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________________ ३०४ चतुर्थ उबास. अर्थ ॥ एवे समये पामोशमां सुरसुंदरी नामनी एक श्राविका रेहेती हती ते तरत दोमी श्रावी अने तेणीए करुणायुक्त अंतःकरणथी साध्वीना गलामांथी फांसो काढी नांख्यो ॥ १७ ॥ ते पाडोशण सुर सुंदरीए, साध्वीने बहु बहु रीते समजावीने आहार कराव्यो. साध्वीने पण धीमे धीमे समजण श्रावतां क्रोध शांत थ ते समताना घरमां आवी. ॥ १० ॥ __ संयम पाले जावथी रे, अनुजव विनव विलासे रे॥ नाखी ढाल बवीशमी रे, मोहने चोथा उसासे रे ॥ को० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ साध्वीए निर्मल नावश्री चारित्र पाराधन करवा मांझयु अने अनुन्नवरूप वैनवनो विलास करती हवी. एवी रीते चोथा उवासमां बवीशमी ढाल मोहन विजयजीए कही. ॥ १५॥ ॥ दोहा॥ बेहु कन्याने परस्परे, अहनिश वचन संवाद ॥ जिन मत शैवी मत तणो, चाल्यो जाय विवाद ॥१॥ कोइ कोश्ना धर्मने, माने नही लगार ॥ बेहुं ए अवसर साचवे, निज निजना श्राचार ॥२॥ अर्थ ॥ ते बने कन्याउने निरंतर वाणी संवाद श्रतो हतो तेमां जिन मत अने शिवमत संबंधी विवाद चाट्याज करतो हतो॥१॥ बंने मांथी कोइ पण एक बीजाना धर्म उपर श्रघा करती नहती, एटलुंज नहीं पण अवसर श्रावे दरेक पोतपोताना आचारने साचवती हती. ॥२॥ एहवे नृप वैराटनो, जित शत्रु वमवीर ॥ शुरसेन तेहनो तनुज, सुरगिरि सम वमधीर ॥३॥ तेणे मंत्री मोकव्यो, जिहां तिलका पुर नाह ॥ करवा तिलक मंजरी थकी, शुरसेन विवाह ॥४॥ अर्थ ॥ एवा अवसरमां वैराट देशनो महा शुरवीर जित शत्रु नामनो राजा हतो तेने मेरू पर्वत समान महा धैर्यवंत शूरसेन नामनो पुत्र हतोते शूरसेननो विवाह, तिलकापुरीना राजानी पुत्री तिलक मंजरीनी साथे करवा सारू, पोताना मंत्रीने, मदन चमराजानी पासे मोकल्यो. ॥३॥ ४॥ प्रजे जनक सुता प्रते, पाणि ग्रहण स्वरूप ॥ हर खित थ पुत्री कहे, तातने वचन अनूप ॥५॥ जो मंत्रीनी पुत्रिका, वरए वरे सुजाण ॥ तो माहरे पण एहवर, वरवो करुं प्रमाण ॥६॥ अर्थ ॥ ते आव्यो एटले राजाए पोताना पुत्रीने लग्न संबंधी हकीकत केहेवा बोलावी, राजाए शुरसेन संबंधी वात केहेतांज तिलकमंजरीए पोताना पिताने हर्ष सहित कह्यु के जो रूपमती ए वरने वरवाने कबुल करे तो मारे पण एनी साथे लग्न करवा प्रमाण बे॥५॥६॥ अमे बेहु बालापण थकी, कीधो संकेत ॥ मली बेहु जणीए एकवर, वरवो वधते देत ॥७॥ अर्थ ॥ बाल्यावस्थाथी अमे बने बेहेनपणीनए एवो गुप्त रीते निश्चय कर्यो जे के आपण बने जणी उ ए एकज वरने वरवो जेथी आपणा स्नेहमां पण वृद्धि थाय. ॥ ७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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