढुंपण न हतो ॥ कीधो नही थम श्रागल कुंवरने बतो ॥ सा ॥७॥ सिंहल नृपनो नाणेज ते ऽहवाणो हतो॥सा॥ कयु मुजने तुं राख जश् एहने जतो॥ सा० ॥ में पण जेम तेम तेदने नूपति नोलव्यो सा ॥ श्रावी जोडं कुंवर विवाह तो मेलव्यो ॥ सा० ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ कपटथी केलवायेलो त्रीजो प्रधान बोटयो के हे राजन्! मारी विनंति ध्यान दश्ने लदमा ट्यो. ज्यारे वेशवाल कर्यु त्यारे दुं पासे न हतो. मारी आगल कुंवरने उतोज कर्यो नश्री, अर्थात् कुंवरने मने देखाड्योज नथी. ॥ ७॥ सिंहल राजानो नाणेज रीसायो हतो अने ते नागी जतो हतो तेथी मने कह्यु के तमे त्यां जश् तेने रोकी राखो. में पण हे राजन् ! तेना लाणेजने समजावी जेम तेम करी रोकी राख्यो अने पालथी श्रावी तपास करुं तो वेशवाल श्रयेलुं मालम पड्यु.॥७॥ में नवि निरख्यो कुंवर कांणो के कूबडो॥ सा ॥ चूक्यो अवसर एह गुन्हेगार हु वमोसा॥ विण दी। तुम पागल केम दिगे कहुं॥ सा० ॥ हुँ तो स्वामी तादरी बत्र बायामां रहुं ॥सागाए॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १५ए शाकिनीतेपण एक तो मंदिर परिहरे॥सा॥तेम स्वामिश्री सेवक माया केम करे ॥सा॥ तेहने पण नरराये जुगे करी त्रेवड्यो ॥साापरख्यो बोल्यामांहि बोले ए हमबडयो ॥ सा० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ कुंवर काणो हतो के कुबडो हतो ते में तेने जोयो नथी तेथी कही शकुं नहीं. ते अवसरे में चूक करी तेथी हुँ मोटो गुन्हेगार अयो बुं. कुंवरने में दीगे नही बतां दुं केम कहुँ के में तेने दागे . ? हे स्वामी! हुँ तो तमारा आश्रय तलेज रेहेनार बु.॥ए॥ लोकीकमां कडं वे के-डाकण पण एक घर तो बगेमे . तेवी रीते सेवक जे जे ते बीजाऊनी साथे कदाच कपट करे परंतु पोताना धणीनी साथे कपट केम करे अर्थात् नज करे. राजाए त्रीजाने पण जूगे ने एम मान्यो. तेने धडा वगरनो बोलतो जो तेनी बोल वामांधीज परीक्षा करी लीधी. ॥१०॥ चोथाने कहे नूप वारो हवे तादरो ॥ सा ॥ जूठ कहीश तो वांक न काढीश माहरो ॥ सा ॥ ढुं रुठो नहीं कोश्नो पुब तो कोश्ने ॥ सा ॥ ते माटे मुज श्रागल बोलजे जोश्ने ॥सा॥१९॥ ते कदे साची वात समयने उलखी ॥ सा॥ कह्या सरखी नही वात न चाले कडा पखी ॥ सा ॥ अमे गया सिंहल राय समी पे चिंहुं जणा ॥सा॥ विवाह माटे वचन कह्यां एहने घणां सा॥१२॥ अर्थ ॥ हवे राजाए चोथा मंत्रीने कडं के तमारो कहेवानो वारो आव्यो . जे कहो ते साचुं कहे जो. जूतुं कह्या पली मारो वांक काढशो नहीं. हुँ रुठ्या पळी कोइनो नथी. शिक्षा शुं करवी ते बाबतमां कोश्ने पुबतो नथी. माटे मारी आगल जे बोलो ते विचारीने बोलजो. ॥ ११॥ चोथो मंत्री समयने जाणी साची वात कहे जे. जो के वात कहेवा सरखी नथी तोपण कह्याविना चाले तेम नथी. तेणे कडं के अमे सिंहल रायनी पासे चारे जणा गया अने वेशवाल माटे अमे तेने घणी विनंति करी. ॥ १॥ मेहेनत करते जेम तेम हिंसके हाजणी ॥ सा ॥ एम कर्दा कुंव र देखाडो नयणे शिरोमणी ॥ सा॥ कयुं तेणे बेमोसाल निशा ले विद्या जणे ॥सा ॥ अमे हमांम्यो कुंवर दिग विणा नही बणे॥सा॥१३॥ चिहुने एकेकी कोडी सोनए नोलव्या सा॥ अमे तुम होता दास पण तेणे उलव्यासा॥मेलव्यो अमे विवाह थश्ने लालचीसा॥ एम श्रमथी घणीवाते कपटारचीसा॥१४॥ अर्थ ॥ अमे घणी मेहनत ज्यारे करी त्यारे हिंसके ते वात पराणे कबुल करी. अमे कयु के अमारा मस्तकना मुगटनामणि सरखा कुंवरने अमने बतावो. तेणे कयु के कुंवरजी तो तेमने मोसाल रही विद्यान्यास करे बे. अमे जोवानी हठ करी अने कह्यु के कुंवरने जोया विना अमारे चालशे नही. ॥१३ ।। अमने चारेने एक एक कोड सोनैया आपीने लोलवी दीधा. अमे तमारा सेवक हता तोपण अमने तेना पोताना करी दीधा. अमे लालचमां फसावाथी तेनी साथे वेशवाल कर्यु. वली तेए अमारी साधे पण घणी कपटनी रचना करी.॥ १४ ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० तृतीय उदास. अमे नवि दीगे कुंवर कुरुप के फुटरो ॥ सा ॥ हिंसक तो अमे दीगे चालतो कुटरो ॥ सा० ॥ एम श्रमे स्वामी वात हती ते वि नवी॥ सा ॥ ए साची सर्व न जाणशो केलवी॥ सा ॥१५॥ एह पडी तकसीर करी मत वाउली॥ सा॥श्रमने करो महारा ज जे श्छा राउली ॥ सा ॥ मकरध्वजने चित्त ए वात खरी वसी ॥ सा ॥ ताहरी साची वात नृपति नाषे इसी ॥ सा ॥१६॥ अर्थ ॥ कुंवर कदरुपो के के रुपालो ने ते अमे दीगे नथी. वली हिंसके अमारी साथे घणीज कपट रचना करी ते अमे जाणी. हे स्वामी ! जे खरी वात हती ते आपनी पासे कही बे. ए साचीज वात . तेमां जरापण असत्यता नथी.॥ १५॥ अमारी वांकी बुद्धि थवाश्री ए गुन्हो अमाराथी यो बे. हवे आपनी श्वा होय तेम हे महाराज! अमल करो. मकरध्वज राजाने ए वात साची लागी अने राजाए जरा हसीने कडं के हे प्रधान ! तमारी वात साची बे. ॥१६॥ साची जाणी प्रेमला अवगुण विसर्यो ॥ सा ॥ जुर्म कहेवो पुण्य गगनथी उतर्यो ॥ सा ॥ त्रीजे उसासे अग्यारमी ढाल ए संथु णी ॥ सा ॥ कहे मोहन ते रीशे जे होशे गुणी ॥ सा ॥१७॥ अर्थ ॥ खरी वात जाणवामां श्रावी एटले राजाने प्रेमला सचीनो दोष विस्मरण थयो. अहीं कवि कहे बे, जुर्ज पुण्यनो प्रजाव केवो के ? जाणे सादात् आकाशमांथी मूर्तिमान पुण्ये श्रावी राजानुं मन निर्मल कर्यु: त्रीजा उगासने विषे अगीश्रारमी ढाल कही. मोहनविजयजी महाराज कहे जे के जे गुणी हशे ते श्रा ढालथी संतोष पामशे. ॥१७॥ ॥दोहा॥ चोथे सत्य कह्या थकी, थयो नूप सुप्रसन्न ॥ ते चिंहु मुक्या जीवता, ए गुण गण संपन्न ॥१॥ मकरध्वज सद् बुझिने, कहे वचन निःशं क ॥ नास्यो मज सिंहल कपट, पण नही कन्यावंक ॥२॥ अर्थ ॥ चोथा प्रधाने साची हकीकत कह्याथी, राजा अत्यंत खुशी थयो. ते चारेने राजाए जीवत दान आप्यु. गुणनो समूह प्राप्त थयानी ए निशानी ॥१॥ मकरध्वज राजाए हवे सद्बुद्धि प्रधानने शंका रहित पणे कडं के श्रा सर्व कपट मने सिंहल रायनुं नास्युं , अने आपणी कन्यानोलेश मात्र वांक नथी २ परण्यो नर कोश् श्रवर, एहमां नही संदेह ॥ कुष्टीए मुज पुत्रिका, मुधा विडंबी एह ॥३॥ सोरठपति कहे सचिवने, ज्यां लगी चंद विलंब ॥ त्यां लगी कबजे राखीए, सिंहलने सकुटुंब ॥४॥ अर्थ ॥ मारी पुत्रीनी सा कोई बीजा पुरुषर्नु परणेतर थयुं ने एमांजरापण संदेह नथी; अने श्रा कोढीपाए मारी पुत्रीने फोकट विडंबना करी ॥३॥ सोरठ देशनो स्वामी मकरध्वज राजा पोताना प्रधान ने कहे जे के हे प्रधानजी! ज्यांसुधी चंद राजानो पत्तो लागे नहीं त्यांसुधी सिंहल राजाने तेना कुटुंब सहित श्रापणा कबजामा राखवो.॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ए उपाय नृपने गम्यो, कीधो बुद्धि प्रकाश ॥ तेम्यो सिंहल नृप जणी जमवा निज श्रावास ॥ ५ ॥ नृप राणी कुष्टी सचित्र, कपिला करी प्रपंच ॥ वश राख्या मकरध्वजे, जेम मुनि इंडी पंच ॥ ६ ॥ ॥ बुद्धिम प्रकाश थवाथी राजाने ते उपाय सारो लाग्यो; अने तेथी सिंहल राजाने पोताने घे जमवा नोतर्या. ॥ ९ ॥ त्यार पनी सिंहल राजा, तेनी राणी, कोढीयो पुत्र, हिंसक मंत्री ने कपिलाधाव ए पांचे प्रपंच पूर्वक मकरध्वज राजाए, जेम मुनि पांचे इंडियाने कबजे राखे बे तेम कबजे करी दीघां. ॥६॥ वर लोक किधां विदा, तत्क्षण सिंहल देश ॥ चंद निरति लेवा जणी, रचना रचे नरेश ॥ ७ ॥ तेकी पुत्री नृप सदन, मांड्यो शत्रुकार ॥ नृप कहे पथिक जो, थानापति अधिकार ॥ ८ ॥ १६१ ॥ तेना बीजा सर्व समुदायने तत्काल सिंहल देश तरफ विदाय कर्यो. त्यार पछी चंद राजानी शोध लेवा सारु राजाए विचारनी रचना गोठववा मांडी. ॥ ७ ॥ प्रेमला लम्बीने राजाए पोताने घेर तेडावी ह्युं के हवे दान शाला उघाको अने जे पंथीजन तमारी पासे दान लेवा यावे तेने जा नगरीना स्वामी संबंधी पुपरब करजो. ॥ ८ ॥ दान समर्पे प्रेमला, अति उठक मन होय || पुढे श्रानी खबर, पण नवि जाखे कोय ॥ ए॥ ॥ || प्रेमलाल अति हर्ष सहित जेजे दान लेवा यावेळे तेमने सदाव्रत पे बे. वली तेर्जने श्रानगरी संबंधी खबर पुढे बे. परंतु कोइ ते बाबतना समाचार पतुं नथी. ॥ ए ॥ ॥ ढाल १२ मी ॥ ॥ मारूजी साथीडारे साथे धणरे हाथे मद पीउरे लोल ॥ ए देशी ॥ विया नृपनी बेटी गुणनी पेटी गेहथी रे लो, बेठी दाननी शाला लो ॥ ज० ॥ मांगें जेम आपे ते तेम नेहथी रे लो, बाला परम कृपालालो० ॥ ज० ॥ १ ॥ उत्तम गेड़े जमीने हेजे सुतारे लो, प्राये होवे दाता लो ॥ ज० ॥ पंथी देखी करे विशेषे स्वागतारे लो, पूढे तेहने शाता लो ॥ ज० ॥ २ ॥ ॥ हे जन्यजीवो! हवे ते राजबाला जे मात्र गुणनी एक पेटीज बे ते पोताने घेरथ दान शामां व अत्यंत कृपायुक्त अंतःकरणथी जे जे मांगण वे बे तेमने जे जे ते मांगेले ते दर्षसहित . ॥ १ ॥ कवि कहे बे के उत्तम घरमा जन्मेली कुंवरी स्वाभाविक रीते प्रायः दातार स्वनावनीज होय बे. हवे प्रेमला लही जे जे वटेमार्गुने देखे तेने प्रथम सुख शाता पुबी तेनी विशेषे श्रागतस्वागता करे बे. ॥ २ ॥ नगरी खाजा पूरण लाजा सुंदरा रे लो, पूरण पूरव देशे लो ॥ ज० ॥ चंद नरेशर तिवेशर सिंधुरा रे लो, राजा सुरपति वेशे लो ॥ ज० ॥ ३ ॥ ३१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ तृतीय उवास. परदेशीको जो तमे प्रीबो गेहने रे लो, मुजनेतो तमो नाखो लो ॥ ज० ॥ पंथी लहीटाणु कहे नवि जाणुं एहने रे लो, नही श्रम तास अलाखो ॥०॥ अर्थ ॥ ते पुरे चे हे नाई ! तमे पूर्व देशमा अतिसुंदर अने संपूर्ण समृशिवाली श्रान्जानगरी जेनो ईजना जेवो अत्यंत शुरवीर एवो चंद नामनो राजा तेने तमो पोलखोगे? ॥३॥ वली पुने के तमे परदेशीगे तेथी जो तमे तेने पीगनताहो तो तेना संबंधी सर्व वात मने कहो. ते सांजेली पंधी. जनो एम कहेता के अमे तेमने जाणता तो नथी एटर्बुज नही परंतु अमारो देश पण जुदो ने अने ते देश पण जुदो ने ॥४॥ एहवी सुणी वाणी थक्ष विलखाणी प्रेमला रे लो, प्रीतम गुणश्री लीणी लो ॥नाकन्यानी कोई अन्या नवि चाले कला रे लो, विरहे थश्थति जीणी लो ॥॥५॥निशदिन पूरे नदी पूरे रोश्ने रे लो, महारो पियु परदेशी लोगन॥ वारी मन राखे नवि संजाखे कोश्ने रे लो, निपुणा नाह निवेशी लोजि॥६॥ अर्थ ॥ पोताना स्वामीना गुणमां लीन श्रयेली प्रेमला लब्बी ज्यारे पंथीजनोनां एवां वचनो सांजलेले त्यारे ते अत्यंत विलखी पडी जाय . प्रेमला लबी अनेकरीते पोताना स्वामीनी जाल मेलववा सारू कला केलवे ने परंतु ते कांई काम लागती नथी. पतिना विरहथी ते सुकावा लागी. ॥५॥ दिवस अने रात ते फुर्या करे . नदीना पूरनी जेम तेनी आंखमां आंसु वहे ने. अहो! मारो स्वामी परदेशी . एम विचार लावी पोताना मनने कबजे राखे बे अने पोते अत्यंत शाणी होवाथी पोताना मननी वात कोश्नी पासे कहेती नथी. ॥ ६॥ जंघा चारण जनमन तारण श्राविया रे लो, विमला नयरी उद्याने लो॥॥ राजादिक रंगे प्रेमला संगे नाविया रे लो, वांदे वधते वाने लोग ॥ ज० ॥७॥ संयमधारी दे हितकारी देशना रे लो, वाणी अमिय समाणी लो॥ ज०॥ कीधां नरनारी व्रत श्राचारी जिनेशनां रे लो, समकित दृष्टि प्राणी लो॥जमाना अर्थ ॥ एवा समयमां मनुष्योना अंतःकरणना पापने निर्मल करनारा एवा जंघाचारण मुनि विमला पुरीना उद्यानमां पधार्या एवी वधाई वनपालके राजाने श्रापवाश्री. राजाजी पोताना सर्व प वारसाथे प्रेमला खजीने हर्ष सहित लई मुनिने वांदवा जबासन्नर श्राव्या. ॥ ७ ॥ ते संयमधारी मुनिराज जेमनी अमृत समान वाणीने ते नव्य जीवोने अत्यंत हितकारी देशना देवा लाग्या. अनेक स्त्री पुरुषोने पंच महाव्रतधारी तथा बार व्रतधारी एवा साधु, साधवी, श्रावक अने श्राविका कर्या. जिनेश्वर जगवाने प्ररूपेला सम्यग् दर्शननो बोध आपी कइक जीवोने सम्यग् दृष्टि को. ॥ ७॥ मुनिये कीधी प्रेमला सूधी श्राविका लो, पूरण जिननी रागी लो॥ ज०॥ चौद पूरवना सारनी हुइ नाविका लो, विदर्या अन्यत्र विजागी लो ॥ना॥ • सहु गृह श्राव्या थया मन जाव्या सर्वना रे लो, पाम्या परम श्रानंदा लोगज धर्म आराधे सविविध साधे पर्वनारे लो, पुत्री समकित कंदा लो॥ नार॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६३ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ ते मुनिराजे प्रेमला लष्ठीने शुद्ध श्राविका, जिनेश्वर नगवानना गुणनी संपूर्ण रागवाली बनावी. ते चौद पूर्वनो सार जे नवकारमंत्र तेनो निरंतर जाप जपवा लागी; अने अत्यंत लाग्यना स्वामी एवा मुनिराज अन्यत्र विहार करीगया. ॥ ॥ सहु परिवार पोताने घेर आव्यो. सर्वना मननी अलिलाषा पूर्ण थई. सर्वे परम आनंद पाम्या. हवे समकितना कंदरूप प्रेमला लजी पर्वना दिवसोमां जेम, तेम सर्व दिवसोमां विधि पूर्वक धर्मनुं आराधन करे बे.॥१०॥ तेह मृगाडी प्रेमला लही धर्ममां रे लो, हुश् निपटज माही लो ॥०॥ पूजे जिनदेवा करे नित सेवा कुशली कर्ममां रे लो, गुरुना गुणनी ग्राहीना ॥ नवकार प्रजावे श्रावे शासन देवतारे लो, पत्नणे पुत्रीने हरखे लो ॥ न ॥ मलशे तुज स्वामी अंतरजामी सेवतारे लो, पूरण सोले वरषे लो॥॥१२॥ अर्थ ॥ हवे मृगादी प्रेमला खली धर्ममां अत्यंत कुशल अवाथी अने डाही होवाथी, गुरूना गुणने अंतःकरणमां धारण करी राखीने, जिनेश्वर नगवाननी निरंतर अव्य जावधी सेवा करे ने अने ते क्रियामां अत्यंत कुशल थई बे. ॥ ११॥ नवकार मंत्रनो निरंतर जाप जपवाना प्रत्नावश्री शासन देवी प्रे. मला लजीने हर्ष सहित आवीने कहेने के हे पुत्री! अरिहंत परमात्मानी सेवनाना प्रजावधी तारो स्वामीनाथ तने संपूर्ण सोल वरषे प्राप्त थशे. ॥ १२॥ जज जगवंता मकरीश चिंता श्राजथी लो, एम कहीने गश् देवी लो॥न०॥ देवीनुं जाख्युं जनकने श्राख्युं अलाजश्री रे लो, हरख्यो तात सुदेवी लो॥॥१३॥ पंच चरणथी श्रवी पूरण श्रासता रे लो, मुखथी जजन न मूके लो॥नावंदेने चिरनंदे चैत्यजे शाश्वतारे लो, प्रत्याख्यान न चूके लो ॥ ज० ॥ १४ ॥ अर्थ ।। हे पुत्री ! तुं अरिहंत परमात्मानुं निरंतर जजन करजे. आजथी चिंता तजी देजे. एम कहीने देवी विसर्जन इ. देवीनां वचनो लाज रहितपणे प्रेमला लबीए पिताने कह्यां जे सांजलीने उत्तम टेववालो ते पिता हर्ष पाम्यो. ॥ १३ ॥ पंच परमेष्ठी मंत्र उपर पूर्ण श्रद्धा अवाथी तेनो जाप मुखथी जरा पण तजती नथी. जे जे शास्वतां जिन मंदिरो ने तेनुं अत्यंत आनंद सहित वंदन करवा लागी; श्रने प्रत्याख्यानमां अर्थात् विरतिपणामां पण चुक कोविना प्रवत्र्तवा लागी. ॥ १४ ॥ जावी तिहां तेहवे श्रावी एदवे जोगणी रे लो, वाय मधुरी वीणा लो ॥ज॥ कुंवरी ते तेडी नेमी विनतीए घणी रे लो, निसुण्यां स्वर तसजीणां लो॥ज॥१५॥ कोण देशथी श्रावी कहे समजावी मुजने रे लो, एम नृप पुत्री पुढे लो,ज॥ पूरव दिशे रहुं बुं सत्य कहुं बुं तुजने लो, ताहरे कारण शुं लो॥ ॥१६॥ अर्थ ॥ नवितव्यताना योगे एवा समयमा एक योगिनी ते स्थले भावी चडी. ते अत्यंत मीठीवीणा वगाडती हती. कुंवरीए तेणीने स्नेहथी तेडावी विनंति करी अने तेणीनी पासे वीणाना सुंदर जीणा स्वरनो आनंद लीधो. ॥ १५॥ राजकुंवरीए ते योगिनीने पुब्यु के तमे क्या देशश्री आव्यांगे ते खुलासाथी कहो. योगिनीए कह्यु के हुं पूर्व दिशीमा रहुं नु ते वात सत्य बे. परंतु ते वात पुग्वानुं तमारे शुं कारण ? ॥१६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ तृतीय उखास. कनक वरणी रूपे घरणी रूमी ए योगिणी रे लो, वैरागे चित्त नीनो लो, ॥ न ॥ चीवररंगी बुद्धिचंगी सुंदर मुखी जोगिणी रे लो, गावे चंद नगीनो लो ॥ ज० ॥ १७ ॥ कोण तिहां राजा गरीब निवाजा कहो खरी रे लो, योगण ताम पयंपे लो ॥ ज०॥ तिहां चंद नरेसर काया केसर जाकरी रे लो, जेदथी थरियण कंपे लो ॥ न० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ सुवर्ण जेवी कान्तिवाली, सुंदर वेषने धारण करेली, वैराग्यश्री अंतःकरणमां जिंजायेली, रंगित वस्त्रवाली, मनोहर बुद्धिवाली, सुंदर मुखवाली, ज्ञान रसनी जोक्ता एवीते योगिनी चंद नपतिनां गीत गाती हती. ॥ १७ ॥ हे योगिनी ! ते देशमां गरीबोर्नु आश्रयस्थान एवो कयो राजा ? खरी वात कहो. ते सांजली योगिनीए कह्यु के केशरना जेवी जेना शरीरनी मनोहर कान्ति ले अने जेनाथी - स्मनो ध्रुजे वे एवो ते देशमां चंद नामनो राजा . ॥ १॥ गाजं यश तेहनो खाजं एहनो टुकमो रे लो, मुजने प्राणथी प्यारो लो ॥ ज० ॥ कीधो तस माते को वाते कुकमो रे लो, मुक्यो में तव न्यारो लो ॥ ज० ॥ १५ ॥ तिहां हुं सुखथी तेदना कुःखथी निसरी रे लो, एम हुँ तीरथ माटे लो ॥ ज० ॥ चंद सरीखो पुरुषन निरख्यो को फिरी रे लो, गती विरहे फाटे लो ॥ ज० ॥ २० ॥ अर्थ ॥ हुँ तेना यशनुज गायन करूं . तेनुंज अन्नखालं . ते मने प्राण करतांपण वधारे वहालो जे. तेनी उरमान माताए तेने कोश्क कारणथी कुकडो बनाव्यो वे. तेम अवाश्री में तेने तजी दीधो ले ॥ १५॥ त्यां दुं सुखथी रेहेलीहती; परंतु या तेनुं दुःख लागवाथी हुँ तीर्थयात्रा माटे निकली पमी इं. चंद राजा समान बीजो कोश् पुरुष फरी अत्यार सुधी देखवामां आव्यो नथी. तेना वियोगश्री मारूं अंतःकरण चिराइ जाय .॥२०॥ स्वामि नामे पामी थानंद प्रेमला रे लो, चाली श्रबधु चेली लो ॥ ज० ॥ ताते पण जाण। योगीणी वाणी अटकली रे लो, कन्या जाणी चित्रावेली लो ॥ ज० ॥१॥ ताते कह्यु साची हुश्दीकरी रे लो, फलशे धर्मनो वेलो लो॥ न ॥ परण्यो ए पटंतर निपट पुरंतर देशांतरी रे लो, ए तो मेलो दोहिलो ॥ ज० ॥ २५ ॥ अर्थ ।। प्रेमला लबी पोताना प्राणनायतुं नाम सांजलताज हर्ष पामी अने ते योगिनीने साथे लश् पोताना पितापासे श्रावी. मकरध्वज राजाए पण योगिनीनी वात सांजली खरोमर्म जाणी लीधो अने प्रेमला खलीने कडं के हे पुत्री तुं चित्रावेली समान बे. ॥२१॥ पिताए कह्यं के हे पुत्री तारी जे याचना हती ते साची गरी अने तारी आराधनाथी धर्म फलीभूत थशे. तारी साथे गुप्त नेदश्री परणनार देशांतरनो रेहेनार ए महा कुशल पुरुष अने तेनो मेलाप अवो पण बहुज मुस्केल . ॥ २२ ॥ धीरजतुं धरजे परहा करजे श्रांमला रे लो, दीए एम जनक दिला सा लो ॥ ज० ॥ निगमे एम दिहा पियु पियु जहा प्रेमला रे लो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. धरती प्रीतम आशा लो ॥ ज० ॥ २३ ॥ चंद नृपतिनो संबंध हवे सांज रेलो, कधी जे वात विमाते लो॥ ज० ॥ सुख दुःख देखी भूलो मत कोइ या फलो रे लो, जोर लिखितनी वाते लो ||०||२४| अर्थ | प्रेमला लहीने तेनो पिता दिलासा आप कहेबे के हे पुत्री तुं धैर्य धारण कराने मनमां आता मला दूर करजे. पितानां वचनथी प्रेमला लबी जीजना अग्रजाग उपर पतिनुं स्मरण राखती दिवसो निर्गमन करे बेखने पतिना मेलापनी श्राशा धारण करी रही बे. ॥ २३ ॥ कविराज कबे के हवे चंदराजानी शी दशा तेनी उरमान माताए करी तेनो विस्तारथी हेवाल कहुं हुं ते सांजलजो. श्रा जगतमां सुखाने दुःख प्राणीने प्राप्त थतां जोइ कोइ मूलमां पडशो नहीं छाने ज्यां त्यां फां फां मारशो नहीं. सर्व कर्माधीन बे तेनी पासे कोइनुं जोर चालतुं नथी. ॥ २४ ॥ एद कथा श्रोताने ज्ञान प्रकाशनीरे लो, मूरखे निसुणी निगमी लो ॥ ज० ॥ ख मोहन विजये त्रीजा उल्लासनी रे लो, सुंदर ढाल ए बारमी लो॥ ज०॥१५॥ अर्थ | वार्ता श्रोताउने ज्ञान प्राप्त करावनारी के अने तेमां जे मूर्ख हशे तेतो सांजलीने ग्रहण नहीं करता गुमाव देशे. मोहन विजयजी महाराजे त्रीजा उल्लासनी सुंदर बारमी ढाल उपर प्रमाणे कही. ॥ दोहा ॥ कुर्कचंद या पी, थयो एक मास व्यतीत ॥ नकरे प्रगट गुणावली, सासु पीतल प्रीत ॥ १ ॥ श्राजा नगरीना जन सकल, विना नृपति कलाय ॥ जइ प्रधानने विनव्युं, छाम नेटावो राय ॥ २ ॥ अर्थ ॥ चंद राजाने कुकडो बनाव्याने एकमास वीती गयाबतां गुणावली राणी ते वात कोइनी पासे जाहेर करती नही. ते जाणती हती के सासुनी प्रीति खोटी बे ॥ १ ॥ आजा नगरीनी सघली प्रजाने न देखवाथी कलावा मांडी तेथी तेम प्रधानने जइ विनंति करीके चंदमहाराजानो श्रमने मेलाप करावो. जो नृप निरखावो नही, तुमे आज सुविशेष ॥ तो तुमे श्रमने शीख द्यो, वसशुं जइ विदेश ॥ ३ ॥ दया विदुषो धर्म जेम, कुलविण नर जवजे ॥ दंती दंत विना यथा, नृपविण नगरी तेम ॥ ४ ॥ १६५ अर्थ ॥ जो राजा साहेबनो मेलाप जेज मने सारी रीते करावशो नहीं तो मे विनंति क एबी ए के श्रमने अहींथी जवानी रजा श्रापो. मे बीजा देशमां जई रहेशुं. ॥ ३ ॥ जेम दयाविनानो धर्म शोजतो नथी, जेम उत्तम कुलविनानो मनुष्यनो जव शोजतो नथी, जेम दंतुशल विना हाथी शोतो नथी, तेम राजाविना नगरी शोजती नथी. ॥ ४ ॥ राजा राज्य प्रजा सुखी, एह रीति सर्वत्र ॥ वनमांहे स्वामीविना, परवर एकत्र ॥ ५ ॥ सचित्र कहेरे सहोदरो में पण नृपति न दी ॥ मुज पण हवी कल्पना, हैडामाही पश् ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ राजा राज्यासन उपर दोय त्यारेज प्रजा सुखी होय बे. ए रीति सर्वत्र बे. तेथी जो श्रमारो स्वामी देखवामां नहीं श्रावेतो मे सर्वे वनमां एकटा जइ रेहेवानो विचार कर्यो बे. ॥ ५ ॥ प्रधाने कां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ तृतीय उल्हास. के हे जाल में पण राजाने घणा वखत श्रया दीग नथी तेथी तमे जेम धारोगे तेवी धारणा मारा अंतःकरणमां पण अश् रही .॥६॥ कहीश विचारी एहनो, तमने सरवे नेद ॥ नगरी मांहि सुखे रहो, कोश्न करशो खेद ॥७॥ सनमानी सचिवे प्रजा, पहोता सहु श्रागार ॥ वीरमतीने मंत्रीए, कह्यो प्रजा अधिकार ॥ ७॥ अर्थ ॥ ते संबंधी विचार करी तथा तपास करी जे वात जाणवामां आवशे तेनो मर्म तमने हुँ जणावीश. तमे नगरमां सुखे रहो. कोइ खेद करशो नही. ॥ ७ ॥ प्रधाने प्रजामंझलने विवेक युक्त समजावी सन्मान साथे विदाय कर्याबाद सहु पोत पोताने घेर गया. त्यार पनी वीरमतीने राणीने प्रधाने प्रजामंगखनो सर्व हेवाल जणान्यो. ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १३ मी॥ ॥ राग बिहावडो॥ उरो उरो रे गिरधारी उरो रे, तारा पगनोरे समारू तोरो रे ॥ ए देशी॥ तेह मंत्री माता जणी कहे, एम नूपति बानो केम रहे ॥ श्रावी मुजने कहे प्रजा, श्रमने वेलासर द्यो रजा ॥१॥ शाने राख्यो तमे नृप संग्रही, ए तो वात कां वारू नही ॥रीस चमतो तमे द्यो गाली, पण नकरोमति तमेस्त्रीवाली॥२॥ अर्थ ॥ मंत्रीए श्रावीने वीरमतीने कडं के हे राजमाता हवे राजाजी गाना केवीरीते रहीशकशे? प्रजातो मने वारंवार आवीने कहे जे के अमने विदेश जवानी जलदी रजा आपो ॥१॥ तमे राजाजीने कबजे राख्याने ए वात कां सारी लागती नथी. तमने जो रीस चडे तो सुखेथी मने गालो देवा मांडजो, परंतु आवी स्त्री बुद्धि करो नहीं. स्त्रीनी मति पानीए एवी कहेवत साची करो नही. ॥२॥ नित्य प्रत्ये पुरजनने शुं नांखु, जेम तेम करी तेमने हुं राखं ॥ मास थयो एम एक घणो, तोये पार न पाम्यो हुँ तुम तणो ॥३॥ सहु लोकने मन संशय थयो, नृपचंद न दिसे कहां गयो । नृप विण राज विधुंसला, ते तो ठगले उखल बे मुशला ॥४॥ अर्थ ॥ नागरिक लोको हमेशां श्रावी मने पुण्या करे, तेउने हुँ शुं जवाब दलं ? तेउने महा महेनते समजावीने राखुं बु. लोकोने धीरज श्रापता एक मास वीती गयो परंतु हुं तमारा अंतःकरणनो कां पार पामी शकतो नथी. ॥३॥ सर्व लोकना मनमां एवी शंका अश्छे के राजाजी देखाता नश्री तेथी क्यां गया हशे. लोको कहने के राजा विनानी राज्यगादी तेतो खाली खांडणीयामां बे सांबेला राखवाजेवू . ॥॥ तमे मानो अथवा नवि मानो, तमे चंदने राख्यो सही बानो ॥ बेग तमे बो मोटी गादी, घणी जावा द्यो बोकरवादी ॥५॥ जाण्यो कारण लोक अशातानो, पण मन नवि नेद्यो विमातानो॥ मंत्रीए कह्यु दे तानो, पण न चडे पावश्ए पानो ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ तमे मानो के न मानो पण लोको कहे के चंदराजाने तमे गुप्त राख्यो . तमे मोटा राज्यासने घडी बेगंडगे पण तेम करवं ते नोकरवादी जेवू माटे ते बहु सारूं नथी. ॥ ५॥ वीरमतीए लोकने जे अशाता ती हती तेनुं सर्व कारण जाण्युं परंतु तेणीनु मन लेशमात्र पलट्युं नही. मंत्रीए चानक लागे तेवां घणां वचनो कह्यां परंतु पावैयाने जेम पानो चडे नहीं तेम तेने पण कां असर नही. ॥६॥ कहे वीरमती सुणरे मंत्री, में तो चंद नथी राख्यो यंत्री ॥ वांक ए डे पण सवि तारो, केम अवगुण गाय तुं मारो ॥७॥हण्यो चंदजे हतो मुज प्यारो, तुज सरखो नहीं कोई हत्यारो ॥ कहेवो थ श्राव्यो माह्यो, वली शुं करवा तुं उमाह्यो ॥ ७॥ अर्थ ॥ वीरमतीए कडंके हे मंत्री में कां चंदराजाने कबजे राख्यो नथी. ते बाबतमा सघलो तारो वांक. तुं केम मारा अवगुण ज्यां त्यां गायने? ॥ ७॥ मारा वहाला चंदने तेंज हण्यो. तारो जेवो को हत्यारो (पातकी ) नश्री. वली मारी आगल श्रावी केवो डाह्यो अश्ने वातो करे अने कहेके हवे तुं शुं करवा धारे. ॥७॥ बहु दीन थया वाततो श्रमे लाधी पण राखी में ताहरी बाधी ॥ हूं लुमीतो तुं श्यो रूडो, एक उरमुख बीजो कूडो॥ ए॥ जो श्रव गुण गाश्श तुं मारो, उखेलो उखेलीश हुं तारो ॥ चुए वादो वादे कहेवा, कोना नलीथाने कोना नेवा ॥१०॥ अर्थ ॥ मारा जाणवामां श्रा वात बहु दिवस अया श्रावी, परंतु तारी लाज जालववा में ते बगनीवात राखीने. तो तुंमीवं परंतु तुं शुं सारो ने ? एकनुं मोढुं जेवा जोगनथी अने बीजो महाकपटी, एवो घाट थयो .॥ ए॥ जो तुं मारा अवगुण गाइश तो हुँ तारे माटे बोलवामां कचाश राखीश नही. बहु वाद विवाद करी लवारामां सारनश्री. कोश्नां नेवां चुवेतो कोश्नां नली चुवे ज्यां त्यां विप्रो. ॥१॥ कहे मंत्रीमाता एम कां नाखो, थया घरडा पण समज न राखो॥ में नृप हण्यो तेहनो को साखी, एम जीवती न गला ए मांखी ॥ ११॥ बाइ बोल विचारी ए शुं बोल्या, केम वाहोबो एम श्रण तोल्या ॥ काढशो खोटे काढण केहो, तमे कांश्क प्रनुथी तो बीहो ॥ १२॥ अर्थ ॥ मंत्रीए कह्युके हे राजमाता आवु शुं बोलोगे? हवे वृक्ष थयागे, कांश समजण राखो तो ठीक. में राजाजीने मारीनांख्या एवातमां को सादी हशे के नही! शु जीवती मांखीतो गलाशे नही ? ॥११॥ हे माताजी ! आम वगर विचारे शुं बोलि नांखोगे. आतो तोड्याविना फेंकवा मांड्या जेवू करोगे. खोटो वांक काढी शुं लान काढशो. कांश परमेश्वरनीतो बीक राखो. ॥ १५॥ एह शीखनी वात कह्या माटे, तमे की, खूण घणुं श्राटे ॥ जाएयु में तमे थाशो राजी, पण तमे खेच्या उलटी बाजी ॥ १३॥ माता एतो रूमी नही नासा, एम कीजे नही नानी हासा ॥ हुं नृप हणुं केने बहाने, बार बोलोए एवं जे को माने ॥ १४ ॥ For Personal and Private Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० तृतीय उवास. ___ अर्थ ॥ में तो तमने जरा शिखामणनी वात करी तो तमे तो सामुं लोट करतां वधारे खूण लववा जेवं कर्यु. हुं तो एम जाणतो हतो के मारी वातथी तमे राजी श्रशो परंतु तमे तो अवलीज बाजी खेखवा मांमी. ॥ १३ ॥ हे राजमाता! श्रावू बोलवू ते सारू कहेवायनही. वली हे नानीजी! आवी मस्करी पण होय नही. मने राजाजीने मारवान शुं कारण ? बाइ एवं बोलोके कोई साचुं माने. ॥१४॥ कहे वीरमती मंत्री तेमी, कारे चंदनी वात ते श्रावी बेडी ॥ एक उघामो जो एक ढांको, होवे वांके लाकम वेज वांको ॥ १५॥ हूं तो कहुं बुं वात तने घरनी, नृप साधे विद्या विद्याधरनी ॥ नाम ए चंद तणुं नवी लीजे, को श्रापण नवली कला कीजे ॥ १६॥ अर्थ ॥ वीरमतीए मंत्रीने खानगीरीते बोलावी कह्यु के तमने चंदनी वात श्रावीरीते बेडवामां शुं लान. एकनुं उघाडतां बीजानुं ढंकाशे नहीं. वली वांके लाकमे तो वांको वेज पडे. ॥ १५॥ हुँ तमने एक गनी वात कहुं बु. राजातो विद्याधरनी विद्या साधे . टुंकामां कडं बुं के हवे चंदनुं नाम लेवानी जरूर नथी. कांइक नवीन रचना हवे करवानी जरूर .॥१६॥ मुज मंत्री तुं तेम हुँ राजा, वजडावो जश्ने जशवाजा ॥ जो मुज कडं चित्त नवि धर्यु, जाणीश तो तुं तारूं कयुं ॥ १७॥ जीहां नू पतिथ हुँ सन्मुखी, तिहां राजा राज्य प्रजा सुखी ॥ कहे मंत्री धरीने मन शाता, ए में तो प्रमाण कयुं माता ॥ १७॥ अर्थ ॥ तमे मारा मंत्रीने हुं तमारी राजा एवो उदघोषणानो डंको वगमावो. आ मारी वातजो बराबर चित्तमा राखी अमल करशो नहीं तो तमे जे करशो तेनो पाको पस्तावो तमने अशे. ॥ १७ ॥ ज्यां दूं प्रगटरीते राजा अश्श त्यां राजा अने प्रजा बंने सुखीशे. प्रधाने उंडो विचारकरी मनमां शांति धरीने जवाब आप्यो के हे माता में आपनी वात अंगीकार करी. ॥१७॥ थर राजी वीरमती राणी, ए कही तेरमी ढाल गुण खाणी ॥ त्रीजा उल्हास तणी वारू , एह मोहने श्रोताजन सारू ॥१५॥ अर्थ ॥ प्रधाननां वचनश्री वीरमती राणी खुशीइ. गुखनी खाणरूप त्रीजा उल्लासनी तेरमी ढाल मोहनविजयजी महाराजे श्रोताउने सारू अति मनोहर करी ॥ १५॥ ॥दोहा॥ एक वात कर तुं हवे, पमह जश् वजडाव ॥ थर आजानगरी तणी, वीरमती नर राव ॥१॥ जो एहनी आणा प्रजा, नही माने एणी वार ॥ ते जाणशे तेहनुं कर्यु, ते नहीं नगरी मोकार ॥२॥ अर्थ ॥ वीरमतीए प्रधानने कयुंके हे मंत्री तमे हवे एक काम करो. नगरमा जइ ढंढेरो पिटावोके आनागरीना राजा हवेथी वीरमती थयावे.॥१॥ वली ए पण ढंढेरो पिटावजो के लोको श्रा वख तथीज तेमनी आज्ञा शिर नहीं चढावे तो तेनुं फल ते पुरीरीते लोगवशे एटलुंज नही पण तेने नगर बहार करवामां आवशे. ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास.. १६ए थाना जस अलखामणी, यमपुर वहन जास ॥ ते अनमी था सुखे, एम कहो वचन प्रकाश ॥३॥ मंत्रिए फेर्यो पडह, वीरमती श्रादेश ॥ नगरी जन निसुणी कहे, अश् अश् अयं विशेष ॥४॥ अर्थ ॥ वली एवी रीते उद्घोषणा करावोके जेने बालानगरी अलखामणी लागती होय अने यमपुरी वहाली लागतीहोय ते वीरमतीने नहीं नमतां सुखी रहे, होय तो जले आडाइ करो. ॥ ३ ॥ मंत्रीए ज्यारे वीरमतीना हुकमथी श्रावो पडह वजडाव्यो त्यारे नगरनां लोको आश्चर्य पामी बोलवा लांग्याके आतो वली नारे नवा लागे. ॥४॥ नारीपति नर सांजल्या, नरपति नारिविहीन ॥ ए तो अचरिज सां जत्यु, थानामांहे नवीन ॥ ५॥ स्त्रिया राज्य नगरी थयुं, किहां नर गया विजेद ॥ पडह सुणीने सकलजन, चित्तमां पाम्या खेद ॥६॥ अर्थ ॥ पुरुषना स्वामी स्त्री होय एवं तो सांजलवामां श्राव्यु नश्री; अने तेवीरीते पुरुषना स्वामी स्त्री श्रयानु आश्चर्य तो मात्र श्राला नगरीमांज सांनट्यु.॥ ५ ॥ शुं पुरुषोनो नाशश्रयो के आ नगरीमा स्त्री राजा अयो? आवो पडहो सांजलीने नगरना सर्व लोको मनमां बहुज खेद पाम्यां. ॥६॥ वीरमतीना जयथकी, सघले कर्यु प्रमाण ॥ राज शछि एम जो गवे, राणी श्रमली माण ॥॥ वचन नलोपी को शके, शुरा कोण सामंत ॥ ते संजारे चंदने, रूट्यो जास कृतंत ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ वीरमतीना त्रासथी सर्व लोकोए मंत्रीनी उद्घोषणा मान्यकरी. हवे राणी पोताना अमलमां मस्त रहेली राज्य वैनवनो उपलोग करे . ॥ ७॥ वीरमतीनी आज्ञा कोइपण खोपी शकतुं नथी. पनी जले ते शुरवीर योधो होयके मोटो सामंत होय ! अने जे चंदराजाने कदापि याद करीदे तो तेनो तो कृतांत जे काल ते कोप्योज समजवो. ॥ ॥ ॥ढाल १५ मी॥ ॥ण पुर कंबल को न लेशे ॥ ए देशी॥ राणी मंत्री उपर हरखी, जाएयु जोडी मिली मुज सरखी ॥ जेम हुँ गाउं तेम ए वजावे, चंद एणे करी मुक्यो मावे ॥१॥ एक दिन सुमति धरीमन गगो, वीरमतीथी वाते लागो ॥बाजी तमे राज्य सुधार्यो, चंद तणो वारो विसार्यो॥२॥ अर्थ ॥ वीरमती राणी मंत्री उपर अत्यंत प्रसन्न श्रइ. तेणीए जाणी लीधुं के जेवी जोइए तेवी जोडी मली गइ . हुँ जेम गाउं बु तेमज ए वगामे . अर्थात् मारा हुकमने अनुसरतुंज कार्य करे जे. एटझुंज नहीं पण चंदराजा संबंधी वात पण उचारतो नथी. जाणे चंदने डाबो करी मुक्यो होय नही॥१॥ एक दिवस सुमति प्रधान गवको अश् वीरमती साथे वातो करवा बेरो. हे राणीजी ! तमेतो राज्यनी एवी सुधारणा करी के कोइ चंदने संजारतुंज नथी.॥२॥ २२ For Personal and Private Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० तृतीय उवास. को पमड्यु कोश्तुं न उपामे, काम तमारूं कोन बिगाडे ॥ एहवीतो कोणेश नकरी, नेला जल पीए वाघने बकरी ॥३॥ चाम तणा जो दाम चलवो, तो श्रावी नकरे कोश् दावो॥कोश्न गरे पगबुंधणजाणी,रदेशे युगे युग एह कहाण ॥४॥ अर्थ ॥ कोश्नी पमेली चीज अन्य कोश्वेतुंज नथी. वली तमारूं काम पण कोइ बगाडतुं नथी. राजातो घणा या परंतु तमारा जेवं राज्य कोर्नु नथी. इनसाफ तो एवो बे के वाघने बकरी एक आरे पाणी पीए . ॥३॥ जो तमे चामडानी नोटोकरी तेने नाणा रूपे चलावशो तोपण तमारी सामे कोश वांधो लावनारनथी. कोइ पण एवो अज्ञान नथी के तमारी सामे पगलुं जरी शके. जो तेम करशो तो जुगे जुग तमाळं नाम रहेशे. ॥४॥ नूप घणां जोया वली जोश्श, पण तुम पागल सघला पोश्श ॥ न धरो खेद युवति थया माटे, सहुने धरणीने शिर साटे ॥५॥ श्रव रजो वृद्धावस्था पामे, थ बेवड सहुने शिर नामे ॥ खरूं वृक्षपणुं त मतणुंबा, नृपति घणे जे कोट नमाश् ॥ ६॥ अर्थ ॥ में अनेक राजा जोयावे, वली जोश खरो, परंतु ते सघला तमारी पासे ढेढ जेवा लागेले. तमे स्त्री श्रयां तेथी खेद करशो नही. जाणे ते सघलाउने पृथ्वीतो शिर साटे होय . ॥ ५॥ बीजा जेट वृक्ष थइ जायचे ते सर्वे तदन वांका वली ज बीजाउने पोताना मस्तक नमावी नमे . तमारूंज वृधपणुं खरूं के जेणे घणा राजानां मस्तक नमाव्यां. ॥ ६॥ निसुणी वीरमती थ राजी, पण निगुणी मन मांहे न लाजी॥हे मंत्री सेवक तुं महारो, कथन नहीं उबंधू तहारो ॥॥ मंत्री मनमां चिंते माया, वाघ तणे वोलावे धाया ॥ पिंजरमांहि कुर्कट एडवे, सुमति मंत्रीए दीगे तेहवे ॥७॥ अर्थ ॥ प्रधाननां एवां खुशामतनां वचनो सांजली वीरमती राजी श्रइ, परंतु ते निर्गुणीने मनमां जरापण शरम आवी नही. मंत्रीने तेणीए कह्यु के हे मंत्री तमे मारा खरा सेवकलो. तमारूं वचन हुँ कदापि लोपीश नही. ॥ ७॥ मंत्री मनमां कपटश्री एवं चिंतवेठेके आपणे तो वाघनुं वोला, जे. तेवामां ते सुमति मंत्रीए पांजरामांहे कुकडाने दीगे. ॥ ७॥ बार तमे राख्यो शुं विचारी, पिंजरीए पंखी परधारी ॥ के कोई देव तमे वश कीधो, एहनो तो जोशे उत्तर दीधो ॥ए॥ बोली वीरमती को घाटे, ए मुज व हुने रमवा माटे ॥ लीधो श्रमे पंखीवेचातो, राख्यो बिचारो माहुथातो ॥ १० ॥ अर्थ ॥ हे राणीजी आ ते तमे शुं विचारकरीने आ पदीने पांजरामां पुरी राख्योजे? शुं कोई देवनेतो वश करी राख्यो नथी? आटलो तो खुलासो करवो जोशे? ॥ ए॥ वीरमती कांइक युक्तिपूर्वक विचार करी बोलीके मारी वहुने आनंद करवामाटे ए पदी राखेल. ए बिचारो बहु हेरान श्रतो हतो तेश्री तेने वेचातो लश्ने राखेल ॥ १० ॥ For Personal and Private Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १७१ राख्योढे जीवदयाने जाणी, ज्यां लगी एहनो दाणो पाणी ॥ खाधुं ए पण लेखे ल गाडे, प्रभु जजवामुज वेहेली जगाडे ॥ ११ ॥ कहे मंत्री बाइजी कदेशो, पण द फतर न चड्यो बे पैसो ॥ तुम जंडार नथी मुज बानुं, केम करी कल्पित वात ए मानुं १२ ॥ जीवदया चवाशे एम जाणीने तेने राखेलबे परंतु ज्यां सुधी तेनो दाणोपाणी आपणे त्यां हशे त्यां सुधी रहेशे. ए तो जे खायडे ते हक करेबे. परमेश्वरनं जजन करवा सवारमां रोज वेहेलां मने जगाबे ॥ ११ ॥ मंत्रीए कह्युंके हे राजमाताजी ! आप गर्म तेम ते बाबतमां कहो परंतु वेचातो लीधा बाबत एक पैसोपण चोपमे उधरेल नथी. वली आपनो खजानो माराथी जाल्योनथी. तमे जेटली क ल्पित वात कशी ते हुं केवीते मानीश ? ॥ १२ ॥ हुं घरनोतुं मुजने जाखो, मुजथी तो शुं अंतर राखो ॥ वीरमती कहे रे शुं द गजे, एहमांदी तुं कां न समजे ॥१३॥ पैसानुं शुं मुजने पुढे, ग्रहेणुं तो मुज पासे घणुं ॥ भूषण एक दइ सुप्रसिद्धो, ए कुर्कट में विक्रय लीधो ॥ १४ ॥ • ॥ हुं तो तमारो पोतानोजं. माराथी शुं बानुं राखोढो ? वीरमतीए कहुंके या तमे शुं माथा ट करोबो ? तेमां तमे कांइ समजतानथी. ॥ १३ ॥ तमे पैसा संबंधी शुं वात करोबो ? पैसानी जरूर शीबे, मारी पासे घरेणुं घणुंडे. तेमांथी एक सारो दागीनो पीने ए कुकडो में वेचातो लीधोबे ॥ १४ ॥ हनी वात न पूढीश मुजने, एकांते वारूढं तुजने ॥ बीजी वार उच्चार करीशजो, तुं पण हवो थाइश बीजो ॥ १५ ॥ मंत्री एम निसुणीने थरक्यो, उत्तर कहेवा अधर न फरक्यो | हवे शदन प्रदेशे बेठी, रूदती तेणे गुणावली दीठी ॥१६॥ अर्थ ॥ हवे ए कुकडासंबंधी वात फरीमने पुछशोनही. या एकांत तेथी तमने खास ना पांगुं हुं के जो बीजी वार ते बाबत पुढशो तो तमो पण तेना जेवा बनीजशो• ॥ १५ ॥ वीरमतीनां एवां वचनो मंत्र सांयां के तरत जते थरथरी गयो ने बीजुं वचन काढवाने तेनो होठ पण फरक्यो नही. एवामां पासेनाज जागमां बेठेली गुणावलीने तेणे रूदन करती दीवी ॥ १६ ॥ चंद प्रिया लखी अक्षर उली, मंत्री समजाव्यो थइ जोली ॥ ए कुर्कट मुज पियु सु विवेकी, एम देखाडे उंली बेकी ॥ १७ ॥ मंत्री हृदये कौतुक जास्युं, वीरमतीने पण न प्रकास्युं ॥ समजी रह्यो मंत्री मनमांदे, कां नवी धाराहे विरादे ॥ १८ ॥ | गुणावली जोलीथइने अक्षरोनी एक लींटी लखी मंत्रीने कह्युंके " एकुकमोतो मारो अत्यंत विवेकी पति " एम देखामी ने लींटी जुंसीनांखी ॥ १७ ॥ मंत्री पोताना अंतःकरणमा आश्चर्य पाम्यो; परंतु वीरमतीने तेणे कां कां नहीं. पोताना मनमांज समजी रह्यो अने आराधना के विराधना कां‍ करी नहीं वीरमतीने प्रणमी नेहे, ते मंत्री श्रव्यो निज गेहे ॥ चौदमी श्रीजा उल्लासनी जाखी, ढाल ए मोहने रस अभिलाषी ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ पबी वीरमतीने अत्यंत प्रेमपूर्वक प्रणाम करीने मंत्री पोताने घेर श्राव्यो. ए प्रमाणे त्रीजा उल्लासनी चौदमीढाल मोहनविजयजी महाराजे रसना अभिलाषीने माटे कही. ॥ १९ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय उल्लास. ॥ दोहा ॥ वीरमतीए चंदने, कीधो पक्षी वेश ॥ वात प्रसिद्ध थइ घणी, परि परि देश विदेश ॥ १ ॥ जय जय तेह विमातने, दीघो ति धिक्कार ॥ कीधो राज्यनी लालचे, सुतने विहंगाकार ॥ २ ॥ ॥ वीरमती चंदराजाने पक्षीरूपे बनावी दीधो एवी वात अनुक्रमे देश परदेशमां बहुज फेलाइ ग. ॥ १ ॥ दरेक मनुष्ये ते वीरमती उरमान माताने छत्यं धिक्कार आप्यो. लोको बोलवा लाग्याके मात्र राज्यनी लालचथी पुत्रने पक्षीरूपे बनावी दीधो ॥ २ ॥ पण सहु वीरमती जये, चसकी न शके कोय ॥ वातकरे मोटा au, घणी विमास होय ॥ ३ ॥ वीरमती निर्जय थकी, पाले १७२ राज्य खं ॥ वने केइ नम्या, पुहवी पाल प्रचंड ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ परंतु वीरमतीना जयश्री सर्व कोइ डरी गयेला होवाथी कोइ वात म्हों मांथी उचारी शकता नथी. कवत मोटानी वात करीने पावल घणो पस्तावो करवो पडेबे ॥ ३ ॥ वीरमती निर्जयने अखं पण राज्य करने तेना बलथी अनेक प्रचंक पृथ्वीपति तेलीनी पासे खावी नमवा लाग्या ॥४॥ शक्ति श्रचिती जगत्मां, वीरमतीनी जोर ॥ वक्र थको जे वक ते, कर्या पाधरा दोर ॥ ५ ॥ एवे हेमरथ एक बे, हेमालयनो नूप ॥ तेणे वीरमती तपुं, जाएयुं सयल सरूप ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ जगत्मां वीरमतीनी शक्ति अचिंत्यबे एवं फैलातां जे वांकाउंथी पण वांकाहता ते घadul सिधा करी दीधा ॥ ए ॥ एवा समयमां हिमालयनो हेमरथ नामनो एक राजाने तेणे वीरमतनुं सघलुं वृत्तान्त जाणी लीधुं ॥ ६ ॥ मान दीन ते थयो हतो, चंद थकी बहुवार ॥ ते खाना लेवा जी, थयो जूप हुंशीयार ॥ ७ ॥ लेख लखीने पाठव्यो, वीरम तीने डूत ॥ रंडे श्राव्यो जाणजे, बेमयो जे रजपुत ॥ ८ ॥ अर्थ ॥ ते हेमरथराजा, चंद राजाथी बहु वार पराजव पाम्यो हतो. तेथी आ समये श्रानगरीनुं राज्य लेवा ते राजा तैयार थयो. ॥ ७ ॥ ते हेमरथ राजाए एक पत्र लखी दूतनीसाथे ते पत्र वीरमती उपर मोकल्यो. तेमां तेणे जणाव्युंके या क्षत्रियने जे वारंवार बेड्यो हतो तेथी हे रंडा तुं जाण जे के हुं वाने तैयार थोडं ॥ ८ ॥ ॥ ढाल १५ मी ॥ ॥ यत्तनी देशी ॥ आव्यो दूत घी धरतीने, लेख दीधो वीरमतीने ॥ वांचीने जोयुं राणी, नख शिख लगे रोष जराणी ॥ १ ॥ रे रे छूत कहुं शुं तुजने, तुजने डुहवे खामी मुजने ॥ जइ रंगापुत्रने कहेजे, होय माणस तो निरवहीजे ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १७३ अर्थ ॥ ते दूते पृथ्वीने उलंगतो आजानगरीए आवी वीरमतीने कागल आप्यो. राणीए वांची जो तांज तेना शरीरमा नख शिख क्रोध व्याप्यो. ॥१॥ हे दूत हुँ तने वधारे शुं कहुँ, तने उहवामां मने खोट लागे. परंतु ए रांझना जायाने जश्ने तुं कहेके जो माणस होतो बोलेलं पालजे. ॥२॥ धाव्यो होय समानी बीटमीए, तो तुं श्रावजे मुज मीटमीए॥जो तुं दात्र पुत्र कहावे, जो कहेवो वेहेलो तुं श्रावे॥३॥ लोह शेर जो तुं केडे बांधे, जो केवी अणी थाणी सांधे ॥ आज काल गयो तुं हार्यो, मुंडा ते दिवस तेविसार्यो॥४॥ अर्थ ॥ जो तुं पोतानी मानी बीटडीए धाव्यो होतो मारी सामो मीट मांडवा आवी पहोंचजे. वली हुँ जोगबु, के जो तुं क्षत्रियनो बच्चो नगे तो केटलो उतावलो मारी सामे खडवा श्रावे? ॥३॥ जो तुं शमशेर खरे खरी तारी केड उपर बांधतो दोश्श तो ढुं जोशके आणी वखते तुं केवोटकीशकेले ? हजु हमणांज हारखाइ गयो हतो. जूडा ते दिवसने पण नूलीगयो ? ॥४॥ ते हुँ वीरमती नवी दीजी, त्यां लगी रणवातो मीठी ॥ तुंने थानानो शो श्र जरो, लेउ हेमालय तो मुजरो ॥५॥ कीमीने पांख जे श्रावी, नही वारू कहूं समजावी ॥ शो जोरो तुज कपटीनो, तुं तो मारे एक चपटीनो ॥६॥ अर्थ ॥ हजु ज्यां सुधी वीरमतीने दीतीनथी त्यां सुधीज रण संग्रामनी वातो मीठी लागशे. तने आनानगरी लेवाना जे कोड के तेतो पुरा पडता पडशे, परंतु हिमालय जो लश् ललं तो खुबी भानजे. ॥ ५॥ कीडीने जे पांखो आवेने ते सारा माटे नही पण मरवा माटे एम जाणजे. तुं कपटीगे. तारूं मारी पास का जोरनथी. मात्र एक चपटीमां चोलाइ जश्श. ॥ ६॥ एम कहीने पुत विसर्यो, तेणे जइ निज नूपने वया ॥ जो मानो वचन मुज स्वामी, मत बेमो नारी निकामी॥७॥ नूपे दूत वचन अवहेथ्यो, निज प्रबल महादल मेट्यो आगल कीधा मद शुंढाला, जाणे टुंक हेमाचल वाला ॥॥ अर्थ ॥ वीरमतीए एवां सख्त वचनो कहीने दूतने विदायको. दूते जश्ने पोताना राजाने कडं के हे महाराज! जो मारूं वचन मानो तो विनाकारणे ए वीरमतीने बेडवामां सारनथी.॥३॥ हेमरथ राजाए दतनां वचननो तिरस्कारकरी पोतानुं महाबलवंत लस्कर एक करवामांडयु. महामदोन्मत्त हाथी आगल कर्या. ते जाणे साक्षात् हिमालय पर्वतनी टुंक जेवा दिसवा लाग्या. ॥ ७॥ हलके हयवर पाखरीया, जाणे रंगे चढीया दरीया॥हेमरथ सेना लश् चाल्यो, रहे शूरो केम करी काल्यो ।ए॥ निशाने देतो गेडी, कीधी थाना पुरीने नेडी ॥ फरहरीयां पंचरंगनेजां, जाणे असी सरमे अंगरेजा ॥ १० ॥ अर्थ ॥ वली श्रेष्ठ अश्वो सुंदर पाखरेला हेषारव करवा लाग्या. ते एवा शोलता हताके जाणे जरतीनां मोजाथी दरियो उबलतो होयनी. ए प्रमाणे मोटुं सैन्य लश् हेमरथ राजा लडाइ करवा चाट्यो. शुं शुर वीर ते काट्यो रहे ? ॥ ए॥ ते निशान टांपतो अने डंके घा देतो बालानगरी समीपे आवी पहोंच्यो. तेना लस्करमां पंचरंगी वावटा फरकता हता ते जाणे तीर अने तरवारना अंगरेजा होय नहि! तेवा शोजता हता.॥१०॥ For Personal and Private Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ तृतीय उल्हास. कहे हेमरथ एहवे जोमे, लेडं श्राजापुरी चमे घोडे ॥ शुं जीतकुंडे अबलानु, मुजथी बल नहीं सबलानुं ॥ ११॥ नारीमें दीनी शी तागा, जे एहने नूपति पाय लागा ॥ एहवे वीरमतीने जणावे, हेमरथजे चीने थावे ॥१२॥ अर्थ ॥ पोतानी साथेना सैनिकोने हेमरथ राजा कहेवा लाग्यो के था जोत जोतामां चडे घोडे श्रा नापुरी लश् ल बुं ते जो जो. महा बलवाननुं बल पण मारी आगल तृणमात्रछे ते या स्त्रीने जितवामां तो शुं मोटी वात ? ॥ ११॥ ए वीरमतीने में दीठी. एमां ते शुं ताकात के तेने बीजा राजा जइ पगे लाग्या. पनी वीरमतीने खबर आप्याके हेमरथ राजा तमारी उपर लस्कर लश्ने चडी श्राव्यो १५ राणीए मनमां नाण्यो,श्राव्यो ते नाव्यो करी जाण्यो।हां कटक न थावे केहनो, राणी श्रवण न हु उन्हो ॥ १३॥ तव सुमति सचिव तेडाव्यो, कहे राणी व चन तस जाव्यो ॥ एद सामी हुँ झुंजालं, लगतां एह हुं तो लजाउं ॥१४॥ अर्थ ॥ राणीए ते संदेशाने ध्यानमां पण लीधोनहीं. जाणे हेमरथ राजा आव्योज नयी एवो देखाव कों के तेणीनुं म्होंतोशुं पण कान पण गरम न थयो? ॥१३॥ पनी वीरमतीए सुमति प्रधानने बोलावी तेने मीगशथी वचनो कहेवा लागी. हे मंत्री! तेना सामु लडवा जवू ते मने नीकलागतुं. एथी एवा तकवादी सामे. लडतां मने शरम लागे . ॥ १४ ॥ तुजवांसे हाथ माहारो, बोलउपर थाशे ताहारो ॥ लेजे एहने जर घेरी,सर जेम नवी सांधे फेरो ॥ १५ ॥ साधीश सुप्रसन्न थाशे, अरीयण श्रटारणे जाशे ॥ ये डंको थश्ने निःशंको, तुज वालन होजो वंको ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ ढुं तमारो वांसो थाबडीने कई K के तमो तेने जीती लेशो. तमे लस्कर लइ जश्ने तेने एवी रीते घेरी यो के तेनो फरी सरवालोज संधाय नही अर्थात् तेना दलमां नंगाण पडे. ॥ १५ ॥ हुँ देवन श्राराधन करीश जेथी ते प्रसन्न थतांज पुस्मनोमां नंगाणपाडशे. तेथी हवे निःशंक पर डंके घा द्यो. तमारो वालपण वांको अवानो नयी एवो मारो आशीर्वाद. ॥ १६॥ मंत्री राणीने श्रादेशे, अरी नांजीने जश लेशे ॥ नाखी पंदरमीत्रीजे उबासे, मोहन एढाल प्रकाशे ॥ १७ ॥ __ अर्थ ॥ राणीना हुकमश्री मंत्रीए शत्रु उपर तैयारी करवा मांडी. ते शत्रुने नगाडशे अने कीर्ति संपादन करशे. त्रीजा नवासनी पंदरमी ढाल मोहनविजयजीए कही. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ वीरमती वचने सचिव, तेडाव्या सामंत ॥ श्राजा श्राव्यो हेम रथ, सेना लश् अनंत ॥१॥ लेशे नगरी थापणी, कहेशे सहु निरधार ॥ को माये नवि जण्यो, श्राजा राखण हार ॥२॥ अर्थ ॥ वीरमतीना हुकमथी मंत्रीए सर्व सामंतोने तेडावीने कडं के हेमरथ राजा घणुं लस्कर सश्ने आनानगरी उपर ची आव्यो . ॥१॥ चंद राजा अविद्यमान बते जो ते आलानगरी जीती लेशेतो सर्वे निश्चय पूर्वक कहेशेके कोर एवो माश्नो जायो शुरवीर न निकट्योके जेणे थानागरीनु संरक्षण कर्यु For Personal and Private Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ चंदराजानो रास. तुम सरीखा शुराबते, जो नगरी नेलाय ॥ तो दिनकर केम उ गमे, मेहेणुं ए रही जाय ॥३॥ वीरमती मुख साहमु, श्हां मत निरखो कोय ॥ राखो कुल क्रम थापणुं, जेमजग इजत होय ॥४॥ अर्थ ॥ हे शुरवीर योधा तमारा सरखा बलवान उतां जो बालानगरी शत्रु ले तो सूर्य केवीरीते पूर्वमां जगशे ? एतो आखा जन्मारानुं मेणुं रहीजशे.॥३॥ हमणां वीरमती तरफ जोवानो अवसर नथी. सदु पोत पोताना कुलनी रीत तरफ नजर करो जेथी जगत्मां कीर्ति वधे.॥४॥ मानशे मुजरो तुम तणो, चंद एह महाराय ॥ कुर्कट तो अ॒थयुं, राज अंश नवि जाय ॥५॥ मंत्री वचने कहे सहु, करी नई मुज दंग ॥ करशे चंद प्रताप रवि, हिमने खंमो खंग ॥६॥ अर्थ ॥ चंद महाराज तमारी स्वामी चक्ति मनमां अवस्य मानशे. ते कुकडा अयाने तेथी | अयुं ? शुं तेनामां राज्य अंश ते गयुंने ? अर्थात् गयुं नथी. ॥ ५॥ मंत्रीनां एवां वचनो सांजलीने सर्वे सामंतो ऊंचा बाहु दंड करी कहेवा लाग्याके हे प्रधानजी ! चंद राजारूपी सूर्यनो प्रताप हेमरथरूपि हिमना खंडे खंड करी नांखशे; अर्थात् चंदराजारूपी सूर्यना तेजश्री हेमरथ राजा रूपी बरफ गलीजशे. ॥६॥ जेणे चंद नरेशन, खाधं होशे खुण ॥ ते तो एहवे अवसरे, टालो करशे फूण ॥ ७ ॥ मंत्री निज सेनाकरी, केशरशुं गर काव ॥ हेमरथनी सामो थयो, देश निसाने घाव ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ जेणे चंद राजानुं निमक खाधुं हशे ते आवे अवसरे निमक हराम केम अशे ? ॥ ७॥ पनी मंत्रए पोतानी सैन्यना सैनिकोने केशरीया करावी डंके घा दक्ष हेमरथनी सामा धसारो को. ॥ ७॥ ॥ ढाल १६ मी॥ ॥ कडखानी देशी॥ प्रबल दल युगल किल सबल हुथा अचल, घरणी धरणी तणी बंमी माया ॥ अनशना जाण पंचानना तनमना अरूण हुथा घणा राणी जाया ॥ प्र॥ ॥१॥ सिंधुडे राग शरणाचं टहकीजं, बंदीए सरस गाया पवामा ॥ चारणे चर चीया बिरूद उहावडा, मंमीया निसुणी योधे अखाडा ॥ प्र० ॥२॥ अर्थ ॥ बने बाजुना अत्यंत बलवाला लस्करो सामसामा अचलपणे पृथ्वी अंगे स्त्रीनी ममताबोडीने बडवाने सज श्रयां. वली केटलाएक राजपुत्रो अत्यंत दुधा युक्त श्रयेला केशरी सिंहनीजेम तनमनाट करतां लाल हिंगलोक जेवा थइ लडवा लाग्या.॥१॥ लडाइमां शूर उत्पन्न करे तेवा सिंधुडा रागथी शरणार्छ वागवामांडी. नाटोए शूर चडे तेवां कवित्तो गावा मांड्या. चारणोए विरूदावली वाला मुहा अने सोरग कहेवा मांड्या. ते सांजलीने अखाडामां मह्यो युद्ध करे तेवो रणसंग्राम शरु अयो. ॥२॥ जणण जंकार नारवे केश थया, कीर्ति कमलाकर ग्रहण रागी ॥ सुकविनी वात अखीयात करवाजणी, सुजटनी नयन ब्रह्मांड लागी ॥प्र० ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय उदास. थापडे कंद एकेक हयवर तणा, मुंबवल घाली संग्राम रसीया ॥ नाल आज क्षत्री तणा पारखां, केड कसीया तणा दे तसीया ॥ प्र॥४॥ अर्थ ॥ ज्यारे लावाजिंत्रथी कार शब्दोनो नाद प्रगट अयो त्यारे कइक योजाए कीर्तिरूपी लक्ष्मीने ग्रहण करवा उजमाल अया. वली केटलाएक सुजटो उत्तम कविजनी कविताने अमर करवा सारू ब्रह्मांडमांज मात्र दृष्टि लगामी युधमा मच्या रह्या. ॥३॥ केटलाएक योद्धा पोताना उत्तम अश्वोनी कांधने धाबडता हवा. केटलाएक मुंब उपर ताव देता संग्रामनो रस लेता हता. वली केटलाएक एम बोलताहताके लाल आजे देत्रियोनी परीक्षानो वखत श्राव्यो. जे केड कसीने तैयार थया गे ते पोतानुं स्वरूप तो बतावो. ॥४॥ निसुणी निशान अवसान चूको रखे, खेलशुरा तणो तो लडाइ ॥ लोहजे लांकधी वांक धरी बांधीए, श्राज तस लाज रहेतो वमा ॥प्र० ॥५॥ शूर पुरातणो तीर्थ रण नूमिका, शस्त्रधारा जीहां तीर बाबा ॥ एक मुकी करी अवर तीरथ जणी, धरणी धरता रखे चरण पाबा ॥ प्र॥६॥ अर्थ ॥ शूरनां वाजां सांजलीने निशान ताकवाना अवसरने चुकशो नही. शुर वीर लोकोनी रमत ते लडाइज बे. वांकी केड उपरजे मरोडवाली तलवार बांधीए बीए तेनी जो आजे लाज रहे तोज वडाइ समजवी. ॥ ५ ॥ जे संपूर्ण शुरवीरोने तेमनुं तीर्थतो रणसंग्रामनी नुमिकाज. ज्यां शस्त्रोनी तीक्ष्णधारा रूपी निर्मल नीर वहे माटे तेज तीर्थने गेडी बीजा तीर्थमां गमन करवाने हे ! योघाउँ रखे तमारा पगलां पृथ्वीउपर पागं करो.॥६॥ खुणसधरी फणसथी देह पोरस चड्यो, वीर वमवीर हांको वजामी ॥ बेल बंगाल मराल बेहु दलतणे, मुकीया तुरंग वागो उपामी ॥ प्र॥ ७॥ रज चड्यो गयण रणथंन जेम उपड्यो, पाखरे रोल धमसाण वाजी ॥ राउला वा उला नेल नेला हुश्रा, श्राफल्या ताजीए जाय ताजी ॥प्र० ॥ ॥ . अर्थ ॥ श्रांखमां खुन जरावाश्री फणस करतां पण विशेष पोरस योघाऊना. शरीरमां चडीगयो जेथी ते शुरवीरोए खडाश्मां वीरहाक वगडावी. केटलाएक शुरवीर बंजेडायेला बेल अनिमान करता बंने बाजुऊना लस्करमा घोडाउने लगाम ढीली करी उपाडता हवा. ॥ ७॥ आकाशने विषे धूलनो गोटो एवोतो चड्यो के जाणे रणस्थल खडो अयो होयनी. वली केटलाएक घेलगए चडेला राजवीरो एवातो नेट नेटा थइ गया के तेऊना अश्वो साम सामा उपरा उपरी अफलावा लाग्या जेथी महा धमसाण मची रही ।। ॥ सांतरी अांतरी बगतारो उपरे, वीजली जेम वहे खग्गधारा ॥ तिरबीन बर बीउ पार निरगबीयुं, एकशुं एक करता जुहारा ॥ प्र॥ ए॥ सणण वहे बाण तेम चणण गोली वहे, धुम धमरोल बुटे अराबा ॥ बाटबड उपडी नूमिपम धम हडे, पुरी आ जाणी अरबे गराबा ॥ प्र० ॥ १० ॥ For Personal and Private Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १७७ अर्थ ॥ शुरवीरोना बख्तरो उपर तलवारनी जेम अरस परस जनोइ वट चालवा लागी. वली बरनी वांकीथ एवीतो आर पार उतरवा मांडीके जाणे एक बीजाने जुहार वेहेवार शरू थयो.॥ए॥ योहाना बाण सण सणाट चालवामांड्यां अने बंकनी गोली एक बीजा उपर चणणण करती चोटवा लागी. तोपोना बहार थवाथी धुमाडाना गोटे गोटा निकलवा लाग्या अने तोपमांथी गोला बुटतांज नूमिनापड उखडता होय तेवो पृथ्वीमां आस्फोटन श्रवा लाग्यो ॥१०॥ एक नासे वली एक वांसे पडे, बापमा किहां लगे जाइश नागो ॥ोड हथी यार उगार जो संनवे, साद सादे इस्यो वाद लाग्यो । प्र॥ ११॥ केश लडे के पडे केश धड तड फडे, केश हय गय पडया पय पसारी ॥ ग्वारने जाणीए हारडे हारमे, वणजवा काज बालद उतारी॥प्र०॥ १२ ॥ अर्थ ॥ युनु रमखाण मचतां अने अरस परस मारतां जे कोइ योघो नासवा मांड्यो तेनी पुंचे लागी बीजाए हाक मारी कडंके हे रांकडा हवे लागीने क्यां सुधी जश्श ? हवे उगरवानो विचार होय तो हथीयार बगेमीदे. एवीरीते राडो पाडता साम सामा विवाद करवा लाग्या. ॥ ११॥ केटलाएक लडता हता, केटला एक पडता हता. केटलाएकनां धड तमफतां हतां. केटलाएक घोमा तथा हाथी पग पहोल करी पड्या हता. जाणे को मोटा वेपारीए हारो होर वेपार करवाने माटे पोग्नी पोउ लादेली उतारी होय तेवू लागतुं हतुं. ॥१॥ लोहवाहे केश ताकमे श्रापमी, एक कायर धरे हाथ थामा ॥ केश्रण श्रांगणे टुक टुके उडया, शिरविना धड करे केश पवामा ॥प्र० ॥१३॥ के गजराज दंतुशखे अश्वना, चरण खुर रोपि रण रंग माहे ॥ नाक सिस कारने ताकी शिर दारने, दोममी दोटशुं चोट वाहे ॥॥१४॥ अर्थ ॥ को शुरीए तक सांधीने तलवार एवीतो वहेवा मांडीके तेनी सामेना कायर श्रइ गयेला योघाने आडा हाथज मात्र करवानो वखत आव्यो. कोकना रणांगणमां टुकडे टुकमा थश् गया; वली कोइकना मस्तकविनाना धमलढाई करता रडवडवा लाग्यां.॥ १३॥ केटलाएक रणसंग्राममां पोताना घोडाना पगनी खरी बीजाउना हाथीना दंतुशलो उपर रोपीने खडारह्या अने नाकथी सिसकारो करता बीजा सरदारो उपर बेवडी दोट मुकीने ताकी ताकीने चोट चलवता हता. ॥१५॥ तीरथी वीर चकचूर थश्ने पम्या, जाणीए केकीए कलाज मंडी ॥ जनम दीधा फरी तरूण सुनटो नणी, धार तलवारनी अवल चंमी ॥प्रण॥१५॥ बत्रधारी घणां पूर घाए पमया, वीररस सरस ते मस्त चाखे ॥ एहवे ना रथे सिंदनी वाहिनी, थापणा दासनी लाज राखे ॥ प्र० ॥ १६ ॥ श्रर्थ ॥ केटलाएक योघा तीरना घाथी नूमिपाट पड्या हता तेश्री जाणे मोरे कलापुरी होय तेवा दीसता हता. केटलाएक युवान सुनटो एवं समजता हता के श्रापणे नवे अवतार श्राव्या. कारणके ते एq धारता हताके तलवारनीधारतो अवल चंडी रांड जेवी. ॥ १५॥ केश्क बत्रधारी राजा अनेकघा वाथी जमि उपर पड्या हता. तेन मस्त थाने जाणे वीररसनो स्वाद चाखता होय एवा लागता हता. श्रावा युधना प्रसंगमा सिंहना आसनवाली युद्धनी देवी मात्र पोताना दासनी लाज राखती हती.१६ For Personal and Private Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ तृतीय उवास. शोणिनी निम्नगा पुर बेहु पुमवहे, योगिनी पत्र पुरे असंखी ॥ गयण बाइ रही पलचरी खेचरी, तृप्त हुश्रा घणां गृध्रपंखी ॥प्र०॥ १७ ॥ सु मति मंत्रीश सुजगीशने श्रागले, तुरत हिमशैललो कटक नागे॥ हेम रथ रायने सांकडे अांकडे कबज कीधो करी जबत कागे॥प्र०॥ १०॥ अर्थ ॥ लोहीनी नदी बने कांगमा पूरनी जेम वहेतीहती. तेमांथी असंख्य योगिणी पोताना खप्पर (पात्रो) जरती हती. वली मांसनो आहार करनारी एवी खेचरीश्री आकाश बवाइ रह्यु हतुं अने घणां गीध पदी मांस अने लोहीथी तृप्त थयां हतां. ॥ १७॥ मंत्रीमा श्रेष्ठ एवा ते कीर्तिवंत सुमति मंत्रीना लस्करनी सामेथी हेमरथ राजानुं लस्कर नासवामांडयु ए समयनो लाल लश्ने मंत्रीना योछाए हेमरथनी संकडाशमां आवी पडतां तेने युक्तिथी कबज करी लश् मजबुत जापतामा राख्यो. ॥ १० ॥ जितकीधी महा जीतरंगा थया, वाजिया सुमतिना जीत मंका ॥ ढाल ए सोलमी तृतिय उल्हासनी, मोहने कही जेसी स्वर्ण टंका ॥ प्र॥ १५ ॥ अर्थ ॥ सुमति प्रधाने जीत मेलवी. तेना योघा जयना रंगमां जितनां डंका वगाडवा लाग्या. त्रीजा उसासनी आ सोलमी ढाल मोहन विजयजी महाराजे सुवर्णना सिक्का जेवि कही. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ मंत्री लाव्यो हेमरथ, वीरमतीनी पास ॥ सा कहे रे बल ए हवे, कृत थाना आयास ॥१॥ तुं मुजश्रीने शुं लमे, तुं मुज दास कदीम ॥ तो हुँ वीरमती नही, जोतुं लोपे सीम ॥२॥ अर्थ ॥ सुमति मंत्री हेमरथ राजाने ज्यारे वीरमतीनी पासे लइ आव्यो त्यारे तेणीए तेने कयुंके हे हेमरथ! शुं आटला बलथी आजानगरीने जीती लेवा प्रयास करवो सूफयो. ॥१॥ तुं मारी साथे खडवाने केम शक्तिवान अश् शके ? तुं तो मारी हजुरनी सेवा करनार दास जेवो बे. वधारे तो शुं कहुं परंतु जोतुं मारा सीमाडाने उदंगी जाइ शकतो मारूं नाम वीरमतीने ते फेरवी नांखुं. ॥२॥ एकज मारे मंत्रीए, गान्युं तारूं मान ॥ तें शुं दीग नही हता, थानाना मेदान ॥३॥ नारी तुं के नारी हूं, कहे साचुं मत लाज ॥ तुं गजतो मृगराजहुँ, जो तुं चटकडं बाज ॥४॥ अर्थ ॥ एक मारा मंत्रीएज मात्र तारो मदतो उतारी नांख्यो. चूंडा ते अगाउ आजागरीना मेदान जोया न हता? ॥३॥ वीरमतीए कह्यु के हे हेमरथ! बाश्डी ते तुं के हुँ.? साचे साचुं लाज बोडीने कहीदे. जो तुं हाथी तो हुँ सिंह अने जो तुं चकलो तो हुँ बाज पक्षी. ॥४॥ तुं ते \ माणसवली, तुज सम को निर्लङ ॥ ए तरवारे के हवी, राखतो होश परऊ ॥५॥ मंत्रीए जेमतेम करी, राणी करी प्रसन्न ॥ बोडाव्यो हेमरथ नणी, श्राप्यां अशन वसन्न ॥६॥ अर्थ ॥ वली तुं ते कां माणसगे? तारा जेवो निर्वऊपण कोणहशे? वली आ तारी तरवारे तुं प्रजाने For Personal and Private Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. რედ केवीरीते कबजे राखतो होश ? ॥ ५ ॥ मंत्री सुमतिए वीरमती राणीने मीगं वचनोथी जेम तेम प्रसन्न करीने हेमरथ राजाने मुक्त कराव्यो ने तेने खान पान कराव्यां ने शो तेवां वस्त्रादि श्राप्यां ॥६॥ मरने राणी कड़े, शिर उपर करमंड ॥ आज थकी तुं मा नजे, मारी ण खंग ॥७॥ माताजी लोपीश नही, तुम खाणा कोइ वार ॥ हेम एम कही प्रणपति करी, बेठो सजा मकार ॥ ८ ॥ ॥ राणी हेमरथना माथा उपर हाथमुकी तेने फरमान कर्युके याजथी हवे तमे मारी आ अखंडपणे अंगीकार करजो. ॥ ७ ॥ हे! माताजी हुं तमारी णा कोइ वखत लोणीशनही. एवां वचनो रथ राजा विनंतिपूर्वक बोली, सनामध्ये जश्ने बेो. ॥ ८ ॥ एहवे नटवर शिवकुंवर, ज्ञान कला जंडार ॥ रानो मुकरो कर्यो, पंचसयां परिवार ॥ ए ॥ अर्थ ॥ एवा समयमां पांचसो नटोए परवरेलो शिव कुंवर नामनो नटराज जे ज्ञान ने कलानो मंडार ते श्रावीने राणीनो मुजरो कर्यो. ॥ ए ॥ ॥ ढाल १७ मी ॥ ॥ नदी यमुनाके तीर उमे दोय पंखीया ॥ ए देशी ॥ राणी कहे नटराज श्राव्या तमे क्यां थकी, सरखा चमते वेश रहे लागी टकी ॥ कड़े शिव कुंवर प्रणाम करीने मन्नथी, श्राव्यो हुं म हाराज, ए उत्तर पंथथी ॥ १ ॥ नगर नगरना भूप रीजावी या गला, लीधा लाख पसाय, देखाडीने कला ॥ श्राजा एक पूरव हुंतो माहरे, ते में निरखी आज जामण ने ताहरे ॥ २ ॥ अर्थ ॥ वीरमती राणीए कह्युं के हे नटराज तमे क्यांथी आव्या ? तमे सर्वे सरखी उमरना सुंदर वेशवाला ने तमने जोतां दृष्टि तमारा उपर वरेने एवा दीसोबो. ते सांजली शिव कुंवर तेणीने प्रणाम करी बोल्योके हे महाराज डुं उत्तर तरफना मार्गथी बुं बुं. ॥ २ ॥ शेहेरे शेहेरना राजार्जने मारी कला देखाडी तेर्जने प्रसन्न करतो करतो ने लाखो रुपैयाना इनाम मेलवतो वहीं श्राव्योतुं. मात्र मानगरी गाज जोइ न हती. तेथी आपना उपरथी वारीजतो. जे जोवानो वखत श्राव्यो. ॥ २ ॥ सांजली ढुंतो कीरती श्रवणे जेदवी, नयणे ते हवी ॥ जवतु सदा दीर्घायु सलुणी तुज सजा, नृपतिनी वा ॥ ३ ॥ जो श्राज्ञा तुम होयतो त पामी दान दारिद्र विहंगीए ॥ वीरमतीए आदेश कर्यो करीने मे आज ए दीवी जोगवे राज तुं वीर नाटक मंडीए, तुम दया, नट नायकना पायक रमवा सज यया ॥ ४ ॥ ॥ जेवी ज्ञानगरीनी कीर्त्ति साजलवामां यावी हती तेवीज आजा नगरीबे एवं नजरे जोतां साचुं मालम पडयुं. तमे दीर्घायुषी था ने तमारी कीर्त्तिवंत सना साथे हे वीरसेन महाराजानी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० तृतीय उदास. वहाली पटराणी तमे दीर्घकाल राज्य लोगवो. ॥३॥ नटराजे कांके जो आपनी आज्ञा होयतो नाटकनुं काम शरू करीए. जेथी आपनी पासेथी इनाम रूप दान मेलवी अमारी दरिजतानो नाश करी नांखीए. वीरमतीए तेऊना उपर दया आणीने नाटक करवानो हुकम कर्यो, जेथी नटना खेलाडी रमत रमवाने तैयारी करवा लाग्या. ॥४॥ मुखर चंडायण काब नला कटिथी कस्या, केशरी पागे केशरी पा धसमस्या ॥ ढिग ढिग ढिग्ग ढिगग्ग सुजंगी गरजीया, सरणाश्ए ट हक्क सोरठ तेम परजीया ॥५॥ मीठी तार रवाज संगीत गति रण कणी, ताल विकट टंकार कणाण कण कण कणी॥श्रालापे स्वर सप्तथी रागने रागिणी, कीधो रागनो मंडप रामततो बणी ॥६॥ अर्थ ॥ नाटकीयाए पोताना मुख चंजमा जेवा श्वेतकर्या. केडकसीने कळावाल्या केसरी रंगना पायजामा पेहेर्या. वली घोर अवाज करनारा अने ढिग ढिग ढिग जेवा शब्द निकलता मोटा ढोल वागवा मांड्या. अने शरणाड टहुकारा करती सोरठ अने परजीया रागमां श्रालाप करवामंडी. ॥ ५॥ मीग तारवाला वाजिंत्रथी संगीतनो रण कपाट थ रह्यो. अने चित्र विचित्र टंकारा करता तालनो कण कपाट श्रवा लाग्यो. सा-री-ग-म-प-ध-नी ए सात स्वरोथी उ राग अने त्रीश रागिणीउना आलाप थवा लाग्या. साक्षात् रागनो मंडप अयो होय एवी संगीतनी बाया बवाइ रही. ॥ ६॥ हंस तुरग गज वाघ स्वरूप नवा करी, खेले प्रथम नटेश विशेष रसे नरी॥ विच विच वक्र संजाषण नयण इसारती, करी करी लोक द साडतो एक हसारती ॥७॥ एहवे गुणावली कुर्कट पिंजर कर ग्रही, बेठी गोखे रमत निरखे रही रही ॥ तव थारोप्यो वंश उत्तंग मनो हरूं, जाणीए उपशम श्रेणी तणो ए सहोदरू ॥ ७॥ अर्थ ॥ शरूयातमां नटराज हंसना, घोडाना, हाश्रीना, वाघना एवा विशेष रस जरेला नवा नवा रूप धारणो करी खेल करतो हवो. वचमां वचमां वक्रोक्तिवालां मीन नाषणो अने अांखना इसारा विगेरे करी लोकोने को हस मुखो हसावतो हास्यरसने जमावतो हतो. ॥ ७॥ एवा अवसरमा गुणावली राणी कुकडानुं पांजरू हाथमा राखीने गोखमां बेठी रमतने जोइ रही. ते समये नटराजे एक जंचो अने मनोहर वास नाटक शालामा उनो कर्यो. ते जाणे मुनिराजनी उपशम श्रेणीनो सहोदर (बंधु )ज होयनी तेवो दिसवा लाग्यो. ॥ ७॥ गेकी मेख अशेष घणे कसणे कस्यो, लोकाकार स्वरूप नविकने उ बस्यो ॥ कीलक वंशने अग्र पूगीफल तिहां धर्यो, शिणगारीने वंश श्स्यो नटुए कर्यो॥ ए ॥ शिवमाला शिव कुंवरनी पुत्री कुमारिका, उत्क्षेपण अपदेपण क्रीमा कारिका ॥ करीराणी प्रणिपत्य ने चंद की रति पढी, जनकादिकनी शीख करीने वंशे चढी ॥ १० ॥ For Personal and Private Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ तेवांसनी चारे बाजुए मजबुत मेखो गेकी दोरडाथी तेने मजबुत कर्यो. ते जाणे लोकाकारनुं स्वरूप जोवा सारू नससित श्रयेला नविक जीवने जेम सुंदर लागतो होय तेम देखावा लाग्यो. ते वांसना अग्रजाग उपर खाली गेकी ते उपर सोपारी गोठवी. एवीरीते वांसने शणगारीने उनो कर्यो. ॥ए॥ शिवकुवर नटराजनी कुंवारी पुत्री शिवमाला जे जंचे अने नीचे फेंकवा अने चडवा उतरवानी क्रीडाकरनारी हती, तेणे प्रथम राणीने नमस्कार करी चंदराजानी कीर्त्तिनो उच्चार कर्यो अने पनी पोताना पिता प्रमुखनी आज्ञा लश्ने ते वांस उपर चडी. ॥१०॥ हेठे रह्या नट घाट बजावे ढोलमा, नाखे श्रहो अहो अहो हो जला नला बोलडा ॥ मननो नयणनो खेल मचुकीश शिव कहे, बहु नट वंश समंत उरध नयणे रहे ॥ ११॥ श्रावी नट अवतार कला शिखी य, श्हां जो न.खेलीश खेल खेलीशतो किहां प॥आपणी कुलस्थिति एह उपर उद्यम इस्यो, मनमांहि तुंतो खेद सुता मकरीश किस्यो ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ नीचे उन्नारहेला नटो घाटसर ढोल वगाडता हता. अने अहो अहो अने धन्यवादना मीग बोल बोलताहता. शिवराज नट कडेने के हे कुमारी तं मनने स्थिर करजे अने नेत्रने सावधान राखजे. बहुनटो वांस उपर उंची नजरेज ध्यान पूर्वक जोया करे. ॥ ११॥ हे बाला! तुं नटना कुलमा जन्म पामी जे जे कला शीखीगे ते जो अहींआ खेलमां नही बतावीश तो पनी क्या बतावीश? आपणा कुलनी रीति एज ने अने आपणा कुलनो उद्यमपण एज . हे बेटा! तुं मनमां जरापण ते बाबतमां खेद करीश नहीं.॥१२॥ निसुणी जनकनां वचन वंशाग्रे जश् श्रमी, पूगी उपर नानिधरी तिहां परवमी ॥ गणण चड्यो गणणाट शरीरते बोलनो, फरतो दिसे जे हवो चक्र कुलालनो ॥ १३ ॥ नूतल हाको हाक वजामे नटवरा, प्रवर परंदा जेम फिरे उरहा परा ॥ शिव मालाए उलट गुलांटी फ रीजरी, मूक्यो दशमो घार पूगीए थीर करी ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ पितानां वचन सांजली शिवबाला वांसनी टोच उपर चडी अने सोपारी उपर पोतानी नानी स्थापी जेम कुंजारर्नु चक्र फरतुं होय तेवी रीते तेणीए पोताना शरीरने आकाशमां गण गणाट करतुं फेरववा मांड्यु.॥ १३ ॥ जमीन उपर उनेला नटो हाको मारी ढोल वगामता हता, अने जेम मोटा पही उडे तेम वेग करता हता. शिवमालाए उलटी गुलाटमारी पोताना मस्तक (ब्रह्म रंध्र )ने सोपारी नपर चावी स्थिर करी बंधे मस्तके रही. ॥ १५॥ मुनि जेम बंधे मस्तक रही काउस्सग्ग करे,तेम बाला सुकुमाला त्रिकरण थिर धरे॥ त्रीजो उलट्यो खेल करी दृढ श्वासनो, बेठी पूगी उपर सा गरुडासने ॥१५॥ फरीवली फल उपर वाम एमी ठवी, एक चरणथी चक्र लीधो ए कला नवी ॥ लेश पंचवरणनी पंचे पाघमी, कीधो सनाल सरोज सपंखे पांखडी ॥ १६ ॥ . अर्थ ॥ मुनिराज जेम बंधे मस्तके रही कायोत्सर्ग करे तेवी रीते ते सुकुमाल बालाए उंधे मस्तके रही For Personal and Private Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ तृतीय उवास. मन वचन अने कायाने स्थिर कर्या. त्यार पठी फरी गुलांट मारी दृढ पणे श्वासने स्थिर करी ते सोपारी उपर गरूडासन करी बेठी. ॥ १५॥ त्यार पठी वली ते सोपारी उपर डाबा पगनी एडी धारण करी अने एकज पगथी उन्ना रही शरीरने चक्रनी जेम फेरववा मांडयु. आ कला अद्भुत हती. वली पांच जुदा जुदा रंगनी पाघमी लश् तेमनी कमलना डांडा उपर फुलनी पांखडी जेम रचना करी. ॥ १६ ॥ तात कहे सुता उपर वेला बहु हवी,में तो तुजमां एदवी कला नवी संजवी॥ सा उरथीथ दोरी उतरी जेम उरगणी,अथवा जाणीए गगनथी त्रिदशतरंगिणी १७ श्रावी धरणी उपर नट प्रमुदित थया, करि करि कंगग्रहण मिव्या सवी जय गया॥ चंद तणो जसवाट नटे वली उचर्यो, खेली खेल खेल ढोले ढमको कर्यो ॥१॥ अर्थ ॥ शिव कुंवर नटे कडं के हे बेटा ! हवे नीचे उत्तरो-वखत बहु अयो. तमारामां श्रावी कटा ने एम हुँ जाणतो न हतो. पितानुं वचन सांजली शिव बाला दोरडानी साथे नागणी जेम अथवा आकाशथी उतरती गंगाजीनी जेम नीचे उतरी आवी. ॥ १७ ॥ ज्यारे शिव बाला जमीन उपर श्रावी त्यारे सर्वे नटो हर्षवंत श्रया. तेणीने कंटे लेटी पडया. कारण के खेल खेलतां उपर जे लय हतो ते सर्व नाश पाम्यो. त्यार पनी नटोए चंद राजानो यशोगान गायो अने न खेली शकाय तेवा खेल खेट्यानो ढोलनो ढमकारो को. ॥१०॥ कीधो मुजरो वीरमतीने नटेश्वरे, पांउमोज उवारणे चंदने उपरे ॥ तृतीय उल्हासनी ढाल कहीए सतरमी, मोहन कहे श्रोतानी जणी रुमी गमी ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ बेवटे शिवकुमर नटे वीरमतीने विनंति पूर्वक मोज मांगी. वली चंद राजाने घणी खमां-तेना मुखमा उपर वारी जाज-एवां उवारणां लीधा. कवि मोहनविजये त्रीजा नबासनी आ सतरमी ढाल कही, जे श्रोताउँने घणीज रूमी लागी. ॥१५॥ ॥दोहा॥ कहे यशवायक चंदना, नट नायक गुणवान ॥ ते लागे सायक समा, वीरमतीने कान ॥१॥ विकटी नटथी रागिणी, करथी नदीए दान ॥ अंग अंग मधुपान परे, व्याप्यो अति अनिमान ॥२॥ अर्थ ॥ गुणनोवेत्ता शिव कुंवर नट चंद राजानी बिरूदावली रूप यशो गान करतो हतो ते वीरमतीने काने बाणनां जेवां लागतां हतां.॥ १ ॥ नटनी उपर उपेगतावालुं चित्त थवाथी वीरमती तेजने पोताने हा दान आपती न होती. कारणके राज्यनी प्राप्तिश्री तेणीना अंगो अंगने विषे मदिरारूप अ. निमान व्याप्यु हतुं.॥॥ वाजां वाये गाये नट, वाले बहु विध गात्र ॥ वीरमती चितवन जेम, नेदे नही तिलमात्र ॥३॥ राणी दान विना सना, बाग लथी न दियंत ॥ जल धर वरसे तो नदी, दोतट पूर वहंत ॥४॥ अर्थ ॥ नटो वाजा वगामता हता, गाता हता अने शरीरना अवयवोने अनेक प्रकारनी कसरत बताववारूपे वालता हता, परंतु वीरमतीनुं अंतःकरण वज्रनी जेम रति मात्र तेऊनाथी नेदातुं न होतुं. ॥३॥ For Personal and Private Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ चंदराजानो रास. राणीए थाप्या विना सजा, दान आपती न हती. जो वरसाद वरसे तोजनदीमां पूर आवे अने बने किनारामां संपूर्ण वहे. ॥४॥ नटतो कुंजर जेम करें,चंद सुजश अग्राज ॥ नमक किमपि लहे नही, राणी तणां अकाज ॥५॥ कुर्कट पिंजर गृह थको, पाम्यो माता नेद ॥ मुज यश निसुणी नट मुखे, पामी पूरण खेद ॥ ६॥ अर्थ ॥ शिव कुमर तो हाथीनी जेम चंदनां यशोगान जे ते वखते अग्राहय हतां ते उच्चार्याज करतो हतो, परंतु ते लोलो राणीना अकार्यना स्वरूपने कोइ पण रीते जाणी शक्यो न होतो. ॥ ५॥ कुकडो पांजरामा रह्यो थको वीरमतीना अंतःकरणना नावने जाणी गयो के मारूं यशोगान नाटकना मुखथी निकलतुं सांजलीने ते संपूर्ण खेद पामी . ॥ ६॥ ए माता पूरण हठी, नट तो जाशे निराश ॥ मोटे गढ कोटे जश, केम कहेशे जश वास ॥ ७॥ अर्थ ॥ वीरमती संपूर्ण हठ करी बेठी ने अने तेथी जो नटो निराश श्रइ जशे तो बीजा मोटा राज्य दरबारमा जश् आपणी यशकीर्ति केवी रीते फेलावशे? ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १० मी॥ ॥ चित्रोडा राजारे वगडावे वाजारे ॥ ए देशी ॥ युवती मुख निरखीरे, कुर्कट मन हरखीरे, हलवे श्राकर्षी पिंजरनी सलीरे ॥ अंतर जबसीरे, पंखी पोरसीरे, थयो निसुणी रसियो,कीरती उजलीरे ॥१॥ जे दाता अखेला रे, ते देवानी वेला रे, नेला मेलामां अवसर सांचवे रे ॥ जे होय श्रदाता रे, ते जाये उजाता रे, श्रवदाता तेहना को न आलवेरे ॥२॥ अर्थ ॥ कुकडा ए प्रथम गुणावलीना सन्मुख जोयुं अने पोते मनमा बहुज खुशी अयो, अनंतर धीमे थी पांजरानी सलीने ऊंची करी. पोते यशोगानथी जलसायमान श्रवाथी अने पोताने पोरस चमवाश्री तेमज निर्मल कीर्तिना श्रवणथी रसियो अवाथी तेने दान देवानी अनिलाषा थइ. ॥१॥ जे खरेखरा ने ते दान प्रापवानी वेखाए मनष्यना समदायमां अवसर साचवीने दान श्रापेले परंतु जेट कृपण ने ते उगीने चाल्या जाय ने अने तेउनी बिरूदावलीनो आलाप जगत्मां कोइ पण करतुं नश्री. ॥२॥ गोखेथी जांख्यु रे, आमी करी पांख्युं रे, चांचे धरी नांख्युं, कचोर्बु कुकडेरे॥ सुप्रसाद जे कीधोरे, सह लोक प्रसिकोरे, शिव कुंवरे लीधोश्रावी ढुकडोरे॥३॥ कुंदननो घमीयो रे, बहु हीरे जमीयो रे, पडीयो ते दीगे राणी कचोलमो रे॥ नटवे बहु मोली रे, चंद कीरती बोलीरे, ढोलीए वादयो कीरती ढोलमोरे ॥४॥ . अर्थ ॥ गोखमांधी नीचा वली, पांखोने आडी करी, कचोलाने चांचवडे उपाडी नीचे नांखी दीधुं. शिव कुंवर नटे सर्व लोकना जाणवामां आवीशके तेवो कुकडाए जे उत्तम प्रसाद कीधो ते तेनी नजीक For Personal and Private Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ तृतीय उवास. श्रावी पोताना हाथमां ग्रहण करी लीधो.॥३॥ ते कचोलुं सुवर्णतुं घडेलुं अने बहु हीराधी जडेलु हतुं एवं ते कचोल राणीए पडतुं दी. शिव कुमर नटे ते कचोलुं हाथमां लश् चंदनी बहु मूल्यवान कीर्तिरूप बिरूदावली करी अने ढोलीए ढोल उपर कीर्त्तिनो पडघो पाड्यो. ॥ ४॥ सजा लोक संपेखीरे, वीरमतीने उवेखीरे, कीधां बहु नेखी नटने तुंगरारे ॥ पटकुल बाबतना, करे शिव साजतनारे, मधु रुतुना सोहे जेहवा हुंगरारे ॥५॥ चलगति कुलवटनीरे, पलटाणी पटनीरे, नटनी धरणीए नटनवि उलख्यारे ॥ बहु पाम्या शंगारारे, मणि जमित उदारारे, वीरमतीने अंगारा थश्ने धख्यारे॥६॥ अर्थ ॥ सत्नाना लोकोए तत्काल वीरमती तरफ ध्यान नहीं आपता पोताना विचारने संकेली नटने अनेक प्रकारनां वस्त्रो तथा आजूषणो आप्यां शिव कुमर विगेरे नटो जेम वसंत ऋतुमां मुंगरो शोले तेवा शोलता हता. ॥ ५॥ ते वखते समग्र सन्नाजनो मध्ये कुल परंपरानी जे रीति चालती हती ते बदलाइ जतां नटोनी स्त्री नटोने उलखी शकी नही. नटोने जे मणि थी जडेला उत्तम आभूषणो मलयां हतां ते देखीने वीरमतीने जेम धगधगता अंगारा शरीरने लागे तेम मनमां ते लागता हता. ॥ ६॥ नट हुथा श्रयाचीरे, नरही कांच काचीरे, राचीने उतारे शिव नटवो गयोरे॥ वीरमती कदे सेहेलोरे,कीयो धननो गहेलोरे,मुज पेहेला दाता कोण श्हां थयोरे बली जो केहेवोरे,ते तो जोया जेवोरे,एवो उपर वट किण जणणी जण्योरे॥ वध्यो दीसे मोसालेरे, रम्यो जे बहु लाडेरे, मारी निशाले सहितो नथीजण्योरेन। अर्थ ॥ नटोने घणोज लान मट्यो तेथी ते अयाचक जेवा श्रऽ गया. तेउने को वातनी खामी रही नही तेथी संतोष पामीने शिवकुमर नट पोताने उतारे गयो. वीरमती बोलवा लागीके आवो ते जोलो कोण धननो घेलो अयोके मारी पेहेलां दातार अवानी तेने श्छा अश्? ॥ ७ ॥ वली ते केवो बलवान ने ते पण हवे जोवा जेवू . एवी का जननीनो जणेलो के मारी नपरवट थइ दान आप्यु. मने लागे डे के ते मोशालमां मोटो थयो हशे अनेत्यां बहु लाड घेलो थयो हशे. अने खात्रीश्री कहुं खं के मारी निशाले तो लण्योज नथी. ॥ ७॥ मुज मीट न श्राव्योरे,जलो कुशले सिधाव्योरे,नाव्यो मुज एहनो मोटो बाउखोरे॥ एम अंजस श्राण्योरे,पण विहंगन जाण्योरे, ताण्यो बे यद्यपि पिंजर सन्मुखोरे ॥ए॥ कहे मंत्री मातारे, मत होवो ताता रे, रहो थाकुल थाता मानो विनतीरे ॥ पेहेलु जेणे दीधुंरे, तेणे यश तुम कीधुंरे, जाणो करी सीधुं खीजो स्यावतीरे ॥१॥ अर्थ ॥ मारी चोटमां आववा न पाम्यो अने कुशल खेमे ठीक सिधाची गयो. मने तो एनुं आयुष्यज मोटुं लागे जे. श्रावी रीतनो वेहेम वीरमतीने आव्यो परंतु पदी संबंधी विचार तेना मनमा श्राव्यो नहीं. जो के पांजरू तेनी सन्मुखज ताणवामां आव्यु हतुंः ॥ ए॥ मंत्रीए कह्यु के हे माताजी तमे गरम पाठ नहीं. शांतथा अने मारी विनति अवधारो. जणे प्रथम दान दीधुं तेणे तमारा यशनेज वधार्यो . वातने सिधी रीते वेवामांशुं खोटुंबे अने शामाटे खीजवानी जरूर ? ॥ १० ॥ For Personal and Private Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. जे शुरा अथागेंरे, श्रावे जे खागेरे,नूपतिने श्रागे सहुँ पेहेला समेरे ॥ दातार फुकारारे, बेहु एक अणुसारारे, निरधारा स्वामी श्रागल श्रायडेरे ॥ ११ ॥ यश चढतो वानो रे, केम रहे ते बानो रे, मुजरो तमे मानो सामो तेहनो रे॥ ए तुम बालकमारे, जे सहुको लामकारे,श्राकलडां न होवो, वांक न केहनोरे॥१२॥ अर्थ ॥ जे अत्यंत शुरवीर थक्ष रणसंग्राममां पडे चे ते नूपतिनी सन्मुखज सर्वनी पेहेला लडाइमां उतरे . दातार अने लडनार बंने एक सरखा स्वनावना होय ने तेढ निश्चयपूर्वक स्वामीनी अगाउज श्राथडी पडनारा होय . ॥ ११॥ पोतानो यश गवातो सांजली तेवो पुरुष केम गनो रहे? माटे आपने तो तेनो उलटो मुजरो मानवानी जरूर . ए सहु तमारां लाडकवाया बालको जे. आप श्राकलां न था. या बाबतमां कोश्नो वांक नथी.॥१२॥ एम घणुं समजावीरे,वश तोय न श्रावीरे,फावी नही मंत्री केरी को कलारे॥ त्रीजे जबासेरे, श्रढारमी नाखेरे, सुप्रकाशे मोहन सुकथा निर्मली रे ॥१३॥ अर्थ ॥ मंत्रीए वीरमतीने घणी घणी रीते समजावी तो पण तेणीए तेनुं कर्तुं मान्युं नहीं. अर्थात् मंत्रीए अनेक कला करी तो पण एके कला फलीभूत श्रइ नहीं. त्रीजा नशासमां उत्तम कथावाली अने निर्मल एवी अढारमी ढाल कवि मोहनविजयजीए कही अने श्रोताउँने सारो प्रकाश कर्यो. ॥१३॥ ॥ दोहा ॥ गृह पोहोती सघली सजा,प्रगटी रजनी जाम ॥ वीरमती पोढी जश्, सुख शय्याए ताम ॥ १॥ नयणे नावे निडी, राणी मन बहु शोच ॥ पेहेलो दाता पामवा, आलोचे आलोच ॥२॥ अर्थ ॥ सजाना सर्वे जनो पोताने घेर गया अने रात्रि पडी अने वीरमती पोतानी सुख शैयाए जश्ने पोढी गइ. ॥१॥ शैयामां पोढता उतां नित्रा श्रावती नथी. राणीना मनमां बहुज खेद थवामांड्यो भने पेहेलो दान आपनार ते कोण हशे एवी विचारजालमां गुंथाइ गइ. ॥२॥ प्रात थयो उदयो अर्क, वीरमती मति हीन ॥ नागर जन तेमी करी, पूरी सना नवीन ॥३॥ तेडाव्यो शिवकुंवरने, ते पण श्राव्यो सद्य ॥ वीरमती एम उपदिशे, करनाटक अनवद्य ॥४॥ अर्थ ॥ सवारमा सूर्योदय श्रयो एटले मति मुंकायेली वीरमतीए नगरना लोकोने एकग करी नवी सजा जमावी. ॥३॥ वीरमतीए शिवकुमर. नटने बोलाव्यो. ते तत्काल श्राव्यो. वीरमतीए तेने श्रावतांज कडं के फरी तेवुज दोष (खोट ) विनानुं नाटक करो. ॥४॥ श्रारंन्यो नाटक तेणे, कीधो वंशारोप ॥ तेमहीज ढोल ढमकिया, प्रगट्यो रस अविलोप ॥५॥तेमहीज नारी गुणावली, लेश पिंजर तेह ॥ जोवा बेठी गोखमां, नट क्रीडा ससनेह ॥६॥ अर्थ ॥ नाटकीये नाटक शरू कर्यु. वांसने उनो को. तेवीज रीते ढोल पण ढमकारा करवा लाग्या For Personal and Private Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ तृतीय उल्हास. अने अपूर्व रस प्रगट्यो. ॥ ५॥ तेवीज रीते गुणावली राणी पण पांजराने खस्ने गोखमां स्नेह सहित नटनी क्रीडा जोवा बेठी. ॥ ६॥ ताम्रचूड रूपे नृपति, निरखे करी विशेष ॥ जो जो जविजन नव मिटे, लिखित जेह विधि लेख ॥ ७॥ __ अर्थ ॥ कुकडारूपे अयेलो राजा चंद पण आजे विशेष रीते ध्यान आपी नाटक जोवे बे. हे जन्य जनो ! जो जो के विधिना लखेला लेख कदापि पण फरता नथी. ॥ ७॥ ढाल १५ मी. ॥ कालीने पीलीने वादली ॥ ए देशी ॥ ॥ नाटक जरत्यादक तणां ॥ लालन ॥ नटुए ते वचन कीध, बोल्या दा नने अवसरे, लाखन चंद तणी सुप्रसिक ॥ साहिबारे मोरोचंद नरिंद वड नागी हो, नवल दीदार ॥ ए श्रांकणी ॥ १॥ विलखाणी राणी घणु, लाण निसुणी तनय यश जोर ॥ गृहपति वाणी सांजली,लाजेम खातरी चोर॥सा॥ अर्थ ॥ नाटकीयाए नरत प्रमुखना अनेक प्रकारना नवा नवा नाटको कर्या अने दाननो अवसर श्राव्यो त्यारे चंद राजानी बिरूदावली बोट्या. एवी रीते के चंद नृपति महा जाग्यशाली अत्यंत मनोहर अमारो खाविंद .॥१॥ पोताना उरमान पुत्रनो यश अत्यंत सांजली राणी बहुज छांखी पडी गश्. जेम घरना मालेकनो अवाज सांजलतांज चोरनी दशा थाय तेवी तेनी दशा अश्. ॥२॥ देवा दान नटेशने, ला नकरे उपर हाथ ॥ श्रागलथी आपे नही ला खेल जोणारो साथ ॥ सा ॥३॥ शिव कहे चंद विना सजा, ला निपट अलूणे धान ॥ सेना जेम कुंजर विना, ला जेम वही विण पान ॥ सा ॥४॥ अर्थ ॥ ते कारणथी नटना अधिपतिने दान आपवा ते हायपण उंचो करती नश्री. तेम वली साथे जोनारापण तेनी पेहेला आपता नथी. ॥ ३ ॥ शिवकुमरे कडं के जेम खूण विनानुं धान्य, हाथी विनानी सेना अने पांदडा विनानी वेल लागे तेवीज चंद राजा विनानी सन्ना लागे .॥४॥ . दश दिशि नयणां फेरवे, ला दाता जोवा काज॥ विस्मित थश् सघली सत्ता, ला राणी एम केम श्राज ॥ सा ॥ ५॥ पण को समजे नही, ला वीरम तीनी वात ॥ एहवे निसुण्या कुकडे, ला० निज यशना श्रवदात ॥ सा ॥६॥ अर्थ ॥ नटराज दशे दिशाए दातारने जोवा माटे पोतानी अांखो फेरव्या करे , श्रावी तेनी स्थिति जोइ सघली सत्ता आश्चर्य पामी. अने वीरमती आजे श्राम शावास्ते करती हशे तेना विचारमा पडी. ॥ ५॥ परंतु सत्ता मध्येथी कोइ पण वीरमतीना अंतःकरणने समजी शकतुं नश्री. एवामां कुकडाए पोताना यशोवादनां वचनो सांजटयां. ॥६॥ मातानो जय अवगणी, ला० कठण करीने चित्त ॥ नाख्युं रतन कचोल, • ला लाख टकानुं वित्त ॥ सा० ॥७॥ लीधुं नटवे धसमसी, लातेह अनो पम पात्र ॥ कीरति चंदनी उच्चरी, ला० लक्षण एह सुपात्र ॥ सा० ॥ ७॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १७ अर्थ ॥ माताना नयने बिलकुल नही गणतां, कठण मन करीने लाख रूपीयानी किंमतनुं रतननुं कचोलुं तेणे नीचे नांख्यु.॥७॥ नटराजे उतावलथी जश् ते अनुपम पात्र लश् लीधुं अने तत्काल चंदनी कीर्त्तिनुं गायन कयु. ए सुपात्रनां लक्षण समजवां. ॥ ७ ॥ वरषा जेम तेमहीज सजा, ला वुठी सोवन धार ॥ कुर्कट चरित्र निहालीने, सा राणी उठी तेवार ॥ सा ॥ ए॥ दोमी श्रावी गोखडे, ला० कर काली करवाल ॥ रोषवशे पिंजर ग्रद्यु, ला बोली गिरा विकराल ॥सा ॥ १० ॥ अर्थ ॥ जेम वरसाद वरसे तेवीरीते सन्नाए सुवर्णनो वरसाद वरसाव्यो. कुकडानुं श्रावु चरित्र देखी राणी तत्काल उन्नी थ॥ ए॥ वीरमती हाथमां तलवार लश्ने गोखनी पासे दोडती श्रावी अने अत्यंत क्रोधसहित पांजरूं हाश्रमां लश्ने विकराल शब्दो बोलवा लागी, ॥ १० ॥ किमरे पापी पंखीया, ला न वली हजी तुज लाज ॥ मुज पेहेलां ते केम कयु, ला दान ए कालने श्राज ॥ सा ॥ ११॥ बोडीश नही तुजनेहवे, ला का ढयुं खड़ कही जाम ॥ कर ग्रह्यो दोडीगुणावली, ला सासूडीनो तामासा॥१२॥ अर्थ ॥ हे पापी पदी ! तने हजी लाज वली नही. मारी श्रगान गइ काले अने श्राजे तें आ नाटकी याने केम दान प्यु.॥११॥ हुँ हवे तने गोडवानी नथी एम कही जेटलामा म्यानमांथी तलवार काढे ने तटवामां गुणावलीए दोडीने वीरमतीनो हाथ पकडी लीधो.॥ १२॥ माताजी एह उपरे, ला० निपट न किजे रोष ॥ अविवेकी होये पंखीया, लाग नही एहनो को दोष ॥ सा ॥१३॥ चांचे जल पीता थकां, ला नूमि पड्यु ए पात्र ॥ एशुं समजे दानमां, ला० एहनो तो निरखो गात्र ॥सा०॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हे माताजी! पदी विवेकने जाणताज नयी अने वली या काममां तेनो का दोषनथी माटे तेना उपर आपने अत्यंत क्रोध करवो युक्त नथी.॥ १३॥ ए पदीए चांचथी पाणी पीवा मांगता ते क. चोढुं जमीन उपर पड्यु बे. दान देवामां ए ते शुं समजे? एनो देदार तो तमे जु ! ॥१५॥ जेम तेम पाले पिंमने, ला पिंजर रह्यो तिर्यंचू ॥ केडो मुको एहनो, ला० कांकरो एहवा संच ॥ सा० ॥१५॥ श्राव्या कोलाहल सुणी, ला लोक सयल तेणी वार ॥ मुकाव्यो मली कुकडो, ला करीकरी घणी मनुहार ॥सा॥१६॥ अर्थ ॥ ए पक्षी पांजरामां पड्यो पड्यो जेम तेम करी तेना शरीरने ननावेजे. हवे एनो केड मुको तो सारूं. तमे तेने माटे आवा उपाय शामाटे करोगे ॥ १५॥ सासु अने वहुने वचे चालती रकझक सांजली सजाना लोको त्यां एका अश् गया अने अनेक प्रकारे वीरमतीने विनंति करी कूकडाने तेना ऊपाटामांथी बोडाव्यो. ॥ १६॥ श्रावी राणी जीहां सना, ला नट पाम्या आनंद ॥ त्रीजा उदासे जंगणीशमी, ला मोदन ढाल श्रमंद ॥ सा ॥१७॥ अर्थ ॥ त्यार बाद वीरमती राणी सजामां सिंहासन उपर आवी बेठी. नटो आनंद पाम्या. त्रीजा नवासनी जंगणीशमी ढाल मोहनविजयजीए उत्तम कही. ॥ १७ ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० तृतीय उवास. ॥ दोहा ॥ शिव नटवर अवसर चतुर, वीनवी ललित वचन्न ॥ रोष निवारीने करी, राणीने सुप्रसन्न ॥ १॥ प्रारंज्यो प्रेषण फरी, चढी शिव माला वंश ॥ पिंजर सन्मुख दृष्टिधरी, खेले करे प्रसन्न ॥२॥ अर्थ ॥ अवसरना जाण एवा ते शिवकुमर नटे अतिमिष्ट वचनोश्री राणीने राऊवी तेनो रोष उतरावी नांखी अति आनंदमय करी दीधी. ॥ १॥ नटे फरीश्री नाटक देखाम, शरू कयु. शिवमाला वांस उपर चडी. तेणीए पांजरानी सन्मुख दृष्टि राखी अने तेने प्रसन्न करवामाटे खेल करवां मंडी. ॥२॥ पिंजरगत पंखि इसे, पामी समय एकंत॥शिवमाला श्रागल कहे, सरल स्वरे बहुम्नंत ॥३॥ जाणी में नट कन्यके, परम प्रवीणा तुऊ ॥ पंखी जाषा तुं लहे, ते माटे कहुं गुज ॥४॥ अर्थ ॥ एटलामां पांजरामा रहेल पंखीने एकांत जेवो समय मली जवाथी शिवमालाने, तेणे बहु प्रकारे धीमा सादथी कह्यु.॥३॥ हे नट कन्या! तुं अत्यंत प्रवीणगे एवं मारा जाणवामां आव्यु ने अने तुं पक्षीनी नापापण जाणे तेथी मारा अंतःकरणनी तने एक वात कहुँK. ॥४॥ वंश थकी तुं उतरे, राणी करे पसाय ॥ पण ते तुं लेती रखे, कहुं बुं शीश नमाय ॥५॥ धन देखी राचे रखे, करी मुज व चन प्रमाण ॥ मागी लेजे मुज जणी, चूकीशमां श्रवसाण ॥६॥ अर्थ ॥ ज्यारे तुं वांस उपरथी नीचे उतर अने राणी तारा उपर प्रसन्न अश् दान आपवामांडे त्यारे ते दान, हुँ तने पगे लागीने कहुं बुं के कोइपण रीते लइश नही.॥५॥ते जे धन आपे ते उपर राचीशमा. मारूं आवचन कबुल राखजे. तेनी पासेथी दानना बदलामां मने मागी लेजे. श्रा समयने चूकीशनही. ॥६॥ तुज गुण था जीवित लगे, राखीश करी तावित ॥ कर उपगार उगार मुज, थाप अजय श्रवगीत ॥ ७॥ धन तो थापण बेढं मली, मेलशुं सदा अशेष ॥ तुज श्रागल आगे कहीश, कर्म लेख सुविशेष ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ तारो मारा उपर अतो आ गुण हुँ जीवतासुधी तावितनी जेम बांधी राखीश, अर्थात् विसरीश नही. मारा उपर उपकार करी मने बचाव अने तेम करीश एवं अनयवचन आप. ॥ ७॥ जो धननी श्वा हशे तो आपणे बंने मली निरंतर घणुं मेलवशं. वली मारा कर्मना लेखनो विशेष लाव हुं तने आगल उपर जणावीश.॥७॥ ॥ ढाल २० मी॥ ॥ धणरा ढोला ए देशी ॥ वंश थकी ते उतरी रे, तेमी एकांते तात ॥ धन्य नट बाला ॥ वचन बंधी उपगार, करे शिवमाला ॥ हलवे समजावी कह्यो रे, कुर्कटनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ՀԵՍ श्रवदात ॥ ध० ॥१॥ हरख्यो घणुं हारद लही रे, ते नट नायक ताम ॥ ध० ॥ जश पनणी श्रावी कर्यो रे, वीरमतीने प्रणाम ॥ ध० ॥॥ अर्थ ॥ ज्यारे शिवमाला वांस उपरथी नीचे उतरी त्यारे तेणी तेना पिताने एकांतमा लगई श्रने पक्षी उपर उपकार करवा सारू कुकडाए कहेलो वृत्तांत धीमेश्री पोताना पिताने तेणीए कह्यो.. आ नटनी कुंवरीने धन्यवाद घटे. ॥१॥ शिवमालानो हारद सांजली नटनो नायक घणोज हर्ष पाम्यो. पी वीरमतीनो यशोवाद जचरी तेणीनी पासे तेणीने प्रणाम कर्या. ॥२॥ गुण रागी थ रागिणी रे, तेड्यो निकट नटराय॥ध०॥ माग माग श्रापुंतुने रे, जे मागे ते पसाय ॥ ध० ॥३॥ लही अवसर नट विनवे रे, जो तमे री ऊयां मात ॥ ध० ॥ कीजे पसाय ए कुकडो रे, सो वाते एकवात ॥ ध० ॥४॥ अर्थ ॥ वीरमती नटना गुणोथी प्रसन्न अवाथी शिवकुमर नटने पोतानी नजीक बोलाव्यो. पासे श्रावतांज कांके हे नटराज! तुं जे माग ते आपवाने खुशी बुं.माटे सुखेथी श्वा मुजब माग. ॥ ३ ॥ श्रवसरनो लागजोइ नटे विनंति करीके हे माता! जो तमे प्रसन्न थयां होतो आ कूकडो श्रापवानी कृपाकरो. सो वखत श्राप पुरशो तो श्रमारी तो एज विनंति. ॥४॥ शीखे ने पुत्री महारी रे, कुकट गति उदास ॥ध॥ नही श्रम पासे कुकमोरे, तेणे नवी पहोंचे श्राश ॥ ध० ॥५॥ को अवर तमे पालजो रे, मुजने करो, बदीस ॥ध॥ धण कणनी नही मुज मणा रे, याचीशु वली श्रवनीश ॥ध॥६॥ अर्थ ॥ श्रा शिवबाला कुंवरी कुकडानी तमाम रीतन्नात प्रेम सहित शिखेने परंतु अमारी पासे कुकडो नथी तेथी तेनी आशा परिपूर्ण अती नथी. ॥ ५॥ तमे कोई बीजा कूकडाने पालजो. अमने तो ए बदीस करो. अमारे हवे धन धान्यनी कां उंगश नथी. जो कदापि हशे तो बीजा नृपति पासेथी मांगीशुं.६ वलती वीरमती कहे रे, ए\ माग्युं तें दान ॥ ध॥ पंखी थापतां मादरो रे, केम पोसाये वान ॥ध॥७॥ मणी कंचन गयवर तुरी रे, ए श्रम दान प्रसिद्ध ॥ध ॥ श्राज लगण नवि सांजव्यां रे, केणे पंखी दीध ॥ ध० ॥ ॥ अर्थ ॥ तेना जवाबमां वीरमतीए कयुके आवं दान ते तें शुं जोइने मांग्युं ? वली पक्षीने दानमां श्रापतां अमारी शी शोना वधे ? ॥ ७॥ दानमां हीरा, सोनु, हाथी, घोडा एवां प्रसिद्ध दान तो अमे श्रापीए बीए परंतु कोइए दानमां पदी श्राप्युं एवं आजलगी अमे सांत्नट्युं नथी. ॥ ७॥ राख्यो में ए पंखीयो रे, वधू रमवाने काज ॥ध ॥ तेहने हव्या केम ब नेरे, श्रापुंतो श्रावे लाज ॥ध ॥ ए ॥ नट कहे पंखी थापतां रे, कांश वि मासण कोक ॥ध० ॥ हुं मांगुं राजी थश्रे, लागशे नहीं तुम खोम॥धार॥ अर्थ ॥ ए पक्षीने में मारा दीकरानी वहुने रमवामाटे राख्यो बे. तेथी पदीने श्रापतां तेनुं मन मुःखाय ते केम बने ? माटे तने आपतां शरम लागे . ॥ए॥ शिवकुमरे कह्यु के ए पक्षीने श्रापतां क्रोडो गमे आडा विचार शुं करो गे. दुं राजी अश्ने आपनीपासे मांगी लडं बुं तेश्री तेमां तमने नुकशान लागशे नही. ॥१०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय उदास. पण हैडाथी न उतरे रे, तुमने वहालो ने एह ॥ ध० ॥ तो देतां गुंदा गलो रे, हवे तुम लाधो बेद ॥ ध०॥ ११॥ ए कुकम माग्या वती रे, जो कचुथाउंडो एम ॥ ध० ॥ जो श्रमे अवर कांश मागतां रे, तो दे सकतां केम ॥ध॥१२॥ अर्थ ।। परंतु पदी तमने बहुज वहालु लागवाथी तेने आपतां तमारा हैयामांथी ते बुटतो नश्री. माटे तेने आपवामां शुं गलचवा गलोगे. हवे अमे आपना मनने जाणी गया. ॥ ११ ॥ मात्र कूकडानेज मागतां थकां ज्यारे श्रावीरीते कचवाउंगे तो बीजुं कां तेना करतां वधारे किंमती मांगत तो शी रीते आपीशकत? ॥ १॥ राणी नटने प्रीब्वे रे, पण प्रीव्यो नवि जाय ॥ध०॥ वचन वेधाणी शुं करे रे, कुक्कड कीध पसाय ॥ धम् ॥ १३ ॥ पंखी लेवा मोकल्यो रे, सचिव गुणावली पास ॥ध ॥ तेणे जर माग्यो कूकडो रे, जंमा लेश निसास ॥ध ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ राणीए नटने अनेक रीते समजाववामांड्यो परंतु ते कोइपण रीते समज्यो नही. श्राखरे कु. कडाने आपवानी कबुलत आपी. वचनमां बंधाइ हती तेथी लाइलाज हती. ॥ १३ ॥ वीरमतीए गुणावलीनीपासे प्रधानने पदी लेवा मोकट्यो. प्रधाने मांगता पेहेलां तेणीनी पासे जइ प्रश्रम ऊंडो निसासो मुकी पठी कुकडो मांग्योः ॥ १५ ॥ बाइ समजाइ कहुँ रे, थापो मुज ताम्रचूम ॥ ध० ॥ अक्का नटने श्रापशे रे, साच म जाणशो कूम ॥ध॥ १५॥ काम नथी हनुं शहारे, शहां रहे एहने विनाण ॥ ध० ॥ कुशलो रदेशे नट कने रे, लहेशे कोड कल्याण ॥ध॥१६॥ अर्थ ॥ गुणावलीने प्रथम सघली वात कही पनी कडं के मने आ कूकमाने आपो. डोशी आ कूकडाने नटनेज श्रापवानी. ते साचीज वात. जरापण खोटी भानशो नही. ॥ १५॥श्रा वखते हठ करवानो प्रसंग नथी. अहीं आ रेहेवाथी तेने विघ्नो. नाटकीया पासे क्षेम कुशल रहेशे अने क्रोडोप्रकारे तेने सुख मलशे. ॥१६॥ प्राण तणीपरे राखशे रे, शिवमाला सुकुमाल ॥ ध० ॥ त्रीजा उहासनी मोहने रे, कही ए विशमी ढाल ॥ ध० ॥१७॥ अर्थ ॥ अत्यंत कोमल स्वलाववाली शिवमाला तेने पोताना प्राणनी जेम साचवशे. त्रीजा उदासनी वीशमीढाल कवि मोहन वीजयजीए कही. ॥ १७॥ ॥दोहा॥ सुणी वचन विलखी थर, गुणावली अत्यंत ॥ सासू फांसू विहं गथी, वेर वहे जगवंत ॥१॥ एहने तो लागे नही, हलद फटकमी रेष ॥ मुजथी केम देखी करी, दीधो जाये एष ॥२॥ अर्थ ॥ प्रधाननां मुखश्री वचनो सांजली गुणावली अत्यंत कांखी पडीगइ. ते बोलीके हे जगवंत श्रा सासु विनाकारणे पक्षीनीसाथे वेर राख्या करे. ॥१॥ पदीने श्रापी देवामां तेना मनमां तो हलदर फटकमी आपवा जेवू लागे. परंतु हुं देखी देखीने तेने श्रापुं एम माराथी केम दीधो जाय. ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ११ मतिनावी साठी तणी, सांजलरे मंत्रीश॥ जश्ने समजावी कहो, देश नटने शुं करीश ॥३॥ कीधो मुजपति कूकमो, हजी न प होती दाम ॥ कांश नचाडे घरे घरे, परदेशे बेकाम ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ हे मंत्रीजी ! एनी तो घडपणमां साठे बुद्धि नागीने तेथी श्रापी देवान कहे. परंतु तमे जइने तेने समजावोके नटने श्रापीने शुं करशो? ॥ ३ ॥ मारा स्वामिने कूकडो बनाव्यो तोपण हजु शक्ति फोरववानो अंत आव्यो नही ते विनाकारणे परदेशमां घेर घेर नाचवाना काममाटे सोंपे. ॥४॥ श्राश विलुधी एहनी, मुज निशदिश विहाय॥राणीजीना बापर्नु, एहमांहे शुं जाय ॥५॥ पुःखे पासुं तास फुःख, वरने हांसु थाय ॥ मीयांनी दाढी बले, अन्य तापवा जाय ॥६॥ अर्थ ॥ तेनी उपरना आशाना बंधारणे मारा रात दिवस जाय बे. तेने आपी देवामां राणीना बापर्नु शुं जाय अर्थात् तेने शुं नुकशान थाय.? ॥ ५॥ जेना पडखामां दुःखे तेनेज पीडाहोय. बीजाने तो उलटी हांसी करवानुपण बने. केहेवतके मीयांजीनी दाढी सलगती होय त्यारे बीजा तापवाजायः ॥६॥ बांध बोम सचिवे करी, घणी गुणावली साथ ॥ आयत सुंदर लही प्रिया, सोप्यो पिंजरनाथ ॥ ७॥ अर्थ ॥ मंत्रीए अनेक युक्ति प्रयुक्ति गुणावलीसाथे करी. गुणावली ए पांजरामा रहेला पोताना नायने सोप्यो भने सोंपता पेदेखा तेणीए आ प्रमाणे कडं ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १ मी॥ ॥ हे पियु पातलीया थेंबो शिरना मोमजो ए देशी ॥ हो पियु पंखीयमा, नारी गुणावली तामजो, पिंजरी कर लीधो करते लोयणेरे लोल ॥ हो० ॥ पजणे परिदरी मुजजो वीउमवा मति कीधी अगणित जोयणे रे लोल ॥ १॥ दो० ॥ वसिया हृदय मोकारजो, तन मनना सोदागर परदेशी थयारे लोल ॥ हो ॥ मूकता रखे वि सारिजो, संजारी को वेला पियु करजो मयारे लोल ॥२॥ . अर्थ ॥ राणी गुणावलीए अांखमा आंसुनीधारा चालतां पांजरूं हाथमां लीधुं अने बोली हे मारा नाथ! पक्षीजी आखरे तमे मने तजी दीधी. बेवटे वियोग करवानीज बुद्धि केलवी, अने नगणीशकाय तेटला योजन सुधी दूरजवानो विचार कर्यो॥ १ ॥ हे स्वामि तमे मारा हृदयमां वास करी रह्यागे. तमे मारा तनमना सोदागर बतां, परदेशी थवा मांगोगे. हवे मने पडतीतो मुकी परंतु मारू विस्मरण करशो नही अने को वेला याद लावीने हे स्वामि आ दासी उपर कृपा करजो. ॥२॥ हो ॥ तुमे कहीए क्षण मात्रजो, योवनना श्रानूषण नहीं मुने विस रोरे लोल ॥ हो ॥ न कर्यो गुन्हो कोजो, अवगुण विण विम व्हाला कांकरो रे लोल ॥३॥ हो ॥ हुती श्राश अनंतजो, थोडीपण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय उवास. कां नाणी मुज उपर दया रे ॥ लोल ॥ हो ॥ चतुरे न थापी पं खजो, मेलो उर्लन तेनो जे करथी गया रे ॥ लोल ॥४॥ अर्थ ॥ हे स्वामि! तमे मारा यौवनना शृंगारो तेथी मने क्षणमात्रपण विसरता नथी. में आपनो कांइपण गुन्हो को नथी. तेथी मारा वांक शिवाय मने तजी देवाचें केम करोगे? ॥ ३ ॥ हे स्वामिनाथ! मने श्रापनाथी घणी आशा पूर्ण करवानी हती. ते पूर्ण करवामां मारा उपर थोडीपण श्रापे दया केम न आणी? वली प्रन्नुए मने पांखो पण आपी नथी. तेथी आप मारी पासेथी गया पली आपनो मेलाप श्रवो पण पुर्खन ॥४॥ हो ॥ जोवो मीट मिलायजो, लावी वश ए लदेवो पियु मेलावडो रे ॥ लोल ॥ हो ॥ जे पाडेले वियोगजो, तेहना मुखमांहे महीपुत्री पडो रे ॥ लोल ॥ ५ ॥ हो ॥ सुंदर मंदिर बोडजो, अकुलिणी शिव माला मोह्या तेहथी रे ॥ लोल ॥ हो ॥ जासो विरह जगायजो, ज्वालाते असराला नही शमे मेहथी रे ॥ लोल ॥ ६॥ अर्थ ॥ हे स्वामि! आ वखत मारी सामे नजरो नजर मेलवो. कारणके हवे फरी आपनो मेलाप श्रवो ते नवितव्यताने श्राधीन. वली जणे आपणो वियोग कराव्योडे तेना मोढा उपर धूल पडजो ॥३॥ हे स्वामिनाथ! तमे कुलहीन शिवमाला उपर मोह्या तेथीज या सुंदर मंदिरने गेडवानीचा करी. परंतु हे पियुजी ! जो अत्यंत विरह जगावीजशो तो ते विरहनी महा विकराल ज्वाला वरसादथी पण शांत श्रवानी नथी. ॥६॥ हो॥श्रणखीलो किरतारजो, गोठमली थापणलीन शक्यो सांसही रे ॥लोलाहो॥ बाती महारी कठोरजो, वीमवानी वेला हजी आखी रहीरे लोल ॥ ७॥ हो॥ कहुं बिबाश्ने गोदजो, वेरणाने पण न होशो वीउमवा घडीरे ॥लोल॥ हो॥ हुं श्रबला निरधारजो, धणने उपर कुमया न करो एवमी रे ॥लोलाज॥ अर्थ ॥ हे स्वामिनाथ ! इर्ष्यावालो जे कर्मरूप किरतार ते श्रापणी गोष्ठीने सहन करीशक्यो नही. वली हे नाथ! मारी गती पण अत्यंत कठोर कारणके वियोगनो समय आव्यो ते उतां फाटी नहींजतां आखीने आखी रही. ॥ ७ ॥ हे स्वामिनाथ! हुं आपनीपासे खोलो पाथरीने माफी मागुंवं. अने बुं बु के मारा वेरीने पण मारीजेम वियोग अवानो अवसर प्राप्त अशो नही. हे कृपासिंधु! हुं बलहीन, निराधार. एवी तमारी स्त्री उपर आवडी अकृपा करो नही. ॥७॥ हो ॥ तुम रढीयाला बोलजो, खटकशे क्षणक्षणमा खटक ताणी परे रे ॥ लोल ॥ हो० ॥ विबुह्या मिलण फुलंजजो, लागे नही जर पाबु पत्र तरुवरे रे ॥ लोल ॥ ए॥ हो ॥ जाशो कोश हजारजो, दा सीने को समये स्वामी संचारजो रे ॥ लोल ॥ हो० ॥ करी करूणा एक वारजो, मंदिरिए आपणके वेगे पधारजो रे ॥ लोल ॥१०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १३ अर्थ ॥ हे स्वामिनाथ ! तमारा रढ उत्पन्न करें तेवा मीठा बोलो तमारा वियोगमां खमां खटको यानी जेम क्षणे क्षणे मारा अंतःकरणमां खटक्या करशे. वली हे दयालु ! जुदा पड्या पक्षी फरी मेलाप वो दुर्लन बे, कारण वृक्ष उपरथी खरेलुं पांदकुं त्यां जइ फरी चोटी शकतुं नथी. ॥ ए ॥ हे स्वामिनाथ ! आपतो हवे हजारो कोश दूर जवाना, परंतु या दासीने कोइक समये हे नाथ! अवस्य स्मरणमां लावजो. वली हे दयासागर ! आ दासी उपर एक वखत करुणा करीने पोताना मंदिरे जलदी पधारवा मेहरबानी करशो ॥ १० ॥ दो० ॥ तुमे मुज जिवन मूलजो, रातमीयुं यांखडीयुं उपर वारणे रे ॥ लोल ॥ हो० ॥ ए मुज निपट थालोचजो, फेरवशे नाटकीया पर घरबारणे रे ॥ लोल ॥ ११ ॥ हो० ॥ जो राखुं करी जोरजो, सासु डीडी नवि पुरूं पडे रे || लोल || हो० ॥ देतां न वहे चित्तजो, जीवतणी गति जाणो घट जेम चाकने रे ॥ लोल ॥ १२ ॥ ॥ हे स्वामिनाथ ! तमे मारा जीवतरना मूलगे. मूलविना जेम वृक्ष सुकाइ जाय तेम अपना वियोगे श्रा शरीरनी तेवीज दशा समजशो. तेथी पनां रक्त नेत्रो उपर हुं वारी जानंं. वली हे प्राधार ! म मोटी चिंता तो एज थायबे के या नाटकीया आपने पारका घरोना द्वारे ज्यां त्यां फेरव्या करशे. ॥ ११ ॥ हे स्वामिनाथ ! तोपण मनमां एज विचार वेबे के जो आपने हुं मारूं जोर - जमावी अत्रे राखुं तो वीरमती बहुज पुष्टबे, तेने हुं पहोंची शकुं तेम नथी. तेथी हे जीवनहार ! एवं तां पापीदेतां मारूं मन कबुल करतुं नथी. मारा मननीदशा चाकडा उपर चडेला घडानी जेवी अत्यारे थश्वे एम जाणजो ॥ १२ ॥ हो० ॥ बोल्यो कुक्कम रायजो, समजावे पद नखथी करने लखी रे ॥ लोल ॥ हो० धनमन हरणी मकरीश फिकर लगारजो, नमले तुज मुज मेलो जान गया पढी रे ॥ लोल ॥ १३ ॥ हो० ॥ मिलशुं धरजे धीरजो, लगो तोपण तुं मुज जाणजे तुकडो रे || लोल ॥ दो० ॥ राखजो हृ दय मोजारजो, मुजने नर नटकरशे टाली कूकडो रे ॥ लोल ॥ १४ ॥ ॥ ॥ एटलामां कुक्कडराय बोलवा लाग्या छाने पगना नखथी गुणावलीने अक्षर लखी समजाववा लाग्यो. हे मनोहारिणी ! तमे जरापण वियोगनुं दुःख धारण करशो नही. वियोग नाश पामशे, परंतु मारो जीवजशे तो पी तमारो ने मारो मेलाप कदि रेहेवानो नथी. ॥ १३ ॥ हे मनोहारिणी ! आपणे फरी मलशुं. तमे धीरज राखजो. हुं दूर नथी एम मानजो. वली हे प्यारी ! तमे एमपण हृदयमां श्रवधारजोके या नट लोको मारू कुककापणुं मटाडी पुरुष बनावशे. ॥ १४ ॥ दो० ॥ देश तथा परदेशजो, परणी धुर घरणी ते केम विसरे रे ॥ लोल ॥ हो० ॥ वालिम वचने तामजो, कांइक तो हैमामां धीरजता धरे रे ॥ लोल ॥ १५ ॥ हो० ॥ सचिवने कहे नृप नारिजो, सासूने २५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ तृतीय उल्हास. ज सोंपो तमे था पांजरो रे ॥ लोल ॥ हो॥ करी प्रणिपति मंत्री शजो, राणीने तेह श्राप्यो तत्क्षण पाधरो रे लोल ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ हे मनो हारिणी ! गमे तेवा देश तथा परदेशमां जशुं तोपण जे प्रश्रम परणेली स्त्रीने ते केम विसराशे? तेथी हे वहाली ! पोताना स्वामिनां वचने कांक धीरज अंतःकरणमां धारण करवीतेज श्रेयचे. ॥ १५ ॥ त्यारपरी गुणावलीए मंत्रीने बोलाव्या अने कडं के सासूजीने आ पांजरू बइ जश्ने सोंपो. पत्री मंत्रीए गुणावलीने प्रणाम करी, पांजरूं तेनी पासेथी लइ जर तत्क्षण सिधुंज ते पांजरू वीरमती राणीने आप्यु.॥१६॥ हो ॥ नटने बगस्यो सधजो, राणीए पण न करी को पड खामणी रे ॥ लोल ॥ हो ॥त्रीजा उबासनी एहजो, एक वी शमी कही मोहने ढाल सोहामणी रे ॥ लोल ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ राणी वीरमतीए तरतज ते पांजरू नटने बहीस कर्यु. अने बक्षीस करतां पेहेलां पही संबंधी बीजी कांपण वातचितकरी नही. ए प्रमाणे त्रीजा उपासनी एकवीशमी ढाल मोहनविजयजी ए मनने सोहामणी लागे तेवी कही.॥१७॥ ॥दोहा॥ नटवर पिंजर शिरधरी, राणी कीध प्रणाम ॥ हरखे उनराते हीये, श्राव्यानिज विश्राम ॥१॥ पिंजर शय्या उपरे, थाप्यु यतने जोर ॥ शिवमाला करजोमीने, कहे वचन एक गेर ॥२॥ अर्थ ॥ ते उत्तम नटे पोताना मस्तक उपर पांजराने धारणकर्यु अने वीरमतीने प्रणाम करी, हर्षथी उत्तराता हैये पोताना विश्राम गमे ते आव्यो.॥१॥ घेर श्रावी पांजराने सुखासन उपर पुष्कल यतना पूर्वक मुक्यु. पनी शिवमाला तेना सामी बेहाथ जोडीने एक चित्तथी नीचे मुजब कहेवा लागी.॥२॥ श्रमे अराजक सहु हता, आज लगण शिरताज॥हवे तो धणि याता थया, तुमथी कुर्कटराज ॥३॥प्रजा श्रमे राजा तमे, करशुं नव नव रंग ॥ जाग्य होयतो संपजे, उत्तम चतुर प्रसंग ॥४॥ __ अर्थ ॥ हे मस्तकना मुगट समान कुर्कटराज ! अमे आज सुधी सर्वे राजाविनाना हता, ते हवे धणी आता श्रया. ॥३॥ अमे आपनी प्रजा अने तमे अमारा राजा एवीरीते हवे नवा नवा रंग करशुं. ज्यारे उत्तम लाग्य प्रायचे त्यारेज उत्तम चतुरनो संयोग मले. ॥४॥ पेहेलां मुजरो तुमतणो, पडी अवरनो होय ॥ राजी रहेजो थ हनिशी, उःख न वदेशो कोय॥५॥ मेवामुक्या अागले, चुगे विहं गपति तेह ॥ पण कंठे नवि उतरे, गुणावलीने नेद ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ प्रथम आपनो मुजरो करीने पनीज बीजानो मुजरो थशे. तमे रात्र दिवस आनंदमांज रहेजो. कोपण प्रकारचं फुःख मनमां धरशो नही. ॥ ५॥ त्यारबाद शिवबालाए कुर्कटराजपासे नव नव जातना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १५ मेवा मुक्या. ते तेणे खावामांड्या परंतु गुणावलीना स्नेहनुं स्मरण श्रतां ते गले उतरता नथी. ॥ ६॥ समजावे नट पुत्रिका, अहो पंखी मतकूर ॥ चूगो सुखे मन उमगे, पहोंचशे वाजते तूर ॥७॥ अर्थ ॥ ते देखी शिवबाला पदीराजने समजावे बेके हे कुर्कटराज! तमे कुरो नही. मनमां उमंग धारणकरो सुखेथी खा. तमारा मनोरथ सर्व पूर्ण थशे.॥ ७॥ ॥ ढाल मी॥ (आज हजारी ढोलो प्राहुणो॥ ए देशी)॥ कहे मंत्रीने गुणावली, कहो राणीने सम जाय ॥ वालिम मोरारे, वीउडी घणुं सांजरे ॥१॥क्यांश जाशो नट लेश्ने, मुज प्रीतम प्राणाधार ॥ वा ॥ हाथ विलुटो मेलावडो, फरी होता लागे ने वार ॥ वा ॥ वी० ॥२॥ अर्थ ॥ गुणावली राणी मंत्रीने कहे जे के हे मंत्रीजी ! तमे वीरमतीने जर समजावोके माराथी विखुटो पडेलो ए मारो नाथ मने बहुज याद श्राव्या करे. कोइ परमेश्वरनो वहालो के के जे जश्ने मारा पतिने विदेश जतो ते रोकी राखे? ॥१॥ मारा प्राणना आधाररूप स्वामिने ए नटो कोण जाणे क्या लइ जशे? वली एक वखत जे मेलाप हाथमाथी बूट्यो ते फरी मलतां वार लागे के. ॥२॥ ए नर जमरने पगे पगे, नव नवला मलशे मित्त ॥ वा ॥ विण पति कर गति माहरी, तुमे जुर्ड विचारी चित्त ॥ वा० ॥ वी० ॥३॥ रहे शे जो कुकडलो थको, तो ही मायडीना पूरशे कोड ॥ वा ॥ श्रा लाळुबो ए माहरो, मत हाथे विखमो जोड ॥ वा ॥ वी ॥४॥ अर्थ ॥ए नर जमरने पगले पगले नवा नवा मित्रो मलशे. परंतु हे मंत्रीजी ! तमे मनमां विचारोके पतिविना मारी ते शीगति थशे? ॥३॥ ए कुकडो उतां जो अहीं रहेशे तो पण तेनी माना कोड पूरशे. मारे तो ए बालाटुंबो ने, माटे माताजीने जश्ने कहोके जाणी जोश्ने पोताने हाथेज शुं काम जोडीने बोडी नांखो गे. ॥४॥ राणी तो पूरव जन्मनी, यश् वेरण न तजे केम ॥ वा ॥ टाली मनुष्य पंखी कर्यो, तोय नाव्यो हजीय निवेड ॥ वा० ॥ वी० ॥५॥ जे मुज प्रीतम मेलवे, तस उशिंगण न थवाय ॥ वा० ॥ प्राण करूं तस बणे, पांपणेथी पूंजु पाय ॥ वा० ॥ वी० ॥६॥ अर्थ ॥ ए वीरमती तो मारी पूर्व जन्मनी पाकी वेरण , ते मारो केड मुकती नथी. पुरुष मटाडी पदी को तो पण हजु निवेडो लावती नथी ॥५॥ हे मंत्रीजी जे मारा स्वामिनाथने मेलवी आपे तेनो उपगार माराथी केम नूख्यो जाय ? हुँ मारा प्राणश्री तेना लुंगणा करूं अने पापणोथी तेना चरणोने पूजु.६ सासु कां जाती नथी, गया जेम ऊंटोना शिंग ॥ वा० ॥ मदारा पियुनो यश सुणी, एहने केम लागे ने हींग ॥ वा०॥ वी० ॥ ७ ॥ कहे For Personal and Private Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ तृतीय उदास. मंत्री बा तुमे, हवे न करो दुःख प्रतिचार ॥ वा०॥ चंडा रंमा न बेमीये, ए तो उतरी साते उतार ॥ वा० ॥ वी० ॥७॥ अर्थ ॥ जेम ऊंटोना शिंगडा गया तेम ए वीरमती कयां जाती नश्री. मारा स्वामिनाथनो यश सांजवी तेने तो हींग मुक्या जेवू लागे ॥ ७ ॥ मंत्री कहे के के हे गुणावली ! तमे हवे सु:खना विचार मनमा लावो नहीं. ए रांग चंडीका जेवीने, एने बेडो नही. ए तो साते उतारे उतरेली नपावट जे. ॥॥ रही डे थश्ने ए मोसली, एहनो श्राधो जरोसो नाण ॥ पड़ी तो ए राज तुमारकुं, वली चंद नृपति महिराण ॥ वा ॥ वी० ॥ ए॥ मन वारी राख्युं सुणी, हितकारी मंत्री बोल ॥ वा० ॥ मेवा कनक कचोलमा, पियु माटे थाप्या अमोल ॥ वाण ॥ वी० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ हवे तो ए डोसली-बहुज घरडी अइने तेथी एनो जीववानो अरधो जरोसो जाणजो. एना पगी तो था राज्य तमारूं अने महाराजा चंदराजानुज ने ॥ ए॥ मंत्रीनां एवां हितदायक वचनो सांजली गुणावलीए मनने ठेकाणे राख्युं अने अमूट्य एवां सुवर्णनां पात्रो स्वामिनाथना नोजनने माटे आप्यां.१० देश जलामण मंत्रीने, मूक्यो फरी प्रीतम पास ॥ वा ॥ सोप्या शिवमाला जणी, मीठा मोदक सुविलास ॥ वा०॥ वी० ॥ ११॥ नट कन्याना कानमां, कह्यो मंत्रीए नेद ॥ वा०॥ चंद नरेशर एह , पंखी माये कर्यो धरी खेद ॥ वा० ॥ वी० ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ मंत्रीजीने नलामण करीने पोताना स्वामिनाथनी पासे फरी मोकट्या. अने तेमनी साधे श्रत्यंत मिष्ट एवा मोदक श्रने विलास करवानी वस्तु शिवमालाने आपवा सारू सोप्या ॥ ११॥ शिव मालाने मंत्रीजीए तेना कान पासे जश् कुकडा संबंधी सर्व वृत्तांत कह्यो. आ चंद महाराजाज ने अने तेनी विमाताए तेना उपर घेष थवाथीज तेने पदी बनाव्यो . ॥ १॥ रूडी रीते राखजो, मत दाखजो एहने बेद ॥ वा ॥ वेदेला फरता आवजो, लेख लखजो धरजो नेह ॥ वा० ॥ वी० ॥ १३ ॥ कुर्कटने प्रणमी करी, श्राव्यो मंत्री निज श्रागार ॥ वा० ॥ कीधा ढोल ढको लडा, चढी चाख्यो नट शिरदार ॥ वा० ॥ वी० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ एमने रूमी रीते संजालीने राखजो. कोइ प्रकारे तेने नेह देशो नही. फरता फरता वेहेला आवजो. कागल पत्रो लखजो अने हेत प्रीत राखजो ॥ १३ ॥ पत्री मंत्री कुकडाने प्रणाम करी पोताने आवास आव्या. एटले नटना नायकोए प्रयाणनो ढोल वगाड्यो अने ते चाली निकट्या. ॥ १४ ॥ ढोल सुणीने गुणावली, चढी सातमी नूमि ताम ॥ वाण ॥ जाता दीग नटवरा, लेश शीशे पंखी धाम ॥ वा० ॥ वी० ॥ १५॥ पिंजर For Personal and Private Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १ए नजर नरी जुए, गयो अलगो लोपी सीम ॥ वा ॥ थामा तरू श्राया घणा, पामी मुराये हित नीम ॥ वा० ॥ वी० ॥ १६॥ अर्थ ॥ ए प्रमाणनो ढोल सांजली गुणावली सातमा माल उपर चडी. तेणी ए नाटकीयाने जाता दीग श्रने एकना मस्तक उपर पांजरूं दी ॥ १५॥ गुणावली नजर खेंचीने पांजरा तरफ जोया करे ले एटलामां तेढ सिमाडो गेडी चाट्या. वली घणा मोटा वृदो पण आडा श्राव्या एटले पांजरू न देखांता ते मूर्ग खाइने पडी. ॥१६॥ शीतल पवन प्रयोगथी, लही चेतना सखी उपचार ॥ वा ॥ सम जावी श्रावी मंत्रीए, राणी समऊ मनह मकार ॥ वा० ॥ वी० ॥१७॥ श्रावी वीरमती कहे, बहु थयो निःकंटक गेह ॥ वा० ॥ गयो कुर्कट ते नली थर, हवे जो तुं तुज मुज नेह ॥ वा ॥ वी० ॥ १७॥ अर्थ ॥ सखीए शीतल पवनोपचारथी अने बीजा प्रयोग करी सावधान करी. त्यार बाद मंत्रीए श्रावी ने समजाववाथी गुणावलीए मनमां समजण धारण करी ॥१७॥ थोडा वखत पनी वीरमतीए आवी कह्यु, हे वहु! हवे तमारूं घर निष्कंटक थयु. कुकडो गयो तेज सारूं श्रयुं. हवे तमारो अने मारो स्नेह केवो जामे मे ते जो जो. ॥१७॥ अवसर चतुर गुणावली, करे हाजी हाजी सुविशाल ॥ वाण ॥ त्रीजा उवासनी मोहने, कही बावीशमी ए ढाल ॥ वा० ॥ वी० ॥१॥ अर्थ ॥ समयनी जाण गुणावली, वीरमतीने संपूर्ण रीते हाजी हाजी करवा लागी. वीजा नहासनी मोहन विजयजी ए आ बावीशमी ढाल कही. ॥ १० ॥ ॥दोहा॥ जेम जेम प्रितम सांजरे, तेम तेम हृदय मोकार ॥ धखे विरह पावक प्रबल, बांसु धार अपार ॥१॥ जे देशे सजन वसे, ते दिशि तणो पवन्न ॥प्रीतम तनु फरसी करी, फरसो माहरु तन्न ॥२॥ अर्थ ॥ अहीं गुणावलीने जेम जेम पोताना स्वामिनाथ याद आव्या करे ने तेम तेम हृदयमां प्रबल विरहानि धखवा मांड्यो अने नयणे आंसुनीधारा अपार वेहेवा मांडी ॥१॥ ते श्ववालागीके जे देशमा मारा नाथ होय ते दिशा तरफनो पवन मारा पतिना शरीरने फरसी पी मारा शरीरने फरसजो. ॥२॥ थरे प्राण प्राणेश विण, रहेशो केवे ढंग ॥ गमन शील तुम धर्म बे, केम न गया पियुं संग ॥३॥ किहां कंत किहां नवल रस, किहां सुरंगो नेह ॥ बाजी बाजीगर तणी, थ ग को एह ॥४॥ अर्थ ॥ हे मारा प्राणो! तमे मारा प्राणनाथ गया बतां हवे केवी रीते रही शकशो. तमारो स्वन्नावज जवानो . तेथी तमे मारा प्राणनाथनी साथे केम न गया? ॥३॥ मारो स्वामी क्यां, नवनवा रस क्या, उत्तम रंगवालो स्नेह क्यां? आ तो जाणे सघली बाजीगरनी रमतज अश् होयनी तेवू अयु.॥४॥ For Personal and Private Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ՀՍԾ तृतीय उवास. पियु सुरगिरि सम जीवजो, वधजो वम विस्तार ॥ मेलावे संजार जो,अहो जीवन श्राधार ॥५॥ रे एम गुणावली, पियु विण सुने गेह ॥ तनु शृंगार अंगार सम, विरहे पुर्बल देह ॥६॥ अर्थ ॥ मारा प्राणनाथ मेरू पर्वतनी जेम चिरंकाल जीवजो, अने वमना विस्तारनी जेम तेनी वृद्धि थजो. वली हे मारा प्राणाधार ! तमे मेलाप करवानुं स्मरणमा राखजो ॥ ५॥ स्वामिविनाना सूना घरमां एवी रीते गुणावली फूर्या करे बे. शरीरना शंगार तेने अंगारा समान लाग्या करे ने अने विरहथी शरीर सूकातुं जाय जे. ॥६॥ तीव्र निरंतर तप तपे, कर्म निर्जरा हेतु ॥ धरे ध्यान जिनराज, जे नवसागर सेतु॥७॥ अर्थ ॥ गुणावली कर्मनी निर्जरा करवाना हेतुथी निरंतर तीव्र तपश्चर्या करे . अने नवसागर तरवाने वहाण समान एवं जिनराजनुं ध्यान धरे ले. ॥ ७॥ . ॥ ढाल १३ मी॥ ॥ नितुर न थश्येरे कान गोवाल ॥ ए देशी ॥ नवल सनेही रे चंद नूपाल, वे पंखी पण तोही ॥ श्रावे संगलीनारे नृप मबराल ॥ ए श्रांकणी ॥ सात नृपति निज नूमि पेरे, चाव्या दल लश पूर ॥ गुणावली श्रादेशथी रे, गु० उलंगवा चंद सनूर ॥ न० ॥ बे॥१॥ ते नटने श्रावी मल्यारे, कुकड प्रणम्या पाय ॥ स्वामि तारी सेवनारे, स्वा० श्रम कुणी तो न मुकाय ॥ न० ॥ ॥२॥ अर्थ ॥ चंदराजाना खरा स्नेही एवा शुरवीर सात राजा चंदराजा पदी श्रया उतां गुणावलीना श्रा दशथी पोताना संपूर्ण सैन्य सहित, चंद राजानी मिगशथी उद्धं न पडवा देवा तेनी पासे आवी रह्या. ॥१॥ ते सर्वे नटना मंडलने श्रावीने मध्याअने कुर्कट रायने तेनए प्रणाम कयों. वली तेनए को के हे स्वामि तमारी सेवा अमे विद्यमान उतां श्रमाराथी तजावानी नथी.॥२॥ श्राव्या गुणावली कहेणधीरे, रदेशुं उलंगे निशदिश ॥ जो पंखी तो झुं थयुं रे,बोपण तम चरणे ए शीश ॥ न बे ॥३॥ कुकडे नावि कंधरारे, लद्यं सेवके सन्मान॥नट दल पंखी दल वहे,न एक पंथे प्रेम समान॥नण्॥४॥ अर्थ ॥ अमे गुणावलीना हुकमथी आव्या बीए. रात दिवस तमारा आलंबने रहेशं. आप पक्षी श्रया तेथीशुं थयु? अमारां मस्तक तमारा चरणमांज वे. ॥३॥ एवां तेमनां वचनो सांजली कुर्कटराजे पोतानी क्रोड न मावी. जेथी सेवक राजा पोताने सन्मान मड्यु एम मानवा लाग्या. ए प्रमाणे नटनुं मंडल अने चंदनु दल एक साथे प्रेमपूर्वक पंथ कापता चाट्यां करे . ॥४॥ शिवमाला शिर उपरे रे, राखे पिंजर मारग मांहि ॥ चामर विंजे बेहु जणारे, चा करे बननी कोश्क बांहि ॥ नण्या गामे गाम पुरे पुरे रे, नट निज पेट निमित्त ॥ कुकमा राजा श्रागले, कुण्रमी मेले बहुलुं वित्त ॥ न बे ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ՀԱՍ अर्थ ॥ शिवमाला रस्ते चालतां पांजराने पोताना मस्तक उपरज राखे बे. बे जणा बने बाजुए चामर विजे बे अने एक बत्रधारण करे ॥ ५॥ नगरे नगर अने गामे गाम नाटकीया पोताना उदर पोषण निमित्ते रमतो रमीने जे अनर्गल धन मेलवे , त कुकड राजनी पासे धरे ले.॥६॥ एम जनपद जनपद तणारे, नृप थापे बहु दाम ॥ पिंजरथी नटने थयुं रे, पि० एक पंथ अने दो काम ॥ न वे ॥७॥ शिव माला मेवा घणारे, श्रागल लेश धरंत ॥ जीवितना जीवित परे रे, जी नित कुर्कट जतन करंत ॥नण्णाज॥ अर्थ ॥ए प्रमाणे देश देशना राजा घणुं धन आपे बे. कुकड राजना प्रतापथी नाटकीयाउने तो एक पंथने बे काज श्रया ॥ ७॥शिवमाला अनेक प्रकारना मेवा तेनी पासे मुकेजे. अने कुकडरायने पो. ताना जीवनना आधाररूप गणी तेनुं निरंतर बहुज जतन करे .॥ ७॥ एम नित प्रते नवनवरसेरे, रमता देश विदेश ॥न धरे शंका कोश्नीरे, न नट मन मांहि लवलेश ॥नण्ाा एहवे श्राव्या अनुक्रमेरे, सुंदर देश बंगा ल ॥ पृथ्वी नूषणपुर तिहारे, पृण्सुरपुर हुँती सुविशाल ॥ न ० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ एम निरंतर नवनवा रसश्री रमता रमता देश परदेश करे बे. ते नटो मनमा लेश मात्र शंका कोश्नी पण धारण करता नथी ॥ ए ॥ ए प्रमाणे अनुक्रमे चालता चालतां ते सुंदर बंगाला देशमा इंजपुरी समान अति विशाल एवा पृथ्वीनूषण नामना नगरमां श्राव्या. ॥ १० ॥ जिहां अरिमर्दन नरवरुरे, जेहनो प्रबल प्रताप ॥ तेहने चंदना तातथी,रे ते० इतो मांहो मांहे मेलाप ॥ नण् ॥१९॥ समीयाणा ताण्या नटेरे, पुर सीमाए सुरंग ॥ मुक्यो कुर्कट पिंजरोरे, मुण् करी सिंहासन उत्तंग ॥ न० बे ॥ १५ ॥ __अर्थ ॥ ते नगरमां अत्यंत प्रबल प्रतापवालो अरिमर्दन नामनो राजा राज्य करे बे. ते राजाने चंदना पितानी साथे मित्राचारी हती ॥ ११॥ नगरना सिमाडा उपर सुंदर तंबुड नाटकीयाए ताण्या. तेमां उंचु सिंहासन गोठवी कुर्कटराय, पांजरूं ते उपर मुक्यु. ॥१२॥ तेमाव्या अरिमर्दनेरे, नट रमवा दरबार ॥ पिंजर करी मुख श्रागलेरे, पिण कर्या नाटक गति अनुसार ॥नण्॥१३॥ रीयो पुर राजा घणुंरे,कीधो लाख पसाय ॥ पुग्यो प्रबंध पंखी तणोरे, पु कहयो संदेपे नटराय ॥न बे॥१४॥ अर्थ ॥ ते नाटकीने अरिमर्दन राजाए पोताना दरबारमा रमवा तेडाव्या. पांजरा साथे लइ आगल धरी, सर्व प्रकारना नाटक तेजेए कर्या ॥ १३ ॥ राजा नाटकथी घणोज खुशी अयो अने लाख रूपीया इनाम आप्या. पनी पदी संबंधी नटरायने हकीकत पुउतां संदेपथी तेणे सर्व हकीकत कही. ॥ १४ ॥ तव राजा बंगालनोरे, लाग्यो कुकम पाय॥ मणी कंचन हय हाथीयारे,मग कर्या पेसकसी हितलाय ॥ न बे० ॥१५॥ हूं बं सेवक रावलोरे, रे पंखी नृपचंद ॥ जले पधार्या पाहुणारे, न अणचिंत्या वीरनानंद ॥ न बे० ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० तृतीय उल्लास. अर्थ ॥ ते सांजली बंगालानो राजा कुर्कटरायने पगे लाग्यो. अने पी मणि, सुवर्ण, हाथी ने घोडा प्रेमपूर्वक नजराणामांगल धर्या ॥ १९ ॥ हे चंद नृपति ! पक्षीराज हुं आपनो सेवक बुं. हे वीरसेना पुत्र ! आप चिंता मारा मिजबान थवा जले पधार्या ॥ १६ ॥ जिहां हिां पुण्यप्रसादधीरे, प्रगटे मंगल माल ॥ त्रीजा उल्लासनी मोहनेरे, त्री०कही त्रेवीशमी ढाल || न० ० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ चंदराजा ज्यां जाय बे त्यां तेना पुण्य प्रतापथी मंगलनी श्रेणी प्रगट थाय बे. ए प्रमाणे त्रीजा उल्लासनी वी शमी ढाल मोहन विजयजी ए कही. ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ नट चाल्या पिंजर ग्रही, आगल धरी जहां ॥ निज सीमा बंगालपति, वोलावी वली यांहि ॥ १ ॥ नट रमता क्रमता धरा, सिंहल द्वीप || जिहां सिंहलपुर वर प्रवर, सायर तणे समीप ॥ ॥ ॥ त्या पीनटो पांजराने ग्रहण करी उत्साह पूर्वक कुच करता हवा. बंगालानो स्वामि पोतानी सीमा सुधी ने वोलावी पाठो फर्यो ॥ १ ॥ नाटकीयार्ज रमतो रमता ने पृथ्वीने उलंघता सिंहलपे व्या. त्यां समुना कांठा उपर सिंहलपुर नामनुं अत्यंत सुंदर नगर बे. ॥ २ ॥ तिदां नट कुक्करुनो कटक, जइ उतारो कीध ॥ हरख्यो ति सिंहल नृपति, नटनी सुणी प्रसिद्ध ॥ ३ ॥ नट पण पिंजर कर ग्रही, जइ प्रणम्यो महीपाल ॥ रीकाव्यो नाटक करी, शिवकुंबरे तत्काल ॥४॥ अर्थ ॥ ते नगरमां नटना ने कुर्कटराजना सैन्ये उतारो कर्यो. नटनी घणी ख्याति हती तेथी ने या सांजली सिंहल राजा अत्यंत हर्ष पाम्यो ॥ ३ ॥ त्यार पठी शिवकुमर नट पोताना हाथमां पांजरू धारण करी ते राजानी पासे श्राव्यो. नाटक करवा सारू प्रथम प्रणाम करी विनंति करतां राजाए हुकम करवाथी तेणे नाटक तरतज करवा मांडयुं. जे देखीने राजा बहुज खुशी थयो. ॥ ४ ॥ पंच सया वाहण तो, आव्यो दाण जगीश ॥ ते वेलाते नट जणी, कर्यो सयल बक्षीस ॥ ५ ॥ सिंहल नृपनो यश कही, करी ढोल ढमकार ॥ जिहां स्वकीय उपकारिका, नट श्राव्या तेणीवार ॥ ६ ॥ ॥ राजा पांचसो वहाणनी जगात जे तरतज चावी हती ते सघली नाटकीयाने नाटक जोड़ बक्षीस करी ॥ ५ ॥ सिंहल राजानुं यशोगान बोली, ढोल उपर ढमकारो करी, ज्यां पोतानो उतारो बे त्यां नाटकीया पाठा आव्या ॥ ६ ॥ ॥ ह्या राति यो प्रात जब, करी जोज्य थ‍ स उमाह्यो पोतनपुरे, नट नट निपट सकऊ ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ पोताने उतारे रात्री वासोरही सवार थइ एटले शिरामण करी, तैयार थइ पोतनपुर नगरे, ननुं दल जे पोतानुं काम करवामां महाकुशल बे ते, जवाने हर्षवंत थयुं. ॥ ७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २०१ आखा जगत्ने ॥ ढाल २४ मी॥ ॥ कानजी मेलोने कांबलीरे ॥ ए देशी ॥ राणी सिंहलने कहे रे, पंखीथी धरी राग ॥ आणी आपो ए कुकडोरे, मुजने पियु महानाग ॥१॥ कामणगारो ए कुकडो रे, कर्यु जेणे जगत आधीन ॥ एह जोया पनी सिंहलारे,थ जेम जलवीण मीन ॥ काण्॥ अर्थ ॥ सिंहल राजानी राणी पोताना स्वामिने कहे जे के हे महानाग ! नटनी पासेना कुकडाने मने अपावो. ए कुकडा उपर मने राग थयो ॥१॥ मने तो ए कामणगारो लागे जे. एणे श्राख श्राधीन कर्यु जे. एने जोया पनी जलविनानी माउलीना जेवी मारी दशा अश् गइ बे. ॥२॥ जश रह्या एह पिंजर थकीरे,ते पिंजरमा प्राण ॥ ले गयो चित्तए देख तारे, अहो तिर्यंच विनाण ॥ का० ॥३॥ नूपतिनाखे राणी नणारे, स्यो पंखीथी प्रेम ॥ एहथी एहोनी श्राजीविकारे, मागे श्रापेते केम ॥ का ॥४॥ अर्थ ॥ एने जोया पनी था पांजरा ( शरीर )ना प्राण ते पांजरामा जश्ने रह्या जे. जोत जोतामां एणे मारा चित्तनुं हरण कयु. अहो पक्षीनुं पण केवु उत्तम ज्ञान के ? ॥३॥ राजाए कां के हे राणी ! पक्षी उपर ते प्रेम शुं राखवो ? ए नाटकीयाउने तेना उपर तो आजीविका बे, तेथी तेमनी पासे मांगता ते आपेज केम? ॥४॥ मुजने मागे को तुजकनेरे,ते मुज जेम न देवाय ॥तेम नट एह आपे नहीरे, इन लीधे शुं थाय ॥ का॥५॥ पंखी विना कहे रागिणीरे, मुज जीवित अकय० ॥ ए नट लोजीने जोलवोरे, देश वस्तु सुपसल ॥ का ॥६॥ अर्थ ॥ कोई तारी पासे भावी मारी मागणी करे तो तुं जेम मने श्रापी देवा कबुल कर नहीं तेवीज रीते नटो पण ए पहीने आपे नही. तेथी हर लेवाथी शुं लाल ने ॥ ५ ॥ राणीए कह्यु के हे नाथ ! ए पक्षी विना मारूं जीवतर अकृतार्थ बे. तेथी ए नटो लोनीया , ते ने अत्यंत उत्तम वस्तु श्रापी नोलवो. ॥६॥ मुकया राये राणी हठेरे, दास नटोनी पास ॥ माग्यो सपिंजर कुकडोरे, करे नट वचन प्रकाशकाए श्रम नूपति कुकडोरे,ते केम दीधो जाय ॥ अमने जो आपे ए कुकमोरे, तो श्रमेना नवि थाय ॥ काणान॥ अर्थ ॥ राणीना अत्यंत हग्थी पोताना सेवकोने सिंहल राजे नटोनी पासे मोकट्या. तेए आवीने पांजरा सहित कुकडानी मांगणी करी. तेना जवाबमां नटोए कह्यु के श्रा कुकडो अमारो राजा ने तेथी अमे तेने केवी रीते श्रापी शकीये? परंतु ए कुकडो जो अमने आपी देतो श्रमाराथी तेनी आज्ञानुं जवंघन थइ शके नही. ॥ ७॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ तृतीय उवास. ताकयो लेवा ए पंखीयोरे, राजा नाटक जोय ॥ लाख टके पण एहवो रे, दाता न मल्यो कोय ॥ का॥ए॥ नूपवधु जो जीवे नहीरे, तो श्रम नावे स्नान ॥ राणी नूपने वालहीरे, तेम ए श्रम जीवन समान ॥ का॥१०॥ अर्थ ॥ राजानी शी खुबी कहीए? ज्यारे नाटक बताव्युं त्यारे ते जोड्ने पक्षी लेवाने तत्पर अया. वली लाख रूपीया श्रापनार एवो दातार पण जाणे जगत्मां नहीं होय ? ॥ ए॥ राजानी राणी कुकडा विन जीवी शके तेम नथी एम जो कहेता होतो तेमां अमने कांइ स्नान नथी. जेवी राजाने राणी वहाली ले तेवी रीते ए पक्षी अमने जीवन प्राण समान . ॥ १० ॥ सेवके रायने विनव्यारे, नटवे कह्यां जे वचन ॥ रोष चड्यो चढी चालीयोरे, सेवा पंखी रतन ॥ का॥१९॥ सांजली मंका नेरी तणारे, सऊ थया नर फुजार ॥ सामंत चंद नरिंदनारे, उना थर असवार ॥ का ॥१॥ अर्थ ॥ सेवकोए आवीने राजाने नटना कहेलां सघलां वचनो कह्यां. जे उपरथी राजाने कोप व्याप्यो. अने ते पदी रत्नने सेवा तैयार थयो ॥ ११ ॥ सिंहल राजाना लस्करना डंका तथा रीना अवाज सांजली चंद राजाना सामंतो सज श्रश् गया, असवारो अश् तेनी सामो युद्ध करवा तैयार श्रया. ॥१॥ जाणीए उत्तरे उम्हीरे, श्याम घटा घनघोर ॥ पिंजर लइ चढी निसर्यारे, देतां नगारे ठगेर ॥का॥१३॥ सिंहल थावीने श्रापडयोरे, अलगा हुँती खेमि ॥ सुदडे नटे करी चालणीरे, तेणे जेहवी करी केडि ॥ काम् ॥१४॥ अर्थ ॥ चंद राजानुं लस्कर जाणे उत्तर दिशामां श्याम रंगनी वादलांनी घटा चमी श्रावी होय तेवू दिसवा लाग्यु. ते पांजराने साथे सइ नगारा उपर घाव देतां चढी निकट्या ॥ १३ ॥ सिंहल राजा आवीने तेना उपर त्रुटी पडे ने एटलामां सुघड नटोए एवी युक्ति करीके तेना इसाराथी चंदना लस्करे तेजेनी पुंठे धसारो कर्यो.॥ १४ ॥ पूरे सूरे जाइ बणीरे,जोर मच्चो धमसाण ॥ सिंहलना नम उपरेरे,वही एक धारी कृपाण ॥ का ॥१५॥ फिके मुखे नासी गयोरे, सिंहल नृप अविनीत ॥ जयवाजी चिहुं खुंटमारे, कुक्कड नृपनी जीत ॥ का० ॥१६॥ अर्थ ॥ बने खस्करो संपूर्ण शूरथी लडतां, मोटुं धमसाण थयु. एटलामां सिंहल रायना लस्कर उपर चंद राजाना लस्करनी एकधारी तलवार चालवा मांडी ॥ १५॥ अविनीत एवो सिंहलराजा हार थवा श्री फीके मोढे लागी गयो. कुकड रायनी जीत अश् अने चारे दिशामां जयघोष अयो. ॥ १६ ॥ चाच्या पोतनपुर नणीरे, नट नट थर उजमाल ॥ त्रीजा जबासनी मोहनेरे, कही चोवीशमी ढाल ॥ का०॥ १७ ॥ अर्थ ॥ नटर्नु अने चंद राजानुं दल हर्षवंत अतुं पोतनपुर नगर तरफ चाट्यु. एवी रीते त्रीजा उसासनी मोहनविजयजीए चोवीशमी ढाल कही. ॥ १७ ॥ For Personal and Private Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २०३ ॥ दोहा॥ पोतनपुर सुरपुर समुं, कमला निलय विधान ॥ नृपति तिहां जयसिंहपति, वैरी व्रण श्रादान ॥ १॥ तास सुबुद्धि मंत्रीसरु, नूपतणो प्रतिरूप ॥ मंजुषा तसमाननी, हिमकर थकी अनूप ॥२॥ अर्थ ॥ पोतनपुर नगर अमरापुरी जेवु हतुं. वली साक्षात् खदमीना निवासस्थान जेवु हतुं. त्यां वेरी रूपी गुमडाने नाशकारक जयसिंह नामनो राजा राज्य करतो हतो ॥१॥ ते राजाने जाणे राजानु बीगँज रूप होय तेवो सुबुद्धि नामनो मंत्रीश्वर हतो. तेने मंजुषा नामनी, चंथी पण अनुपम एवी स्त्री हती. ॥२॥ तास सुता लीलावती, बालवेष सुविशेष ॥ सुरियुं तस देखी हजी, मेले नही निमेष ॥३॥ लीलाधर तेणे पुरे, धनद शेठनो - जात ॥ परण्यो ते लीलावती, यश् युगती ए वात ॥४॥ अर्थ ॥ तेने कुमारी अवस्थामां दिपती एवी लीलावती नामनी पुत्री हती. जेने देखवाथी हजी सुधी अप्सरा पण पोतानी बंने आंखनी पांपणो एकठी करती नथी॥३॥ तेज नगरमां धनद नामनो शेठ हतो तेने लीलाधर नामनो पुत्र हतो. ते लीलाधरना लीलावती साथे लग्न श्रयां. आ बनाव जेवो जोइए तेवो थयो. ॥४॥ कंपति जेम तंत्री तणी,सुकृति संपत्ति जेम ॥ तेम परस्पर दंपती, मधूर वधे तेम प्रेम ॥ ५॥ सांसारिक सुख तेदने, दोगंछुक अनुमान ॥ रति रतिपति ए श्रागले, निरसी रति समान ॥६॥ अर्थ ॥ जेम वीणा उपरना तारनी गति अतां श्रानंद वधे, जेम उत्तम कार्योथी संपत्ति वधे, तेम दंपतीनो अरसपरस मेलाप थतां मीगे प्रेम वधवा मांड्यो ॥५॥ स्वर्गनेविष दोगंडक देवताउनी जेम ते सांसारिक सुख लोगवे . अने कामदेव अने रतिनो विलास तेमना विलास आगल चणोठी जेवो नीरस ॥६॥ पुन्यहीन को पुरुष, आव्यो तस आगार ॥ हांकी काढयो रंकने, लीलाधरे तेणीवार ॥७॥ अर्थ ॥ एवामां कोई पुन्यहीन, दरिजी पुरुष तेमना घर आगल जीख मांगवा श्राव्यो. ते रांकने बीखाधरे तेज वखते तिरस्कार करी हांकी काढयो.॥७॥ ॥ढाल २५ मी॥ ॥ गरव न कीजेरे ए सद्गुरु शीखलडी, एहथी मीठीरे नहीं साकर सुखखमी ॥ ए श्रांकणी ॥ कोप्यो झुमक कहे कुंवरने,थोमा करीए उमका ॥ जावा द्यो एम धरणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ तृतीय उदास. धमका, चपला विजली चमका ॥१॥ एहवोढुं पण तुजश्री रूमो, हाथ कमावणवालो ॥ तुं तो तात कमायुं विलसे,पण हुं नहीं उशीयालो॥ ग०॥२॥ अर्थ ॥ कुंवरनां वचनो सहन न अवाश्री ते निखारीने तेना उपर घणोज क्रोध चढयो. निखारीए कडं के कुंवरजी ! श्रनयनाट थोडो करो, वली जमीन उपरना पगना धबकारा अने विजलीना जेवा आंखोना चमकारा जावाद्यो. ( कवि कहे जे) के सद्गुरुनी एज शिखामण , के कोइए गर्व करवो नही. ए शिखामणथी साकरनी सुखडी पण मी नथी.॥१॥ हूं लिखारी बुं परंतु ताराथी सारो बुं. हाथे कमाइने खानारो बु. तुं तो बापनी कमाणी खाय जे. ढुं तारा जेवो कोनो उशीयालो नथी.॥२॥ जे निज जुजबल धन न कमावे, धिर धिग् जीवित तेहy ॥ कूदा कूद पराये पैसे, करता जाये केहy॥गण॥३॥ तात बतां तुं निहचिंतो, लेखे नाणे कोश्ने ॥रे लुंडा धन यौवनने मद, पगलां जर तुं जोश्ने ॥ ग० ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ जे पोताना नुजाबलश्री धन उपार्जन करतो नथी तेना जीवतरने धिक्कार बे. पारके पैसे कु दाकुद करवी तेमां बीजा कोश्नुं शुं जाय ? ॥ ३ ॥ तुं बाप बेगेने त्यां सुधी नचिंत गे अने कोइने हिसाबमां गणतो नथी. परंतु हे लुंडा ! धन अने जुवानीनामदमां बकी नजा. जो विचारीने पगलां नर.४ जेहवी पाके पाने वीती, तेम वीतशे कुंपलीये ॥ वीटी कनक तणी तो पेहेरे,पामर पण बांगलीये ॥॥॥वचन सुणी लीलाधर लाज्यो,लाग्यो झुमकने चरणे ॥ विश्वावीशथी आज अमारे, तुं गुरु लाग्यो करणे ॥ ग ॥६॥ अर्थ ॥ जेवी पाका पांदडानी दशा श्राय तेवीज दशा कुंपलनी पण काले करीने थशे.पामर जीवोने पण सोनानी वीटी मले तो आंगलीमा पहेरे ॥ ५॥ निखारीनां वचनो सांजली लीलाधर कांखो पडी गयो. अने तेने पगे जश्ने पडयो. हे लाइ आजश्री तुं मारो विशेवसा गुरु श्रयो बु.॥६॥ इमक गयो हवे कुंवरचिंते, परदेशे जावान॥सुख दुःख देश तथा परदेशे, नहीं अन्यथा थावानु॥गा॥त्रुटी खटलमीये जश् सुतो, श्रावी जनके जगाव्यो ॥ रे सुत तुजने उहव्यो केणे, केणे एम रोष चढाव्यो ॥ गण ॥७॥ अर्थ ॥ ते निखारी गया पठी, कुंवर परदेशे जवासंबंधी चिंतवन करवा लाग्यो. तेणे निश्चय कर्यो के सुख के मुःख जे नशीबमां मांडेलु होय ते देशमा रहीये के परदेश जइए पण अन्यथा अवार्नु नश्री ॥७॥ लीलाधर तुटेली खाटलीमा जइ सुतो तेने तेना पिताए जश्ने उगडयो. हे बेटा! तने कोणे उहव्यो अने आवो क्रोध कोणे चढाव्यो. ॥ ७॥ लीलाधर कहे अनुमति घोमुज,जाइश हुँ परदेशे। तात कहे तुज केम मुकाये,एहवे बालक वेशे ॥गाणा तरुणी मृगादी परिगल लजी, वली कोश्चें नथी देणुं।जाश्शमां तव जनकने नाख्यु,घुमके दीधुं जे मेणुंग॥१॥ For Personal and Private Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २०५ अर्थ ॥ लीलाधरे कडं हे पिताजी मने आशा आपो. ढुं परदेश जवा मांगुं बु. तेना पिताए कह्यु के नाइ हजु तुं बालक गे तेथी तने केम जवा देवाय? ॥ए॥ तने युवान स्त्री परणावी. पुष्कल लक्ष्मी बे. वली आपणे कोनुं देवू नथी, माटे हे नाइ ! जश्शमा. एटले निखारीए जे मेणुं दीधुं हतुं ते लीलाधरे तेना पिताने कह्यु.॥१०॥ रे सुत रांक तणी वातडीये,फोकट केम हठ ताणे ॥ गांठतणी उंघमली वेची,उजागरो कोण थाणे॥गण॥१९॥माता तात तणो समजाव्यो,समजे नहीं रढीयालो ॥ मंत्री प्रमुख गया हारीने, नाक चढयो मतवालो ॥गण॥१॥ अर्थ ॥ हे बेटा ! एवा निखारीनां वचनथी ते कोइ हठ करतुं हशे? एवो हठ कर नही. पोतानी उंघवेची विना कारणे कोण उजागरो करे? ॥ ११ ॥ मात पिताए घणी रीते समजाव्यो परंतु ए हठ लश्ने बेठेलो समजतोज नश्री. मंत्री विगेरे सहु थाकीने गया. ते एक मतीलो चढी गयो.॥ १२॥ जेमतेम करी जोजन जमामयो, थव रजनी रसन्नेले ॥ ललित गते लीला वती श्रावी,पण पति मीट न मेले॥ग॥१३॥ कामणगारी नारी बोली, पियु डा नयण उघाडो ॥ कीमी उपर केही कटकी,तृण उपरस्यो कुहाडो॥ ग॥१४॥ अर्थ ॥ जेम तेम करीने लीलाधरने जमाडयो, एटलामा रात्री अश्. बाद शय्यामां पोढवाने समये मनहर गतिवाली लीलावती आवी परंतु तेना सामु तेणे नजर पण करी नही ॥ १३ ॥ कामणगारी लीला वती बोली के हे नाथ ! जरा आंख उंची करी मारी सामुं तो जुर्ज. कीडी उपर आवj कटकशुं अने घास उपर कुहाडो शामाटे ? ॥१४॥ एम सहुने मुहवीने जाशो, हुं केम देशजावावीमीया फीरी मिलण दोहिलो, पोस किहां किहां पावा॥गण॥१५॥ मंदिर मुकीते केम जाये, जे होय प्रजुना पुरा ॥तुम जेवा में कोनविदीग, श्रापमति घर शूरा ॥ग॥१६॥ अर्थ ॥ ए प्रमाणे सहुने तो मुःख लगाडीने जाशो परंतु ढुं केम जावा दश्श ? जुदा पम्या पळी फरी मल, मुस्केल थाय . क्यां पोस अने क्यां अग्नि तेना जेवी दशा थाय ॥ १५ ॥ जेना उपर परमेश्वरनी पुरी कृपा होय ते पोताना घर बार गेमी शुं काम बहार लटकवा जाय? तमारा जेवा श्रापमतीला अने घरवाला उपर जोर बतावनारा आज सुधी को दीगा नथी. ॥१६॥ विलमावे एम मीठे वचने, रमण नणी ते रमणी ॥ त्रीजा उदासनी ढाल पचीसमी, मोहन विजये पत्नणी ॥ ग ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ ए प्रमाणे अनेक मीगं वचनोथी लीलावती पोताना प्राणनाथने समजावे . त्रीजा उबासनी पचीशमी ढाल मोहन विजयजीए कही. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ लीलाधर ललना वचन, बुबको नहीं लगार ॥ नारी हारीने रही, कंतन मेले तार ॥१॥ थयो प्रात तव तात पण, अति समजाव्यो जात ॥ वात न माने कोश्नी, नेयो नहीं तिल मात ॥२॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ तृतीय उदास. अर्थ ॥ लीलाधर पोतानी स्त्रीना अत्यंत मोहक वचनोमां लेश मात्र लुब्ध थयो नही. अने पोते लीधेली वात गोडतो नश्री तेथी लीलावती थाकीने बेठी ॥१॥प्रनात थयो एटले लीलाधरना पिताए पण घणी घणी रीते समजाववा मांझयो, परंतु कोश्नी वात तेणे मानी नही अने तेनुं अंतःकरण जरापण पिगट्युं नही. ॥२॥ समय दक्ष श्राव्यो सचिव, जाण्यो इजामात ॥मुहुरत दिन निर धारवा, तेडया गणक विनांत ॥३॥ मंत्री वक्र कटाक्षथी, लह्यो नेद जूदेव ॥ निरखीने तिथि पत्रिका, कहे कपटथी देव ॥४॥ अर्थ ॥ अवसरनो जाण मंत्री ते समये श्राव्यो अने पोताना जमाश्नो अत्यंत ह जाणी जमाइने परदेश जवा सारू मुहूर्त्तनो दिवस नकी करवा जुदा जुदा जोशीने तेणे बोलाव्या ॥३॥ मंत्रीनां वक्र कटाक्थी जोशी गुप्त नाव समजी गया. पनी टीपणामां सारी रीते जोश्ने कपटयुक्त कहेवा लाग्या.॥४॥ कुकर बोले जे समय, तेहवे जो सिधि थाय ॥ तो कुंवर पर देशमां, कमला घणी कमाय ॥ ५॥ एडवो मुहूरत नहीं थवर, माहे मास मास ॥ हरख्या सहु मंत्री प्रमुख, वाध्यो कुंवर उदास ॥६॥ अर्थ ॥ जे वखते कुकडो बोले ते समय साधीने जो कुंवर प्रयाण करी दे तो परदेशमा जश् ते घणीज लक्ष्मी संपादन करे ॥ ५॥ में आपने कर्तुं तेवु मुहूर्त आजथी उ मास सुधीमां बीजुं एक पण नथी. जोशीनां वचन सांजली मंत्री विगेरे सहु हर्ष पाम्या अने लीलाधरने पण जबास थयो. ॥६॥ हिज संतोषी दानथी, करी शीख ससनेह ॥ दंपती प्रस्थाने कुंवर, श्राव्यो मंत्री गेह ॥ ७॥ अर्थ ॥ जोशीने दानश्री संतोष पमामी स्नेह पुर्वक रजा आपी. पनी कुंवर प्रस्थानने माटे पोताना सासरा (मंत्री)ने घेर लीलावती साथे श्राव्यो.॥७॥ ॥ ढाल १६ मी॥ ॥ माहावतणीरी अजब सुरति कां ॥ ए देशी ॥ मंत्री नाखे निज सेवकने, रखे कोइ आगल नाखोरे ॥ गुणना लोजी, कोण टाले पदारथ जावी ॥ ए श्रांकणी ॥ कुकड पंखी जेह होयते, न गर मांदे मत राखो ॥ गु० ॥ को ॥॥१॥ पंखी वचन जो सुणशे जमार, रदेशे नही ते राख्यो रे ॥ गु०॥ ते माटे तमे ढीलन करशो, करजो जेहमें नाख्यो रे ॥ गु० ॥ को ॥२॥ अर्थ ॥ मंत्रीए पोताना सेवकोने बोलावी सर्व हकीकत कही अने कांके आ वात तमारे बीजा कोइनी पासे उच्चारवी नही. हे गुणनाज लोली! नगरमां ज्यां ज्यां कुकडाहोय त्यांथी लई जई बीजे गाम मुको. कवि कहे के नावी पदार्थने कोण टालीशके ?॥१॥ हे ना! जो जमाई कुकडानो श्रवाज सांजलशे तो पनी को रीते रोक्यो रेहेवानो नथी. माटे में तमने जे काम करवानुं कर्तुं ते काम करवामां लगार मात्र ढील करशो नही. ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ चंदराजानो रास. दोड्या दास पोतनपुर घर घर, कुर्कट कीधा नेला रे ॥ गु० ॥ गामो गामे लेश पोहोचाव्या, लागी नहीं कोई वेला रे ॥ गु० ॥ को० ॥३॥ विनव्यो मंत्री दासे श्रावी, सफल करी तुम वाणी रे ॥ गु० ॥ जेद कला मंत्रीए कीधी, कुंवरे ते नवी जाणी रे ॥ गुण ॥ को ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ मंत्रीना सेवकोए पोतनपुर नगरमां घेर घेर फरी सर्वे कुकडा तेए एका कर्या. तेउने जुदे जुदे गामे मोकली दीधा. ते काममां जरापण वार लागी नाही. ॥३॥ मंत्रीना सेवकोए श्रावी कडुंके आपना हुकम प्रमाणे अमल श्रश् गयो बे. मंत्रीजीनी था कला कुंवरना जाणवामां आवी नही. ॥४॥ मांमी कान रहे लीलाधर, कुक्कमना स्वर माटे रे ॥ गुण ॥ पण पंखी स्वर काने न पडे, कोटिक टंका साटे रे ॥ गु०॥ को ॥५॥ पंखी वचन विना कुंवरने, मंत्री राखे वारी रे ॥ गु० ॥ लीलाधर पण व गर मुहूरत, न करे गमन विचारी रे ॥ गु०॥ को ॥६॥ अर्थ ॥ हवे लीलाधरतो कुकडानो स्वर सांजलवामाटे कान धरी रह्यो बे. परंतु क्रोड रूपीया खरचे पण ते पंखीनो स्वर काने पडवा पामतो नथी. ॥ ५॥ कुंवर, मन कदापि उंचं अतुं तोपण कुकडो हजु बोट्यो सांजस्यो नश्री एम कही मंत्री तेने रोकी राखे . लीलाधर पण मुहूर्त आव्याशिवाय परदेश गमननो विचार करतो नथी. ॥ ६॥ लीलावती पण निज वालिमने, क्षण एक दूर न मूके रे ॥ गु०॥ स्वा रथ साधन काज चतुरनर, ते केम अवसर चूके रे ॥ गु० ॥को॥७॥ एम षट्रमास लगी नोलवीने, लीलाधर परखाव्यो रे ॥ गुण ॥ एहवे ते नट रमतो रमतो, तेणे पोतनपुर श्राव्यो रे ॥ गु० ॥ को ॥७॥ अर्थ ॥ लीलावतीपण पोताना स्वामिनी हजुरमांधी कणवारपण दूर जती नथी. जे चतुर मनुष्य होय ते स्वार्थ साधवाना अवसरने केवीरीते चूके ? चूकेज नही. ॥ ७ ॥ ए प्रमाणे उ महिना सुधी लीलाधरने लोलवीने रोकी राख्यो. एवा समयमां ते नटराज रमतो रमतो तेज पोतनपुर नगरमां आव्योः ॥ ७ ॥ सरणा ललकारीने नट, ढोले ढमका कीधा रे ॥ गु० ॥ नृप वचने मंत्री गृह पासे, श्रावी ॥ श्रावी उतारा दीधा रे ॥ गु० ॥ को॥ ए॥ चंदतणे कटके पुर बाहिर, दीधा सरोवर डेरा रे ॥ गु० ॥ कीधां नो जन खेद उतार्यो, पेहेर्या वेश नवेरा रे ॥ गु० ॥ को० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ नटे श्रावीने सरणाश्ने वगाडी, ढोलनपर ढमका दीधा. बाद राजा पासे जतां, राजा मंत्रीना घर पासे तेने उतारो आपवानी आज्ञा करी. ॥ ए॥ चंद राजानी सेनाए नगरनी बहार सरोवर उपर पोताना तंबु ताण्या. अनुक्रमे लोजन लश् थाक उतार्यो. वली नवां वस्त्रो धारण कर्याः ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय उल्हास. संध्याये मुजरो करी कुर्कटनो, नट श्राव्या नृप पासे रे ॥ गु०॥ दीप जगमग सुजग सनामां, गाया राग प्रकाशे रे ॥ गुण ॥ को० ॥ ११॥ पुरपति रीयो पजणे प्राते, जोशुं खेल तमारो रे ॥ गु० ॥ श्राज तो पंथतणाडो थाक्या, जाउँ डेरे पधारो रे ॥ गु० ॥ को ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ संध्या समय थयो एटले कुर्कटराज पासे मुजरो करी नाटकीया राजापासे आव्या. त्यां सुंदर राज्यसनामां दीपकनी मनोहर रोशनाई लागी रही, ते समये सुंदर राग रागिणी गाया. ॥ ११॥ राजा तेजना संगीतश्री राजी श्र बोल्योके काले सवारे तमारा खेल जोशं. आजे तो तमे पंथ करी आव्यागो, थाकेलागे तेथी सुखेथी उतारे जाऊ. ॥१५॥ श्राव्यो नटवर निज उतारे, कडुं लोके तस थावी रे ॥ गु० ॥ कुर्कट स्वरना जतन करजो, कहीए बीए समजावी रे ॥ गु० ॥ को० ॥१३॥ जो एहनो स्वर श्रवणे सुणशे, ते मंत्रीनो जमाश् रे ॥ गु० ॥ तो उठी परदेश सधाशे, तुमने दोष चढाइ रे ॥ गु० ॥ को ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ पनी नटराय पोताने उतारे आव्यो एटले लोकोए तेनी पासे आवीने कडुंके, आ कुकडो लगार मात्र बोले नही एम गोठवण करजो. अमे तमने खास कहीए बीए. ॥ १३ ॥ जो मंत्रीनो जमाश् ए कुकडानो अवाज काने सांभलशे तो तत्काल उठीने ते परदेश सिधावशे अने ते बाबतनो दोष तमारे शिर चडशे. ॥१४॥ सांजस्यो कुक्कडराये काने, लोक वचन मन आणी रे ॥ गु० ॥ निज निज मंदिर पोहोत्यां सहुजन, एहवे रयणी विहाणी रे ॥गुणाको॥१५॥ पामी अवसर जरीने मधुर स्वर, बोल्यो कुक्कम राया रे ॥गुण ॥ पसर्यो ते स्वर नगर घरोघर, सूता सयल जगाया रे ॥ गु० ॥ को० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ कुर्कटराजे लोकोनां वचनो ध्यान दश्ने सांजव्या. त्यार पजी सर्वे लोको पोत पोताने घेर गया. अने रात्री पण वीती गइ. ॥ १५ ॥ परोढीयुं अयु एटले अवसर जोश्ने मीग स्वरोना अवाज कुर्कट राये उपराउपरी करवा मांड्या. जे अवाज नगरमां घेरघेर प्रसरी रह्यो अने सर्वे सुतेला लोको जागी उठ्या. वागी कालर प्रज्जु प्रजु प्रासादे, उदयो जगत्नो साखी रे ॥गुणा नली बवीशमी ढालए मोहने, त्रीजी उल्हासनी नाखी रे ॥ गु० ॥ को ॥१७॥ अर्थ ॥ देव मंदिरोमां कालरो वागवामांडी अने जगत्नो सादी सूर्य उदय पाम्यो. त्रीजा उपासनी रूडी एवी बवीशमीढाल मोहनविजयजीए कही. ॥१७॥ ॥दोहा॥ श्रवणे ते स्वर सांजली, लीलाधर तेणी वार ॥ परदेशे चाख्यो वही, थर तुरंग असवार ॥ १॥ राख्योपण न रह्यो किमे, मुहूर तने संकेत ॥ हियडे लीलावती तणे, खरो खटक्यो देत ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०ए चंदराजानो रास. अर्थ ॥ कुकडानोस्वर काने सांजलतांज तत्काल घोडा उपर स्वार अश्लीलाधरे परदेश जवा प्रयाण कर्यु. ॥ १ ॥ तेने रोकी राखवाने घणोज प्रयास कर्यो परंतु मुहूर्त्तनो वायदो पुरो अवाश्री ते रह्यो नही. लीलावतीना अंतःकरणमां तेनुं हेत बहुज खटक्या करतुं हतुं. ॥२॥ कुर्कट स्वर पियुने थयो, जेम मीगे पियुख ॥ पण मंत्री पुत्री जणी, खरो हालाहल चूख ॥३॥ मुराणी धरणी ढली, प्रीतम . उणे विद्रोह ॥ कणमे पामी चेतना, पमी विरहनी खोह ॥४॥ अर्थ ॥ कूकडानो स्वर लीलाधरना अंतःकरणमां अमृत समान लाग्यो परंतु लीलावतीने तो ते हाला हल फेर समान खरेखरो भई पड्यो. ॥३॥ पतिना वियोगश्री तत्काल मूळ आववाथी जमीन उपर ढली पडी. पी. उपचार करवायी थोडी वारमा सचेतन अश् परंतु विरह वेदनानी चरेडी अंतःकरणमां पडी. ४ - राख्यो केणे कुकडो, कर्यो श्रहितनो नेह ॥ विहि केम सरज्यो .. पंखीयो, मित्र विडोदक एह ॥५॥ कोण एदवो नगरमां, धीगे था गंग॥ नूप तणो जय नवि गण्यो, उजण जण उद्धं ॥६॥ • अर्थ ॥ अहितनो करनारो एवो श्रा कूकडोते कोणे राख्यो हशे, हे विधि! मारा पतिनो वियोग करावनार ए पदी तें शामाटे उत्पन्न कर्यु, ॥ ५॥ आ नगरमां एवो आवे गांठे उच्चत्त कोण पुरुष ने के जेणे राजाना जयने पण लेखामां गण्यो नही. ते कोइ महा पुर्जन अने उठ . ॥६॥ लीलावतीए तातने, जाख्यो पति उदंत ॥ श्राणी आपो कुकमो, तेमुजने धीमंत ॥७॥ अर्थ ॥ पनी लीलावतीए पोताना पिताने पतिना गमन संबंधी सर्व वृत्तांत कह्यो भने कयुके हे बुद्धि शाली पिता! ते कूकडो मने लावी आपो. ॥ ७॥ ढाल २७ मी. ॥ कंकणो मोल ली ॥ ए देशी॥ मंत्री पुत्री कह्या थकी रे, सुरिजन, करवा कुर्कट शोध, पंखी गुण र सियो ॥ पुरमा सेवक पाठव्या रे ॥ सु० ॥ स्वामी धरमीयोध ॥ प०॥ जे सुगुण नरनारी, तेदने मन वसियो ॥ ए आंकणी ॥१॥ जो का ढयो पंखीयो रे, ॥ सु० ॥ नटना पटकुटमांहि ॥ ५० ॥ दासे सचिवने विनव्युं रे, ॥ सु॥ विहंग संबंधी सोडाह ॥ पं० ॥ जे० ॥२॥ अर्थ ॥ मंत्रीनी पुत्रीना अर्थात् लीलावतीनां वचनथी तेना पिताए ए कूकडानी शोध करवामाटे पोताना सेवकोने नगरमा मोकट्या. ( कवि कहे के कूकडो गुणनो रसिक होवाश्री तेना गुणने जाणनारा स्त्री पुरुषना मनमां ते रमी रह्यो बे.)॥१॥ मंत्रीना सेवकोए आवीने तेने कझुके ए पहीनो पत्तो लाग्यो बे. जे नटो अहीं श्राव्या ने तेउना संगाश्रमांते जे. एवी रीते पक्षी संबंधी उत्साही वात कही.२ २७ For Personal and Private Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० तृतीय उल्लास. ताते जाख्युं सुताजणी रे, ॥ सु० ॥ बे कुर्कट नट साथ ॥ पं० ॥ ए पर देशी प्रादुणा रे, ॥ सु० ॥ नापे आपण हाथ ॥ पं० ॥ जे० ॥ ३॥ चाले पुरनर उपरे रे, ॥ सु० ॥ पुत्री श्रापणुं जोर ॥ पं० ॥ स्यो दव परदेशी थकी रे, ॥ ० ॥ वली नट जाति कठोर ॥ पं० ॥ जे० ॥ ४ ॥ ॥ मंत्री पोतानी पुत्रीने कांके पणा परोणा बे. आपणे मांगी ये तोप पणा गामना लोक उपर चाली शके. अत्यंत कठोर होय . ॥ ४ ॥ आवेला नटोनी साथे ते कूकडो बे. ते परदेशी होवाथी - पे नही. ॥ ३ ॥ हे पुत्री ! जेटलुं श्रपणे जोर चलावीए तेटलुं परदेशी साथे हव करवो नकामोठे. तेमांपण नटनी जाति तो पुत्री नेत्र जरी कहे रे, ॥ सु० ॥ जेमतेम श्रापो ए आणी ॥ पं० ॥ कु क्कड वैरीने दणुं रे, ॥ सु० ॥ तो मुज जीव्युं प्रमाण ॥ पं० ॥ जे० ॥५॥ ए कारज कीधा विना रे, ॥ सु० ॥ केम जल घुंट जराय ॥ पं० ॥ पुत्री प्रतिज्ञा करी रे, ॥ सु० ॥ मंत्री रह्यो विलखाय ॥ पं० ॥ जे० ॥ ६ ॥ अर्थ | लीलावती श्रखमां श्रांसु लावी कदेवा लागके दे पिता गमे तेम करी ते मने लावी पो. ए मारा वेरी कूकडाने जो हणुं तोज मारूं जीव्युं प्रमाणबे ॥ ए ॥ ज्यां सुधी ए काम मारे हाथे यो नदी त्यां सुधी पाणीनो घुंटडो पण हुं पीवानी नथी. श्रावीरीते पुत्रीनी आकरी प्रतिज्ञा जाणीने मंत्री मनमां खेद करवा लाग्यो. ॥ ६ ॥ तेडाव्यो नटरायने रे, ॥ सु० ॥ मंत्रीए मुकीदास ॥ पं० ॥ वातडीए पर चावियो रे, ॥ ० ॥ मांग्यो शकुनी तस पास ॥ पं० ॥ जे० ॥ ७ ॥ नट कड़े मंत्री सरु रे, ॥ सु० ॥ पंखी केम देवाय ॥ पं० ॥ एथी श्रम जीविका रे, ॥ सु०॥ कुक्कम श्रम महाराय ॥ पं० ॥ जे० ॥ ८ ॥ ॥ मंत्री पोताना सेवकने मोकली नटरायने पोतानी पासे बोलाव्यो. ते आव्यो एटले मीठी वातो की तेने जोलव्यो ने पी तेनीपासे कूकडानी मांगणी कही ॥ ७ ॥ नटे कांके हे मंत्री श्वरजी ! ए पक्षी माराथी केम पाय. एना उपर तो अमारी आजिविकानो आधार बे ने ए तो मारा महाराजा बे. ॥ ८ ॥ तुज पुत्री य द्वेषणी रे, ॥ सु० ॥ ए श्रमे पाम्यो उपाय || पं० ॥ पण म ने एहनो रे, ॥ सु० ॥ वाल न वांको थाय ॥ पं० ॥ जे० ॥ ए ॥ सहुनट सेवक एना रे, ॥ सु० ॥ पंच सया परिवार ॥ पं० ॥ पुर बा दिर पंखी तथा रे, ॥ ० ॥ सात सदस असवार ॥ पं० ॥ जे० ॥१०॥ ॥ तमारी पुत्रीने एनो स्वर सांजलतां तेना उपर द्वेष थयो बे ए वात श्रमारा जाणवामां श्रवी. परंतु एखात्रीथी मानजो के श्रमे जीवता बीए त्यां सुधी एनो वाल पण वांको थवानो नथी. ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. श्रा पांचसो नटो परिवार सहित तेना सेवक जे. अने वली नगर बहार ए पहीना रक्षण करनारा सात हजार योघा .॥१०॥ हुकम करे जो कुकमो रे, ॥ सु० ॥ पाडीए दाणवदंत ॥ पं० ॥ पूर्वी सिंहल रायने रे, ॥ सु० ॥ बेडजो को मतिमंत ॥ पं० ॥ जे० ॥ ११॥ गिरिशतखंग करूं अमे रे, ॥ सु० ॥ नेरे एकण मूठ ॥ पं० ॥ डे को ण ने केहनी रे, ॥ सु॥ खाधीमाये सूंठ ॥ पं० ॥ जे० ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ ए कुर्कटराय जो अमने हुकम करे तो मोटा दैत्यना पण दांत तोडी नांखीए. खात्री करवी होय तो सिंहसरायने पुनीने पनी बुद्धिशाली होयते एनी बेझ करजो. ॥ ११॥ जो ए हुकम आपे तो एक मुलिए पर्वतना पण अमे सो टुकडा करी नांखीए. वली कोनी माए शेर सूंग खाधी ने के एनी बेड करे. पंखी पेखी म नूलशो रे, सु॥ एहजे श्रलोलिक कोय ॥ ५० ॥ एम नट वचने मंत्रवीरे, ॥ सु ॥ रह्यो अणबोल्यो होय ॥ ५० ॥जे॥१३॥ लीलावती मन राखवा रे, ॥ सु०॥ कहे नटने मंत्रीश ॥ पं0 ॥ देखा मी एह कुकमो रे, ॥ सु० ॥ पुरवी पुत्री जगीश ॥ पं० ॥ जे० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ नटराये कयुंके ए पक्षी एम देखी जुलावो खाशो नही. ए तो अलोकिक कोइ जीवने. एवा नटनां वचनो सांजली मंत्री धूप थइ गयो. ॥ १३ ॥ पनी मंत्रीए नटने कडं के लीलावतीना मननुं समाधान करवा ते पक्षीने मने श्रापो. पुत्री लीलावतीना मनमां तेने जोवानी होंश तेथी तेणीने देखाडी तमने पालो सोंपीश. ॥ १४ ॥ जो विश्वास श्रावे नहीं रे, ॥ सु० ॥ तमे राखो मुज पुत्र ॥६॥ राखी घमी एक कुकमो रे, ॥ सु० ॥ पालो सोपशुं अनुबुत्र ॥ पं०॥जे०॥१५॥ समज्यो नट सुत मंत्रीनो रे, ॥ सु० ॥ ले श्राव्यो निज धाम ॥ ५॥ मुक्यो लीलावति संनिधे रे, ॥ सु० ॥ पंखी पिंजर ताम ॥पंगाजे॥१६॥ अर्थ ॥ जो विश्वास न आवतो होय तो तेना बदलामां मारा पुत्रने तमे राखो. एक घडीलर कुकडाने राखीने पनी तरत पाने लावी आपीश ॥ १५ ॥ पनी नटराय मंत्रीने पोताने स्थानके लश्ने श्राव्यो भने सीलावतीनी पासे कुर्कटनुं पांजरूं सोप्यु ॥ १६॥ देखी पिंजर हरखी घणुं रे, ॥ सु० ॥ रोष टल्यो तत्काल पं०॥ त्रीजा उहासनी मोहने रे, ॥ सु० ॥ कही सत्तावीशमी ढाल ॥ पं० ॥ जे० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ पांजरा मध्येना पक्षीने देखतांज लीलावती घणो हर्षपामी अने तेनो रोष तत्काल शमी गयो. त्रीजा उपासनी सतावीशमी ढाल मोहनविजयजीए कही. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ कहे वचन लीलावती, रे रे पंखीराज ॥ विण अवगुण तें मुज थकी, वेर वसाव्युं श्राज ॥१॥ दिसे बाहिर फूटरो, पण कमवो बालाप ॥ तें मुज कीधो पियु विरह, ते किहां बुटीश पाप ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ तृतीय उदास. अर्थ ॥ पनी लीलावतीए कह्यु के हे पक्षीराज ! तें मारा दोष विना मारी साथे आजे वेर बांध्यु ने. ॥ १॥ तुं बहारथी तो सुंदर लागे ने परंतु तारो स्वर कमवो बे. तें मारा स्वामीनो वियोग कराव्यो, ते पापथी क्यारे बुटीश? ॥२॥ तुं कंचन पिंजर वसे, सदा सुखी बहु जोग ॥ तुं पर वेदन नवि लहे, फुस्सह कंत वियोग ॥३॥ तुं पंखी विण पण पंखिणी,वनमा व्याकुल थाय ॥ तो श्रमे सरजी नारीयु, पतिविण केम दिन जाय ॥४॥ अर्थ ॥ तुं सुवर्णना पांजरामां निरंतर अनेक प्रकारनां सुख लोगवतो वसे बे. तेथी तुं बीजानी वेदनाने जाणी शकतो नथी. परंतु जाणजे के पतिनो वियोग मुखे सहन करवा योग्य ने ॥३॥ तुं पक्षी गे तेथी तारा विना तारी पक्षिणी जेम वनमां श्राकुल व्याकुल थाय तो अमे तो स्त्री जाति बीए. पति ना वियोगे अमारा दिवसो ते केम जाय.॥४॥ होशे घणां विडोहिया, तें पूरवनव कोय ॥ तो थयो एणे नव कुकडो, हृदय विचारी जोय ॥५॥ अविवेकी तिर्यंच तुं, निपट नितूर निरमोद ॥ जो तुं बोल्यो न होत तो, होत न कंत विडोह ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ तें परनवमां घणांने वियोग कराव्या हशे तेथी आ जवमां कूकडो थयो, माटे हृदयमां जरा विचार कर ॥ ५॥ हे पक्षी तुं बहुज अविवेकी वं. अत्यंत कठोर वं अने प्रेम वगरनो गे. जो तुं बोस्यों म होत तो मारा प्राणनाथनो वियोग थात नही. ॥ ६ ॥ तें मुजयी नाणी दया, अहो विहंगम नूप ॥ पण मुजने श्रावी दया, देखी ताहारु रूप ॥७॥ अर्थ ॥ हे पक्षीराज ! तें मारा उपर दया न आणी परंतु तारुं स्वरूप जोतांज मने तारी उपर दया भावी ॥७॥ ॥ ढाल २७ मी॥ ॥ श्रासणरा योगी॥ ए देशी॥ कुक्कम वचन सुणी वेधालो, कर्यो विण पावस वरसालोरे ॥ वेधक जग विरला ॥ जाग्यो विरह पडयो पिंजरमें,थयो मुरबित वचनने मरमेरे ॥ वे ॥१॥ जंमामुके सबल निसासा, नवरूपना निरखी तमासारे ॥ वे॥ लीलावतीए कुकम लीधो, जीडी हृदयश्री जाग्रत कीधोरे ॥ वे ॥२॥ अर्थ ॥ लीलावतीनां वेधक वचनो कुकडाए सांजलतांज वर्षारुतु विनाज तेनी श्रांखमांथी अश्रुपात रूपे वरसादनी धारा चाली. (कवि कहे वे के वेधक पुरुषो जगत्मां विरला ) कुकडाना मनमां विरह व्यथा उत्पन्न थतांज, मर्मनां वचनो सांजलतांज ते मुर्ग खाइ पांजरामा पस्यो ॥ १ ॥ संसारना चमस्कारिक स्वरूपना पोताने वितेला तमासा जोश्ने कूकडो घणांज जंडा निसासा मुके बे. एवामां लीलावतीए कूकडाने हाथमा सइ हृदयनी साथे अत्यंत हेतथी आश्वासन आपी तेने जाग्रत कर्यो. ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ११३ रे पंखी केम एम फुःख पावे, में तो कडं तुज नोले जावेरे ॥ वे॥ मुजने तो पुःख जे पियु चाल्यो,पण तुजने स्यो पुःख साल्योरेवे॥३॥ ताहरूं तो फुःख देखी नेणे, पडी साहामी लेहेणाथी देणेरे ॥ वे ॥ में जाएयुं तुं मनावीश मुजने, पडयो उलटो मनाववो तुजनेरेवे॥४॥ अर्थ ॥ हे पक्षी ! में तो तने नोला अंतःकरणथी बाटली वात कही तेमां एटलुं बधुं :ख केम धारण करे ? मने तो पतिना वियोगर्नु मुःख अयुं चे, परंतु तने एवं शु सुख साट्या करे ॥३॥ मारी श्रांखमां तारूं सुःख देखवाथी, उलटुं मने तो लेणाथी देवा जेवू थर पडयुं बे. हुं तो एम मानती हती के तुं मारा मननुं समाधान करीश, परंतु आतो उलटुं मारे तारा मननुं समाधान करवानो वखत आव्यो. ४ मुजथी घणो तुं विरही दीसे, श्यो उःख कहो सुजगीशेरे ॥ वे ॥ कडं कुकमे अक्षर लखी ताजा, हुं बुं चंदोश्राजापुरी राजारे॥ वे॥५॥ में तो कोश्नो सीधो न दीधो, पण माये कुर्कट मुज कीधोरे ॥ वे० ॥ विही गुणावली नवल सनेही, कहुं फुःखनी वातमीयु केहीरे ॥वे॥६॥ अर्थ ॥ मारा करतां तुं घणोज विरहनी व्यथावालो दिसे ने. तेथी ते बाबतमां तने शुं मुख नेते हे वहाला कहे ? ते सांजली कुकडाए शुध अक्षरोथी जणाव्यु के हुँ आनानगरीनो चंद नामनो राजा लु ॥५॥ में तो कोश्नो कांपण गुह्नो कर्यो नहोतो, परंतु मारी विमाताए मने कुकडो बनावी दीधो . श्रने तेथी निर्मल स्नेह धरनारी मारी गुणावली स्त्रीनो मारे वियोग श्रयो बे. दुं दुःखनी केटली वात तने कडं! ॥ ६॥ ते मुज खटके हुं तस खटकुं, वली नाटकीया संग मटकुं रे ॥ वे ॥ ... कहां पुर किहां घर कहां नरकरणी, किहां राज्य किहां ते घरणीरेवे॥७॥ तुज पति जेह थयो परदेशी, तुजने मलशे सुविशेषीरे ॥ वे ॥ पण मुज वीचमीया मेला, ते तो केवली जाणे वेलारे ॥ वे ॥७॥ अर्थ ॥ ते मारा मनमां याद श्राव्या करे ने अने हूं तेना मनमा रमी रह्यो बु. वली अहीं नाटकी यानी साथे रखड्या करूं बु. अहा ! मारु शेहेर क्यां ! घर क्यां! मनुष्यपणानो वैजव क्यां! राज्य क्यां! अने मारी स्त्री क्यां!॥ ७ ॥ तारो पति जे परदेश गयो ने तेतो तने तारी साथे विशेष समृद्धि वासो प्रश्ने मलशे. परंतु अमारा वियोगना मेलाप रूपी अवसरने तो मात्र केवल ज्ञानीज जाणे . ॥॥ मुज पुःख सरिखो न दुःख तुज बा, किहां कंचन गिरि किहां रावे॥ घरणी मारी जगमांहे पुःखणी, तेहथी असंख्य गुणी तुं सुखणीरे ॥ वे ॥॥ तुं पति विण क्षणमां दुःख पामी, तो मुज घरणीमां शी खामीरे ॥ वे ॥ जोगवे जे फुःख मादरी राणी, तेह मांहे तुं जाये तणाणीरे ॥ वे ॥ १० ॥ अर्थ ॥ मारां मुख सरखं तारूं मुःख बेज नही. तेमां तो मेरुपर्वत श्रने राश्ना दाणा जेटलो तफावत बे. मारी स्त्रीज जगत्मां दु:खी . तेना करतां तुं तो असंख्य गणी सुखी गे॥ए॥ तारा पतिना वियोगे For Personal and Private Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ तृतीय उल्लास. तुं एक क्षणवारमां दुःख पामी, परंतु मारी स्त्रीने दुःखमां कांइ खामी बे तो तुं जो. मारी स्त्री मारा वियोगनुं जे दुःख जोगवे बे ते दुःखनी पासे तारूं दुःख तो क्यांइ तपाइ जाय. ॥ १० ॥ कुर्कट वचने लीलावती दरखी, ए तो जोडी मिली बेदु सरखीरे ॥०॥ मनमां तमे दुःख चंदम वे देशो, वे हेली रीद्धि रमणी ते लदे शोरे ॥ वे०॥११॥ मन मान्या तमे माहारे जाइ, विधिनी जोमी एड् सगाइरे ॥ वे० ॥ पामो जो तमे नरपद फेरी, तो मलजो मुऊने एक वेरीरे ॥ वे० ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ कुडानां वचनो सांजली लीलावतीनुं मन शांत थयुं ने विचारका लागी के श्रांतो बने सर - खी जोडी मली. ते कुकडाने कदेवा लागी के हे चंदराज ! तमे दवे मनमां दुःख न धारण करो. तमे तमारी री ने स्त्री बने वेहेला संपादन करशो ॥ ११ ॥ तमे मारा मनना मानेला जाइ थया बो. सगा विधात्रा करी श्रापीछे. तमे ज्यारे फरीथी मनुष्यपणु पामो त्यारे एकवार मने अवस्य मलजो ॥ १२ ॥ जे विचार्य कयुं होय तमने, ते बक्षजो गुन्दो अमने रे ॥ वे० ॥ रे वीरा तुज आशा फलजो, वली वेला श्रावीने मलजोरे ॥वे०१३ ॥ मुजने रखे क्षण एक विसारो, में तो सफल कर्यो बे जनमारो रे ॥ वे० ॥ नटने सोंप्यो कुर्कट पाठो, आव्यो गेहे मंत्री सुत श्राबो रे || वे ॥ १४ ॥ अर्थ | विचारीपणे जे माराथी तमने केदेवायुं होय ते मारो गुन्हो माफ करशो. हे जाइ तमारी सर्व श्राशा परिपूर्ण जो अने वेला वेला श्रावी मने मलशोजी ॥ १३ ॥ मने एक क्षणमात्र पण मन - मांथी जुलीजता नही. तमारां दर्शनथी मारो जन्म सफल थयो बे. या प्रमाणे वार्त्तालाप थया पी aar नटराज कुकडो पाठो सोंच्यो एटले प्रधाननो पुत्र तेने पोताने घेर सही सलामत श्राव्यो. १४ दवे नट सुट घणा मेडुरथी, चाल्या तेह पोतनपुरीरे ॥ वे० ॥ देश अनेक नगरीयुं अनेका, जोतां रमतां सुविवेकारे ॥ वे० ॥ १५ ॥ वली बहु नृपथकी लगता वाटे, ते कुर्कट यतनने माटे रे ॥ वे० ॥ ते नट लोक तो मन जाव्या, एम विमल पुरीए श्राव्यारे ॥ वे० ॥ १६ ॥ अर्थ || हवे नटनुं तथा सुनटनुं मंडल घणां हर्षसहित पोतनपुरथी प्रयाण करी चागल चायुं. तेर्ज अनेक देशो तथा नगरी जोतां त्यां विवेक सहित रमतो रमतां वली प्रसंग श्रावतां, कुर्कट रायना जतन माटे घणां राजानी साथे रस्तामां लडतां लडतां अनुक्रमे लोकोना मनने आनंद पमाडतां थकां एकदा विमल पुरीए वी पहोंच्या. ॥। १५-१६ ॥ sia राख्यो दतो जिदां माये, तिहां डेरा कर्या नट रायेरे ॥ वे० ॥ श्रवावीशमी त्रीजे उल्लासे, कही ढाल मोहने सुप्रकाशेरे ॥ वे० ॥ १७ ॥ ॥ जे स्थले विमाता वीरमतीए खांबो लावीने राख्यो हतो तेज स्थले नटराये तंबु ताल्या. उतारा कर्या. त्रीजा उल्लासनी मोहन विजयजीए सुप्रकाशित श्रावीशमी ढाल कही. ॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ॥दोहा॥ तेणे अवसर कुकमे, दीग श्राहीगण ॥ हरखीने निरखी पुरी, पूरव प्रेम प्रमाण ॥१॥ श्हां तो लबी प्रेमला, नाडे परणी जेह ॥ ते नगरी एतो खरी, नही लव मात्र संदेह ॥२॥ अर्थ ॥ एवे समये कुकडाए ते नगरीना ऐंधाण ( निशानी ) जोतांज हर्षवंत श्र पूर्वना प्रेमने स्मरणमा खावी नगरीने जोवा मांडी॥१॥ जे नगरीमा हुँ प्रेमला लजीने जाडे परण्यो तेज आनगरी. एवातमां मने जरापण संदेह लागतो नथी. ॥२॥ हुं एम जे पंखी थयो, एह पुरी परसाद ॥ वली फरी श्राव्यो शहां, सही तो टले विषाद ॥३॥ किहां थाना किहां विमलपुर, मेलो सुगम न होय ॥ जीवतडा मेलावमो, खलं कहे सहु कोय ॥४॥ अर्थ ॥ हुं श्राज नगरीना प्रतापथी पक्षी अयो बुं. अने फरीथी ज्यारे अहींथा श्राववा प्रसंग श्राव्यो जे त्यारे मने खात्री थाय ने के हवे मारुं मुःख टलशेज ॥ ३ ॥ क्या आजापुरी नगरी श्रने क्यां विमलापुरी, अढार सो कोशनुं अंतर ज्यां, त्यां मेलाप थवो ते केवी रीते सुगम होय? परंतु, "जीवतो नर जना पामे". ए कहेवत प्रमाणे जीवता बीए तो मेलाप थशे. ॥४॥ शहां मुजने श्राव्या तणी, रहेती होंश असंख ॥ सहीतो तेहीज कारणे, विधि मुज दीधी पंख ॥५॥ ते उपवनमां नट प्रमुख, रह्या करी थाचार ॥ हवे सुणो सहु प्रेमला, लबीनो अधिकार ॥६॥ अर्थ ॥ श्रहीथा मने श्राववानी असंख्यगणी होंशहती अने तेज कारणने लीधे मने खरूं लागे ने के विधात्राए मने पांखो आपी ॥ ५ ॥ नट विगेरे सर्व मंझले ते उपवनमा पोतानो विश्राम गम कर्यो. हवे श्रहीया प्रेमला लछीनी स्थितिनो अधिकार सांजलशो. ॥ ६॥ सहीउमां बेठी हती, डाबी फरकी नेण ॥ थर प्रमुदित प्रेमला, वदे सुरंगांवेण ॥७॥ अर्थ ॥प्रेमला सही पोतानी सखीउनी साथे बेठी हती तेवामां तेनी डाबी श्रांख फरकवाथी ते हर्षवंत अश् मीनां वचनो कहे .॥७॥ ॥ ढाल श्ए मी॥ ॥श्रा डे लालनी ॥ ए देशी॥ रे सहि शिरताज, तनु चेष्टाथी श्राज, श्रा ने लाल होवे कंत मेलावडोजी ॥ सोले वरशे उझार, देवी वचन अनुसार, श्रा ने लाल मलतो दिसे ताकमोजी ॥१॥ पण मुज मनमा एह, सही रहे संदेह, ॥ श्रा०॥ किहां पियु किहां श्राजापुरीजी ॥ नही संदेशो कोय, केम एम मेलो होय, ॥श्रा ॥ खोटी केम होशे सुरीजी॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय उवास. अर्थ ॥ हे मारी वहाली सखी! आजे मारी डाबी आंख फरके ने अने बीजी शरीरनी एवी निशानी थाय ने के मने मारो स्वामिनाथ मलशे. देवीनां वचनने अनुसारे सोल वरसे हवे मारो उधार अशे. तेथी मलवानो संलव पण लागे ने ॥१॥ परंतु हे बेहेनो! मारा मनमां एज संदेह रह्या करे के मारो स्वामि क्यां अने बालानगरी क्यां? आज सुधी कांड पण संदेशो नथी तो एवी रीते मेलाप ते केम थाय? वली देवी पण खोटी होय एम केम बने ? ॥२॥ देवी वचन अमोघ, कहे सहु जनना उघ, था० तास जणाशे पटंतरोजी॥ महारो प्राणाधार, को कोश हजार, था० केम करीनांजशे श्रांतरोजी ॥३॥ विरह स्थिति परिपाक, थयो दिसे अर्वाक, श्रा० श्राज जरोंसो एहवोजी ॥ एहमा मीन न मेष,आज कल्याण विशेष,थासही मुज पियु मल्यो संजवेजी॥॥ अर्थ ॥ सर्वे मनुष्यो कहे जे के देवीन वचन हमेशां सफलज थायले. तेथी हवे खरी हकीकत शुं ने ते सेहेज जणा आवशे. मारो प्राणाधारतो हजार कोशथी पण वधारे दूर ने तो आवमुं मोटुं अंतर ते केवीरीते दूर थशे? ॥३॥ पेहेलां कांश वियोगनी स्थितिनो परिपाक (अंत) थयो लागे तेथीज मने मारो स्वामि मलशे एवो नरोसो लागे जे. हवे तो मने लागे ने के तेमां कांइ पण मीनमेष नश्री. आजे मारूं विशेष कट्याण श्रवा रूप मारो नाथ जरूर मने मलवानो एवो संनव थाय ॥४॥ कहे तव सजनी एम, पामी पूरण प्रेम, श्रा० तारुं कह्यु होज्यो खरुंजी ॥ पीयरनो जे प्रेम, निद्यो जाये केम, श्रा० स्त्रीने वक्षन सासरुजीं ॥५॥ चंद जिस्यो प्राणेश, अनोपम सुंदर वेश, श्रा० सहुने क्षण नवि विसरेजी॥ वहा लो मलशे श्राय, ए नही निष्फल थाय, श्रा० एम जे नित तप तुं करेजी ॥६॥ अर्थ ॥ प्रेमला खजीनां वचनो सांगली संपूर्ण प्रेम सहित सखी कहेवालागी के हे बेहेन ! तमारु बोलवु साचुं पम्जो. माबापना घरनो प्रेम कोपण रीते वखोमवाजेवो नथी. तोपण स्त्रीजातिने तो सासरानुं घरज बहु वहालुं लागे. ॥ ५॥ चंदराजाना जेवो अनुपम अने सुंदर स्वरूप वालो प्राणनाथ केवीरीते याद न आव्याकरे अर्थात् सहुको तेने एक क्षणवार पण यादलाव्या विना रहेज नही. जेने माटे तुं निरंतर तपश्चर्या करे ने ते तारो प्राणनाथ तने आवीने मलशेज. ए वात निष्फल थवानीज नथी.॥६॥ हुश्श्रवधि अनंत, केम वजी मले न कंत, ॥ श्रा० ॥ काले लंबर पण फलेजी ॥ होवे करीर पटीर, तीर जिहां तिहांनीर, ॥श्राातेम तुज वि रह नकां टलेजी ॥७॥ एहवे तेह विहंग, बेरंग सुरंग, ॥ श्रा॥ नट आव्या दरबारमांजी ॥ नेट्यो प्रवर नगरीश, शिव नट ये श्रा शीश, ॥ था ॥ रविजेम प्रतपो संसारमांजी ॥७॥ अर्थ ॥ हवे लांबी मुदत हती तेनो पण अंत आव्यो. तेथी तारो स्वामिनाथ केम मट्या विनारहे ? काल परिपाक थता जंबरो पण फले . केरमाने पण पत्र पुष्प आवेने श्रने ज्यां सरोवर होय त्यां पाणी आवे के तो तारो विरह केम नही. दूर थाय अर्थात् दूर अशेज.॥७॥ एवा अवसरमा उत्तम For Personal and Private Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २१७ रंगवाला ते पक्षीने साथ लईने हर्ष सहित नाटकीयार्ज दरबारमां श्राव्या. नगराधिराजनुं, दर्शन थतांज शिवकुमरे एवो आशीर्वाद आयो के हे राजन् आपनो प्रताप जगतमां सूर्यनी जेम तपजो. ॥ ८ ॥ नृप तुज सोरठ देश, विमल पुरी सुविशेष, ॥ ० ॥ रहेती होंश जोवा तणी जी ॥ पूरव पुण्य अनुसार, दीगे तुज देदार, ॥ ० ॥ आज फली श्राशा घणीजी ॥ ए ॥ श्राजा नगरी एक दीवी अमे विवेक ॥० ॥ दीठी विमला पुरीजी ॥ एम कहीवा ढोल, काठ कसी रंगरोल, ॥ श्रा० ॥ मांगी नटे चातुरी जी ॥ १० ॥ अर्थ || हे राजन् ! आपनो सोरठ देश जोवानी ने तेमां पण विमलपुरीतो विशेषपणे जोवानी होंश मनमा घणी हती, वली पूर्व पुण्यना पसायथी आप नामदारना आजे दर्शन थयां तेथी जे मा कशा फलीभूत थई ॥ ए ॥ श्रमे तो उत्तम विवेकवाली एक आजानगरी दीवी के बीजी विमलापुरी दीवी. एवां मनोहर वचनो बोली ढोल बगाड्यो अने रंगजर कानडोवाली अर्थात् सामग्री तैयार करी नटे नाटकनुं काम शरू कर्यु. ॥ १० ॥ कीधी भूमि पवित्र, पुंज कुसुम सुविचित्र, ॥ श्र० ॥ ते उपर पिंजर जी ॥ सुघट घाट विख्यात, जाणीए सुरगिरि जात ॥ ० ॥ ए वो वंश जो कर्यो जी ॥ ११ ॥ दोरातास समंत, बांध्या खेंची श्र नंत ॥ ० ॥ जाणीए किरण दिलंदनां जी ॥ कीलक राते रंग, धरणी ली अभंग, ॥ ० ॥ मानीए कोश अरविंदना जी ॥ १२ ॥ ॥ प्रथमतो भूमि पवित्र करी तेना उपर चित्र विचित्र सुंदर पुष्पनो ढगलो करी ते उपर पांजबि.पी सुंदर, सारा घाटवालो, जाणे मेरूपर्वतज लावीने खडो कर्यो होय एवो वांस, नाटक करवानी मध्य भूमिमां लावीने जो कर्यो. ॥। ११ ॥ ते वांसनी साथे अनेक मोटा दोरडा मजबुतरीते खेने बांध्या, ते जाणे सूर्यनां किरणोज होयनी एवां लागतां हतां. ते दोरडा, राता रंगनी भूमि पर निकली के एवी रीते खीलाई ठगेकी ते खीलाई साथे बांध्यां दतां. ते जाणे कमलना मांडा होय एवा दिसता हता ॥ १२ ॥ शिवमाला तेलीवार, पेहेरी सवी शणगार, ॥ श्रा० ॥ वंस तले उनी रही जी ॥ के शमता के खंति, के निरममता जंति ॥ ० ॥ एहथी अन्य उपम नहींजी ॥ १३ ॥ नट कन्या नरवेश, सुरीयुं एहनो लेश, ॥ ० ॥ देखी चमकित हुइ सजा जी ॥ राजा मन संदेह, कुण बे धन्या एड्, ॥ श्र० प्रगटी कहांथी रवि प्रजा जी ॥ १४ ॥ ॥ तत्काल शिवमाला सर्व शृंगार धारण करी वांस नीचे आवीने उभी रही. जाणे साक्षात् श मता, क्षमा के निर्ममता खडी होय तेवी दिसती हती. हवे एथी वधारेते शी उपमा पीए अर्थात् बीजी एकपण तेथी वधारे उपमा आापी शकाय तेम नथी ॥ १३ ॥ शिवबालाए नवो पुरुषनो वेश २८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय उहास. धारण करवाथी, वली देवांगना पण तेणीनीपासे रूपमां का नहीं, एवी लागवाथी, सर्वे सलाजनो आश्चर्य पामीगया. राजाना मनमां तो एवी शंका थई के आवी कन्याते कोनी हशे? साक्षात् सूर्यनी प्रना क्यांथी प्रगट थ॥ १४ ॥ शिवमाला अविलोक, नृप मकरध्वज कोक, ॥ श्रा० ॥ ताम तेडावी प्रेमला जी ॥ श्रावी पुलकित अंग, बेठी तात उबंग, ॥ आ॥ सकल कला कुल पेसला जी ॥ १५ ॥ हे पुत्री कहे नूप, ए नट सुजट थ नुप, ॥ आ ॥ ए सहु थानापुरी हुता जी ॥ निरखतुं खेल प्रशंस, मां ड्यो ए वंश, ॥ श्रा० ॥ इहां चढी खेलशे नट सुता जी ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ शिवबालाने अवलोकन करतांज, मकरध्वज राजाए प्रेमला खजीने तरतज बोलावी. ते श्रावतांज हर्षथी तेना रोमांच खडा थया. पिताए पोतानी पासे बेसामी. ते सर्व कलामां अत्यंत कुशल श्रयेली हती. ॥ १५ ॥ राजाए कह्यु के दीकरी ! श्रा नटनुं मंगल अनुपम बे. तः सर्वे एक वखत आलानगरी गया हता. तेजेनो खेल वखाणवा लायक बे. श्रा जे वांस खमो को तेना उपर चढीने श्रा नटनी बाला अनेक खेलो करी बतावशे. ॥१६॥ विमल पुरी नरनार, आव्या नृप दरबार, ॥ श्रा० ॥ नट क्रीमा जोवा जणी जी ॥ नव वीश त्रीजे उल्हास, ढाल ए प्रेम प्र काश, ॥ आ० ॥ मोहने नाखी सोहामणी जी॥१७॥ श्रर्थ ॥ विमलपुरीना मनुष्यो राजाना दरबारमा नटना सर्व खेलो जोवाने श्राव्या. त्रीजा उवासनी जंगणत्रीशमी ढाल मोहन विजयजीए अति मीठी कही. ॥ १७॥ ॥दोहा ॥ शिवमाला वंशे चढी, नागरिक दृग् साथ ॥ बेठी कुब्जासन करी, करुणारुप सनाथ ॥१॥ वाल्यां योगासन सकल, नटबाला सुप्रधान ॥ कीधा नगरी लोकने, के सुर चित्र समान ॥२॥ अर्थ ॥ नगरना लोकोनी दृष्टी जेना उपरजजे एवी शिवमाला वांस उपर चढी. सनाथ अने साक्षात् दयारूप एवी ते वांस उपर कुब्जासन करी बेठी ॥१॥ ते उत्तम नट वालाए योगना सर्वे आसनो वांस उपर वाट्यां, जेथी नगरना सर्वे लोकोने देवना चित्र समान तेणीए स्तब्ध करी दीधा. ॥ २॥ ढोल ढमकीया नूतले, तेम नट शब्द उच्चार ॥ खेल मोच्य थ तिही सरस, कहेतां नावे पार ॥३॥ दोरे दोरे नवलगति, खेले सुता अतीव ॥ योनि चोराशी लक्षमां, जिण विध विचरे जीव ॥४॥ अर्थ ॥ जमीन उपर जेम ढोलो जोसनर वागता हता तेम नटोपण जोसजर शब्दोच्चार करता हता. एवीरीते अतां खेलमा बहुज रस जाम्यो. जेनुं वर्णन करतां पार आवे तेम नथी ॥३॥ स्थंजना दोरा अनेक होवाथी ते दरेकनी उपर शिवमाला नवा नवा खेलो करती हती. जेम चोराशी लक्ष्योनिमां जीव गति करे तेवी रीते जुदा जुदा दोर उपर ते गति करती हती. ॥४॥ For Personal and Private Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ए चंदराजानो रास. खिण एक वंशाग्रे रही, फिरे फेर अनुपात ॥ जाणे केवलीए रच्यु, ए केवली समुद्घात ॥ ५ ॥ वंशतणी रामत रमी, श्रावी हेठी बाल ॥ उपशमथी कोइ जाणीए, पड्यो प्रथम गुणमाल ॥६॥ अर्थ ॥ क्षणवार स्थंजना टोच उपर रही, फरी तरतज चक्र खेवा रूप गमनागमन क्रिया करती हती. जाणे केवलीए केवली समुद्घात करवा मांड्यो होय तेवी रचना करती हती. ॥५॥ वांस उपरथी रमत रमीने शिवमाला नीचे उतरी ते जाणे उपशांत मोह नामना ११ मा गुणस्थानकधी पडतो कोश पेहेले गुणस्थानके आवी जाय तेना जेवू बन्युं हतुं. ॥६॥ शिवमाला निज तातथी, आवी नाम्यो श्रवनीश ॥ रजत हेममणी वस्त्रनो, वूट्यो घन जेम श्श ॥७॥ अर्थ ॥ शिवकुमर नटे शिवमालाने साथे लश् राजेंद्रने नमस्कार को. ते वखते राजाए तेना उपर सुवर्ण, मणि, रुघु अने वस्त्रादि अनेक वस्तुनो मेघनी जेम वरसाद वरसाव्योः ॥७॥ ॥ ढाल ३० मी॥ ॥ उठगे कान कोमामणा ए देशी ॥ दीतीजी एहवे कुकडे, तेहवे प्रेमला लबी रे ॥ परणी धरणी उलखी, नाच्यो तुरंग जेम कछी रे ॥१॥ श्राज सुरंग वधामणा, आज ते उलट अंगरे ॥ सोले वरसे चंदने, थयो वनिता प्रसंग रे ॥ श्रा०॥२॥ अर्थ ॥ एवा अवसरमा कुकडाए प्रेमला लबीने देखतांज श्रा मारी परणेली स्त्री एम उलखी काढी भने उलखतांज कली घोडानी जेम नाचवा लाग्यो. आजे उत्तम रंगजर वधामणां बे. आजे हैयामां हर्ष समातो नथी. सोले वरसे चंद राजाने पोतानी पत्नीनो मेलाप थयो. ॥१॥२॥ कुवे कुवो नवि मले, रह्या अचल खजावे रे ॥ पण वीबडीया नरमले, जेह सपद कहावे रे ॥ श्रा॥३॥ सोले वरसे एहनो, हुई मीट मेलावो रे ॥ शुं करूं सरज्यो पंखीयो, नहींतो करत वधावो रे ॥ श्रा० ॥४॥ अर्थ ॥ एक कुवो बीजा कुवानी साथे बंने स्थावर स्वजावना होवाथी कदापि मली शके नही. परंतु एक बीजाथी वियोग पामेला पुरुषो हाथ पगवाला होवाथी तेमनो मेलाप अवानो संजव ॥३॥ चंद राजा अने प्रेमला लबीनो सोल वर्षे दृष्टि मेलाप अयो. चंद कहे जे के शुं करुं के हुँ पक्षी सरजायो बुं. नहीं तो श्रा वखते तेणीने हर्षनी वधाइ करत. ॥४॥ कोम दिवाली जीवजो, मायडली मुज केरी रे ॥ न होत जो कीधो कुकमो, क्यां ए मलतो फेरी रे ॥ श्रा॥५॥ ननुं पण हो जो जवं, जेणे साथे राख्यो रेले हां मुज श्रावीया,नित नित यश मुज जाख्योरे॥श्रा०६॥ अर्थ ॥ चंद राजा विचारे ले के मारी माता वीरमती कोड दिवाली सुधी जीवजो, के जेना पसायथी हूं कुकडो न थयो होत तो था प्रेमला खजीने फरीथी केवी रीते मली शकत ॥ ५॥ वली मने सारे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्व तृतीय उहास. राखनारा था नटोनुं पण कल्याण श्रजो के जे मने साथे लइने अही श्राव्या एटलुंज नहीं पण जे मारां निरंतर यशोगान करे . ॥ ६॥ दीतुं मुख पुण्यवंत,, श्राज में प्रातनी वेलारे ॥ मुजने हुश्रा जेहथी, वीमीयाना मेलारे ॥ श्रा॥॥ श्राज दिवस नले जगम्यो,नयणे नारी दीठी रे ॥ प्रगट्यो अंकुर संयोगनो, विरहारति हवे नीठी रे ॥ श्रा० ॥७॥ अर्थ ॥ में पण आजे प्रातःकालमां कोइ पुण्यवंतनुं मुख दी लागे , के जेना पसायथी मारा वखतना वियोग श्रयेलानो मेलाप आजे थयो ॥ ७ ॥ आजनो दिवस नलो रंग रसीयामणो सांबो उग्यो के आजे प्रेमला लचीने दीगी. हवे संयोग थकानो अंकुरो प्रगट थयो. वली विरहनी पीमा हवे नाश पामवानी. ॥ ७ ॥ जो मुज संग्रहे प्रेमला, नट पासेथी ले रे ॥माहरा मनोरथ तो फले, थाए कारज के रे ॥ श्रा॥ए॥ थाश्श हवे पंखी टली, फेरीने नर रुपे रे ॥ शिवनट रायनी पुत्रिका, हरखे एहने जो सोंपे रे ॥श्रा०॥ १० ॥ अर्थ ॥ जो प्रेमला लची मने नटनी पासेश्री मागी लइ पोतानी पासे राखे तो मारा सर्व मनोरथ फली नृत थाय अने केटलांए कार्यों सिद्ध श्राय ॥ ए॥ आ शिव नटनी पुत्री शिवमाला जो मने हर्षसहित आ प्रेमला लचीने सोपे तो हुँ आशा राखं के मारूं पदीनुं स्वरूप फरी जश् हुं पुरुष अश् जाउं. ॥१०॥ प्रेमला लबीए एहवे,जोयुं पिंजर सामुं रे ॥ दीगे मनहर कुकमो, नट करे तास सलामुं रे ॥ आ॥१९॥ पामी अचरिज मनमां, जोवे निपट निहाली रे ॥ कुकडनी पण तेहथी, लागी ध्याननी ताली रे ॥ श्रा० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ एवे अवसरे प्रेमला लबीए पांजरानी सन्मुख जोयुं तो तेमां मनने हरण करनारो कुकडो तेणीए दीगे, जेने नटो वारंवार सलाम करता हता ॥ ११॥ हवे प्रेमला लबी पण कुकडाने जो आश्चर्य पामतां बहुज बारिकीश्री तेने निहालीने जुवे . कुकडो पण तेणीनी सामेज ध्याननी ताली लगावी रह्यो बे. ॥१॥ त्रीजा उवासमां बेहुने, थयो नयणनो मेलो रे ॥ पुण्य पसाये संपजे, पति प्रेमदा संग नेलो रे ॥ श्रा॥१३॥ पुण्य पसाये चंदने, मलशे बहु शहां कमलारे॥बहुली कीरति वाधशे,शशिथी पण अति विमला रे ॥श्रा०१४॥ अर्थ ॥ आ त्रीजा नवासमां पति पत्नी बनेनो दृष्टि मेलाप अयो. हवे पुण्यना पसायश्रीज ते स्त्री जतारनो परस्पर भेलाप श्रशे ॥ १३ ॥ कवि कहे जे के हवे चंद राजाने अहींयां तेना पुण्यना पसायथी अनेक प्रकारनी लक्ष्मी संपादन थशे. वली चंडमांथी विशेष उज्वल एवी तेनी यशः कीर्ति वधशे. ॥१॥ सुविलासी षट् तर्कना, श्री विजयसेन सूरीश रे॥वाचक कीर्ति विजयवरु, तास शिष्य सुजगीश रे॥श्रा॥१५॥ तास शिष्य कविशेखरू,श्री मान विजय बुधेश रे ॥ तस पद सेवक कविवरु,श्री रूपविजय आशेष रे ॥श्रा०१६॥ For Personal and Private Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २२१ अर्थ ॥ हवे कविराज पोतानी गुरु परंपरा वर्णवे . उ ए दर्शनना पारगामी एवा श्री विजयसेन सूरीश्वर या अने तेमना उत्तम कीर्तिवंत एवा शिष्य उपाध्याय श्री कीर्तिविजयजी श्रया ॥ १५ ॥ श्री कीर्तिविजयजीना शिष्य, कविने विषे शेखर समान, महा पंडित श्री मानविजयजी श्रया; अने तेमना चरण कमलना सेवक कविवर श्री रूपविजयजी श्रया. ॥ १६॥ तस पद पंकज मधुकरे,मोहन कहे सुविलास रे॥ ए त्रीशे ढाले करी, रच्यो तृतीय उल्हास रे ॥ श्रा० ॥१७॥ श्रागल चंद नरिंदनो, बे मीगे अधिकार रे ॥ वर्ण विशुंडे जेहवो, चंद चरित्र मकार रे ॥श्रा० ॥१॥ अर्थ ॥ ते श्री रूपविजयजीनां चरण कमलने विषे त्रमर समान श्री मोहनविजयजीए त्रीजा जमा सनी रचना करी, जमां त्रीश ढाल उत्तमविलासवाली कही ॥ १७ ॥ आगल उपर चंद राजानो बहु मीगे अधिकार . तेनुं वर्णन जेम चंद चरित्रने विषे करेलुं तेवीज रीते हुँ पण करीश. ॥ १७ ॥ ॥ इति श्रीमोहन विजयविरचितेचंदचरित्रे प्राकृतप्रबंधे प्रेमलालबीजीवनरूपा चंदकुर्कटजननामिका शिवमालायाः कुर्कट प्रदानसंझिका प्रेमला मिलनरूपा श्रानिश्चतसृनिः ___ कलाजिस्समर्थोयं तृतीयोल्लासः ॥ ॥ इति श्री चंदराजाना रासनो त्रीजो उदास समाप्त.॥ ॥अथ चतुर्थोल्लास प्रारच्यते ॥ ॥दोहा॥ प्रणमुं वीरजीणंद पय, केवल तबक निधान ॥ जस अनुजवथी संपजे, शुद्ध सुधानुष्ठान ॥ १॥ योग युगति साष्टांगनी, जेहथी संगति होय ॥ योग मार्गनी अगम गति, समजे विरलो कोय ॥२॥ अर्थ ॥ श्री केवल ज्ञानना निधान एवा श्री वीर परमात्माना चरणोने नमस्कार करुं वं. जे नमस्कारना अनुजवथी जव्य जीवने शुद्ध अमृत क्रियानी प्राप्ति थाय ॥१॥ अष्टांग योगनी समजपण जेना पसायबीज थाय बे. योग मार्गनी समजण बहुज कठिन ने. कोइ विरलाज ते मार्गने समजे .॥२॥ बाह्य क्रिया कष्टात्मिका, नव सुख जननी एम ॥ पण अंतर किया थकी,चिदानंदने प्रेम ॥३॥ बाह्य परिग्रह त्यागथी, निर्मल न थयो कोय ॥ जेम विषधर कंचुकी तजे,निज निर्विष नवि होय ॥४॥ अर्थ ॥ जे जे बाह्य क्रिया ले ते सर्वे श्रात्माने कष्ट आपनारी के अने मात्र जव संबंधी सुखनेज प्राप्त करावनारी जे. परंतु अंतर क्रिया की तो चिदानंद स्वरूपनो प्रेम प्रगट श्राय रे ॥३॥ मात्र बाह्य परिग्रहनो त्याग करवाथी कोइ पण पोताना आत्माने निर्मल करी शकतो नथी. जेम सर्प मात्र कांचलीनो त्याग करवाश्री पोते विष वगरनो अश् शकतो नश्री तेम. ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ चतुर्थ उल्लास. रहे चेतन निज जावमां, तेह अलोकिक जेद ॥ उदर जरण हित कष्टते, केवल मिथ्या खेद ॥ ५ ॥ जे श्रुत अक्षर उलवे, करे कुमति मति जोर ॥ ज्ञानी तो तेहने गणे, करीने जिनमत चोर ॥ ६ ॥ छाने पेट ॥ आत्मा जे पोताना स्वभावमांज रमणता करे ते अलोकिक ( लोकोत्तर ) स्वरूप समजवु. रवाने माटेज जे कष्ट क्रिया करवी ते तो मात्र मिथ्या क्लेश उत्पन्न करवा जेवुं बे ॥ ५ ॥ जे कुमति पोतानी बुद्धिना बलथी श्रुत सिद्धांतनी एक पण अक्षर ठेलवे तेने ज्ञानी पुरुष तो जिन मतनो चोर गणे बे. ॥ ६ ॥ आण अखंडित जिन तणी, जेह अंजलि, ए जव पारावार ॥ ७ ॥ धरे नरनार ॥ थाये तेहने बाह्य खेल खेली करी, खेले अंतर खेल ॥ तेहने चंद नरिंद जेम, पसरे सुकृत वेल ॥ ८ ॥ अर्थ ॥ स्त्री पुरुषो जिनेश्वर जगवाननी श्रज्ञाने श्रखंरुपणे धारण करे बे, तेने या नवरूपी समुद्र अंजलि समान थ जाय बे ॥ ७ ॥ जे बाह्य क्रियाने करतां थकां अंतरक्रियाने पण साथे कर्या करे बे, तेने चंद राजानी जेम सुकृत रूपी वेल विस्तार पामी अनुपम फल मले बे. ॥ ८ ॥ चोथो चंद चरित्रनो, निसुणो जवि उल्लास ॥ थयो सकषाय रसालफल, एहनी लही मीठाश ॥ ए ॥ जेहवो चोथो धर्म बे, जेवो चोथो ध्यान ॥ तेम चोथा उल्लासमां, बे शिवदाइ ज्ञान ॥ १० ॥ ॥ हे व्य जनो ! चंद राजाना चरित्रनो चोथो उल्लास हवे सांजलो. एम जासे वे के एनी मीठाशनी पासे रसवाला आम्रवृनां फलोनी मीठाश पण कषायली थइ गइ || ए || जेवो चोथो मोहपुरुषार्थ वा जाव धर्म बे, जेवुं चोथुं शुक्ल ध्यान बे तेवुंज या चोथा उल्लासमां मोने आपनाएं ज्ञान बे १० नट नृप दाने हरखीयो, हरख्यो तेम विहंग ॥ वे गल श्रोता सुणो, उत्तम कथा प्रसंग ॥ ११ ॥ ॥ जेम राजाना दानथी शिवकुमर नट हर्ष पाम्यो, तेमज पक्षी पण हर्ष पाम्यो. हे श्रोताजनो ! हवे उत्तम कथानुं वर्णन ध्यान दइने सांजलो. ॥ ११ ॥ Jain Educationa International ॥ ढाल १ ली ॥ || लोहार जायो दी करो || लोहारी हो ॥ ए देशी ॥ शिवपुर पतिनी चागले, सोजागी हे ॥ गाये महा श्राख्यानके, लाल सोजागी हे ॥ तृण ग्रासी परे सांजले, ॥ सो० ॥ पुरवासी देइ कानके ॥ ला० ॥ १ ॥ देखी पिंजर चरिज धरे, सोनृपति सुता वली नूपके ॥ ला० ॥ बेहुने हृदय यावी वस्यो, सो० नख ति अनुपके ला० ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२३ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ त्यार पनी शिव कुमर नटे राजानी पासे सुंदर आख्यान गावाने शरं कर्यु. जे आख्यानने नगरवासी जनो कान दइने मृगलाउनी जेम सांजले ॥१॥ पांजराने देखीने राजा अने राजपुत्रो बने आश्चर्य पाम्या. ते बनेना हृदयमां ते अनुपम पदी रमी रघु.॥२॥ साहमी थक्ष विमलापुरी, ॥ सो ॥ पंखीथी लय लीनके ॥ ला कहे सहु नट श्राव्या जले, सो॥ निरख्यो जे विहंग प्रवीण के ला॥३॥ नट पासेथी नरवरे, ॥ सो० ॥ पिंजर लीधो समीपके ॥ ला ॥ ताम हृदय प्रेमला तणे, ॥ सो ॥ प्रगट्यो प्रेम प्रदीपके ॥ ला ॥४॥ अर्थ ॥ वली विमलापुरीना सर्व लोकोपण पहीने जोवामां लीन श्रइ गया. ते बोलवा लाग्या के श्रा सर्व नटो जले आव्या के जेथी आq प्रवीण पदी जोवामां आव्युं ॥ ३ ॥ शिवकुमर नटनी पासेथी राजाए पांजरूं पोतानी पासे जोवा लीधुं एटले प्रेमलाना अंतःकरणमां प्रेमनो प्रदीप प्रगट अयो.॥४॥ कुक्कट पण सन्मुख जुवे, ॥ सो० ॥ दृष्टिथी दृष्टि मिलायके ॥ ला॥ हेम पिंजर रह्यो ज पडयो, ॥ सो ॥प्रेमने पिंजर जायके ॥ ला॥५॥ हृदय सो काले चंचथी, ॥ सो॥ विहंगम वारोवारके ॥ ला॥ रेहेवा प्रेमला कारणे, ॥ सो ॥ जाणीए रचे श्रागारके ॥ ला ॥६॥ अर्थ ॥ कुकटराय पण तेणीना सन्मुख जोवा लाग्या अने अरसपरस दृष्टि मेलाप थयो, एटले सुव. णना पांजरामा रहेलो जीवडो प्रेमना पांजरामां जश्ने चोटयो ॥ ५॥ प्रेमला लबीना अंतःकरणनी साथे पक्षी वारंवार चांच लगाडतो हतो, एवा हेतुश्रीके जाणे प्रेमलानी सा रेहेवाने अंदर निवास करतो होयनी.॥६॥ क्षण मांहि प्रीति वशे थक्ष, ॥ सो ॥ पंखी फुलावे पंखके ॥ ला ॥ जाणीए हित महीरूह तणा, सो॥ उलसित पत्र असंखकेला॥॥ देखी चेष्टा प्रेमनी, ॥ सो ॥ प्रेमला थाए सनाथके ॥ ला ॥ सोंप्यु सना मांहि गोपवी, ॥ सो० ॥ निज मन पंखीने हाथके ॥ ला॥७॥ अर्थ ॥ वली क्षणमां प्रीतिने आधीन अवाश्री पदी पोतानी पांखो फूलावे . ते जाणे हेतरूपी पृथ्वी उपरना वृक्षना असंख्य पांदडा नवपक्षव श्रया होयनी ॥ ७॥ प्रेमला लची पण पक्षीनी सर्वे प्रेमनी चेष्टा देखीने पोते सनाथ अश् एम मानवा लागी अने तेणीए सजामां गुप्त रीते पोतार्नु मन पक्षीने कबजे सोंप्यु.॥७॥ नटने पाडो पांजरो, ॥ सो० ॥ नूपे दीधो तामके ॥ ला०॥ बेसाड्यो नट रायने, ॥ सो॥ निज पासे गुण धामके ॥ ला०॥ ए॥ पुढे नूपति तेहने, ॥ सो० ॥ कुटनो अधिकार के ॥ ला० ॥ कर जोडी नटवर कहे, ॥ सो ॥ कहुं निसुणो वसु धारके ॥ ला०॥ १० ॥ For Personal and Private Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ चतुर्थ उदास. अर्थ ॥ पछी राजाए नटने ते पांजरूं पाबु श्राप्यु; अने शिवकुमर नट जे गुणवें स्थानकज ने तेने पोतानी पासे बेसाड्यो । ए॥ राजाए शिवकुमरने कुकडा संबंधी सर्व वृत्तांत पुस्तां, ते नटराये बे हाथ जोडी कह्यु के हे राजन् ! तेनुं वृत्तांत आ प्रमाणे बे. ॥ १० ॥ श्हांथी कोश अठारसे, ॥ सो० ॥ नगरी थानापुरी एकके ॥ ला०॥ चंद नृपति तिहां नरवरू, ॥ सो॥ गुण तास अनेकके ॥ ला॥११॥ तास विमाते तेहने, ॥ सो० ॥ राख्यो ने गोपवी गेहके ॥ ला० ॥ श्रमे प्रगट निरख्यो नही, ॥ सो० ॥ होश रही मन एहके ॥ ला ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ विमलापुरीथी अवारसो कोशने अंतरे आजापुरी नामनी एक नगरी जे. त्यां अनेक गुण सं. युक्त चंद नामनो नर श्रेष्ठ राजा ॥११॥ तेनी उरमान माए तेने गुप्त रीते घरमा राख्यो बे. अमे तेने प्रत्यक्ष दीगो नश्री. जोके अभने तेने प्रत्यक्ष जोवानी होंश घणीज मननां रही . ॥१२॥ करतां राज्य दिठी तिहां, ॥ सो ॥ वीरमती महारायके ॥ ला० ॥ तिहां जश् श्रमे नाटक कयुं, ॥ सो ॥ तूर सनूर वजायके ॥ला॥१३॥ तास वधू दे गुणावली, ॥ सो ॥ तेहनो ए पंखी नूपके ॥ ला ॥ राणी उपर वट थ एणे, ॥ सो ॥ दीधुं दान अनूपके ॥ ला ॥१४॥ अर्थ ॥ अमे त्यां वीरमती महाराणीने राज्य करती दीी. तेनी पासे जइ हर्ष सहित वाजिंत्रो वागते अमे नाटक कर्यु ॥ १३ ॥ ते वीरमतीने गुणावली नामनी दीकरानी वहु . हे राजन् ! तेनुं आ पदी जे. श्रा पदीए राणीनी उपरवट अश् अमने अनुपम दान दीधुं जे. ॥१५॥ वीरमती हणती हुती, ॥ सो० ॥ लोके बोडाव्यो एहके ॥ ला ॥ मुज पुत्रीने पंखीए, ॥ सो ॥ समजावी ससनेहके ॥ ला ॥ १५ ॥ श्रमे पण वीरमती कने, ॥ सो० ॥ लीधो ए पंखी पसायके ॥ ला ॥ सेना सवित्रे एहनी, ॥ सो॥ अमे मान्यो करी रायके ॥ ला ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ आ पक्षीने वीरमती मारी नांखती हती, परंतु लोकोए तेने जगेडाव्यो बे. त्यार बाद आ शिवमालाने पदीए स्नेह पूर्वक पोतानी हकीकत समजावी ॥ १५ ॥ श्रमे पण वीरमतीनी पासेथी आ पक्षीने नाटक देखाड्याना इनाम तरीके लीधुं आ सर्व सैन्य तेनुं . वली अमे तेने अमारो राजा ने एम मान्यो बे. ॥१६॥ सह अमे सेवक एहना, ॥ सो० ॥ अहो सोरठ महीपालके ॥ ला॥ पेहेली चोथा उसासनी, ॥ सो० ॥ मोहने पत्नणी ढालके ॥ ला ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ अहो सोरठ महीपति ! अमे सर्वे तेना सेवक बीए. या प्रमाणे चोथा उल्लासनी पेहेली ढाल मोहन विजयजी ए कही. ॥ १७ ॥ For Personal and Private Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ॥ दोहा॥ एह विहंग राजा ग्रही, श्राजापुरथी स्वाम ॥ घणे हेजे चाख्या अमे, देश विदेशे ताम ॥१॥ एम करतां वरसे नवे, आव्या तुम दरबार ॥ संदेपे तमने कह्यो, पंखीपति अधिकार ॥२॥ अर्थ ॥श्रा पक्षीराजने ग्रहण करी हे राजन्! अमे आनापुरीश्री बहु हर्ष सहित प्रयाण कर्युः अने देश परदेश करवा लाग्या ॥१॥ए प्रमाणे फरता फरतां नव वरसे तमारा दरबारमा आव्या. आ संदेपथी ते पक्षी राजनो वृत्तांत आपने विदीत को. ॥२॥ मकरध्वज सुप्रसन्न थयो, पाम्यो चंद उदंत ॥ तेम हरखी अति प्रेमला, नाम सुणीने कंत ॥३॥ कयौं घणो विमलेसरे, कुर्कट उपर प्रेम ॥ पण नृपचंद न उलख्यो, पंखी वेशे एम ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ मकरध्वज राजा चंद राजानो वृत्तांत सांजली बहुज खुशी थयो. तेवीज रीते प्रेमलालबी पण पतिनुं नाम सांजली हर्षवंत थइ ॥ ३॥ पजी विमलेश्वरमकरध्वज राजाए कुकमा उपर अत्यंत स्नेह धारण कर्यो; परंतु पक्षी वेशे होवाथी आ चंदराजा ने एम उलखी शकयो नहीं. ॥४॥ नट नरपतिने विनवे, तुज चरणे महीपाल ॥ रहीये पावसरूतु शहां, जो अनुमति सुविशाल ॥ ५॥ रहो सुखे नूपति कहे, करशुं गोष्टि सदैव ॥ तुमथी वली कुर्कट थकी, प्रेम विलुको जीव ॥६॥ अर्थ ॥ पनी शिवकुमर नटे राजाने विनंति करीके हे राजन्! आपनी पवित्र आज्ञा होय तो वरसा ऋतुमां आपनी बायामांज अमे रहीये ॥५॥ मकरध्वज राजाए कह्यु के हे शिव कुमर ! तमे सुखेथी रहो. तमारी साथे निरंतर गोष्टी करशुं. कारणके तमारी साथे अने कुकडानी साथे श्रमारो प्रेम संबंध थयो ..॥६॥ नृप आदेशे नगरमां, रह्या नट लेश श्रावास ॥ गीत गान नित प्रति करे, ते नट कुर्कट पास ॥७॥ अर्थ ॥ राजानो हुकम लइ नटो नगरमां आवास लइ रह्या. तेढ निरंतर कुर्कट रायनी पासे मुजरो करे . ॥ ७॥ ॥ ढाल जी॥ ॥ साहेलमीरे श्राज धरा हुश्रो धुंधलो हो लाल ॥ ए देशी ॥ एक दिन प्रेमलाने कहेहो लाल, तात तेडी श्रासन्न मन मोहना रे ॥ ताहरूं कहुं हुं न मानतो हो लाल, पण हवे मान्युं मुज मन्नामा॥ कर्म करे ते न करे कोश हो लाल, सुख उःख कर्म प्रमाण ॥ म० ॥ कर्ता कर्म कह्यो खरो हो लाल, धन धन श्री जिन जाण ॥मणाक॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ चतुर्थ उदास. अर्थ ॥ मकरध्वज राजा एक दिवस प्रेमला लहीने पोतानी पासे बोलावी कहेवा लाग्यो के हे पुत्री ! तारूं बोलतुं हुं साचुं मानतो नहोतो, परंतु हवे मने तारी बोलेली वात साची बे, एवी खात्री अई जे. कर्म जे करे ते बीजुं कोपण करवाने शक्तिवान नथी. सुखके मुःख सर्वे कर्माधीन. जिनेश्वर लगवाने कर्मने कर्ता जे कह्यो ते वात सत्य बे. ते सूर्य समान जिनराजने धन्य , धन्य बे. ॥१॥२॥ व तुज पति वेगलो हो लाल, मेलोतो लेखने हाथ ॥ म ॥ कहे तो श्रपावं कुकमो हो लाल, जे जे नटनी साथ ॥ म० ॥ क० ॥ ३ ॥ आला ढुंबे एहने हो लाल, थाशे दिवस व्यतीत ॥ म० ॥ जोरन को दैवथी हो लाल, जे जगगति विपरीत ॥ म० ॥ क० ॥४॥ अर्थ ॥ हे पुत्री! तारो पति अहींथी घणा दर वे. तेनो मेलाप थवो ते तो कर्माधीन जे. परंतु तुं कहे तो श्रा नटोनी साथे जे कुकमोबे ते तने अपा. ॥३॥ए पदीनी साथे आलावँबो थवाथी तारा दिवसो व्यतीतयशे. विधानानी साथे कोईनुं जोर चालतुं नथी. वली हजु दैव प्रतिकुल ॥४॥ तातने वचने प्रेमला हो लाल, मांड्यो हठ दरबार ॥ म० ॥ श्रावे जो ए कुकडो हो लाल, लेखे मुज अवतार ॥ म ॥ कम् ॥ ५॥ पियुना घरनो ए पंखी हो लाल, ए मुज जीव समान ॥ म० ॥ राखवो ए श्रादर करी हो लाल, पंखी अतिथि प्रधान ॥ म० ॥ क० ॥६॥ अर्थ ॥ पितानां आवां वचनोथी प्रेमलाए पण आग्रहथी कडं के हे पिताजी! जो ए कुकडो मने मले तोज मारो अवतार लेखेने, नहींतो फोगट समजु वं. ॥ ५॥ मारा स्वामीना घरनो ए पदी ने, तेथी मने ए मारा प्राण समान वहालो . ए पही उत्तम अतिथि होवाथी मारे तेने बहु सन्मान पूर्वक राखवो बे.६ ताते सूता वचने जले हो लाल, मुक्यो शिव नट पास ॥म ॥ अरधे वचने नट आवियो हो लाल, प्रणम्यो नट सुविलास।म०॥क०॥७॥ केम संजार्यों मुज जणीहो लाल, दीजे कारज कोय ॥ म ॥ नूधव तव शिवने कहे हो लाल, सादरे सन्मुख जोय ॥ म ॥ कम् ॥ ७॥ अर्थ ॥ मकरध्वज राजाए प्रेमलानां मीग वचनोथी शिव नटरायने तेमवा मोकट्यो. तेपण अरधे वचने आवीने प्रेमपूर्वक राजाने प्रणाम करतो हवो. ॥ ७॥ शिवकुमर नटे आवीने कडं के हे महाराज ! श्रा सेवकने याद करवा केम तस्दी दीधी, सेवक सरखं काम फरमावो. राजाए बहु मान पूर्वक तेनी सामुं जो कह्यु के ॥७॥ जे तुम पासे ने पंखीयो हो लाल, प्रेमला लबीनो एह ॥ म ॥ सास रियो थाये खरो हो लाल, वात असंनव एद ॥ म ॥ क० ॥ ए॥ सोले वरसे चंदनो हो लाल, लह्यो तुमथी उल्लेख ॥ म० ॥ जाणी प तिना गेहनो हो लाल, पुत्रीने व्हालो एष ॥ म ॥ क० ॥१०॥ For Personal and Private Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १२७ अर्थ ॥ जे तमारी पासे पक्षी ने ते प्रेमला सलीनो खरे खरो सासरी पायजे. जो के ए वात कोश्क रीते असंलवित लागे . ॥ ए॥ परंतु सोलवरसे चंदराजानो हेवाल तमाराथी अमारा जाणवामां श्राव्यो अने श्रा पक्षी चंदराजाना घरनो जे एवं प्रेमला सलीना जाणवामां आववाथी ते तेणीने बहुज वहालो लागे ने.॥ १० ॥ श्रापोजो अमने तुमे हो लाल, तो होये तनुजा प्रसन्न ॥ म ॥ पाड तमारो मानशुं हो लाल, बो तुमे पुरुष रतन्न ॥ म० ॥ क० ॥ ११॥ एह वात घणी जली हो लाल, श्रापो जो थर रलियात ॥ म०॥ तु मथी को जोरो नथी हो लाल, लाख वाते एक वात ॥ मकार॥ अर्थ ॥ जो ते पक्षी तमे श्रमने आपो तो आ मारी पुत्री बहुज खुशी पाय. तेथी अमे तमारो मोटो उपकार मानशुं. तमे पण पुरुष रत्ननगे. ॥ ११॥ तमे जो खुशी अश्ने ए पक्षी अमने आपो तो अमारे तो बहुज सारूं थाय. कांई अमारूं तमारी उपर जोर नश्री. लाख वातनो सार कहीए बीए के आपो तो कृपा. ॥ १२ ॥ निसुणी नट नृपने कदे लाल, ए श्रम कुर्कटराय ॥ म ॥ ए तन मन धन श्रमतणो हो लाल, में ए केम देवाय ॥ म॥ का ॥ १३॥ कहोतो पंखीने जई विनवू हो लाल, पंखीजो राजी होय ॥ म ॥ तो तमने श्रापुं प्रनु हो लाल, अजर करूं नही कोय ॥ म०॥क० ॥१४॥ अर्थ ॥ राजानी वात सांजली नटराये कयुके हे महाराज! ए कुकडो अमारो राजा जे. सारांश के ते अमारूं तन मन अने धन ने तेथी माराथी एने केम आपी शकाय? ॥१३॥ परंतु आप साझा करो तो पक्षीने जश्ने विनंति करूं अने ते जो श्राववाने राजी होय तो हे महाराज! सुखेथी आपने आ. हुं पोते कांपण आग्रह करीश नही. ॥ १४ ॥ नट श्राव्यो कुर्कटकने हो लाल, कह्यो सवि नूप विचार ॥ म० ॥ ह रख्यो पंखी सांजलीहो लाल, वुव्यो अमी जलधार ॥म ॥क० ॥१५॥ ए पुर ए नृप ए त्रिया हो लाल, एह चतुर नर नार ॥ म० ॥ पुण्य संयोगे पामीए हो लाल, मेलो एहवो संसार ॥ म ॥ क० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ पनी नटराय कुर्कटरायनीपासे आव्यो, अने राजाए कहेलो सर्व वृत्तांत तेने कह्यो. ते सांजली कुकडो बहज हर्षपाम्यो. तेनी अांखमांथी हर्षामतनी धारा था.॥१५॥श्रा नगर, श्रा राजा अने श्रा स्त्री, तेमज नगरनां चतुर स्त्री पुरुषो, ए सर्वे जोतां जो पुण्यनो संयोग होय तोज संसारमा श्रावो मेलाप थवानो संलव . ॥ १६ ॥ आपे जो नट मुज जणी हो लाल, तो होवे रंग रसाल ॥ म ॥ मो हने चोथा उसासनी हो लाल, वर्णवी बीजी ढाल ॥ म ॥ क० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ जो श्रा नटराय मने प्रेमला सब्बीने सोंपे तो बहुज रंगरसियामाणां पाय, चोथा उल्लासनेविषे बीजी ढाख मोहनविजयजीए कही.॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्शन चतुर्थ उदास. ॥ दोहा॥ तव शिवपुत्री विनवे, कुर्कट चल चित्त देख ॥मुजथी निरमोही थया, स्वामी केण विशेष ॥१॥ चाकरीए चूकी नही, राख्या करीने प्राण ॥ खामी न कर को दिशा, जावे जाण मजाण ॥२॥ अर्थ ॥ कुकडानुं चित्त चलायमान श्रतुं जोइने शिवमाला तेने विनंति करवा लागी के हे नाथ! एवं शुं विशेष अयुं के आपे अमारा उपरथी राग तजी दीधो ? ॥१॥ हे नाथ! हुं चाकरी करवामां चूकी नथी एटझुंज नहीं पण मारा प्राण करीने राख्या . वली जाणे के अजाणे कोइपण बाबतमां खामीपडवा दीधी नथी. ॥२॥ बोगाला तुम कारणे, मुहव्या घणा नरेश ॥ हुं माथे ले फरी, पिंजर देश विदेश ॥३॥ एक घमीनी प्रीतमी, पाले उत्तम लोक ॥ वरस नवनो नेहलो, क्षणमा नकरो फोक ॥४॥ अर्थ ॥ हे बोगाला ! आपने माटे में घणा नरपतियोने पण उहव्या बे. वली आपने मारा मस्तक उपर धारण करी देश परदेश हुँ फरेली बु. ॥ ३॥ जे उत्तम प्राणी होय ते तो एक घडीलर प्रीति थइ होय तेनो पण निर्वाह करे ये तो तमारी अने अमारी तो नव वर्षनी प्रीतिले. तेने एक दाणमां केम तोडी नांखोगे ॥४॥ रे पंखी कहे तुम तणे, वीरमतीनी पास ॥ मांगी लोधा नणी, केम हवे करो निरास ॥५॥ सुध देखामीने प्रथम, कां दे खाडो डांग ॥ मारी उलगनो तमे, कयारे वालशो खांग ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ हे पक्षीराज! आपनाज कहेवाश्री वीरमतीनी पासेथी आपने मांगी लीधातो हवे मने आप केम निराश करोगे? ॥ ५॥ प्रथम आपे अमने दुध देखाडयुं अने हवे अमने डांग बतावोगे, तो बीजें तो काईनही परंतु मारी आपना परत्वेनी सेवानो बदलो आ दासीने क्यारे श्रापशो ॥६॥ केणे तमने जोलव्या, थया जेह निसनेह । पेहेलो पोतानी करी, यो बो का हवे बेह ॥ ७॥ अर्थ ॥ आपने कोणे नोलवी दीधा के जेयी अमारा उपर आवा स्नेह रहित थ गया. प्रथमतो पोतानीबो एम कर्दा अने हवे जुदारो शामाटे करोगे. ॥७॥ ॥ ढाल ३ जी॥ ॥ करेलणां घमीदे रे ॥ देशी ॥ बोल्यो कुर्कट राजोयो रे, नटवधू निसुणो वाताए सौजन्य गुण ताहरा, सांजरशे दिनरात ॥ विबुध जननी प्रीतडी रे, खटके खिण खिण चित्त ॥ दिसे जगरी तडी रे, एदमा निश्चल चित्त ॥१॥ मे तुज एक घमी तणो, उशिंगण न थवाय॥श्रावी लिखाणा जे हीये, ते केम विसर्या जाय॥वि॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. श्ए अर्थ ॥ पनी कुर्कटराय बोटयोके हे शिवमाला मारीवात ध्यानमा ह्यो. तमारा सौजन्यता आदिजे गुणोडे ते तो मने रात दिवस सांना करशे. जे डाह्या मनुष्यनी प्रीतिने ते तो क्षणे क्षणे अंतरमा खटक्या करे . मारूं मन तो निश्चलज ने. वली जगत्नी रीतिपण एवीज बे. ॥१॥ तारी एक घडीनी चाकरीनो पण माराथी नपगार नुलाय तेम नथी. जे मारा अंत:करणमां कोतरायेल ते ते केवी रीते तुला जवाशे. ॥२॥ कही देखाडे किस्युं, कीधाजे उपगार ॥ ते हुं शुं नथी जाणतो, करीये बियेशेर थाहार ॥ वि० ॥३॥ नेह नवल नव वरसनो, त्यजतां दोहिलो होय ॥ पण कोश्ना हैमा तणी, समजे नहीं गति कोय ॥ वि० ॥४॥ अर्थ ॥ तें जे उपगारो कर्याने ते शुं जोइने मने कही बतावेने. तुं एम जाणे के हुँ ए कांइ जाणतो नथी. शेर थाहार करतो होय ते सहु कोइ जाणे ॥३॥ तारो नववरसनो मीगे स्नेह गेडतां घणुंज मुःख लागे, परंतु बीजाना अंतःकरणनी वातने अन्य बीजो को केवी रीते जाणी शके ? ॥ ५॥ संग सलूणो ताहरो, मूके ते मतिहीण ॥ काज विशेषे बांडता, नवि उहवा प्रवीण ॥ वि०॥ ५॥ एह नगरना रायनी, पुत्री गुणवंत ॥ नटकन्ये हुं ऐहनो, कहुँ तुजने ढुं कंत ॥ वि० ॥६॥ अर्थ ॥ तमारी सोबत बहुज उत्तम ने अने जे मूर्ख होय तेज तेने गेडीदे. परंतु काई काम पवाथी ते गेमवो पडे. तेथी हे चतुरा! तुं मुःख धरीश नहीं ॥ ५॥ परंतु हवे तने कहुं बुं के आ नगरना राजानी जे कन्या ने ते बहुज गुणवंत . हे शिवमाला! हुं तेनोज पतिवं. ॥६॥ बातीपण फाटी पमे, कहेतां धूरथीवात ॥ ए माटे पंखी कयों, मुजने जेह विमात ॥ वि० ॥७॥ प्रजु तदारुं करजो नहुँ, मुजने बोगाव्यो जेह ॥ श्राण्यो हां विमलापुरी, मेलो कीधो एह ॥ वि० ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ ते संबंधी प्रथमथी वात कहेतां तो मारी गतीपण चिरा जाय तेम . आज कारणथी वीरमतीए मने पक्षी बनाव्यो .॥७॥ तारूं पण प्रनु कल्याण करजो के तें मने तेणीना कबजामांथी गेडावी अहीं विमलपुरी श्राण्यो अने आ मेलाप कराव्यो ॥ ७॥ ललचाणुं मन मादरूं, यहां रेदेवानुं तेण ॥ तुं राजी होयतो रहुं, तुज मुज वचन विसेण ॥ वि० ॥ ए॥ जो नही सोंपे एहने, तो माहरो श्यो जोर ॥ बकरी कान धणीवसु, तुजथी न थालं कठोर॥ वि०॥१०॥ अर्थ ॥ तेज करणथी अहीं रेहेवाने माटे मारूं मन ललचायुं बे. परंतु एटली सरत ने के तुं जो राजी होतो हुँ रहुं. मारा अने तारा विचारमा जिन्नता अवी नजोइए अर्थात् तारूं वचन मारे प्रमाण ॥ ए॥ वली जो तुं मने तेणीने सोंपीश नहीं तो तेमां मारूं जोरनथी. दृष्टांतके बकरीनो कान धणीने आधीन. हुँ ताराथी कदापि कगेर अवानो नथी.॥१०॥ For Personal and Private Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० चतुर्थ उल्लास. सुणी वचन पंखी तणां, थइ नटवी दिलगीर ॥ बूट्यो बेहुं नयां थकी, दुःख निसुणीने नीर ॥ वि० ॥ ११ ॥ कहे बाला कर जोडीने, रे खाजा धरणी ॥ आज ए जाणी वातडी, दवे तुम चिंत्युं करीश ॥ वि० ॥ १२ ॥ ॥ पक्षीनां वचनो सांजली शिवमाला दिलगीर थइ गइ काने तेना दुःखनी वात सांजलतां तेना बने नेत्रोमाथी सुनी धार चाली ॥ ११ ॥ शिवमाला बेहाथ जोडी कहेवा लागी के हे श्राजा नगरीना स्वामि ! जे तमारी या वात जाणी तेथी तमे जे मने कहेशो ते हुं करीश. ॥ १२ ॥ जली थइ मुज चाकरी, लेखे श्रावी श्राज ॥ परणी धरणीथी मल्या, राज्य करो महाराज || वि० ॥ १३ ॥ एहवे पुत्री आहे, पंखी ग्रहण निमित्त ॥ नटपासे श्राव्यो वही, भूपति प्रसन्न चित्त ॥ वि० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हे महाराज ! आज सुधी आपनी जे श्रमे चाकरी करी ते जे लेखे श्रावी. कारण के प आपनी परणेली स्त्रीने महया. हवे आप सुखेश्री राजभोग जोगवो ॥ १३ ॥ एवा अवसरमां पुत्रीना आग्रहथी मकरध्वज राजा ते पक्षीने लेवाने माटे शिवकुमर नटनी पासे आव्यो. राजा चित्तमां बहुज प्रसन्न हतो. ॥ १४ ॥ दीधो आदर शिव नटे, मकरध्वजने अनंत ॥ जाख्यो भूपे तेहने . निज पुत्री विरतंत ॥ वि० ॥ १५ ॥ आपो जो ए कुकडो, थाउं मेरू समान ॥ जाणीश मुज पुत्री जणी, दीधुं जीवित दान ॥ वि० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ शिवकुमर नटे मकरध्वज राजाने बहुज चादर सत्कार कर्यो, एटले राजाए तेने पोतानी पुत्री सर्व वृत्तांत कही जलाग्यो ॥ १५ ॥ जो तमे मने या कुकमाने श्रापद्यो तो हुं मेरूपर्वत समान थइ जाउं, वली एम पण जाणीशके तमे मारी पुत्रीने जीवित दान श्राप्यं ॥ १६ ॥ मानीश पाम तुमारको, जिहां लगी तारकमाल ॥ मोहने चोथा उल्लासनी, जाखी ए त्रीजी ढाल ॥वि० ॥ १७ ॥ ॥ वली ज्यां सुधी या तारा मंडल ने त्यां सुधी हुं तमारो उपकार मानीश. मोदन विजयजी महाराजे चोथा उल्लासनी त्रीजी ढाल कही ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ शिवनट नृपने विनवे, नगणो एह विहंग ॥ श्रम मन खजानो धणी, एह ने प्रगट अजंग ॥ १ ॥ देतां मन वेदेतुं नथी, तुमने नान कहा ॥ हां वाघ तेम उहां नदी, तेह बन्यो बे न्याय ॥ २ ॥ अर्थ ॥ हवे शिवकुमर नट कहे बे के दे राजन् ! या पक्षीने तमे पक्षी जाएशो नही. अमारा मनमां तो खात्री के तेजानगरीनो स्वामिज बे ॥ १ ॥ ते पक्षीने श्रपतां परंतु आपने ना कहेवाती नथी. अमारे तो एक बाजु ए वाघ ने बीजी खलो बन्यो बे ॥ २ ॥ मारूं मन कबुल करतुं नथी. बाजुए जरपूर नदी एवो दा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २३१ शिवमाला नृपने कहे, ए माटे बहु देश ॥ किधा वैरी साहिवा, करीने कोमी कलेश ॥ ३ ॥ पण में पुत्री तुम तणी, करी सखी दित आण ॥ तेथी देतां एहने, न करूं ताणा ताण ॥४॥ अर्थ ॥ वली शिवमालाए राजाने कह्यु के ए पक्षीने माटेज अमे अनेक देशना राजाउंनी साथे खडाइ उकरी वेर बांध्या में ॥३॥ परंतु तमारी पुत्रीनी साथे मारे हेत अवाश्री में तेने मारी बेहेनपणी करी ने तेथी तमारी पुत्रीने आपतां मने कां खेंचताण नथी. ॥४॥ खेश जाउ पुर धणी, थार्ड कोड कल्याण ॥ रूडे यतने राखजो, ए थाना महिराण ॥५॥ जाणी विहंग मनूलशो,अहो मोटा अवनीश ॥ तुम पुत्रीनी एहथी, थाये सयल जगीश ॥६॥ अर्थ ॥ हे राजाजी ! आप सुखेथी तेने लइ जा. तेनाथी कोड कट्याण प्रगट अजो. तमे तेने यतना पूर्वक राखजो. ए श्राजापुरीना महाराजा ने ॥ ५॥ हे महाराजाधिराज ! ते पक्षी ने एम जाणी जुलावो खाशो नही. तमारी पुत्रीनी सर्वे आशा एनाथी फलीभूत थशे. ॥६॥ ग्रही सपिंजर कूकडो, श्राव्यो नृप निज धाम ॥ __ हाथो हाथ सुता जणी, जश् समर्यो ताम ॥७॥ अर्थ ॥ पांजरा सहित कुकडाने लश्ने राजा पोताने मेहेल श्राव्यो भने प्रेमला खजीने हाथो हाथ तेणे सोप्यो. ॥७॥ ॥ ढाल ४ थी॥ ॥ बेडो नांजी ए देशी ॥ ॥धण रंग राति हारे एम कुर्कटने समजावे श्रति मद माती॥ नृप पुत्रीए पंजर हुंती, लेश कुर्कट कर धरी ॥ नांख्युं एम मुज सोले वरसे, तुं हीज मल्यो सासरी ॥१॥ सुण पंखी तुंज नगरी केरो,नूपति मुज वाल मि ॥ पण में झुमक रतन दृष्टांते, हाथे श्राव्यो गमि ॥ ध० ॥२॥ अर्थ ॥ प्रेमला लडीए पांजरामांथी कुकडाने लश् हाथ उपर धारण करी तेने कह्यु के श्राज सोल वरषे मारा सासरी आमांथी कोई जो मने मट्युं होय तो तुंज मट्यो जे. रंगमा रसिली अने मदमां मातेली कुर्कटने ए प्रमाणे समजावे ॥१॥ हे पदी ! तारा नगरनो राजा ते मारो स्वामिनाथ जे. परंतु निखारीना हाथमा श्रावेलु रतन जेम रहे नहीं तेम में तेने गुमाव्यो .॥२॥ तेदने विरहे तनथी बाहिर, निकलीयुं पांसली ॥ तोही पण मुज अवधि गणतां, हजीअलगण नवि मलि ॥ धम् ॥३॥ गयो विबगेहो देश मुजने, पानी खबर न लीधी ॥ रे पंखी में ताहरा नृपनी, एवमीशी चोरी कीधी ॥ ध०॥॥ अर्थ ॥ तेना वियोगथी मारा शरीरनी सर्वे पांसली शरीर बहार तरे. वली मुदत वीत्या उतां पण हजी सुधी ते श्रावीने मने मट्यो नथी॥ ३ ॥ मने बेह दश्ने जे चाट्यो गयो ते पानी प्रत्यार सुधी मारी खबर पण तेणे सीधी नही. हे पक्षी ! में ते तारा राजानी एवडी मोटीशी चोरी कीधी हशे? ॥ For Personal and Private Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ चतुर्थ उल्लास. परणीने कुष्टी जणी सोंपी, एशी इजात खाटी ॥ महारो जनम कीयो अकीया रथ,केणे ए शिखवी पाटी ॥ध ॥ ५॥ जो घर जार वेहेवा कायर, का कर्यो कर मेलावो ॥ परणतां वेंतज केम मुज उपर, श्राव्यो चित्त अनावो ॥ ध॥६॥ अर्थ ॥ मारी साथे लग्न करीने कोढीआने मने सोंपी. एमांते एणे आवरू शु वधारी? मात्र मारो जन्मारो अकृतार्थ कर्यो. श्रावी शिक्षा ते कोणे तेने आपी दशे! ॥ ५ ॥ जो घर संसार चलाववाने कायर हतो तो मारी साधे हस्त मेलाप शामाटे कर्यो ? वली परणीने तरतज मारी उपर चित्तनो श्र. नावो केम कर्यो ? ॥६॥ रे पंखीमें पियुडा सरखो,नवि निरख्यो निरमोही॥कागलनुं पण मलवु टाव्युं, जे दिन हुँती विडोही ॥ध ॥७॥ किहां आना किहां नगरी माहारी, मनडुं पण नवि पहोंचे ॥ कंते कीg ते न करे वैरी, उंडे नवि बालोचे ॥ ध० ॥ ॥ अर्थ ॥ हे पक्षी! में मारा नाथ समान को निर्मोही दोगे नही. जे दिवसभी तेणे मारो त्याग कर्यो ते दिवसभी कागलथी मलवानुं पण टली गयु ने ॥ ॥क्यां आनापुरी अने क्यां मारी विमलापुरी? मन पण दोडीने पहोंची शके नहीं. वधारे शुं कहूं? स्वामिए कर्यु ते वेरीपण न करे. जरा पण जंडो विचार कर्यो नही. ॥ ॥ वालेसर श्हां आवी न शके, में पण तिहां न जवाय ॥ एम निरधारी नाह विहणी, मुजने केम दिन जाय ॥धणानही जगमां को प्रजुनो वाहालो, जश्ने तस समजावे ॥ हृदय कगेरस्यां एवा नरना, करुणा किमपि न थावे ॥१०॥ अर्थ ॥ मारो वहालो अहीं आवी शके नही अने माराथी त्यां जवाय नही. आवी रीते आधार विनानी, नाथ वगरनीना मारा दिवसो केम जाय ? ॥ ए॥ कोइ पण प्रनुनो वाहालो जगत्मां दशे के जश्ने मारा नाथने समजावे. एवा पुरुषना हृदय ते केवां कगेर हशे के तेने करुणा कोइ पण रीतेश्रावती नश्री १० सोले वरसे मन नविलीनु, ने तेहवोने तेहवो ॥ सोले सान संजाले सहको, पण ए कठिन ले केहवो ॥ध ॥ ११॥ एहने माटे माहरे ताते, मुजने घणी चय चामी ॥ पण एकांत तणी वातडीयुं, एके नावी आमी ॥ ध०॥ १५ ॥ अर्थ ॥ सोल वरस श्रया बतां तेनुं मन जरा पण पलट्युं नश्री. ते जेवो ने तेवोज जे. लोकोमा केहेवत बे के सोले वरसे सहु कोश्ने सान आवे परंतु आतो कोइ जुदी रीतनो कवण ३ ॥ ११ ॥ एने माटे मारा पिताए मने बहु बहु रीते कष्ट आप्यु. परंतु मारी अने तेनीवचे एकांतमा जे वातो अश् हती ते मारा बचावमां कांइ पण काम आवी नही.॥ १५॥ करतां नेह जगत्मां सोहिलो,पण दोहिडं निरवहिवं ॥जे निसनेहीथी बांधवू मनहुँ, ते फोगट फुःख सहिदुं ॥ध॥१३॥ तुं पंखी तेहना घरनो, तिणे मुज तनुं रोमांच्युं ॥ पोतानो जाणी तुज बागल, पियुनु पोथु वांच्युं ॥ ध० ॥१४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २३३ अर्थ ॥ जगत्मा स्नेह करवो ते सेहेलो डे परंतु तेने ननाववो ते मुस्केल ले. वली स्नेह विनानानी साथे मनने वलगाडq ते मिथ्या मुःख सहन करवा जेवू ॥ १३ ॥ हे पदी तुं एना घरनो होवाथीज मारूं शरीर रोमांच अयु. तने पोतानो जाणीने तारी आगल मारा स्वामिनाथनो वृत्तांत कह्यो. ॥ १५ ॥ तुज दी मारा कुःख नागं,तुज दी पियु दीगे ॥ तारा राजा सरखो रखे जो,तुं पण थातो धीगे ॥ ध० ॥१५॥ कुर्कट एम पोतानी कीर्ति, निसुणे सामुं निहाली ॥ पण खेचर माटे ते पाडो, नशके उत्तर वाली ॥ध ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ तने देखवाश्रीज मारा दुःख नाश पाम्यां. वली तने देखीने हुँ एम जाणुं बं के में मारा स्वामिनाथने दीग; परंतु एटलुं कहुं बुं के तुं पण तारा राजानी जेम मने विश्वासघाती तो नही ॥१५॥ श्रा प्रमाणे कुकडो पोताना गुणानुवाद सांजलतो तेना सन्मुखज जोइ रह्यो . परंतु पोते पदी होवाथी एक पण उत्तर तेणीने सामो आपी शकतो नथी. ॥ १६॥ दंपती मांहो मांहे मलीयां, फली मनोरथ माला ॥ चोथी ढाल चोथे उहासे, कही मोहने सुविशाला ॥ध ॥ १७ ॥ - अर्थ ॥ श्रा प्रमाणे बंने वर बहु अरस परस मट्यां. तेमनी मनोरथ माला फली जूत अश्. कवि मोहन विजयजी ए चोथा उवासने विषे चोथी ढाल अति विशाल पणे कही. ॥१७॥ ॥दोहा॥ तव शिवमाला एहवे,श्रावी प्रेमला पास ले रमामयो कुकडो, बांट्यो घणो सुवास ॥१॥ मेवा मुक्या श्रागले, किधी नक्ति पंगुर ॥ गाइ वा रीव्यो , पंखीने ससनुर ॥२॥ अर्थ ॥ एवा अवसरमां शिवमाला प्रेमला लचीनी पासे आवी. तेणीए कुकडाने हाथमां लश् रमाड्यो, अने तेनी आसपास सुगंधी पदार्थोनो बंटकाव कर्यो ॥ १॥ वली पक्षीनी आगल नव नवा मेवा मुकवा पूर्वक प्रशंसवा योग्य तेनी लक्ति करी. पनी गायन गाइ वाजिंत्रो वगाडी पहीने आनंद पूर्वक रीऊव्यो. नट पुत्री कहे प्रेमला, निसुणो माहरी वात ॥ चार मास लगी राखजो, तुमे ए पंखी जात ॥ ३ ॥ जेणे दिन अमे चालशु, श्हांथी नट समवेत ॥ ते दिन लेश्श कुकमो, ए मुज तुज संकेत ॥४॥ अर्थ ॥ त्यार बाद शिवमालाए प्रेमला लक्षीने कडं के मारी विनंति ए के हवे चार मास सुधी आपे आ पहीने पोतानी पासे राखवो ॥ ३॥ पनी जे दिवसे अमे सर्वे नटो अहींाथी प्रयाण करीए ते दिवसे श्रा कुकको आपनी पासेथी लश्जशं. श्रावो करार मारी अने तमारी वच्चे के. ॥४॥ तिहां लगी सुपरे राखजो,नयणां श्रागल एह ॥ नित प्रते देश शुद्धि हुँ, श्रावी एणे गेह ॥५॥ चिहुं मासे तुम तणी, एह जो पूरे होश ॥ तो तुम श्रम जगमो नही, कहुँ करी एहना सूंस ॥६॥ For Personal and Private Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ चतुर्थ उल्लास. अर्थ ॥ तेथी चार मास सुधी आप पोतानी नजर पासेज तेने रूडी रीते राखजो. ९ पण निरंतर श्रा घेरज आवी तेनी खबर लेती रहीश ॥ ५॥ जो चार मासनी अवधिमां तमारो मनोरथ एनाथी परिपूर्ण श्राय तो एनाज सोगंद खाइने कहुं के पली श्रमारी अने तमारी वचे कां वांधो पडवानो नथी. ॥६॥ ग शिवमाला एम कही, निज थानक पुर मांहि ॥ कुर्कट कर धरी प्रेमला, करे बहिनी बांहि ॥७॥ अर्थ ॥ ए प्रमाणे वातचित करी शिवमाला पोताने स्थानके गइ. अहीं प्रेमला खली कुकडाने हायमां खर बन गया हायनी कर्या करे .॥७॥ ॥ ढाल ५ मी॥ ॥ जटीयाणीनी ॥ देशी॥ कुर्कटना मुख सामुं हो नित नित जुए प्रेमला, से उमा निश्वास ॥ यांसुडा नयणाथी हो वरसावे प्रेम प्रकाशथी,करी करी विरह विखास ॥ कु॥१॥ कामण गारा प्यारा हो हवे न्यारा मुजथी कां रहो, निपट अटारा होय ॥ सारीसर अनुकारा हो जलधारा वरसे अंबरे,पियु विण वारे कोय । अर्थ ॥ हवे प्रेमला लगी निरंतर कुकडाना मोढानी सामु जोइ जोइने ठंडा निसासा मुके . वली प्रेमनो प्रकाश करती तेमज वियोगना मुखने गाती थकी आंखमांथी श्रांसुनो वरसाद वरसावे . ॥१॥ हे मारा वहाला कामणगारा हवे माराथी न्यारा शामाटे रहो गे? तमे खरेखरा हनीला थाउंगे. काम देवना बाणनी जेवी आकाशमांथी मेघ जलनी धारा वरसी रही ने तेनाथी अतां विरहना मुखने नाथ विना कोण टाली शके तेम .॥२॥ उत्तरवाली कालीहो, असराली नालीने घटा, हृदय विफाली थाय ॥ चपला ए ऊबकारा हो करवाला कमला पुत्रनी, विरहणीये न सहाय ॥ कु० ॥३॥ जेम जेम जलधर गाजे हो, तेम पियुमो लाजे का नही,परिहरी प्रमदा पूर ॥ शण टाणे जो विराजे हो मुजने तो निवाजे साहिबो,श्ण शतु नही पंगुर॥कु॥४॥ अर्थ ॥ उत्तर दिशामांत्री आवती अत्यंत काली एवी मेघनी घटाने देखीने मारू अंतःकरण फाटी जाय जे. वली कमला पुत्रनी तलवार जेवी ऊबकारा मारती विजलीने देखीने श्रा विरहिणीने न सहन थाय एवी व्यथा श्राय ॥३॥ जेम जेम था वरसाद गर्जना करे ने तेम तेम पोतानी प्रमदाने तजीने दूर गयेलो एवो मारो स्वामिनाथ शुं शरमातो नहीं होय ? श्रा समये जो मारो नाथ अहीं बिराजतो होय तो मने अनेक रीते तृप्त करी दे. तेथी तेना विना मने था ऋतु सुंदर लागती नथी. ॥४॥ ए जील्ली थर निही हो तनु वही चूटे पियु विना, निरखी एकली गेह ॥ ते माटे पंखीमाहो तजी बीमा पीमा वारी ए, करी क्रीमा नव नेह ॥कु॥॥ शिवमाला जे बाला हो इहां वचन रसालां कही गर, सह्यां में पंखी तेद ॥ श्राव्या बो हवे हाथे हो मुज साथे न करो श्रांतरो, माथे वरसे मेह ॥६॥ For Personal and Private Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २३५ अर्थ ॥ श्रा तमारा तो जाणे मने घरमा एकली देखीने अर्थात् स्वामि विनानी देखीने लिखडीउनी जेम मारी शरीररूप वेलने चुंटीज खेले. ते कारणथी हे पक्षीराज ! शरम बोडीने स्नेह युक्त क्रीमा करीने मारी व्यथाने दर करो ॥५॥ शिवमाया नटनी कंवरीजे अहीं श्रजीष्ट वचनो कही । नटनी कुंवरी जे अहीं अजीष्ट वचनो कहीने गइ ते सर्वे हे पक्षीराज ! में मारा मनमां धारण करी राख्यां . तेथी हवे हाथमां आव्या गे तो मारी साथे अांतरोशुं काम राखो गे? जुट तो खरा मारा माथा उपर जे मुःखनो वरसाद पडे ने ते. ॥६॥ एम कुर्कट नित निसुणे हो न जणावे एके श्रांकडो,एवडो वमो गंजीर ॥नावी उपर थाणी हो एम जाणी ताणी धीरता, धन्य चंद वमवीर ॥ कु० ॥ ७॥ खिणमे पियु करी जाणे हो खिण मांहे जाणे कूकडो, पासे राखे तास ॥ पुण्य तणे संजोगे हो मन नाव्यो थाव्यो एहवे, उत्तम श्रासो मास ॥ कु० ॥७॥ अर्थ ॥श्रा प्रमाणे निरंतर प्रेमला सलीनां वचनो कुकडो सांजले मे, परंतु एक पण अदर तेना उत्तरमां लखी जणावतो नथी, एवो महागंजीर थयो . पोते नवितव्यता उपर दृष्टि राखी धीरज राखीने रह्यो . धन्य ने शुरवीर चंद राजाने ॥ ७॥णमां तेने पोतानो स्वामिनाथ गणे , वली वेहेम आवे ने तो क्षणमां कुकडो मानी खे तो पण पोतानी पासेज राखे जे. एम करतां पुण्यना संयोगे मनने गमतो एवो उत्तम आश्विन मास बेठो.॥॥ विमला चल फरसेवाहो अति चपला हुश् प्रेमला, संग सखी परिवार ॥श्रण चिंत्यो तिहां श्राव्यो हो परदेशी एक निमित्ति, कवि कुल शिर शिणगार ॥ कु प्रणमी पदकज तेहना हो एम प्रेमला लबी विनवे,अहो पंडित कहो मुज॥ वीउडी मुज वाहालो हो श्हां किण दिन श्रावी मले,राजी करीश हुँतुज॥कु०॥१०॥ अर्थ ॥ एवामां श्री विमलाचल तीर्थाधिराजने फरसवाने माटे सखीउना परिवार सहवर्तमान प्रेमला लजी उद्यक्त थइ. ते समये उचिंतो, एक परदेशी निमित्ती कविकुखना शृंगार रूप त्यां आवी पहोंच्यो ॥ए॥ ते निमित्तीयाना चरण कमलने नमस्कार करी प्रेमला खजी तेने पुरवा लागीके हे पंडितजी मार स्वामिनाथ जे मने गेडीने चाल्यो गयो ने ते अहींया क्ये दिवसे मने श्रावीने मलशे. ए वातनो खुलास खरेखरो करशो तो हूं आपने राजी करीश. ॥१०॥ जोशीमो मन होंशे हो स्वरधारी जोश्ने कहे, सुण पुत्री सुविलास ॥ श्राज तथा के काले हो तुज थानापतिजो मले, तो कहेजे साबाश ॥ कु० ॥ ११ ॥ हुँ पण ए तुज कहेवा हो अण तेड्यो श्राव्यो ढुं श्हां नाणीश को संदेह ॥ हुँ तुज कारण ज्योतिष हो करणाटे जणवाने गयो, श्राव्यो ढुंथाजेज गेह।कु॥२॥ अर्थ ॥ जोशीए होंश पूर्वक स्वर साधीने प्रेमला खजीने कडं हे सुखमां विखास करनारी बेहेन ! तारो पति जे आजानगरीनो राजा ने ते जो बाजे अथवा काले तने श्रावीने मले तो मने साबाशी आपजे. ॥ ११ ॥ ९ पण अहींआ तारो तेडाव्या विनानो तने आ हकीकत कहेवाने माटेज श्राव्योवं तेथी मारा कडेवामां जरापण शंकाधारण करीश नहीं. तारेज माटे ज्योतिष विद्या जणवा सारू हुं कर्णाटक देश गयो हतो ते नणीने आजेज घेर श्राव्यो बु.॥१२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ चतुर्थ उवास. में जे निमित्त प्रकास्युं हो तेह खोटुं कहीए नही होये, करमुज व चन प्रमाण ॥ स्वछी प्रेमला लबी हो, निसुणीने हरखी चित्तमां, दीधुं दान विहाण ॥ कु० ॥ १३ ॥ नैमित्तिकने विस? हो अनुमति लेश तातनी, पिंजर कीधुं संग ॥ थोडीशी सहीनथीहो पुंडरगिरि उपर चढी, प्रेमला परम उमंग ॥ कु० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ में जे जोश जोइने तने वचन कह्यांने ते रतिमात्र पण असत्य अवानां नथी. मारां वचनने प्रमाण करजे. पनी प्रेमलालजी स्वेवा पूर्वक वर्तती ते निमित्तीयानां वचनो सांजली मनमां बहुज हर्षपामी अने जोशीने तेणे सारीरीते दणा आपी.॥ १३ ॥ पळी निमित्तीयाने विदाय करीने अने पोताना पितानी आझालश्ने पांजरूं पोताना हाथमां लीg; अने थोडी सखीउनी साथे पुंडरगिरि उपर प्रेमला लब्बी अत्यंत उमंगजर युगादिनाथनी सेवा करवामाटे चढी. ॥ १४ ॥ कर उपर लश् धरी हो पिंजरथी काढी कूकमो, नृप पुत्री म तिमंत ॥ जेम जेम गिरिवर निरखे हो मन हरखे तेम तेम पंखीयो, लेखे दिवस गणंत ॥ कु० ॥ १५ ॥ देहरो शिवपद शेहरो हो निरखी प्रेमला, नेट्या देव युगादि ॥ सारी अष्ट प्रकारी हो जिन पूजा ल बीए करी, वारी सयल विषाद ॥ कु० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ पांजरामांथी पदीने काढीने बुद्धिशाली एवी प्रेमला लबीए पोताना हाथ उपर धारण कर्यो. पक्षीराज जेम जेम गिरिराजने निरखे ने तेम तेम पोताना मनमां बहुज हर्ष पामेळे अने आजनोज दिवस मारे तो लेखे थयो एम माने . ॥ १५॥ मोक्षपदना शिखर समान देरासरने जोतांज प्रेमला लली अतिहर्षवंत श्रश्. तेणीए श्री युगादि देवना दर्शन कर्या. वली सर्व मनना संताप दूर करीने श्री जिनराजनी अष्ट प्रकारी पूजा बहुज नाव पूर्वक करी. ॥ १६ ॥ दीरडं दरिशण मीठडं हो पंखीमे प्रथम जिणंदनु, सफल कयों अवतार ॥ पांचमी ढाल प्रकाशीहो ए मोहने चोथा उबासनी, पुण्य सदा सुखकार॥कुण॥१७॥ अर्थ ॥ वली पदीए पण प्रथम जिनेनुं अत्यंत मी एवं दर्शन करीने पोतानो अवतार सफल को. आ प्रमाणे चोथा उल्लासनी पांचमी ढाल कही. कवि मोहन विजयजी कहे जे के पुण्यज सदा सुखने करनार . ॥१७॥ ॥दोहा॥ सेवी मरूदेवी सुतर्नु, वीरस्नुषा बहुलाव ॥ आवी देहरा बाहिरे, कर 'धरी पंखी राव ॥१॥प्रति जिन मंदिरमा जश, नेट्यां बिंब अपार ॥ नक्ति युगति निज शक्ति वश, कर्यो सफल अवतार ॥२॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २३७ अर्थ ॥ मरु देवीना पुत्र श्री झपनजिणंदनी सेवा बहु लावपूर्वक कर्या पनी वीरसेन राजा पुत्रनी स्त्री प्रेमसा लगी हाथ उपर पदीराजने धारण करी देरासरनी बहार आवी. ॥ १॥ तेणीए दरेक जिन मंदिरमां जश् अनेक जिनराजनां बिंबोना दर्शन को. पोतानी शक्ति मुजब विधि पूर्वक नक्ति करी पोतानो अवतार सफल को. ॥२॥ श्रावी जिहां राजादनो, लबी तजी खल खंच ॥ पड्युं पत्र लेश कुकडे, शोजावी निज चंच ॥३॥ एम सकल विधि साचव्यो, श्रावी जिन गृह हार ॥ सूर्यकुंड जोवा नणी, पहोति नारी ते वार ॥४॥ अर्थ ॥ पठी प्रेमला तब्बी पोताना मनमां लेशमात्र खलखंच विनानी ऐवी ज्यां रायणर्नु फाडने त्यां श्रावी ते स्थले कुकमाए नीचे पोलु पांदडं पोतानी चांचमां लश्ने पोतानी चांचने शोजावी. ॥ ३ ॥ एम एम सर्व विधि विधान करीने जिनराजना मंदिरना घार पासे श्रावी. पनी सूर्यकुंड जोवानेमाटे तत्काल ते तरफ प्रेमला लबी चाली.॥४॥ दीगे कुंड सोहामणो, कमल कोश सोहंत ॥ जाणुं स्वर्गशिरि नणी, काठी दंत हसंत ॥ ५॥ पूरण निर्मल जल नयु, जंडत्तणथी जंग ॥ सदा जयों ए जाणीए, समता रसनो कुंम ॥६॥ अर्थ ॥ तरतज अति मनोहर एवोकुंड दीगे. तेमां कमलना दांडा अत्यंत शोना युक्त हता. ते जाणे स्वर्गनी लक्ष्मी तरफ दांत काढीने हसता होय एम दिसता हता. ॥ ५॥ ते कुंड समुश्री पण जंडो एवो संपूर्ण निर्मल जलथी नरेखो हतो. जाणे सादात् समता रसनोज कुंम होयनी एवो देखतो हतो.॥६॥ तस उपकंठे प्रेमला, रही निहाले नीर ॥ निसुणो नविश्हां पंखी, कहेवो थयो वडवीर ॥७॥ ___ अर्थ ॥ तेना कांठग उपर उन्जेली प्रेमला लबी ते कुंडनुं निर्मल जल जुलं जे. एवामां हे नव्यजीवो! तमे सांजलो के ते पदी राज केवो वडवीर श्रयो ? ॥ ७ ॥ ढाल ६ ही. ॥ नमरानी देशी॥ ॥ महारारे ना कीरका, गुण मानो लाल ॥ कली काची मत तोम, अतिगुणमानो लाल ॥ ए देशी ॥ कुर्कट देखी कुंमने मन मान्युं लाल, चिंते चित्त मजार अति मन मान्युं लाल ॥ सोल वरस वही गया, ॥ म० ॥ किहां स्त्री किहां घरबार, ॥ अ० ॥१॥ किहां लगी रहीश हुँ पंखीयो, ॥ म० ॥ धिर धिग् ए अवतार ॥ अ॥ माता पण वेरण थक्ष, ॥ म ॥ सही संसार असार ॥ अ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० चतुर्थ उल्लास. श्र ॥ सूर्यकुंडने देखतां कुकडो बहुज खुशी थयो. ते पोताना मनमां विचारखा लाग्यो के वी स्थितिमां मारा सोलवर्ष तो वीती गया. क्यां मारी स्त्री ने क्यां मारा घरबारबे ? ॥ १ ॥ हुं हवे क्यां सुधी पक्षीरूपे रहीश ? मारा या अवतारने धिक्कार होजो. वली मारी माता पण जारी संपूर्ण दुस्मन थइ. खरखर हवे मने संसार बहुज सार विमानो लागे बे. ॥ २ ॥ ले नट मुजने फर्या, ॥ म० ॥ पुर पुर देश विदेश ॥ अन श्राव्यो कर्मनो, ॥ म० ॥ पार किशो लवलेश ॥ फीटी नर थयो कुकको, ॥ म० ॥ श्रावकर जोवण दार ॥ दवे मनुष्यपणा तणी, ॥ म० ॥ धरवी होंश लगार ॥ श्र० ॥ ४ ॥ ० ॥ शी ॥ नाटकीया मने साथे लइने देशो देश ने शेहेरे शेहेर फर्या, तो पण दजु मारां कर्मनो लेशमात्र पारव्यो नही. ॥ ३ ॥ हुं मनुष्य फीटीने निरंतर उकरमाने खोलनारो कुकडो थयो. हवे मारे मनुष्य वानी लगारपण होंश शीरीते धारण करवी ॥ ४ ॥ प्रमदाकने पंखी थके, ॥ म० ॥ निशि वासर केम जाय देखी फोगट फुरवुं ॥ म० ॥ चिंत्युं किमपि न थाय ॥ एलें यौवन निर्गम्युं ॥ म० ॥ शो दवे दोशे उघाम ॥ काने दैवने ॥ ० ॥ कोइक पूरो चाड ॥ ० ॥ ६॥ ॥ वली मारी पलीनी पासे पक्षीरूपे रही दिवस ने रात्रि हवे केवी रीते जशे. माटे हवेतो फोकट कुरापो करवानो बे. कारके धारेलुं कांइ यतुं नथी. ॥ ५ ॥ मारी युवावस्था तो सर्व एले गइ. हवे वातनोपश्यो निवेडो वशे तेनी खबर पडती नथी. मने लागे बे के मारो कोइ पूरो चाहियो दैवना कानमां मारे माटे जंभेर्या करे. ॥ ६॥ जोतां कोइनुं लागतुं नथी. ॥ ८ ॥ ताग ॥ जो कोई न थयो श्रापणो ॥ म० ॥ केहना राग विराग स्वारथनुं सगु, ॥ म० ॥ श्रहो जवजलधि आलोची एम कुकडे, ॥ म० ॥ कुंडमां ऊंपादीध ॥ विलखी कहे, ॥ म० ॥ जुंगा ए शुं कीध ॥ ० ॥ १० ॥ ० ॥ दजी ० ॥ ३॥ ० ॥ जोतां जीव्युं ए श्या कामनुं ॥ म० ॥ खोटीए गर्दन श्राश ॥ श्र० ॥ जो कंपा जरूं कुरुमां ॥ म० ॥ तो बूटे दुःख पास ॥ श्र० ॥ ७ ॥ के हनी वधू केहनी पुरी ॥ म० ॥ केदथी माया मोह ॥ कोइ कोइ नहीं, ॥ म० ॥ केदना योग विछोह ॥ ० ॥ अर्थ || हवे वीरीते जीववुं ते पण शुं कामनुं बे ? हवे मनुष्य श्रवानी आशा ते गर्दन श्राशा समा. खरीवाततो एबे के कुंरुमां ऊंपापातकरूं तो मारा दुःखनुं बंधन त्रुटे ॥ ७ ॥ श्र स्त्री कोनी ? श्री नगरी कोनी ? वली कोनी साथे मायाके मोह राखवो ? तेमज कोनो संबंध ने कोनो वियोग ? खरूं ८ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ॥ ॥ ० ॥ ० ॥ ५ ॥ लाग्यो ० ॥ श्र० ॥ सहुं ० ॥ ए ॥ ० ॥ देखी नारी Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २३ || ज्यारे कोण मारूं ययुं नही त्यारे मारे कोनी साथे रागके वैराग धारण करवो. मने तो सर्वे स्वार्थयुक्त सगपण संबंध लागेढे. अहो ! या संसार समुद्र ताग न पामी शकाय तेवोबे ॥ ए ॥ एवो विचाकरीने कुकडा कुंडमां ऊंपापात कर्यो. ते देखतांज प्रेमला लम्बी जांखी पकी गई छाने बोली के हे तें शुं क ? ॥ १० ॥ श्र० ॥ कर्यु ० ११ ॥ मं ० ॥ तुज १२ ॥ ढुं शिवमालाने किस्यो, ॥ म० ॥ जश्ने देश जवाब ॥ विचार्य पंखीये ॥ म० ॥ थोडादिनने मेलाप ॥ दिर जइने निज तातने, ॥ म० ॥ वदन देखाडी केम ॥ गति ते गति महारी ॥ म० ॥ प्रेम परीक्षा एम ॥ ० ॥ ॥ वे हुं जईने शिवमालाने तारे माटे शुं जवाब दइश. अहो ! श्र पक्षीये थोड़ा दिबसनोज मेलाप करी घणुं विचार्य कर्यु. ॥ ११ ॥ वली घेर जइने मारा पिताने पण शुं जोड़ने हुं मोतुं देखामीश. तेथी हवे जे तारी गति तेज मारी गति समजुं बुं. वे समयेज प्रेमनी परीक्षा थायबे ॥ १२ ॥ न करी वात ऊंपा जरी ॥ म० ॥ लबीए पण ताम ॥ ० ॥ पकड्यो पडतो कुकको ॥ म० ॥ श्रइ इ मोह रूप यावा तणो ॥ म० ॥ माये बांध्यो करतां मोकी ॥ ० ॥ तूट्यो दोरो तेह ॥ विराम ॥ अर्थ || प्रेमला लीए पण तत्काल कांइ पण वार नही लगाडतां तेनी पुंवेज कुंडमां पतुं मुक्युं ने कुकडाने पडतो पकडी लीधो. अहो हो ! मोहनो विलास चमत्कारिक बे ॥ १३ ॥ चंद राजाने पक्षी बनाववा माटे तेनी विमाताए जे दोरो मोके बांध्यो हतो ते दोरो, कुंरुमां परुतुं मुकतां ऊपा ऊपीमां त्रुटी गयो ॥ १४ ॥ प्रगट्यो ण चिंत्यो तिहां ॥ म० ॥ चंद नरिंद सरूप ॥ सन सुरिये ऊर्जा, ॥ म० ॥ राणी तेम वली नूप ॥ या कुंथी वाहिरे, ॥ म० लीए उलख्यो कंत ॥ जली आशा फली ॥ म० ॥ दंपती दरख अनंत ॥ अर्थ ॥ तेज वखते त्यां कुंडमां उचिंतो चंद राजा, राजाने स्वरूपे प्रगट थयो. शासन देवीए ते राजा ॥ ० ॥ १६ ॥ राणी बनेने कुंडनी बहार काढ्यां ॥ १५ ॥ जेवा कुंडथी बहारथी आव्यां के तरतज प्रेमला लम्बीए पोताना पतिने लखी काढ्यो. ते दंपतीनी सर्वे श्राशा फली भूत थइ. अने जेनुं वर्णन न करी शकाय वो हर्ष त्यां प्रगट थयो. ॥ १६ ॥ मनुजपणुं चंदे लघुं ॥ म० ॥ पसरी मंगल माल ॥ चोथा उल्लासनी ॥ म० ॥ पजणी मोहने ढाल ॥ जेह ॥ ० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ॥ ० ॥ १३ ॥ पंखी ० ॥ लब जब १४ ॥ ० ॥ ० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ चंद राजा मनुष्य पणुं प्राप्त कर्यु. जेथी अत्यंत सुखनी श्रेणि प्रगट या चोथा उल्लासने विषे मोहन विजयजी ए बी ढाल कही. ॥ १७ ॥ ० शा० ॥ १५ ॥ ० ॥ सफल Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० चतुर्थ उल्लास. ॥ दोहा॥ तीर्थ निवासी देव गण, हुँता समकित दृष्टि ॥ तेणे चंदनी उपरे, करी कुसुमनी वृष्टि ॥ १॥ वुठी चंदननी बटा, हरख्या सुर तिरियंच ॥ तिहुश्रण कबोले चढ्यो, तीर्थ प्रत्नाव उदंत ॥२॥ अर्थ ॥ तीर्थना निवास करनारा सर्वे देवता समकितदृष्टि हता. तेमणे चंद राजानी उपर पुष्पनी वृष्टि करी ॥१॥ चंदराजानी उपर बावना चंदनना रसनो देवताए बंटकाव कर्यो जेनी सुगंधीथी सर्व देवता तथा तिर्यंचो जे हाजर हता ते हर्ष पाम्या. त्रण नुवनने विषे तीर्थाधिराजनो महिमा श्रतिशय वृद्धि पाम्यो. ॥ २॥ धन धन सुरज कुंड जल, कलिमल मल हरणार ॥ दीधो चंद जणी करी, मानवनो अवतार ॥३॥ प्रीतमने कहे प्रेमला,करी धुंघट पट लाज ॥ महाराज गिरि राजश्री, सिध्यां सघला काज ॥४॥ अर्थ ॥ आ पंचम काल-कलियुग मध्येना पापी जीवोना मेलने नाश करनार एवा सूर्य कुंडना जलने अतिशय धन्य वाद घटे ने के जेना प्रजावथी चंद राजाने फरीने मनुष्यनो अवतार प्राप्त अयो॥३॥ त्यार पनी प्रेमला लब्बी धुंघटमां रही मर्यादा पूर्वक चंद राजाने कहेता हवां के हे महाराज आपणा सर्व मनोरथो गिरिराजना पसायथी सिद्ध थया.॥४॥ स्नान करी ए कुंडमां, पूजो षन जिणंद ॥ सिंचो नक्ति रसे करी, समकित तरूनो कंद ॥५॥ स्नान करीने चंद नृप,पेहेरी उज्ज्वल धोत ॥ श्राव्यो श्रादि जिनालये, जिहां रतन उद्योत ॥ ६॥ अर्थ ॥ आ सूर्य कुंडमां प्रथम स्नान करी, देवाधिदेव श्री झपन्न परमात्मानी आप पूजा करो अने ते प्रमाणे परमात्मानी नक्ति करवा रूप रसर्नु सिंचन, सम्यग् दर्शन रूप वृदना मूलमां करो ॥५॥ त्यार पनी चंद राजा सूर्य कुंडना जलथी स्नान करी निर्मल श्वेत वस्त्रो धारण करी ज्यां रत्नोनी कांति प्रकाश करी रही बे एवां श्री आदिनाथना मंदिरमां आव्यो. ॥ ६॥ दंपतीये पूजा रची, अव्य तणी बहू नेद ॥ प्रारंन्ने हवे नावनी, पूजा विरमी खेद ॥ ७॥ अथ ॥ अनंतर बने स्त्री नगरे श्री जिनराजनी अनेक प्रकारथी अव्य पूजा करी. तदनंतर परिश्रमने शांत करी जाव पूजानो नीचे मुजब प्रारंन करता हवा. ॥ ७ ॥ ॥ ढाल ७ मी॥ ॥ वण जारारे ॥ ए देशी ॥ जीनरायारे जय तिहुंअण प्रतिपाल, शांति सुधामय चंदलो ॥ जीनरायारे नवि जन आशा विश्राम, तुं सुरतरु प्रगट्यो जलो ॥ जी० ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वर चंदराजानो रास. ॥ जी० ॥ तुज पद पंकज लीन, सकल पुरंदर मधुकरा ॥ जी० ॥ ॥ जी० ॥ तुज गुण अनंता अनंत, आणा जगत् सचराचरा ॥ जी० ॥२॥ अर्थ ॥ हे जिनराज ! तुं त्रण नुवननो पालनार बो, अमृतमय शांतिने प्रसरावनार चंमा बगे, वली हे जिनराज ! जव्य जनोनी आशाउने फलीचूत करावनार कटप वृक्ष समान तुंज साक्षात् प्रगट थयो गे॥१॥ हे जिनराज ! सर्वे इंस्रो तमारां चरण कमलने विषे चमरनी जेम लीन श्रया जे. वली हे नाथ ! आपना अनंतश्री पण अनंत गुणो के. वली आपनी आझाने स्थावर अने जंगम बंने स्वरूप वालुं जगत् अखंड रीते अंगीकार करे . ॥२॥ ॥ जी० ॥ तुज अनिधान कुलीश, नेदे कर्म महीधरा ॥ जी० ॥ ॥जी० ॥ तुं अनुजव रस सिंधु, देव अवर बिबर सरा ॥जी॥३॥ ॥जी॥ तुं केवल जग चतु, खजुश्रा धाता हरि हरा ॥जी॥ ॥जी॥ तुज गुण न लख्या जाय, जो मिशी कीजे सागरा ॥ जी०॥४॥ अर्थ ॥ हे जिनराज ! आपनां नाम रूप वज्र कर्म रूपी पृथ्वीने विदारण करी नांखे बे. वली हे प्रनु! तुं आत्माना अनुजव रसनो महासागर को अने हरि हरादि अन्य देवो निगरां खाबोचीयां जेवा ॥३॥ हे जिनराज! तारूं केवल ज्ञान ते त्रण जगत्ना चक्कु रूप सूर्यथी पण अधिक जे. जेनी पासे ब्रह्मा, विष्णु अने शंकर ते आगीया कीडा समान बे. वली हे नाथ ! जो समुजना पाणीने शाही रूप करीए तो पण तेटली रूशनाश्थी पण तमारा गुण लखीशकाय नही अर्थात् आपना गुण पार न पामी शकाय तेटला . ॥४॥ ॥ जी० ॥ तुं पंचानन रूप, वासी शिव गिरि कंदरा ॥ जी० ॥ ॥ जी० ॥ रहे तारे दरबार, थ अच्युताग्रज किंकरा ॥जी॥५॥ ॥जी० ॥ तुं प्रजु गंध गजेंड, अन्य सुरासुर सिंधुरा ॥ जी० ॥ (पागंतर ) अन्यते मुंडने सुकरा ॥जी॥ ॥ जी० ॥ श्रादि गरूड तुज जाण, त्रासे कर्मना विषधरा ॥ जी० ॥ ६॥ अर्थ ॥ हे जिनराज ! मोक्ष रूप पर्वतनी गुफाने विषे तुं केशरी सिंह समान नगे. वली तारी हजुरमां अच्युत दे व लोकना इंजआदि लश्ने सर्वे इंसो किंकर रूपे ॥५॥ हे जिनराज ! तुं गंध हस्ति समान परमेश्वर गे अने बीजा देव दानवो मात्र हस्ति समान ने (पागंतरे ) बीजा: भंड अने सूअर समान . वली हे प्रनु ! तुं रूप गरूडनी पासे कर्मरूप सर्पो त्रास पामी आवी शकता नथी. ॥६॥ ॥जी० ॥ तुजने प्रणमे स्वामी, न नमे उजे कंधरा ॥ जी० ॥ ॥जी॥ तजी तुज सुरतरू बहि,सेवे कोण को जंखरा ॥जी० ॥॥जी॥ उपशमे जव दव ताप,तुज आराधन जलधरा ॥जी॥ ॥जी॥ तुं रोहणाचल श्रृंग, सर्व सहा तुं वसुंधरा ॥ जी० ॥७॥ अर्थ ॥ हे जिनराज ! तमारा चरणमां जे नमस्कार करे ने ते बीजानी पासे पोतानी डोक नमाववाने २१ For Personal and Private Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ चतुर्थ उल्हास. श्वताज नथी. वली हे प्रनु ! तुं रूप कटप वृदनी गंयाने तजीने एवो कोण मूर्ख ले के जे कांखरानी गंयाने सेवे ॥ ७ ॥ हे जिनराज ! तारी सेवना रूप वरसादथी श्रा संसार रूप दावानलनो ताप शांत थाय जे. हे नाथ ! तुं रोहणगिरिना शिखर समान गे अर्थात् सर्व गुण रूप रत्नोनी खाण बे. वली सर्व उपसर्ग परिसह सहन करवाने पृथ्वी समान बगे. ॥ ॥जी॥ तुं श्रष्टापद एक (पागंतरे) तुं जग श्रेष्टा एक, ताहरी शक्ति अपरंपरा ॥ जी० ॥ नवोजव ताहरी जक्ति,मुजे देजो जिनेसरा ॥ जी० ॥ए॥जी॥ इत्यादिक स्तुति कीध, चंदे मन शुद्धे तिहां ॥जी॥ ॥जी॥ फरी फरी चिंते नरिंद, किहां गिरिवर वली हुँ किहां ॥जी॥१०॥ __ अर्थ ॥ हे जिनराज ! कर्मरूप सिंहने पण नाश करवाने अष्टापद समान गो. (पागंतर ) तुं जगत्ने विषे एकज सर्वथी श्रेष्ठ गे. तारी शक्ति पार न पामी शकाय तेवी बे. हे नाथ ! मारी मात्र एक विनंति ने के तारी नक्ति मने जवो जवने विषे होजो ॥ ए॥ ए प्रमाणे शुद्ध मनथी चंदराजाए प्रनुनी स्तुति करी. वली चंद राजा वारंवार मनमां विचार्या करे ने के क्या हुँ पामर अने क्यां आ गिरिराज. ॥१०॥ ॥ जी० ॥ श्राव्यो देहरा बहार, चारण कषि तिहां वांदिया ॥जी॥ ॥जी॥ निसुणी ललित उपदेश,राजा राणी श्राणं दिया ।। जी॥११॥ ॥जी॥ शैल प्रदक्षिणा दीध, शिव वरवा फेरा फिर्यो ॥ जी० ॥ ॥जी॥ नूपे लेखे कीध, जे मानवपणुं अणुसर्यो ॥ जी ॥१॥ अर्थ ॥ पनी दंपती देरासरनी बहार श्राव्यां एटले चारण मुनिराजनां दर्शन श्रतां तेमने बनेए वांद्या. ते चारण मुनिनो मनोहर उपदेश सांजली राजा अने राणी हर्ष पाम्यां ॥११॥ अनंतर गिरिराजनी प्रदक्षिणा दीधी ते जाणे शिव वहुने वरवा फेरा फरता होयनी एवी रीते राजाए मनुष्य जवफरी प्राप्त करी पोतानो अवतार सफल को. ॥ १॥ ॥जी॥ दीधी दासीए दोमि, मकरध्वजने वधामणी ॥ जी० ॥ ॥जी॥ विहंग मटी थया चंद, कुंम प्रजावे श्राफणी ॥ जी० ॥ १३॥ ॥ जी० ॥ विमल पुरीनो श्श, हरख्यो असंनव संजवी ॥ जी॥ ॥जी॥ दासी पामी दान, जाणीए थर कमला नवी ॥जी॥ १४॥ ___ अर्थ ॥ एवा अवसरमां दासीए दोडीने मकरध्वज राजाने वधामणी श्रापीके सूर्य कुंडना प्रजावधी पोतानीज मेले पदी ते पदीपणुं मटाडी चंदराजा थया ने ॥ १३ ॥ विमलापुरीनो महाराजा था असंजवित वातने संजवित जाणीने घणुंज हर्ष पाम्यो. तेणे दासीने बहुज दान आप्यु जेथी दासी ते साक्षात् लक्ष्मी समान अश् गइ. ॥१४॥ ॥जी॥ विस्तरी पुरमा वात, रंज्या नरनारी सहु ॥ जी० ॥ ॥जी॥ घर घर वेहेचे लोक, धाश्वधार बहु बहु ॥ जी० ॥१५॥ ॥जी॥ चंद जणी नरनारी, जोवाने उत्सुक थया ॥जी॥ ॥जी॥ प्रगट्या नव नव रंग, जब प्रजुजीनी थक्ष दयां ॥ जी ॥१६॥ For Personal and Private Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २४३ अर्थ ॥ कुकडो ते चंदराजा श्रयो या वात नगरमां फेलातांज सर्व स्त्री पुरुषोनां मन बहुज खुशी श्रयां. घेरेघेर लोको दोडी दोडीने वधामणी श्रापतां साकर प्रमुख वेहेंचतां हतां ॥१५॥ नगरना लोको चंदराजाने जोवाने बहुज उत्सुक अया. अनेक रीते श्रानंदोत्सव प्रनुनी कृपानो वरसाद वरसतां अश् रह्यो. ॥जी॥ मोहने चोथे उल्लास, ढाल कही ए सातमी ॥जी॥ ॥ जी० ॥ आगल चंदनी वात, निसुणो नविक सुधासमी ॥ जी० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ कवि मोहनविजयजीए चोथा उदासने विषे सातमी ढाल कही. वली आगल उपर अमृत समान चंदनी कथा ने ते हे जव्य जीवो! सांजलो. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ मकरध्वज महीयल पति, तेमहीज प्रेमला मात ॥ निसुणी हरख्यां चित्तमां, प्रगट्यो जे जामात ॥१॥ तेमाव्या मंत्री सकल, कडं सकल विरतंत ॥ सहु कदंब कुसुम परे, थया सहर्ष अनंत ॥२॥ अर्थ ॥ सोरठनो पति मकरध्वज राजा तथा तेनी पटराणी प्रेमलानी माता पोतानो जमाइ प्रगट श्रत चित्तमा अत्यंत हर्ष पाम्यां ॥१॥ सर्वे मंत्रीउने बोलावी सर्व वृत्तांत कह्यो. ते सांजली कदंब वृदनां पुष्पनी जेम सर्वे प्रफुलित थयां अर्थात् बहुज हर्ष पाम्यां.॥॥ शिव नटवरने नरवरे, तेडाव्यो अति देत ॥ विहंग मीटी थयो चद नृप, पूरव पुण्य संकेत ॥३॥थयो हर्ष मुज प्रमुखने, ते सवि तुज उपगार ॥ तुंज दूती सघले श्रमे, लहेणुं होशे निरधार ॥४॥ अर्थ ॥ तदनंतर राजाए शिव कुमर नटने बहुज हेतथी तेमावी, पूर्व पुण्यना पसायथी पक्षी मीटीने राजा चंद श्रया ए सर्व वृत्तांत कह्यो ॥ ३ ॥ हुं विगेरेने जे हर्ष थयो ते सर्वे तमारोज नपगार जे. तमारी परत्वे अमारे सर्वेने निश्चयथी लेणुं बे.॥४॥ तेडाव्या श्राव्या तरत, चंद तणा सामंत ॥ उन्नत स्वामिनी सुणी, रोम कुप उलसंत ॥ ५॥ शणगारी विमलापुरी, पट कुले बहु रंग ॥ फुली नावमा तणी, संध्या जाणे अनंग ॥६॥ अर्थ ॥ चंद राजाना सामंतोने बोलाववाथी ते पण तरत पोताना स्वामिनो अच्युदय सांजली तेनी रोमराजी विकस्वर थतां आव्या ॥५॥ विमलापुरी नगरीने अनेक रंगी वस्त्रोनां तोरण प्रमुखथी शणगारी. जेथी नादरवा मासनी संध्याना रंगनी जेवो सुशोजित देखाव श्रश् रह्यो.॥६॥ मकरध्वज गिरिवर चढ्यो, लश् बहु परिवार ॥ आनंदे नृप चंदी, मल्या सह परिवार ॥७॥ अर्थ ॥ मकरध्वज राजा पोताना मोटा परिवारने साथे लइ गिरिराज उपर चढ्यो. त्यांजर आनंद पूर्वक सर्वे परिवार चंद राजानी साथे लेटतो हवो.॥७॥ For Personal and Private Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ उल्लास ॥ ढाल मी ॥ ॥ खंजाती सोहलनी ॥ ए देशी ॥ मकरध्वज महीपाल, चंद संगाथे हो श्रीजिन नेटीयाजी ॥ कीधी जति शेष, जव जव केरांहो पातिक पातिक नीठीयाजीं ॥ १ ॥ प्रेमला प्रणमी पाय, मात पिताने हो विनये विनवेजी ॥ जे में परण्यो कंत, ते तुम पुण्ये हो एह पामी हवेजी ॥ २ ॥ ॥ मकरध्वज राजा, चंद राजानी साथे श्री जिनराजने नेटता हवा. तदनंतर परमात्मानी सर्व प्रकारनी नक्ति करी तेर्जए अनेक नवोनां पापनो नाश कर्यो ॥ १ ॥ प्रेमला लम्बी पोतानां मातपिताने प्रणाम करी विनयपूर्वक कहेवा लागी के श्रापना पुण्यना पसायथी मारा स्वामिनाथने में मेलव्या. ॥ २ ॥ ए श्राजा अवनीश, वीर नृपतिनो हो अंगज गुण निलोजी ॥ रवि कुंड जलने प्रभाव, कुंर्कट मिटीने हो थयो छावनीतिलोजी ॥ ३॥ जोवोए तुम जामात, नयणा निहाली हो सुपरे लखोजी ॥ सरिखा सरखो संसार, पण नही कोई हो एहना सारिखोजी ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ तेन॑ आजा नगरीना राजा बे ने वीरसेन राजाना गुणवंत पुत्र बे. सूर्य कुंडना जलना प्रनाव कुकडा मटीने पृथ्वीना तिलक समान पुरुष थया बे || ३ || आ आपना जमाइराजने नेत्रोथी निहालीने जुने उत्तम रीते तेनी उलखाण करो. संसारमां सरखे सरखा अनेक बे परंतु एमना सरखो तो कोइ प जगत्मां नथी. ॥ ४ ॥ २४४ प्रजुए मुज जगमांहि, शशिनी कलाथी दो कीधी उजलीजी ॥ ए सेव्ये गिरिराज, मादारी एहनी हो आश सवि फलीजी ॥ ५ ॥ पुत्री वचन श्रवधार, विस्मय पामो हो सोरठनो धणीजी ॥ नयण सलुणे सेहेज, जरी जरी जोवे दो श्रजापति जीजी ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ जगत्मा परमात्माना पसायथी चंद्रमानी कलाथी पण मने तो उज्ज्वलता प्राप्त थइ. वली गिरिराजनी सेवाथी तो मारी सर्वे शार्ट फलीभूत थइ ॥ ए ॥ पुत्रीनां वचन मनमां ध्यानमां लेतां मकरध्वज राजा घणोज आश्चर्य पाम्यो. वली पोताना प्रेम नरेलां नेत्रोथी वारंवार प्रजापति चंद राजने निरखवा लाग्यो. ॥ ६ ॥ दरखेशुं मोतीए वधावि, ससरो जमाइ हो आत्म प्रदेश, जाणीए सघलाई मांहोमांहि ता सामंत, लली लली लाग्या हो चरणे परीक्षा कीध, सही तुमे स्वामि दो एम पंखी मिसेजी ॥ ८ ॥ अर्थ ॥ चंद राजाने हर्षथी मोतीए वधावीने, सासरो ने जमाइरस परस श्रालिंगन देवा पूर्वक नेय्या, ते वखते बनेना सर्व आत्म प्रदेशी जाणे एक बीजानी साथे एकत्र थइ गया होय तेम जास्युं ॥ ७ ॥ लिंगी मव्याजी ॥ बेहुना मव्याजी ॥ ७ ॥ चंद बहु दिसे ॥ कड़े श्रम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ते पनी चंद राजाना सामंतो अत्यंत प्रेम पूर्वक पोताना राजाना चरणमां नमवा लाग्या अने कह्यु के हे नाथ ! तमे पक्षी रूपे अश् अमारी खरे खरी परीक्षा करी.॥॥ नट कुल प्रणमी पाय, चंद नरिंदनी दो कीरति उच्चरीजी ॥ वा प रमानंद, दश दिशे वातो हो खिणेकमे विस्तरी जी ॥ ए॥ वाजते मं गल तूर, गिरिवरहुंती हो बेहुं नृप उतर्या जी ॥ प्रथमदो कल्पना इंज, निज परिवारे हो जाणीए परवर्या जी ॥१०॥ अर्थ ॥ नटनो समुदायपण चंदराजाने प्रणाम करी तेनी कीर्ति फेलावता हवा. श्रा बनावथी परम आनंद वरती रह्यो अने दशे दिशामां आ सर्व वात दाणवारमा फेलाई गइ. ॥ ए॥ मंगल वाजिंत्रो वागतां अकां गिरिराज उपरथी बने राजा नीचे उता. ते जाणे पेहेला बे देवलोकनां इंञो पोत पोताना परिवारे परवरेला उतर्या होयनी एम लागतुं हतुं. ॥१०॥ नावे क्रमता शैल, प्रजु गुण स्तवता हो श्राव्या तलहटी जी ॥ गज थारूढ्यो चंद, हय गय रथनी हो हुश्श्रानेटीजी॥१९॥ हयवर चढ्यो विमलेश, रथ थारूढी हो लबी प्रेमला जी ॥ नर नारीना वृंद, श्रा गल हुवा हो थाता स्नेहला जी ॥१५॥ अर्थ ॥ अतिशुन्न अध्यवसाये पर्वतथी उतरतां, प्रनुना गुणनी स्तवना करता तलेटीए आव्या. चंदराजा हस्तिनपर आरूढ अया. ते वखते हाथी, घोडा श्रने रथनी बहुज जीड हती. ॥ ११॥ एक सुंदर घोडाउपर मकरध्वज राजा आरूढ अयो. प्रेमला लबी रथमां बेठी. ते वखते स्त्री पुरुषोना टोले टोला बहुज स्नेह नरेलां अंतःकरणथी आगल पाउल जोतां चालतां हतां ॥१५॥ गुहिरा घुरे रे निसाण, एकत्व हुश्रा ही हरखें नजो मही जी॥प वने पताका अनंत, स्वेद कणवारे हो जन नारही रही जी ॥ १३ ॥ वाजे ताल कंसाल, पग पग आवे हो रंगवधामणा जी ॥ गुडी युं चढी आकाश, जाणीए नाचे हो वृंद थपलर तणाजी ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ डंका निशान गंजीर नादथी वागता होवाथी आकाशश्री ते पृथ्वी सुधी हर्ष बवाइ रह्यो, श्र र्थात् आकाश पृथ्वी एक रूप श्रयां. वली ध्वजा अनेक होवाथी अने पवनथी फडफडाट करती जन समुदायना परशेवाना टीपाने सुकवती हती. ॥ १३ ॥ मृदंग अने कडतालादि वागते वरघोमो चाट्यो. पगले पगले वधामणी हर्षजर श्रावती हती. नटीयो आकाशमां ऊंचे नाचती हती ते जाणे अप्सराना वृंद नाचता होय तेवी लागती हती. ॥१४॥ नेरी मुंगल जणकार, तेणे दिक्कन्या हो लहे बधिरत्वता जी ॥ गिरि कंदरा सर्वत्र, अगणित पामीहो शुचि मुखरत्वता जी ॥ १५ ॥ बेहुँ शिर सोहे बत्र, चामर जोमी हो दीपे उजली जी ॥ श्णे उलवे पुरमांहि, कीधो पेसारो हो हरखे गल गली जी ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ चतुर्थ उल्लास. __ अर्थ ॥ नेरी अने चुंगलना अवाजश्री जाणे दिशि कुमारिका बेहेरी श्रश् गइ अने पर्वतनी गुफा सर्वे, वाजिंत्रोना नादी पवित्र श्रइ गइ एम लाग्यु. ॥ १५ ॥ बनेना शिर उपर बत्र शोजतुं हतुं अने उज्ज्वल चांमरो बने बाजुए बनेने वींकातां हतां. आवी रीतना उंचव सहित बने जणाए हर्षथी गल गला अतां नगरमा प्रवेश कर्यो ॥ १६॥ मकरध्वज नृपचंद, निजगृह श्राव्या हो मनडे गह गही जी॥ श्रामी ढाल रसाल, चोथे उहासे हो मोहन विजये कही जी ॥१७॥ अर्थ ॥ मकरध्वजराजा अने चंदराजा मनमां हर्षश्री गह गहता पोताना मेहेले आव्या. एवी रीते चोथा उवासमा रसाल आठमी ढाल मोहनविजयजीए कही. ॥ १७॥ ॥ दोहा ॥ अर्थी सवि संतोषिया, देश दान अनंत ॥ अर्थिणीए नवि उल ख्या, निज घर श्राव्या कंत ॥१॥ संतोष्यो शिवकुमरने, देधण कण कोम ॥ खिणमांहि एहवो कयों, नृप को नकरे होड ॥२॥ अर्थ ॥ दानना लेनाराऊने अनेक रीतना दान आपी एवातो सर्वेने तृप्त कर्याके तेमनी स्त्री ज्यारे पोताना नाथ घेर श्राव्या त्यारे उलखी शकी नही. ॥१॥ वली शिवकुंवर नटने तो क्रोडोगमे धन धान्य एक कणवारमा आपी एवो बनाव्योके को राजापण तेनी साये रीधिमां होड करीशके नही. ॥२॥ चंदे निज सामंतने, अधिक वधारा दीध ॥ सेवकता मांदे थका, मित्र समाणा कीध ॥३॥ जेहने जे देवू घटे, दीधुं ते हने तेम ॥ दाता नर देतां थकां, पालु जोवे केम ॥४॥ अर्थ ॥ पनी चंदराजाए पोताना सामंतोने विशेष रीते आप्यु ते एटले सुधीके सेवकनी स्थितिमांथी फेरवीने मित्र समान बनावी दीधाः ॥ ३ ॥ जेठने जे जे प्रमाणे आपq उचित हतुं तेने ते ते प्रमाणे दान आप्यु. शुं दातार पुरुष दान देवाने तैयार या पळी आपतां पातुं वाली जुऐ? ॥४॥ पहोत्यां सहु निज निज गृहे, करता नवल टकोल ॥ चंद सुजश प्रगट्यो जगत, शशि ज्युं कलाथी सोल॥५॥कंचुकी पहेरे प्रेमला, पण नुजयुगन समाय॥हियमामांहि वध्यो हरख, चिहुं दिशि पसर्यो जाय॥६॥ अर्थ ॥ अनेक प्रकारना नवा नवा श्रानंदना कलोलथी उबलता सर्वे पोतपोताने घेरगया. चंदराजानो यश जगत्मां, चं सोल कलाथी जेम, तेम प्रगट अयो ॥ ५॥ अहींआ प्रेमला खबीए कांचली पेटेरवामांडी परत वर्षथी ते एटली फली ग के बने नजानमा कांचली श्रावीशकी नही. वलीपोताना अंतःकरणमांनो हर्ष एटलो तो वधीगयो के ते बहार निकली चारे दिशामा फेलाइ गयो ॥६॥ जल गत शफरी जेम करी, आंसुथी जगतात ॥ कहे सुताने हृदयमां, रही हुतीजे वात ॥७॥ अर्थ ॥ जलमां रेहेनारी मांगली जिंजाइ होय तेवी मकरध्वज राजानी आंखो आंसुथी जिंजातां, पोताना हृदयमां जे वात हती ते प्रेमला लन्चीने कहेवाने पोते तैयार थयो ॥ ७॥ For Personal and Private Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २४१ ॥ ढाल ए मी॥ ॥ गोकुल गामने गोंदरे ॥ ए देशी॥ प्रेमला लबी नणी कहे रे, एम मकरध्वज वसुधार ॥ गुणवंती रे ॥ महारा अवगुण तुं सुतारे, को नाणीश हृदय मोकार ॥ गुणाप्रे॥१॥ सोलवरस तुज उपरे रे, में तो न धर्यो मोह लिगार ॥ गु०॥ निपट श्र जाएयु में कयु रे, ए तो न लह्यो में जंमो विचार ॥ गु० ॥ प्रे॥२॥ अर्थ ॥ मकरध्वजराजाए कह्यु के हे बेटा! प्रेमला खजी तुं गुणवंतीगे तेथी मारा जे जे दोषो तारी परत्वे थयाने ते तारा हृदयमां कदापि संचारती नही. ॥१॥ सोलवर्ष सुधी तारी उपर में जरापण स्नेह धर्यो नही तेथी भने हवे ठंडो विचार करतां एम लागे के ते खरेखरी में जूल करी. ॥॥ . कही तुजने विषकन्यका रे, नित कुष्टी वचने एम ॥ गु०॥ न करत कडं जो मंत्रीत' रे, तो बुटत पातिक केम ॥ गु० ॥प्रे ॥३॥ तें मुजने घणुं ए कयु रे, जी चंद नृपति जरतार ॥ गु० ॥ तो पण हुं मानतो नहीं रे, अहो उर्जन वचन विकार ॥ गु० ॥प्रेण ॥४॥ अर्थ ॥ में तने ए कोढीआना कहेवाथी निरंतर विषकन्या कही. परंतु जे मंत्रीए कह्यं ते में न मान्युं होत तो ते मारां दुष्ट कृत्यनां पापथी हुँ केवीरीते बुटत.॥३॥तें तो मने घणीवार कयुं हतुं के चंदराजाने ते मारो स्वामिले; परंतु उर्जनोनां वचनोनो विकार मारा मनमां एटलो तो श्रयो हतो के ते तारीवात हुं मानतोज नहोतो. ॥४॥ तुजने परणी जे गयो रे, हवे उलख्यो रूडे एह ॥ गु० ॥ ए नर किहां किहां कोढीयो रे, पड्यो अंतर जलधर वेद ॥ गु० ॥प्रे० ॥५॥रे व तुज नाग्यनो रे, किणे पाम्यो न जाये पार ॥ गु० ॥ वीडमीया जे मेलो थयो रे, करीगणे सफल अवतार ॥ गु० ॥प्रे॥६॥ अर्थ ॥ तारी साथे जे लग्न करीने जतो रहेलो तेने हवे हूं रूडी रीते उलखी शक्योवं. क्यां ए पुरुष अने क्यां श्रा कोढी. बनेमां फरकतो वरसाद अने काकल जेटलो. ॥५॥ हे पुत्री! तारां नाग्यनो कोई पार पामीशके तेम नथी. लांबा वखतथी वियोगी श्रयेलानो जे फरी मेलाप थयो तेश्री तारो अवतार सफल भयो बे. ॥६॥ तुं हवे कोश तणुं कडं रे, मननाणीश कहुं९ एह ॥ गु० ॥ हुँ थयो काचो जे काननो रे, कयु निपट जाएयु तेह ॥ गु० ॥ ॥ ७॥ कहे पुत्री एम सांजली रे, श्हां तातजी नहीं तुम दोष ॥ गु०॥ कीधां कर्मन बुटीए रे, कुण थाणे कुणथी रोष ॥ गु० ॥प्रेण ॥ ॥ अर्थ ॥ हुँ तने कई के हवे तुं कोश्नां वचनो मनमां लावीश नही. हूं ज्यारे काचा काननो थयो त्यारेज में खरे खरी नूतकरी. ॥ ७॥ ते सांजली प्रेमलालबीए कहूं के हे पिताजी एमां तमारो कांश For Personal and Private Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ चतुर्थ उल्लास पण दोष नथी. जे कर्म कर्या होय तेनाथी कोइ रीते जोगव्याविना बुटातुं नथी. एवं जे जाणनार होय ते बीजानी उपर केम रोष करे. ॥ ८ ॥ एपि तुम पुये मल्यो रे, हुं तो गुणविदुषी कोण मात्र ॥ गु० ॥ तात कुतात होवे नही रे, सुत होवे पात्र कुपात्र ॥ गु० ॥ प्रे० ॥ एए ॥ जेणे दुर्जन जोलव्या रे, होजो तेहनुं पण कल्याण || गु० ॥ ते वि कहो केम माहरी रे, जगमांदे होवती जाए ॥ ० ॥ ० ॥ १० ॥ ॥ श्रापनां पुण्यना पसायथी ए मारा स्वामि महया. हुं तो गुणविनानी कांइपण हिसाबमां नथी. मावतर कुमावतर थतांज नथी. जो के पुत्र पुत्रीतो पात्र कुपात्र थाय बे ॥ ए ॥ जे दुर्जनोए तमने जोलव्या तेनुं पण कल्याण थजो कारणके जो तेम न ययुं होततो मारीपण जगत्मां श्रावी कीर्त्ति केम फेलात ? ॥ १० ॥ पण रखे दवे को कोइने रे, मुज हुंती न धरशो कुजाव | गु० ॥ पर खजो मुज पतिने वली रे, हजी इण कांठे बे नाव ॥ गु० ॥ प्रे० ॥ ११ ॥ मकरध्वज कहे व रे, ए जाखे घणुं शुं विशेष ॥ गु० ॥ ए नृप चंद पति ताहरो रे, नथी एहमांहि मीनने मेष ॥ गु० ॥ प्रे० ॥ १२ ॥ ॥ परंतु रखे हवे कोइना के हेवाथी मारा उपर जाव करशो नही. मारा पतिनीपण परीक्षा करजो. कारणके हजु आ कांठे नावळे त्यां सुधी सारूं बे. ॥ ११ ॥ मकरध्वज राजाए कह्युं के दे पुत्री ! हवे वधारे शुं कहे बे ? श्रा चंदराजा तारो पतिज बे तेमां जरापण मीन के मेष नथी. ॥ १२ ॥ विमलाथी जालगी रे, विचमांदे जे जे देश ॥ गु० ॥ श्राज थकी में तेनो रे, सही थाप्यो चंदनरेश ॥ गु० ॥ प्रे० ॥ १३ ॥ तुं जले कुलमां उपनी रे, थयो माहरो जे एह जामात ॥ गु० ॥ कविमुखे अथवा शा मां रे, घणी रहशे जुग जुग वात ॥ गु० ॥ प्रे० ॥ १४ ॥ ॥ विमलापुरीथते श्रनापुरी सुधीमां जे जे देशवे ते सर्व देशनो श्राजश्री चंदराजा घणीने एम में अंगीकार कर्यु बे ॥ १३॥ तुं मारा कुलमां उत्पन्न थई ते घणुंज उत्तम थयुं के तारे सीधे मारो ए जमाई थयो. कविना मुखमां अथवा शास्त्रमां श्रावात जुगे जुग विद्यमान रहेशे ॥ १४ ॥ दो उतारो चंदने रे, नृपे सुंदर गति जली करी रें, बहु वरसे मनने उछाहि ॥ ० ॥ पति प्रमदा मन रंगी रे, बहु विलसे नवल संयोग ॥ मंदिर मांहि ॥ गु० ॥ जोजन यु १५ ॥ Jain Educationa International १६ ॥ एक सुरनी परे रे, नर जवना माणे जोग ॥ गु० ॥ प्रे० ॥ अर्थ ॥ पती चंदराजाने मकरध्वज राजाए सुंदर मेहेलमां निवास करव्यो; ने घणे वरसे मनना - त्साहपूर्वक अनेक प्रकारनी जुगतिथी नवनवी रसवती वालां जोजन तैयार कराव्यां ॥ १५ ॥ बने स्त्री नवसंयोग या पी मनमां अत्यंत हर्ष पूर्वक सुखविलास जोगवेढे, ते जाणे दोगंडक देवनी जेम मनुष्य जवमां संसारना जोग जोगवे ॥ १६ ॥ ० ॥ गु० ॥ दोगं For Personal and Private Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २४ए चंद समो नवि को थयो रे, एहवो जूतल मांहि भूपाल ॥ गुण॥ नवमी ए चोथा उल्हासनी रे, कही मोहन विजये ढाल ॥ गु०॥प्रे० ॥१७॥ अर्थ ॥ चंदराजा सरखो श्रा पृथ्वीना तलमां बीजो कोश्पण राजा श्रयो नश्री. ए प्रमाणे चोथा उल्लासनी नवमीढाल कवि मोहनविजयजीए कही. ॥ १७ ॥ ॥ दोहा॥ एक दिन चंद नरिंदयी, करे गुह्य विमलेश ॥ कहोजी किण कीधो हतो, एम तुम कुक्कड वेश ॥१॥ केम तुमे इहां श्राव्या हता, थयो केम श्हां विवाह ॥ सांजलवा संबंध ए, डे मुज मन उबाह ॥२॥ अर्थ ॥ एक दिवस चंद राजानी साथे मकरध्वज राजा गुह्य वातो करवा बेग. विमलापुरीना स्वामिए कडं के हे जमाइराज ! आपने कुकमानो वेष कोणे प्राप्त कराव्यो ॥१॥ तमे विमलापुरी केवी रीते श्राव्या हता. वली अहींबा तमारो विवाह केम अयो. ए सर्व वृत्तांत जाणवानो मारा मनमां बहुज उत्साह ३.५ चंद कहे निसुणो नृपति, मुज विमात उरवार ॥ वधु संग लेश अंबरे, . ललकार्यो सहकार ॥३॥ कपटे हुं कोटर रह्यो, क्रमतो तरू था काश ॥ चार घडी मांहि इहां, श्राव्यां श्रमे अनयास ॥४॥ अर्थ ॥ चंदराजाए कह्यु के हे राजन् मारी उरमान मा दुःखे वारवा योग्य ले. ते पोतानी वहुने साथे लश आंबाना वृक्ष उपर बेठी अने आम्र वृहने आकाशमा उडाड्युं ॥३॥ ते वखते श्रान वृक्षना कोटर (बखोल )मां संताइ रह्यो. अनुक्रमे ते वृक्ष आकाशमा उडतुं, चार घडी मात्रमा तेनाथी अनायासे अमे वहीं श्राव्या. ॥४॥ तुम पुत्री सिंहल सुतन, तणो लगन दिन तेह ॥ मुजने हिंसके जोलव्यो, जामे परणी एह ॥५॥ शमस्याये समजी खरी, तुम पुत्री तिण वार ॥ श्रमे त्रिहुँ तरूवर चढी, पहोता आना सार ॥६॥ अर्थ ॥ ते दिवसे तमारी पुत्रीनी साथे सिंहसरायना पुत्रना लग्न अवाना हता. ते समये हिंसक मंत्रीए मने जोलव्यो. जेथी तमारी पुत्रीनी साथे में जाती परणेतर कर्यु ॥ ५॥ तमारी पुत्री श्रने मारा मेलापना प्रसंगमां में जे जे शमस्या करी इती ते सर्वे ते समजी हती. पनी अमे तो त्रणे जणां वृक्ष उपर चढी आलापुरीए पहोंच्या.॥६॥ कपट प्रगट थये जननिये, मुजने को विहंग ॥ गिरि फरसे नर पद लद्यु, थयो श्रम तुम सुप्रसंग ॥७॥ अर्थ ॥ मारूं कपट प्रगट श्रतांज मारी विमाताए मने पक्षी बनावी दीधो. ते आ गिरिराज फरसनश्री हुँ मनुष्य थयो अने आपनो तथा मारो रुडो प्रसंग थयो.॥७॥ ३२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० चतुर्थ उदास. ॥ ढाल १० मी॥ ॥ जीणा मारूजीनी कर हलडी ॥ ए देशी ॥ निसुणी वचन नृप चंदनां, मकरध्वज मन मांहि निज अवगुणे विलखाणो होराज ॥ अहो अहो कुष्टीने कहे, निपुण हतो पण ढुं श्हां तो निपट उगाणो हो राज ॥१॥पातिक किहां ए बूटतो, काचे ऋण सथुधारे हणतो जो ए कन्या हो राज ॥ हो जो सचिव तणुं नबुं, एहने पण उगारी राखी कीरति धन्या हो राज ॥२॥ अर्थ ॥ चंद राजानी हकीकत सांजलीने मकरध्वज राजा पोताना मनमां बहुज ऊंखवाणो पस्यो अने विचार करी कोढीआने कहेवा लाग्योके अरे रे ! हुं बहुज चतुर हतो परंतु ताराथी हुँ अत्यंत उगायो ॥१॥ जो एवा निर्मात्य पुरावाथी में ए कन्याने मारी नखावी होत तो ए महा पापथी केवी रीते बुटी शकत? परंतु ए प्रधाननुं सारूं अजो के तेणे युक्तिश्री पुत्रीनुं संरक्षण कराव्युं अने मारी कीर्त्तिने निष्कलंक रखावी. ॥२॥ कुष्टी पुष्टी ले केहवो, कीधीए विष कन्या हु श्राप निरालो होराज ॥ पुत्री वचन नवि मानतो, थयो ए कपट उघामो आज जरालो हो राज ॥३॥ पातिक बार्नु नवि रहे, श्राफणीए जेम आवे ढलतुं ढाले पाणी हो राज ॥ आज ए कुष्टी प्रमुखनी,अंतर गतिनी वातो चंद नृपतिथी जाणी हो राज ॥४॥ अर्थ ॥ वली ए दुष्ट कोढी पण एवो कपटी के मारी पुत्रीने विष कन्या उरावी पोते अलग थइ उनो. हुँ ते वखते तो पुत्रीनें कडं मानतो न हतो परंतु सघलुं कपट संपूर्ण रीते अजवालामां आव्यु. पाप फुटयं ॥३॥ पाप प्रगट श्रया विना रेहेतंज नथी. जेम पाणी पोतानी मेलेज ढालमां ढली पडे ने तेम पाप पोतानी मेलेज प्रगट थइ जाय . ए कोढीया विगेरेनी अंतर्गत कपटनी वातोनी माहितगारी आजेज चंद राजा पासेथी मने अश्॥४॥ जागी मननी भ्रांतमी, चंद हवे चित्त वसियो, चातक जेम जलधारा हो राज ॥ तेड्या कारागारथी, प्रेमला लछी ताते पांचे तेह गारा हो राज ॥५॥ कोपी भृकुटी वांकी करी,नूपे सिंहल नृपने त्रटकीने बोलाव्यो हो राज ॥ रे पापी तें मुज थकी, वेर वसाव्यु मसली पेटतें शूल उपाव्युं हो राज॥६॥ अर्थ ॥ मारा मनमा हवे लेश मात्र ब्रांति रही नथी. जेम चातक पदीना मनमां वरसाद तेम मारा मनमां चंद राजा वसी रह्या . आ प्रमाणे निश्चय थया पत्नी मकरध्वजराजाए बंदीखानामांथी ते पांचे उगाराने तेडाव्या ॥ ५॥ ते आव्या एटले मकरध्वज राजाए अत्यंत क्रोध युक्त अश् भृकुटी चडावी सिंहल राजा परत्वे त्रटकीने कडं. हे उष्ट पापी तें मारी साथे जे वेर बांध्युं बे ते पेट चोलीने शुल उत्पन्न करवा जेवू कर्यु बे. ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २५१ कहे रे मुज पुत्री तणो, फोकट कपट करीने केम ते श्ररथ बिगाड्यो हो राज ॥ एहशी कुमति तुज उपनी, मुजने ते उहवीने सूतो सिंह जगाड्यो हो राज ॥७॥ श्रयुगत तुज मुख निरखवू, मुज तनुजा पीडाए तुजने होवे तमासो हो राज ॥ धिग तुज माय जे तुज जण्यो, सहि तो श्ण उरमतिथी जीवीश तीन पंचासा हो राज ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ हे पापी ! तें विना कारणे कपट करीने मारी पुत्रीना हितने शामाटे नुकसान कर्यु. तने एवी माठी बुद्धि केम उत्पन्न अश् ? मने जे तें दुःख पमाडयुं ते सूता सिंहने मीने जगाडवानुं काम कयु बे॥॥ तारूं मुख जोवु ते पण अयुक्त ने. कारणके मारी दीकरीने पीमा थाय तेमां तारा मनने तमासा जेवू लागे. धिक्कार ने तारी माताने के तने जन्म आप्यो. श्रावी मानी बुद्धिथी मने खात्री ने के तारूं वेहेलु मोत आवशे. मात्र दोढसो वर्ष जीवीश. ( आटलु आयुष्य ते कालमां बहुज अटप समजवू ) ॥ ७ ॥ वधक पुरुषने तेडीया,वध करवा ते पांचे नूपे तेहने थाप्या हो राज ॥ बोल्यो चंद नृपति तेहवे,समय ते केम करी चूके जे करी मोटा थाप्या हो राज॥ए॥ अहो राजन् एह उपरे,श्रापणे शरणे जे श्राव्या कहो ते केम हणाये होराज॥ झुंझुंजो करीए झुंडा थकी, तुंमानो रूमानो किण विध नेद जणाये होराज ॥१०॥ अर्थ ॥ राजाए तत्काल वध करनारा चंडालोने बोलाव्या अने ते पांचेनो वध करवाने तेने सोप्या ए समये तरतज चंद राजाए कह्यु. कवि कहे जे के जेने कुदरते मोटा बनाव्या वे ते पोतानी महत्वता बताववानो समय आवे केम तेनो लाल लीधा विना रही शके ? ॥ ए॥ चंद राजाए कडं हे राजन् आप विचारशोके जे आपणे शरणे आव्या ते ने केवी रीते हणी शकाय? जो तुंमानी साथे आपणे शरणे आवेलानुं तेना जेवा अश् तेनुं हुंडं करीए तो सारा नगरानो नेद केवी रीते जाणी शकाशे? ॥१०॥ ए उपगारी थापणा, एहनी तो बलिहारी तुम श्रम जे हित जोड्यो हो राज ॥ अवगुण उपर गुण करे, तेहने किण ही प्रस्तावे कोणे नवि कुवखोड्यो हो राज ॥ ११॥ जो एहने जगारशो, तो जगमां तुम केरो वधशे सुयश घणेरो हो राज ॥ जाणशे तो घणुं ए थयु, एह, हवे नवि करशे देशे जो मनमां फेरो हो राज ॥ १२॥ अर्थ ॥ श्रापणे तो हवे एवोज विचार करवो के तेठतो आपणा खरेखरा उपकारी, एटलुज नहीं पण तेउने धन्यवाद घटे के तेउने सीधे आपणो अरसपरस संबंध जोडायो. वली नीति शास्त्रमा पण अवगण उपर गुण करनार पुरुषने कोऽ पण रीते कोड पण मनुष्ये कवखोडयो नथी ॥११॥ जो श्राप ए लोकोने बचावशो तो जगत्मां आपनो बहुज यश गवाशे. ए लोको पण पोताना मनमां विचार करशे तो तेउने माथे थवामां बाकी रही नथी जेथी हवे पठी आq काम कदापि करशे नही. ॥ १ ॥ तुम पुत्री करमे नमी, शुं करे एह बिचारा मुख तो एहनुं जोवो हो राज ॥ कोढी पण सुत एहनो, ते माटे एह उपर स्वामी सुप्रसन्न For Personal and Private Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ चतुर्थ उल्लास. होवो दो राज ॥ १३ ॥ कयुं न लोपाणुं चंद, जाणीए हाथ मेलावा माहे नृपे एह दीधा हो राज ॥ चंद कीरति जग विस्तरी, सिंहल श्रादि पांचे तिहां निरबंधन कीधा हो राज ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ खरेखरूं विचारीए तो तमारी पुत्रीनांज मागं कर्मना उदयथी आ सघळु बन्यु जे. ए बिचारा शुं करी शके तेम बे? ए रांकातोनुं मोढुं तो जुर्म केवा निर्मात्य जेवा दीसे ? वली तेनो दीकरो पण कोढी ने, माटे तेऊना उपर दया लावी हे राजन् श्राप तेजेना उपर सारी रीते प्रसन्न था॥ १३ ॥ चंदराजानां वचनो कोइ पण रीते सोपी शकायां नही अने जाणे हस्त मेलाप वखते राजाए तेउने दीधा होय अर्थात चंदराजाने अर्पण कर्या होय तेवी रीते तेजने मत कर्या. श्रा बिनाश्री चंदराजानी कीर्ति जगत्मां बहुज फेलाइ. सिंहल राजा प्रमुख पांचने केदश्री मुक्त कर्या. ॥ १४ ॥ पियुंनुं देखाडवा पारखं, भावी प्रेमला लछी चंद तणो पद धोयो हो राज ॥ बांट्यो कनकध्वज जणी, ततखिण जोता मांहि तेहना कुष्टने खोयो हो राज ॥ १५॥ देवे चंदनी उपरे, वृष्टि करी कुसुमनी जय जय शब्द उचारी हो राज ॥ कनकध्वज प्रणमी कहे, धन्य धन्य वीर नृपतिना सुत जग उपगारी हो राज ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ पोताना स्वामिनी महत्वतानी परीक्षा बताववा सारूं प्रेमला खबीए तरतज श्रावीने चंद राजा ना चरण- प्रक्षालन कर्यु अने ते प्रदालन करेला जलनो कोगलो कनकध्वज कोढिया उपर गंत्यो के जेना प्रजावधी जोत जोतामां तेनो कोढ नाश पाम्यो ॥१५॥ ते वखते देवताए जय जय शब्दनो उच्चार करी चंद राजानी उपर पुष्पनी वृष्टि करी. कनकध्वज कुमारे पण प्रणाम करी कडं के हे वीरसिंह राजाना पुत्र, जगत्ना उपकारी तमने धन्य ने धन्य बे. ॥ १६ ॥ दास थया सवि चंदना,पियुथी प्रेमला खही नित नित रहे रसलीनी हो राज॥ दसमी चोथा उहासनी,मोहन विजयेनांखी ढाल ए निपट नगीनी हो राज ॥१७॥ अर्थ ॥ ते सर्वे जणा चंद राजाना सेवक अया. प्रेमला लल्ली पोताना पतिनी साथे निरंतर सुख विलास जोगववा खागी. ए प्रमाणे चोथा उदास मध्ये दसमी ढाल मोहनविजयजी महाराजे बहुज सुंदर कही१७ ॥दोहा॥ सन्मानी सिंहल नृपति, चंदे दीधी शीख ॥ सिंहलपुर पहोता सुखे, देतां चंद आशीष ॥१॥ एहवे समये चंद नृप, निशामध्य - सुपवित्त ॥ चिंतवतां ओवी चढी, गुणावली निज चित्त ॥५॥ अर्थ ॥ सिंहल राजाने सन्मान पुर्वक चंद राजाए विदाय कर्या, अने ते सर्वे चंद राजाने आशीरवाद थापीने सिंहलपुरे सुखेथी पहोंच्या ॥ १ ॥ हवे ते समये एक पवित्र रात्रिने विषे चंद राजाने विचार करतां तेना हृदयमा गुणावली चढी श्रावी. ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २५३ हूं तो श्हां विमलापुरी,सुखे रहुँ निरबीह ॥ पण कुणविध जाता हशे, गुणावलीना दीह ॥३॥ वीमतां कुर्कटपणे, कोल कोंमें तास ॥ जो हुं मानव पद सहीश, (तो) मलीश प्रथम उदास ॥४॥ अर्थ ॥ हुं तो अहीं आ विमलापुरीमा निर्जयपणे अत्यंत सुखमा रहुं वं. परंतु गुणावलीना दिवसो श्रानापुरीमां केवी रीते जाता हशे ? ॥ ३ ॥ ९ कुकडापणे ज्यारे तेणीनाथी बुटो पडयो हतो त्यारे में तेणीने वचन श्राप्यु हतुं के ज्यारे हुँ मनुष्यपणुं प्राप्त करीश त्यारे तनेज प्रथम श्रानंद सहित मखवा श्रावीश. ॥४॥ एतो हुँ जुली गयो, प्रेमला लबी प्रसंग ॥ हवे जो तेहने जश मढुं, तो जीवितनो रंग ॥५॥चाहे तेहने चाहिये, ज्यां लगी घटमें प्राण ॥ सयण जणी संजारवो, एह नेह नीसाण ॥ ६ ॥ श्रर्थ ॥ ए जे में वचन श्राप्यु हतुं ते तो प्रेमला लचीनी साथे सुख विलासमां रेहेवाश्री हुँ नुली गयो, परंतु इवे पण जो हुँ तेने जश्ने मलुं तोज मारा जीवतरने रंग ॥५॥ जे आपणी चाहना राखे तेनी आपणे ज्यां सुधी आपणा शरीरमां प्राण होय त्यां सुधी चाहना राखवी जोइए. वली सज्जनने संजारवा तेज प्रेमनी निशानी . ॥ ६॥ प्रात थयो जग्यो तपन, लख्यों नरिंदे लेख ॥ गुणावलीनी उपरे, थाना प्रेष्यो प्रेष्य ॥७॥ अर्थ ॥ प्रातः काल अयो अने सूर्योदय यो एटले चंदराजाए गुणावली उपर कागल खख्यो भने कासदने आपी आलापुरी तेने विदाय को. ॥ ७॥ ॥ ढाल ११ मी॥ ॥ थारी सुरतनी बलिहारी हो धणरा ढोला ॥ ए देशी ॥ प्रेष्यने कहे नृप चंद हो गुणना लायक, कागल देजो हो हाथ गुणावली जी ॥ तुं तो न करीश कोश्ने जाण हो ॥ गु० ॥ वीरमतीनी हो प्रकृति श्राकुली जी ॥ १ ॥ जश् पुर जे कुशल कल्याण हो । गु० ॥दे जे दिलासो हो मीठे बोलमेजी ॥ कहे जे रहे जो निश्चित हो । गु० ॥ आपण मलगुं हो वाजते ढोलमेजी ॥२॥ अर्थ ॥ हे खेपीथा! श्रा कागल तमे गुणावली राणीने हाथो हाथ श्रापजो. तमे समजु गे तेथी एटर्बुज कडं बं के श्रा वात कोश्ने जणावशो नही. जो वीरमतीना जाणवामां आ हकीकत आवशे तो तेनो स्वन्नाव बहु आकलो वे ॥१॥ गुणावलीने तेना देम कुशल पुरजो अने मीगं वचनोथी दिखासो श्रापजो वली तेणीने कहे, के हवे तमे निश्चिंतपणे रहेजो. आपणे मंके घाव देतां एका अश्शु.॥॥ For Personal and Private Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ चतुर्थ उल्हास. करशुं आनापुरी राज्य हो ॥ गु० ॥ उर्जन रदेशे हो नयणां चोलताजी ॥ सुरज कुंमने प्रजाव हो ॥ गु॥ नर पद पामी हो करुं बुं कबोलताजी ॥३॥ धरजो तुमें चित्त प्रीति हो ॥ गुण ॥ सासु शीखे हो रखे विसारताजी ॥ श्रमे तो खिण खिण मामें हो ॥ गुण ॥ तमने रहीए नित संजारताजी ॥४॥ अर्थ ॥ श्रापणे आनापुरीमा राज्य करशुं ते खात्रीथी मानजो अने ते वखते उर्जन लोको जोइने आंखो चोलतां बेसी रहेशे. सूर्य कुंडना प्रत्नावथी हुँ मनुष्य पणुं पाम्यो बुं अने कबोलमां मारा दिवस अने रात व्यतीत थाय॥३॥ तमे अमारी जपर अंतः करणथी प्रीति राखजो. वीरमतीनी शिखामण मानी रखे अमने जुलीजता नही. अमे तो क्षणे क्षणे निरंतर तमने याद कर्या करीए जीए. ॥४॥ निरसो फूल गुलाब हो ॥ गुणा जनम नूमिनो हो वहालो लागे कांटमोजी॥ तुम अम मलवा मांहि हो ॥ गुण ॥ श्रागे न रह्यो हो विचमां आंटमोजी॥५॥ श्रमने डे परम थानंद हो ॥ गु० ॥ तुमने हो जो हो प्रीतलमी घणीजी ॥ पण तुम मीगं वयण हो ॥ गु०॥ होंश रहे हो सांजलवातणीजी॥६॥ अर्थ ॥ पोतानी जन्म भूमिर्नु कांटार्नु जाड जेवु वहालुं लागे ने तेव॒ परमिनुं गुलाबफूल लागतुं नथी. अर्थात् तमे बाल्यावस्थामांश्री स्नेही हता तोपण कांटा जेवा श्रयेला बतां तमारा उपर जेवो राग बे तेवो राग प्रेमला लबी गुलाबना पुष्प जेवी बतां तेना उपर नी तेथी निरस लागे . हवे तमारा अने अमारा मेलापमा नविष्यमां कोइ पण प्रकारनी आंटी श्राववानो संनव नयी ॥ ५॥ अमने अहीं आ परम आनंद ने अने तमारी अमारी उपर घणीज प्रीति होय एम चाहीए बीए. वली तमारा बोल बहुज मीग ने ते सांजलवाने अमने बहुज होश रह्या करे . ॥ ६॥ देखे गणशुं ते दीह हो ॥ गु०॥ जिण दिन होशे हो तुम मेलावमोजी ॥ मनमां जे जे वात हो ॥ गु० ॥ न बने लखतां हो कागल सांकमोजी ॥७॥ कही एम सकल उदंत हो ॥ गुण ॥ प्रेष्य पायो हो बानापुर नणीजी ॥ ते पण क्रमतो पंथ हो ॥ गु० ॥ नूमि उलंगी हो जोतामांहि घणीजी ॥७॥ अर्थ ॥जे दिवसे तमारो अने अमारो मेलाप अशे तेज दिवसने अमे धन्य मानिशुं. वली श्रमारा मनमां जे जे वातो तमने कंहेवानी ते या नानकडा कागलमां ते केवी रीते लखी शकाय? एम सर्व प्रकारनो कहेवा योग्य वृत्तांत कहीने खेपीआने श्रानापुरी तरफ रवाने को. खेपीआए पण रस्तो कापवा मांडयो अने जोताजोतामां बहु भूमिते उलंघी गयो.॥॥ मासे केते गयो प्रेष्य हो ॥ गुण ॥ श्राव्यो श्राजाहो नगरने आसनेजी ॥ शोचे चित्त पुर देखी हो ॥ गुण ॥ सहोदर सहितो हो एह कैलासनोजी ॥ए॥ श्राव्यो नगरी मोकार हो ॥ गु० ॥ बानो मलीयो हो मंत्रीने जश्जी ॥ वांच्यो नृपनो लेख हो ॥ गु०॥ धीरज मनमां दो घणीज घणी थजी ॥१॥ For Personal and Private Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २५५ अर्थ ॥ केटलाएक महीने ते खेपी आनापुरीए पहोंच्यो. नगरने देखतांज तेना मनमा विचार अवा लाग्यो के शुं आ नगर ते कैलासपुरीनो सहोदर (जाइ) बे? खरेखर तेमज नासे ॥ ए॥ ते नगरीमां पहोंच्यो एटले तत्काल गुप्त रीते मंत्रीने जश्ने मट्यो. मंत्रीने राजानो कागल श्राप्यो जे वांचतांज मंत्रीना मनमां अत्यंत हर्ष अयो अने धीरज श्रावी. ॥१०॥ श्राण्यो गुणावली पास हो ॥ गु०॥ कागल थाप्यो हो हाथ नरेशनोजी ॥ खोल्यो थश्ने सहेज हो ॥ गु० ॥ वांचतां हरखी हो नाम प्राणेशनोजी ॥१९॥ आणंद अंग न माय हो ॥ गु० ॥ नयणे उमगी हो प्रेम जलद घटाजी॥ जाणे वधाव्यो लेख हो ॥ गु० ॥ आंसु मिसथी हो मुक्ता फल बटाजी ॥१२॥ ___ अर्थ ॥ ते खेपीआने मंत्रीए गुणावलीनी पासे श्राण्यो. तेणे गुणावलीना हाथमां चंद राजानो कागल आप्यो. गुणावलीए उतावलथी पत्र फोडीने वाचतां पोताना प्राणनाथनुं नाम वांची ते बहुज हर्ष पामी ॥११॥ गुणावलीना अंगो अंगमां आनंद समातो नथी. तेणीनी चक्षुमाथी प्रेमनी जलधारा बुटी जाणे आंसु रूपी मुक्ता फलो ( मोती ) श्री पत्रने वधावती होय एम लास्यु. ॥१५॥ जाण्यो पियु नर रूप हो ॥ गु० ॥ तेद हरखनी हो कुण कहीने शकेजी ॥ चिंते गुणावली एम हो ॥ गुण ॥ थर हुँ अगंजी हो हवे प्रीतम थकेजी ॥१३॥ विनवे सवि कासीद हो ॥ गु०॥ चंदे मुखथी हो वात जे कही हतीजी ॥ कहे राणी सुण तास हो ॥ गु० ॥ वात किहां हां रखे करतो तीजी ॥१॥ अर्थ ॥ पोताना पतिने पुरुष रूपे श्रयेलो जाणीने तेणीने जे हर्ष यो तेनुं वर्णन करवाने कोण समर्थ बे? गुणावली मनमां एम विचारवा लागीके हवे मारा स्वामिना पसायथी हुँ कोश्नाथी गांजी जालं तेम नथी ॥ १३॥ चंदराजाए जे जे हकीकत गुणावलीने कहेवाने कही हती ते सघली खेपीआए गुणावलीने कही. पठी गुणावलीए खेपीआने कह्यु के श्रा वात तुं अहींा कोश्नी पण पासे प्रगट करतो नही. ॥ १४ ॥ सनमान्यो तेह प्रेष्य हो ॥ गुण ॥ पालो पगव्यो हो लेख लखी करीजी ॥ पण नृप चंदनी वात हो ॥ गु० ॥ नगरी माहे हो घर घर परवरीजी ॥ १५॥ कहे जण जण मुख एम हो ॥ गु० ॥ विहंग मटीने हो नर थयो नरवरुजी॥ पुरनु पूरण नाग्य हो ॥ गु० ॥ वहेलो श्रावे हो इहां अलवे सरूजी ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ ते खेपीश्रानो बहुज आदर सत्कार कर्यो. गुणावलीए तेने पत्र लखी आपी विदाय कर्यो. परंतु चंदराजानी वात नगरमां घेर घेर चरचाइ रही ॥ १५॥ दरेक मनुष्य कहेवा लाग्या के आपणो राजा जे पदी भयो हतो ते मटी जश्ने पुरूष श्रयो ने एम संजलाय . हवे जो आपणा नगरनुं संपूर्ण जाग्य होय तो आपणा कृपावंत राजा अहीं वेहेलासर श्रावे. ॥१६॥ धन धन चंद नरिंद हो ॥ गु० ॥ वासना पसरी हो सुयश सुवासनीजी ॥ एह श्रगीश्रारमी ढाल हो ॥ गु० ॥ मोहने जाखी हो चोथा उदासनीजी ॥१७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ चतुर्थ उदास. __ अर्थ ॥ चंद महाराजाने धन्य धन्य जे. एवी उत्तम यशवाली हवा दशे दिशामां पसरी रही. मोहन विजयजी महाराजे चोथा उसासनी आ अगीश्रारमी ढाल कही. ॥ १७॥ ॥दोहा॥ वीरमतीए एहवी, सण सण लहीते वात ॥ जे जे चंद विमलापुरी,लह्यो मानव श्राकार ॥१॥ रोष चढी चित्त चिंतवे, कोण एहवो संसार ॥ जे में कीधो कुकडो, दे तस नर अवतार ॥२॥ अर्थ ॥ ते समये चालती वात वीरमतीना जाणवामां एवी रीते श्रावीके विमलापुरीमां चंदने मनुष्य पणुं प्राप्त थयुं एम संजलाय ॥१॥ वीरमतीने गुस्सो चढ्यो अने ते पोताना मनमां विचारवा लागीके एवो ते श्रा संसारमा कोण जे के जेने में कुकडो बनाव्यो तेने ते मनुष्यनो अवतार श्रापे. ॥२॥ मन पण श्हां श्राव्या तणुं,राखे डे वली तेह ॥ नूली हुंज खरी प्रथम, कुशख्यो राख्यो एह ॥३॥ पाडो पुरुष थया पली, धरे होंश बहु मंद ॥ पापम खाश् पदमशी, हुर्ज दीसे चंद ॥४॥ अर्थ ॥ वली ते नहीं था श्राववाने होंश धरावे जे एम संजलाय . हूंज प्रथम जूलीके में एने कुशल ( जीवतो ) राख्यो ॥१॥ ते मंद बुद्धिवालो चंद फरी पुरुष श्रया पठी अनेक प्रकारनी श्रनिखापा राखेने ते जाणे “ पापम खाइने पदमशी" यो होय तेनी जेम करवानी धारणा राखे ॥४॥ मुज सामो थावा करे, जुर्म जग उलटो न्याय ॥ मोटीना लघु मीनमी,कान करमवा जाय ॥५॥ साहामी विमलपुरी जश्, मोड़ें एहनुं मान ॥ न दलं हां लगी श्राववा, तो मुज खरां वखाण ॥६॥ अर्थ ॥ जगत्मां अवलो न्याय थवा बेगेने ते तो जुर्ज-ए चंद मारी सामो थवा मांगे जे. एतो एना जेवं समजवु के-नानी बिलामी मोटी विलाडीना कान करडवाने दोडती होय ॥ ५॥ अहींथी विमलापुरीए तेनी सामीज जइ, एना अभिमानने नरम पाहुं अने अहीं सुधी तेने श्राववा न द तोज मारूं पराक्रम खरे खरूं समजवु. ॥६॥ आज पडी नवि राखवो, रिपुने थर अबुज ॥ एक कला ए पण अधिक, शिखवी चंद मुजा ॥७॥ अर्थ ॥ हवे पनी एवी मंद. बुधि नज राखवीके शत्रुने कबजामां आव्या पनी जीवतो राखवो. श्रा एक कला चंदे मने वधारे शिखवी. ॥ ७॥ ॥ ढाल १५ मी॥ ॥ केशर वरणो हो काढ कसुबो मारा लाल ॥ ए देशी ॥ पजणे सासु हो वहुने तेमी मारा लाल, निरख तुं चंदे हो करी मुज बेडी ॥ मा० ॥ विमलापुरीए हो मनुष्य थयो जे ॥ मा०॥ अमर्ष एहने हो हजी न गयो २ ॥ मा ॥१॥ श्राववा थाना हो उमंग धरे बे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ॥ मा० ॥ निपट जाएयुं हो मूढ करे बे ॥ मा० ॥ नर थया माटे हो यो शुं माटी ॥ मा० ॥ नही जाये खाटी हो राख्ये घांटी ॥ मा० ॥ २ ॥ ॥ वीरमती गुणावलीने बोलावीने कह्युं के बहु ! तमे ध्यानमा राखजो. चंदे फरी मने बंबेडी बे. ते विमलापुरी मां बे. मनुष्य थयो बे ने हजु तेना मनमांथी अभिमान गयुं नथी ॥ १ ॥ ते वली श्राजापुरीए श्रववानी होंश धरावे बे. ए धारणा ए मूर्ख माणस बहुज मूल जरेली राखे बे. ए पुरुष थी शुं ते एम धारे बे के ए शुरवीर मरद थयो, परंतु मारी साथे विरोध राखीने ते कदापि खाटी जावानो ( फावी शकवानो ) नथी. ॥ २ ॥ खबर तो एहनी हो यइ दशे तुजने ॥ मा० ॥ थइ तुं खोटी दो न कहे मुजने ॥ मा० ॥ हने पाठो हो लिख तुं कागल ॥ मा० ॥ न कहीश वातो दो कोनी गल ॥ मा०॥३॥ थइश जो मुजथी हो हृदयनी जंमी ॥ मा० ॥ तो मुज सरिखी दो न गणीश मूंडी ॥ मा० ॥ मुकी जो होये हो पियु तुज हुंडी ॥ मा० ॥ नांखजो कहुं हुं हो जिहां जल कुंमी ॥ मा० ॥ ४ ॥ ॥ ते संबंधी समाचार तारा तो जाणवामां श्राव्या हशे ? परंतु तुं हवे खोटी थइ (फरी गइ ) बो. मालकां पण वात करती नथी. गमे तेम हो पण तुं तेना उपर फरी कागल लख ने वात तुं कोइनी गल करीश नहीं ॥ ३ ॥ वली कहुं हुं के जो तुं पण मारी साथे गूढ हृदयवाली थइ शतो जाण जे के मारी जेवी कोइ मूंडी नथी. तेमज जो तारा पतिए तारा उपर कांइ हुंडी ( संदेसो पत्र रूपे) मोकली होय तो तने खास कहुं हुं के तेने तो गटर ( जलनी कुंमी ) मां फेंकी देजे. ॥ ४ ॥ विमलपुरीए हो जाइश हुंतो ॥ मा० ॥ श्राजापुरीए हो रहे जे तुं तो ॥ मा० ॥ मंदमतीने दो जइ समजावीश ॥ मा० ॥ तुरतज पाठी दो इहां हुं श्रावीश ॥ मा० ॥ ५ ॥ वहु तव जाखे हो वीरमतीने ॥ मा० कल्पित कहे हो अयुक्त सतीने ॥ मा० ॥ विहंग जे कीधो हो नर मथाये ॥ मा० ॥ दीवा विदुषो हो नवि ए मनाये ॥ मा० ॥ ६ ॥ ՋԱՍ ॥ हुं तो हवे विमलापुरीए जइश, वली तने कहुं हुं के तारे तो आजापुरीमांज रेहेवुं. ए मंद बुद्धिवाला चंदने हुं हींथी जश्ने शिखामण पीने तरतज पानी अहीं आवीश ॥ ५ ॥ गुणावलीए तरतज ते सांजलीने वीरमतीने कह्युं के हे सासूजी ! आप जेवा सतीने एवी युक्त कहिपत तो कवी योग्य नथी. जेने पेज पक्षी बनाव्यो ते पुरुष केम थर शके ? जाते दीवा विना ते मनाय तेम नथी. ॥ ६॥ नदी को अधिक हो तुमची माडी ॥ मा०॥ ए कोइ पिशुने हो वात उमामी ॥ मा० ॥ तमे घर मांहि हो पोषो नवरस | मा० ॥ पण ए नमले हो त्रीजने तेरस || मा० ॥ ७॥ नट तो तिहां लगी हो केम करी ३३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५न चतुर्थ उल्लास. जाये ॥ मा॥ तुम विण एह तो हो नर नवि थायें ॥ माणबार को कोश्ने हो न हुई कुसोजा ॥ मा॥ पाणी पेहेला हो न कहो मोजा ॥माज॥ अर्थ ॥ वली हे माताजी ! तमाराधी ते जगत्मां एवो कोण बलीयो डे के एने पुरुष वनावी दे. मने तो कोइ चाडीयाए एवी खोटी वात उमामी होय एम लागे . तमे पण घरमां बेगं बेगं नवे रसनुं मन गमती रीते पोषण करोगे, परंतु चंद पुरुष श्राय ए वात त्रीजने तेरस एकठा थवा जेवी ने ॥ ७॥ वली एम तो विचारो के नट लोको त्यां सुधी केवी रीते जइ शके ? वली मने खात्री के तमारी कृपा विना ए पुरुष कदापि अश् शके नही. माटे बाजी ! एम कोश्ना केहेवाथी तमे आडा अवला विचार करो नही; ( मेला मनवाला था नहीं ) एतो पाणी पेहेलां मोजा उतारवा जेवू बने जे. ॥७॥ हुँ तो तुमथी हो न घणुं माही ॥ मा ॥ करजो कारज हो चित्त अवगाही ॥ मा० ॥ सासुडीने हो करीने डावी ॥ मा० ॥ शीघ्र गुणावली हो मंदिर श्रावी ॥ मा० ॥ ए॥ वीरमतीए हो वेला साधी ॥ ॥ मा० ॥ बहु सुर तेड्या हो मंत्र श्राराधी॥ मा॥ चंद पुचिंतन हो वात प्रकाशी ॥ मा० ॥ तव सुर जाखे हो दणेक विमासी ॥ मा० ॥१॥ अर्थ ॥ वली हुं कांइ तमाराधी विशेष महापणवाली नथी. परंतु एटलं कहुं बु के जे काम करो ते चित्तमां चंडो विचार करीने करजो. ए प्रमाणे पोतानी सासूने गुणावली अंतरथी नवेखीने उतावलथी पोताना मेहेलमा आवी ॥ ए॥ हवे वीरमतीए पोतानुं कार्य सिद्ध करवा अवसर जोड्ने मंत्र- आराधन करी अनेक देवोने तेडाव्या. ते देवो आव्या एटले तेऊनी पासे चंदनुं बुरुं करवा संबंधी वात प्रगट करी. ते सांजली थोडी वार विचार करी देव बोलवा लाग्या. ॥ १० ॥ बार अमथी हो ए नवि होवे ॥ मा० ॥ चंदथी विरूठ हो कोण जे जोवे ॥ मा० ॥ सूरज कुंडे हो मजन कीधो ॥ मा० ॥ थयो नर रूपे हो पुदवि प्रसिझो ॥ मा० ॥ ११॥ तुमथी श्रमथी हो हवे नवि चाले मा॥ कहीए बीए साचे हो चावे नाले ॥ मा० ॥ श्रमथी श्रधिका हो तस रखवाला ॥ मा० ॥ श्रमे ए वाते हो रहे\ निराला ॥ मा० ॥१२॥ अर्थ ॥ हे वीरमती ! ए काम अमाराधी हवे बनवार्नु नश्री. हवे चंदराजानुं बुरू करवाने माटे तेना सामुं पण जोवाने कोण शक्तिवान ने ? तेणे श्री शत्रुजय उपर सूर्य कुंझमा स्नान कर्यु ने अने तेथी पुरुष रूपे श्रयो ने एटलुज नहीं पण पृथ्वीने विषे हवे प्रसिद्ध श्रयो ने ॥ ११ ॥ हवे तमारूं के अमारूं कांश पण जोर तेनी उपर चालवानुं नथी. आ वात अमे स्पष्ट रीते साचे साची कहीएजीए. कारण के तेना रक्षण करनारा देवो अमाराथी अधिक बलवाला , तेथी ए वातथी हवे अमे तो निराला रेहेशुं. ॥१२॥ कहो तो बीजो हो कारज करीए ॥ मा० ॥ पण ए सामुं हो पगढुं न जरीए ॥ मा॥ एवमो सुतथी हो घरो अनावो ॥माण॥ कहीए थाना हो थापी मनावो ॥ मा॥ १३ ॥ सुरनी वाणी हो निसुणी राणी For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. मा० ॥ साहामुं बमणी हो रोष जराणी ॥ मा॥ पुनरपि देवे हो अति समजावी ॥ मा० ॥ तो पण ममती दो रासे नावी ॥ मा० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ तमे बीजु जे का काम बतावो ते सुखेथी करीए, परंतु चंदनी सामु तो एक डगलं पण नरवाने श्रमे शक्तिवान नथी. वली अमारी सलाह एवी के तमारे पण पोताना पुत्र उपर एवडो अन्नाव राखवानीशी जरूर ? माटे कहीए बीए के तेने आनानगरीनु राज्य श्रापी तेनुं मन मनावो ॥ १३ ॥ देवताउँना कहेलां वचनो सांजलतांज वीरमती तो तेनी सामे उलटी बमणी गुस्से थइ. फरीथी देवताउए घणी रीते समजाववा मांडी तो पण ते ममतीली होवाथी पोतानो विचार तेणीए फेरवी देवताउनी शिखा मण मानी नही. ॥१४॥ वचन राणीनां हो मुक्यां वहेतां ॥ मा० ॥ सुरनिज ठामे हो सघला पहोता ॥ मा० ॥ वीरमतीए हो तेड्यो मंत्री ॥मा ॥ विमलपुरीए हो थर हुँ गंत्री ॥ मा ॥ १५ ॥ तुं श्हां रहे जे हो धरजे शाता ॥ मा० ॥ मंत्री पत्नणे हो निसुणो माता ॥ मा० ॥ एणी वाते हो केम हुं वारू, ॥ मा० ॥ थाजो चिंत्यु हो बा तुमारं ॥ मा० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ देवताए राणीनां वचनोनी दरकार नहीं करतां तेनी वातने उवेखीने ते सर्वे पोतपोताने स्थानके गया. त्यारबाद वीरमतीए मंत्रीने बोलावीने कह्यु के हुँ हवे विमलपुरीजवाने प्रयाण करूं लु॥१५॥ वीरमतीए मंत्रीने कडं के तमारे अहीश्रा सुख शांतिथी रेहे. पनी मंत्रीए कह्यु के हे माताजी ! जे काम तमे करवा जागे तेमां दुं तमने शुं काम वारी राखुं ? माताजी ! तमाळं धारेलु पार पडजो. ॥ १६॥ मंत्री वचने हो हरखी राणी ॥मा॥ सचिवने जाण्यो हो परम प्रमाणी॥मा० ढाल ए बारमी हो चोथे उसासे ॥मा॥ मोहने जाखी हो प्रेम प्रकाशे।मा०१७॥ अर्थ ॥ मंत्रीनां वचनो सांजली राणी बहु हर्ष पामी अने आ मंत्री खरे खरो प्रमाणिक वे एम तेनी उपर विश्वास बेगे. चोथा उवासमां मोहनविजयजीए बारमी ढाल प्रेम पूर्वक कही. ॥ १७ ॥ ॥ दोहा॥ चंमा अति पोरस चडी, पुनराकर्षी देव ॥ रस राती काति ग्रही, मद माती स्वयमेव ॥१॥ वायुं न करे कोश्न, कही पण न शके कोय ॥ वार्यों न रहे हार्यों रहे, श्राप मती जे होय ॥२॥ अर्थ ॥ जेने अत्यंत पोरस चडी गयो ने एवी क्रोध युक्त वीरमतीए फरीथी देवोनुं आकर्षण कयु. पोते मदमां की गयेली होवाथी प्रचंड रोज रसमां लाल चोल अश् हाथमां तलवार लीधी ॥१॥ कवि कहे के जे आप मतिता होय ते कोश्नु वारेलुं कबुल करता नथी. वली तेउने कोश् वारी पण शकता नथी. ते एवा होय बे के कोश्ना वार्या रहे नही पण हार्याज रहे. ॥२॥ सुर परिवारे परवरी, वीरमती सुविलास ॥ विद्याए अंबर पथे, विचरी रोष प्रकाश ॥३॥ राणी मनमां चिंतवे, चंदने जीतीश प्राज्य ॥ पण नोली लेहेती नथी, जे देश निज राज्य ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६. चतुर्थ उदास. अर्थ ॥ देवताउना परिवार सहित वीरमती विद्याना बलथी आकाश मार्गे अत्यंत रोषने बतावती बागल चाली ॥३॥ राणी मनमां विचारे के के हमणां चंदनो पराजय करी जय मेलवीश. परंतु कवि कहे जे के ते मुखर्जी जाणती नथीके हमणां मारूं राज्य खोइ बेसीश. ॥ ४॥ जेम नवि जाणे रंमिका, तेम त्यांथी सुर एक ॥ श्रागलथी जर विनवे, चंद नणी सुविवेक ॥५॥ महाराजा तुम उपरे, श्रावे अ विमात ॥ सावधान रेहेजो तमे, कहुं बुं बानी वात ॥६॥ अर्थ ॥ जेवी रीते ए वीरमतीना जाणवामां न आवी शके तेवी रीते एक देवता ते परिवारमाथी गुप्त रीते बुटो पडी अगाउथी आवीने चंदराजाने विवेक पूर्वक कहेवा लाग्यो॥ ५ ॥ हे महाराजा! तमारी उपर तमारी उरमान माता चडी आवे ने तेथी हवे तमे सावधान अश्ने रेहेजो. आ हुं तमने गुप्त नेद करूं बु.॥६॥ पुण्य प्रबल डे तुम तणुं, गंजी न शके एह ॥ तो पण रतन तणा यतन, करवा युक्त एह ॥७॥ अर्थ ॥ जो के तमारूं पुण्य प्रबल ने तेथी ए तमने हरावी शके तेम नथी, तो पण रत्ननुं जतन करवू ए वात पण व्यवहारमा करवा योग्य ॥ ७॥ ॥ ढाल १३ मी॥ ॥ श्रावोरे उलगाणा ताहरी कांकणीरे कुंबे ॥ ए देशी ॥ सांजली चंद नरेशरू रे, पाम्यो घणुं मनमाहिरे शाता ॥ जाणीजे यहां श्रावी साहमी, विमाता ॥ सुरवचने नृप पाखर्या रे, मोटा हय वर जेहरे ताता ॥ पकमेजे पंखीने खिणमां, उडतारे जाता ॥१॥ चंदे रण रसीयो यश् रे, अंगे.पेहेर्यो सन्नाहरे जारी ॥ जगमांहि को प्रगट्यो, उजो इश्वरावतारी ॥ बांधी घणे कसणे कसी रे, तनुमध्ये तर वार रे सारी ॥ कीधीरे जय वरवा राये, अश्वनी असवारी ॥२॥ अर्थ ॥ देवताए कहेली वात सांजलतांज चंदराजाना मनमा अत्यंत हर्ष अयो. तेणे मनमां विचार्युके आखरे मारी जैरमान माता मारी सामे श्रावी खरी. तेथी तरतज पोते सारांमां सारां जे अश्वरत्नो के जे उडता पंखीने पण क्षणवारमा पकडी पाडे एवा अश्वोने तैयार कर्या ॥ १॥ रण संग्रामनो रसीयो होय तेवीरीते चंदराजाए संरक्षक एवं नारे बख्तर धारण कयु. जाणे जगमां बीजो इश्वर प्रगट श्रयो एवो देखावा लाग्यो. मजबुत बंधन सहित केड उपर तलवारने लटकती बांधी; अने जय संपादन करवामाटे तरतज तेणे अश्वनी उपर स्वारी करी. ॥२॥ मृगया मिस चडी निसर्यो रे, सामंत सात हजार रे संगे ॥ न धरे जे पग पाबा कहिए, संगेरे उत्तंगे॥श्राव्यो विमलपुरी थकी रे, उबंधी बहु कोशरे रंगे ॥ निरखेडे वनवामी श्रामी, नेत्रने प्रसंगे ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १६१ एहवे श्रावती अंबरे रे, वरवीरे निज मायरे दीठी ॥ जाणे क्रोधान लनी, चालती अंगीठी ॥ पण मनमांदे चंदने रे, लागी अमीथी अ. नंतरे मीठी ॥ श्राजानी निरधारे धारी, श्रावती ए चीनी ॥४॥ अर्थ ॥ शिकारनुं बहानुं काढी पोताना साते हजार सामंतोने साथे लई ते चडी निकट्यो. सामंतो पण एवा हता के पानी पानीतो करे नहीं एटलुंज नहीं पण राजानी साज संग्राममां होशथी त्रुटी पडे. विमलापुरीथी प्रयाणकरी रंगनर बहु कोश सुधी जमीनने कापतां चाट्या आवे तेवामां एक सुंदर व. नमां बगीचो दृष्टिए पड्यो ते जुवे . ॥ ३ ॥ एवामां आकाशमार्गे ते शुरवीरे वीरमतीने आवती दीनी. साक्षात् क्रोधरूप अग्निनी सगडी चाली श्रावती होय तेवी देखाइ. जोके चंदना मनमांतो ने अमृत ककरतां पण अत्यंत मीची लागवामांडी. कारणके तेणे निश्चयश्री धार्युके श्राजानगरीए आववारूप श्रामंत्रणनी ए चीनी आवे . ॥४॥ अक्काए पण श्रावतो रे, साहमो चंद नरिंदरे धार्यो ॥ अलगाथी श्रा काशे रहीने, राणीए वकार्यो ॥ सुसरो पण नथी दिसतो रे, श्रावतां सामो तुजने वार्यों ॥ अथवा तें हैमाथी सहितो, कुकडो विसार्यो ॥५॥ मुज हुँते शाजापुरी रे, श्राव्यानी मन होंशरे राखे ॥ पण नूंडा अहि वही कहुं बु, ऊंटतो न चाखे ॥ जोवे किशु बोडीश नहीरे, तारो तुं इष्ट संचार रे नाखे ॥ क्षत्रीनी वट मुजने जोडं, केहवीतुं दाखे ॥६॥ अर्थ ॥ वीरमती डोसीए पण सामो आवेने ते चंदज ने एम धारीने आकाशमां बेटेडीज सख्त वचनो कही चंदने बंड्यो . तेणीए कह्यु के अध्या! मारी सामे आवतां तारा सासराए पण तने निवार्यो परंतु तुं पण तारा हैयामांथी कुकमापणानी अवस्था जूली गयो.॥ ५॥ हुं बतां तुं थानापुरी आववानी तारा मनमा जे होंश राखे बे, पण हुंडा हजु तने एटलीपण खबर पडती नथी के उंट कदापि नागर वेखनो चारो पामवाने लाग्यशाली थताजनथी. तोपण हवेतुं शुं जोइ रह्यो , हुं कहुं बं के तारा इष्ट देवने संचार. वली जोउबुंके संग्राममां तुं दत्रियवट पण केवी बतावे ? ॥ ६॥ चंदकंदे हवे मातजी रे, न धरो मुजथी रोषरे वारू ॥ मेंतो का न बि गाडयुं हजी ए, सांजलो तुमारूं ॥ मुजयी एम लगतां थकां रे, लागे मनमां हिरे सारूं ॥ थालं जीतो वेहेला एहमां, इष्ट शुं संजाळं ॥ ७॥ तुमें जेश्हां पगला कर्या रे, करशो ते कांश नवा रे जाणुं ॥ माताजी तुमचा गुण जीने, केटला वखाणुं ॥ तुमे तो जाणोडो चित्तमारे, सघ ला विश्वनो नार रे ताणुं ॥ गलीए उकुरा फोकट, फांट मांहि गणुं ॥ ७॥ अर्थ ॥ चंदे कडं के हे माताजी ! हवे मारा उपर तमे रोष राखो नही. जरा सांजलो में हजु सुधी तमारूं कांपण बगाडयुं नथी. शुं मारी साथे वीरोते समतां तमारा मनमा सारूं लागे? अने जो तमारा मनमा एमज सारूं लागतुं होय तो तमेपण सुखेथी वेहेलां तैयार था. मारे एमां इष्ट देवने शुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ चतुर्थ उल्लास. संभारवाडे ? ॥ ७ ॥ तमे जे अहींचा सुधी पगलां कर्याने तेथी एम जाणुं तुं के कांइक नवाइ जेवुं कशो. माता ! तमारा गुणोनां वखाण ते मारी जी ने केटलां करूं? तमे तमारा मनमां एमज जाणता हशो के श्राखा जगत्नो चार ढुंज ताणं बुं. पण जो एवं अभिमान होयतो ते वाततो " ढाली ठकुराइने फांट मां हि बाएं" ते केवतना जेवीबे ॥ ८ ॥ चंद वचन निसुणी करी रे, थइ क्रोधे प्रति अंग रे ताती ॥ नांखी रे सुत साहमी पेहेली, पापणीए काती || लागी चंद सन्नाहमांरे, जाणीए कुसुमनी एकरे पाती ॥ पण उलटीजइ लागी गगने, रंडिकाने बात || || साततख धरणी ढली रे, चंद नरिंद समीप रे यावी ॥ मुठी ते मो मां करीने, थोडीसी वधावी ॥ विष्णु कुमार नमुचिनी रे, भूपे कथा एक वीररे जावी ॥ दुर्जनना निग्रहनी करुणा, चित्तमांहे नावी ॥ १० ॥ अर्थ ॥ चंदनां वचनो सांजली वीरमतीना गोअंगमां क्रोध जरायाथी ते लाल चोल थइ गइ. तरतज तेणीए चंदनी उपर पेहेलांज तलवार फेंकी परंतु ते तलवार चंदना बख्तर उपर लागी ते जाणे पुष्पन एक पांखडी लागवा जेवुं श्रयुं. उलटी ते तलवार त्यांथी जबलीने वीरमती रंडानी छातीमां जईने लागी ॥ ए ॥ तलवार वागतांज वीरमती जमीन उपर ढली पमी. फरी तलवार चंदनी पासे पटले तेने चंदे थोडा मोतीए वधावी. चंदे विष्णु कुमार छाने नमूचिनुं दृष्टांत तरतज मनमां एकवार विचार्य ने ते दुर्जननो निग्रह करवामां करुणा लाववी ते तेना मनमां श्रव्यं नहीं. ॥ १० ॥ वी चंदे तव चोटी ग्रहने, श्राडुं श्रवलुं असंख रे जाली ॥ लेइने श्राकाश उंची, पुष्टिका बाली । फेरी चक्र तणी परे रे, रजकनां वस्त्र समा नरे वाली ॥ ऊटकशुं लेइ पटकी शिल्ला, उपरे कराली ॥ ११ ॥ चूर्ण rs धरणी मी रे, चसकी न शकी लगार रे रंगा ॥ प्राहुणमी थ‍ बी पुविये, पाधरी प्रचंगा ॥ एम जगमां पापी तणां रे, होवे निपट दवाल रे जुंगा ॥ रोपाए दुर्गतिमां तेहना, निश्चयथीरे ऊंमा ॥ १२ ॥ श्रर्थ ॥ तरतज चंदे तेणीनो चोटलो फालीने हुं अवलुं सर्वने जोइने ते दुष्टाने उंचे काम बाली; अने चक्रनी जेम तेलीने फेरवी वली धोबी वस्त्रने वालीने जी के तेवीरीते तेणीने तरतज बेवडी वाने मजबुत शिल्ला उपर पटकी ॥ ११ ॥ ते रंडाना जमीन उपर चूरेचूरा श्रश्गया. ते जरापण चसकी शकी नही. मरीने तरतज बठी नर्कनी ते चंडिका मेमान थइ. एवीरीते जगत्मां जे पापी होय तेना खरेखरा लूंडा हवाल थायबे; वली तेज॑नी दुर्गति थतां मोटा जंक त्यांपण बने. ॥ १२ ॥ कीधी चंदनी उपरे रे, देवे कुसुमनी वृष्टिरे रूडी ॥ वातलडी रखे को इजी मनमां, जाणताएं कूडी ॥ जयजय शब्द सघले ययारे, वीरमती जवसिंधु बुडी ॥ धर्मीना एम वैरी जाए, आफणीए उमी ॥ १३ ॥ साल निवारी जन्मनो रे, श्राव्यो नगरी मोकार रे राजा ॥ जीतोना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २६३ वजडाव्या गुहिरा, गुंजतां जे वाजां ॥ मकरध्वज हरख्यो घणो रे, उछव कीध विशेष रे ताजा ॥ दी, निज नगरीनु अरg, राज्यते समाजा ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ तरतज देवोए चंद राजानी उपर पुष्पनी बहुसारी वृष्टि करी. हे श्रोता जनो! ए वात जरापण असत्यने एम मनमा लावता नही. चंद राजाने माटे जय जय शब्दो सर्वत्र प्रसरी रह्या अने वीरमती नवसागरमां बूडी गइ. एवीरीते धर्मी मनुष्योना वैरी पोतानीमेलेज नाश पामी जाय. ॥१३॥ चंदराजा पोतानुं जन्मनुं साल काढी नांखीने विमलापुरीमा फरीने आव्यो तेवखते नगरने विषे जय मेखन्यानी निशानी रूपे जीतना डंका वगडाववा मांड्या. मकरध्वज राजापण बहुज हर्ष पाम्यो अने मोटो महोत्सव तेणे कर्यो. पनी पोतानुं अराज्य चंदराजाने बदीस कयु. ॥ १४॥ हरखी लकी प्रेमला रे, रहे निशदिन करजोडी रे पासे ॥ सांसारिक सुख विलसे पूरा, पुण्यने प्रकाशे ॥ ढाल तेरमी कही रे, हर्ष थयावली हर्षरे थाशे ॥ पजणे मोहन चोथे, चंदने उल्हासे ॥ १५॥ अर्थ ॥ आ वृत्तांत जाणी प्रेमला लची अत्यंत हर्ष पामी. ते पोताना स्वामिनी हजुरमा रात दिवस विनय पूर्वक रहे जे; वली पुण्यना उदयश्री सांसारिक उत्तम प्रकारना लोगविलास संपूर्ण रीते लोगवे २. सर्वना मनमां हर्ष अयो; वली पण विशेषे हर्ष श्राशे. एवी रीते चोथा उबासने विषे तेरमी ढाल मोहनविजयजीए कही. ॥ १५॥ ॥ दोहा॥ थाना श्रावी कहे विबुध, गुणावलीने उक॥चंदे वीरमती जणी, पोचामी परलोक ॥ १॥ निज नुवनकरी सुरगयो, सुणीवचन सुजगीश ॥ हरषित थ गुणावली, तेडाव्यो मंत्रीश ॥२॥ अर्थ ॥ तरतज एक देवताए आनापुरीए आवीने गुणावलीने समाचार आप्याके चंदराजाए वीरमतीने परलोक पहोंचाडी. ॥१॥ देवताए आपेला उत्तम समाचार सांजलीने गुणावली बहुज हर्ष पामी. अने देवता पोताने नुवने गयो एटले गुणावलीए मंत्रीराजने तेमाव्या. ॥२॥ तस सुरवाणी सविकही, रंज्यो सुमति प्रधान ॥ रे बार कीधां तमे, महारां पावन कान ॥३॥ खोमी मंजारी परे, कुशुकन क रती एह ॥जली थश्नावठग, थयु पवित्र ए गेह ॥४॥ अर्थ ॥ मंत्रीने देवताए कहेला समाचार गुणावलीऐ कह्या. ते सांजली सुमति प्रधान आनंद पाम्यो. तेणे कडंके हे महाराणीजी! आपे आ समाचारथी मारां कान पवित्र कर्या ॥३॥ लंगडी बिलामीनी जेम निरंतर आमी श्रावी ते अपशकुन करती हती. हवे बहु सारूं थयुंके आपणी महापीडा टली अने आ घर पवित्र श्रयु.॥४॥ वात विस्तरी नगरीए, पडद तणे उद्घोष ॥ वीरमतीनी लही खबर, सहु पाम्या संतोष ॥ ५॥ गयो शस्य नृपचंजनो, निःकं टक थयो देश ॥ हवे आनाए श्रावशे, निश्चय चंद नरेश ॥६॥ For Personal and Private Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ चतुर्थ उल्लास. अर्थ || वीरमती मरण पाम्याना समाचारनो ढंढेरो पिटावतांज श्रानगरमां ते वात फैलाइ गइ अने ते समाचार सांगतांज सर्वनां मन संतोष पाम्यां ॥ ५ ॥ चंदराजानुं साल गयुं ने देश निष्कंटक यो एवी वात लोकोए करवा मांडी ने हवे निश्चयथी चंदराजा श्राजापुरीए श्रवशे एम लोको बोलवा मांड्या ॥ ६ ॥ प्रजा मलीने पाठव्यो, विमलपुरीए प्रेष्य ॥ वेदला चंद पधारजो, वांचीने ए लेख ॥ ७ ॥ ॥ श्रापुना सर्वे नागरिकोए एकता थइ चंदराजानी उपर एक विनंति रूपे आमंत्रण पत्र पुरी पधावा लख्यो ने खेपी ने पत्र यापी विमलपुरीए मोकल्यो. ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १४ मी ॥ ॥ अजब सुरंगी हो हंजा मारु लोबडी ॥ ए देशी ॥ परम सयापी हो राणी ताम गुणावली, हेज जराणी दो जोर || सही यसमा हो कहुं वे कोई माहरी मेलवे चित्तनो चोर ॥ प० ॥ १ ॥ नवल नगीनो दो रंगनो जीनो साहिबो, सोरठ रह्यो हो लोनाय ॥ अबको चोमासो हो वासो यावी घरे करे, कोइ समजावो होय जाय ॥१०॥२॥ अर्थ ॥ एवा अवसरमां अत्यंत डाही ने चतुर एवी गुणावली राणी जेना अंतःकरणमा पोताना प्राणनाथ उपरनो स्नेह अत्यंत जोसथी उबली रह्यो तेणीए पोतानुं सर्व सखी मंडल एकतुं कर्युः छ कवा लागी के हे बेहेनो तमारामांथी कोइ एवी महारी वहाली बेहेन के मारा अंतःकरणना चोरने मे - लवी ( पकडी ) . ॥ १ ॥ नव नवा रसनो रसियो ने नुतन स्नेह रूपरत्न एवो मारो नाथ सोरठ देशमां प्रेमना लोथी पढ्यो रह्यो बे. ते या वखतनुं चोमासुं पोताने घेर यावीने करे एवी रीते कोइ जश्ने तेने समजावो तो सारूं ॥ २ ॥ बेनी साची हो प्रेमला लबी माहरी, मानव कीधो हो कंत ॥ पण एक वाते हो हुइ सोकलमी खरी, जोलव्यो नाह महंत ॥ प० ॥३॥ पियुपण पूरे हो रहीने निस्नेही थयो, गम दोहिलो हो पंथ ॥ मनकुं ए मूक्युं हो तिहां ज पहोचे नही, शी इहां शीखं दो संथ ॥ प० ॥ ४ ॥ ॥ प्रेमला बी मारी खरेखर साची बेहेन बे के जेणे मारा पतिने मनुष्य बनाव्यो परंतु एक वाते तो खरेख ते मारी शोकज निवडी बे के जेपीए मारा परमपूज्य स्वामिने जोलवीने कबजामां राख्यो बे ॥ ३ ॥ मारा स्वामिनाथ पण माराथी दूर रेहेवाथी स्नेह रहित थ‍ गया. वली त्यांजवानो रस्तो पण जायो ने महादुःखे जवा योग्य बे. वली कदाच मनने मोकलवानो प्रयास करूं पण तेनी ए शक्ति एवी नथी के त्यांजइ पहोंचे. माटे हवे मारे शुं रस्तो लेवो ते सुऊतुं नथी. ॥ ४ ॥ धम कहावे हो रहे जो नर घणुं सासरे, एम नवि जाणे हो एह ॥ पेहेली जे परणी हो वहाली घणुं घरणी तो होए, अहो केम दाख्यो हो बेद ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २६५ प॥५॥ वद्धंन लागे हो सहीतो जग माहे नवं, मूलगु नासे हो मंद ॥ कोश्न जोवे हो उग्यो पुरो पूनमे, बीजनो चाहे हो चंद ॥ प० ॥६॥ अर्थ ॥ लोकिकमां पण एवी केहेवत ने के जे पुरुष पोताने सासरे पडयो रहे ते अधम केहेवाय. ए वात ते जाणता पण नथी. वली जे पेहेली परणेली स्त्री होय ते स्वामिने बहुज वहाली लागवी जोइए तेम बतां मारा नाथ मने केम बेह देता हशे ? ॥ ५ ॥ वली जगत्मां एवी पण रीत जे के नवं होय ते वधारे वहालुं लागे. अने जुर्नु होय ते मध्यम रूपे थइ जाय. जुने पुनमनो चंजमा संपूर्ण (पुरे पुरो) उगे ने ते वखते कोइ पण तेने जोतुं नथी अने बीजनो चंजमा उगे जे त्यारे तेने जोवानी सहु चाहना राखे ॥ ६॥ प्रेमला प्यारी हो मुजने न्यारी त्रेवमी, दीगे स्यो मुज दोष ॥ साचे हुँ चाली हो पेहेला सासुने को, तेणे करी राख्यो हो रोष ॥ ५० ॥७॥ किंवातो हुई हो जिणपुर प्रीतम कूकमो, श्रावतां थावे हो लाज ॥त विहणी हो कुरी केस दिन नीगमुं, कठिन नरोथी हो वाज ॥ पा॥ अर्थ ॥ मारा स्वामिनाथने प्रेमला उपर प्यार भयो भने मारी साधे जुदाइ अझ तेमां मारो शुं दोष तेना मनमां जास्यो हशे ? मने तो एम अनुमान थाय ने के पेहेला हुँ वीरमतीने कहे चालती हती ते कारणथी मारा जपर मारा स्वामिए रोष राख्यो हशे ॥ ७॥ अथवा तो मने एम लागेने के जे नगरमां हुँ कूकडो थयो ते नगरे केम जालं एवी रीते अहीं श्रावतां मारा स्वामिने शरम लागती हशे ? परंतु हे सखियो ! मारा नाथने वियोगे ढुं कुर्या करूं ; हवे मारा दिवसो केम जशे ? कठण हृदयना माणसो पासे जोर चालतुं नथी.॥७॥ महारी रजनी हो सजनी नीने अंशुके, दीण रहे माहारे हो संग ॥ एहवी तो मारी हो विरहनी काला भाकरी, पियुविण पापीडे अनंग ॥ पणाए॥ नणदीरो वीरो हो थावे शीतलता होए,उषध एहनुं दो एह॥ नाग्य किहांथी हो मननो मेवुमो मले, धिग् एकंगो हो नेह ॥ १० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ हे सखियो ! रात्रिएज मारी खरी बेहेनपणी बे के जे मारी साथे क्षणेक पण नीनां वस्त्र सहित रह्या विना रेहेती नश्री. अर्थात् रात्रिए मारां वस्त्र आंसुथी जीनां श्रइ जाय . तेश्री तमे जाणशो के पापी अनंगना प्रतापथी मारा पतिविना विरहनी ज्वाला मने एटली बधी भाकरी थापडी ॥ ए॥ मारो नणंदनो वीरो श्रावशे त्यारेज मने शीतलता थशे. मारा विरहानि, एज औषध . परंतु एवं मारूं लाग्य क्यांथी होय के मननो मेलापी आवीने लेटे. वली धिक्कार ने एकंगी स्नेहने के तेनो मारा उपर जरा पण स्नेह नश्री अने हुं तेने माटे फुर्या करूं . ॥ १०॥ फुरतां एहवे हो आव्यो तिहां एक सुवटो,बोल्यो मधुरे हो साद॥केणे तुज उहवी हो बाइ केम तुं दयामणी,के केणे कीधो हो वाद॥ प०॥११॥ देवता नामी हो हुँ तु पंखी परगडो,कहो कोश् मुजने हो काम ॥ कंत विदेशी हो राणी कहे पुःख तेनु, रे खग गुणना हो धाम ॥ ५० ॥ १२ ॥ For Personal and Private Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ चतुर्थ उल्हास. अर्थ ॥ गुणावली ए प्रमाणे फुर्या करती हती एवे समये त्यां पागल एक सूडो ( पोपट ) श्रावीने मीठे स्वरे बोल्यो. हे बाइ ! तुं बहुज दया उत्पन्न श्राय तेवी लागे ने तने कोणे मुहवी ने अथवा कोश्नी साथे तारे कजीयो श्रयो ? ॥ ११॥ हुं जो के देखीतो पदी बुं परंतु देवताइ पदी ते मारा लायक जे का काम होय ते सुखेथी फरमावो. राणीए क के हे गुणना स्थान पक्षी राज मारो पति विदेश गयेल ने ते संबंधीज मारे मुःख वे.॥ १२ ॥ माहारो संदेसो हो तिहां पहोचाडे कोश्नही,श्हां पण नावे हो तेह ॥ अंतरगतिनी हो ज्ञानी विण जाणे नही,दोहिलो नवलो हो नेह ॥ प० ॥ १३ ॥कागल आपो हो राणीजी कहे पंखी, श्रापीश हाथो हाथ ॥ कागल नीनो हो लखता काजल थालमे, आंसुडाने हो साथ ॥ ५० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ जेम मारो संदेशो तेनी पासे को पहोंचाडतुं नथी तेम त्यांथी पण अहींआ कोश् श्रावता नथी. मारा अंतरंगना स्वरूपने ज्ञानी विना बीजु कोण जाणी शके तेम डे ? नवो स्नेह जे श्रयेलो ने ते गेडवो मुस्केल ने ॥ १३ ॥ पक्षीए कह्यु हे राणीजी ! तमे कागल लखीने मने आपो. हुं ते कागल तमारा पतिने हाथो हाथ आपीश. पजी गुणावलीए कागल लख्यो परंतु आंखोमां आंसु श्रावते लखेलो होवाथी आंसुनी साथे काजल सर्यु तेवाज आंसुनां टीपां काजलवालां, पत्रमा पड्या. ॥ १४ ॥ तेहवोज विटी हो दीधो सुवटा नणी, ते लश् चाल्यो आकाश ॥ देव प्रनावे हो कागल दीधो चंदने, विमलपुरीए सहास ॥ प० ॥ १५ ॥ कागल लीधो हो मांड्यो चंदे वांचवा,वरणन दीसे हो क्यांहि ॥ जिहां तिहां दीसे ही टपकां बांसुडा तणां, समज्यो मनडा हो मांहि ॥पण॥ १६ ॥ अर्थ ॥ एवी रीते जीनो श्रयेलो कागल तरतज वालीने ते सूडाने आप्यो. सूडो पण लश्ने आकाशम उड्यो. देव प्रत्नावथी दाणेक वारमा विमलापुरीए आव्यो अने चंद राजाने ते कागल हाथोहाथ आप्यो ॥ १५॥ पक्षीए आपेलो कागल लड्ने चंदे वांचवा मांड्यो परंतु कागल मध्येनो एक पण अक्षर बराबर ते वांची शकयो नही. कागलमां ज्यां देखे त्यां आंसुनां टीपा पडेलां हता. तेथी ते पोताना मनमां खरी वात समजी गयो. ॥ १६ ॥ आंसुने थामे हो श्रदर ए न लिखी शकी, माहारे विरहे हो एम ॥ एम रही गेहे हो एकलमी पुःखडं धरे, जनम नीगमशे हो केम ॥पण ॥१७॥ तिहां हवे जाउं हो थालं थानानो धणी,राणीनी करवी होचिंत॥ क्षण क्षण मांही हो हवे तो मुजने सांजरे, बालपणानी हो प्रीत ॥१०॥१॥ अर्थ ॥ मारा वियोगना कारणश्री (सुनी धारा पत्र लखती वखते वेहेती हशे तेथी ते एक पण अदर बराबर लखी शकी नश्री. श्रावी रीते घरमा एकली रहीने ते महा पुःखने धारण करी रही . हवे एनो जन्मारो केवी रीते जशे ? ॥ १७ ॥ हवे हुँ पण त्यां जश् आनापुरीनो स्वामि (राजा) था. हवे गुणा वलीनी फिकर मारे राखवी घटे . वली मारा मनमां तेणीनी साथे बचपणनी प्रीति होवाथी ते दणे दणे मने सांजाँज करे . ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. १६७ कागल दी हो जाणे राणीने मल्यो, चंद धरानो हो पाल ॥ मोहने जाखी हो चौदमी चोथा उल्हासनी, निपट संयोगी हो ढाल ॥ ५० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ पृथ्वीपति चंद राजाए जेवो कागल दीगे तेवो वांचतांज जाणे ते राणीने श्रापो आप मट्यो होय तेवो तेने लास थयो. एवी रीते चोथा नवलास मध्ये चौदमी ढाल मोहन विजयजीमहाराजे खरेखरी संयोगी स्वरूपनी कही. ॥१५॥ ॥दोहा॥ प्रमदा पत्र थाव्या पली, चंद थयो चल चित्त ॥ उमाह्यो थाना जणी,जन्म नूमि सुपवित्त ॥१॥ पत्नणे लबी प्रेमला,पतिने सही उदास ॥ कहो स्वामी तुम वदननी,केम नविन थानास ॥२॥ अर्थ ॥ गुणावलीनो पत्र श्राव्या पनी चंद राजानुं चित्त चलायमान अयु. पोतानी पवित्र जन्मभूमि श्रानापुरी तरफ मननुं आकर्षण थयुं ॥१॥ तरतज प्रेमलालबीए पोताना पतिने उदास देखीने पुब्यु के हे स्वामिनाथ ! आपना मुखनी कांति आजे नविन प्रकारनी केम लागे ? ॥२॥ सहीतो निजपुर सांजणु, अथवा प्रथम जे नार ॥ सोरठमीनी गोठडी,नगमी पियु निरधार ॥३॥ चढी गुणावली चित्तजो,तो हां तेडो स्वाम ॥ तास वचन लोपीश नही, थ रहीश तस पाम ॥४॥ अर्थ ॥ मने तो एम नासे बे के आपने पोतार्नु नगर सांगरी आव्यु अथवा तो प्रथमनी परणेली गुणावती याद श्रावी. हे पियुजी आपने निश्चयथी आ सोरठनी प्रियानी गोष्ठि नज गमी ॥३॥ जो आपना अंतःकरणमां गुणावली वसी होय तो तेने हे नाथ ! अहीं तेडावो. तेणीनुं वचन हुँ लोपीश नही एटलुंज नहीं पण तेनी ताबेदार थश्ने रहीश. ॥४॥ सोंप्यो देशज मुज पिता, राज्य तमारे हाथ ॥ मोढे श्राव्यो कोलीज,केम मूको बो नाथ ॥५॥ चंद कहे चंडानने,प्रजा श्ररा जक तत्र ॥ ते माटे जावं श्रवस्य, श्राव्यु तिहांथी पत्र ॥ ६॥ अर्थ ॥ मारा पिताए पोताना आखा देश- राज्य आपना हाश्रमां सोंप्यु बे तेथी ते मोढे श्रावेला कोसीआने तजवानी केम श्वा राखो बो॥ ५॥ चंद राजाए कह्यु के हे चंमुखी ! त्यां आपणुं राज्य अने प्रजा, राजाविनाना होवाथी मने तेडाववानो पत्र आव्यो ने तेथी मारे अवस्य जवु जोए.॥६॥ सीमाडा बेड्या घणां, वीरमतीए जेह ॥ तिहां जश्ने रे रागिणी, वश करवा ने एह ॥७॥ अर्थ ॥ वली हे प्रेमी प्रिया ! वीरमतीए श्रापणा राज्यनी साधे संबंध राखता सीमाडाना घणां राजाउने बेड्या ने तेथी ते सर्वेने पण वश करवी जरूर वे ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ चतुर्थ उल्लास. ॥ ढाल १५ मी ॥ ॥ राज गोडी पासजी हो दरिशन ताहारो ॥ ए देशी ॥ राज एम प्रेमलाने समजावी, राज पुरगमननी वात जणावी ॥ राज नृप चंद समो नही कोई ॥ ए यांकणी ॥ राज जइ सुसराने जणाव्युं, राज निज नगरीथी तेडुं जे श्राव्यं ॥ १ ॥ राज तिहां प्रजा वाटमी जोवे, राज जइ मलीए हुकम जो होवे ॥ राज नगरी किसी नृप पाखे, राज तृण नर पण देत्रने राखे ॥ २॥ अर्थ ॥ एवी रीते प्रेमला लखीने पोताना नगरे जवानी वात चंद राजाए विस्तार पूर्वक कही . ( कवि क) अहो चंद राजा समान बीजो कोइ नथी. पती चंद राजाए पोताना सासरा पासे श्रवीने कां के जापुरी थी अत्रे, मने तेडाववानो मारी प्रजानो पत्र आव्यो बे ॥ १ ॥ वली हे राजन् ! मारी प्रजा पण मारी राह जोइ बेटी बे. जो आपनो हुकम होय तो हुं त्यां जश्ने तेने मलुं. वली राजानी विना नगरीनुं संरक्षण केवी रीते रही शके ? एक तपखला जेवो स्वामि होय तोपण ते पोताना क्षेत्रने जालवी शके ॥ २॥ राज सुख लह्यो इहां में जगीशे, राज मुखे कतां कारमुं दिसे ॥ राज हुं तो तोल तमारो प्रसिद्धो, राज मुजने तमे मोटो कीधो ॥ ३ ॥ राज तिहां गया विण नवि चाले, राज वली विबडवं पण साले ॥ राज मनुज यो इहां रहीने, राज प्रभु पाम चडावुं हुं कहीने ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ वली हे राजन् में अपना प्रतापे हीं संपूर्ण सुख मेलव्युं; जेनुं वर्णन श्रापनी हजुरमां कर ठीक लागतुं नथी. परंतु एटलुं तो प्रत्यक्ष रीते पे मने मोटो करवामां पोतानुं महत्वपणुं बतावी युं ॥ ३ ॥ वली हे राजन् ! त्यां गया शिवाय जेम चाले तेम नथी तेमज अहींथी जनुं ते पण सायाविना रेहेतुं नथी. कारण के अहींचा रेहेतांज हुं मनुष्य थयो. ए आपनो मोटो उपगार मारा उपर बे ॥ ४॥ राज तुम सौजन्य पणा, राज नवि विसरे क्षणेक कदाइ ॥ राज अंतर कोइ मत करजो, राज सेवकने चित्तमां धरजो ॥ ५ ॥ राज कागल लखजो संजारी, राज रखे मुकता चित्तथी विसारी ॥ राज मुज अवगुण मत जो जो, राज तमे मोटा बो जारी हो जो ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ वली हे राजन् ! श्रापनी सजनता एटली विशाल बे के ते एक क्षणवार पण कदापि विसरी शकाय तेवी नथी. आप मारे माटे लेश मात्र जुदाइ राखशो नही छाने या सेवकने चित्तमां निरंतर जारी राखशो ॥ ५ ॥ वली हे राजन् ! मने निरंतर याद लावी मारी उपर पत्र लखशो परंतु कामोने सीधे रखे मने पोताना चित्तथी विसारी देता. वली मारी अनेक जूलो श्रापनी प्रत्ये थी ते मारा अवगुणने ध्यानमां लेशो नही. श्राप वडील बो अने तेवी रीते हवे पीप मुरबी पणे रहे जो ॥ ६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्६ए चंदराजानो रास. राजचंद तणी सुणी वाणी, राज सुसरानी नयण जराणी ॥ राज राज्या दिके परचाव्यो, राज तोये आजापति वश नाव्यो॥॥ राज मकरध्वज तव नाखे, राज गज विफर्यो ते कोणराखे ॥राज बांध्ये कणबीए खेती, राज कहो चंदजी थाये केती ॥ (पागंतरे) नथी तुमथी हरकत होती ॥७॥ अर्थ ॥ चंदराजानां वचनो सांजलीने तेना सासरानी आंखमां आंसु नराइ गया. तेणे विचार कर्यो के जमाइराजचंदने आपणुं राज्य देवा प्रमुखनी लालचमा नांख्यो तोपण ते आपणे वश श्रयानही अर्थात् अत्रे रह्या नही.॥ ७ ॥ पनी मकरध्वज राजा बोल्याके विफरेला (मदमां आवेला) हाथीने कोण कबजे राखीशके तेम. वलीशुं बांध्ये कणबीए अर्थात् खेमुत उपर शिरजोरी करवाथी सारी खेती अ शके तेमजे. अने कदाच थाय तोपण हे चंदराय तेमां केटलो लाल थाय? (बीजो पाठ) हे चंदराय तमारे माटे तो एम के अमे तो तमने हरकत करीए तेवा नथी. ॥ ॥ राज नूषण पेहेर्याजे मांगी, राज रहे किण विधे श्रवधि थलांघी॥ राज मन मान्यो सोदो, राज नथी तमथी हरकत होदो ॥ ए॥ राज कुमी बुधि उपजावी, राज तमे जाशो हाथ बोमावी ॥ राज पण जो हैमाथी जार्ज, राज तो जाणीए सबल कहावो ॥ १० ॥ अर्थ ॥ वली जे आजूषणो मांगीने पेहरवा आणेला होय ते कामनी मुदते विते केवीरीते राखीश काय? माटे हे चंदराय तमारे माटे तो मन मानमान्यो सोदो. नथी तमने हरकत करवी के नथी अधिकारथी तमे ललचा तेवा. ॥ ए॥ वली तमे जे अहींथी जवा संबंधी विपरित बुद्धि उत्पन्न करीतेथी अमारो हाथ गेडावीने तोजशो परंतु ज्यारे श्रमारा हैया(अंतः करण )मांथी जा त्यारेज अमेतो तमने बलवान मानीए. ॥१०॥ राज जे परदेशी कहाया, राज तेहथी खोटी माया ॥ राज रह्यानो तमे श्हां अवशे, राज खरूं प्राहुणडे घर न वसे ॥१९॥ राज परदेशी शशकने कोशी, राज एता कोश्ना हुथा न होसी ॥ राज जोलवे करी करी वाने, राज तोही चंद नृपति नविमाने ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ वली परदेशीनी साथे जे प्रीति करवी ते तदन खोटी रीतिजे. वली तमेपण अहींआ कवशे रह्यागे, कां खुशीथी रह्या नथी. तेथी अमे तो दवे समज्याके कांई प्राहुणाथी घर वसे नही. ॥११॥ वली हे चंदराय! परदेशी, ससलो अने कोसवालो ए कोश्ना श्रया नथी अने श्रशे पण नही. एवीरीते चंदराजाने अनेक रीते नोलववनी युक्ति करी परंतु चंदराजा कोशीते रेहेवानी हा पामता नथी. ॥१॥ राज चलचित्त निरखी जमाइ, राज करी दीधी ससरे सजाय ॥ राज हरख्यो थानानो स्वामी, राज विमलेशनी शीखजे पामी ॥ १३ ॥ राज श्राव्यो चंदते आप उतारे, राज निज सामंतने उपचारे ॥ राज मुकी जनके स्वबी, राज तेडावी प्रेमला लबी ॥१४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० चतुर्थ उल्लास __ अर्थ ॥ एवीरीते घणी मेहनतकर्या उतां पण पोतानो जमाइ जंचा मनवालो श्रयो ने अने गयाविना रहेशे नही एम मकरध्वज राजाने लाग्यु त्यारे तरतज तेणे विदायगीरीनी तैयारी करवा मांडी. ए तैयारी देखीने चंदराजा बहुज खुशी श्रया अने ससराजी हवे रजा आपशे एवो निश्चय थयो.॥ १३ ॥ पनी चंदराजा पोताने उतारे श्राव्या अने पोताना सामंतोने सर्व हकीकत जणावी तैयारी करवा कह्यु. अहींआ मकरध्वज राजाए पण शुद्ध अंतःकरणवाली प्रेमला लब्बीने पण तेडावी ॥ १५ ॥ राज मात तात कहे सुण बेटी, राज अमवहाली तुं गुण पेटी ॥ राज अमे चंदने घणुं वाह्यो, राज पण आजा नगरी उमाह्यो ॥ १५॥ राज ताहरूं मनडु डे केवू, राज संगे थावं के शहां रे हेQ ॥ राज लही कहे महाराया, राज जिहां काया तिहां ए बाया ॥ १६॥ अर्थ ॥ मात पिताए कह्यु के हे बेहेन! तुं तो एक गुणनीज पेटीगे अने अमने बहुज वाहलीजी तेथी तुं अहींज रहेतो सारं एवी धारणाथी चंदरायने अहीं रेहेवा घणी रीते समजाव्या परंतु तेना मनमां बालानगरीए जवानी पुरी उलट अश् ॥ १५॥ हवे तारा मनमां शुं बे ? तारे तेमनी साथे जवानो विचार के अहीश्रा रेहे ? ते सांजली प्रेमला लबीए कडंके हे पूज्यपिता! ज्यां काया होय यांज गया होय ए न्याये मारे वर्तवू. ॥ १६ ॥ राज चूकी तेम नहीं चूकू, राज हवे अलगो पियु केम मूकुं॥ राज पंदरमी ढाल सुहासे, राज कही मोहने चोथे उल्लासे ॥ १७ ॥ - अर्थ ॥ वली हे पिताजी ! हुँ जेम एक वखत नूली हती तेम हवे नूल करवानीज नथी; हवे मारा नाथने कदि अलगो मुकवानीज नथी. एवी रीते मोहन विजयजी महाराजे चोथा जहासमां पंदरमीढाल हर्ष सहित कही. ॥१७॥ ॥ दोहा ॥ पति अनुरागी प्रेमला, जनके ले। सुसंध॥जाएयुं जननीए तदा, अलिक सुता संबंध ॥१॥ प्रसवे जननी जो कोश, प्रसवो सुत निरवाण ॥ पण प्रसवो पुत्री रखे, पीयर विमुखी जाण ॥२॥ अर्थ ॥ ज्यारे मात पिताए प्रेमलां खली अने चंदरायनी वच्चे स्नेह संबंध संपूर्ण जोयो अने पुत्री तेणीना पति उपर संपूर्ण रक्त एम माताए जाण्यु एटले तेणीए विचार्युके पुत्रीनो संबंध खोटोजे अर्थात् पुत्री परणे एटले सासरेज जाय. ॥१॥ जो कोई माता जन्म आपो तो पुत्रनेज जन्म आपजो पुत्रीने जन्म न पता. पुत्री तो पोताना पियरथी विमुखीज. पोताना घर- सारं चाहे ॥२॥ नवसे उहिताए शते, तात तणो श्रावास ॥ पियरनी वेरण होवे, पहोते प्रीतम पास ॥३॥ सुतान जाणे दोहिलम, पीयरनीति लएक ॥ बुब्ध रहे नित सासरे, अहो प्रगट अविवेक ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानों रास २७१ अर्थ ॥ सो दीकरी होय तेथी कां बापर्नु घर उघाउँ रहे नही एटलुंज नहीं पण पतिनी साथे प्रीतिमां जोडातां को प्रसंगे एवं पण बने के पियरनी वैरी अश् जाय. ॥ ३ ॥ वली पीयरमां सुखी अवस्था होय तोपण दीकरी ते तरफ लइ जवानी वृत्तिथी लेशमात्र ध्यान आपती नथी. पोताना सासरी आमांज लुब्धरहे . आ केवो प्रत्यक्ष अविवेक ?॥४॥ मात पिताए मनथकी, सुपरे करी विचार ॥ प्रेमलाने संप्रेमवा, करी सजा सार ॥५॥ दान सखी वसना जरण, सेज सुवास थाहार ॥ इत्यादिक पुत्रीनणी, सोप्या करी मनोहार ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ एवी रीते अनेक प्रकारे विचार बतावी प्रेमला लन्चीनां माता पिताए तेणीने सासरे वोलाववा सारू सर्व प्रकारनी उत्तम तैयारी करवा मांडी. ॥ ५॥ उत्तम वाहनो, सुशील सखी-दासी-सुंदर वस्त्राचरणो, बत्रीपलंगादि, आसनो, उत्तम गंधवाला पदार्थो, मेवा मीगइ विगेरे अनेक प्रकारना जाता इत्यादि मनोहर पदार्थो पोतानी पुत्रीने आणामां आप्या. ॥६॥ चंदराय पण एहवे, चंचल चढी तुखार ॥ मलवा मकरध्वज नणी, श्राव्यो तिहां दरबार ॥७॥ अर्थ ॥ एवा अवसरमां चंदरायपण महातेजस्वी घोडा उपर बेसीने मकरध्वज राजाना दरबारमा तेने मलवा सारू श्राव्योः ॥ ७॥ __॥ ढाल १६ मी॥ ॥ कानुडोतो विण वजाडे ए देशी ॥ सासु ससरे चंद नृपतिने, लबी सोंपी लाना ॥ महाराज तमे कुशले देमे, पोहचो नगरी थाना ॥१॥ ए श्रमपुत्री प्रेमला लली, सोंपी त मने स्वामी ॥ एहनी लाज तमारे हाथे, कहीए ने शिरनामी ॥२॥ अर्थ ॥ चंदरायना सासु ससराए जेनाथी अत्यंत लाल थयो ने एवी प्रेमला लबी चंदरायने सोंपीने आशीर्वाद प्राप्यो के तमे कुशल देमे आना पुरीए पहोंचजो. ॥ १॥ हे राजन् ! प्रेमला लबी हवे आपने स्वाधीन करीने तेथी अमे हवे विनंति करीए बीएके एनी लाज तमारा हाथमा . ॥ २॥ ए ने लामकवाश्थलहती, नरही अलगी कयारे ॥जो एहमां कोई चूक पडे तो, मन नविषाणजो त्यारे ॥३॥ मूकतां एहने एम परदेशे, अम म नहुं नवि चाले ॥ पण पियु संगे जातां श्राडी, जीजलडी कोण घाले ॥४॥ अर्थ ॥ ए लाडकवाइने एटलुज नही पण पोतानी मरजी प्रमाणे वर्तनारी जे. अमाराथी कदापि अलगी रही नथी. जो कोई प्रसंगे तेनामां नूल श्रावीजायतो आपतो दरगुजरज करजो. ॥३॥ तेने श्रा प्रमाणे परदेश मोकलतां अमारूं मन कबुल करतुं नथी. परंतु ज्यारे तेणीने पोताना स्वामिनी साथे जवूने त्यारे तेमां कोण आडीजीन चलावे?॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ उबास. वेहेला मलजो वम जेम फलजो, रखे जो कहीए विसारो॥ए सोरग्नु राज्य तुमारूं, निश्चय अवधारो॥५॥माये पुत्री हृदय थालिंगी ये शीखलड़ी वारु ॥ पीयरनी तो लजा बेटी, सासरडे तुज सारू ॥६॥ अर्थ ॥ हवे अमारी विनंति ए के तमे वेहेला वेहेला मलवा पधारजो. वटवृदनी जेम तमारी विशालता श्रजो. अमने रखे विसारता; अने आ सोरठ देश- राज्य तमारूंज के एम निश्चयथी अवधारजो. ॥ ५॥ माताए प्रेमला लब्बीने पोताना हृदयनी साथे आलिंगन आपी सारी शिखामण आपतां कडं के जे दीकरी पोताने सासरे सारू केहेवरावे ते पीयरनी लाज वधारनारी समजवी. ॥६॥ जालवजे मन शोक सहुनु, नथी सुसरोने सासु ॥चालजे मन प्रीतमनां पूं, रोष न धरजे फांसू ॥ ७॥ जाएंई श्रमे तुं माही, को विधि नविचूके ॥ सुगुरु सुदेव सुधर्म हैयाथी, नोलपणे मत मूके ॥ ७॥ अर्थ ॥ नथी तारे सासरो के सासु तेथी तेऊना मन का साचववानां नथी. परंतु तारी जे जे शोको होय तेजनां मन जालवजे. तारा स्वामिनाथ जे जे साझा करे ते अंतःकरणथी पालजे अने विनाकारणे कोइना उपर गुस्सो करीश नही. ॥७॥ वली अमे जाणीएजी एके तुं खरेखरी डहापणवालीगे तेथी अवसरे करवा योग्य एवं कांइपण काम चूकतेवी नथी. परंतु आ एक अमारी खास ललामण ने के कोपण वखते सुदेव, सुगुरु अने सुधर्मनी बाबतमा कोइपण फसावनार आवे तो ते वखते नोली थश्नू ल करीश नही. ॥७॥ दान पुण्यनु शुं तुज कहीए, एहतो तुज डे क्रीडा ॥ कोर प्राणी मात्र जणीतुं, रखे उपजावती पीमा ए| जेम रुहुँ जाणे तेम करजे, रहेजे तुं अवलंधी ॥ दीधी शेठ तणी शिखामण, ते तो कांपा सुधी॥ १० ॥ अर्थ ॥ वली दान देवारूप पुण्यनां काम माटे तने शिखामण श्रापवानी नश्री. एतो तारी निरंतरनी लीला जे; व्यसन. ते साथे कोई प्राणीमात्रने रखे तुं फुःख आपती. ॥ए। टुंकामां एटलुंज कहीए बीएके जेम सारु लागे तेम करजे अने कोश्नी साथे विरोधमां पडीश नही. कारणके अमे गमे तेटली शिखामण आपीए तोपण शिखामण प्रमाणे नहीं चालनारने तो "शेवनी शिखामण कांपासुधी” ए कहेवत प्रमाणे थाय ने. परंतु तुं तो जेम बनेनी शोलावधे तेम करजे. ॥१०॥ एम कही माये प्रेमला लही, आंसूडे न्दवरावी, पुत्रीए पण विडमवा गति, सकल पुरीए जणावी ॥ ११॥ सही सुरंगी लघुवय संगी, प्रे मला कंठे लागी॥तार स्वर निसुणीने तेहना, सुरनी निझा नागी॥१॥ अर्थ ॥ ए प्रमाणे शिखामण आपतां प्रेमला लबीने तेणीनी माताए अश्रुपात करतां न्हवरावी दीधी. पुत्रीए पण पोताने वियोगथी अतुं सुःख आखा नगरमां लोकोना जाणवामां आवे तेम फेलावी दीg. ॥११॥ बाल्यावस्थाथी प्रेमना रंगे रंगाइ गयेली उत्तम सखी प्रेमला लजीने जेटीपडीने उंचा स्वरथी एवी रीते रूदन करवा लागीके ते स्वर सांजलीने देवताउनी निजापण जती रही ( देवोने निजा होती नथी परंतु वियोग समयना रुदननी प्रचुरता जणाववामाटे अतिशयोक्ति मूकेली).॥ १२ ॥ For Personal and Private Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २७३ प्रेमलाने वीबमवा वेला, खेचर रह्या रथ खेंची ॥ तेह समय वर्णवता सुरगुरु, केरी पण मत वेंची ॥१३॥ हली मली सहु कोश्ना मननी, साथे सुखडी लीधी ॥ सहु नयणथी उदर जरीने,प्रीति सुधारस पीधी॥१४॥ अर्थ ॥ प्रेमला खजीनो वियोग यती वखते जे करुणारस उचलतो हतो ते जोतां विद्याधरोनां विमानो पण स्थंनाइ रह्यां. विशेषतो शुं कहीए पण ते समयनुं वर्णन करवाने बृहस्पति बेसे तो तेनी बुद्धिपण घुचवणमां पडे तेम हतुं. ॥ १३ ॥ सर्वनी साथे हलीमलीने तेऊना अंतःकरणनी प्रेमरूप सुखडीनो सर्व कोइए अरस परस स्वादलीधो एटलुंज नहीं परंतु अरस परसनी प्रेममय दृष्टिमेलाप रूप अमृत रसनुं पान सर्वेए तृप्तश्रतां सुधीकर्यु. ॥ १४॥ चंद ललाटे तिलक कंकुनु, करी तंऽल प्रतिनावी ॥ मानुए निषधाचल उपर, चंडकला मली श्रावी ॥१५॥ पूरव पुण्यना पिंम सरि, नाली केर फल दीधुं ॥ चंदे प्रेमलाए परियाणु, थाना साहामुं कीg ॥१६॥ अपनी चंदराजाना ललाटमां कंकुनुं तिलक करी उपर चोखा चोड्या ते जाणे निषधाचल पर्वत उपर चंडकलाऐ देखाव आपवा रूप नास भयो. ॥ १५॥ पनी हाथमां श्रीफल आप्यु ते जाणे पूर्वना पुण्यनुं पिंम आप्यु होय तेवो देखावथयो. तेश्रतांज चंदराय अने प्रेमलालचीये श्राजापुरी तरफ प्रयाण कर्यु १६ वागी नेरी तबल नफेरी, थयो मकरध्वज संगे ॥ श्राव्यो विमल पुरीने चटे, चंद घणे मन रंगे ॥ १७ ॥ करे प्रशंसा पुरजन सघला, गीत युवतीये गाव्यो॥पाहुणडो को चंद सरिखो, नविजाण्यो को श्राव्यो॥१०॥ अर्थ ॥ ते वखते प्रयाण समयना डंका-ढोल-निशान-लेरी नफेरी आदि वाजिंत्रो वागवा माड्यां. मकरध्वज राजापण साथे वोलाववा गया. एम चालता चालतां विमला पुरीना चौहटामां चंदराजा हर्षनर आव्या.॥ १७ ॥ ते समये नगरना सर्वे लोको तेनी प्रशंसा करवा लाग्या. सुंदरी गीत गावा लागी. लोको बोलवा लाग्याके चंदराजा समान को मेमान अत्यार सुधी विमलापुरीमां आव्या नथी. ॥ १० ॥ थाना नूपति प्रेमला लली, जोडी ए चिरंजीवो ॥ वेहेलां एह पधारजो पुरमां, करशुं मंगल दीवो ॥१॥ चंद नृपति एम अधिक महोत्सव, श्रीसिकाचल श्राव्या ॥ स्वसुरादिक जन व्रजथी पेहेला, श्रीजिनपति गुण जाव्या ॥२०॥ अर्थ ॥ चंदराजा अने प्रेमला खलीनी जोडी चिरंकाल रेहेजो एम लोकोए श्राशीवाद श्राप्यो. वली विनंति करीए बीए था नगरमां आप वेहला वेहेला पधारजो. तमो पधारतां अमो मंगलदीवो करशु.॥ १ए॥ए प्रमाणे महा महोत्सव प्रवर्त्तते चंदराजा श्री सिघाचस गिरिराज समीपे आव्या अने ससरा प्रमुख सर्वे परिवारथी जुदा पडतां पेहेलां तेमणे श्री जिनराजना गुणोनुं स्तवन कयुः ॥ २० ॥ कहे मोहन इहां चोथे उसासे, सुललित सोलमी ढाले ॥ मानव जव सुकीयारथ कीधो, श्री श्री चंद लुपाक्षे ॥१॥ अर्थ ॥ मोहन विजयजी महाराजे आ चोथा उवासमां सुललित सोलमी ढाल कही जेमां कयुके श्री चंदराजाए पोतानो मनुष्य लव सुकृतार्थ कर्यो. ॥ २१॥ ३५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ चतुर्थ उल्लास. ॥दोहा॥ नेटी विमलाचल विमल, तलहटीए नृपचंद ॥ श्रावीने कीधां विदा, स्वसुरादिक सानंद ॥१॥ मकरध्वज विमलापुरी, पोहतो मांगी शीख ॥ चाल्यो चंद नरिंदवर, थानाप्रति सहरीष ॥२॥ अर्थ ॥ पवित्र सिगिरिराजने लेटीने तलेटीए श्रावतां चंदराजाए मकरध्वज राजा प्रमुख सर्वने आनंद सहित विदाय कर्याः ॥ १॥ मकरध्वज राजा रजा लश्ने विमलापुरीए आन्या. पनी चंदराजाए हर्षे सहित आजापुरी तरफ प्रयाण कयु. ॥२॥ पजणे चंद यश शिवकुंवर, नित करे नाटारंज ॥ प्रतिदिन पं थते अतिक्रमे, वाजत मंगल नंन ॥ (पागंतर) देखत श्रवनी अचंन ॥३॥ जोतां देश विदेश बहु, मेली सैन्य अनंत ॥प्र तिपुर नृपति अंगजा, पग पगचंद परणंत ॥४॥ अर्थ ॥ रस्तामां शिवकुंवर नट चंदराजाना यशोगान करे. निरंतर नाटारंन करेने. दररोज मार्गने मंगल नावाजते उलंघेडे अने जगतना आश्चर्यकारी पदार्थो अवलोकन करता चाट्या जाय ॥३॥ अनेकदेशविदेश जोता जोता अने अगणित सैन्य एकतुं करता चाड्या जाय अने दरेक शेहेरना राजानी पुत्रीने चंदराजा डगले मगले परणता ॥४॥ श्राव्यो पोतनपुर वरे, चंद कटक सरतीर ॥ लीलाधर पण तेह जदिन, श्राव्यो गृहे गुहीर ॥५॥ पति अनुमति लीलावती, चंदनोतर्यो धीर ॥ संतोष्यो जोजन विधे, नगिनीये वीर ॥६॥ __ अर्थ ॥ पोतनपुर नगरे श्राव्या; चंदराजानुं सैन्य सरोवरना किनारा उपर उतर्यु. लीलाधर पण तेज दिवसे परदेश गयेलो पोताने घेर आव्यो. ॥ ५॥ पतिनी आज्ञालश्ने वर्तनारी लीलावतीए महा धैर्यवंत चंदराजाने पोतानेघेर आमंत्रण कयुः अने ते धर्मनी बेहेने पोताना शुरवीर धर्मबंधुने अनेक प्रकारना जोजनादिकथी संतोष पामवा रूप कार्य कयु. ॥ ६॥ नृप सासरवासोकरी, श्राव्यो सैन्य मोकार ॥ अर्ड निशाये जे थयो, ते सुणो अधिकार ॥७॥ अर्थ ॥ चंदराजाएपण पोतानी धर्म लगिनीने (लीलावतीने ) करीयावर रूप मुल्यवान वस्तु थापी, पनी पोताना सैन्यमां श्राव्यो. बाद अर्धरात्रिये जे वृत्तांत बन्यु ते सर्वे अधिकार हे श्रोताजनो! तमे सांजलो ॥७॥ ॥ ढाल १७ मी॥ ॥ पुण्य प्रशंसीये ॥ ए देशी ॥ सुरपति सुर समुदायमारे, एहवे पजएयु वचन्न ॥ जंबु नरतमांहे वसेरे, चंद महीधर धन्य रे ॥ शील सेवो सदा ॥१॥ नरने जास प्रसादेरे, For Personal and Private Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ चंदराजानो रास. मुःखन होवे कदा ॥ ए आंकणी ॥ नर सुर जगत् अनेकडे रे, चंद समो नहीं कोय ॥ निज दारा संतोषीरे, एसरीखा कोणहोयरे॥ शीला॥ अर्थ ॥ देवलोकमां इंचमहाराजाए देव सन्नामां एवं कडंके जंबुधीपना नरत क्षेत्रमा श्राकालमां चं दराजा वसे ने तेने धन्य . ( कवि कहे के हे नव्यजीवो तमे निरंतर शियल व्रतर्नु सेवन करो तेना पसायथी तमने कदापि सुख प्राप्त अशे नही.॥१॥ जगत्मां देवो अने मनुष्यो पारवगरनाले परंतु चंदराजा समान, मात्र पोतानी स्त्रीमांज संतोषी एवो ब्रह्मचर्य पालनार कोइ नथी. ॥२॥ माये विहंग को हतो रे, पण निज शिल प्रनाव ॥ सिझाचल फरसे थयो रे, पाडो वली नरराव रे ॥ शील ॥ ३॥ शियल चूकावे जे एहनो रे, ते नही को संसार ॥ मेरु चलेतो एचलेरे, जाणो सहु निरधार रे ॥ शील ॥४॥ अर्थ ॥ पोतानी उरमान माताए पदी बनाव्यो हतो परंतु पोताना शियसना प्रनावश्री सिद्ध गिरिराजनो फरस अतांज पागे मनुष्य रूप थयो . ॥ ३ ॥ आ संसारमा तेना शियलवतमां नंग करावे तेवो कोई देखातो नथी. तमे सर्वे खात्रीथी मानजो के जो मेरु पर्वत चलेतोज ते चलायमान थाय.॥४॥ एक सुर श्रण सहतो थको रे, चंदतणी सुप्रशंस॥श्राव्यो शियल चुकाववारे, निशि पोतानपुर अंश रे॥ शीलम् ॥५॥ रजनी मध्यने अवसरे रे, कीधो खे चरी वेश ॥ निरखी त्रिजुवन मनचले रे, मायारूप विशेष रे ॥ शील ॥६॥ . अर्थ ॥ ते सलामध्येनो एक देव इंजनांवचनो रूप चंदराजानी प्रशंसाने नही सहन करवाथी अर्थात् ते वचनो उपर तेने श्रद्धानहीं बेसवाथी, चंदराजाने शियलथी नष्ट करवा सारु ते ते रात्रिए पोतन पुर नगरे आव्यो.॥५॥ मध्यरात्रिने समये तेणे एक विद्याधरीनो वेश धारणकर्यो; अने महा मोहजनक एवी तो शरीरनी सौंदर्यता रची के ते देखतांज त्रणनुवनना पामरजीवोनां मन चली जाय. ॥६॥ रुदन करे उंचे स्वरे, रही एकांत प्रदेश ॥ निसुणी चंद नरेसरु रे, अचरिज लह्यो सुविशेष रे ॥ शील० ॥॥ कुण पुःखणी रणमा रके रे, एकली माजम रात ॥ खड्ग लश्ने एकलो रे, चाट्यो चंद विख्यात रे ॥ शीलम् ॥ ॥ अर्थ ॥ ते स्थलना एकांत नागमां बेसीने तणीए उंचे स्वरे एव॒तो रुदन करवा माङ्यु के चंदराजाने ते सांजलतांज अत्यंत आश्चर्य उत्पन्न थयु. ॥ ७॥ श्रावी घोर अंधारी मध्यरात्रिए था जंगलमां रमे एवी कोण मुखीयारी हशे. मारे तेनो तपास करवो जोइए एवो निश्चयकरी हाथमां खड्ग लश् चंदराजा चाट्यो. शब्दे शब्दे निकुंजमां रे, श्राव्यो नारी समीप ॥ दिने मदन दिपालिका रे, जगमग जूषण दीप रे ॥ शील ॥ ए॥ कहे नरवर वनिता करे रे, केम ए वमो श्राकंद ॥ कहे मुजने शंकीश मारे, टालीश हुँ दुःख फंद रे ॥ शील॥१॥ अर्थ ॥ क्याथी शद्ध आवेळे एम श्रावता शद्वनी दिशाने साधतो वननी घटामां ते स्त्रीनी पासे श्राव्यो. तेनी समीपे श्रावतां ते स्त्री साक्षात् कामदेवनी महाज्योति रूप दिवाली सदृश अने सुंदर अलंकारोथी विजूषित श्रयेसी दीनी. ॥ ए॥ चंदराजाए कह्युके हे स्त्री आवीरीते अत्यंत जोरथी रुदन करवानुं शुं कारणबे? मारीपासे कांइपण शंका नहीं राखतां कहीदे. दुं तारं फुःख टालीश ॥१०॥ For Personal and Private Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ चतुर्थ उल्लास. एम निसुणी सुर उपदिशे रे, सुणो श्रजापति वात ॥ हुं हुं खेचर पुत्रिका रे, मुज अवदात रे ॥ शील० ॥ ११ ॥ खेद धरे खटपट करेरे, मुजश्री प्रति जरतार ॥ कपटकरी परहरी गयो रे, आज ए वनद मोजार रे ॥शील० ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ ते सांजलीने देवताए कछु के हे आजानगरीना राजा मारी हकीकत ध्यान दइने सांजलो. हुं विद्याधरनी पुत्री. मारूं वृत्तांत केहेवा योग्यनथी. तोपण ॥ ११ ॥ हकीकत एकीबे के मारो पति मारी उपर बहुत गुस्से थयो बे; छाने तेथी मारी साथे बहुज कपटथी वरतेबे. ते या वनमां मने तजी दइने चायो गयो. ॥ १२ ॥ कोइ न करे तेम करी गयो, प्रीतम कपट जंमार ॥ हुं अबला हवे माहरो रे, जाशे केम अवतार रे, ॥ शील० ॥ १३ ॥ मुजकरुणावस्र सांजलीरे, याव्यात महाराज ॥ जो तमे मजने संग्रहो रे, तोजगवाधशे लाजरे ॥ शील० ॥ अर्थ ॥ जगत्‌मां कोइ नकरे तेवुं ए करीने चाल्यो गयो. ते कपटनो कारडे. हुं अबला होवाथी ह मारो अवतार केवीरीते जाशे ॥ १३ ॥ मारो दयाजनक स्वर सांजलीने तमे हीं पधार्याबो. तेथी जो हमने अंगीकार करशो तो जगत्मां आपनी कीर्त्ति बहुज वधशे ॥ १४ ॥ साची निवहो जो क्षत्रियता रे, तो मत के हे जो नाकार ॥ राखो मुजपत्नि करीरे, करो विचार लगार रे ॥शील० ॥ १२५ ॥ पातिक प्रार्थना जंगनु रे, जाणो प्राणा धार ॥ शरण श्रव्याने जवेखशो रे, बांधोबो जो तरवार रे || शील० ॥ १६ ॥ ॥ अर्थ ॥ जो आप क्षत्रियपणानुं निमान राखता हो तो मने नाकारो करता नही. मने पोतानी - धगनाकरीने राखो अने ते बाबतमां जरापण बीजो विचार करो नही. ॥ १५ ॥ हे प्राणाधार ! कोइनी प्रार्थना जंग कर्यानुं पाप अतिशय बे ते पजाबोबो माटे जो तरवार बांधता होतो शरणे आवे सीने तजशो नदी ॥ १६ ॥ जननी कोइ शुराजणे रे, तुमजेवा महीपाल ॥ सतरमी चोथा उल्लासनी रे, पजणी मोहने ढाल रे ॥शील० ॥ १७ ॥ ॥ तमारा जेवा शुरवीरने हे राजन् कोइकज माता जन्म श्रापेढे. एवीरीते चोथा उल्लासमां मो. विजयजीए सतरमी ढाल कही. ॥ १७ ॥ Jain Educationa International ॥ दोहा ॥ ता वचन सुकरी, कहे चंद मतिवंत ॥ एवं म कहे तुं मा नुनी, प्रयुक्त वचन अनंत ॥ १ ॥ स्त्री जे परनर जोगवे, तेमें केम संग्रहाय ॥ मी पण एवं थयुं, उत्तम जने नजमाय ॥ २ ॥ अर्थ ॥ ते स्त्रीनां वां वचनो सांजलीने बुद्धिशाली चंदराजाए कह्युं के हे स्त्री वा अत्यंत घ टीत वचनो तुं बोल नही. ॥ १ ॥ जे स्त्रीने बीजो पुरुष जोगवे ते स्त्रीने हुं केवीरीते अंगीकार करीशकुं ? जोजन गमे तेवुं मीतुं होय पण जो ते एवं थयुं तो उत्तम मनुष्य ते खाय नही. ॥ २ ॥ For Personal and Private Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० चंदराजानो रास. बोट्यु अवरनुं श्रादरे, के बलिजुक् शियाल ॥ मृगपति ते करि वर जखे, श्राप जरीने फाल ॥३॥ घेली सुंदर वदनथी, तुल वचन म प्रकाश ॥ कहेतो तुज पति मेलवं, को करी श्रायास ॥४॥ अर्थ ॥ बीजानुं बोटेलुं तेतो कागडो-कुतरोके शियाल खाय. परंतु केशरीसिंह तो शिकार करीने उत्तम हस्तिनुं लक्षण करे. ॥ ३॥ हे गांडी! आवा सुंदर मुखथी एवा तुन्छ वचन बोल नहीं. तुं जो हजी कहेतो कोइपण प्रकारे मेहेनत करी तारा स्वामिने मेलवी आ. ॥४॥ जे जगमां अकुलीन नर, ते परस्त्री रत होय ॥ पण उत्तम कुल उपजी, निंदित नकरे कोय ॥५॥ सुणी वचन एम खेचरी, रोष करी कहे एम ॥ जोतुं मुज नहीं श्रादरे, तोतुं क्षत्रिय केम ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ जगत्मा जे कुलीन पुरुषो केहेवाय ने ते परस्त्री लंपट होताज नथी. परंतु जे उत्तम कुलमा उत्पन्न थयेला होय तेढ कोइपण प्रकार- निंदा करवा योग्य काम करताज नश्री. ॥ ५॥ चंदराजानां एवां वचनो सांजली खेचरीए गुस्से थश्ने कंधु के हे राजा जो तुं मने अंगीकार नहीं करीश तो तुं क्षत्रिय केम केहेवाश्श. ॥ ६॥ स्त्री हत्यापातिक तने, देश अहो राजन् ॥ नही तो कहुं बु माहरूं, वचन अनोपम मान ॥ ७॥ अर्थ ॥ हे राजन् हवे ओवटे तने कडं बुं के तुं जो मने नहीं अंगीकार करतो हुँ आत्मघात करीश अने तेथी तने स्त्री हत्यानु पाप लागशे तेथी मने अंगीकार करवारूप मारूं अनोपम वचन तुं कबुखकर.७ ॥ ढाल र मी ॥ ॥ कंत तमाकु परिहरी ॥ ए देशी ॥ विद्याधरीने नृप कहे, रे सुजगे सुणवात ॥ मोरा लाल ॥ स्त्री वध पातिकथी घणो, शील नंग उतपात ॥ मो० ॥१॥ लूखो ललना विषयनो ॥ ए श्रांकणी ॥ चंद चंद श्रनुकार ॥ मो० ॥ जास प्रशंसे सुरवरा, धन एहनो अवतार ॥ मो० ॥ सु० ॥॥ अर्थ ॥ विद्याधरीने चंद राजाए कडं के हे सुनगे ! मारी वात सांजल. स्त्री वधना पापथी शियलना जंगर्नु पाप अतिशय मोटुंबे. स्त्रीनो विषय लुखोनिर्माट्य . कवि कहे जे के चंद राजा चंञसमान निर्मल जे. जेनी इंच पण प्रशंसा करे ने तेना अवतारने धन्य जे. ॥१॥२॥ वैदेही रघुपति तणी,अपहरीने दश कंध ॥ मो॥ हेमपुरी करथी गमी,जाणे सहु संबंध ॥ मो० ॥ लू० ॥३॥ पांचाली पद्मोत्तरे, अपहरी यश श्यो लीध ॥ मो० ॥ साहामी श्रमर कंकापुरी, जटिल विलेपन कीध ॥ मो० ॥ लू ॥४॥ अर्थ ॥ रामचंद्रजीनी पत्नी सीतार्नु रावणे हरण करवाश्री सुवर्ण लंका गुमाववानो समय श्राव्यो र For Personal and Private Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ चतुर्थ उल्लास. वृत्तांत सर्व कोइ जाणे ॥ ३ ॥ द्रौपदीनुं पद्मोत्तर राजाए हरण करीने शुं यश संपादन कर्यो ? उलटी श्रामरकंका नगरी गुमावतां कृष्णे स्त्रीनो वेश धारण करावी बोडयो. ॥ ५॥ अहल्या माटे इंद्रने, शाप्यो गौतमे जाण ॥ मो० ॥ हरि दशशत जगनो थयो, कहे एम प्रगट पुराण || मो० ॥ लू० ॥ ५ ॥ जस्मतो जस्मांगद थयो, तुहिन कन्याने देत ॥ मो० ॥ एतो जाणे बे सदु, शैविमत संकेत || मो० ॥ लू० ॥६॥ ॥ वली पुराणमां पण प्रगट कथा बे के अहल्या साथे इंद्रे व्यभिचार करवाथी गौतम शषिए तेने शाप दीधो हतो जेथी इंद्र हजार योनिवालो थयो ॥ ९ ॥ वली हिमाचलनी पुत्री उपर जस्मांगद कामांध थयेलो होवाथी ते जस्म थइ गयो एवी शिवपुराणनी वात सदु कोइ जाऐ बे. ॥ ६ ॥ एम परदारा श्रादर्ये, केणे कीधी लील ॥ मो० ॥ सुखीया ते नर जाणजे, जे कोइ पालशे शील ॥ मो० ॥ लू० ॥ ७ ॥ जवसागर फरवा तणी, परस्त्री बेमी समान ॥ मो० ॥ परणीता परिहारते, वे शिव लब्धि निदान || मो० ॥ लू० ॥८॥ ॥ एवी रीते परस्त्रीने अंगीकार करवाथी संसारमां को सुखी श्रयुं बे? सुखीयातो तेज पुरुषो बे के जे निरंतर शियलव्रत पाले बे ॥ ७ ॥ जवसमुद्रमां डुबी रेहेवा माटे परस्त्री ते लंगर समान बे, छाने परणेलीनी साधे पण ब्रह्मचर्यनुं पालवं बे ते मोक्ष प्राप्त करवानुं कारण बे. ॥ ८ ॥ परनारी जारी शिला, बुडाड्या नर कोम ॥ मो०॥ जव कूपकनो तेहथी, पाम्या नही कां बोम || मो० ॥ लू० ॥ ए ॥ पररमणीना प्रसंगयी, लदे दुःख ललित कुमार || मो० ॥ तेहवो मूरख हुं नही, जे रऊलुं संसार || मो० ॥ लू० ॥१०॥ ॥ अर्थ | परनारी रूप महाजारी शिलाए या संसार समुद्रमां कोमोनरोने बुकाडेला ने जे हजु सुधी तेमांथी बुटकारो मेलववाने शक्तिवान थया नथी ॥ ए ॥ परस्त्रीनी श्रासक्तिथी जेवुं दुःख ललित कुमारे प्राप्त कयुँ, तेवुं दुःख संपादन करवाने संसारमां रऊलवा हुं तैयार थाउं एवो हुं मूर्ख नथी. ॥ १० ॥ तुज पातिकथी बीहते, केम कीजे व्रत जंग ॥ मो० ॥ पावक दुःख एक जव तो, जव जव दुःख अनंग || मो० ॥ लू० ॥ ११ ॥ तुं मुज बेहेनी धर्मनी, अथवा धर्मनी मात ॥ मो० ॥ तुं उत्तम कुलनी सुता,न घटे ए तुज वात ॥ मो० ॥ लू०॥१२॥ अर्थ ॥ तुं आत्म हत्या करीश ए पापथी बीक धारण करीने हुं मारा व्रतनो जंग केवी रीते करी शकुं ? अग्निनुं दुःख एक जव माटे बे ने कामाग्निनुं दुःख जवो जव प्राप्त थाय बे ॥ ११ ॥ तुं मारी धर्मनी बेहेन वो अथवा धर्मनी माता बो. बेवटे कहुंं के तुं उत्तम कुलनी पुत्री होवाथी तने वी वात करवी घटती नथी. ॥ १२ ॥ नृप वचने सुर हरखीयो, विरमी खेचरी रूप || मो० ॥ सुर रूपे परगट थयो, पाम्यो विस्मय जूप || मो०||लू०||१३|| सुर कहे हो खाजा धणी, जेम प्रशंस्यो इंद ॥ मो० ॥ दीठो में तुज तेहवो, सुप्रसन्न मुख अरविंद || मो० ॥ लू० ॥ १४ ॥ ॥ चंदरायनां वा वचनोथी देवता हर्ष पाम्यो. ते विद्याधरीनुं रूप फेरवी देव रूपे प्रगढ़ थयो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ए जेथी राजा अत्यंत आश्चर्य पाम्यो ॥ १३ ॥ देवताए कडं के हे आना नगरीना स्वामी जेवी इंज महाराजे तमारी प्रशंसा करी तेवाज कमलना जेवा प्रसन्न मुखवाला तमे शियलवंत गे एवी मने खात्री अश्.१४ जननी धन्य जे तुज जण्यो, पुत्र रत्न शीलवंत ॥ मो० ॥ न बढ्यो मुज माया थकी, धीरज गिरथी अनंत ॥ मो० ॥ खून ॥ १५॥ कुसुम वृष्टि देवेकरी, नृपना प्रणमी पाय ॥ मो० ॥ सुर पहोतो निज थानके, हर्ष हृदय न समाय ॥ मो० ॥ खू० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ तमारी माताने धन्य ने जेणे आवा शियलवंत पुत्र रत्नने जन्म आप्यो. तमे मारी रचेली मायाना फंदमां न फस्या तेथी तमाळं धैर्य मेरू पर्वतश्री पण घणुं मोटुं ॥ १५॥ पनी देवताए तेना उपर पुष्पनी वृष्टि करी अने राजाने नमस्कार करी अंतःकरणमां अत्यंत हर्ष धारण करतो देवता पोताने स्थानके पहोंच्योः ॥ १६॥ श्राव्यो प्रेमला सन्निधे, तत्क्षण चंद नूपाल ॥ मो० ॥ चोथा उसासे अढारमी, मोहने पत्नणी ढाल ॥ मो० ॥ ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ चंदराजा पण तरतज प्रेमला लची पासे आव्या. ए प्रमाणे चोथा उलासमां अढारमी ढाल मोहनविजयजीए कही. ॥१७॥ ॥ दोहा ॥ प्रात हु उदयो तपन, चंद नूप कुल नाण ॥ शीख लही मुख बेहेननी, थाना कयुं प्रयाण ॥१॥ साध्या पंथे जनपद घणां, प्रणमाव्या नृप कोनि ॥ परणी तरूणी सात,सेंदेव वधूनी जोमि ॥२॥ अर्थ ॥ प्रातःकाल यो अने सूर्योदय थतांज पोताना कुलने विष सूर्य समान एवा चंदराजाए ली. सावती बेहेननी रजा लश् आलापुरी तरफ प्रयाण कर्यु ॥१॥ रस्ते जतां अनेक देशोने साधतां कोडो राजाने ताबे कर्या. वली देवांगना सदृश एवी सातसो स्त्री साथे पाणि ग्रहण कर्या. ॥२॥ एम अधिके श्रागंबरे, वाजते विजय निसाण ॥ दीग नयणे अनुक्रमे,श्राजापुरी अहिगण ॥३॥ पामी शुधि गुणावली,हरव्यो सुमति प्रधान ॥ पुर अधिकारी प्रमुखथी, नेट्यो शशि राजन ॥४॥ अर्थ ॥ एम अत्यंत आडंबर सहित विजयना मंका वगडावतां अनुक्रमे तेचैनी दृष्टिए आनापुरीनां ऐंधाण प्राप्त थयां ॥३॥ गुणावली राणीने समाचार मलतांज ते अने सुमति प्रधान अत्यंत हर्ष पाम्यां अने नगरनी प्रजा तथा सर्व अधिकारी ममलने साये लश् मोटा आडंबर सहित सामैयुं लश् आवीने चंद रायनी सर्वेए जेट लीधी. ॥५॥ सनमानी संघली प्रजा, चंदे लह्यो आनंद ॥ कुशल प्रश्न पाम्या सकल, उदित उल्हास अमंद ॥५॥ घर घर थयां वधामणां, प्रगट्यो प्रेम अंकूर ॥ थर फरी श्राजापुरी, श्राव्ये चंद सनूर ॥ ६ ॥ For Personal and Private Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० चतुर्थ उदास. अर्थ ॥ चंदराजाए आनंद सहित सर्व नागरिक जनोनुं सन्मान कर्यु. पनी देम कुशलनां प्रश्नो पुरता अत्यंत आनंदोत्सव प्रगट थयो ॥ ५॥ घरे घर आनंदनी वधाळ श्रश्. प्रेमना अंकुरा अरस परस प्रगट श्रया, अने चंद राजा श्राववाथी आनापुरी पण फरीने तेजोमय श्रश्. ॥ ६॥ नरनारी नृप निरखवा, टोले मल्या अनंत ॥ नृप पुर पेसारो करे, जट्ट बिरूद बोलंत ॥ ७॥ अर्थ ॥ नरनारीना अगणित समुदाय चंद रायने निरखवा गमे गम एकत्र थया अने चंदराजाए जाट चारणो बिरूदावली बोलते नगरने विषे प्रवेश कर्योः ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १ए मी॥ ॥ मुंबखमानी देशीमां ॥ पूरमां पेसारो कर्यो रे, नूपे हर्ष अतीव ॥ सुरंगव धामणां ॥ जेम असंख्य प्रदेशथी रे, घट मांही जेम जीव ॥ सु ॥ १॥ मुख आगल रथ सातसें रे, चाले चौटा विचाल ॥ सु०॥ जिन मत नयसाते तणारे, सात सयां चक्रवाल ॥ सु० ॥ २॥ अर्थ ॥ चंद राजाए हर्षजर आनानगरीमा जेम असंख्य आत्म प्रदेशवालो जीव शरीरमा प्रदेशो सहित प्रवेश करे तेवी रीते प्रवेश करतो हवो ॥ १॥ वली सामैयामां चौटा मध्येश्री सातसो रो श्रागल चालता हता ते जाणे स्याद्वाद मतना सात नयोना प्रकारांतरे श्रयेला सातसो जेदना जेवा शोजता हता.॥॥ हलक्या मदऊर गजतणा रे,करता अलिऊंकार ॥ सु॥ सुणीये सुयश मृदंगना रे, प्रगव्या मधुर धोंकार ॥ सु० ॥३॥ चपल तुरंगम कुदतारे, कीरति नदीना तरंग ॥ ॥ पंच रंग नेजा फरहरे रे, जेवा विजयना अंग ॥ सु॥४॥ अर्थ ॥ जेना कुंजस्थलमांथी मदफरी रह्यो चे अने जेनी फरता जमरा गुंजारव करी रह्या ने एवी हाथीनी शोला विशेष के. वली सुंदर यशनो अवाज करता एवा मधुर स्वरवाला मृदंगोनो नाद पण संजलाय ॥३॥ अत्यंत वेगवाला अश्वो कुदी रह्या मे ते जाणे कीर्ति रूपी नदीना मोजा नबलता होय तेवा नासे . वली विजयना अंगत एवा पंचरंगी वावटा गम गम फरकी रह्या बे. ॥४॥ दीपे पायक दल जनुं रे, नौतम ज्योतिष चक्र ॥ सु॥ चंद विराजे तेहमां रे, लंबन रहित अवक ॥ सु० ॥ ५॥ त्रंबाबु गुजे घणा रे, जल धर ध्वनि अनुकार ॥ सु० ॥ मंगल तूर जिल्बी रवेरे, वरसे वसु जलधार ॥ सु० ॥६॥ अर्थ॥ सुशोनित एवं पायदल जाणे नवीन ज्योतिष चक्र-मंडल होय तेवू लासमान थइ रघु ने तेमां खंडन वगरनो तथा सरल एवो चमराय चंजमानी जेवो बिराजे ॥ ५॥ मेघना गर्जारवनी जेम नोबतो गडगडी रही , तेमज मंगलमय वाजिंत्रोनो ध्वनि तमराऊना ध्वनि जेवो थइ रह्यो . ते साथे खमीनो वरसाद वरसे ॥६॥ For Personal and Private Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. . १ पग पग प्रणमे पुरजनारे, कहे सहु थ वाचाल ॥ सु० ॥ जोतां श्रमे चातुक परे रे, तुम श्रागमनी वाट ॥ सु० ॥ ७॥ आज कृतारथ सहु थयारे, देखी नवल देदार ॥ सु० ॥ तमे स्वामी चिर प्रतपजोरे, प्रजाना प्राणाधार ॥ सु० ॥॥ अर्थ ॥ नागरिकजनो पगले पगले प्रणाम करतां, सर्वे वाचाल अश् कहेता हवा के हे महाराज ! अमे चातुक पदी वरसादनी जेम तेम आपनी राह जो बेग हता ॥ ७॥ आपना पधारवाधी श्रापर्नु देदीप्य मान स्वरूप जोश्ने अमे आजे सर्वे कृतार्थ श्रया बीए. हे महाराज! आप दीर्घकाल प्रकृष्ट पणे तपजोआपनो प्रताप वधजो. श्राप प्रजाना प्राणाधार बो.॥॥ चंद प्रजा सनमानतो रे, गजस्थित देतो दान ॥ सु० ॥ नाखे मनु पीयुष बटा रे, नगरी प्रते बहु मान ॥ सु० ॥ ए॥ जोली टोलीये मली रे, गाय मधुरां गीत ॥ सु०॥ सुर गायनी एदवी रे, न लहे गाननी रीत ॥ सु० ॥१०॥ अर्थ ॥ चंद राजा पण प्रजाने सन्मान थापतां हस्ति उपर बेठा बेठा याचकोने दान वरसावी रह्या ने. ते जाणे नगरमध्ये बहुमान पूर्वक अमृतनो बंटकाव करतो होय तेवू लागतुं हतुं ॥ ए॥ कुमारिकार्ड टोला बंध एकत्र मली मधुर गीतो गाय बे. ते एवां तो सरस रीते गाय के देवकुमारी पण ते गायननी रीति जाणती न होय तेवू लागे जे. ॥१०॥ बत्र सुरऽ कल्याणनो रे, चामर बत्र बसंत ॥ सु० ॥ श्रानंद फल अनुमानतो रे, अवनिपति सोहंत ॥ सु० ॥ ११ ॥ मोती वधावे मानुनी रे, जे स्वांते उत्पन्न ॥ सु० ॥ जाणीए पुत्र जनक प्रते रे, श्रावी मले आसन्न ॥ सु०॥ १५ ॥ अर्थ ॥ कट्याण रूपी कल्प वृक्ष जेवा बत्र अने चामरो महा तेजस्वी रूपे फरकतां हता. तेना आनंद रूपी फलोने अवनिपति आस्वादन करतो शोलतो हतो ॥११॥ सुघड स्त्री स्वाति नत्रना उत्पन्न श्रयेला मोतीउथी वधावती हती. ते जाणे पुत्र पितानी पासे जश् तेने नेटतो होय तेवा दिसता हता. १५ एम श्रामबरे श्रावीयो रे, नूपति निज दरबार ॥सु॥ राज सनाए विराजीयो रे, निषधे जेम दिनकार ॥ सु० ॥ १३॥ सामंत सवि कीधा विदारे, श्रापापणे श्रावास ॥ सु० ॥ मंत्री प्रमुख विसर्जियारे, सनमानी सुविलास ॥ सु० ॥१४॥ अर्थ ॥ ए प्रमाणे महा आडंबर सहित चंदराय पोताना दरबारमा आवतो वो. जेम निषध पर्वतमां सूर्य प्रवेश करे तेवी रीते राज सन्नामां राजा विराजमान अतो हवो ॥ १३॥ अनुक्रमें राजाए आनंद सहित सजाने सन्मान आपी सर्वे सामंतोने विदाय कर्या. जे पोत पोताना आवासे गया. त्यार बाद मंत्री विगेरे सर्वने विसर्जन करी सना बरखास्त करी. ॥ १५॥ श्राव्यो निज अंते उरे रे, सतसया परिवार ॥ सु०॥ प्रणमी नारी गुणावलीरे, प्रमुदित थयो जरतार ॥ सु० ॥ १५ ॥ दीधां युवतीयो जणीरे, मंदिर अतिहि उत्तंग ॥ सु० ॥ नोजन नक्के गुणावलीरे, पति संतोष्यो सुरंग ॥ सु० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ परी राजा पोताना अंतःपुरमा आव्यो. सातसे राणीने परिवार परवरेला एवा राजाने गुणावलीए प्रणाम करतांज ते अत्यंत हर्ष पाम्यो॥१५॥ सर्व राणीने अत्यंत सुंदर अने उंचा एवा राज For Personal and Private Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्य चतुर्थ उदास. मेहेलोमां वास स्थान आप्यां. अनुक्रमे गुणावलीए पोताना स्वामिने हर्ष सहित षट्रस युक्त लोजन पानश्री संतुष्ट कर्या. ॥१६॥ रंगरली घरे श्रावीयारे, श्री श्रीचंद नूपाल ॥ सु॥ मोहने चोथा जहासनीरे, कही जंगणीशमी ढाल ॥ सु०॥ १७ ॥ अर्थ ॥ एवी रीते रंगरलीआते श्रीचंद महाराजाए पोताने घेर वास कर्यो. कवि मोहन विजयजीए चोथा नसासनी उंगणीशमी ढाल कही. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ सुंदर वनिता सातसे, थकी चंद लयलीन ॥ बनी प्रीत पयनीर सम, अथवा जल जेम मीन ॥१॥ न जणावे स्त्री सातसें, शोक संबंध लगार ॥ थावा नहींदे अरुचिता, निपुण जिहाँ जरतार ॥२॥ अर्थ ॥ अत्यंत रूपवंत एवी सातसो राणी साथे राजा प्रेममां मशगुल श्रतो हवो. तेउनी प्रीति उध अने पाणीनी जेवी अथवा जल अने मीनना जेवी अझ रही ॥१॥ सातसो स्त्रीमांधी कोइ पण अरस परस पोतानी वचे शोक संबंध बे एq जरा पण देखामती न हती. तेमज ज्यां पति चतुर होय त्यां अरूचिनाव पण केम उत्पन्न श्रवा दे ॥२॥ जोवानी स्त्री. सातसो, पण मनथी थर एक ॥ मली बहु मन एक मन थयु, ए को अधिक विवेक ॥३॥ इसे रमे क्रीडा करे, पतिथी सहु एक रंग ॥ एक नावे बेग थकां, मूरख करे कुढंग ॥४॥ - अर्थ ॥ दृष्टिए सातसो राणी पडे, परंतु मनमां तो जाणे एकज होय तेम लागतुं हतुं. अनेक मन एकत्र थइ एक मन अश्गयुं ते को उत्कृष्ट विवेक समजवो ॥३॥ पतिनी साथे एक रंग सहित सर्वे राणी हसतां, रमतां, लोग विलास प्रमुख. अनेक क्रीडा करे . एक नावमां बेग पळी जे मूर्ख होय तेज एक बीजाश्री विरुष्प वर्तन करे. ॥४॥ चंदे पटराणी करी, गुणावलीने ताम ॥प्रेमला लही प्रमुख सवि, राजी थर नियाम ॥ ५॥ विलसे विविध शृंगार रस, चतुरा संगे चंद ॥ राज काज तेम निर वहे, जन पामे थानंद. ॥६॥ अर्थ ॥ पनी चंद राजाए गुणावलीने पटराणी करी स्थापी. जेथी प्रेमला लढी विगेरे सर्वे निर्मल अंतःकरण पूर्वक हर्ष पामी ॥ ५॥ अनुक्रमे चंद राजा चतुर राणी साथे शृंगार रस युक्त अनेक प्रकारे जोग विलास लोगवे . वली राज्य संबंधी काम काज पण तेवी रीते चलावे डे के जेश्री प्रजाना मनने संपूर्ण संतोष थाय जे. ॥६॥ एक दिन चंद गुणावली, करे वचन रस केलि ॥ ते रसनी श्रागल सुधा, मुकी जे अवहेलि ॥७॥ . अर्थ ॥ एकदा चंदराजा अने गुणावली राणी वाणी विलास रूप क्रीडा करता हता. ते रसनी पासे अमृत पण तजी देवानी श्वा थाय एवी मजा पडती हती.॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. श्३ ॥ ढाल २० मी॥ ॥ वीफासेण मारूं ॥ ए देशी ॥ प्रितमजी हो, कहे कर जोडी गुणावली ॥ हो साहिवा॥ निसुणो प्रितम मुज बोल ॥ सेंण मीगं वेण वाला ॥ प्रितम ॥ काड्यां कठिन में तुम विना हो साहिबा, वरस गया जे सोल ॥ से ॥१॥प्री० ॥ थाजो प्रेमलानुं नवं ॥ हो सादिवा ॥ रेहे जो अचल गिरिराज ॥ से प्री० जे तुम दीगं लोयणे हो ॥ सा ॥ मुज जीवन शिरताज ॥ से ॥२॥ अर्थ ॥ हवे गुणावली चंद राजाने बेहाथ जोडी प्रणाम करी केहेवा लागीके हे स्वामिनाथ ! मारी विनंति सांजलो. में आपनी विना सोल वरस महा मुशीबते काढ्यां ॥१॥ हे नाथ ! प्रेमला लब्बीन पण नबुं अजो. तेमज हे मारा प्राणना शिरताज ! ते सिद्ध गिरिराज पण अचल रेहेजो के जेना पसायश्री में आपने फरीथी नजरे दीग. ॥२॥ प्री० ॥ ढुं जो गइ विमलापुरी हो ॥ सा ॥सासूने लगवाम ॥ से० ॥ प्री॥ तो तुमे परण्या प्रेमला हो ॥ सा॥ ए मुज मान जो पाड ॥से० ॥३॥प्रेमदाजी हो॥चंद हसी कहेरे प्रिये हो॥सागालह्यो जे पंखी अवतार ॥सेप्रे॥ लेखे ते गणजो वली हो ॥ सा ॥ ते पण तुम उपगार ॥से॥४॥ अर्थ ॥ वली हे स्वामि ! सासुनी संगाथे हुँ जे विमलापुरी गइ अने साथे गुप्त रीते आवी तमे जे प्रेमला लब्बीने परण्या ते सर्वे तमे मारो उपकार मानजो एम इसीने कडं ॥ ३ ॥ पठी चंदराजाए हसीने कडं हे प्रेमदा ! में जे पंखीनो अवतार धारण कर्यो ते तमारा उपकारनी गणतरीना लेखामां गणजो.॥४॥ प्री० ॥ जाखे गुणावली हेजयी हो ॥ साान होत विहंग श्राकार ॥ से० ॥ प्री० ॥ तो गिरिवर केम फरसता हो ॥ सा०॥ केम तरता संसार ॥ से॥५॥ प्री० ॥ अवगुण पण गुण गुण जाणजो हो ॥सारखे को धरता रोष ॥ से प्री० ॥ उत्तम जन तुम सारिखा हो ॥ सा॥ वदे नही पर दोष ॥ से० ॥६॥ अर्थ ॥ गुणावलीए कडं हे नाथ ! जो आप पक्षी न श्रया होत तो गिरिराजनी फरसना पण तमने क्यांथी श्रात अने संसार समुज्ने पण केवी रीते तरत ? ॥ ५॥ माटे हे नाथ! अमारा अवगुणने पण गुण तरीके मानजो. लेशमात्र गुस्सो धरता नही. वली तमारा सरखा उत्तम मनुष्यो कदापि बीजानो दोष होय ते मनमां लावेज नही. ॥६॥ प्री० ॥ हुँ थ मतिनी पातली हो ॥ सा ॥ करजो गुन्दो बगसीस ॥ से० ॥ प्री० ॥ नयणां न देती सूकवा हो ॥ सा ॥ आंसु सासू निशदिश ॥ से॥॥ प्री० ॥ ए सोदणे मिलती रखे हो ॥ सा॥ चढती कहिंये रखे चित्त ॥ से॥ प्री० ॥ एहने जली दीधी सजा हो ॥ सा॥ हो जो कुशल तुम नित ॥ से ॥७॥ • अर्थ ॥ वली हे प्राणनाथ ! हुँ अक्कलमां मंद अश् तेथी माराथी जे गुह्नो श्रयो ते माफ करजो. ए Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ चतुर्थ उदास. सासुए निरंतर तमे गया पठी एक पण दिवस मारी आंखोना आंसु सुकावां दीधा नथी॥ ॥ वली हे नाथ ! ए स्वनामां पण सामी मली सारी नथी अने हैयामां पण याद श्रावता हितकारी नथी. तेने तमे जे शिक्षा आपी ते रूकुंज कर्यु जे. तमारूं निरंतर सारूं होजो. ॥ ७॥ प्री० ॥ जे दिनथी तमे विबड्या हो ॥ सा० ॥ शिवमालाने साथ ॥ से ॥ प्री० ॥ ते दिनथी गति मादरी हो ॥ सा॥ जाणे जगनाथ ॥ से ॥ ए॥ प्री० ॥ श्रावु बुं हुं श्राजथी हो ॥ सा ॥ मनुष्यणीने उल ॥ से० ॥प्री० ॥ रखे तमे करीने मानता हो ॥ सा॥ कहे ते साकर घोल ॥ से ॥ १० ॥ अर्थ ॥ वली हे स्वामि ! जे दिवसथी में आपने शिवमालाने सोप्या हता ते दिवसथी मारी जे गति हाल हवाल श्रया , तेमात्र त्रिलोकनो नाथज जाणे ॥ए ॥ हे नाथ ! दुं आजधीज हवे मनुष्यनी हारमा आबुं बुं एम मानजो. या वात हूं तमने नलु मनाववाने खातर साकरना रसनी जेम मीठी मीठी कहुं बुं एम रखे मानता. ॥ १०॥ प्री० ॥ चंद कहे रे अंगने हो ॥ सा॥ तुं मुज जीवन मूल ॥ से॥ प्री०॥ जाणुं बुं तुं माहरी हो ॥ सा ॥ साची अनुकूल ॥ से ॥११॥प्री० ॥ तुम माटे शहां श्रावीयो हो ॥ सा॥ विमलपुरीथी एम ॥ से० ॥जी॥ लघु वय संगी जे विउड्या हो ॥ सा ॥ तेहने न मलीए केम ॥ सें ॥१२॥ अर्थ ॥ चंदराये कडं हे प्यार ! तुं तो मारा जीवतर- मूल गे. तुं मारीज बो भने खरेखरी मने सानुकुल बो एम मार्नु K ॥ ११ ॥ तेथीज हे प्यारि ! विमलापुरीथी तमारे माटेज अहीं आव्यो. जे बाल वयना सोबतीनो वियोग थयो होय तेनो मेलाप करवा मनराजी केम न होय ? ॥ १ ॥ प्री० ॥ निरवहजो रूडी परे हो ॥ सा ॥ ए सघलो घर नार ॥ से॥प्री॥ देशो तमे जमशुं श्रमे हो ॥ सा ॥ तुम सम नहीको संसार ॥ से ॥ १३ ॥ प्री० ॥ नाद वचने रंजी घणुं हो ॥ सा० ॥ वनिता गुणनी गेह ॥ से॥ प्री॥ कीधी सजा दरबारमा हो ॥ सा ॥ चंद नृपे ससनेह ॥ से० ॥१४॥ अर्थ ॥ हे प्यार ! हवे घरनो सघलो कारजार तमे रूमी रीते चलावजो. अमे तो तमे जे श्रापशो ते जमशु. तमारी समान अमारे जगत्मां बीजूं को वहालुं नथी ॥ १३ ॥ स्वामिनां वचनश्री गुणनुं सादात् गृह एवी गुणावली बहुज हर्ष पामी. त्यार बाद चंद राजाए स्नेह सहित मोटो दरबार जो. ॥१४॥ प्री० ॥ श्राव्या सचिव मदेसरा हो ॥ सा ॥ तेमज पंमित परिवार ॥ से॥ प्री० ॥ हाल हुकम सहु शिर धरे हो ॥सा॥ साचवे नृप श्राचार ॥ से॥१५॥ प्री०॥ हित श्राणी सहुनो कह्या हो ॥ सा ॥ चंदे निज अवदात ॥ से ॥ प्री० ॥ ये आशिष् सहु सजा हो ॥ सा ॥ धन्य नृप पुण्य विख्यात ॥ से॥१६॥ अर्थ ॥ ते वखते राज्य सन्नामा प्रधान विगेरे महान् ऐश्वर्यवाला तथा पंडितो परिवार सहित आव्या. सर्वे राजानो हुकम मस्तके चडावता हता. राजा पण पोतानो विवेक-आचार साचवता हता ॥ १५॥ चंद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्य चंदराजानो रास. राजाए सनामां पोतानो सर्व वृत्तांत प्रेम सहित कह्यो. ते सांजलीने सन्य जनो राजाने आशीरवाद देवा लाग्या अने कहेवा लाग्याके आपने धन्य वाद घटे बे. आपनुं पुण्य जग प्रसिद्ध . ॥ १३ ॥ प्री०॥ लोक सकल सुखीया थया हो ॥ सा० ॥ पेखी पुहवी पाल ॥ से० ॥ प्री० ॥ मोहने चोथा उल्हासनी हो ॥ सा॥ नाखी वीशमी ढाल ॥ से० ॥ १७॥ अर्थ ॥ पृथ्वी पति चंदरायने तेजस्वी स्वरूपे निहालीने नगरना सर्वे लोको अत्यंत सुखी थया. एवी रीते मोहन विजयजीए चोथा नसासनी वीशमी ढाल कही. ॥१७॥ ॥दोहा॥ सात सयां अंते उरी,पति रंजनने काज ॥दाखे नव नव चातुरी, हाव नाव करी लाज ॥१॥ गीत कवित्त प्रहेलिका, गाहा दोधक बंद ॥ निसुणी वनिता वचनथी, चंद लहे सानंद ॥२॥ अर्थ ॥ अंतःपुरनी सातसो राणी पोताना स्वामिनाथने रंजन करवा माटे नवा नवा प्रकारना शृंगार रसनी चतुराइ जरेखा हाव लाव मर्यादा पूर्वक बतावे ॥१॥ जुदी जुदी राणीउँना मुखथी संगीत, कवित्त अक्षर तथा मात्रा मेलना जुदा जुदा गाथा, दोधक विगेरे बंदो सांजलीने चंदराजा आनंद प्राप्त करता हता.॥५॥ नित नित विलसे विविध सुख, सांसारिक मन रंग ॥ जोग उदय ज्यां लगी हुवे, त्यां लगी राज्य अजंग ॥३॥ चंद जणी नवि विसर्यो, नट वरनो उपगार ॥ संपत्तिमा गुण सांजरे, अहो उत्तम आचार ॥४॥ अर्थ ॥ चंदराजा विविध प्रकारना संसारी सुख निरंतर हर्ष सहित जोगवे जे. ज्यां सुधी जोगनो उदय होय त्यां सुधी राज्य अनंगपणे पाले ॥३॥ नटराय शिवकुमर चंद राजाना मनमांथी विसर्यों न होतो तेना उपगार तेने याद आवता हता. संपत्ति प्राप्त थतां करेला गुण सांजरे तेज उत्तमनी रीति जे. ॥॥ निर्गुणी जन गुण नवि गणे, गुणवंत गुणना दास ॥ गुणी तणे कारण गगन, दिनकर करे प्रकाश ॥५॥ गाम सीम आपी घणां, को प्रसन्न नटेश ॥ चंदे निज जशथी कर्या, उज्वल देश विदेश ॥६॥ अर्थ ॥ निर्गुणी मनुष्यो करेला उपकारने संचारताज नथी. अने गुणवंत होय जे तेनो गुणना दास होय ने एवा गुणीने खातरज सूर्य आकाशमा प्रकाश करे ॥५॥ नटराय शिव कुंवरने गाम गरास अनेक प्रकारथी आपीने बहुज प्रसन्न कर्यो. एवी रीते अनेक प्रकारे यशः कीर्ति संपादन करी देश विदेशमा उज्वलता मेलवी.॥६॥ राजा राज्य प्रजा सुखी, पुःख नही लवलेश ॥ नर सुर तिरि सहुको कहे, जय जय चंद नरेश ॥७॥ अर्थ ॥ उत्तम न्यायथी राज्य पालतां राजा अने प्रजा बंने सुखी श्रया. लेश मात्र सुख रडुं नही. देव, मनुष्य अने तिर्यंच सुधां सर्वे चंद महारायनो जय जय बोलता हता.॥ ७॥ For Personal and Private Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ चतुर्थ उबास. ॥ ढाल १ मी॥ ॥थावी धुतारा नंदना रे, ते धूत्युं गोकुल गाम ॥ ए देशी॥ प्रेमला लछी गुणावली बेहुनो, वधते रंग सदीव ॥ व ॥ जाणे बे कायाने अलगी, पण जाणे एक जीव ॥ प० ॥ गोठी सलुणी श्रावी बने तो, जो होवे पूरण जाग्य ॥ जो० ॥ ए आंकणी ॥ प्रीतमली बेहु नयणां जेवी, अथवा नारंग अंग ॥ १०॥ तेम ए बेहुनुं चित्त बंधाएं, पूरव लिखित प्रसंग ॥ पू० ॥ गो० ॥२॥ अर्थ ॥ गुणावली अने प्रेमला लल्ली बनेनो प्रेम निरंतर हर्ष पूर्वक वधतो हतो. बने जणा मात्र शरीर जुदा अने जीव एक एवी रीते रेहेता हता. कवि कहे बे के ज्यां उत्तम लाग्य होय त्यांज गोष्ट सुंदर बनी आवे ॥१॥ए बंने जणीनुं अंतःकरण प्रेमश्री एq तो एक मेक अयुं के जाणे बंने चक्षुर्जना जेवी तथा नारंग पदीना शरीर जेवी तेमनी प्रीति अइ. पूर्व कर्मना संयोगश्रीज आ बनाव बन्यो हतो. २ नूपति पण ए बेहुनी उपर, राखे सरखो नाव ॥ रा० ॥ हु सुदृष्टिना जामण हुँती, रस गोरसनो जमाव ॥ र ॥ गो० ॥३॥ सुरपुरथी सुरकोश् चवीने, उदर दरी उत्पन्न ॥ ज० ॥ राणी गुणावलीए शुज दिवसे, प्रसव्यो पुत्र रतन्न ॥ प्र॥ जो० ॥४॥ अर्थ ॥ राजापण बनेना उपर सरखो राग राखतो. एवी रीते उत्तम एवी समान दृष्टिना मेलवणथी प्रीतिरूपी रसना गोरसनो सारो जमाव थयो. ॥ ३ ॥ देव लोकमांथी को देव चवीने गुणावली राणीनी उदर रूपी कुखमां उत्पन्न थयो. राणी गुणावलीए शुन्नदिवसे पुत्र रत्नने जन्म आप्यो. ॥४॥ दीधी वधामणी चंद नृपतिने, दासीए परम अनुप ॥ दा० ॥ सुतजन्मे राजाए तेइने, कीधी कमला रूप ॥ की॥गो॥५॥ हरख्यो चंद तनुज मुख देखी, जेम दरिद्धीने निधान ॥ जे ॥ (पागंतरे) समा श्रर्थीने दान ॥ स० ॥ दीधुं नक्षत्र तणे अनुसारे, गुण शेखर अनिधानागुणागो॥६॥ अर्थ ॥ पुत्रनो जन्म थतांज चंदराजाने दासीए पुत्र जन्मनी उत्तम अनुपम वधामणी आपी जे सांजलीने राजाए दासीने अलंकारो विगेरे श्रानुषणो आपी लक्ष्मी सदृश बनावी दीधी. ॥५॥ जेम दरिजीने निधान प्राप्त थतां ते जेवो हर्ष पामे तेम चंदराजा पुत्रनुं मुख देखी हर्ष पाम्यो. पनी याचकोने बहुज दान आप्या. अनंतर नदत्रने अनुसारे पुत्रनुं "गुणशेखर" एवं नाम पाड्यु.॥६॥ वाधे पुत्र दिवाकर सरिखो, रुपे रति पति जोम ॥ रु० ॥ मात पिताना मनोरथ पूरे, सुत सुरतरुनो बोम ॥ सु० ॥ गो० ॥ ॥ प्रेमलाए पण प्रसव्यो बालक, तेपण रुप निधान ॥ ते ॥ मणि शेखर नामे उ द्वाप्यो, बेहु सुत प्रेम समान ॥ बे ॥ गो० ॥ ७॥ For Personal and Private Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. २ ॥ अनुक्रमे ते पुत्र साक्षात् कामदेव सरखो रूपवंत सूर्यनी जेम दिवसे दिवसे प्रकाशमां वधवा लाग्यो. कल्पवृक्षना बोडवा समान ते पुत्र माता पिताना मनोरथो परिपूर्ण करवा लाग्यो. ॥ ७ ॥ प्रेमलाल बीए पण जाणे रूपनो जंडार होय एवा बालकने जन्म श्राप्यो. तेनुं नाम मणिशेखर पाडयुं. चं. दराजा बने पुत्रो उपर सरखो प्यार राखे बे. ॥ ८ ॥ १० ॥ सुत चंद उछंगे बेसे, खेले खेल विशाल ॥ खे० ॥ मान सरोव रने उपकंठे, जाणीए युगल मराल ॥ जा० ॥ गो० ॥ ए ॥ रिपुने शल्य सहोदर बेहु, अथवा निज कुल थंज ॥ श्र० ॥ नेला मति श्रुत ज्ञान ती परे, करता शास्त्र अभंग ॥ क० ॥ गो० ॥ अर्थ | बने पुत्रो चंदरायना खोलामां बेसेबे ने विविध प्रकारनी क्रीडा करे बे. जाणे मान सरोवना कांठा उपर हंसनं जोडलुं होय तेवा शोजेबे ॥ ए ॥ चंदरायना दुस्मनोने तो जेवा लागता हता. पोताना कुटुंबना मनुष्योने स्थंरूप आधारभूत लागता हता. बंधु श्रुतज्ञाननी जेम साधे रहीने अस्खलितपणे शास्त्रनो च्यास करता हता. ॥ १० ॥ वृद्धिप्रते पाम्याते अनुक्रमे, खेलावे केकाण || खे० ॥ लीलाते जोवे थिर राखी, रथने अंबरे जाण ॥ २० ॥ गो० ॥ ११ ॥ गज असवारी करी केवारे, बेहुं रमे वन आराम ॥ बे० ॥ निज आसननी राखे ते वारे, शंका अति संत्राम ॥ शे० ॥ गो० ॥ १२ ॥ बने पुत्रो शस्य मति ज्ञान अर्थ ॥ अनुक्रमे वयमां मोटा थता यतां बंने जहाजे अश्व खेलवा लाग्या ते जोवा सारू सूर्यपण जाणे आकाशमां पोताने रथने स्थिर राखी ते लीला जोतो होय एवं लागतं हतुं ॥ ११ ॥ केटली एकवार हस्ति उपर स्वारी करी बने बंधु वनमां बगीचामां रमत रमेबे ते देखीने देवलोकनो स्वामि इंद्र रखेने ने बंधु मारू सिंहासन लइले एवी शंका राखे बे ॥ १२ ॥ चंद तो शासन त्रिहुं खंडे, पाम्यो अति विस्तार || पा० ॥ जाणीए डुजी केशव प्रगट्यो, अतुली बल शिरदार ॥ श्र० ॥ गो० ॥ १३ ॥ नृपथी कोइ नरह्यो अनमी, कुराण कुणराव || कु० ॥ विष उद्यमे ध रणवश यावी, केवल शील प्रजाव || के० ॥ गो० ॥ १४ ॥ अर्थ | चंद राजानी आण त्रणे खंडमां विस्तार पूर्वक प्रवर्त्तवा लागी. जाणे बीजो कृष्ण वासुदेव अत्यंत बलवानो पण शिरदार, उत्पन्न थयो एवं लागवा मांडयुं ॥ १३ ॥ चंदराजाने कोई राजा के राणोन नम्यो एवं ह्युं नही. अर्थात् सर्वे नम्या. उद्यम विना मात्र ब्रह्मचर्यना प्रजावथी अखिल पृथ्वी स्वाधीन थइ ॥ १४ ॥ नर सुर असुर खेचरने नूचर, लोपी न शके ली || बो० ॥ पण वि मलाचलना गुण गातां, न रहे क्षण एक जी ॥ न० ॥ गो० ॥ १५ ॥ भूपे निज यश पूंज सरिखा, निपजाव्या प्रासाद || नि० ॥ बिंब प्र तिष्टा स्पष्ट करावी, मुनिपति पासे उल्लास ॥ मु० ॥ गो० ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'चतुर्थ उखास. __ अर्थ ॥ मनुष्यो, देवता, असुरो, विद्याधरो तेमज सर्व पृथ्वीवर्ती जीवो चंदराजानी आझाने लोपी. शकता न हता तेवो प्रबल प्रत्नावतां, विमलगिरि राजना गुण गावामां एक क्षणवारपण जीन बंध रेहेती न हती. ॥ १५॥ राजाए पोताना यशःकीर्त्तिना पूंज समान महाविशाल अने जव्य जिन मंदिरो बंधाव्या तेमां सुविहित आचार्यो पासे अंजन शिलाका पूर्वक जिन बिंबोनी स्थापना हर्ष सहित करावी.१६ जे जे पुण्य तणी करणी, तेह करे महीपाल ॥ ते ॥ मोहन विजये चोथे उसासे, कही एकवीशमी ढाल ॥ कण ॥गो॥१७॥ अर्थ ॥ श्रनुक्रमे जे जे पुण्यनां कार्यो हतां ते सर्वे चंदराजाए काँ. ए प्रमाणे चोथा उवासमध्ये एकवीशमी ढाल मोहनविजयजी महाराजे कही. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ श्रेहवे कानन पालके, विनव्यो नृपति सकाज ॥ समवसर्या कु सुमाकरे, मुनिसुव्रत जिनराज ॥२॥ ते निसुणी वन पालको, दीधो लक्ष्मी पूर ॥ प्रगट्यो हृदये चंदने, अनुजवनो अंकूर ॥२॥ अर्थ ॥ एवा अववरमां वनपालके श्रावीने चंद महाराजा जे निरंतर धर्म करणी कार्यों मांज काल निर्गमता हता तेने विनंति करीके हे महाराज! आपणी कुसुम वाटिकामां श्री मुनिसुव्रत जगवान समो सर्या ॥ १ ॥ ते वधामणी सांजलतांज वन पालकने लक्ष्मीवंत बनावी दीधो. तत्काल चंदरायना हृदयमां (आत्म स्वरूपना) अनुजवनो अंकुरो प्रगट थयो.॥॥ शण गार्या गज रथ तुरी, तेम आजा नर नार ॥ ससनुरि अंते जरी, पुत्रादिक मनोहार ॥३॥ सामैयु सुंदर सज्युं, गुहिर तूर निर्घोष ॥ सामंबर नृप परवर्यो, करवा समकित पोष ॥४॥ अर्थ ॥ पछी सामैयुं तैयार करवा आज्ञा करतां, हाथी, घोडा अने रथो तेमज आजा पुरीना नागरिकजनो, कान्ति युक्त सातसो राणी अने मनोहर पुत्रो विगेरे सर्व उत्तम सामग्रीवालुं सामैयुं सज कर्यु. डंकानिशान अने वाजींनोना चित्ताकर्षक नाद अवा लाग्या. एवी रीते सम्यग् दर्शनने पुष्ट करवा आबर सहित राजा समवसरण तरफ चाट्योः ॥ ३ ॥४॥ समवसरण निरख्यो नयण, साध्या अनिगम पंच ॥गढ लही शिवपद दृढ कयों, चंदे थ रोमांच ॥५॥ परपद निसरणी गणी, चढ्यो चंद सोपान ॥ नेट्यो अति नकते करी, केवल ज्ञान निधान ॥६॥ ___ अर्थ ॥ ज्यारे चंदराये समवसरण दी त्यारे तरतज तेणे पांच अनिगम जे राजा ए बत्रादितजनवा प्रमुख करवा जोइए ते साचव्या-तजी दीधा अने समवसरणना त्रणे गढने निहालतांज चंदरायने रोमांच थयो-रोमराजी हर्षथी विकस्वर थतांज मोक्पद दृढ कयु.॥ ५॥ समवसरणना पगथीआने मोक्षपदनी निसरणी मानी चंदराय पगथीए चड्यो भने केवलज्ञान नंडार श्रीमुनिसुव्रत महाराजने अत्यंत भक्ति पूर्वक नेटतो हवो.॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. नरनारी निज निज सजा, शोजावी सानंद ॥ चंदचकोर तृणीपरे, निरखे जिन मुख चंद ॥ ७ ॥ ॥ सर्व पुरुष तथा स्त्रीउं पोतपोतानी सजामां श्रानंद सहित बेसी सजाने शोभावता हवा. समये चकोर समान चंदराय, जिनराजना चंद्र समान मुखनी सन्मुख निरख्या करतो हतो. ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १२ मी ॥ ॥ रणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ॥ ए देशी ॥ ज्ञान रसोली रे नवली परषदा, अद्भुत रस अनिलाषी रे ॥ जविक या कृष्णसारणी परे, प्रभु सन्मुख मुख रागी रे ॥ १ ॥ श्री मुनि सुव्रत जिन देशना, लोका लोक विहारी रे ॥ श्रध्यातम पट साध ननी तुरी, जवतरु बेद कुठारी रे || श्री० ॥ २॥ अर्थ ॥ ज्ञान रसनुं पान करवाने अत्यंत तृषातुर थयेली एवी जव्य आत्मार्जनी नवी पर्षदा जे श्राश्चर्य उत्पन्न करे तेवा रसनीज अभिलाषा राखनारीबे ते सर्वे हरिण जेम चंद्रमा सन्मुख जोया करे तेम जगवंतना मुखनी सन्मुख अत्यंतरा गसहित जोइ रह्या बे. लोकना स्वरूपना जासक, ज्ञान स्वरूपे सर्व व्यापक, एवा श्रीमुनिसुव्रत जिनराज, जव्य आत्माना अध्यात्म स्वरूप रुप वस्त्र उत्पन्न करवाने तुरी समान अने तेर्जना जव-संसाररूप वृदने बेदवाने कुहाडा समान देशना श्रापे बे ॥ १ ॥ २ ॥ करीए जीव सत्तावन हेतुथी, कहीए कर्मते तेह रे ॥ ज्ञानावरणादि मूल प्रकृति कही, छात्र संख्याए अबेह रे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ मूल्यो चे तन निकेतन स्वजावनो, वैजावे तव श्राव्यो रे ॥ कर्म वर्गणाने ज‍ घरे पढ्यो, जनो अवसर फाव्यो रे ॥ श्री० ॥ ४ ॥ २८‍ ॥ संसारी जीव ए मिथ्यात्व १२ अविरति, २५ कषायाने १५ योग एवा सत्तावन कर्मबंधना हेतुथी जे बांधे ते कर्म के वाय. ए आत्मासाथे बंधाता कर्मनी मूल प्रकृति श्रवबे तेनां नाम. १ ज्ञानावरणीय कर्म, २ दर्शनावरणीय कर्म, ३ वेदनीय कर्म, ४ मोहनीय कर्म, ए श्रायु कर्म, ६ नाम कर्म, गोत्र कर्म, अंतराय कर्म ॥ ३ ॥ अनादि कालथी श्रा जीव पोताना शुद्ध स्वभावनी जूल मांडवा विाव स्वरुपमां थडायो जेथी कर्मनी वर्गणा रूप घरमां वास करी रह्यो ने तेज कारथी तेना उपर जड - पुजल फावी शक्यो. ॥ ५॥ न विजो रेहेतारे तेथी अणावर्या, बेहे तोरे सद्य जीवता, नही तेणे ज्ञानादिक गुण गयों विसरी, ॥ च्यारज श्रात्म प्रदेश रे ॥ जीवए चरिज लवलेशरे ॥ श्री० ॥ ५ ॥ पसरी अशुद्ध परनाली रे | मिठ तमां पाम्यो मगनता, पंके ज्युं गज मधुपाली रे ॥ श्री० ॥ ६ ॥ अर्थ | जो चार आत्म प्रदेश तेनाथी आवरण पाम्याविना न रही शक्या होत तो आ जीव अवश्य जीवपणुंज - जनता पामीजात. तेमां लेशमात्र संशय करवानो नथी. ॥ ए ॥ एवी रीते श्रा जीव उपर ३७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्ए० चतुर्थ उदास. जडन बलवधवाथी पोताना ज्ञानादिक जे गुणो ते तदन विसरी गयो; अने पोते अशुद्ध प्रनालिकामा प्रवर्तवा लाग्यो. जेम मदकरता हाथीना मदरूपी कादवमां नमरानी श्रेणि आनंदपामे तेम या जीव मिथ्यात्व लावमा मग्न थ रह्यो. ॥ ६॥ गोलक असंख्या एक वालाग्रमां, गोलके असंख्य निगोद रे ॥ एकेक निगोदेरे जीव अनंत, तिहां निज श्रादि विनोद रे॥ श्री० ॥७॥ नव जम एहवारे तिही सूक्ष्म बे, अजिनमती नवि जाणे रे ॥ एम करतां व्यवहारनी राशिमां, श्राव्यो कोश्क टाणे रे ॥ श्री०॥ ॥ अर्थ ॥ जगवते कयु के हे नव्यजीवो! एक वालना अत्यंत सूक्ष्म नागमां असंख्याता गोला, ते मध्येना प्रत्येक गोलामा असंख्य निगोदडे, प्रत्येक निगोदमां अनंताजीवने. ते दरेक जीवनो आदि निवास त्यांज वे.॥७॥ ए आदि निवास रूप अव्यवहार राशिमां नवज्रमणता एवी मोटी के जेनुं स्वरुप बहु सूक्ष्म समज वालुं बे. जिनेश्वर लगवानना मतने नहीं जाणनारा ए स्वरूपने जाणताज नथी, एवी रीते अव्यवहार राशिमां नटकतो(जवितव्यताना योगे) कोइक अवसरे व्यवहार राशिमा श्रा जीव श्राव्यो.॥॥ कर्म विटंब्यो रे जम्यो जव चक्रमां, एकैछियादिक कुल पामीरे ॥ एम परिचमणा रे काल अनादिनी, करता नरही कोई खामीरे ॥ श्रीन ॥ ए॥ थारे बेठा रे वारानी परे, लह्यो मानव अवतार रे ॥ हार्यो ते पण अशुन सामग्रीए, सेवी विषय विकार रे ॥ श्री० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ एवी रीते कर्मनी विमंबनाथी लव चक्रमां नमतां एकेंति प्रमुख चोरासी लाख जीवा योनिमां बहुज जटक्यो. एवी रीते अनादि कालथी परित्रमण करतां तेना उपर मुःख पडवामां को प्रकारे खामी रही नहीं ॥ ए॥ जेम श्रेणिबंध बेला माणसो पोतानो वारो आवे त्यारे पामी शके तेम नवितव्य ताना योगे मनुष्य अवतार प्राप्त करवानो वारो श्राव्यो. ते मनुष्य अवतार पण विषय विकार प्रमुख अशुन सामग्रीना योगथी सेवन करी हारी गयो.॥१०॥ बाक्यो महा मद तेहथकी चढी, मनना हाथमां बाजी रे ॥ साहमी तेहथी कषायादिक तणी, उन्मत्तता चढी वाजी रे ॥ श्री० ॥ ११॥ ममता गणिकारे श्रणिका अज्ञाननी, लीधो तेणे पण घरी रे ॥ परवश प्राणी रे जाणी नवि शके, जे ने नवनी फेरी रे ॥ श्री०॥ १२॥ अर्थ ॥ अनिमान रूप हस्ति उपर चढतां तेनो गक वध्यो. एम थतांज सघली बाजी मनना कबजामां गइ. संकटप वध्यो, कुतर्कनुं प्रबल थयुं तेथी कषायादिकनी उन्मत्तता अश्वना वेगनी जेम उलटी वधती ग॥११॥ एवीरीते अज्ञाननं प्रबलपण वधतां तेना दल मध्येनी सर्वने आकर्षण करनारी ममता वेस्याए आ जीवने ताबे करी लीधो. एवी रीते तेनाथी परवश थतां आ जीवने जव चक्रमां अनंता काल परिज्रमण करतुं पडशे ते वात ते जाणी शकतो नथी. ॥ १॥ आप न जाणे रे श्राप स्वरूपने, पर परणीतने प्रवाहे रे ॥ कूकर निज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. प्रतिरूप लखी जसे, दर्पणना गृह मांहे रे ॥ श्री० ॥ १३ ॥ राय्यो कुगुरु कुदेव कुधर्मथी, सुगुरू तत्वादि उवेखी रे ॥ लोका लोक प्रदेश विष थयो, ए चेतन बहु नेखी रे ॥ श्री० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ पर-पुद्गलिक स्वरूपमा आजीव मशगुल श्रतां तद्रूप प्रवाहमां तणातां जेम कुतरो आरिसामां पोतानं प्रतिबिंब देखी सामो बीजो कुतरो के एम मानी तेना सामो नसे वे परंतु या पोतार्ने प्रति बिंब तेम जाणतो नथी, तेवी रीते पोताना स्वरूपने जाणतो नथी ॥ १३ ॥ शुद्ध देव, गुरू, धर्मने तजीदर, कुदेव, कुगुरू अने कुधर्ममां राची रह्यो. एम श्रतां लोका लोकना प्रदेशने विषे श्रा जीवे अनंता नव को. ॥१४॥ तेजस कार्मण नावाए चढयो, रागादिक ते नमावे रे ॥जीम नवो दधि हुँती प्राणी, जिन मत घाट न पावे रे ॥श्री० ॥ १५ ॥ निमित्त प्रयोगे रे अविरति अणुसर्यो, देशविररिति मांहि पेसे रे ॥ व्रत पोसह पञ्चख्खाण पूजादिके, कर्म संजारने खेसे रे ॥ श्री० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ एवी रीते श्रा संसार समुफ जे महा जयंकर तथा विशाल ने तेमां तेजस अने कार्मण रूप नावमा चढतां, राग देषादि पवनोथी समुजमां नमावतां श्रा प्राणी जिनेश्वर नगवानना मत रूप आराने पामतो नथी॥१५॥ एवीरीते संसारमा अनंता काल सुधी परिचमण करतां, नव परिणतिनो परिपाक थतां, सुदेव, सुगुरूनो संयोग थवा रूप निमित्तना बलथी था जीव सम्यग् दर्शन पाम्यो; अनुक्रमे अविरतिपणामां रेहेतां सद्गुरूना उपदेशथी देशविरतिपणुं धारण करे एटले व्रत-पच्चरकाण-पोसह-जिनराजनी पूजा प्रमुखश्री कर्मनी जाड्यताने खसेडी नाखे-कर्म पातला करी नांखे. ॥ १६ ॥ ढींगलीथीरे रमती बालिका, जेम निज पति सुख पावे रे ॥ तेम छादश ब्रत खेलो खेलतां, अनुक्रमे संयम आवे रे ॥ श्री० ॥ १७ ॥ साधे जो श्रप्रमत्तपणा थकी, प्राणादि पंच समीरो रे ॥ रेचक पुरक कुंजक अन्यसे, साष्टांग योग सधीरो रे ॥ श्री० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ जेम ढींगला ढींगली पणे वर वहुनी रमत रमतां बाल कुमारिका अनुक्रमे पोताना पतिनुं सुख पामे ने तेम बार व्रत रूप खेलोमां रमणता करतां अनुक्रमे आ जीवने संयम प्राप्त थाय ने ॥ १७ ॥ अनु क्रमे अप्रमत्त पणे प्राण-अपान-उदान-ध्यान-समान ए पांचे वायुने साधतां, रेचक, पुरक अने कुंजक रूप प्राणायामनो अन्यास करे तो ते धैर्यवंत आत्मा अष्टांग योग सिद्ध करे. ॥ १० ॥ लागें ताली रे तारा दृष्टिथी, धरे अमृत अनुष्टान रे ॥ श्रावे चिदानंद गेह स्वनावमां, लहे केवल परधान रे ॥ श्री० ॥ १५ ॥ थश्ने श्रलेशीरे देतुविना तिहां, एरंग बीज दृष्टांते रे ॥ पामे पंचम गति अवगाहना, थर परमातम प्रांते रे ॥ श्री० ॥ २०॥ अर्थ ॥ एवी रीते तारा दृष्टिथी मांडी आवे दृष्टिए वर्त्ततां अमृत क्रियामां प्रवर्ते तो शुद्ध आत्म स्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श‍ चतुर्थ उल्लास. रूपना गृहमां प्रवेश करी प्रधान केवल ज्ञान प्राप्त करे ॥ १९ ॥ पी लेशीपणुं प्राप्त यतां, कर्म बंधना देतुनो व थतां, एरंडना बीजने दृष्टांते, बेवढे परमात्म स्वरूप थइ मोक्षगतिमां सीधुं उई गमन करी । जागनी पोताना शरीरनी अवगाहनामां स्थिति करे. ॥ २० ॥ एम जाणीने रे धर्म समाचरो, जेद बे श्रहिंसा मूल रे ॥ शिव सुख साधन एह विना नथी, राख जो करी अनुकूल ॥ श्री० ॥ २१ ॥ शांति सुधारस मांदे कील जो थाजो तत्त्व निदर्शी रे ॥ लेहेजो चिदानंद नित्यानंदता, कर कंकण शी आदर्शी रे ॥ श्री० ॥ २२ ॥ अर्थ || श्री जगवंत कहे बे के दे जन्य प्राणी ! वी रीते संसारनुं स्वरूप जाणीने धर्म जे अहिंसा मूल बेतेनो आदर करो. ए धर्म विना मोक्ष सुखनुं बीजुं एक पण साधन नथी. माटे अहिंसा धर्मने सानुकुल राखजो. अर्थात् श्रहिंसामय वृत्ति करजो ॥ २१ ॥ शांतरसरूपी अमृत रसमां स्नान करजो. तत्त्व स्वरूपना ज्ञाता थजो. जेथी चिदानंद स्वरूप जे निरंतर आनंद रूप बे ते प्राप्त करशो. हाथमां कंकण होय तेने जोवा सारू रिसानी शी जरूर बे. ॥ २२ ॥ हो व प्राणी रे एम जाणी करी, करो अनुभवथी प्रसंग रे ॥ चोथा उल्लासनी ढाल बावीसमी, कहे मोहन मन रंग रे ॥ श्री० ॥ २३ ॥ || जय प्राणी ! या प्रमाणे आत्म तत्त्व स्वरूपने जाणीने तेना अनुजवनो प्रसंग साधो एवी रीते चोथा उल्लासनी बावीसमी ढाल मोहन विजयजीए हर्ष सहित कही. ॥ २३॥ ॥ दोहा ॥ जिनवाणी मिरस श्रवण, पात्र जरी जरी चंद ॥ पाइ चिद् ज्ञानी जी, कर्यो घणो सानंद ॥ १ ॥ रोम रोम उल्लसित थया, वायो रंग वैराग ॥ पामी अवसर विनवे, जिनजीने महाजाग ॥ २ ॥ ॥ मृत रस रूप जिनेश्वर जगवाननी वाणी कर्ण रूप पात्रमां चंद राजाए वारंवार जरी जरीने पोताना अंतरात्माने पाइने घणोज आनंद उत्पन्न कर्यो ॥ १ ॥ पोताना रोमराय ( साडात्रण क्रोड ) विकस्वर था. वैराग्य रंग वध्यो एटले महा जाग्यना स्वामि चंदराये जिनराजने नीचे प्रमाणे विनंति करी. २ विजननीये मुज वश कर्यो, फिर्यो नटोने संग ॥ मकरध्वज धूव कर चढयो, यो नर सुगिरि प्रसंग ॥३॥ कपट कर्यु केम हिंसके, केम सिंहल सुत रोग ॥ पटराणी थी केम थयो, मुजयी करी संयोग ॥४॥ अर्थ || हे प्रभु ! मारी उरमान माताए मने पंखी रूपे परवश करी दीधो, नटोनी संगे हुं चोमेर फर्यो, मकरध्वजनी पुत्रीना हाथ उपर चढी उत्तम गिरिराजने जेटतां फरी पुरुष थयो; वली ॥ ३ ॥ हिंसक मंत्री मारी साथे कपट श्राचरण कर्यु, सिंहल रायना पुत्रने रोग थयो, अने मारी गुणावली पटराणी साथे मने फरी मेलाप थयो, ते सर्वेनो- ॥ ४॥ एह कथा मुज सद्यो, प्रजो त्रिजगदाधार ॥ तुम सम कोण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. मिलशे वली, संशयनो इनार ॥५॥ यया यशे जे थाय बे, जे जे जगत् स्वाव ॥ ते प्रभुथी बाना नही, तमे जवसागर नाव ॥ ६॥ अर्थ ॥ जे खुलासो होय ते ते सर्व वृत्तांत हे त्रण जगत्ना आधार रूप प्रजु ! मने शिघ्र जणाववा कृपा करो. या मारा संशयाने दूर करनार आपनी समान मने बीजो को मलनार बे ॥ ९ ॥ श्रा जग त्ने विषे जे जे वस्तु स्वभाव थया बे, थाय बे ने थशे ते सर्वे हे प्रभु ! आपनाथी प्रतुन्न नथी. आप तो संसार समुद्रमां नाव बो. ॥ ६ ॥ एहवी नृपनी विनती, अवधारी अरिहंत ॥ चंदादिकना पूर्व जव, एम उपदेशे अनंत ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ ए प्रमाणे चंदरायनी विनंति श्रीमुनि सुव्रत परमात्माए सांजलीने चंदराय प्रमुखना पूर्व जवनो वृत्तांत विस्तारथी प्रभु प्रकाशवा लाग्या ॥ ७ ॥ ॥ ढाल २३ मी ॥ ॥ रहो रहो रहो रहो वालदा ॥ ए देशी ॥ जंबुद्वीपना जरतमां, वैदर्ज देश प्रसिद्ध ॥ लाल रे ॥ वासुगे निज शिरे जेहने, मणि मानीने लीध ॥ ला० ॥ १ ॥ जयो जयो ज्ञान जिदनो, विधि दर हरिनो स्यो नाप ॥ ला० ॥ सकल मरण गज चरमां, या निमग्न परिमाण | ला० ॥ जय० ॥ २ ॥ यर्थ ॥ जंबुद्दीपना जरत क्षेत्रमां वैदर्ज नामनो प्रसिद्ध देश बे. ते जाणे शेष नागे तेने मणिरूप धारीने पोताना मस्तक उपर धारण कर्यो होय तेवो शोभे बे. श्री जिनराजनुं ज्ञान जयवंतु वर्त्ते बे. ब्रह्मा, विष्णु छाने शंकरनुं ज्ञान तेनी पासे शा हिसाबमां बे. जेम हाथीना पगलामां सर्व प्राणी मात्रना पगला समाइ जाय ते निराजना ज्ञानमां बीजा सर्वना ज्ञाननो समावेश यइ जाय बे. ॥ १ ॥ २ ॥ तिहां नगरी तिलकापुरी, मदनज्रम जिहां नूप ॥ ला० ॥ तस रि गिरिरिए वसे, जेम जल ग्रीष्मे कूप ॥ ला० ॥ ज० ॥ ३ ॥ कमल माला तस गेनी, जेनी स्तुति न कराय ॥ बा० ॥ एहनी देहनी सौम्यता, मेहनी तमी ते थाय ॥ ला० ॥ ज० ॥ ५ ॥ २०३ ॥ ते देशनी तिलकापुरी नामनी राज्यधानीमां मदन भ्रम नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेना शत्रु ग्रीष्म शतुमां कुवाना पाणीनी जेम पर्वतनी गुफामां जइने संताइ रह्या हता ॥ ३ ॥ तेने कमलमाला नामनी पटराणी बे, तेनी प्रशंसा करी न शकाय एवी अद्भुत बे. तेलीना शरीरनी कान्ति वर्षा तुमां प्रकाशती विजलीना सदृश बे. ॥ ४ ॥ तिलक मंजरी तेनी सुता, सुरतरू मंजरी जेम ला० ॥ कीधो बाल पणा थकी, वैष्णव मतथी प्रेम ॥ ला० ॥ ज० ॥ ५ ॥ धर्म अधर्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एस चतुर्थ उदास. जाणे नही, नगणे नद अनद ॥ ला० ॥ द्वेष वहे जिन धर्मथी, एह मिथ्यात्व प्रत्यद ॥ ला ॥ ज० ॥६॥ अर्थ ॥ तेने तिलकमंजरी नामनी कट्पवृदनी मांजर जेवी पुत्री हती. तेणीए बाल्यावस्थाथी वैष्णव मत उपर राग धारण को हतो ॥५॥ ते धर्मके अधर्म कां पण जाणती न होती; तेम नद अन्नक्षनो विचार पण करती नहोती. जिनधर्म उपर क्षेष राखती हती. आ प्रमाणे तेणीने प्रगट मिथ्यात्व प्रवर्ततुं हतुं. ॥ ६॥ चंदन विमुखी मक्षिका, थाए मतीने नूल ॥ ला० ॥ तो स्युं कां घटी गयुं, चंदन केलं मूल ॥ ला ॥ ज०॥ ७॥ किणही तेम कुमतीए, निंद्यो जो जिन धर्म ॥ ला० ॥ जिन मतनुं बिगडयुं किस्युं, सामुं ते बांधे कर्म ॥ ला०॥ ज०॥॥ अर्थ ॥ जेम बुजिना भ्रम की माखी चंदन वृक्षथी विमुख श्रश्चंदन वृक्षने तजीदे तेश्रीशुं चंदनना वृदनी किंमतमां न्यूनता थाय ? नथीज अती-तेम कोइ मनुष्य माठी बुद्धिथी जिन धर्मनी निंदा करे तो शुं तेनी निंदाथी जिनधर्मने नुकशान थाय ने ? बिलकुल नुकशानी अतीज नथी. उलटां ते माग कर्मनो बंध करे .॥७॥ ॥ मये सींची जेम विषलता, नृप पुत्री वधे तेम ॥ ला ॥ लागे न जिन मत वासना, लसणमें मृग मद जेम ॥ ला० ॥ ज० ॥ ए॥ पुत्री सुबुछि प्रधाननी, रूपमती अनिधान ॥ ला ॥ साथे को स्तन पानने, समकित रसनुं पान ॥ ला ॥ ज० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ जेम विष वेली, मदिराना सिंचनश्री तेम मिथ्यात्वना बोध रूप जलथी राजानी पुत्र मिथ्यात्वमां वृद्धि पामी. तेथी खसणमा जेम कस्तूरीनी सुगंध प्रवेश करे नहीं तेम तेणीना अंतःकरणमां जिनमतनी वासना लागी नही ॥ ए॥ राजाने सुबुद्धि नामनो प्रधान हतो. प्रधानने रूपमती नामनी पुत्री हती. तेणी ए स्तनपाननी साथेज समकित रसनुं पान कर्यु हतुं. ॥१०॥ कल्पलता पीयूषथी, वाधे तेम वधे तेह ॥ ला ॥ साध्वी संगतिथी थयो, शास्त्राच्यासनो स्नेह ॥ लाज॥१९॥ जीवादिक नवतत्त्वना, धार्या हृदये नेद ॥ ला ॥ जिन पूजादिकने विषे, न धरे मनमा खेद ॥ ला ॥ ज० ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ जेम कल्पवृक्षनी वेलि अमृत सिंचनश्री तेम ते प्रधान पुत्री सम्यग् दर्शनमां वधती हती. तेणीने साधवीऊना सत्संगथी शास्त्रना अन्यास उपर प्रेम वध्यो ॥ ११ ॥जीव-अजीव-पुण्य-पाप-श्राश्रवसंवर-निर्जरा-बंध-मोद-ए नव तत्त्वना विस्तारश्री नाव तेणे हृदयमां धारण कर्या अर्थात् नव तत्त्वनुं विज्ञान श्रयु. जेथी जिन पूजा प्रमुख कार्यो खेदविना अत्यंत हर्षथी करवा लागी. ॥ १२॥ साधु तथा साध्वी प्रते, जो वहोरावे आहार ॥ ला ॥ तो मंत्रीनी पुत्रिका, नोजनथी व्यवहार ॥ ला० ॥ ज० ॥१३॥ नूप सुता मंत्री सुता, एक दिन लि. खित प्रत्नाव ॥ ला॥ बाल क्रीमा करता थकां,बेहुनो हु मिलाव ला॥ज०१४॥ For Personal and Private Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ए अर्थ ॥ मंत्रीनी पुत्रीए साधु तथा साध्वीने आहारथी प्रतिलान्या शिवाय लोजन ग्रहण करवू नहीं एवो नियम धारण कर्यु हतुं ॥ १३॥ राज पुत्री तथा प्रधान पुत्रीने एक दिवस जवितव्यताना योगे बाल क्रीडा रमत गमत करता करतां बनेनी वचे स्नेह संबंध थयो. ॥ १४ ॥ अलगी जो एक एकथी, एके कण को जाय ॥ ला॥ तो ते बेहु बाला प्रते, कल्प थश्ने विहाय ॥ ला ॥ ज० ॥१५॥ प्रेम वशे तिण पुत्रीए, कीधो रहस्य विचार ॥ ला० ॥ केम करी बनशे श्रापणे, परणे जिन्न जरतार ॥ लागाज॥१६॥ अर्थ ॥ ते स्नेह एटलो तो वध्योके जो एक बीजाथी एक क्षण पण विखुटा पडे तो, अरस परस बनेने एक क्षण पण कटपना जेवडी मोटी थइ पडे ॥ १५ ॥ प्रेमना गाढ बंधनथी बने पुत्रीए एवी रीते गुप्त विचार कर्यो के जो आपणे बंने जुदा जुदा पतिनी साथे परणशुं तो आपणो स्नेह केवी रीते टकीशकशे. १६ एक पीउ श्रापणे परणवो, ए तुज मुज संकेत ॥ ला ॥ मोहने ढाल त्रेवीशमी, चोथे जहासे सहेत ॥ ला ॥ ज० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ तेथी राजपुत्रीए कह्यु के आपण बंनेए एक पतिनेज परणवो. आ मारी अने तारी वचे गुप्त निश्चय ले. एवी रीते चोथा नसासमां त्रेवीसमी ढाल मोहन विजयजीए हेतश्री कही. ॥१७॥ ॥दोहा॥ एक वर वरवानो कर्यो, बेहुए चित्त दृढाव ॥ वधी सुरंगी गो उडी, अवे न रह्यो अटकाव ॥१॥ प्रथम न जाण। सचिवनी, पुत्रीए वशनेह ॥ जे शिवमतनी रागिणी, जे नृप पुत्री एह ॥२॥ अर्थ ॥ बने जणीउए एक वर परणवानो निश्चय कर्या पड़ी तेउ बनेनी वचे सुरंगी गोष्ठि वधवा मांडी. कोइ वातमा रंचमात्र जुदापणुं रह्यं नही ॥ १॥ प्रधाननी पुत्रीए स्नेहाधीन अवाथी था राजपुत्री शिवमतनी रागिणी ने एम प्रथमधीज जाणी शकी नही. ॥२॥ रेदेते रेहेते उलखी, आचरणे अत्यंत ॥ पूरी जिनमत वेषणी, अवगुण जरी अनंत ॥३॥ पण नाणे कहीये मुखे, सचिव सुता सुविशेष ॥ जाणे फांटो पडे, प्रीतिमांदे लवलेश ॥४॥ अर्थ ॥ धीमे धीमे तेना अनेक प्रकारना था चरणो जोता जोतां आ राजपुत्री जिनमतनी संपूर्ण देपिणी, अनंत अवगुणनी नरेलीने एम तेणीने लास्यु.॥३॥ एटलुं बतां प्रीतिमां लेशमात्र त्रुट न पडे तेटला सारू प्रधानपुत्री विशेष कालजी राखीने ते वात पोताना मुखमा लावती न हती. ॥ ४॥ श्रावे गुरुणी साधवी, मंत्री पुत्री श्रागार ॥ रूपमती तव सुजतो, वहोरावे आहार ॥ ५ ॥ विधिपूर्वक करे वंदना, जाउँ खि मकी त्यां हि ॥ एम निरखी नृप अंगजा, अणख वहे मन मांहि ॥६॥ अर्थ ॥ प्रधानपुत्रीने घेर गुरूणी-साधवीजी ज्यारे वहोरवा आवे त्यारे कटपे तेवो आहार रूपमती ते For Personal and Private Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ उदास. साधवीने वहोरावे. ॥ ५॥ रुपमती साधवीजीने विधि पूर्वक वंदना करती हती अने खडकी सुधी वोखाववागइ एम राजपुत्रीए जोतांज तेणीना मनमा इर्ष्या आववा लागी. ॥६॥ बेसाडी मंत्री सुता, जणी नृप बाला ताम ॥ निंदे साध्वीने घj, हिज रागी निकाम ॥ ७॥ अर्थ ॥ पनी विज रागिणी तिलक मंजरीए रूपमतीने पोतानी पासे बेसाडीने ते साध्वीनी विनाकारणे निंदा करवा मांडी. ॥७॥ ॥ ढाल २४ मी॥ ॥ते तरीश्रा जाइते तरीया ॥ ए देशी ॥ मान तुं बेहेनी मुज शिखडली, मत जाणीश को गगो रे ॥ रूडं क कहेतां जो तारा मनमां, खंडं लागे तो लागो रे ॥ मा० ॥ १॥ एतो अजा अति निरलजा, एहना संगन कीजे रे ॥ एहवी अशुचिने थापणे मंदिर, पेसवा पण नवि दीजे रे ॥ मा० ॥२॥ अर्थ ॥ हे बेहेन ! हुं तने जे शिखामण आपुंचं ते साची मानजे, तेमां कोइपण प्रकारे कपट समजीश नही. हुँ तने रूनुं कहुं बु तारा जलामाटे कढुं नु तेम बतां तने मा लागे तो जले लागो. ॥१॥ ए आरजा तो अत्यंत निर्लङ होय , एनो संग करवो योग्य नथी. एवी अशुचि वालीने आपणा मंदिर-घरमां पेसवापण न देवी जोश्ए. ॥२॥ बाहिरथी दीसे बगध्यानी, पण मनमां हुवे कपटी रे ॥ धुलीलीए आपणने एतो, नांखी नुकी चपटी रे ॥ मा० ॥३॥ हीडे एवी थमस मुंमी, नहीं एहवी धुतारी रे ॥ मांहो मांहे संनेमा लगाडे, जेहवी कलहा गारी रे॥मा॥४॥ अर्थ ॥ ए आरजा उपरथीतो बगध्यानी होयचे अने अंतरमां बहुज कपटी होय जे. आपणा उपर एक कामण करवानी चपटी नुकी नांखीने आपणने परवश करीनांखे ॥ ३॥ एवी काला मनवाली गम गम लटके , एना जेवी कोइ धुतारी समजवी नही. जाणे क्वेशना श्रागार-घर जेवी ते अंदर अंदर गम गम कजीया करावे ॥४॥ ढापा नगारीए ढापा करीने, सघली नारी धुती रे ॥ नगरीनी नारी एहथी रही नथी शबूती रे ॥ मा० ॥ ५॥ शाता पुढे लटपट मांडे, नयणां राखे हे तीरे ॥ जाणीए जश् केदारे जिन्नी, कांकण पेहेरी बेठी ॥ मा० ॥ ६॥ अर्थ ॥ ए ढालपा कुटनारीए सघले ठेकाणे ढोंग धतूरा करीने सघलीस्त्रीने धुती लीधी. श्रा नगरनी स्त्रीउमांथी कोपण एनाथी उगायाविना रही नथी. ॥ ५॥ जे होय तेने “केम शातामांगे" एम पुळे, लटपट करे अने आंखो नींची ढाले, एवं लागे के जाणे केदारनाथमां जश् मीनीबार कंकण पेहेरीने बेगा. जाणे लोला लगत अश् गया. ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए चंदराजानो रास. गृहवासे नवि उदर जराणुं, त्यारे शिष मुंभाव्युं रे ॥ लालच माटे तुजने एणे, सामुं श्रावी नणाव्युं रे ॥ मा ॥ ७॥ श्रापण रूडा कुलनी पुत्री, एहने पगे केम अडीए रे ॥ देखी पेखीने एम सजनी, कूपक मांहि न पमीए रे ॥मा॥॥ अर्थ ॥ ज्यारे घरमां बेग को रीते पेट न जरायु त्यारे माथु मुंडाव्यु; पोतानी लालचने माटे उलटां सामा आवीने एणे तने लणावी. ॥ ७ ॥ आपणे तो उत्तम कुलनी पुत्री जीए आपणाथीते एना पगने केम अडाय, जाणी जोइने हे शाणी बेहेन ! कुवामां शामाटे पडवू जोइए ? ॥ ७॥ एहवी नेली चार मलेतो, नगर वसावे फेरी रे॥ हाथमां घाली कोली जाजन, जटके शेरी शेरी रे ॥ मा० ॥ ए॥ मांगी खाये फांद पंपोले, मांड वधारे का यारे ॥ तें जे ऐदने कीधी गुरुणी, करम उदय को श्राया रे ॥ मा ॥ १० ॥ _ अर्थ ॥ एवी आरजाउँ जो चार एकठी श्राय तो बीजा नगरने वसावq होय तो वसावे. एतो हाथमां कोली पातरां उगवीने शेरीए शेरीए लटके . ॥ ए॥ एने तो मांगीने खावु अने पोतानी फांद पंपालवी अने बेगं बेगं शरीरने वधारवं. ते जे अने गुरूणी बनावी ते तो कोइ पाउलां कर्म तने उदय श्राव्या लागे .॥ १० ॥ एकदिन तुं जो नवि वहोरावे, घर घर नूहुं बोलेरे॥वली तारा साते परियाना, उनी उखेला खोलेरे ॥ मा०॥११॥ एहनी बायाए उनी रहं तो, हूं तो पापे जरा रे ॥ शहां तो एहने थाववा नही द्यु, एहनुं कां न धराऊं रे॥मा॥१२॥ अर्थ ॥ जो एकज दिवस तुं एने वहोराव नहीं तो तारूं घेर घेर जश्ने वाकुं बोले एटलुंज नही परतुं तारा साते परियाना उन्नी उभी उखेला बोले. ॥११॥जो हुँ तो एनी गयामां उन्नी रहुं तो पापे नराजं. अहींातो एने आववाज न दचं. ढुंकां एनी दरकार राखती नथी. ॥१२॥ ए कोश्नी न हुश्न होवे, वारूं बुं ते सांरू रे॥ जेहनी संगति कोश्ने न गमे, ते संगति नहीं वारू रे ॥मा॥१३॥ एम निंदा साध्वीनी निसुणी, बोले मंत्री बेटी रे ॥रे बेहेनी म्हारी गुरुणीने, निपट कां नांखो उबेटी रे ॥ मा० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ ए आरजा कोश्नी श्रइ नथी अने अतीज नथी. तेटलाज सारूं हुँ तने वारूं ; शिखामण श्रापुं वं. जेनी सोबत कोइने गमे नही तेनी सोबत करवी सारी नथी. ॥ १३ ॥ एवी रीतनी साध्वीनी निंदा सांजलीने मंत्री पुत्री बोलीके हे बेहेन ! मारी गुरुणीने आम कतुं शामाटे नखेडी नांखेने! ॥१॥ सूधा पंचमहाव्रत पाले, चाले निरतिचारे रे ॥ ए तो संवेग सरोवर हंसी, न करे लोन केवारे रे ॥मा॥ १५॥ हूं तो एहना एक अक्षरनी, उशिंगण नवी । थालं रे॥ ए गुरुणी उपगारनी उपर, हुँ बलिहारी जाउ रे ॥ मा० ॥१६॥ अर्थ ॥ ए तो उत्तम पांच महाव्रत पाले ने अने पोतानो सघलो आचार अतिचार रहित पालतां वतें . ए तो मोक्षान्निलाष रूप सरोवरनी हंसली. कोड वखत लोन तो करतीज नथी. ॥१५॥ हुँ तो एना एक अदना ज्ञान रूप उपकारनो बदलों वाली शकुं तेम नथी. एना उपगार उपर तो हुँ बलिहारी जाउं बु.॥१६॥ 34 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ՋԵ चतुर्थ उल्लास. मुजने जो एहना अवगुण नासे, नरकमां गम न होवे रे ॥ तुं जे ए हनुं विरूलं कहे , मेलते एहनो धोवे रे ॥ मा० ॥ १७ ॥ गुरूपीए मारी पशुता टाली, नारी उसे आणी रे ॥ थाजो एहने कल्याण श्र होनिशि, अविचल एहनी वाणी रे ॥ मा० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ जो मने एनामां अवगुण बे एम लागशे तो मने नर्कमां पण गम मलवानुं नथी, अर्थात् नर्कधी पण नीची गतिमां जाइश. अने तुं जे एनुं वांकुं बोले ने ते तो तुं एना मेल धोवे .॥ १७ ॥ए मारी गुरूपीए मारूं पशुपणुं मटाडीने मने स्त्री जातिनी हारमा आणी. एनुं हमेशां कल्याण श्राजो अने रेनो उपदेशपण अविचल रेहेजो. ॥ १७ ॥ एहनी चेली हुँ जनमजनमनी, परमेश्वर साखी रे ॥ ढाल चोवीशमी चोथे उबासे, मोहन विजये नाखी रे ॥ मा०॥ १५ ॥ __ अर्थ ॥ हुँ परमेश्वरनी शादीए कहुं बुं के हुँ तो एनी नवोनवनी चेली बु. एवी रीते चोथा उल्लासमां मोहनविजयजीए चोवीशमी ढाल कही. ॥१५॥ ॥दोहा॥ प्रणम्या योग्य प्रवर्तिनी, पुण्य पात्र एह ॥ बाइ एम नविनि दीए, एहथी धरीए नेह ॥ १॥ जो ए रूषिणी निंदीए, पुण्य मूल कुमलाय ॥ तटिनी तट तरू मूल जेम, सहेजे विलये जाय ॥२॥ अर्थ ॥ वली हे बेहेन ! ए साध्वी नमस्कार करवा योग्य. ए पुण्यनुं पात्र जे. एनी या प्रमाणे निंदा नहीं करतां एना उपर तो पवित्र स्नेह राखवो जोइए ॥१॥ जो ए साध्वीनी निंदा करीए तो जेम नदीना तट उपर उगेला वृदो, पुरनी वखते मूल यी नखडीजाय तेम आपणुं पुण्यरूपी मूल कुमलाइ जाय.२ ते दिन एम कही अतिक्रम्यो, गश् नृप पुत्री गेह ॥ बीजे दिन श्रावी वली, मंत्री गृह ससनेह ॥३॥ बेहु सही क्रीडा करी, बेठी में दिर बार ॥ प्रोये सुता श्रमात्यनी, निज मोतीनो दार ॥ ४॥ अर्थ ॥ ते दिवसतो ए प्रमाणे वातो करतां वीती गयो. पनी राजपुत्री पोताने घेर गइ. वली बीजे दिवसे स्नेह सहित राजपुत्री मंत्रीने घेर आवी. ॥ ३ ॥ बंने सखी रमत गमत करीने घरना बारणा पासे बेठी. ते वखते मंत्री पुत्री पोतानो मोतीनो हार परोक्वा बेगी. ॥ ४॥ कर्ण काली बहु मूलनी, मूकी थाली मांहि ॥ बेहु सजनी वातो करे, क्षण घाले गले बांहि ॥ ५॥ श्रावी साध्वी वहोरवा, थयो जाम मध्यान ॥ पय प्रणमी मंत्री सुता, पडिलाने पकवान ॥६॥ अर्थ ॥ बहु मूट्यवाली काननी काल हती ते तेवखते थालमा मुकीने बंने बेहेनपणी वातो करती हती. कणेकमां एक बीजाना गलामां हाथ नांखती हती. ॥ ५॥ ज्यारे मध्यान्हनो पहोर थयो त्यारे साध्वी वहोरवा श्रावी. ते वखते मंत्री पुत्रीए उना थई नमस्कार करी पकवान साध्वीने वहोराव्यु. ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. घृत लेवा गृहमा गइ, मोती कालि उवेख ॥ साध्वीथी नृप पुत्रीए, करी कुबुधि विशेष ॥७॥ अर्थ ॥ पनी घी वहोराववा सारू मोतीनी कालने त्यां पडती मुकी, घी लेवा सारू घरमा गइ एटखामां राजपुत्रीए साध्वी परत्वे अत्यंत कुबुद्धि प्रवर्त्तावी. ॥ ७॥ ॥ ढाल २५ मी॥ ॥ सुण बेहेनी पियुडो परदेशी ॥ ए देशी ॥ मंत्री पुत्री घृत साध्वीने, नावे चढी वहोरावे रे ॥ गुरुणीजी नले गेह पधार्या, ए दिन लेखे श्रावेरे ॥ मं० ॥ १॥ तुम जेवाने मुखे ववराये, वस्तु ते गणीए लेखे रे ॥ जे को जगमा होवे अज्ञानी, ते तुम गुणने उवेखे रे ॥ मं ॥२॥ अर्थ ॥ मंत्रीनी पुत्री घी लावीने उत्तम लावना ए चढीने साध्वीने वहोरावती हती. तेणीए कह्यु हे गुरुणीजी आपलले पधार्या. आजनो दिन लेखे अयो. ॥१॥ जे वस्तु तमारा जेवाना मुखश्रीव पराय ते वस्तु लेखे थइ एम गणुं वं. जे लोको जगत्मां अज्ञानी तेज तमारा गुणोनी अवगणा करे ३.५ एहवे अणखली नृप पुत्री, नयणो मांडी थामी रे ॥ साध्वीनी साडीने पलवट, काली ले वलगामी रे॥ मं० ॥३॥ रूपमतीए वली साध्वीए, कपट कला नवि जाणी रे ॥खमकी लगण पहोंचामी गुरुणी, सचिव सुताहित आणी मं॥॥ अर्थ ॥ एवे समये ते अदेखी षी राजपुत्रीए पोतानी आंखो वांकी राखीने साध्वीना कपडाना पालवनी साथे मोतीनी कालने वलगाडी दीधी. ॥३॥ रूपमतीए तेमज साध्वीए राजपुत्रीनुं था कपट जरखं कार्य जाएयु नही. पनी हितनी कामी एवी मंत्रीपुत्री गुरुणीने खडकी सुधी वोलाववा गइ. ॥४॥ पानी हारने प्रोववा बेठी, थालमां कालि न दीठी रे ॥ एहांसि नकरो नृप कन्ये, हांसि अवरशुं नीठी रे ॥ मं ॥५॥ कालि बीजी पण व्यो जोए तो, शुं करशो एक राखी रे ॥ बेतरशो पण नवि बेतराजं, न गलाये जीवती मांखी रे ॥ मं० ॥६॥ अर्थ ॥ फरी मंत्री पुत्री हार परोववा बेठी, एटलामा थालमां कालि देखी नही, एटले कडं के बेहेन! श्रावी ते हांसि थाय, शुं बीजी हांसि करवानी नथी? ॥ ५॥ एक काल राखीने शुं करशो. श्रा बीजी काल पण जोइए तो सुखेथी ट्यो. तमे बेतरवा धारशो पण ढुं बेतरालं तेवी नथी. कां जीवती मांखी ते गलाय . ॥६॥ कहे नृप पुत्री सुणतुं बेहेनी, में नथी कीधी डांसि रे ॥ एवी हांसि न करे कोश, थाये जेहथी विखासी रे ॥मं॥७॥ कालितो तारी गुरुपीए लीधी, न यणे निरखी में तो रे ॥ हसते हसते मारे माथे, चोरी नांखी तें तो रे ॥मंगा॥ अर्थ ॥ पी राजपुत्रीए कह्यु हे बेहेन ! में तारी मस्करी करीज नथी. वली एवी मस्करी करायज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० चतुर्थ उल्लास नहीं के जेमांथी विखवाद उत्जो थाय ॥ ७ ॥ वली तारी गुरुणीएज ए काल उपाडी सीधी तेमें मारी आंखेज दीव्रं बे. अने तुं तो हसता हसतामां मारा माथा उपर चोरीनी खाल नांखे. ॥ ८ ॥ चोरे को पकड़ाये कोई, उलटी गति कोइ तारी रे ॥ तारा सम में लीधी होयतो, विनती मान तुं मारी रे ॥ मं० ॥ ए ॥ बोली सचिव सुता निसुणीने, नृप कन्याने निठोली रे ॥ मुज गुरुणीने कलंक तुं देती रहे बाइ तुं बोली रे ॥ मं० ॥ १० ॥ ॥ कोइक चोरी करे अने कोइकना माथा उपर श्राल चडे, तो तारी रीतज उलटी बे. हुं तो तारा समखां, में तो लीधीज नथी, श्रा वात साचीज मानजे. ॥ ए ॥ ते सांजलीने मंत्री पुत्रीए, राजकन्याने उपको देतां कछुके हे बेहेन ! मारी गुरुणीने शामाटे श्रावुं कलंक आपे बे ? तुं बोयाविना बेसी रहे. ॥ १० ॥ लेवा देवा पाखे ताहरे, एहथी एवको शो श्रांटो रे ॥ घटित क देतां तुज जीजीए, कांइन जांगे कांटो रे ॥ मं० ॥ ११ ॥ तृष पण एन लहे पण दीधुं, शुं करे फालिने लेइ रे ॥ एतो परिहरी ग्रही दिक्षा, मणि माणिकनी पेइरे ॥ मं० ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ तारे एनी साथे कांपण लेवा देवा शिवाय, तुं एना उपर श्रावमी शामाटे टस राखे बे. घटित बोलतां तारी जीने कांटो केम जांगतो नथी. ॥ ११ ॥ जे दीधाविनां तरखला मा - पण लहे नही ते कालि लइने शुं करे, कारण के एणे हीरा माणेकनी पेटीने पण तजी दइने दीक्षा ग्रहण करी बे. ॥ १२ ॥ एव्रत धरणी सूधी करणी, एहनो क्रम कोइ नाणे रे || योगी वाकव मता सरखी, रखे एहने करी जाणे रे ॥ मं० ॥ १३ ॥ एहना उप शम भूषण आगल, ए भूषण किए गणती रे ॥ एहवी महासती बनती रे ॥ मं० ॥ १४ ॥ ad, कही नही अर्थ ॥ एतो एवा उत्तम व्रतने धारण करनारी बे, एनी करणी मात्र श्रेष्ठ बे. एना उपर कोने शंकापावे नही. एने तुं जोगी ने रखता ब्राह्मण जेवी रखे जाणती ॥ १३ ॥ एना उपशम रूप भूषण पासे या कालि भूषण शुं गणतरीमां बे. एवी महा सतीना संबंधमां नहीं बनेली वातो कदापि न केवी जोइए. ॥ १४॥ धनसामु नवि जोवे थुंकी, पगला मांडे जोय फुंकी रे ॥ नवि दीवी कोइ मतिनी टुंकी, में तुज जेवी अचूकी रे ॥ मं० ॥ १५ ॥ न्यास रिये पण गांव न राखे, जाये तेवारे चाखे रे || हाथ न जाले दीधा पाखे, तो तुं एम कां जाखे रे ॥ मं० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ ए साध्वी धननी सामुं तो थुंकीने पण जोवे नही. जमीन उपर पग पण जमीन जोइने मुके, रखे पग नीचे धननो स्पर्श याय. में ताराजेवी टुंकी बुद्धिवाली कोई दीवी नहीं. या वातमां हुं भूलतीज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३०१ नथी.॥ १५॥ वस्त्रने मे पण गांव राखता नश्री. खाय पण क्यारे के ज्यारे मांगी लावे त्यारे; दीधाविना हाथमां पण काले नही. तो पड़ी तुं आम शामाटे बोले, ॥१६॥ कहे नृप पुत्री रुपमतीने, जो कडं मारुं न माने रे ॥ श्रापण बेहुं व सतीए एहनी, जश्ने जोए बाने रे ॥ मं० ॥ १७ ॥ ए पासे जो का लि खेडं तो मुज शाबाशी दीजे रे ॥ आपण वात ए साची कीजे, जेम मुजथी तुं पति जे रे ॥ मंग ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ पनी तिलक मंजरीए रुपमतीने कडं, हे बेहेन! जो तुं मारु कमु साचुं न मानती हो तो, आपणे बंने तेना उपाश्रये जय गनी रीते तपास करीए. ॥ १७॥ एनी पासेथी जो कालि कढा, तो मने तुं शाबाशी आपजे. मारे तो जे वात साची ने तेज केहेवानी, जेथी तने मारी उपर विश्वास बेसे.॥१॥ ते बेहु कन्या साध्वी वस्ती, श्रावी हसती हसती रे ॥ ढाल पचवीशमी मोहने जाखी, चोथे उबासे उलसती रे ॥मारए॥ - अर्थ ॥ ते बने कन्या साध्वीने उपाश्रे हसती हसती आवी. एवी रीते चोथा नवासमां मोहन विजयजी ए पचवीशमी ढाल कही. ॥१५॥ ॥ दोहा॥ ा पथिकी पमिकमी, साध्वी क्रिया पात्र ॥ श्रालो ए वे गो चरी, जोजन नामा मात्र ॥१॥ एहवे ते बेहु कन्यका, श्रावी वसती मोकार ॥ सचिव सुताए साचव्यो, वंदनादि व्यवहार ॥२॥ अर्थ ॥ ते समये क्रिया पात्र साध्वी वहोरवा सारूजतां लागेली र्यापथिकी क्रिया, शरीरने जा आपवा नोजन सेवा जे गोचरी सारु गया हता, ते पडिकमतां हतां. ॥१॥ एटलामां ते बंने कन्या उपाश्रय मध्ये श्रावी. मंत्री पुत्रीए साध्वीजीने वंदना करवा प्रमुख उचित व्यवहार सर्वे कर्यो. ॥२॥ मोहडे दे मुहपति, साध्वी कहे ते वार ॥ बाहिर बेसो बेहू तमे, करवो ने थाहार ॥३॥ श्रदर जो बेवो होए, तो पडखो घमी एक ॥ श्राज करंता एषणा, असुर थयुं बेक ॥४॥ अर्थ ॥ साध्वीजीए पोताना मुखपासे मुहपत्ति राखीने कडं के आमारे आहार करवो ने तेथी हमणां तमे बने बहार बेसो. ॥ ३॥ वली जो तमारे अदर लेवो होय तो एक घडी सुधी वार खमजो. आज अमने एषणा समिति शोधतां बहुज असुर थयुं . ॥४॥ मंत्री पुत्री ततकणे, ज बेठी एकांत ॥ नृपपुत्री जाए नही, हियडे कपट अनंत ॥ ५॥ बाहिर बेहेनी केम गश्, काम व सती मांहि ॥ श्राणी श्रालयमा फरी, सचिव सुताग्रही बांहि ॥६॥ अर्थ ॥ तत्काल प्रधाननी पुत्रीतो एकांतमां बेटे जइ बेली. परंतु राजपुत्री तेणीना अंतःकरणमां श्रत्यंत कपट होवाथी ते दूर गइ नही. ॥ ५॥ राजपुत्रीए मंत्री पुत्रीपासे आवी कह्यु के हे बेहेन ! तुं बहार केम गइ. कामतो नपाश्रयमांज बे एम कही मंत्रीपुत्रीनो हाथ काली फरी तेणीने उपाश्रयमा लावी. ६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०५ चतुर्थ उदास. साध्वी मन संशय धरे, ऐम केम बेहु एह ॥ श्राज तो कोश्क वातनो, दीसे वे संदेह ॥७॥ अर्थ ॥ श्रावी हील चाल देखी साध्वी मनमां विचारवा लाग्याके बंने जणी श्राम केम करती हशे. आजे को बाबतनो तेऊना मनमा संशय उत्पन्न थयो जणाय जे. ॥ ७॥ ॥ ढाल २६ मी॥ ॥ को राखेरे सूर सुनट को राखे रे ॥ ए देशी व ॥ बोली नृपनी पुत्रिका रे, अजा सुण मुज वाणी रे ॥ कहुं बु एकांते तुजने रे, राखतुं ताहाँ पाणी रे ॥१॥ को कोश्ने रे, कूडु कलंक न देशो रे ॥ ए श्रांकणी ॥ एहवं तुजने वहोरवु रे, केम गुरुपीए न पाव्यु रे ॥ गोचरी करतां चोर, रे, एहवं उदय केम श्राव्युं रे ॥ को॥ २॥ अर्थ ॥ एवामां राजपुत्रीए कयुके हे आरजा! हुँ तमने गुप्तरीते कहुं हुं के हवे तमारी शोना जेम रहे तेम करो तो सारू. (कवि कहे के) हे नव्य जीवो! कोश्ना उपर जूतुं बाल न मूकशो. ॥१॥ गोचरी वहोरवा जइए ते वखते लाग पडे तो चोरीपण करी लेवी एवं कश् गुरुणीए तने शिखव्यु हतुं. बाजे चोरवानुं मन केम थयुं? ॥२॥ घृतलेवा घरमां गश्रे, रुपमती एम जोली रे ॥ लीधी कालि तें एहनी रे, ते हवे जरता जोली रे ॥ को ॥३॥ दी नयणे माहरे रे, पण हुं तो नवी चे तीरे ॥ त्यारे जो जानत एवंडं रे, तुजने जवा न देती रे ॥ को० ॥४॥ अर्थ ॥ जे वखते आ सरल मनवाली रूपमती तमने घी वहोराववा सारू लेवा घरमा गइ ते वखते पातरा जोलीमां घालतां तमे तेनी कालि ल लीधी छे. ॥३॥ ते वखते हुं आंखथी जोती हती, परंतु हुँ एम नहोती जाणतीके तमे चोरीजशो. जो एवं जाणती होततो कदापि तमते जवा देत नही. ॥४॥ नहींतो हुं स्याने कडं रे, थश्ने मुखनी फोरी रे ॥ पण तुज चेलीए माहरे रे, माथे चढावी चोरी रे ॥ को ॥ ५॥ बेहेनी नूठं रखे मानती रे, ते माटे हुँ न बोली रे ॥ पण हवे घरघर ताहरो रे, देश पमदो खोली रे॥को॥६॥ अर्थ ॥ मारे आटला वाचाल अपने शामाटे तमने केहेबु जोइए? परंतु ढुं शुं करूं तमारी चेलीये कालिनी चोरी मारे माथे नांखी तेथी मारे कहे, पमे ॥ ५॥ मारी बेहेनने ते वखते खराब लागशे ते कारणथी ते वखते ढुं बोली नही, परंतु हवे तो हुँ एवातनो पडदो-गुप्तजेद घेर घेर तमारोप्रगट करीश.६ साध्वी कहे एम का कदे रे, रे मुग्धे अणजाएयु रे ॥ में तो विना थाहारथीरें, बीजं कांश नथी आएयु रे ॥ को० ॥ ७॥ संशय हो यतो सुखे जुलं रे, ए त्रिपणी ए जोली रे ॥ काली किसी वली हुं किसी रे, ए मुज न खपे जोली रे ॥ को० ॥ ७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०३ चंदराजानो रास. ___ अर्थ ॥ पनी साध्वीए कहूं के हे लोली कन्या! आई जाण्याविनानु केम बोले.. में त्यांथी आहार सिवाय बीजुं कांइपण आएयु नथी. ॥ ७ ॥ जो तारा मनमा शंका होय तो सुखेयी था तरपणी तथा कोली तपासो. मोतीनी कालि केवी अने हुँ केवी ! हे जोली ! ए कालि अमने लेवी खपे नही. ॥ ७॥ नृप पुत्री रोषे चठी रे, न कर अऊो मुज खोटी रे ॥ श्राप जली सनिधे कडं रे, मुज बेडेनीनी अकोटी रे॥ए ॥ नांगी मामी कोली जूए रे, नृप पुत्री सु प्रसिहि रे ॥ सामीए वलगामी जिहां रे, फालितिहाथी लीधी रे ॥को॥१॥ अर्थ ॥ पनी राजपुत्री क्रोध चढावीने बोली, हे आरजा! मने जूठी पाम नहीं. हे बाइ! हुँ तने कहुं बुं के हवे जली अश्ने मारी बेहेननी अकोटी श्रापीदे.॥ ए॥ पनी राजपुत्री खुसीरीते तो कोलीने चारे बाजुए आम तेम जोवामांडी. पछी तरतज साडीना पालव उपर ज्यां अकोटी वलगाडी हती त्यांची तरतज लश् लीधी.॥१०॥ थापी सचिव पुत्री प्रते रे, साध्वी जणी अवहेली रे॥ श्राज पली तुं एहने रे, बेसीशमां कहुँ नेली रे ॥ को० ॥ ११ ॥ रुपमती कदे नृपसुते रे, ए सवी क रणी तारी रे ॥ कहिये चोरी करे नही रे, जड़क गुरुणी मारी रे ॥को॥१२॥ अर्थ ॥ तरतज सादवीनी अवहेलणा करी, अकोटी मंत्री पुत्रीने श्रापी; अने कह्यु के श्राज पठी हवे कोइ पण दिवस तुं अनी सा बेसीशमां. ॥ ११॥ पी रूपमतीए कह्यु के हे तिलक मंजरी ! श्रा काम ताराज. मारी निर्मल अंतःकरणवाली गुरुणी कदापि कोइपण प्रकारनी चोरी करेज नहीं. ॥१॥ गुरुणीजी एहनुं कडं रे, रखे मनमांहि श्राणो रे ॥ ए मिथ्यात्वी एहमां रे, रखे मनमांहि श्राणो रे ॥ को ॥१३॥ पयप्रणमी गुरुणी तणां रे, रुपमती गृढे श्रावी रे ॥ नृप पुत्री घणीए कला रे, कीधी पण नवि फावी रे ॥ को॥ १४॥ अर्थ ॥ हे गुरुणीजी ! एजें बोलेलुं आप मनमां जरापण लावशो नही. एतो हड हमती मिथ्यात्वी जे. एनामां साची समजण रति मात्र नथी. ॥ १३ ॥ पनी गुरूणीना चरणमां नमस्कार करी रूपमती पोताने घेर श्रावी अने राजपुत्रीए अनेक कपटकला करी परंतु ते लेशमात्र तेमां फावीनही. ॥१४॥ हवे थालोचे प्रवर्तनी रे, नृप पुत्रीए कर्यु काचुं रे ॥ पण नगरीना लोकने रे, हियमे वसशे साचुं रे ॥ को ॥ १५ ॥ रोषवशे तिहां साध्वीए रे,लीधो निज गले फांसो रे ॥ चारित्रिया पण क्रोधथी रे,न विचारे निज वांसो रे ॥ को॥१६॥ अर्थ ॥ हवे साध्वी मनमां विचारवा लाग्या के राजपुत्रीए मारा माथा उपर जुठं आल मुक्युं ते वातमां ते फावी तो नही, परंतु नगरीना लोकोना मनमां तो साचुंज लागशे ॥ १५ ॥ पठी साध्वीए तो क्रोधने वश थश् गलामां फांसो घाट्यो. ( कवि कहे ) चारित्र धारण करनारा पण क्रोधने वश श्रतां परिणामशुं श्रावशे ते विचारता नथी. ॥ १६॥ पामोसण सुरसुंदरी रे, श्रावी ततक्षण दोमी रे ॥ फांसो साधवी कंथीरे, करूणा श्राणी नोमी रे ॥ को० ॥१७॥ थाहार कराव्यो पाडोशणे रे, श्रमणीने समजावी रे ॥ साध्वी पण समजी करी रे, समताने घेर श्रावी रे ॥ को रजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ चतुर्थ उबास. अर्थ ॥ एवे समये पामोशमां सुरसुंदरी नामनी एक श्राविका रेहेती हती ते तरत दोमी श्रावी अने तेणीए करुणायुक्त अंतःकरणथी साध्वीना गलामांथी फांसो काढी नांख्यो ॥ १७ ॥ ते पाडोशण सुर सुंदरीए, साध्वीने बहु बहु रीते समजावीने आहार कराव्यो. साध्वीने पण धीमे धीमे समजण श्रावतां क्रोध शांत थ ते समताना घरमां आवी. ॥ १० ॥ __ संयम पाले जावथी रे, अनुजव विनव विलासे रे॥ नाखी ढाल बवीशमी रे, मोहने चोथा उसासे रे ॥ को० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ साध्वीए निर्मल नावश्री चारित्र पाराधन करवा मांझयु अने अनुन्नवरूप वैनवनो विलास करती हवी. एवी रीते चोथा उवासमां बवीशमी ढाल मोहन विजयजीए कही. ॥ १५॥ ॥ दोहा॥ बेहु कन्याने परस्परे, अहनिश वचन संवाद ॥ जिन मत शैवी मत तणो, चाल्यो जाय विवाद ॥१॥ कोइ कोश्ना धर्मने, माने नही लगार ॥ बेहुं ए अवसर साचवे, निज निजना श्राचार ॥२॥ अर्थ ॥ ते बने कन्याउने निरंतर वाणी संवाद श्रतो हतो तेमां जिन मत अने शिवमत संबंधी विवाद चाट्याज करतो हतो॥१॥ बंने मांथी कोइ पण एक बीजाना धर्म उपर श्रघा करती नहती, एटलुंज नहीं पण अवसर श्रावे दरेक पोतपोताना आचारने साचवती हती. ॥२॥ एहवे नृप वैराटनो, जित शत्रु वमवीर ॥ शुरसेन तेहनो तनुज, सुरगिरि सम वमधीर ॥३॥ तेणे मंत्री मोकव्यो, जिहां तिलका पुर नाह ॥ करवा तिलक मंजरी थकी, शुरसेन विवाह ॥४॥ अर्थ ॥ एवा अवसरमां वैराट देशनो महा शुरवीर जित शत्रु नामनो राजा हतो तेने मेरू पर्वत समान महा धैर्यवंत शूरसेन नामनो पुत्र हतोते शूरसेननो विवाह, तिलकापुरीना राजानी पुत्री तिलक मंजरीनी साथे करवा सारू, पोताना मंत्रीने, मदन चमराजानी पासे मोकल्यो. ॥३॥ ४॥ प्रजे जनक सुता प्रते, पाणि ग्रहण स्वरूप ॥ हर खित थ पुत्री कहे, तातने वचन अनूप ॥५॥ जो मंत्रीनी पुत्रिका, वरए वरे सुजाण ॥ तो माहरे पण एहवर, वरवो करुं प्रमाण ॥६॥ अर्थ ॥ ते आव्यो एटले राजाए पोताना पुत्रीने लग्न संबंधी हकीकत केहेवा बोलावी, राजाए शुरसेन संबंधी वात केहेतांज तिलकमंजरीए पोताना पिताने हर्ष सहित कह्यु के जो रूपमती ए वरने वरवाने कबुल करे तो मारे पण एनी साथे लग्न करवा प्रमाण बे॥५॥६॥ अमे बेहु बालापण थकी, कीधो संकेत ॥ मली बेहु जणीए एकवर, वरवो वधते देत ॥७॥ अर्थ ॥ बाल्यावस्थाथी अमे बने बेहेनपणीनए एवो गुप्त रीते निश्चय कर्यो जे के आपण बने जणी उ ए एकज वरने वरवो जेथी आपणा स्नेहमां पण वृद्धि थाय. ॥ ७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३०५ ॥ ढाल २७ मी॥ ॥ कायापुर पाटण रूथमो ॥ ए देशी ॥ थापणा प्रकृत पुरुष प्रते,नाखे मकरध्वज राय रे॥श्राव्यो वे सचिव वैराटथी, करीए तस कवण उपाय रे ॥था॥१॥ माहरी ताहरी पुत्रीए, मन धर्यो एक जरथार रे ॥ कहे तो बेहुनो एक वरथकी, करीए विवाह निरधार रे ॥श्रा॥२॥ अर्थ ॥ ते सांजली मकरध्वज राजाए पोताना प्रधानने बोलावी कडं के वैराटना राजानो प्रधान आव्यो , तेनी हकीकत सांजलो अने करवा योग्य कार्य करो ॥ १ ॥ मारी अने तमारी पुत्री, बंने ए एक पतिनी साथे लग्न करवानो निश्चय कर्यो ने तेथी तमारो अभिप्राय होय तो बनेना एक वरनी साथे लग्न करीए. ॥ २ ॥ नृप जणी ताम मंत्री कहे, तेडो वैराट वकील रे ॥ लगननो दिवस निरधारी ए,माही नथी को ढील रे ॥श्रा॥३॥ तेडी वैराटनो मंत्रवी,नृप कहे श्राणी उछाह रे ॥ मेलव्यो अमे शुरसेनथी, बेहु सुता केरो विवाह रे ॥ ७ ॥४॥ अर्थ ॥ मंत्रीए कह्यु के हे महाराज ! ते वैराटना प्रधानने बोलावो अने लग्नना दिवसनो निरधार करो. मारी ते बाबतमां कोइ पण प्रकारनी ढील नथी॥ ३ ॥ पली वैराटना मंत्रीने बोलावी राजाए जत्साह पूर्वक कह्यु के अमे अमारी तथा प्रधानजीनी पुत्री एम बने कन्याउँनो शुरसेननी साथे विवाह संबंध कबुल करीए बीए. ॥४॥ लग्ननो दिवस निश्चय करी, श्रावी मंत्री वैराट रे ॥ ज जित शत्रुने विनव्यो, पाणि ग्रहण तणो घाट रे ॥ श्रा॥५॥ दोय गोरी तणो वालहो, थाशे कुंवर शुरसेन रे ॥ जान बहुमानढुंती सजी, उजली सागर फेन रे॥ श्रा० ॥६॥ अर्थ ॥ पठी लग्ननो दिवस नकी करीने वैराटना मंत्रीए आवीने जित शत्रु राजाने लग्न संबंधी सर्वे हकीकत निवेदन करी ॥ ५॥ आपणो कुंवर शुरसेन बे स्त्रीनो प्राणनाथ अशे एवं धारी लग्न सारू तैयारी करवा मांडी. समुना उज्वल फीण जेवी जनकादार जाननी सामग्री तैयार करी. ॥ ६ ॥ श्रावी तुरत तिलकापुरी, सुरसेनो वरराज रे ॥ नृप सुता मंत्री पुत्री वरी, मन तणां सिधलां काज रे ॥था ॥ बेहु सुसरे मली दायजो,देश गज, वाजी रथ जोय रे ॥ तुरत संप्रेडी लेश सासरे, नृपति मंत्री सुता दोय रे ॥ श्राण ॥॥ अर्थ ॥ पछी शुरसेन वरराजा जान सहित तिलकापुरीए आव्या. राजपुत्री अने मंत्री पुत्रीनी साथे पाणि ग्रहण कयु. पोताना मनना धारेला कार्य सिद्ध कर्या ॥ ॥ बंने ससराए, हाथी, घोडा, रथनी जोडी विगेरे जे जे करीश्रावर कर्यो ते सर्वे सहित राजपुत्री तथा मंत्री पुत्रीने तेमने सासरे बोलाववामां आवी. ॥ ७॥ कंत साथे बेहु श्रावी, नगर वैराट मोकार रे ॥ सासुए सद्य वहुरोजणी, सों प्यो गृह तणो नार रे ॥ श्राए॥ विलसे सुख विषयना कंतथी, ते बेहु वाध ते वेश रे ॥ कहीए लोपे नही कुल वधू, सासू ससरानो निर्देश रे ॥ श्राारणा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ चतुर्थ उदास. अर्थ ॥ पोताना स्वामिनाथनी साये बने पनि वैराट नगरमां श्रावी. ते सासरामां रेहेतांज थोडा वखतमा सासुए बंने बहुउने गृह संबंधी सर्वे कारनार सोंपी दीधो ॥ ए ॥ पोताना स्वामिनाथनी साथे बने जणी मन गमता लोग विलासनां सुख लोगवे बे. बनेनी रूप कान्ति वधती जाय जे. बंनेमांधी कोइ सासु ससरानी आज्ञा लोपती नथी. ॥ १० ॥ पण बेहु मांहो मांहे होवे, वचन विवाद का वार रे ॥ चित्त न मले एक एक,दोहिलो शोक व्यवहार रे ॥ श्रा॥११॥ शोकथी शूली रूडी कही,नही इहां मीनने मेष रे ॥ बेहु जो बेहेन सगी होवे,तोही पण वदे षरे॥श्रा०१२॥ अर्थ ॥ आवां सुख जोगवता बतां कोई कोई वखत अंदर अंदर बने जणीने वाद विवाद थतो हतो. शोकना व्यवहारनो संबंध दोहिलो होवाथी एक बीजानुं मन एक बीजानी साथे मलतुं न होतुं ॥११॥शोक करतां शूली नली ए वातमा लगार पण मीन-मेष नथी (ज्योतिष जोवानुं नथी) बंने सगी बेहेनो होय अने ते पण जो शोक थाय तो पेषी थया विना रहे नहीं. ॥१॥ दो को एक वस्तुनो, चित्तमां धरे अजिलाष रे ॥ एहज कारण वैरनु, डे बहु शास्त्रनी शाख रे ॥श्रा॥१३॥ शोकनो संबंध दोहिलो,कलह करता दिन जाय रे ॥ बोले मोसाने कोसें घj, रोष दियडे न समाय रे ॥ आ ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ एक वस्तुना बे जणा अनिलाषी पाय तो एवी अभिलाषा बनी रेहेतां वैरनुं कारण उत्पन्न थाय. एवी बहु शास्त्रोनी शादी ने ॥ १३ ॥ शोक संबंध अत्यंत दु:खकारक बे. तेना दिवसो क्वेश मांज जाय . बंने जणी एक बीजा परत्वे जुगं आल अने मेहेणां मारे बे. हैयामां क्रोध समातो नथी. जेहने दोय होवे कामिनी,तास फोकट अवतार रे॥श पण पार्वती जान्हवी, श्रादरी जमेय संसार रे ॥ श्राप ॥ १५ ॥ सुर नृप प्रेम सुब्ध थको, बेदु जणी राखे समान रे ॥ जालवे चित्त बेहुए तणां,जेम तंबोली निज पान रे॥श्रा॥१६॥ अर्थ ॥ जे जे बे स्त्री होय तेनो मनुष्य अवतार नकामो गयो एम समजवू. शंकर पण पार्वती श्रने गंगानी साथे परणवाथी संसारमा जटक्या करे ॥ १५॥ शुरसेन राजा तो प्रेममां आसक्त बने पत्निउने सरखी रीते राखे जे. बनेनां मन जेम तंबोली पानने साचवे तेम, साचवे . ॥ १६ ॥ चोथे उल्लासें सत्तावीशमी, मोहने वर्णवी ढाल रे ॥ नविक जन चित्त दक्ष सांजलो, आगल वात रसाल रे ॥ श्रा० ॥१७॥ अर्थ ॥ एवी रीते चोथा उवासमां मोहन विजयजीए सतावीशमी ढाऊ कही. हे नव्यजीवो ! तमे ध्यानपूर्वक सांजल जो. आगल वात बहुज रसाल ॥ १७॥ ॥ दोहा॥ तिलक मंजरीना तातने, रमती किणे श्राखेट ॥ काबर एक पर छीपनी,श्रावी कीधी नेट ॥१॥स्याम शिखा नयणां अरूण,चंचा कनक समान ॥ पांखो विच विच सित असित, वाणी पियूष पान ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३०७ __ अर्थ ॥ तिलक मंजरीना पिताने कोइ वाघरी-पारधीए एक पर दीपनी रमत करती काबरने लावी लेट करी ॥१॥ ते काबरने काली शिखा हती. तेनी बने आंखो राती हती. चांच सुवर्णनी जेवी हती. पांखोनी वचे वचे धोला अनेक लींसोटा हता. अने तेनी वाणी अमृतपान जेवी हती. ॥२॥ काव्य कथा दोहा जणी, घणी सुरंगी देह ॥ रीयो नूपति पंखणी, राखी सोवन गेह ॥३॥ पुत्रीने रमवा नणी, मुकी पुर वैराट ॥ तिलक मंजरी हरखी घj, देखी पंखणी घाट ॥४॥ अर्थ ॥ ते कविता बोलती, वार्ता कहेती अने दोहा गाती. तेनुं शरीर सारा रंगवालुं हतुं तेथी तेना जपर राजा बहु राजी श्रयो अने तेणीने सुवर्णना पांजरामा राखी ॥ ३ ॥ पोतानी पुत्रीने रमत गमतमां आनंद थवाने माटे राजाए तेने वैराट नगर मोकली. तिलकमंजरीए काबरनी सौंदर्यता देखीने मनमां बहुज हर्ष पामी.॥४॥ सदा रमाडे तेहने, पोषे नवल थाहार ॥ नापे रूपमती प्रते, रमवाने को वार ॥५॥ रूपमती मागे यदा,कहे नृप पुत्री एम॥ पीयर हुती पंखणी, तुं न मंगावे केम ॥६॥ अर्थ ॥ तिलक मंजरी तेने हमेशां रमामती हती, नवा नवा खान पानश्री पोषण करती हती. परंतु कोइ पण वखत रूपमतीने ते काबर रमत गमत सारू आपती न होती ॥५॥ ज्यारे कोश् वखत रूपमती ते काबरनी मागणी करती त्यारे तिलक मंजरी कहेतीके पोते पण पोताना पियरथी शामाटे एवी पक्षिणी मंगावीए नहीं. ॥६॥ माहारे ताते मोकली, ए रमवाने काज ॥ पियरथी मंगावतां, केम तुज श्रावे लाज ॥७॥ __ अर्थ ॥ मारा पिताए मने रमवा सारू ए काबर मोकली ने. ते प्रमाणे तने पण पोताने पियरथी एवी काबर मंगावतां शुं शरम आवे ने ? ॥ ७॥ ॥ ढाल २० मी॥ ॥राग सोरठ सामेरी ॥धनधन संप्रतिसाचो राजा ए देशी ॥ मंत्री मुहिता अति विलखाणी, सोकलडीने मोसे रे ॥ पण जोली मनमा नवि जाणे, विणसे जे कारज रोषे रे ॥१॥ जाणे रे नही कोश कर्मनी गतिने॥ ए आंकणी ॥ काबर एक मंगाववा कारण,पियर मुकयो कागली रे ॥ मंत्रीए पुत्रीना अदर वांची,शोक संबंध अटकली रे॥जाण्॥ अर्थ ॥ रूपमती पोतानी शोक तिलकमंजरीना मेहेणांथी जांखी पडी गइ. परंतु सरल मनवाली ते एम न समजी शकी के रोष करवाश्री पोतानुं कार्य बगमे बे. ( कवि कहे जे के ) कर्मनी गतिने कोश जाणी शकतुं नथी॥१॥ रूपमतीए एक काबर मंगाववा माटे पोताने पियर कागल लख्यो. मंत्रीए पोतानी पुत्रीना अदरो वांचतांज शोकना पेषना कारणथी पत्र आव्यानुं कली लीधुं. ॥३॥ For Personal and Private Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७ चतुर्थ उबास. वनमा गीरमा पुरमा काबर, जो पण नवि लाधी रे ॥ तात विचारें नही मुकुंतो, न रहे सुतानी बाधी रे ॥ जा ॥३॥ कोसी पंखणी एक कर श्रावी, नीले वरणे रूडी रे ॥ अणजाएयो अलगाथी जाणे, एह बे जे सुंदर सूडी रे ॥ जा ॥४॥ अर्थ ॥ मंत्रीए वनमां, पर्वतमा तथा शेहेरमा एम म गम काबर माटे खोल कढावी परंतु जोइए तेवी हाथ लागी नही. वली तेणे विचार्यु के जो नहीं मोकलुं तो पुत्रीनुं पण रहेशे नही ॥ ३ ॥ प्रयास करतां एक कोसी जातनी पक्षिणी लीला रंगवाली अने मनोहर हाथ लागी अजाण्यो होय, ते बेटेथी एमज जाणे के आतो सुंदर पोपटमी . ॥४॥ कंचन पिंजर मांदे घाली, पुत्रीने पहोंचामी रे ॥ रूपमतीए पिंजरथी काडी, खोले ले रमाडी रे ॥ जा ॥ ५॥ राखे पिंजर जतन करीने,रक्षक एक तस राख्यो रे ॥ दासीए तिलक भंजरीने जश्ने, नेद पंखणीनो नाख्यो रे ॥ जा॥६॥ अर्थ ॥ सुवर्णना पिंजरमां कोसीने मुकीने ते पांजरूं पुत्रीने पहोंचाडयु. रूपमतीना हाथमा आवतांज तेणे पोताना खोलामां लश्ने तेने रमाडवा मांडी ॥ ५॥ कोसीने सारी रीते सार संजाल पूर्वक पांजरामां राखी, तेनुं रक्षण करवा एक माणस राख्यो. आ पक्षिणी संबंधी सघली वात एक दासीए तिलक मंजरीने कही. ॥ ६॥ शोके पियरथी पंखिणी अणावी, निसुणी रोष जराणी रे॥ पारकी श्रांजी देखी न शके, अहो कां अकह कहाणी रे ॥ जाण ॥ ७॥ को दिन शोक बेहु मली बेठी, निज निज पंखी वखाणे रे ॥ कोसी नाणी पण जाणीए श्राण्यो, वीबी चढावी गणे रे ॥ जा ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ पोतानी शोके पियरथी एक पक्षिणी मंगावी ए वात सांजलीने तिलक मंजरी बहु क्रोध युक्त थश् गइ. बीजानी शोला जे आंखे न देखी शकाय ए पण एक न कही शकाय एवी केहेवत ने ॥७॥ कोइ एक दिवस बंने शोक्यो एकची बेसी पोतपोताना पहीना वखाण करे जे; कोसी जोके समजण वाली हती; जाणे बांणा उपर वींनी चढावीने आण्यो होय तेवू थयु. ॥७॥ एक कहे मारी काबर रूमी, एक कहे मुज कोसी रे ॥ जेम एक ग्राहक आवे वलगे, पामोशी बेहु दोशी रे ॥ जा०॥ ए॥ कहे बेज जणाजं जोशए केनी, पंखिणी मीतुं बोले रे॥ वादे चढी होड्या परवी, निज निज पिंजर खोले रे ॥ जा० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ एके कयु के मारी काबर सारी ने त्यारे बीजी ए कह्यु के कोसी सारी जे. जेम एक घराक श्रावतां बंने दोशी वाणीया तेने वलगी पमी पोताना मालना वखाण करे तेना जेवू थवा मांडयुं ॥ ए॥ बंने जणीने एवी होड करवा मांडी के जोइए कोनी पक्षिणी वधारे मी बोले वे एवी रीते वाद विवाद करतां सरत करी अने पोत पोताना पांजरां खोट्यां. ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. कावर जेम बोले नर वाणी, तिलक मंजरी तेम कुदे रे ॥ रूपमती बोलावे कोशी, जेह बे पिंजर जुदे रे ॥ जा० ॥ ११ ॥ बोलावे प किमही न बोले, नरनी वाणी कोशी रे ॥ रूपमतीए मनमां जाएयुं, ए तो फुटरी फोसी रे ॥ जा० ॥ १२ ॥ ॥ जे जे कार मनुष्यनी जाषा बोलवा लागी तेम तेम तिलक मंजरी हर्षथी कुदवा मांगी. श्रहींच्या रूपमतीए पण जुदा पांजरामांनी कोशीने बोलाववा मांमी ॥ ११ ॥ रूपमतीए कोशीने मनुध्यानी वाणी बोलवा अनेक प्रयास कर्या पण ते कोइ रीते बोली नही तेथी तेणे मनमां जाएयुं के तो मात्र रूपाली बे परंतु माल वगरनी बे ॥ १२ ॥ खीजवे सोकम रूपमतीने, कांइ दसाडे पमोसी रे ॥ मारी काबर उपर जवारी, नांखु एहवी कोसी रे ॥ जा० ॥ १३ ॥ रूपमती हत्ती घणीए माही, पण पंखी थी रोषी रे || गल जावी कोइ न समजे, कुण जाणे कुण जोशी रे ॥ ज० ॥१४॥ अर्थ ॥ तिलक मंजरी रूपमतीने खीजववा लागी के ग्राम पाडोशी हसे एवं शुं काम करे बे ? क्यां काबरने क्यां कोसी ? मारी काबर उपर एवी कोसीने तो उवारी जाउ. अर्थात् तेनी गल ते कशा लेखामां नथी ॥ १३ ॥ रूपमती घणीज डहापण वाली हती परंतु पंखी उपर तेने गुस्सो चमयो. जावी गल कोइनी समजण कामनी नथी. पक्षी कोण ज्ञाताके कोण जोशी १ ॥ १४ ॥ के कही घणुं वारी, वात तुं न कर कुमोसीरे ॥ तो पण रूपमतीए को - सीनी, पांखो नांखी खोसी रे ||१५|| जोर न चाल्यु कां पंखीनुं, सोल पहोर दुःख पावी रे ॥ पढ़ोती परजव श्रार्त्तध्याने, स्त्री अवतारे श्रावी रे ॥ जा० ॥ १६ ॥ अर्थ | कोसीना रखवाले रूपमतीने बहु बहु रीते वारीने कां के आम गुस्सो करी परिणाम खराब एवं शुं काम करो बो परंतु रूपमतीए ते वात नहीं मानतां कोसीनी पांखो खेंची नाखी ॥ १५ ॥ पक्षीनुं कांइ पण जोर चायुं नही. तेणे सोल पहोर सुधी दुःख जोगव्युं अने ते आर्त्तध्यानमां मरण पामी परजवमां स्त्रीना अवतारमां जन्म थयो. ॥ १६ ॥ गिरि वैताढये गगन वल्लनपुर, पवन वेग नृप राणीनी कूखे, ते कोसी पुत्री प्रसवी, बहु कोडे आनंदे परणावी रे ॥ धन्य रे ॥ वेगवतीनी उत्पन्न रे ॥ जा० ॥ १७ ॥ वीरमती तेणे दुलरावी रे ॥ वीर नृपतिने आजा पुरीए, जा० ॥ १८ ॥ ३० Jain Educationa International ॥ कोसीनो जीव वैताढ्य पर्वत उपर गगन वल्लनपुर नामना नगरना पवन वेग नामना राजानी वेगवती राणीनी कुखे पुत्री पणे उत्पन्न थयो । १७ ॥ ते पुत्रीनुं नाम वीरमती पाडयं. तेने बहु रीते लाम लगावी उबेरी ने मोटी थतां श्राज्ञानगरीना वीरसेन राजानी साथे आनंद जर परणावी ॥ १८ ॥ पर दत्त विद्या साधी, कीधुं राज्य सुसाखी रे ॥ अवावीशमी चोथे उल्लासे, मोहने ढाल ए जाखी रे ॥ जा० ॥ १७ ॥ For Personal and Private Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० चतुर्थ उदास. अर्थ ॥ अप्सराए आपेली विद्या साधीने तेणीए बहु सारी रीते राज्य कर्यु. एवी रीते मोहन विजयजीए चोथा उवासमां अनावीशमी ढाल कही. ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ रूपमतीनी दासीए, श्राणी मन उपगार ॥ संजलाव्यो कोसी जणी, महामंत्र नवकार ॥१॥ कोसी बाहिर परठवी, रूपमती मन श्राप ॥ पंखी वध कीधा तणो, मांडयो पश्चाताप ॥२॥ अर्थ ॥ कोसीना मरण समये रूपमतीनी दासीए पोताना मनमा उपकारनी बुधिए कोसीने नवकार महामंत्र संजलाव्यो ॥ १॥ कोसी मरण पाम्या पनी तेने बहार परवी दीधी. पनी रूपमतीना मनमां पक्षिणीनो वध करवा संबंधीनो पश्चाताप श्रवा मांझयो. ॥॥ तिलक मंजरी मिथ्यात्वणी, जन्मथी पुष्ट स्वजाव ॥ कोशीक गति दीठे वध्यो, जिन मत निंदा दाव ॥३॥ रेरे रूपमती निसुण, एहवो तुज जिन धर्म ॥ मुखे पुकारे जे दया, एहवां करी कुकर्म ॥४॥ अर्थ ॥ तिलक मंजरी जे मिथ्यात्वणी हती अने जेनो जन्मथीज 5ष्ट स्वन्नाव हतो तेणे कोसीना श्रावा हाल करवामां आव्या ते देखी जिनमतनी निंदा वधारे करवानुं सूज्युं ॥३॥ हे रूपमती तुं सांजल ! शुं श्रावो तारो जिनधर्म , के आवां कुकर्म करीने मात्र मोढेश्रीज दयानो पोकार कर्या करे बे. पंखी वधतां पापणी, केम चाख्या तुज हाथ ॥ हुँतो कहीए नवि हणुं, एहवा जीव श्रनाथ ॥५॥ शोक तणे वचने लह्यो, रूपमती विषवाद ॥ वाध्यो बेहु शोक्यो नणी, निज निज धर्म विवाद ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ हे पापिणी ! आवी रीते पंखीनो नाश करवामां तारा हाथ केवी रीते चाली शकया. ढुं तो कदापि एवा अनाथ-निरपराधी जीवनीहिंसा करूंज नहीं ॥ ५॥ तिलक मंजरीना आवां सख्त वचनश्री रूपमतीने बहुज खेद अयो. बंने शोकयोनीवचे पोत पोताना धर्म संबंधी बहुज तकरार वधी पमी. ॥६॥ वारे घj ए वालहो, तेम विमणी थाय ॥ जेम पावक ज्वाला वधे, जेम जेम घृत सिंचाय ॥ ७॥ अर्थ ॥ बने राणीने सुरसेने बहु बहु रीते वारी परंतु बने जणी विशेषे विशेषे विरोधी इ. जेम अग्निमां घी नाखतां ज्वाला वधे तेना जेवी तेनी दशा थइ ॥ ७॥ ॥ढाल ए मी॥ ॥ बापडली रे जीजमली तुं कां नवि बोले मीतुं ॥ ए देशी ॥ रूपमती घणुं ए पस्ताये, कोशिकने पुःख देश॥ पण कीधुं श्रणकीधुंन होवे, नान कहाये केश रे ॥ बापडला रे जीवमला तुं करजे काम विमासी ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ विहंडे जातुं श्रावतुं विदडे, कर्मए करवत कासी रे ॥ बा ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३११ अर्थ ॥ रूपमतीए कोसीने दुःख दइ मारी नांख्या पबी घणो पस्तावो कर्यो. परंतु जे कर्तुं ते क इ शकतुं नथी. ते वातमां कोइथी कांइ पण कही शकाय नही. ( कवि कहे बे ) हे रांक जीव ! विच करजे ॥ १ ॥ कर्मनो एवो स्वभाव बे के जेम कासीनुं करवत जतां श्रवतां मस्तकने कापे ते कर्म पण जतां श्रावतां विडंबना करे बे. ॥ २ ॥ रूपमती जे मंत्री पुत्री, पंखी पातिक पुरी ॥ पण बे जिनमतनी खाराधक, नही कोई वा अधूरी रे || बा० ||३|| पूरव देशे आजा नगरी, वीरसेन धृत धरणी ॥ चंद की पण अधिकी सुंदर, चंद्रावती तस घरणी रे ॥ बा० ॥ ४ ॥ ॥ प्रधान पुत्री रूपमतीए जो के पंखीनो घात करी पूर्ण पाप बांध्यं परंतु ते जनमतनी श्राराधक हती, अने ते वातमां कोइ पण रीते अपूर्ण न होती ॥ ३ ॥ पूर्व देशमां आजा नगरीना राजा वीरसेननी चंद्र की पण अधिक कान्ति वाली चंद्रावती नामनी राणीना ॥ ४ ॥ जीवित पूरण रीते, रूपमती कोइ दिवसे || आजाए चंद्रावती उदरे, रूमे रिख्खे निवसे रे ॥ बा० ॥ ५॥ पूरण मासे अंगज प्रसव्या, चंद नाम तस दधुं ॥ करो विधे अथवा करो विधे, न मिटे धर्म जे कीधुं रे ॥ बा० ॥६॥ अर्थ ॥ उदरमां रूपमतीनो जीव पूर्ण आयुष्य जोगवीने कोइक दिवसे शुभ मुहूर्त्ते गर्भमां श्राव्यो ॥ ५ ॥ पूर्णमास यतां चंद्रावतीए पुत्रने जन्म श्राप्यो तेनुं नाम चंद पारुयुं. कवि कहे बे के विधिपूर्वक विधिपूर्वक धर्म जे कर्यु होय ते निष्फल यतुंज नथी. ॥ ६ ॥ तो जे कोसी रखवालो, ते थयो सुमति प्रधान ॥ जे पंखीनी करूणा श्राणी, एतस फल अमलान रे ॥ बा० ॥ ७ ॥ जे पोसाल तणी पाडोसण, सुर सुंदरी हित करणी ॥ तेह य नृप चंद एताहरी, प्रथम गुणावली घरणी रे ॥ बा० ॥८॥ ॥ जे कोसीनो रखवाल हतो, तेनो जीव सुमति प्रधान थयो. मात्र पंखीना उपर दयाना परिणाम होवाथीज तेने वुं निर्मल फल प्राप्त श्रयुं ॥ ७ ॥ जे उपाश्रयनी पाडोसा, साध्वी ने हितनी करनारी सुरसुंदरी हती, ते हे चंदराजा ! तमारी प्रथमनी पटराणी गुणावली थइ ॥ ८ ॥ राजसुता जे तिलक मंजरी, हुती मिठा पछी ॥ विमल पुरीए नूपति पुत्री. थइ ते प्रमला लच्छी रे ॥ बा० ॥ ए॥ श्रद्धा जीव थयो कनकध्वज, पूरव रोषे कोढी ॥ कोई अज्ञानी किमपि न जाणे, कर्म तपी गति पोढी रे ॥ बा०॥१०॥ अर्थ ॥ राजपुत्री तिलक मंजरी जे मिथ्यात्वपक्षी हती ते विमलापुरीना राजानी प्रेमला लम्बी नामनी || || साध्वीनो जीव गुस्सो चढवाने लीधे गले गले फांसो नांखवाथी कोढी कनकध्वज थयो. विचारो के अज्ञानी जीव कर्मनी यावी गहन गति केवी रीते जाणी शके ॥ १० ॥ पुत्री धावए कपिला जीव काबरनो, जेणे वढवाम लगामी ॥ नटवर जीव बे शुरसेननो, परण्यो जे बेहुलामी रे ॥ बा० ॥ ११ ॥ रूपमतीनी पूर्वे दासी, तेह थइ नट बाला ॥ कर्म प्रवाह जेणे दिस चाव्या, नगणे नदी नाला रे || बा० ॥ १२ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३११ चतुर्थ उदास. अर्थ ॥ काबरनो जीव ते कपिला धाव पणे उत्पन्न अयो. जेणे वढवाम जमावी. शुरसेननो जीव जे बने कुंवरीनो स्वामि हतो ते नटवर शिव कुंवर थयो ॥ ११॥ रूपमतीनी दासीनो जीव नटनी कुमारी शिव माला अश्. कवि कहे जे-कर्मनो प्रवाह जे दिशाए चाट्यो ते दिशाए चाट्योज. ते नदी के नालां कां पण हिसाबमां गणतो नथी. ॥ १॥ कुष्टीनो हिंसक जे मंत्री, ते काबर रखवालो ॥ पारन श्रावे पूरव नवनो, जेम गहीलीनो गवालो रे ॥ बा॥१३॥ श्री मुनि सुव्रत जिनजीए जाख्या,एम पूरव जव सहुना ॥ रे श्राजापति समज समजतुं, कहीए तुज किंबहुना रे ॥बा॥१४॥ अर्थ ॥ काबरना रक्षकनो जीव, कोढीया कनकध्वजनो हिंसक मंत्री अयो. जेम घेली स्त्रीना गोटासानो पार आवतो नथी तेम पूर्वे करेलां नवोजवनां कर्मनो पण पार आवतो नश्री॥ १३ ॥ एवी रीते श्री मुनि सुव्रत जिनराजे सर्वेना पूर्व नवनो वृत्तांत कह्यो. पबी कह्यु के हे चंदराजा! तमे समजो समजो. वधारे हवे तमने शुं बोध आपीए. ॥१४॥ पांखो उखेड्यानो कोसीए, लीधो वैर प्रसिझो ॥ इह जव तुंजने वीरमतीए, मंत्रे कुकड कीधो रे ॥ बा ॥ १५॥ की, कर्म जे उदये श्रावे, तिहां नहीं कोश्नो चारो ॥ काढ्यो डे एम सघले जीवे,आप आपणो वारो रे ॥वा॥१६॥ अर्थ ॥ कोसीनी पांखो परनवमां तमे खेंची काढी हती तेनुं वेर आ लवमां प्रसिद्ध रीते लीg, तेज कोसीना जीव वीरमतीए श्रा नवमां तमने मंत्रश्री कुकडो बनावी दीधो हतो ॥ १५॥ करेलां कर्म उदयमां आवे तेमां कोनो उपाय नथी. सर्व जीव पोतपोतानां कर्मने अनुसारे कर्मनां फल वारा प्रमाणे जोगवे बे-ए सार बे. ॥१६॥ पूर्व नवे साध्वीने चोरी, दीधी थइ निःशंकी ॥ प्रेमला लली तो केहेवाणी, विष कन्याथी कलंकी रे ॥ बा॥१७॥ पूर्वे जेम कोसीक रक्षकनो,कांश न रह्यो काल्यो ॥ गुणावलीनो एणे नव पण, वीरमतीथी न चाट्यो रे ॥ बा ॥१॥ अर्थ ॥ पूर्व नवमां साध्वीना उपर निःशंकपणे चोरीन कलंक मुकयु तो आ नवमां प्रेमला सही रीके कलंकवाली केहेवाणी ॥१७॥ पूर्व नवमां जेम कोसीना रखेवालन रूपमती पासे कांड चाट्युं नही. तेम गुणावली, पण आ नवमां वीरमती पासे कां चाट्युं नही. ॥१७॥ दासीए कोसी निजामी, पूर्व नवे मन रंगे ॥ इह जव शिव मालाए कुर्कट, दीधो प्रेमला संगे रे ॥ बा ॥१॥ चंद नरेशे सुमति निशेषे, हियमा मांहि श्राण्यो ॥ पूरव जव अधिकारने जाएयो, श्री जिनजीये वखाण्यो रे ॥ बा॥२॥ अर्थ ॥ पूर्व नवमां करूणा सहित दासीए जेम कोसीनी महामंत्र नवकारनुं स्मरण आपी निजामी तेम आ जवमां शिवमालाए प्रेमला लजीना संगमां कुकडाने आपी सारवार करावी ॥ १ए॥ चंदराजा तथा सुमति प्रधाने श्री मुनि सुव्रत जिनराजजीए पूर्व नवनो जे जे अधिकार वर्णव्यो ते सर्वे पोत पो. ताना हृदयमा धारण कर्योः ॥ २०॥ श्री जिनराज तणा चरणांबुज, प्रणम्या चंद नूपाले ॥ ____ मोहन कहे रस चोथा उल्लासनी, उंगण त्रीशमी ढाले रे ॥ बा ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३१३ अर्थ ॥ चंद राजाए श्री मुनि सुव्रत स्वामिना चरण कमखमां नमस्कार कर्यो. एवी रीते मोहन विजयजीए चोथा उवासमां उगणत्रीसमी ढाल रस युक्त कही. ॥२१॥ ॥दोहा॥ जिन वाणी निसुणी करी, चंद थयो बहु दक्ष ॥ मिटि ब्रान्ति नयणे निरखि, पूरव जव प्रत्यद ॥१॥ कर जोडी बोनी कपट, तोडी माया फंद ॥ दोमी नावेथी नमे, श्री श्री ज्ञान दिणंद ॥ ॥ अर्थ ॥ जिनेश्वर नगवाननी वाणी सांजलीने चंद राजा बहु डाह्यो थयो, उहापोह करतां जाति स्मरण ज्ञान अतांज पोतानो पूर्व नव प्रत्यक्ष देखतां शंका टली ग॥ १॥ कपट विना-सरल अंतःकरणथी हाथ जोडी तथा मायानी जाल त्रोडीने शीघ्रपणे श्री ज्ञान सूर्य रूप जिनराजने लावधी नमस्कार करवा लाग्यो. ॥२॥ तुज जेवो तारक मये, नव सागरनो पार ॥ जो स्वामि पामुं नही, तो मुज कवण श्राधार॥३॥कीधो मुज पोता तणो,देखामी नव नीति ॥ हवे प्रज्जु मुजथी पालवी, पोता वटनी रीति ॥४॥ अर्थ ॥ हे जिनराज! जवरूपी सागरनो पार पमाडनार तमारा जेवा तारक प्राप्त श्रया परी जो हुँ संसार समुज्नो पार पामुं नहीं तो पनी मारे कोनो आधार के ? ॥ ३ ॥ मने संसार संबंधी पडतां मुःखोनुं स्वरूप बतायी जवथी बीतो करी पोतानो बनाव्यो माटे हे प्रनु ! हवे पोतापणानी रीति पण पालवी पडशे. ॥ ४॥ पूरे गज पाला दवे, साहामा चाले मीन ॥ जल पण पोतावट गणे, नगणे दीन श्रदीन ॥५॥ जिन कहे देवाणु प्रिये, मा पडि बंध करेह ॥ अनुमति ले कुटंबनी, चारित्र चित्त धरेह ॥६॥ अर्थ ॥ नदीना पूरमां हाथी घसमा जाय अने मामला सामे पुरे चाले एवं बने में ज्यारे जल पण पोतापणुं गेमतुं नथी, तो आप जेवाए दीन के तवंगर नहीं जोतां पोता पणुं साचव, जोइए ॥ ५॥ श्री जिनराजे कयुं के हे देवाणु प्रिय ! चंदराय ! प्रतिबंध करो नहीं. कुटुंबनी संमति लश्ने चारित्र हृदयमां धारण करजो. ॥६॥ करी प्रज्जु चरणे वंदना, श्राव्यो नूपति गेह ॥ चरण करण गुण उपरे, प्रगट्यो पूरण नेह ॥७॥ अर्थ ॥ मनुना चरण कमलमां नमस्कार करी राजा जेना हृदयमां चारित्र धर्म उपर संपूर्ण प्रेम उत्पन्न अयो: एवो, पोताने घेर श्राव्यो. ॥ ७॥ ॥ ढाल ३० मी॥ ॥थिर थिर रे चंदला मकरिश विदाएं ॥ ए देशी॥ देवी गुणावली प्रेमला लली, ए बेहु चंदे तेडी रे ॥ मांडी एकांते वैराग्यनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ चतुर्थ उवास. वातो, विषय कथा नवि की रे ॥१॥ थिर थिर रे चेतर संयम पंथे, नूले कां श्राव्ये बाजी रे॥पति पत्नीनुं मन जो राजी,शंकरशे त्यां काजीरे ॥२॥ अर्थ ॥ चंद राजाए गुणावली देवी तथा प्रेमला लली, ए बने राणीने बोलावीने तेनी साथे लोग विलासनी वातो नहीं करता एकांत वैराग्यनी वातो करवा मामी. (कवि कहे ) हे चेतन ! संयम मार्गमा स्थिर था. बाजी जे हाधमां आवी जे ते जीतवामां शुं काम नूल करे जे? जो पति पत्नीनुं मन राजी होय ने तो काजी वचमा पडी शुं करी शकेले. ॥१॥२॥ रे वनिते श्रमे संयम लेशं, श्री पुरूषोत्तम पासे रे ॥ तृप्त थयुं मन राज्य लीलाथी, जिन वाणी विश्वासे रे ॥ थि ॥३॥ जीवित अंजलिना जल सरखं, अथवा जलनो परपोंटो रे ॥ काया असती माया जेवी, करवो जरुसो ते खोटो रे ॥ थि० ॥४॥ अर्थ ॥ हे विनयवंत स्त्री ! हवे अमे पुरुषोत्तम उत्तम एवा श्री मुनि सुव्रत स्वामि पासे चारित्र ग्रहण करशुं. जिनेश्वर नगवाननां वचन उपर श्रद्धा थवाथी हवे राज्य लोगथी अमारूं मन तृप्त अवाथी ते उपर उदासीनता थर ३ ॥३॥ आयुष्य अंजलिमा राखेला पाणी सरखं अथवा जलना परपोटा सरखं ने; वली शरीर व्यभिचारिणी स्त्रीनी प्रीति जेवू ले. तेनो नरोंसो करवो तेज खोटुं .॥४॥ मांस रूधिर गाराथी कीधी, खडकी हाम नीतडली रे ॥ नसनी वलीउ रोमने घासे, बार काष्टा कुंपडली रे ॥ थि० ॥५॥ जोजन पुरणीए पूरायें, पवनने थंने थंनी रे ॥ श्रन्यंगनादिके लीपी तो पण, अवधे न रहे उनी रे॥ थि० ॥६॥ अर्थ ॥ मांस अने लोही रूप गाराथी श्रा हांड पिंजर रूप जीत उनी करेली-चणेली ने तेमां नस रूप वलीउनी जोए त्यां गोठवण करी वाल रूपी घासथी आ कायारूप कुंपली गर जे ॥ ५ ॥ जोजन रूपी पुरणीथी तेने पुरवामां आवे ने अने पवन रूपी यांजलाथी तेने टकावी राखवामां आवे बे तथा स्नान विलेपनादिथी लिपवामां आवे ने तो पण मुदत पुरी अतां टकी शकती नथी. ॥ ६॥ कागलने नावमले बेसी, केम उमे जल तरीए रे ॥ तेम ए काया केम ठहराये, ए उस्तर जव दरीए रे ॥ थि० ॥७॥ मेलो श्रापणडो वार अनंती, हुवो नाव्यो बेहडलो रे ॥ श्रथिर ए मेलो केम करी गजे, गहिली माथे बेहडलो रे ॥ थि० ॥ ॥ अर्थ ॥ कागलनी होडी बनावी तेमां बेसीने ठंडा एवा समुज्ने केवीरीते तरी शकीये ? ते जेम तरी शकाय नही तेम श्रा नवरूपी समुष आवी कायामां स्थिर रही केवी रीते तरी शकीये ॥ ७॥ आपणो अरस परस मेलाप अनंतीवार श्रयो ने तेनो को वखत अंत श्राव्यो नही. तेथी आवा प्रकारना मेलापथी सर्यु ? तेवो मेलाप घेलीना माथा उपरना पापीना बेडां जेवो .॥॥ जे घरणी, धरणी नृपकरणी मणि कणाकोमि कमावे रे ॥ जेह जिहां होवे तेह तिहां रहे, कोइ किण संग न आवे रे ॥ थि॥ ए॥ जगत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३१५ तणी स्थिति कणिक देखीने, थयो ढुं नववैरागी रे ॥ द्यो अनुमति तो खेलं दीदा, जिन वचने रढ लागी रे ॥ थि० ॥१०॥ अर्थ ॥ स्त्री, पृथ्वी, राज्य लोग विलास, हीरा माणेक अने कोटि गमे अन्य जे जे प्राप्त थाय तेज्यांनुं त्यांज रहे बे, मरण समये कांपण साथे श्रावतुं नथी.॥ ए॥ जगत्नी रचना आवीरीते क्षणनश्वर देखवाथी हुँ संसारथी वैराग्य पाम्यो बु. हवे जो तमे मने रजा आपो तो हुँ चारित्र धारण करूं. जिनराजनां वचनमा मने गाढ प्रेम श्रयो के. ॥ १० ॥ कदेशो तो पण न करो तो पण, मारे संयम लेवो रे ॥ कोश्ने कह्यो केम न खाये, मुखे श्राव्यो जे मेवो रे ॥ थि०॥ ११॥ राणीए वचन सुणी वालमनां, राखवा घणुं कीधी रे ॥ वार्यो नरह्यो तव करजोमी, संयम अनुमति दीधी रे ॥ थि० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ तमे रजा आपशो अथवा नहीं आपो तोपण मारे तो संयम लेवो जे. शुं मुखनी पासे श्रावीने पडेदो मेवो माणस नूख्यो उतां बीजाना ना कहेवाथी न खाय? ॥११॥ बंने राणीउए पतिनां वचनो सांजली तेने संसारमा रेहेवा बहुज विनंती करी; अनेक रीते वारता उतां कबुल न कर्यु त्यारे बे हाथ जोडी संयम लेवानी अनुमति आपी. ॥ १५ ॥ राज्य बालानगरी नृप चंदे, गुणशेखरने दी● रे ॥ मणि शेखरा दिक अवरसुतोनुं, मनडुं राजी कीधुं रे ॥ थि० ॥१३॥ सातसे राणी सुमति मंत्रीश्वर, शिवनट सकल सुवेद्यं रे ॥ विनवे चंद नणी क रजोडी, अमे पण संयम बेशुं रे ॥ थि० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ चंदराजाए आना नगरीनु राज्य गुणशेखरने आप्यु भने मणिशेखर प्रमुख बीजापण राज्य कुमारोने वाजबी रीते गरास आपीने सर्वना मनेन संतोष पमाड्यो. ॥ १३ ॥ सातसे राणी, मंत्रीश्वर सुमति अने शिवकुमार नट तथा शिवमाला विगेरे चंदराजाने विनंति करवा लाग्या के अमे पण आपनी साथे संयम लेशु.॥ १४ ॥ हरख्यो चंद करी आडंबर, दीदा दित परवरी रे ॥ नृप चढते प रिणामे चढीयो, सिंहवली पाखरी रे ॥ थि० ॥ १५ ॥ श्रीमुनिसुव्रत चरणे श्राव्यो, प्रनुजीए पण समजाव्यो रे ॥ तेम चंदादिक नाव चारित्रीये, नाव अधिक मन श्राव्यो रे ॥ थि० ॥ १६॥ अर्थ ॥ पळी चंदराजा महा आम्बर सहित हर्षवंत थ दीक्षा सेवा तैयार थयो. राजाना चारित्र परिणाम उत्तरोत्तर वधवा लाग्या. एक तो सिंह अने वली तेने पाखों एटले पनी शोनामां कचाश रहे? ॥ १५॥ पनी चंदराजा श्रीमुनिसुव्रतस्वामिनीपासे श्राव्या. तेउने परमात्माए उत्तम बोध आप्यो. जे सांजली चंद प्रमुख नाव चारित्रवंतोना नाव अधिक वधवा लाग्याः ॥ १६ ॥ For Personal and Private Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ उल्लास. चंदने धन्य इंद्रादिक जाखे, निरखीने धन्य करणी रे ॥ श्रीशमी ढालए चोथे उल्लासे, कही मोहने जवतरणी रे ॥ ० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ समवसरणमां इंद्रादि देवो चंदराजाना उत्तम चारित्र परिणाम जोइ तेनी करणीने धन्यवाद देवा लाग्या. एवी रीते या चोथा उम्नासमां त्रीशमी ढाल मोहन विजयजीए जवथी तरवा रूप कही . १७ ॥ दोहा ॥ गुणशेखर मणिशेख रे, निरखीतात वैराग ॥ दीक्षा लेवा वसरे, कृत महोत्सव महाभाग ॥ १ ॥ सदु सुत करजोमी कहे, ॥ २॥ हो प्रभु जगदाधार ॥ शिवसुखार्थी नूपने, दीजे संयम जार अर्थ ॥ गुणशेखर तथा मणिशेखरे पितानो अद्भुत वैराग्य देखी दीक्षा लेवाने अवसरे ते महा जाम्बशालीए मोटो महोत्सव कर्यो. ॥ १ ॥ चंदराजाना बने पुत्रोए विनंतीपुर्वक कांके हे त्रण जगत्ना माधार प्रभु ! मोक्ष सुखना श्रर्थी एवा श्रमारा पिताने चारित्र पो. ॥ २ ॥ ३१६ कांसा पात्रे नीरकण, जेम करी नवि उड्राय ॥ विषय रंगथी नृप हृ किमदी नवि दाय ॥ ३ ॥ सुतने वचने जगद्गुरु, तेमी चंद नरेश ॥ उपदिशे सांजल नृपति, दो दिलोबे रूषि वेश ॥ ४ ॥ दय, ॥ जेम कसना पात्र उपर पाणीनुं टीपुं कोइरीते टकी शकतुं नथी तेवी रीते चंदरायानुं अंतःकरण विषयरूप रंगथी लेशमात्र रंगातुं नथी. ॥ ३ ॥ चंदरायना पुत्रोनी विनंति सांजली, जगद्गुरू श्री जिनराजे चंदरायने पोतानी पासे बोलावी कांके हे राजन् ! श्रा मुनिनो वेश धारण करवो ते महापुष्कर बे. ध परिषद सहवा कवन बे, संयम खांना धार ॥ करवो दांतेमीणने, लोचा आहार ॥ ५ ॥ ए संयम वेलु कवल, प्रथम थकी कहुं तुज ॥ व्रतगिरिशिखरथी बहु पड्या, कही दाखुं हुं गुज ॥ ६ ॥ ॥ हे राजा ! चारित्रमां परिषद् सहन करवा बहुज मुष्किल बे, वली संयम तलवारनी धार जेवुं बे तथा चारित्र पालवं ते मीना दांते लोढाना चणा चाववा जेवुं बे. ॥ ए ॥ श्र संयम पालकं ते तीना कोलीया खावा जेवुं बे ए वात हुं तने प्रथमथीज कहुं बुं. वली खरखरो मर्म ए कहुं हुं के चारित्ररूपी पर्वतना शिखर उपरथी लथडीने अनेक जनो पडी पायमाल थया बे. ॥ ६ ॥ चंदक हो जगद्गुरु, बे दृढ चित्त मुज देव ॥ करो प्रसाद व्रत गुण रतन, जतन करी स्वयमेव ॥ 9 ॥ श्रर्थ ॥ ते सांजली चंदराये विनंति करीके हे जगद्गुरु ! मारूं चित्त खरे खरूं दृढ बे. माटे मारा ज पर कृपा करी मने व्रत जे महा गुणरूपी रलोढे ते पो, तेनुं हुं यत्ना पूर्वक प्रतिपालन करीश ॥ 9 ॥ ॥ ढाल ३१ मी ॥ ॥ श्रीण वजावी कानुमेजी, ए देशी ॥ चंदे भूषण परियों जी, जाणी जर समान ॥ कीधो वस्त्र उतारतेजी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. यदि कंचुकी अनुमान ॥ १ ॥ अनुज योगे श्रादयुंजी, शुद्ध क्रिया अनुष्टान ॥ ए कणी ॥ लुंचन कीधो केशनोजी, चंदे नाख्या खेडी जाणीएजी, ए तो कर्म तरुनां मूल ॥ थइ अनुकुल ॥ ० ॥ २ ॥ ॥ पी चंदराजा पोताना शरीर उपर धारण करेलां श्रभूषणो बोजा समान जाणीने तजी दीघां. जेम सर्प कांचलीने तजी दे तेवीरीते वस्त्रादि श्राभूषणो उतारतां देखाव थयो. आत्मस्वरूपना अनुजवने योगे शुद्ध क्रिया-अनुष्ठाननो आदर कर्यो. ॥ १ ॥ पछी केशनो लोच चंदराजाए कर्यो तेजाणे सानुकूलताए कर्मरूपी वृनां मूलो उखेडी नांख्या होय तेवुं जणायुं. ॥ २ ॥ ३१७ चंदने मस्तके जी, श्री जिनजीये वास ॥ शिववधु वश करवा जणी जी, चूर्ण एकीध प्रकाश ॥ श्र० ॥ ३ ॥ धर्मध्वजने मुहपतिजी, आपे चंदने नाथ ॥ अंतर वैरी जीतवाजी, जाणे खड्ग खेटक ग्रह्यं हाथ ॥ ० ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ नंतर श्री जिनराजे चंदराजना मस्तक उपर वासदेप कर्यो. तेजाणे शिववधुने वश करवा चूर्ण ढांटयुं होय एवो प्रकाश अयो. ॥ ३ ॥ पढी प्रभुजीए चंदराजाने उंघो तथा मुहपतियां अंतरंग शत्रुर्जने जीतवा हाथमां तलवार तथा ढाल श्राप्यां होय तेवुं जायुं ॥ ४ ॥ श्री चंदराज रूषी थयाजी, मुनि सुव्रत उपदेश ॥ नर सुरे कीधी वंदनाजी, कहे धन धन सकल सुरेश ॥ श्र० ॥ ५ ॥ सुमति मंत्रीए जावथीजी, लीधो संयम जार ॥ राज कृतिनुं मंत्रीपपुंजी, तेणे राखुं करी निरधार ॥ श्र०॥६॥ ॥ श्री मुनिसुव्रतस्वामिना उपदेशे श्री चंदराय राजर्षि थया. मनुष्य ने देवता सर्वेए वंदना करी. देवोना स्वामि सर्व इंजोए धन्यवाद प्यो. ॥ ५ ॥ सुमति मंत्रीए पण जावपूर्वक चारित्र श्रुंगीकार कर्यु. तेर्जए संयम सीधाथी राजर्षि चंदरायनुं मंत्रीपणुं निश्चय पूर्वक साचव्यं ॥ ६ ॥ दीक्षा लीधी शिव नटेजी, नटगति परही मेल ॥ लोक वंशना अग्रनोजी, सदी मांड्यो दुर्घट खेल ॥ श्र० ॥ ७ ॥ गुणावली वली प्रेमलाजी, शिवमाला मनु हार ॥ बीजी पण वली राणीएजी, तिहां लीधो संयम जार ॥ ० ॥ ८ ॥ Jain Educationa International || शिवकुंवर नटे पण नटपणुं तजीने दीक्षालीधी. चौदराज लोकरूपी वांसना अागने प्रासकरवाने ति दुर्घट एवो खेल शरुकर्यो. ॥ ७ ॥ राणी गुणावली तथा प्रेमलाल ने सुंदर नटवी शिवमाला तथा बीजी पण राणीए चारित्रधर्म अंगीकार कर्यो. ॥ ८ ॥ जापुरथी स्वामिएजी, विधिथी कीध विहार ॥ चंद महाकषी परवर्याजी, इ आपणो परिवार ॥ श्र० ॥ ए ॥ गुणशेखरादि संप्रेमवाजी, श्राव्याज्यां लगी सीम ॥ श्री जिनराज तथा मुखेजी, घणे अंगीकर्यां व्रतनीम ॥ श्र०॥१०॥ अर्थ | पी चंदराजर्षि पोताना परिवारनी साथे परवरेला श्राजापुरी श्री विधिपूर्वक विहार करवाने तैयार था. ॥ ए ॥ गुणशेखर प्रमुख राज्यमंडल ज्यां सुधी राज्यनो सीमाको दतो त्यां सुधी बोलाववाने व्या. ते वखते श्री जिनराजना मुखथी अनेक लोकोए व्रतनियम अंगीकार कर्या. ॥ १० ॥ For Personal and Private Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१७ चतुर्थ उदास. रायझषिने करीवंदनांजी, गुण शेखरादिक ताम ॥ करजोमीने विनवेजी, सहु निज निज लेश नाम ॥ अ० ॥ ११॥ माया उतारी संचर्याजी, राज्य तज्यु तृण जेम ॥ पण श्रमचा मनडा थकीजी, तमे वीसरशो केम ॥ श्र॥ १२ ॥ अर्थ ॥ पनी गुणशेखर प्रमुख सर्व समुदाये राजर्षिने वंदना करी; अने दरेकजण पोतपोताना नामपूर्वक बेहाथजोडी विनंति करवा लाग्या. ॥ ११॥ अमारा उपरथी राग तजीदश् श्राप विहार को एटर्बुज नहीं पण राज्यनेपण तणखलानी जेम तजी दीधुं परंतु अमारा मनमांथी तमे विसरावाना नथी.१५ श्रावजो वेदेला वंदाववाजी, रखे मुकोजी विसार ॥अंगतणा मलनी परे जी, तमे परिहरी मांड्यो विहार ॥ १० ॥ १३ ॥ धर्माशिष देश कहेजी, राजझषि . तेणी वार ॥ धर्मोयम करजो सहुजी, ए श्रथिर जाणी संसार ॥ ॥१४॥ अर्थ ॥ श्रमारी विनंति ए ने के श्रमने फरी दर्शननो लाल आपवा पधारजो. अमने मनमांथी विसारी देता नही. आपे तो शरीरना मेखने तजी देवानी जेम सर्वने तजी दई विहार शरू कर्यो . ॥१३॥ पनी राजर्षि सर्वने धर्मलाजरूप आशिर्वाद दई बोट्याके तमे सर्वे श्रा संसारने दणजंगुर जाणीने धर्मने विषे उद्यम करजो. ॥१४॥ मात पितासुत केहनाजी, केहना राज्य मंडार ॥म धरशो प्रतिबंध कोश्थीजी, नित पालजो कुल आचार ॥१०॥ १५॥ चंद मुनिनी शिखथीजी, पुत्रादिक परिवार ॥ आंसु वमता श्रावीयाजी, एम श्रानानगरी मकार ॥ १०॥ १६ ॥ अर्थ ॥ कोना माबाप-कोना पुत्र अने कोना राज्य नंमार के. सर्वे अनित्य होवाथी कोश्नीसा प्रतिबंध गाढ स्नेहबंधन करशो नही. निरंतर कुलाचारमा वर्तजो. ॥ १५॥ एवीरीते चंदराजर्षिए आपेली शिखामण ग्रहण करीने पुत्रादि गुणशेखर विगेरे सर्व परिवार आंसु पडता आलानगरीमा श्राव्या.॥१६॥ चंद महामुनि जगजयोजी, उपशम धरी सुविशाल ॥ मोहने चोथा उसासनीजी, कही एकत्रीशमी ढाल ॥०॥१७॥ अर्थ ॥ अनुक्रमे चंद राजर्षि विशाल उपशम रसने धारण करता जगत्मां जयवंता प्रवा. एवीरीते चोथा उल्लासमां एकत्रीशमी ढाल मोहन विजयजीए कही. ॥१७॥ ॥दोहा॥ महाऋषी श्रीचंदवर, विरमी सकल संताप ॥ स्थविर समीपे अन्यसे, चारित्र क्रिया कलाप ॥१॥ सुमतिरुषि शिवकुंवर ऋषि, करे शास्त्र सु प्रसंग ॥ राज कृषिना विनयमां, नित प्रते रहे अजंग ॥२॥ अर्थ ॥ तदनंतर महर्षि चंदराये सर्व संतापने शांतकरी चारित्र क्रिया विधिनो स्थिविर मुनिपासे अभ्यास करवा मांड्यो. ॥१॥ सुमतिरूषि अने शिवकुंवर रूषिएपण शास्त्रनो अन्यास करवा मांड्यो. तेऊना राजर्षिना विनयमां निरंतर अनंगपणे प्रवर्त्तवा लाग्या. ॥२॥ For Personal and Private Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३१५ गुणावली श्रादे सकल, साधवीनो परिवार ॥ विन येप्रवर्तणीनी कने, शिखे मुनि आचार ॥३॥ एम सहुए पठनादिके, रहे सदा लय लीन ॥ चढते परिणामे करी, तप जप क्रिया नवीन ॥४॥ अर्थ ॥ गुणावली प्रमुख सर्व साध्वीनो परिवार विनंय पूर्वक ज्ञानवंत वृक्ष साध्वी पासे मुनिनो श्राचार शिखवा लाग्यां. ॥३॥ एवीरीते सर्वेजणां निरंतर शास्त्राच्यासमां लयलीन थयां, अने परिणामनी चढती धाराए नवीन तप-जप-क्रियामा प्रवर्त्तवा लाग्यां ॥४॥ संयम सिंहपरे ग्रह्यो, पाले थश्ने सिंह ॥ कहींए को लोपे नही, श्री जिन थाणा लीह ॥५॥ श्रुत सागर तरतां थकां, लेखे थयो प्रयत्न ॥ करतले श्रावीने चढयु, अध्यातमनुं रत्न ॥६॥ अर्थ ॥ केशरीसिंहनी जेम संयम ग्रहण करीने, तेवीजरीते चारित्रने पालता हता अने कोश्पण श्री जिनराजनी आज्ञारूपी मर्यादाने जरापण संघता न हता. ॥ ५॥ श्रुतसिद्धांतरूपी समुज्ने तरतां थकां करेखो प्रयत्न सफल भयो. एवी रीते के हथेलीना तलीआमां अध्यात्मरूपी रत्न आवीने प्राप्त थयु.॥६॥ परनिंदा तेम थाप्प थुक्ष, स्वप्रघोष हा वाद ॥ एह निवारीने रमे, गुणगणे अप्रमाद ॥७॥ अर्थ ॥ पारकी निंदा तेमज पोतानीस्तुति, वली पोतानी बडाइ तथा हव सहित वादविवाद ए सर्वेनो त्याग करीने अप्रमत्त नामना सातमा गुण गणे रमतो करवा लाग्या. ॥७॥ ॥ ढाल ३२ मी॥ ॥वाघाना नावननी देशी॥ श्रीचंदराय रुषी शुज संयम, निरतिचारे पालेहे ॥ ससनेहा नविजन, परमनाण खप कीजीए ॥ ए श्रांकणी ॥ ए षटकायमें दयापरिणामे, निज निज रूप निहालेहे ॥ स ॥१॥ पुद्गल दले खुंत्या चेतनने, मूल गुणे ग्रही श्राणे रे ॥ स ॥ नेद विज्ञान थकी समता गुण, निज हेतुथा करी जाणे हे ॥ स० ॥२॥ अर्थ ॥ श्री चंदराजर्षि उत्तम प्रकारनुं संयम निरतिचारपणे पाले जे. वली व कायनेविषे दयापरिणाममा वर्त्ततां दरेकने पोत पोताना स्वरूपश्री जुवे . हे धार्मिक स्नेहवंत नव्यजनो परमज्ञान-केवलज्ञाननो खप-मनोरथ करो. ॥१॥ पुजलना गाढ संबंधवाला दलमां खुची गयेला श्रात्माने मूल चारित्र गुणोवडे ग्रहण करीने बहार लावेने अने नेद विज्ञान-जमथी चेतन जिन्नने एवं प्रकृष्ट ज्ञान थवाथी समता प्रमुख गुणने पोताना हेतस्वी करी जाणे . ॥२॥ श्रावे प्रवचन माता केरा, खेला मांहि खेले हे ॥ सः ॥ खंतितणे खड़गे करी सहज, मोद महामद ठेले हे॥ स॥३॥ अंतर संवे For Personal and Private Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ उदास. गनी तटिनीए, परमानंद घनकीले हे॥स ॥ काया रथने सुविधे पाण्यो, योग पंथने चीले हे ॥ स ॥४॥ अर्थ ॥ श्राउ प्रवचनरूपी माताना खोखामां निरंतर रमत गमत करे ने श्रने हमारूपी तलवार हाथमां खाने सेहेज स्वलावे महामदरूपी मोदनो पराजय करे . ॥३॥ अंतरंग संवेगरूपी नदीमां परमानंदना समूहरूप आत्माने नवरावे. एवी रीते कायारूपी रथने ज्ञान, दर्शन, चारित्र योगरूपी पंथना चीलामा उत्तम विधिपूर्वक श्राण्या ले. ॥४॥ जैन विवेक शैलिथी लीधी, अनुजव रसनी कुंपी हे ॥ स०॥ सुजग सं तोषतणा मंदिरमां, दायिक नावने सुंपीहे ॥ स० ॥ ५॥ पंच मेरू समपंच महाव्रत, अतुल बले उपाडे हे ॥ स० ॥ पंच करण पंचान ननी परे, ज्यावे संवर वाडे हे॥स ॥६॥ अर्थ ॥ जैन धर्मना विवेक रूपी पर्वतमांश्री अनुजवरूपी रसनी कुपी प्राप्तकरी अने सौजाग्यवंत संतोषरूपी मंदिरमा क्षायिक जावने ते सुप्रत करी. ॥५॥ पांच मेरू समान पांच महाव्रतने अतुल्य बलवडे करी उपामे जे. अने पांच करणने सिंहनी जेम संवर रूपी वाडमां लावे . ॥६॥ परिषहथी आतम गुण पुष्टि, मुक्तिनी प्राप्ति विचारे हे ॥ स ॥ जेम जेम तापादिक सहनथी कंचन, नूषणपणुं निरधारे हे॥ स ॥७॥ जेम जेम शांति रसे हृदयमें, श्रात्म प्रदेशने नेदे हे ॥ स ॥ तेम तेम ताम्रता त्यजी चिपा, परम मंगलता वेदे हे॥स ॥७॥ अर्थ ॥ बावीस परिषद सदन करवाथी श्रात्म गुणनी पुष्टि तथा मुक्तिनी प्राप्ति थाय एम विचारे ने कारण के सुवर्ण जेम ताप प्रमुखथी विशेष शुद्ध थाय तेम श्रात्मा पण कष्टो सम्यक् प्रकारे सहन करवाथी निर्मल थाय ॥७॥ जेम जेम हृदयमां शांत रस व्यापवाथी श्रात्म प्रदेशो निंजाय तेम तेम त्रांबु स्वरूप चिद्रुप-यात्मानुं पलटाइ सुवर्ण रूपी परम-प्रकृष्ट शुध स्वरूप आत्मा अनुजवे जे. ॥ ७॥ झानादिक गुणे नित्यानंदे, श्रानंदता विधि जाणे हे ॥ स ॥ परमानंद तणी चासणी, करी करी सुजग प्रमाणे हे॥स ॥ए॥क्षपक श्रेणि तणी रूषि राये, रमवा मामी बाजी हे॥स० ॥ मोह जोहनी अनंग जे सेना, ते पण नाठी लाजी हे ॥ स० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ ज्ञानादिक गुणोश्री नित्य आनंदमां वर्ततां आनंद स्वरूपनी विधि जाणे ने श्रने तेवी परमानंदनी चासपी बनावी शुधात्म रूपी सुवर्णनी परीक्षा करे जे ॥ए ॥ तदनंतर राजर्षिए दपक श्रेणिरूप रमवानी बाजी मांडी. अने तेम करतां मोहरूपी योघाउनी अनंग सेना हतीते खजवाइने नासी गइ.१० कर्म प्रदेश घन घाती संकुच्या, परम प्रदेशे उद्घसियो हे॥सजाणी प्रजाते रवि जेम श्रागम, दर्श निशातम खसियो हे ॥स० ॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३२१ एकादस चिकण गुण गणुं, लंध्यो लाघव योगे हे ॥ स० ॥ इहां चढता प्राणी के पडीया, नडीया मिथ्या नोगे हे ॥ सत् ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ पनी घन घाती जे चार कर्म तेना दलीयां संकोच पाम्यां, जेश्री निर्मल आत्म प्रदेशनो उदास वधवा मांडयो. ते जेम प्रजात समये सूर्यनो उदय अतां रात्रिनो प्रसरेखो अंधकार खसी जाय तेम अयु ॥११॥ अगीश्रारमुं उपशांत मोह नामर्नु चिकणुं गुणगणुं तेतो मात्र लाघव योगथी उलंघी गया. आ गुणगणे चडेला प्राणी कश्क पड़ी गया अने मिथ्या नोगमा फसाइ गया . ॥ १२ ॥ छादश गुण गणे स्थिति मात्रा, अनित्य दशा गुण जाव्या हे ॥स॥ राजज्ञषि तेरमे गुण स्थानक, शैलेशीए श्राव्या हे ॥ स० ॥ १३ ॥ घाती कर्म तणा आवरणा, जे थ गया परमाणु हे ॥ स ॥ कार्य तजी पामी कारणता, धन्य एह गुणगणुं हे ॥ स ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ बारमा गुणस्थानके अनित्यता गुण रूप लावना लावतां अंतर्मुहूर्त मात्र स्थिति करी राजर्षि तेरमा गुणस्थानक-सयोगी केवली पणाने प्राप्त करता हवा ॥१३॥ घाती कर्मना जे आवरण हतां ते संपूर्ण नाश पामी गयां. जेथी तेउनामां कार्यनी शक्ति जेहती ते मटीजतां मात्र कारणता रही. श्रा गुणगणाने धन्य वे.॥ १४ ॥ उदयो केवल नाण दिवाकर, यथाख्यात गुण प्रगट्यो हे ॥ स०॥ लोकाकाश प्रकाश थयो तव, श्रात्म प्रबल दल उलट्यो रे ॥ स॥१५॥ संसारी प्राणीना दीग, गत्यादिक गुण नारी ॥ स ॥ जाणी कर्म तणी विचित्रता, सघली भ्रान्ति निवारी हे ॥ स ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ आ गुणगणे केवल ज्ञानरूपी सूर्यनो उदय भयो; वली यथाख्यात चारित्र रूपी गुण प्रगट अयो. ज्यारे लोककाशने विष रहेला समस्त पदार्थोनो प्रकाश श्रयो त्यारे आत्मानुं प्रबल सैन्य बलवा मांमयुं ॥ १५॥ केवल ज्ञानना प्रनावधी संसारना सर्व प्राणी मात्रना गति प्रमुख नावनुं जाणपणुं श्रयुं. जेथी कर्मनी अत्यंत विचित्रता जाणी, सर्व ब्रान्ति मात्र, निवारण कर्यु. ॥ १६ ॥ दीठी समकित दृष्टि देवे, घाती कर्मनी क्षपणा रे ॥ स ॥ केवल झान उदय अनुमानी, कीधी कर्मनी रचना हे॥ स ॥ १७ ॥ चंद केवली कमलासन बेसी, अञ्जत देशना दीधी हे ॥स ॥ नविके विषय तृषा उपशमवा, अति थादरथी पीधी हे ॥ स० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ ते समये समकित दृष्टि देवताए घाति कर्मनो नाश जाणी, अनुमानश्री केवलज्ञाननो उदय जाणी लीधो, पनी पोताने योग्य कार्यनी रचना करी॥ १७ ॥ तदनंतर देवे रचेला कमलासन उपर केवली चंद राजर्षिए बेसीने अनुत देशना आपी. अनेक नव्यजीवोए विषयालिलाष रूप तृषाने शांत करवा ते देशना रूपी जलनुं अत्यंत आदर पूर्वक पान कर्युः ॥ १७ ॥ For Personal and Private Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ चतुर्थ उबास. जंगम तीरथ थति सुखकारी, श्रीचंद केवल नाणी हे ॥ स० ॥ ढाल बत्रीसमी चोथे उल्लासे, मोहन विजये वखाणी हे ॥ स० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ अत्यंत सुखना करनारा, केवल ज्ञानी श्रीचंद राजर्षि जंगम तीर्थ होता हवा. एवी रीते चोथा उवासमा बत्रीशमी ढाख मोहन विजयजीए कही. ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ श्री श्री चंद केवल सही, नूतल करिय विहार ॥ प्रतिबोधेनवि जन जणी, थाणी मन उपगार ॥ १॥ देखे केवल दर्शने, लोकाकार स्वरूप ॥ तेम प्ररूपे नविकने, मैत्री नाव अनूप ॥२॥ अर्थ ॥ श्रीचंदराजर्षिए केवल ज्ञान प्राप्त करी पृथ्वी उपर विहार करी नव्यजनोउपर उपगार करवा सारू प्रतिबोध-उपदेश थापता हवा ॥ १ ॥ केवल दर्शनथी चौद राज लोकनुं यथार्थ स्वरूप देखीने तेज प्रमाणे नव्य जीवोने प्ररूपणा करता हवा. तेवीज रीते अनुपम मैत्री नावनो पण उपदेश करता हवा. ॥२॥ बालादिक नरने हिते, दिये तेहवा जपदेश ॥ श्रगम अगोचर जावना, नेद कहे सुविशेष ॥३॥ श्राव्या अनुक्रमे विहरता, पावन सोरठ देश ॥ फरस्यो विमलाचल विमल, नावी नाव विशेष ॥४॥ अर्थ ॥ बाल प्रमुख-उत्तम, मध्यम, कनिष्टने योग्यता प्रमाणे उपदेश आपता हता. वली अगम अने अगोचर नावना विविध प्रकारना जेद विशेष रीते कहेता हता ॥ ३ ॥ अनुक्रमे विहार करता करतां पवित्र सोरठ देशमां पधारी अत्यंत निर्मल नाव प्रगट अयेलो होवाथी पवित्र विमलाचल गिरिराजने फरसता हवा. ॥४॥ ए गिरि उपर मुनि थया, सिक अनंतानंत ॥ तीर्थ ए संजार ते, बूटे कर्म पुरंत ॥५॥ श्री चंद पंचम नाण धर, परम धरम दातार ॥ मास तणी संलेषणा, कीधी ए व्यवहार ॥६॥ अर्थ ॥ ए गिरिराज उपर अनंतानंत मुनियो सिद्ध श्रया. ए तीर्थाधिराजनुं स्मरण करतां मुखेः अंत आवे एवां कर्म पण बुटी जाय ॥ ५ ॥ परम धर्मना दातार, पंचम ज्ञानना धारक श्रीचंद राजर्षिए एक मासनी संवेषणा करी उत्कृष्ट व्यवहार साचव्यो. ॥६॥ जोगवी पूरण श्राउ, श्रायन त्रीस हजार ॥ तेहमा वर्षे सहस्त्र एक, पाख्यो संयम जार ॥७॥ अर्थ ॥ त्रीस हजार वर्षतुं संपूर्ण आयुष्य चंद राजर्षिए लोगव्यु, तेमा एक हजार वर्ष सुधी चारित्र पर्याय पाल्यो.॥७॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३२३ ॥ ढाल ३३ मी॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ श्री चंद केवली योग निरूंधी, पंचम स्वर स्थिति जाणेजी ॥ शेष कर्म तजी चढया थजोगी, चौदसमे गुण गणेजी ॥१॥ अनंतवीर्य, अखेद, अतींजिय, अक्षयता ए चारेजी ॥ जेहमां लोली थश्ने उरध, करी गति श्री चंद प्यारेजी ॥२॥ अर्थ ॥ श्रीचंद केवली सर्व कर्मनो नाश करी, सर्व योगनुं रूंधन करी ज्यां मात्र पांच ह्रस्वाक्षर जेटलुं काल मान ने एवा चौदमा अयोगी गुण स्थानके चड्या ॥१॥ अनंत वीर्य १ अखेद पणुं, ५ अतींप्रिय पणुंरू, अने श्रदयता ४ ए चारे मय श्रश्ने वहाला चंद राजर्षिए उर्ध्व गमन कयु.॥२॥ सब सिद्धथी बारह जोयणे, शशिप्प नारा पुरवीजी॥ तिहां जोयण चोवीसमे नागे, अवगाहना संनववीजी ॥३॥ ए लोकाय अलोक ने श्रागल, श्हां सकल अदेही जी ॥ ज्योति ज्योति मांदे जश मिलीया, श्री चंद सिझ सनेही जी ॥ ४॥ अर्थ ॥ सर्वार्थ सिद्ध नामना पांचमा अनुत्तर विमानथी बार योजन उपर षत् प्राग्जारा नामनी पृथ्वी जे सिद्ध शिला नामे पीसतालीस लाख योजननी ने त्यां एक योजनना चोवीसमा लागे अवगाहना करी रह्या ॥ ३॥ ए नाग लोकनो अग्रनाग-सहुथी उंचामां उंचो ने तेनी उपर अलोक जे. लोकाग्रमां सर्व अदेही-सिख जे. ज्योतिमां ज्योति मले तेवी रीते सिमां श्रीचंद मली गया. ॥४॥ सादि अपर्यवसितता पामी, जव चमणा सवि बुटी जी ॥ पाम्यु पूर्ण निरंजन, पद, लीला सहजे श्रखुटी जी ॥५॥ सुमति साधु शिव साधु गुणावली, प्रेमला लबी साहुणी जी ॥ लही केवल शिव संपद पाम्या, प्रसरी कीर्ति प्रगुणी जी ॥६॥ अर्थ ॥ सादि अपर्यवसितता एटले मोक्ष पाम्या ते आदि अने हवे पठी त्यांची पडवानुं नथी तेश्री अनंत एवी सादि अनंत स्थिति प्राप्त करी. संसारमा जन्म मरणथी बुटया. पूर्ण निरंजन पद प्राप्त कर्यु: अने संसारी लीलानो अनाव अतां सहज आत्म स्वरूपनी लीला अखुट पणे प्राप्त थ ॥ ५॥ सुमति साधु, शिव साधु, गुणावली अने प्रेमला लब्बी साध्वी केवल ज्ञान पामी मोक्ष पद पाम्यां. तेउनी कीर्ति जगमां बहुज प्रसरी. ॥ ६॥ शिव मालादिक श्रवर सादुणी, सवकसिके पहोती जी ॥ महा विदेह मांहे अवतरीने, लहेशे ते पण मुक्ति जी ॥ ॥ एहवा शियल तणे अधिकारे, चंद तणा गुण गायाजी ॥ इणि परे जे पाले ब्रह्मचर्यव्रत, ते लदे सुख सवायां जी ॥७॥ For Personal and Private Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ चतुर्थनवास. अर्थ ॥ शिवमाला प्रमुख बीजी साध्वी अनुत्तर विमान वासी देवगति पाम्या. त्यांथी चवी मह विदेहमा अवतरीने मुक्ति प्राप्त करशे ॥७॥ एवी रीते शियल व्रतना अधिकारने विष चंद राजाना गुणनी स्तवना करी. ए प्रमाणे जे जे जीवो ब्रह्मचर्य व्रत पालशे ते बीजा करतां सवायां सुख मेलवशे. नव वाडे करी शील जे राखे, जे विमलाचल फरसेजी ॥ ते नर चंद समोवड थश्ने, शांति सुधा थाकर्षे जी ॥ ए॥ श्री श्री चंद तणा गुण गाइ, रसना पावन कीधी जी ॥ शीलवत दृढ करवा कारण, नविने शिक्षा दीधी जी ॥१०॥ अर्थ ॥ नववाड करीने जे ब्रह्मचर्य व्रत पाले तथा जे सिद्ध गिरिराजने फरसे ते प्राणी चंद राजानी जेवो यश् शांत रस रूपी अमृतनुं आकर्षण करे. अजरामर थाय ॥ ए॥ ए प्रमाणे चंद राजाना गुण गाइने श्रा जिव्हा पवित्र करी तेमज नव्य जीवोने पोतानुं शियल व्रत दृढ करवा माटे हितशिदा आपी. को सुकविए चरित्र सुणीने, मुज हांसि मत करजो जी ॥ होय अघटित पद जो एहमां, ते सऊन उद्धरजो जी ॥ ११॥ नही परिचय संयोजन गतिमां, मुज कवि हाथे वीमा जी ॥ मारा मनथी में तो कीधी, जेहवी बालक क्रीडा जी ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ कोइ पण उत्तम कवि आ चरित्र सांजलीने, कृपा करी मारी हांसि करशो नही. परंतु जो तेमां को अघटित पद केहेवायां होय तो तेनो सुधारीने वांचवा पुर्वक उचार करजो ॥ ११॥ उत्तम कविमां होय तेवी मारामां, वाक्य रचना, पदलालित्यता, अर्थ गौरवता आदि लाववानी शक्ति नथी. मारी कविता ते सारा कविनी दृष्टिमां हांसि जेवी . तो पण जेम बालक क्रीडा करे तेवी रीते मारा मनथी में आ रचना करी.॥१॥ जे में मोटाना गुण गाया, एहज लान मुज मोटो जी ॥ निंदे जो को मुज कविता, तो पण नथी कांश तोटो जी ॥ १३ ॥ पामे संपद पावन थाये, चरित्रनो सांचलनारो जी ॥ न होये केम तो शुचि कहेणारो, सुगुण हारद अवधारो जी ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ में जे कांश कर्यु ते मात्र उत्तम पुरुषना गुणनी स्तवना करी ने अने तेज लाल मने मोटो थयो , एटलुं बतां जो कोइ मारी कवितानी निंदा करशे तो तेमां मने का नुकशान नथी ॥ १३ ॥ जो या चरित्रनो सांजलनारो संपत्ति पामे अने पवित्र श्राय तोपली चरित्रनो केहेनारो केम पवित्र न श्राय अथवा संपत्ति न पामे ? आ वात-हार्दने गुणवंत पुरूषो मनमां अवधारजो. ॥ १५ ॥ काचा पाका महा शषिना गुण, गाता कहो कोण लाजे जी ॥ वांकी तो पण घनी पूपा, लागी नुख ते नांजे जी ॥ १५॥ तप गबना यक गुण गण लायक, विजयसेन सुरीदा जी ॥ प्रति बोध्यो जेणे दिखीनो पति, अकबरशाह नूमींदाजी ॥ १६ ॥ For Personal and Private Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदराजानो रास. ३२५ अर्थ ॥ महर्षिना गुणो काची रीते के पाकी रीते गावामां कोने लजा आवे ? कोश्ने आवे नही. गमे तेवी वांकी घनी रोटली होय परंतु नूख लागी होय तो ते खाधाथी नूख मटामे ॥ १५॥ अनेक गुणोना समूहनी युक्त अने तप गबना नायक-आचार्य श्री विजयसेन सूरि श्रया. जेणे चक्रवर्ति समान दिखीना पति अकब्बर बादशाहने प्रति बोध पमाडयो. ॥१६॥ तास चरण शत पत्र सुमधुकर, कीर्ति विजय उवकाया जी ॥ तास शिष्य कवि कुल मुख मंगन, मानविजय कवि रायाजी ॥ १७ ॥ तस पद सेवक मति श्रुत सागर, लब्धि प्रतिष्ट कहाया जी ॥ पंमित रूप विजय गुण गिरूया, दिन दिन सुयश सवायाजी ॥१०॥ अर्थ ॥ तेमनां चरण कमलने विषे उत्तम भ्रमर समान श्री कीर्ति विजय उपाध्याय थया. तेमना शिष्य, कवि कुलना मुखना शृंगार रूप श्रीमानविजय कवि राय थया ॥ १७ ॥ तेमना चरणना उपासक, मति ज्ञान अने श्रुतज्ञानना सागर तथा लब्धिए करी प्रतिष्ठित अने गुणमां गरिष्ठ एवा पंमित श्रीरूप विजयजी श्रया. जेमनो उत्तम यश दिवसे दिवसे सवायो अयो. ॥१०॥ तेदना बालक मोहन विजये, अगेतरसो ढाले जी ॥ गायो चंद चरित्र सुरंगो, चरित्र वचन परनाले जी ॥ १५ ॥ कीधो चोथो नम्बास संपूरण, गुण वसु संयम (१७७३) वर्षे जी ॥ पोस मास सित पंचमी दिवसे, तरणिज वारे हर्षे जी॥२०॥ अर्थ ॥ तेमना शिष्य मोहन विजयजीए एकसोने आठ ढाले करी, पूर्वना चरित्रने अनुसारे श्रा चंद राजानु उत्तम चरित्र गायुं ॥ १५॥ आ चोयो उदास हर्ष सहित संवत १७७३ ना पोस सुदी एअने रविवारना रोज संपूर्ण अयो.॥२०॥ राज नगर चोमासुं करीने,गायो चंद चरित्र जी ॥ श्रवण देशश्रोतासांजलशे, थाशे तेह पवित्रजी ॥१॥ जे कोश नणशे गणशे सुणशे, तस घर मंगल माला जी॥ दिन दिन वधती वधती थाशे, निर्मल कीर्ति विशाला जी ॥२॥ अर्थ ॥ राजनगर ( अमदावाद ) मां चातुर्मास करीने चंद राजानुं चरित्र वर्णव्यु. जे श्रोता ध्यान पूर्वक सांजलशे ते पवित्र अशे ॥ २१॥ जे कोइ था चरित्र नणशे गणशे तथा सांजलशे तेने घेर मंगल माला अशे. अने तेनी कीर्ति दिवस दिवसे वधती वधती निर्मल अने विस्तीर्ण अशे. ॥ २२॥ अधिकुं उद्धं जे कहे वाणुं, मिला उक्कड तेह जी ॥ ध्रुव जेम अचल हो जो धरणि तल, चंद तणा गुण एहजी ॥२३॥ अर्थ ॥ आ चरित्रमा माराथी जे कांई न्यूनाधिक कहेवायुं होय ते संबंधी हुँ मिचामि उक्कड मागुं ; अने चंद राजाना गुणनुं आ चरित्र पृथ्वी उपर ध्रुवना तारानी जेम अचल रेहेजो एम श्बु .॥५३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 326 चतुर्थउबास. // कलस // एचरित्र सागर ढुंती निरखी, यत्न सुर गिरि आचर्यो, चंद नृप संबंध शशि जेम, अतिही प्रनाकर उझर्यो // श्री विजय देम सुरीद राज्ये, करी परम गुरू वंदना, कवि रूप सेवक मोहन विजये, वर्णव्या गुण चंदना // 1 // अर्थ // पूर्वना चरित्ररूप महा सागरमांधी यत्न रूपी मेरू पर्वत वडे मंथन करी, चंद राजाना आ चरित्र रूपी अत्यंत प्रकाश कर, चंने प्राप्त कर्यो. श्री विजय मा सूरिना शासनमां परम कृपावंत गुरू श्री रूपविजयजीने वंदना करी मोहन विजयजीए चंद रायना गुणनुं वर्णन कर्यु. // 1 // इति श्री मोहन विजय विरचिते चंदचरित्रे प्राकृत प्रबंधे चंद प्रकटन 1, वीरमती वध 2, बाजा गमन 3, संयम ग्रहण 4, शिव पद प्राप्ति 5 रूपानिः पंचनिः कलानिः समर्थितोऽयं चतुर्थोवासः संपूर्णः // आ रासमां प्रथम नवासमां ढाल एकवीश गाथा 514, दितीय उल्लासमां ढाल त्रेवीस, गाथा 585, तृतीय जहासमा ढाल एकत्रीस, गाथा 753 अने चतुर्थ उल्लासमां ढाल तेत्रीस गाथा 727, सर्व मली नवास चारमा ढाल एकसो आठ, गाथा २६७ए बे. // श्री चंदराजानो रास नाषांतर सहित // // समाप्त // Jain Educationa International For Personal and Private Use Only