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चंदराजानो रास. एकाकी पुर बाहिरे, श्रावी एकाकी तेह ॥ स ॥
जोया न होयतो जोयजो, नारी चरित्र ते एह ॥ स० ॥ स्वा०५॥ अर्थ ॥ पोते एकली नगरनी बाहेर नीकली पडी. ते स्त्री चरित्र न जोयुं होय तो जोई खेजो ॥५॥
उज्वल चंजनी चंडिका, वनशोना बहु नंत ॥ स० ॥
चाली वनमो चावमी, ते चतुरा निदचंत ॥ स ॥ स्वा० ॥६॥ अर्थ ॥ चंनी उज्वल चांदनीश्री वननी शोना घणी प्रकाशती हती, तेमां ए चतुर बाला निश्चित अई चालती हती ॥६॥
दीतुं जिनमंदिर तिहां, सोवन कलश सनूर ॥ स०॥
श्रम परिहरवा कारणे, जाणीयें बेगे सुर ॥ स ॥ स्वा० ॥७॥ अर्थ ॥ ते समये सुवर्णना प्रकाशथी सुशोजित जिन मंदिर जोवामां आव्यु. ते सुवर्णनो कलश जाणे दिवसना श्रमने उतारवाने सूर्य बेगे होय तेवो लागतो हतो॥७॥
पवने पताका फरहरे, श्राकर्षण करे सान ॥ सम्॥
वीरमती हरषी घणी, सद्य चढी सोपान ॥ स ॥ स्वा० ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ तेनी पताका पवनयी फरकती हती, जाणे लोकोने बोलाववा आकर्षणनी सान करती होय तेम देखाती हती. ते जोई राणी वीरमती घणो हर्ष पामी तत्काल तेना पगथी उपरचडी ॥७॥
जरत पिता नेट्या जलें, ललि ललि प्रणम्या पाय ॥ स॥
शविनयखामि प्रबन्नपणे, रहि केडे हित लाय ॥ स ॥ स्वा० ॥ए॥ अर्थ ॥ तेणीए जरत चक्रवर्त्तिना पिता श्री शषजदेव प्रजुने लेटी वारंवार चरणमां नमी प्रणाम कर्या. अने एक तरफ गुप्त रीते रही अविनयने खमावी श्रआत्मानुं हित कर्यु ॥ ए॥
अप्सरगण श्राव्यो ईसे, प्रणम्या झषन जिणंद ॥स०॥
अव्य पूजा पहेली करी, शुचितायें सानंद ॥ स ॥ स्वा० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ तेवा समयमा पेली अप्सराओनो गण श्राव्यो, तेमणे प्रजुने प्रणाम कर्यो. प्रथम आनंदी शुचिपणे अन्य पूजा करी ॥१०॥
नाव पूजा जवजयहरू, प्रारंने रस लुब्ध ॥ स० ॥
अरप तरप संगीतथी, नाटक नाचे शुद्ध ॥ स० ॥ स्वा ॥ ११ ॥ अर्थ ॥ पनी रसमां लुब्ध श्रयेली ते सुंदरीओए संसारना नयने हरनारी लाव पूजा आरंजी शुद्ध संगीतथी नृत्य करी नाटक करवा मांमयुं ॥११॥
सारीगम पधनी स्वरे, यंत्र करत नेद कोमि ॥ सम्॥
ताधीधौना गति मृदंगनी, वाजे विकट परमोम ॥ स ॥ स्वा० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ सारी गम पधनी ए सात स्वरो साथे वीणायंत्रमा कोटी जेद थवा लाग्यो. तां तां धिक् धिक् ए प्रमाणे मृदंगनी गति चालवा लागी ॥१५॥
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