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________________ २३० चतुर्थ उल्लास. सुणी वचन पंखी तणां, थइ नटवी दिलगीर ॥ बूट्यो बेहुं नयां थकी, दुःख निसुणीने नीर ॥ वि० ॥ ११ ॥ कहे बाला कर जोडीने, रे खाजा धरणी ॥ आज ए जाणी वातडी, दवे तुम चिंत्युं करीश ॥ वि० ॥ १२ ॥ ॥ पक्षीनां वचनो सांजली शिवमाला दिलगीर थइ गइ काने तेना दुःखनी वात सांजलतां तेना बने नेत्रोमाथी सुनी धार चाली ॥ ११ ॥ शिवमाला बेहाथ जोडी कहेवा लागी के हे श्राजा नगरीना स्वामि ! जे तमारी या वात जाणी तेथी तमे जे मने कहेशो ते हुं करीश. ॥ १२ ॥ जली थइ मुज चाकरी, लेखे श्रावी श्राज ॥ परणी धरणीथी मल्या, राज्य करो महाराज || वि० ॥ १३ ॥ एहवे पुत्री आहे, पंखी ग्रहण निमित्त ॥ नटपासे श्राव्यो वही, भूपति प्रसन्न चित्त ॥ वि० ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ हे महाराज ! आज सुधी आपनी जे श्रमे चाकरी करी ते जे लेखे श्रावी. कारण के प आपनी परणेली स्त्रीने महया. हवे आप सुखेश्री राजभोग जोगवो ॥ १३ ॥ एवा अवसरमां पुत्रीना आग्रहथी मकरध्वज राजा ते पक्षीने लेवाने माटे शिवकुमर नटनी पासे आव्यो. राजा चित्तमां बहुज प्रसन्न हतो. ॥ १४ ॥ दीधो आदर शिव नटे, मकरध्वजने अनंत ॥ जाख्यो भूपे तेहने . निज पुत्री विरतंत ॥ वि० ॥ १५ ॥ आपो जो ए कुकडो, थाउं मेरू समान ॥ जाणीश मुज पुत्री जणी, दीधुं जीवित दान ॥ वि० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ शिवकुमर नटे मकरध्वज राजाने बहुज चादर सत्कार कर्यो, एटले राजाए तेने पोतानी पुत्री सर्व वृत्तांत कही जलाग्यो ॥ १५ ॥ जो तमे मने या कुकमाने श्रापद्यो तो हुं मेरूपर्वत समान थइ जाउं, वली एम पण जाणीशके तमे मारी पुत्रीने जीवित दान श्राप्यं ॥ १६ ॥ मानीश पाम तुमारको, जिहां लगी तारकमाल ॥ मोहने चोथा उल्लासनी, जाखी ए त्रीजी ढाल ॥वि० ॥ १७ ॥ ॥ वली ज्यां सुधी या तारा मंडल ने त्यां सुधी हुं तमारो उपकार मानीश. मोदन विजयजी महाराजे चोथा उल्लासनी त्रीजी ढाल कही ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ शिवनट नृपने विनवे, नगणो एह विहंग ॥ श्रम मन खजानो धणी, एह ने प्रगट अजंग ॥ १ ॥ देतां मन वेदेतुं नथी, तुमने नान कहा ॥ हां वाघ तेम उहां नदी, तेह बन्यो बे न्याय ॥ २ ॥ अर्थ ॥ हवे शिवकुमर नट कहे बे के दे राजन् ! या पक्षीने तमे पक्षी जाएशो नही. अमारा मनमां तो खात्री के तेजानगरीनो स्वामिज बे ॥ १ ॥ ते पक्षीने श्रपतां परंतु आपने ना कहेवाती नथी. अमारे तो एक बाजु ए वाघ ने बीजी खलो बन्यो बे ॥ २ ॥ मारूं मन कबुल करतुं नथी. बाजुए जरपूर नदी एवो दा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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