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________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ एम कही स्वामीए रमवाने दावे पासा नाख्या. श्री मोहनविजये मनमां नाव धरी बीजा नशासनी या सत्तरमी ढाल कही . ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ वचन सुणी वालिम तणां, चमकी नारि तिवार ॥ असमंजस एशुंका, कांक खरो विचार ॥१॥ सिंहलदेश सिंहलपुरी, तिहांथी श्राव्या तेह ॥ मुजने परणी अति हठे, मुखे किम नाएयुं तेह ॥२॥ अर्थ ॥ पोताना पतिनां आवां वचन सांजली प्रेमला चमकी गइ. श्रा पति आएँ अघटित केम कहे जे.? आमां कांक खरो विचार लागे .॥१॥ सिंहल देशनी सिंहलपुरीमाथी ए आव्या ने, अने अति हरश्री मने परण्या, ए वात मुखमां केम लावता नथी.॥२॥ किहां पूरव श्रानापुरी, किहां चंद किदां सार ॥ एतो जंमी वात मी, श्रवसर करीश पचार ॥३॥ सिंहल सुत मिषथी रखे, ए मुज परणे चंद ॥ लह्यो नेद में वचनथी, दीसे फंद अमंद ॥४॥ अर्थ ॥ पूर्वमा रहेली आलापुरी क्यां? चंदराजा क्या ? आ वात तो ठंडी लागे . तेनो प्रचार अवसरे करीश. ॥३॥ रखे सिंहल राजाना पुत्रना मिषथी आ चंदराजा मने परणता हशे. श्रावो नेद तेमनां वचन उपरथी जणाय . या वातमां घणो फंद बे.॥४॥ श्म करते पुरो थयो, सारी पासा खेल ॥ ललना लीन थई गई, मूरति मोहन वेल ॥५॥ लगी लगन चित्त चटपटी, जागी पूरव प्रीति ॥ रागी त्रिकरणथी थक्ष, नवल सनेही रिति ॥६॥ अर्थ ॥ एम करतां सोगी पासानो खेल पूरो थयो. मोहन वेल जेवी मूर्ति जोर ललना लीन अश् गइ. ॥५॥॥ तेना चित्तमां चटपटी लागी अने पूर्वनी प्रीत जाग्रत थ अने ते बाला नवल स्नेह रीते मन वचन कायामां पूर्ण रागी श्रश्. ॥ ६॥ वालिम वचन न विसरे, वनिताने क्षण एक ॥ उ बक चित्तो उलक्यो, जु नारी विवेक ॥ ॥ अर्थ ॥ ते प्रेमी वनिताने पोताना व्हालानां वचन हणवार पण विस्मरण श्रतां न हतां. श्रने तेणीए तेनुं उत्सुक चित्त उलखी लीधुं. जुवो नारीनो विवेक केवो जे? ॥ ७॥ ॥ ढाल श्रढारमी॥ ॥नयरो नगीनो माहारो साहिबो, ढोला मारु घडी एक करहो मुकारहो ॥एदेशी॥ सिंहल नृप कहे चंदने, राजिंद मोरा सुत लामकमा उठहो ॥ रात थोमी रामत घणी ॥ राण ॥ जुर्व विचारी पुंठहो ॥ सकलगुणे एतो सा चनो शुरो नृपचंदजी ॥राण ॥ नाग्यतणी बलिहारीहो, ए श्रांकणी Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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