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चंदराजानो रास.
२२१ अर्थ ॥ हवे कविराज पोतानी गुरु परंपरा वर्णवे . उ ए दर्शनना पारगामी एवा श्री विजयसेन सूरीश्वर या अने तेमना उत्तम कीर्तिवंत एवा शिष्य उपाध्याय श्री कीर्तिविजयजी श्रया ॥ १५ ॥ श्री कीर्तिविजयजीना शिष्य, कविने विषे शेखर समान, महा पंडित श्री मानविजयजी श्रया; अने तेमना चरण कमलना सेवक कविवर श्री रूपविजयजी श्रया. ॥ १६॥
तस पद पंकज मधुकरे,मोहन कहे सुविलास रे॥ ए त्रीशे ढाले करी, रच्यो तृतीय उल्हास रे ॥ श्रा० ॥१७॥ श्रागल चंद नरिंदनो, बे मीगे
अधिकार रे ॥ वर्ण विशुंडे जेहवो, चंद चरित्र मकार रे ॥श्रा० ॥१॥ अर्थ ॥ ते श्री रूपविजयजीनां चरण कमलने विषे त्रमर समान श्री मोहनविजयजीए त्रीजा जमा सनी रचना करी, जमां त्रीश ढाल उत्तमविलासवाली कही ॥ १७ ॥ आगल उपर चंद राजानो बहु मीगे अधिकार . तेनुं वर्णन जेम चंद चरित्रने विषे करेलुं तेवीज रीते हुँ पण करीश. ॥ १७ ॥
॥ इति श्रीमोहन विजयविरचितेचंदचरित्रे प्राकृतप्रबंधे प्रेमलालबीजीवनरूपा चंदकुर्कटजननामिका शिवमालायाः कुर्कट प्रदानसंझिका प्रेमला मिलनरूपा श्रानिश्चतसृनिः
___ कलाजिस्समर्थोयं तृतीयोल्लासः ॥ ॥ इति श्री चंदराजाना रासनो त्रीजो उदास समाप्त.॥ ॥अथ चतुर्थोल्लास प्रारच्यते ॥
॥दोहा॥ प्रणमुं वीरजीणंद पय, केवल तबक निधान ॥ जस अनुजवथी संपजे, शुद्ध सुधानुष्ठान ॥ १॥ योग युगति साष्टांगनी, जेहथी
संगति होय ॥ योग मार्गनी अगम गति, समजे विरलो कोय ॥२॥ अर्थ ॥ श्री केवल ज्ञानना निधान एवा श्री वीर परमात्माना चरणोने नमस्कार करुं वं. जे नमस्कारना अनुजवथी जव्य जीवने शुद्ध अमृत क्रियानी प्राप्ति थाय ॥१॥ अष्टांग योगनी समजपण जेना पसायबीज थाय बे. योग मार्गनी समजण बहुज कठिन ने. कोइ विरलाज ते मार्गने समजे .॥२॥
बाह्य क्रिया कष्टात्मिका, नव सुख जननी एम ॥ पण अंतर किया थकी,चिदानंदने प्रेम ॥३॥ बाह्य परिग्रह त्यागथी, निर्मल
न थयो कोय ॥ जेम विषधर कंचुकी तजे,निज निर्विष नवि होय ॥४॥ अर्थ ॥ जे जे बाह्य क्रिया ले ते सर्वे श्रात्माने कष्ट आपनारी के अने मात्र जव संबंधी सुखनेज प्राप्त करावनारी जे. परंतु अंतर क्रिया की तो चिदानंद स्वरूपनो प्रेम प्रगट श्राय रे ॥३॥ मात्र बाह्य परिग्रहनो त्याग करवाथी कोइ पण पोताना आत्माने निर्मल करी शकतो नथी. जेम सर्प मात्र कांचलीनो त्याग करवाश्री पोते विष वगरनो अश् शकतो नश्री तेम. ॥४॥
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