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________________ चंदराजानो रास. ॥ दोहा ॥ सकल सुनट क्षिति मुकुटने, करजोडी कहे जाम ॥ नव नीक लिये एकला, इम मृग माटे स्वाम ॥ १ ॥ ॥ सर्व सुटो पृथ्वीना मुगटरूप राजाने हाथ जोडीने कहेवा लाग्या के हे स्वामी, वी ते मृगने माटे एकला नीकलवुं न जोइ ॥ १ ॥ रतन जतन करि राखवा, तुमने नर शिरताज ॥ १२ सनथी दुर्जन घणा, मोहोटाने महाराज ॥ २॥ अर्थ ॥ हे ! लोकोना शिरताज महाराज, तमारां जेवां रत्नने तो यतना करीने राखवां जोइए. हे महाराज, मोटा पुरुषोने समनश्री दुर्जन घणा होय बे ॥ २ ॥ धावल पगथी धूंसीयें, उढाए जरतास ॥ जे जेवा नर तेने, तेदवा होय प्रयास ॥ ३॥ अर्थ ॥ हे ! राजा, धाबलीथी पग लुंवायडे, अने जरीयान वस्त्र उढाय बे, तेम जेवो माणस होय तेवो तेने प्रयास थाय ॥ ३ ॥ मोटुं जाग्य जुजाबली, कुसलें मलिया नूप ॥ पण ए कन्या को अबे, कहियें तास स्वरूप ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ अमारूं मोटुं जाग्य के जे श्राप भुजाबली राजा पाना कुशल- देम प्राप्त थया. या कन्या कोण बे, तेनुं स्वरूप कहो ॥ ४ ॥ दय पुष्करणी जालिका, योगी कन्या खेद ॥ अवनीशे निमेषमें, जाख्यो सघलो नेद ॥ ५ ॥ अर्थ ॥ राजाए विपरीत शिक्षावाला अश्वनी, वापिकानी, जालीनी, योगीनी ने कन्याना संकष्टनी बधी वात जणावी तत्काल तेनो बधो भेद खुल्लो कर्यो ॥ ५ ॥ सव सामंत या खुशी, नृपनी करे प्रशंस ॥ ख्याग त्याग वाचा अचल, धन क्षत्री अवतंस ॥ ६ ॥ ॥ ते सांजली बधा सामंतो खुशी थया ने राजानी प्रशंसा करवा लाग्यो के, दान ने वचनथी अचल एवा क्षेत्रीय कुलमां आभूषण रूप तमने धन्य बे ॥ ६॥ ले कन्या सेना सहित, नृपति थयो असवार ॥ श्राव्या निज नगरी तिहां, वरत्या जय जयकार ॥ ७ ॥ ॥ राजा कन्याने लई सेना साथे घोमेस्वार थयो ने पोतानी नगरीमां श्रावी पोहोंच्यो. त्यां जय जयकार वरती रह्यो ॥ ७ ॥ Jain Educationa International ॥ ढाल चोथी ॥ सरवरीयारी पाल, थांबा दोय रावलां ललना ॥ ए देशी ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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