SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्ए० चतुर्थ उदास. जडन बलवधवाथी पोताना ज्ञानादिक जे गुणो ते तदन विसरी गयो; अने पोते अशुद्ध प्रनालिकामा प्रवर्तवा लाग्यो. जेम मदकरता हाथीना मदरूपी कादवमां नमरानी श्रेणि आनंदपामे तेम या जीव मिथ्यात्व लावमा मग्न थ रह्यो. ॥ ६॥ गोलक असंख्या एक वालाग्रमां, गोलके असंख्य निगोद रे ॥ एकेक निगोदेरे जीव अनंत, तिहां निज श्रादि विनोद रे॥ श्री० ॥७॥ नव जम एहवारे तिही सूक्ष्म बे, अजिनमती नवि जाणे रे ॥ एम करतां व्यवहारनी राशिमां, श्राव्यो कोश्क टाणे रे ॥ श्री०॥ ॥ अर्थ ॥ जगवते कयु के हे नव्यजीवो! एक वालना अत्यंत सूक्ष्म नागमां असंख्याता गोला, ते मध्येना प्रत्येक गोलामा असंख्य निगोदडे, प्रत्येक निगोदमां अनंताजीवने. ते दरेक जीवनो आदि निवास त्यांज वे.॥७॥ ए आदि निवास रूप अव्यवहार राशिमां नवज्रमणता एवी मोटी के जेनुं स्वरुप बहु सूक्ष्म समज वालुं बे. जिनेश्वर लगवानना मतने नहीं जाणनारा ए स्वरूपने जाणताज नथी, एवी रीते अव्यवहार राशिमां नटकतो(जवितव्यताना योगे) कोइक अवसरे व्यवहार राशिमा श्रा जीव श्राव्यो.॥॥ कर्म विटंब्यो रे जम्यो जव चक्रमां, एकैछियादिक कुल पामीरे ॥ एम परिचमणा रे काल अनादिनी, करता नरही कोई खामीरे ॥ श्रीन ॥ ए॥ थारे बेठा रे वारानी परे, लह्यो मानव अवतार रे ॥ हार्यो ते पण अशुन सामग्रीए, सेवी विषय विकार रे ॥ श्री० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ एवी रीते कर्मनी विमंबनाथी लव चक्रमां नमतां एकेंति प्रमुख चोरासी लाख जीवा योनिमां बहुज जटक्यो. एवी रीते अनादि कालथी परित्रमण करतां तेना उपर मुःख पडवामां को प्रकारे खामी रही नहीं ॥ ए॥ जेम श्रेणिबंध बेला माणसो पोतानो वारो आवे त्यारे पामी शके तेम नवितव्य ताना योगे मनुष्य अवतार प्राप्त करवानो वारो श्राव्यो. ते मनुष्य अवतार पण विषय विकार प्रमुख अशुन सामग्रीना योगथी सेवन करी हारी गयो.॥१०॥ बाक्यो महा मद तेहथकी चढी, मनना हाथमां बाजी रे ॥ साहमी तेहथी कषायादिक तणी, उन्मत्तता चढी वाजी रे ॥ श्री० ॥ ११॥ ममता गणिकारे श्रणिका अज्ञाननी, लीधो तेणे पण घरी रे ॥ परवश प्राणी रे जाणी नवि शके, जे ने नवनी फेरी रे ॥ श्री०॥ १२॥ अर्थ ॥ अनिमान रूप हस्ति उपर चढतां तेनो गक वध्यो. एम थतांज सघली बाजी मनना कबजामां गइ. संकटप वध्यो, कुतर्कनुं प्रबल थयुं तेथी कषायादिकनी उन्मत्तता अश्वना वेगनी जेम उलटी वधती ग॥११॥ एवीरीते अज्ञाननं प्रबलपण वधतां तेना दल मध्येनी सर्वने आकर्षण करनारी ममता वेस्याए आ जीवने ताबे करी लीधो. एवी रीते तेनाथी परवश थतां आ जीवने जव चक्रमां अनंता काल परिज्रमण करतुं पडशे ते वात ते जाणी शकतो नथी. ॥ १॥ आप न जाणे रे श्राप स्वरूपने, पर परणीतने प्रवाहे रे ॥ कूकर निज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy