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________________ चंदराजानों रास २७१ अर्थ ॥ सो दीकरी होय तेथी कां बापर्नु घर उघाउँ रहे नही एटलुंज नहीं पण पतिनी साथे प्रीतिमां जोडातां को प्रसंगे एवं पण बने के पियरनी वैरी अश् जाय. ॥ ३ ॥ वली पीयरमां सुखी अवस्था होय तोपण दीकरी ते तरफ लइ जवानी वृत्तिथी लेशमात्र ध्यान आपती नथी. पोताना सासरी आमांज लुब्धरहे . आ केवो प्रत्यक्ष अविवेक ?॥४॥ मात पिताए मनथकी, सुपरे करी विचार ॥ प्रेमलाने संप्रेमवा, करी सजा सार ॥५॥ दान सखी वसना जरण, सेज सुवास थाहार ॥ इत्यादिक पुत्रीनणी, सोप्या करी मनोहार ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ एवी रीते अनेक प्रकारे विचार बतावी प्रेमला लन्चीनां माता पिताए तेणीने सासरे वोलाववा सारू सर्व प्रकारनी उत्तम तैयारी करवा मांडी. ॥ ५॥ उत्तम वाहनो, सुशील सखी-दासी-सुंदर वस्त्राचरणो, बत्रीपलंगादि, आसनो, उत्तम गंधवाला पदार्थो, मेवा मीगइ विगेरे अनेक प्रकारना जाता इत्यादि मनोहर पदार्थो पोतानी पुत्रीने आणामां आप्या. ॥६॥ चंदराय पण एहवे, चंचल चढी तुखार ॥ मलवा मकरध्वज नणी, श्राव्यो तिहां दरबार ॥७॥ अर्थ ॥ एवा अवसरमां चंदरायपण महातेजस्वी घोडा उपर बेसीने मकरध्वज राजाना दरबारमा तेने मलवा सारू श्राव्योः ॥ ७॥ __॥ ढाल १६ मी॥ ॥ कानुडोतो विण वजाडे ए देशी ॥ सासु ससरे चंद नृपतिने, लबी सोंपी लाना ॥ महाराज तमे कुशले देमे, पोहचो नगरी थाना ॥१॥ ए श्रमपुत्री प्रेमला लली, सोंपी त मने स्वामी ॥ एहनी लाज तमारे हाथे, कहीए ने शिरनामी ॥२॥ अर्थ ॥ चंदरायना सासु ससराए जेनाथी अत्यंत लाल थयो ने एवी प्रेमला लबी चंदरायने सोंपीने आशीर्वाद प्राप्यो के तमे कुशल देमे आना पुरीए पहोंचजो. ॥ १॥ हे राजन् ! प्रेमला लबी हवे आपने स्वाधीन करीने तेथी अमे हवे विनंति करीए बीएके एनी लाज तमारा हाथमा . ॥ २॥ ए ने लामकवाश्थलहती, नरही अलगी कयारे ॥जो एहमां कोई चूक पडे तो, मन नविषाणजो त्यारे ॥३॥ मूकतां एहने एम परदेशे, अम म नहुं नवि चाले ॥ पण पियु संगे जातां श्राडी, जीजलडी कोण घाले ॥४॥ अर्थ ॥ ए लाडकवाइने एटलुज नही पण पोतानी मरजी प्रमाणे वर्तनारी जे. अमाराथी कदापि अलगी रही नथी. जो कोई प्रसंगे तेनामां नूल श्रावीजायतो आपतो दरगुजरज करजो. ॥३॥ तेने श्रा प्रमाणे परदेश मोकलतां अमारूं मन कबुल करतुं नथी. परंतु ज्यारे तेणीने पोताना स्वामिनी साथे जवूने त्यारे तेमां कोण आडीजीन चलावे?॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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