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________________ १७० चतुर्थ उल्लास __ अर्थ ॥ एवीरीते घणी मेहनतकर्या उतां पण पोतानो जमाइ जंचा मनवालो श्रयो ने अने गयाविना रहेशे नही एम मकरध्वज राजाने लाग्यु त्यारे तरतज तेणे विदायगीरीनी तैयारी करवा मांडी. ए तैयारी देखीने चंदराजा बहुज खुशी श्रया अने ससराजी हवे रजा आपशे एवो निश्चय थयो.॥ १३ ॥ पनी चंदराजा पोताने उतारे श्राव्या अने पोताना सामंतोने सर्व हकीकत जणावी तैयारी करवा कह्यु. अहींआ मकरध्वज राजाए पण शुद्ध अंतःकरणवाली प्रेमला लब्बीने पण तेडावी ॥ १५ ॥ राज मात तात कहे सुण बेटी, राज अमवहाली तुं गुण पेटी ॥ राज अमे चंदने घणुं वाह्यो, राज पण आजा नगरी उमाह्यो ॥ १५॥ राज ताहरूं मनडु डे केवू, राज संगे थावं के शहां रे हेQ ॥ राज लही कहे महाराया, राज जिहां काया तिहां ए बाया ॥ १६॥ अर्थ ॥ मात पिताए कह्यु के हे बेहेन! तुं तो एक गुणनीज पेटीगे अने अमने बहुज वाहलीजी तेथी तुं अहींज रहेतो सारं एवी धारणाथी चंदरायने अहीं रेहेवा घणी रीते समजाव्या परंतु तेना मनमां बालानगरीए जवानी पुरी उलट अश् ॥ १५॥ हवे तारा मनमां शुं बे ? तारे तेमनी साथे जवानो विचार के अहीश्रा रेहे ? ते सांजली प्रेमला लबीए कडंके हे पूज्यपिता! ज्यां काया होय यांज गया होय ए न्याये मारे वर्तवू. ॥ १६ ॥ राज चूकी तेम नहीं चूकू, राज हवे अलगो पियु केम मूकुं॥ राज पंदरमी ढाल सुहासे, राज कही मोहने चोथे उल्लासे ॥ १७ ॥ - अर्थ ॥ वली हे पिताजी ! हुँ जेम एक वखत नूली हती तेम हवे नूल करवानीज नथी; हवे मारा नाथने कदि अलगो मुकवानीज नथी. एवी रीते मोहन विजयजी महाराजे चोथा जहासमां पंदरमीढाल हर्ष सहित कही. ॥१७॥ ॥ दोहा ॥ पति अनुरागी प्रेमला, जनके ले। सुसंध॥जाएयुं जननीए तदा, अलिक सुता संबंध ॥१॥ प्रसवे जननी जो कोश, प्रसवो सुत निरवाण ॥ पण प्रसवो पुत्री रखे, पीयर विमुखी जाण ॥२॥ अर्थ ॥ ज्यारे मात पिताए प्रेमलां खली अने चंदरायनी वच्चे स्नेह संबंध संपूर्ण जोयो अने पुत्री तेणीना पति उपर संपूर्ण रक्त एम माताए जाण्यु एटले तेणीए विचार्युके पुत्रीनो संबंध खोटोजे अर्थात् पुत्री परणे एटले सासरेज जाय. ॥१॥ जो कोई माता जन्म आपो तो पुत्रनेज जन्म आपजो पुत्रीने जन्म न पता. पुत्री तो पोताना पियरथी विमुखीज. पोताना घर- सारं चाहे ॥२॥ नवसे उहिताए शते, तात तणो श्रावास ॥ पियरनी वेरण होवे, पहोते प्रीतम पास ॥३॥ सुतान जाणे दोहिलम, पीयरनीति लएक ॥ बुब्ध रहे नित सासरे, अहो प्रगट अविवेक ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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