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________________ चंदराजानो रास. पुष्करणी बहुवरणी, शोनावी धरणीश ॥ जलग हिर्या उतार्या, पहिया वस्त्र जगीश ॥ वा विजोवे नृपहोवे, राजी चित्त अनंत ॥ जाली एक विशाली, तामनिहाली एकंत ॥ १ ॥ अर्थ ॥ ते बहुवर्ण वापिकाने राजाए शोजावी. पनी स्नान वस्त्र उतारीने बीजां वस्त्रो पेहेर्या. राजा चित्तमां अनंत पणे राजी थ गयो. त्यां गल एकांतमां एक विशाल जाली जोवामां श्रावी ॥१॥ फांखी जोवे जालिका मालिकाविविध सोपान॥नृप तिहां थश्ने ऊतर्यो, कर कर वाल प्रधान ॥ श्रागल जातां पातालमां, दीगे वन विस्तार ॥ निरनय नृप वीराग्रणी, सत्वसखा सहचार ॥ १३ ॥ अर्थ ॥ तेजालीने बराबर जोतां विविध पगथीयांनी माला जोवामां श्रावी राजा हाथमा मुख्य खड्ग बइ ते पगीयांनी श्रेणि थी ऊतो. त्यांची आगल जातां पातालमां एक विस्तारवालुं वन जोवामां आव्यु तेमां सत्त्वकेतां बल जेनो सहचर सखा चे एवो ते वीराग्रणी राजा त्यां निर्भय हतो ॥ १३ ॥ धन्या कोश्क कन्या, तेहनो स्वर सुणीकान ॥ विस्मय अतिपाम्यो तिहां, मन मोहे राजान ॥ ए असराल पाताल में, एस्यो वन विसवादाकिम श्हा रहे कोश्बालिका, करि करि करूणा साद॥१४॥ अर्थ ॥ त्यां कोई धन्य कन्यानो स्वर कानमां सांजली राजा मनमा अति विस्मय पाम्यो. तेणे विचार्यु के, आवा गहन पातालमां आq वन क्यांथी अहीं बालिका कोण हशे.जे करूणाना स्वर कर्या करे ॥१॥ नगन खडग करी चडवडी, श्रांणी मन उपकार ॥ तत्क्षण तिहां जश ऊनो, शब्दतणे अनुसार ॥ वचन तणी रचनायें, पत्नणी बीजी ढाल ॥ मोहन विजये कहे सुणो, श्रागल वात रसाल ॥१५॥ अर्थ ॥ तत्काल राजा नागी तलवार करी मनमां उपकार बुद्धि लावी ते शब्दने अनुसारे त्यां जश्ने उनो रह्यो. या प्रमाणे वचननी रचनाश्री श्री मोहनविजयजी ए बीजी ढाल कही. हवे आगल रसिक वात श्रावशे ते श्रवण करो ॥ १५॥ ॥दोहा॥ दृगमुऊित योगी सरू, कतिहां निरखे नूप ॥ करजपमाल बहु कुसुम, धूप धूम अति रूप ॥१॥ अर्थ ॥ राजा त्यां गयो तेवामां एक जोगी दृष्टि मीचीने रहेलो जोवामां आव्यो. तेना हाथमां जप माल हती. तेना अंग ऊपर घणां पुष्प, धूप अने धूम प्रसरी रह्यां हतां ॥१॥ पमी श्र मुख धागले, असी उघाडी एक ॥ अग्निकुंम तिम परजले, नृप जाण्यो अविवेक ॥२॥ - अर्थ ॥ तेनी श्रागल एक उघामी तरवार पडी हती. तेनी आगल अग्निनो कुंम प्रज्वली श्रतो हतो. राजाए या सर्व तेनो अविवेक जाणी लीधो ॥२॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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