SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० चतुर्थ उल्लास. ॥ दोहा॥ तीर्थ निवासी देव गण, हुँता समकित दृष्टि ॥ तेणे चंदनी उपरे, करी कुसुमनी वृष्टि ॥ १॥ वुठी चंदननी बटा, हरख्या सुर तिरियंच ॥ तिहुश्रण कबोले चढ्यो, तीर्थ प्रत्नाव उदंत ॥२॥ अर्थ ॥ तीर्थना निवास करनारा सर्वे देवता समकितदृष्टि हता. तेमणे चंद राजानी उपर पुष्पनी वृष्टि करी ॥१॥ चंदराजानी उपर बावना चंदनना रसनो देवताए बंटकाव कर्यो जेनी सुगंधीथी सर्व देवता तथा तिर्यंचो जे हाजर हता ते हर्ष पाम्या. त्रण नुवनने विषे तीर्थाधिराजनो महिमा श्रतिशय वृद्धि पाम्यो. ॥ २॥ धन धन सुरज कुंड जल, कलिमल मल हरणार ॥ दीधो चंद जणी करी, मानवनो अवतार ॥३॥ प्रीतमने कहे प्रेमला,करी धुंघट पट लाज ॥ महाराज गिरि राजश्री, सिध्यां सघला काज ॥४॥ अर्थ ॥ आ पंचम काल-कलियुग मध्येना पापी जीवोना मेलने नाश करनार एवा सूर्य कुंडना जलने अतिशय धन्य वाद घटे ने के जेना प्रजावथी चंद राजाने फरीने मनुष्यनो अवतार प्राप्त अयो॥३॥ त्यार पनी प्रेमला लब्बी धुंघटमां रही मर्यादा पूर्वक चंद राजाने कहेता हवां के हे महाराज आपणा सर्व मनोरथो गिरिराजना पसायथी सिद्ध थया.॥४॥ स्नान करी ए कुंडमां, पूजो षन जिणंद ॥ सिंचो नक्ति रसे करी, समकित तरूनो कंद ॥५॥ स्नान करीने चंद नृप,पेहेरी उज्ज्वल धोत ॥ श्राव्यो श्रादि जिनालये, जिहां रतन उद्योत ॥ ६॥ अर्थ ॥ आ सूर्य कुंडमां प्रथम स्नान करी, देवाधिदेव श्री झपन्न परमात्मानी आप पूजा करो अने ते प्रमाणे परमात्मानी नक्ति करवा रूप रसर्नु सिंचन, सम्यग् दर्शन रूप वृदना मूलमां करो ॥५॥ त्यार पनी चंद राजा सूर्य कुंडना जलथी स्नान करी निर्मल श्वेत वस्त्रो धारण करी ज्यां रत्नोनी कांति प्रकाश करी रही बे एवां श्री आदिनाथना मंदिरमां आव्यो. ॥ ६॥ दंपतीये पूजा रची, अव्य तणी बहू नेद ॥ प्रारंन्ने हवे नावनी, पूजा विरमी खेद ॥ ७॥ अथ ॥ अनंतर बने स्त्री नगरे श्री जिनराजनी अनेक प्रकारथी अव्य पूजा करी. तदनंतर परिश्रमने शांत करी जाव पूजानो नीचे मुजब प्रारंन करता हवा. ॥ ७ ॥ ॥ ढाल ७ मी॥ ॥ वण जारारे ॥ ए देशी ॥ जीनरायारे जय तिहुंअण प्रतिपाल, शांति सुधामय चंदलो ॥ जीनरायारे नवि जन आशा विश्राम, तुं सुरतरु प्रगट्यो जलो ॥ जी० ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy