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________________ २६ चतुर्थ उल्लास. ॥ ढाल १५ मी ॥ ॥ राज गोडी पासजी हो दरिशन ताहारो ॥ ए देशी ॥ राज एम प्रेमलाने समजावी, राज पुरगमननी वात जणावी ॥ राज नृप चंद समो नही कोई ॥ ए यांकणी ॥ राज जइ सुसराने जणाव्युं, राज निज नगरीथी तेडुं जे श्राव्यं ॥ १ ॥ राज तिहां प्रजा वाटमी जोवे, राज जइ मलीए हुकम जो होवे ॥ राज नगरी किसी नृप पाखे, राज तृण नर पण देत्रने राखे ॥ २॥ अर्थ ॥ एवी रीते प्रेमला लखीने पोताना नगरे जवानी वात चंद राजाए विस्तार पूर्वक कही . ( कवि क) अहो चंद राजा समान बीजो कोइ नथी. पती चंद राजाए पोताना सासरा पासे श्रवीने कां के जापुरी थी अत्रे, मने तेडाववानो मारी प्रजानो पत्र आव्यो बे ॥ १ ॥ वली हे राजन् ! मारी प्रजा पण मारी राह जोइ बेटी बे. जो आपनो हुकम होय तो हुं त्यां जश्ने तेने मलुं. वली राजानी विना नगरीनुं संरक्षण केवी रीते रही शके ? एक तपखला जेवो स्वामि होय तोपण ते पोताना क्षेत्रने जालवी शके ॥ २॥ राज सुख लह्यो इहां में जगीशे, राज मुखे कतां कारमुं दिसे ॥ राज हुं तो तोल तमारो प्रसिद्धो, राज मुजने तमे मोटो कीधो ॥ ३ ॥ राज तिहां गया विण नवि चाले, राज वली विबडवं पण साले ॥ राज मनुज यो इहां रहीने, राज प्रभु पाम चडावुं हुं कहीने ॥ ४ ॥ अर्थ ॥ वली हे राजन् में अपना प्रतापे हीं संपूर्ण सुख मेलव्युं; जेनुं वर्णन श्रापनी हजुरमां कर ठीक लागतुं नथी. परंतु एटलुं तो प्रत्यक्ष रीते पे मने मोटो करवामां पोतानुं महत्वपणुं बतावी युं ॥ ३ ॥ वली हे राजन् ! त्यां गया शिवाय जेम चाले तेम नथी तेमज अहींथी जनुं ते पण सायाविना रेहेतुं नथी. कारण के अहींचा रेहेतांज हुं मनुष्य थयो. ए आपनो मोटो उपगार मारा उपर बे ॥ ४॥ राज तुम सौजन्य पणा, राज नवि विसरे क्षणेक कदाइ ॥ राज अंतर कोइ मत करजो, राज सेवकने चित्तमां धरजो ॥ ५ ॥ राज कागल लखजो संजारी, राज रखे मुकता चित्तथी विसारी ॥ राज मुज अवगुण मत जो जो, राज तमे मोटा बो जारी हो जो ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ वली हे राजन् ! श्रापनी सजनता एटली विशाल बे के ते एक क्षणवार पण कदापि विसरी शकाय तेवी नथी. आप मारे माटे लेश मात्र जुदाइ राखशो नही छाने या सेवकने चित्तमां निरंतर जारी राखशो ॥ ५ ॥ वली हे राजन् ! मने निरंतर याद लावी मारी उपर पत्र लखशो परंतु कामोने सीधे रखे मने पोताना चित्तथी विसारी देता. वली मारी अनेक जूलो श्रापनी प्रत्ये थी ते मारा अवगुणने ध्यानमां लेशो नही. श्राप वडील बो अने तेवी रीते हवे पीप मुरबी पणे रहे जो ॥ ६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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