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________________ ११ए चंदराजानो रास. खिण एक वंशाग्रे रही, फिरे फेर अनुपात ॥ जाणे केवलीए रच्यु, ए केवली समुद्घात ॥ ५ ॥ वंशतणी रामत रमी, श्रावी हेठी बाल ॥ उपशमथी कोइ जाणीए, पड्यो प्रथम गुणमाल ॥६॥ अर्थ ॥ क्षणवार स्थंजना टोच उपर रही, फरी तरतज चक्र खेवा रूप गमनागमन क्रिया करती हती. जाणे केवलीए केवली समुद्घात करवा मांड्यो होय तेवी रचना करती हती. ॥५॥ वांस उपरथी रमत रमीने शिवमाला नीचे उतरी ते जाणे उपशांत मोह नामना ११ मा गुणस्थानकधी पडतो कोश पेहेले गुणस्थानके आवी जाय तेना जेवू बन्युं हतुं. ॥६॥ शिवमाला निज तातथी, आवी नाम्यो श्रवनीश ॥ रजत हेममणी वस्त्रनो, वूट्यो घन जेम श्श ॥७॥ अर्थ ॥ शिवकुमर नटे शिवमालाने साथे लश् राजेंद्रने नमस्कार को. ते वखते राजाए तेना उपर सुवर्ण, मणि, रुघु अने वस्त्रादि अनेक वस्तुनो मेघनी जेम वरसाद वरसाव्योः ॥७॥ ॥ ढाल ३० मी॥ ॥ उठगे कान कोमामणा ए देशी ॥ दीतीजी एहवे कुकडे, तेहवे प्रेमला लबी रे ॥ परणी धरणी उलखी, नाच्यो तुरंग जेम कछी रे ॥१॥ श्राज सुरंग वधामणा, आज ते उलट अंगरे ॥ सोले वरसे चंदने, थयो वनिता प्रसंग रे ॥ श्रा०॥२॥ अर्थ ॥ एवा अवसरमा कुकडाए प्रेमला लबीने देखतांज श्रा मारी परणेली स्त्री एम उलखी काढी भने उलखतांज कली घोडानी जेम नाचवा लाग्यो. आजे उत्तम रंगजर वधामणां बे. आजे हैयामां हर्ष समातो नथी. सोले वरसे चंद राजाने पोतानी पत्नीनो मेलाप थयो. ॥१॥२॥ कुवे कुवो नवि मले, रह्या अचल खजावे रे ॥ पण वीबडीया नरमले, जेह सपद कहावे रे ॥ श्रा॥३॥ सोले वरसे एहनो, हुई मीट मेलावो रे ॥ शुं करूं सरज्यो पंखीयो, नहींतो करत वधावो रे ॥ श्रा० ॥४॥ अर्थ ॥ एक कुवो बीजा कुवानी साथे बंने स्थावर स्वजावना होवाथी कदापि मली शके नही. परंतु एक बीजाथी वियोग पामेला पुरुषो हाथ पगवाला होवाथी तेमनो मेलाप अवानो संजव ॥३॥ चंद राजा अने प्रेमला लबीनो सोल वर्षे दृष्टि मेलाप अयो. चंद कहे जे के शुं करुं के हुँ पक्षी सरजायो बुं. नहीं तो श्रा वखते तेणीने हर्षनी वधाइ करत. ॥४॥ कोम दिवाली जीवजो, मायडली मुज केरी रे ॥ न होत जो कीधो कुकमो, क्यां ए मलतो फेरी रे ॥ श्रा॥५॥ ननुं पण हो जो जवं, जेणे साथे राख्यो रेले हां मुज श्रावीया,नित नित यश मुज जाख्योरे॥श्रा०६॥ अर्थ ॥ चंद राजा विचारे ले के मारी माता वीरमती कोड दिवाली सुधी जीवजो, के जेना पसायथी हूं कुकडो न थयो होत तो था प्रेमला खजीने फरीथी केवी रीते मली शकत ॥ ५॥ वली मने सारे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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