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________________ श्व तृतीय उहास. राखनारा था नटोनुं पण कल्याण श्रजो के जे मने साथे लइने अही श्राव्या एटलुंज नहीं पण जे मारां निरंतर यशोगान करे . ॥ ६॥ दीतुं मुख पुण्यवंत,, श्राज में प्रातनी वेलारे ॥ मुजने हुश्रा जेहथी, वीमीयाना मेलारे ॥ श्रा॥॥ श्राज दिवस नले जगम्यो,नयणे नारी दीठी रे ॥ प्रगट्यो अंकुर संयोगनो, विरहारति हवे नीठी रे ॥ श्रा० ॥७॥ अर्थ ॥ में पण आजे प्रातःकालमां कोइ पुण्यवंतनुं मुख दी लागे , के जेना पसायथी मारा वखतना वियोग श्रयेलानो मेलाप आजे थयो ॥ ७ ॥ आजनो दिवस नलो रंग रसीयामणो सांबो उग्यो के आजे प्रेमला लचीने दीगी. हवे संयोग थकानो अंकुरो प्रगट थयो. वली विरहनी पीमा हवे नाश पामवानी. ॥ ७ ॥ जो मुज संग्रहे प्रेमला, नट पासेथी ले रे ॥माहरा मनोरथ तो फले, थाए कारज के रे ॥ श्रा॥ए॥ थाश्श हवे पंखी टली, फेरीने नर रुपे रे ॥ शिवनट रायनी पुत्रिका, हरखे एहने जो सोंपे रे ॥श्रा०॥ १० ॥ अर्थ ॥ जो प्रेमला लची मने नटनी पासेश्री मागी लइ पोतानी पासे राखे तो मारा सर्व मनोरथ फली नृत थाय अने केटलांए कार्यों सिद्ध श्राय ॥ ए॥ आ शिव नटनी पुत्री शिवमाला जो मने हर्षसहित आ प्रेमला लचीने सोपे तो हुँ आशा राखं के मारूं पदीनुं स्वरूप फरी जश् हुं पुरुष अश् जाउं. ॥१०॥ प्रेमला लबीए एहवे,जोयुं पिंजर सामुं रे ॥ दीगे मनहर कुकमो, नट करे तास सलामुं रे ॥ आ॥१९॥ पामी अचरिज मनमां, जोवे निपट निहाली रे ॥ कुकडनी पण तेहथी, लागी ध्याननी ताली रे ॥ श्रा० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ एवे अवसरे प्रेमला लबीए पांजरानी सन्मुख जोयुं तो तेमां मनने हरण करनारो कुकडो तेणीए दीगे, जेने नटो वारंवार सलाम करता हता ॥ ११॥ हवे प्रेमला लबी पण कुकडाने जो आश्चर्य पामतां बहुज बारिकीश्री तेने निहालीने जुवे . कुकडो पण तेणीनी सामेज ध्याननी ताली लगावी रह्यो बे. ॥१॥ त्रीजा उवासमां बेहुने, थयो नयणनो मेलो रे ॥ पुण्य पसाये संपजे, पति प्रेमदा संग नेलो रे ॥ श्रा॥१३॥ पुण्य पसाये चंदने, मलशे बहु शहां कमलारे॥बहुली कीरति वाधशे,शशिथी पण अति विमला रे ॥श्रा०१४॥ अर्थ ॥ आ त्रीजा नवासमां पति पत्नी बनेनो दृष्टि मेलाप अयो. हवे पुण्यना पसायश्रीज ते स्त्री जतारनो परस्पर भेलाप श्रशे ॥ १३ ॥ कवि कहे जे के हवे चंद राजाने अहींयां तेना पुण्यना पसायथी अनेक प्रकारनी लक्ष्मी संपादन थशे. वली चंडमांथी विशेष उज्वल एवी तेनी यशः कीर्ति वधशे. ॥१॥ सुविलासी षट् तर्कना, श्री विजयसेन सूरीश रे॥वाचक कीर्ति विजयवरु, तास शिष्य सुजगीश रे॥श्रा॥१५॥ तास शिष्य कविशेखरू,श्री मान विजय बुधेश रे ॥ तस पद सेवक कविवरु,श्री रूपविजय आशेष रे ॥श्रा०१६॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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