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________________ चंदराजानो रास. निवम बंध बांधी थकी, दीनी कन्या ताम ॥ रूदन करे मुख उच्चरें, एम वचन श्रनिराम ॥३॥ अर्थ ॥ तेनी आगल मजबूत बंधथी बांधेली कन्या जोवामां आवी. मुखथी पोकारी रूदन करती आ प्रमाणे ऊत्तम वचन कहेती हती ॥३॥ कर वाहर आना नृपति, वनितानी श्णवार ॥ विटल जटिल बलि श्रापशे, नहितो अग्नि मकार ॥४॥ अर्थ ॥ हे आजानगरीना राजा, आ वखते वनितानी वार कर. नहींतो आ नष्ट तापस योगी अग्निमां मारूं बलिदान आपी देशे ॥४॥ नारि वचन एह प्रगट, निसुणी निज अनिधान ॥ मुख श्रागल श्रावी नृपति, हलुएशुं करी शान ॥५॥ अर्थ ॥ ते नारीनुं एवं प्रगट वचन अने तेमां पोतानुं नाम सांजली राजा तेना मुख आगल शान करी इलवेथी आवी ऊलो रह्यो॥५॥ ग्रहि खड्ग ते जटिलने, बोलाव्यो नर राय ॥ मुजावे अबला तणो, बलि श्म किम देवाय ॥६॥ __ अर्थ ॥ राजाए खड्ग लश्ने तापसने बोलाव्यो. अरे पुष्ट, मारी आगल आम अबलानुं बलिदान केम अपाय ?॥१॥ रे! निघृण निर्दय नितुर, रे! पापी मतिहीन ॥ मूक मनोहर माननी, रे! परिग्रह कोपीन ॥ ७॥ अर्थ ॥ अरे! घृणा रहित, अरे! निर्दय, अरे ! क्रूर, हे! बुद्धिहीन पापी, हे ! कोपीननो परिग्रह करनारा तापस! आ मनोहर मानिनीने बोडीदे ॥ ७॥ था साहमो बोमीश नहीं, योगी निसुणी एम ॥ . नागे ध्यान तजी इसे, बांबी निज तनु खेम ॥ ॥ अर्थ ॥ तुं मारी सामो श्राव्य. हुँ तने गोडीशनहीं. आवां वचन सांजली ते योगी पोताना शरीरनी कुशलता श्छी ध्यान बोडीने नाशीगयो ॥७॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ प्राणी कर्मसमो नही कोय ॥ अथवा ॥ देव तणी इति जोगवी श्राव्यो ए देशी॥ गयो जोगी नागे वन मांहे, नृपे पण केड नकीधी ॥ विद्या साधन केरी तेहनी, सामग्री सवि लीधीरे ॥ सूरिजन सत्त्व समो नदी को॥ देव दानव विद्याधर मृगपति, सत्त्वेसवि वश होई रे॥सूरिजन ॥एषांकणी ॥२॥ अर्थ ॥ ते जोगी वनमां नाशी गयो. राजाए तेनी केड न लीधी पण तेनी विधि साधवानी सर्व सामग्री लाई लीधी. हे सूरिजन! जगत्मां सत्त्व समान कोइ नथी. देव, दानव, विद्याधर अने केसरीसिंह तेजेपण सत्ताथी वश थाय ॥१॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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