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________________ १२० द्वितीय उदास. डे का सामर्थ्य प्रीतम तुममें, जेम एह उगरे नूप ॥ तो उपगार करो प्रजु, उपगार जे धर्म सरुप ॥ स० ॥ ११ ॥ विद्याधर कहे मुजश्री शुं होवे, पण एक जाणुं उपाय ॥ तेह जो नृपमाता करे, तो विघन विलय सवि जाय ॥ स ॥१५॥ अर्थ ॥ हे प्रियतम, आ आलानगरीना राजा उगरे एवं कां सामर्थ्य तमारामां ने ? तो दे! प्रनु तेना उपकार करो. ए धर्मर्नु स्वरुप बे.॥११॥ विद्याधरे कयुं, माराथी शुं श्रश्शके, पण हुँ एक उपाय जाणुं वं. पण जो ते राज माता करे तो या सर्व विघ्न विनाश पामी जाय. ॥१॥ श्रावी विद्याधरी निजपति लेश, वीरमतीनी पास ॥ तुज सुतने कल्याणनो, रे बा सुण अवकाश ॥ स॥ १३ ॥ बिंब मनोहर सोलमा जिननो, थापो थान पवित्र ॥ पंचमंगल दीवो करी, जरो फूलनो पगर विचित्र ॥ स० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ पनी ते विद्याधरी पोताना पतिने लश् वीरमती माता पासे आवी, अने कह्यु. हे ! बाइ,तारा पुत्रना कट्याणनो उपाय तुं ध्यानथी सांजस्य. ॥ १३ ॥ सोलमा तीर्थकर श्रीशांतिनाथर्नु मनोहर बिंब पवित्र स्थानमा स्थापन कर्य. तेनी आगल पंच मंगल दीवो करी विचित्र पुष्पोनो पगर ( अंजलि ) नर्य. १४ मारी विद्याधरी वली नृपपत्नि, तेम तुं नृपनी विमात ॥ जिनगुण गार राती जगो, करो ज्यां लगी थाय प्रजात ॥ स॥१५॥ परी एक श्रापुं कणयर कंवा, फरसो नूप शरीर ॥ तो सूत ए वीरसेननो, सजा होवे फरी वमवीर ॥सम्॥१६॥ अर्थ ॥ आमारी विद्याधरी, राजानी पत्नी, अने तुं राजमाता ए बधा जिनगुण गातां गातां ज्यांसुधी प्रनात थाय त्यांसुधी रात्रि जगो करो. ॥ १५ ॥ पनी एक कणेरनी कंबा श्रापुं, तेनाथी राजाना शरीरनो स्पर्श करो. जेथी ते वीरसेननो शुरवीर पुत्र चंदराजा फरीथी सङ थशे. ॥१६॥ बाइए तरत तेडावी मुजने, सयल सुणावी वात ॥ विद्याधर वचने अमे, प्रजु नक्तिथी निगमी रात ॥ स ॥ १७॥ श्री जिनराजनो रास रम्या श्रमे, तुम माटे प्राणेश ॥ कंबाथी तुमने जगावीने, गयो विद्याधर निज देश॥ सम्॥ १० ॥ अर्थ ॥ पछी तमारी माताए मने तेडावीने सर्व वार्ता संजलावी. ए विद्याधरनां वचनश्री श्रमे प्रनु नक्तिमांज बधी रात्रि निर्गमन करी.॥१७॥ प्राणेश, अमे पड़ी तमारे माटे श्रीजिनराजनो रास रम्यां अने ते विद्याधर तमने कंबाथी जगामी पोताना देशमां चाट्यो गयो. ॥१७॥ ए बाजुनी रजनी रामत, पिउजी में कीधी प्रकाश ॥ मोहने ढाल बावीशमी, कही मनोहर बीजे उदास ॥ स० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ हे ! प्रिय ! आप्रमाणे आजनी रात्रिनी रमतनो वृत्तांत में प्रकाश को. श्रीमोहन विजये आ बीजा उल्लासनी बावीशमी मनोहर ढाल कही . ॥ १५ ॥ ॥दोहा ॥ चंद कहे चतुरा निसुण, ए कह्यो साचोमर्म ॥ जे होय नारि प तिव्रता,तेहनो एहिज धर्म ॥१॥ अकृत करे पिउ कारणे, सुकृ त करे विशेष ॥ प्रकृति ए सतीयो तपी, होय पुराकृतदेष ॥२॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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