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________________ २५४ चतुर्थ उल्हास. करशुं आनापुरी राज्य हो ॥ गु० ॥ उर्जन रदेशे हो नयणां चोलताजी ॥ सुरज कुंमने प्रजाव हो ॥ गु॥ नर पद पामी हो करुं बुं कबोलताजी ॥३॥ धरजो तुमें चित्त प्रीति हो ॥ गुण ॥ सासु शीखे हो रखे विसारताजी ॥ श्रमे तो खिण खिण मामें हो ॥ गुण ॥ तमने रहीए नित संजारताजी ॥४॥ अर्थ ॥ श्रापणे आनापुरीमा राज्य करशुं ते खात्रीथी मानजो अने ते वखते उर्जन लोको जोइने आंखो चोलतां बेसी रहेशे. सूर्य कुंडना प्रत्नावथी हुँ मनुष्य पणुं पाम्यो बुं अने कबोलमां मारा दिवस अने रात व्यतीत थाय॥३॥ तमे अमारी जपर अंतः करणथी प्रीति राखजो. वीरमतीनी शिखामण मानी रखे अमने जुलीजता नही. अमे तो क्षणे क्षणे निरंतर तमने याद कर्या करीए जीए. ॥४॥ निरसो फूल गुलाब हो ॥ गुणा जनम नूमिनो हो वहालो लागे कांटमोजी॥ तुम अम मलवा मांहि हो ॥ गुण ॥ श्रागे न रह्यो हो विचमां आंटमोजी॥५॥ श्रमने डे परम थानंद हो ॥ गु० ॥ तुमने हो जो हो प्रीतलमी घणीजी ॥ पण तुम मीगं वयण हो ॥ गु०॥ होंश रहे हो सांजलवातणीजी॥६॥ अर्थ ॥ पोतानी जन्म भूमिर्नु कांटार्नु जाड जेवु वहालुं लागे ने तेव॒ परमिनुं गुलाबफूल लागतुं नथी. अर्थात् तमे बाल्यावस्थामांश्री स्नेही हता तोपण कांटा जेवा श्रयेला बतां तमारा उपर जेवो राग बे तेवो राग प्रेमला लबी गुलाबना पुष्प जेवी बतां तेना उपर नी तेथी निरस लागे . हवे तमारा अने अमारा मेलापमा नविष्यमां कोइ पण प्रकारनी आंटी श्राववानो संनव नयी ॥ ५॥ अमने अहीं आ परम आनंद ने अने तमारी अमारी उपर घणीज प्रीति होय एम चाहीए बीए. वली तमारा बोल बहुज मीग ने ते सांजलवाने अमने बहुज होश रह्या करे . ॥ ६॥ देखे गणशुं ते दीह हो ॥ गु०॥ जिण दिन होशे हो तुम मेलावमोजी ॥ मनमां जे जे वात हो ॥ गु० ॥ न बने लखतां हो कागल सांकमोजी ॥७॥ कही एम सकल उदंत हो ॥ गुण ॥ प्रेष्य पायो हो बानापुर नणीजी ॥ ते पण क्रमतो पंथ हो ॥ गु० ॥ नूमि उलंगी हो जोतामांहि घणीजी ॥७॥ अर्थ ॥जे दिवसे तमारो अने अमारो मेलाप अशे तेज दिवसने अमे धन्य मानिशुं. वली श्रमारा मनमां जे जे वातो तमने कंहेवानी ते या नानकडा कागलमां ते केवी रीते लखी शकाय? एम सर्व प्रकारनो कहेवा योग्य वृत्तांत कहीने खेपीआने श्रानापुरी तरफ रवाने को. खेपीआए पण रस्तो कापवा मांडयो अने जोताजोतामां बहु भूमिते उलंघी गयो.॥॥ मासे केते गयो प्रेष्य हो ॥ गुण ॥ श्राव्यो श्राजाहो नगरने आसनेजी ॥ शोचे चित्त पुर देखी हो ॥ गुण ॥ सहोदर सहितो हो एह कैलासनोजी ॥ए॥ श्राव्यो नगरी मोकार हो ॥ गु० ॥ बानो मलीयो हो मंत्रीने जश्जी ॥ वांच्यो नृपनो लेख हो ॥ गु०॥ धीरज मनमां दो घणीज घणी थजी ॥१॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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