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चंदराजानो रास.
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॥ हाल सुधीमां सत्तर तीर्थकरो या पर्वत उपर मुक्ति पाम्या बे ने हवे त्रण जगत्पति तीर्थकरो हिं विचल मुक्तिने प्राप्त करशे ॥ 9 ॥ तेम करता वैजार गिरि श्रव्यो एटले वीरमती कहे, हे वधू, जुवो वैचारगिरि, जुवो अर्बुदाचल (बु) गिरि, एम करतां मार्गमां सिद्धाचल तीर्थराज आव्यो.
वढू सुवहू तीर्थ मोटको होजी, नामे डुरित पलाय ॥ तो जिए तो जिए नय निहाली होजी, तस तिहुं श्रण जस गाय ॥ ॥ पूरव पूरव नवाएं समोसर्या होजी, जग गुरु यादि जिणंद ॥ सिद्ध सिद्ध अनंता इहां हुआ दोजी, केइ थया ज्ञान दिणंद ॥ नि०॥१०॥
अर्थ ॥ वद्दु, सांनलो श्रा सर्व तीर्थमां मोटो बे, तेनुं नाम लेवाथी पाप दूर भागी जाय बे, तो जेणे नेत्रथी जोयो होय तो तेना यशने त्रण भुवनना लोको गाय बे ॥ ए ॥ हिं पूर्वे नवाएं पूर्व समोसर्या जगद् गुरु श्री आदिनाथ प्रभुपण अहिं समोसर्या बे, ते शिवाय अहिं अनंत सिद्ध यया वे कक ज्ञानना सूर्य या बे ( केवल ज्ञान पाम्या बे. ) ॥ १० ॥
प्रथम प्रथम उद्धार श्रीजरतनो होजी, बीजो तेम दंडवीर्य ॥ त्री जो त्रीजो उद्धार इशानें नोहोजी, चोथो महेंद्रपति धीर्य ॥ ११ ॥ ब्रह्मे ब्रह्मे कर्यो पांचमो होजी, बो जुवनपति की ॥ सगर सगरनो सातमो श्रावमो होजी, व्यंतरपति सुप्रसिद्ध ॥ नि० ॥ १२ ॥
॥ तीर्थनो प्रथम उद्धार श्रीभरतचक्रीए कर्यो हतो, बीजो उद्धार दंडवीर्ये कर्यो बे, त्रीजो उद्वार इशानइंद्रे कर्यो ने अने चोथो उद्धार धीर एवा महेंद्रपतिए कर्यो बे ॥ ११ ॥ पांचमो उघार ब्रह्मे कर्यो हतो, वो उच्चार जुवनपतिए कर्यो हतो. सातमो उद्धार सगर राजाए कर्यो हतो, अने - मो उदार व्यंतरपतिए करेलो प्रसिद्ध बे ॥ १२ ॥
नवमो नवमो उद्धार चंद्रयशातणो दोजी, चक्रधर दशमो उद्धार ॥ आगे श्रागे उद्धार वली हुशे दोजी, रामादिकना उद्धार || १३ || ३णि गिरि इणि गिरि श्राव्याथी दुवे होजी, सफल मानव अवतार ॥ त्रिविधे त्रिविधे करो तुमे वंदना होजी, ए नवतारणहार ॥ १४ ॥
अर्थ | नवमो उद्धार चंद्रयशाए कर्यो हतो, अने दशमो उद्धार चक्रवर्तीनो हतो. एम राम प्रमुखना बीजा उचारो आगल थशे. ॥ १३ ॥ आ गिरिए आववाथी मनुष्यनो अवतार सफल थाय बे. तेथी हे बहु, तमे मन वचन कायाए करी तेने वंदना करो, ए तीर्थ जवमांथी तारनार बे ॥ १४ ॥
गे श्रागे वली निरखो वहू होजी, तीरथ श्री गिरनार ॥ मुगति मुगति वधू इहां पर शे होजी, राजुलनो जरतार ॥ नि||१५|| पुंरिक पुंरिक गिरिवर सारिखो दोजी, महिमा उदधिथी ठंड ॥ खूतो खूतो पद गजमल्लनो होजी, तिणे इहां गजपद कुंम ॥ नि० ॥ १६॥
अर्थ ॥ श्रगल जुर्ज, आ श्री गिरनारनुं तीर्थ बे. अहिं राजेमतीना स्वामी श्रीनेमनाथ प्रभु मुक्तिरूपी वधूने पर. ॥ १५ ॥ श्र पुंरुरिकगिरि पुंमरिकना सरखो बे, तेनो महिमा समुद्रथी जंको ( गंजीर ) बे; अहिं ऐरावत गजेंद्रनो चरण खुचवाथी एक हाथी पगलानोकुंड थयेलोबे ॥ १६ ॥
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तीरथ तीरथ एम नवनवा दोजी, अवलोकावे रसाल ॥
पजणी पजणी वींशतिमी जणी दोजी, मोहन विजये ढाल || नि० ॥ १७ ॥
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