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________________ १५५ चंदराजानो रास. ललित त्रिनंगी नंगजर, नैगमादि नय नूरि ॥ शुझा शुद्ध तरो क्तथी, नाषे जगगुरु सूरि ॥५॥ मान्यो कर्त्ता तो किशु, अणमान्ये शो विशेष ॥ मन मान्यो मान्याविना, न ग ममता रेष ॥६॥ अर्थ ॥ जे जगद्गुरु सूरि जगवंत ने ते त्रिलंगीथी सुंदर, युक्तिना समूहवाला, नैगमादि घणां नयश्री युक्त अने शुद्ध अशुधनो निर्णय करी अति शुद्ध एवां वचनो बोले बे. ॥ ५॥ कदि जगत्नो कर्त्ता माने तो शुं एमां शो विशेष ने ? ज्यांसुघी मनमान्यो माने नहीं त्यांसुधी एक रेखामात्र पण ममता गइ नश्री, एम जाणवू. ॥६॥ मत मत जनक ममत्वता, सिझ जनक श्रममत्व ॥ धन्य गणे सम ना वथी, मत अनेक एकत्व ॥७॥ जे सम दर्शी सरल गति, आत्म शक्ति संप्राप्त ॥ ते नर चंद नरिंद परे, विजुवन होवे व्याप्त ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ जुदा जुदा मतने उत्पन्न करनारी ममता ने अने निर्ममता सिधिने उत्पन्न करनारी जे. जे अने क मतमां समजावथी एकत्व गणे तेवा नरने धन्यवे. ॥ ७ ॥ जे पुरुष समदृष्टिवालो, सरखगति राखनारो अने आत्म शक्ति जेणे सम्यक् प्रकारे प्राप्त करी ते पुरुष चंदराजानी जेम त्रण नुवनमां प्रसिद्ध थाय . चंद तृतीय उदास श्रथ, निसुणो सुत्नग अखंग ॥ जास मधुरताथी थर, खंड ते खंमो खंड ॥ ए॥ कवि श्रोता कारण करे, ग्रंथरचन श्रा यास ॥ समजे कोण श्रोता विना, कविजन वचन विलास ॥१०॥ अर्थ ॥ हे सुजगजनो, हवे चंदराजाना रासनो त्रीजो उल्लास अखंडितपणे सांचलो. जेना माधुर्यनी श्रा गल खांझ शरमाइने खंडे खंड अश् गइ.॥ ए॥ कवि श्रोताने माटेज ग्रंथ रचवानो प्रयास करे . कारण के, उत्तम श्रोताविनां कविलोकना वचनना विलास कोण समजे.? ॥ १० ॥ यथा शक्ति वक्तावदे, क्षयोपशम अनुसार ॥ पण श्रोता नेदालका, ते विरला संसार ॥ ११ ॥ एक चित्त हुंती सना, निसुणो हवे अधि कार ॥ गुणावली हवे चंदथी, केवा करे प्रकार ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ वक्ता हमेसा पोताना श्योपशमने अनुसारे यथाशक्ति वदे ने पण तेना नेदने जाणनारा श्रो ता था संसारमा विरला बे. ॥११॥ सजा बधी एक चित्त अश्या चालतो अधिकार सांबलो. हवे राणी गुणावली चंदनी सा केवी युक्तियो करे ? ॥ १२॥ ॥ ढाल पेहेली ॥ हो मतवाले साजना, रजनी आजनी रहीने रे ॥ ए देशी ॥ ॥पूरव पतिने गुणावली, विनवे बेहुकर जोमी रे ॥ सुपनतणी श्रांटी तमे, वालिमजी द्यो बोमी रे ॥ वात चित्त विमासी कीजीये ॥१॥ जे वाते रस वाधे रे ॥ जे नर अणघटती कहे, ते श्यो स्वारथ साधे रे ॥ वात॥॥ अर्थ ॥ गुणावली पतिने बे हाथ जोडी विनवे . हे वालिम, तमे स्वप्नानी वातनी जे श्रांटीवाली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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