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________________ चंदराजानो रास. २५५ अर्थ ॥ केटलाएक महीने ते खेपी आनापुरीए पहोंच्यो. नगरने देखतांज तेना मनमा विचार अवा लाग्यो के शुं आ नगर ते कैलासपुरीनो सहोदर (जाइ) बे? खरेखर तेमज नासे ॥ ए॥ ते नगरीमां पहोंच्यो एटले तत्काल गुप्त रीते मंत्रीने जश्ने मट्यो. मंत्रीने राजानो कागल श्राप्यो जे वांचतांज मंत्रीना मनमां अत्यंत हर्ष अयो अने धीरज श्रावी. ॥१०॥ श्राण्यो गुणावली पास हो ॥ गु०॥ कागल थाप्यो हो हाथ नरेशनोजी ॥ खोल्यो थश्ने सहेज हो ॥ गु० ॥ वांचतां हरखी हो नाम प्राणेशनोजी ॥१९॥ आणंद अंग न माय हो ॥ गु० ॥ नयणे उमगी हो प्रेम जलद घटाजी॥ जाणे वधाव्यो लेख हो ॥ गु० ॥ आंसु मिसथी हो मुक्ता फल बटाजी ॥१२॥ ___ अर्थ ॥ ते खेपीआने मंत्रीए गुणावलीनी पासे श्राण्यो. तेणे गुणावलीना हाथमां चंद राजानो कागल आप्यो. गुणावलीए उतावलथी पत्र फोडीने वाचतां पोताना प्राणनाथनुं नाम वांची ते बहुज हर्ष पामी ॥११॥ गुणावलीना अंगो अंगमां आनंद समातो नथी. तेणीनी चक्षुमाथी प्रेमनी जलधारा बुटी जाणे आंसु रूपी मुक्ता फलो ( मोती ) श्री पत्रने वधावती होय एम लास्यु. ॥१५॥ जाण्यो पियु नर रूप हो ॥ गु० ॥ तेद हरखनी हो कुण कहीने शकेजी ॥ चिंते गुणावली एम हो ॥ गुण ॥ थर हुँ अगंजी हो हवे प्रीतम थकेजी ॥१३॥ विनवे सवि कासीद हो ॥ गु०॥ चंदे मुखथी हो वात जे कही हतीजी ॥ कहे राणी सुण तास हो ॥ गु० ॥ वात किहां हां रखे करतो तीजी ॥१॥ अर्थ ॥ पोताना पतिने पुरुष रूपे श्रयेलो जाणीने तेणीने जे हर्ष यो तेनुं वर्णन करवाने कोण समर्थ बे? गुणावली मनमां एम विचारवा लागीके हवे मारा स्वामिना पसायथी हुँ कोश्नाथी गांजी जालं तेम नथी ॥ १३॥ चंदराजाए जे जे हकीकत गुणावलीने कहेवाने कही हती ते सघली खेपीआए गुणावलीने कही. पठी गुणावलीए खेपीआने कह्यु के श्रा वात तुं अहींा कोश्नी पण पासे प्रगट करतो नही. ॥ १४ ॥ सनमान्यो तेह प्रेष्य हो ॥ गुण ॥ पालो पगव्यो हो लेख लखी करीजी ॥ पण नृप चंदनी वात हो ॥ गु० ॥ नगरी माहे हो घर घर परवरीजी ॥ १५॥ कहे जण जण मुख एम हो ॥ गु० ॥ विहंग मटीने हो नर थयो नरवरुजी॥ पुरनु पूरण नाग्य हो ॥ गु० ॥ वहेलो श्रावे हो इहां अलवे सरूजी ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ ते खेपीश्रानो बहुज आदर सत्कार कर्यो. गुणावलीए तेने पत्र लखी आपी विदाय कर्यो. परंतु चंदराजानी वात नगरमां घेर घेर चरचाइ रही ॥ १५॥ दरेक मनुष्य कहेवा लाग्या के आपणो राजा जे पदी भयो हतो ते मटी जश्ने पुरूष श्रयो ने एम संजलाय . हवे जो आपणा नगरनुं संपूर्ण जाग्य होय तो आपणा कृपावंत राजा अहीं वेहेलासर श्रावे. ॥१६॥ धन धन चंद नरिंद हो ॥ गु० ॥ वासना पसरी हो सुयश सुवासनीजी ॥ एह श्रगीश्रारमी ढाल हो ॥ गु० ॥ मोहने जाखी हो चोथा उदासनीजी ॥१७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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