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________________ चंदराजानो रास. १२७ अर्थ ॥ जे तमारी पासे पक्षी ने ते प्रेमला सलीनो खरे खरो सासरी पायजे. जो के ए वात कोश्क रीते असंलवित लागे . ॥ ए॥ परंतु सोलवरसे चंदराजानो हेवाल तमाराथी अमारा जाणवामां श्राव्यो अने श्रा पक्षी चंदराजाना घरनो जे एवं प्रेमला सलीना जाणवामां आववाथी ते तेणीने बहुज वहालो लागे ने.॥ १० ॥ श्रापोजो अमने तुमे हो लाल, तो होये तनुजा प्रसन्न ॥ म ॥ पाड तमारो मानशुं हो लाल, बो तुमे पुरुष रतन्न ॥ म० ॥ क० ॥ ११॥ एह वात घणी जली हो लाल, श्रापो जो थर रलियात ॥ म०॥ तु मथी को जोरो नथी हो लाल, लाख वाते एक वात ॥ मकार॥ अर्थ ॥ जो ते पक्षी तमे श्रमने आपो तो आ मारी पुत्री बहुज खुशी पाय. तेथी अमे तमारो मोटो उपकार मानशुं. तमे पण पुरुष रत्ननगे. ॥ ११॥ तमे जो खुशी अश्ने ए पक्षी अमने आपो तो अमारे तो बहुज सारूं थाय. कांई अमारूं तमारी उपर जोर नश्री. लाख वातनो सार कहीए बीए के आपो तो कृपा. ॥ १२ ॥ निसुणी नट नृपने कदे लाल, ए श्रम कुर्कटराय ॥ म ॥ ए तन मन धन श्रमतणो हो लाल, में ए केम देवाय ॥ म॥ का ॥ १३॥ कहोतो पंखीने जई विनवू हो लाल, पंखीजो राजी होय ॥ म ॥ तो तमने श्रापुं प्रनु हो लाल, अजर करूं नही कोय ॥ म०॥क० ॥१४॥ अर्थ ॥ राजानी वात सांजली नटराये कयुके हे महाराज! ए कुकडो अमारो राजा जे. सारांश के ते अमारूं तन मन अने धन ने तेथी माराथी एने केम आपी शकाय? ॥१३॥ परंतु आप साझा करो तो पक्षीने जश्ने विनंति करूं अने ते जो श्राववाने राजी होय तो हे महाराज! सुखेथी आपने आ. हुं पोते कांपण आग्रह करीश नही. ॥ १४ ॥ नट श्राव्यो कुर्कटकने हो लाल, कह्यो सवि नूप विचार ॥ म० ॥ ह रख्यो पंखी सांजलीहो लाल, वुव्यो अमी जलधार ॥म ॥क० ॥१५॥ ए पुर ए नृप ए त्रिया हो लाल, एह चतुर नर नार ॥ म० ॥ पुण्य संयोगे पामीए हो लाल, मेलो एहवो संसार ॥ म ॥ क० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ पनी नटराय कुर्कटरायनीपासे आव्यो, अने राजाए कहेलो सर्व वृत्तांत तेने कह्यो. ते सांजली कुकडो बहज हर्षपाम्यो. तेनी अांखमांथी हर्षामतनी धारा था.॥१५॥श्रा नगर, श्रा राजा अने श्रा स्त्री, तेमज नगरनां चतुर स्त्री पुरुषो, ए सर्वे जोतां जो पुण्यनो संयोग होय तोज संसारमा श्रावो मेलाप थवानो संलव . ॥ १६ ॥ आपे जो नट मुज जणी हो लाल, तो होवे रंग रसाल ॥ म ॥ मो हने चोथा उसासनी हो लाल, वर्णवी बीजी ढाल ॥ म ॥ क० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ जो श्रा नटराय मने प्रेमला सब्बीने सोंपे तो बहुज रंगरसियामाणां पाय, चोथा उल्लासनेविषे बीजी ढाख मोहनविजयजीए कही.॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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