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________________ २०५ तृतीय उवास. ताकयो लेवा ए पंखीयोरे, राजा नाटक जोय ॥ लाख टके पण एहवो रे, दाता न मल्यो कोय ॥ का॥ए॥ नूपवधु जो जीवे नहीरे, तो श्रम नावे स्नान ॥ राणी नूपने वालहीरे, तेम ए श्रम जीवन समान ॥ का॥१०॥ अर्थ ॥ राजानी शी खुबी कहीए? ज्यारे नाटक बताव्युं त्यारे ते जोड्ने पक्षी लेवाने तत्पर अया. वली लाख रूपीया श्रापनार एवो दातार पण जाणे जगत्मां नहीं होय ? ॥ ए॥ राजानी राणी कुकडा विन जीवी शके तेम नथी एम जो कहेता होतो तेमां अमने कांइ स्नान नथी. जेवी राजाने राणी वहाली ले तेवी रीते ए पक्षी अमने जीवन प्राण समान . ॥ १० ॥ सेवके रायने विनव्यारे, नटवे कह्यां जे वचन ॥ रोष चड्यो चढी चालीयोरे, सेवा पंखी रतन ॥ का॥१९॥ सांजली मंका नेरी तणारे, सऊ थया नर फुजार ॥ सामंत चंद नरिंदनारे, उना थर असवार ॥ का ॥१॥ अर्थ ॥ सेवकोए आवीने राजाने नटना कहेलां सघलां वचनो कह्यां. जे उपरथी राजाने कोप व्याप्यो. अने ते पदी रत्नने सेवा तैयार थयो ॥ ११ ॥ सिंहल राजाना लस्करना डंका तथा रीना अवाज सांजली चंद राजाना सामंतो सज श्रश् गया, असवारो अश् तेनी सामो युद्ध करवा तैयार श्रया. ॥१॥ जाणीए उत्तरे उम्हीरे, श्याम घटा घनघोर ॥ पिंजर लइ चढी निसर्यारे, देतां नगारे ठगेर ॥का॥१३॥ सिंहल थावीने श्रापडयोरे, अलगा हुँती खेमि ॥ सुदडे नटे करी चालणीरे, तेणे जेहवी करी केडि ॥ काम् ॥१४॥ अर्थ ॥ चंद राजानुं लस्कर जाणे उत्तर दिशामां श्याम रंगनी वादलांनी घटा चमी श्रावी होय तेवू दिसवा लाग्यु. ते पांजराने साथे सइ नगारा उपर घाव देतां चढी निकट्या ॥ १३ ॥ सिंहल राजा आवीने तेना उपर त्रुटी पडे ने एटलामां सुघड नटोए एवी युक्ति करीके तेना इसाराथी चंदना लस्करे तेजेनी पुंठे धसारो कर्यो.॥ १४ ॥ पूरे सूरे जाइ बणीरे,जोर मच्चो धमसाण ॥ सिंहलना नम उपरेरे,वही एक धारी कृपाण ॥ का ॥१५॥ फिके मुखे नासी गयोरे, सिंहल नृप अविनीत ॥ जयवाजी चिहुं खुंटमारे, कुक्कड नृपनी जीत ॥ का० ॥१६॥ अर्थ ॥ बने खस्करो संपूर्ण शूरथी लडतां, मोटुं धमसाण थयु. एटलामां सिंहल रायना लस्कर उपर चंद राजाना लस्करनी एकधारी तलवार चालवा मांडी ॥ १५॥ अविनीत एवो सिंहलराजा हार थवा श्री फीके मोढे लागी गयो. कुकड रायनी जीत अश् अने चारे दिशामां जयघोष अयो. ॥ १६ ॥ चाच्या पोतनपुर नणीरे, नट नट थर उजमाल ॥ त्रीजा जबासनी मोहनेरे, कही चोवीशमी ढाल ॥ का०॥ १७ ॥ अर्थ ॥ नटर्नु अने चंद राजानुं दल हर्षवंत अतुं पोतनपुर नगर तरफ चाट्यु. एवी रीते त्रीजा उसासनी मोहनविजयजीए चोवीशमी ढाल कही. ॥ १७ ॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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