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________________ १४ तृतीय उवास. श्रावी पोताना हाथमां ग्रहण करी लीधो.॥३॥ ते कचोलुं सुवर्णतुं घडेलुं अने बहु हीराधी जडेलु हतुं एवं ते कचोल राणीए पडतुं दी. शिव कुमर नटे ते कचोलुं हाथमां लश् चंदनी बहु मूल्यवान कीर्तिरूप बिरूदावली करी अने ढोलीए ढोल उपर कीर्त्तिनो पडघो पाड्यो. ॥ ४॥ सजा लोक संपेखीरे, वीरमतीने उवेखीरे, कीधां बहु नेखी नटने तुंगरारे ॥ पटकुल बाबतना, करे शिव साजतनारे, मधु रुतुना सोहे जेहवा हुंगरारे ॥५॥ चलगति कुलवटनीरे, पलटाणी पटनीरे, नटनी धरणीए नटनवि उलख्यारे ॥ बहु पाम्या शंगारारे, मणि जमित उदारारे, वीरमतीने अंगारा थश्ने धख्यारे॥६॥ अर्थ ॥ सत्नाना लोकोए तत्काल वीरमती तरफ ध्यान नहीं आपता पोताना विचारने संकेली नटने अनेक प्रकारनां वस्त्रो तथा आजूषणो आप्यां शिव कुमर विगेरे नटो जेम वसंत ऋतुमां मुंगरो शोले तेवा शोलता हता. ॥ ५॥ ते वखते समग्र सन्नाजनो मध्ये कुल परंपरानी जे रीति चालती हती ते बदलाइ जतां नटोनी स्त्री नटोने उलखी शकी नही. नटोने जे मणि थी जडेला उत्तम आभूषणो मलयां हतां ते देखीने वीरमतीने जेम धगधगता अंगारा शरीरने लागे तेम मनमां ते लागता हता. ॥ ६॥ नट हुथा श्रयाचीरे, नरही कांच काचीरे, राचीने उतारे शिव नटवो गयोरे॥ वीरमती कदे सेहेलोरे,कीयो धननो गहेलोरे,मुज पेहेला दाता कोण श्हां थयोरे बली जो केहेवोरे,ते तो जोया जेवोरे,एवो उपर वट किण जणणी जण्योरे॥ वध्यो दीसे मोसालेरे, रम्यो जे बहु लाडेरे, मारी निशाले सहितो नथीजण्योरेन। अर्थ ॥ नटोने घणोज लान मट्यो तेथी ते अयाचक जेवा श्रऽ गया. तेउने को वातनी खामी रही नही तेथी संतोष पामीने शिवकुमर नट पोताने उतारे गयो. वीरमती बोलवा लागीके आवो ते जोलो कोण धननो घेलो अयोके मारी पेहेलां दातार अवानी तेने श्छा अश्? ॥ ७ ॥ वली ते केवो बलवान ने ते पण हवे जोवा जेवू . एवी का जननीनो जणेलो के मारी नपरवट थइ दान आप्यु. मने लागे डे के ते मोशालमां मोटो थयो हशे अनेत्यां बहु लाड घेलो थयो हशे. अने खात्रीश्री कहुं खं के मारी निशाले तो लण्योज नथी. ॥ ७॥ मुज मीट न श्राव्योरे,जलो कुशले सिधाव्योरे,नाव्यो मुज एहनो मोटो बाउखोरे॥ एम अंजस श्राण्योरे,पण विहंगन जाण्योरे, ताण्यो बे यद्यपि पिंजर सन्मुखोरे ॥ए॥ कहे मंत्री मातारे, मत होवो ताता रे, रहो थाकुल थाता मानो विनतीरे ॥ पेहेलु जेणे दीधुंरे, तेणे यश तुम कीधुंरे, जाणो करी सीधुं खीजो स्यावतीरे ॥१॥ अर्थ ॥ मारी चोटमां आववा न पाम्यो अने कुशल खेमे ठीक सिधाची गयो. मने तो एनुं आयुष्यज मोटुं लागे जे. श्रावी रीतनो वेहेम वीरमतीने आव्यो परंतु पदी संबंधी विचार तेना मनमा श्राव्यो नहीं. जो के पांजरू तेनी सन्मुखज ताणवामां आव्यु हतुंः ॥ ए॥ मंत्रीए कह्यु के हे माताजी तमे गरम पाठ नहीं. शांतथा अने मारी विनति अवधारो. जणे प्रथम दान दीधुं तेणे तमारा यशनेज वधार्यो . वातने सिधी रीते वेवामांशुं खोटुंबे अने शामाटे खीजवानी जरूर ? ॥ १० ॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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