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________________ चंदराजानो रास. एक तालो जगमो चोतालिज, सुर फागने जेत मान ॥ स ॥ ब्रह्म, ताला दिक तालनां, विकट बहु थनिधान ॥सा स्वा॥१३॥ नाटकनाची अपहरा,श्रमपामी तेणिवार सवस्त्र उतारी थापथापणां, गश्पुष्करणी मजार ॥सणास्वा॥१४॥ अर्थ ॥ एक ताल, त्रिताल, चोताल, वसंतना सूरनो ताल, अने ब्रह्मताल विगेरे विविध नामवाला ताल प्रवर्त्तवा लाग्या ॥ १३ ॥ते अप्सराओ नाटक नाची बहु श्रम पामी गई, पनी पोत पोतानां वस्त्रो ऊतारी त्यां रहेली एक वापिकामां गई ॥१४॥ हसे रमे क्रीमा करे, सहु को निरबीक ॥सण॥ राणी अवसरबटकली, श्रावी वस्त्र नजीक ॥ स० ॥ स्वा० ॥ १५ ॥ नीलवस्त्र शुकने को, अप इयु प्रछनवृत्ति ॥ स ॥ हारजडी प्रजुचरणर्नु, शरण ग्रह्यु दृढ चित्त ॥ स० ॥ स्वा० ॥१६॥ अर्थ ॥ ते सर्व अप्सराङ हास्य करती निर्जय थई क्रीडा करवा लागी. तेवामां ते अवसरनो लाल खेवाने राणी वीरमति तेऊना वस्त्र नजीक आवी.॥१५॥ पेला शुकराजना कहेवा प्रमाणे तेणीए गुप्तरीते नीलवस्त्र हरी लीधुं. पली प्रनुना चरणतुं शरण लश् दृढ चित्तथी घार पासे उनी रही. ॥ १६॥ __ कारिज सिझ थयुं हवे, चिंते थई उजमाल ॥ स ॥ मोदन विजयें मनोहरू, पनणी सातमी ढाल ॥ स० ॥ वा ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ पोतानुं कार्य सिद्ध थयु एटले तेनुं चित्त उज्वल थइ गयु. या प्रमाणे श्री मोहनविजये मनो हर एवी सातमी ढाल कही. ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ जल मजान करी बाहिरे, श्रावी सघली जाम ॥ नीलांबर मुख्यातणो, तिहां नवि दी ताम ॥ १॥ निज निज वस्त्रने अपरा, उलखी पहियां सर्व ॥ मुख्या वस्त्राविना रही, पूजे थई अगर्व ॥२॥ अर्थ ॥ सर्व अप्सरा जलमां स्नान करी बाहेर श्रावी, त्यां पेली मुख्य अप्सरानुं नीलवस्त्र जोवामां श्राव्युं नहीं. ॥१॥ बीजी अप्सराए पोत पोतानां वस्त्रो उलखी पेहेरी लीधां. ते मुख्य अप्सरा एकज वस्त्र विनानी रही. ते गर्व गोडी बीजीउने पुरावा लागी. ॥२॥ हासा मिस नीबुं वसन, जोकिणे अपहर्यु होय ॥ श्रापो बहेनी हुँ कहुं, करजोडीने दोय ॥३॥ सहु समखाईने कहे, हेमुख्यामदाराय ॥ हासुं तुम अंबर तणुं, ते श्रमथी किम थाय ? ॥४॥ अर्थ ॥ ते बोली के, हे ! बेनो, कोइए उपहास्यने खातर मारूं नील वस्त्र हरी लीधुं होय तो ते मने श्रापो. हुँ तमने बे कर जोडीने विनंति करूं बु.॥३॥ पनी बधी अप्सराए सोगन खाईने कह्यु के, हे! मुख्या, तारा वस्त्रनी हांसी अमाराथी केम थाय ? ॥४॥ आसंगो किणविध हवे, जास धरीजे आस ॥ खोटो मधरो स्वामिनी, श्रम उपर विश्वास ॥ ५॥ देवल उघाडं इतुं, दीधां दीसे हार ॥ ए महि निश्चे हशे, वस्त्र चोर निरधार ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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