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________________ चंदराजानो रास. ६३ पोलें लागत ताहरी रे, जोये लागत होय ॥ तो श्रापुं नागीश नही रे, दधे दुर्बल कुण होय ॥ च० ॥ ए ॥ एके किम खडो फरे रे, टांके बे शा माट | वेला वनमां बहु थई रे, मात जोती हशे वाट ॥ च० ॥ १० ॥ ॥ जो पोलनो तारो कांई लागो होय तो हुं पुं हुं जागी जाइश नहीं. देवामां कोण डुर्बल होय || || तुंमको फरीने केम रोकेडे, अने शामाटे: टोंके बे ? मने वनमां घणी वेला थई बे, मारी माता वाट जोती हशे ॥ १० ॥ कड़े सेवक प्रभु तम तणुं रे, ग्रहतो ढारसें कोश | जावाद्यो जोलामणी रे, मुजशुं मकरो रोष ॥ च० ॥ ११ ॥ तुम सरिखा मोहोटा मृषा रे, जाखे इम जो अबे ॥ तो किम जार घरे धरा रे, किम जग वरषे मेद ॥ च० ॥ १२ ॥ अर्थ | प्रतिहार बोयो हे प्रभु, तमारुं गृहतो हिंथी अढारसो कोश दूरबे, मारी साथे जोलामणी करवी जावाद्यो, रोष करशो नहीं. ॥ ११ ॥ तमारा जेवा महान पुरुषो ज्यारे श्रम मृषा बोलशे तो पबी आ पृथ्वी केम चार उपाडशे अने जगत् उपर मेघ केम वर्षशे ॥ १२ ॥ तुम जेवा सेवुं श्रमे रे, तिथे सवि लहिए निरति ॥ जिहां जेवा नर से वियेंरे, तिहां तेवी फल पत्ति ॥ च० ॥ १३ ॥ मुज स्वामीने तुम थकी रे, कारिज बे महाराज || मानो माहरी वीनती रे, चंद गरीब निवाज ॥ च० ॥ १४ ॥ _ ॥ तमारा जेव पुरुषोनी मे सेवा करी ए बीए तेथी मने बधी समजण पडे, ज्यां जेवा नरने सेविए त्यां तेवां फलनी प्राप्ति थायडे ॥ १३ ॥ हे महाराज, मारा स्वामीने तमारी साथे एक काम बे, तेथ हे गरीब नवाज चंदराजा, मारी विनंति मान्य करो. ॥ १४ ॥ नूप विचारे मातजी रे, जो सांजलशे नाम ॥ लहिषानुं देवं थशे रे, जग नुं नही काम ॥ च० ॥ १५ ॥ सेवक वचने नरवरू रे, श्राव्यो आगल सार ॥ पगपग प्रणमे चंदने रे, बहुलो जन परिवार ॥ च० ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ राजा चंदे मनमां विचार्य के, जो मारूं नाम माता वीरमती सांजलशे तो लेणानुं देवुं य‍ जशे, माटे हवे वधारे ऊगडो करवानुं काम नयी ॥ १५ ॥ पक्षी सेवकनां वचनथी राजा चागल चाल्यो. घणो परिवार ते चंदराजाना चरणमां प्रणाम करतो हतो. ॥ १६ ॥ मोहन विजये पहिली कही रे, बीजा उल्लासनी ढाल ॥ गल यति मीठी कथारे, सुणजो थइ उजमाल ॥ च० ॥ १७ ॥ ॥ श्री मोहन विजये या बीजा उल्लासे पहेली ढाल कही. गल घणी मधुर कथा श्रवशे, सर्वे उत्साह धरी सांजलजो. ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ कधी संप्रतिहार चद, बीजी पोल प्रवेश ॥ तिहां पण रक्षक कहे नमी, श्रावो चंद नरेश ॥ १ ॥ श्रम स्वामी तुम वाटडी, जोये घणुं सदीव ॥ चाहे कायिक जावने, जिम संसारी जीव ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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