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________________ ३२ चतुर्थ उबास. जंगम तीरथ थति सुखकारी, श्रीचंद केवल नाणी हे ॥ स० ॥ ढाल बत्रीसमी चोथे उल्लासे, मोहन विजये वखाणी हे ॥ स० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ अत्यंत सुखना करनारा, केवल ज्ञानी श्रीचंद राजर्षि जंगम तीर्थ होता हवा. एवी रीते चोथा उवासमा बत्रीशमी ढाख मोहन विजयजीए कही. ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ श्री श्री चंद केवल सही, नूतल करिय विहार ॥ प्रतिबोधेनवि जन जणी, थाणी मन उपगार ॥ १॥ देखे केवल दर्शने, लोकाकार स्वरूप ॥ तेम प्ररूपे नविकने, मैत्री नाव अनूप ॥२॥ अर्थ ॥ श्रीचंदराजर्षिए केवल ज्ञान प्राप्त करी पृथ्वी उपर विहार करी नव्यजनोउपर उपगार करवा सारू प्रतिबोध-उपदेश थापता हवा ॥ १ ॥ केवल दर्शनथी चौद राज लोकनुं यथार्थ स्वरूप देखीने तेज प्रमाणे नव्य जीवोने प्ररूपणा करता हवा. तेवीज रीते अनुपम मैत्री नावनो पण उपदेश करता हवा. ॥२॥ बालादिक नरने हिते, दिये तेहवा जपदेश ॥ श्रगम अगोचर जावना, नेद कहे सुविशेष ॥३॥ श्राव्या अनुक्रमे विहरता, पावन सोरठ देश ॥ फरस्यो विमलाचल विमल, नावी नाव विशेष ॥४॥ अर्थ ॥ बाल प्रमुख-उत्तम, मध्यम, कनिष्टने योग्यता प्रमाणे उपदेश आपता हता. वली अगम अने अगोचर नावना विविध प्रकारना जेद विशेष रीते कहेता हता ॥ ३ ॥ अनुक्रमे विहार करता करतां पवित्र सोरठ देशमां पधारी अत्यंत निर्मल नाव प्रगट अयेलो होवाथी पवित्र विमलाचल गिरिराजने फरसता हवा. ॥४॥ ए गिरि उपर मुनि थया, सिक अनंतानंत ॥ तीर्थ ए संजार ते, बूटे कर्म पुरंत ॥५॥ श्री चंद पंचम नाण धर, परम धरम दातार ॥ मास तणी संलेषणा, कीधी ए व्यवहार ॥६॥ अर्थ ॥ ए गिरिराज उपर अनंतानंत मुनियो सिद्ध श्रया. ए तीर्थाधिराजनुं स्मरण करतां मुखेः अंत आवे एवां कर्म पण बुटी जाय ॥ ५ ॥ परम धर्मना दातार, पंचम ज्ञानना धारक श्रीचंद राजर्षिए एक मासनी संवेषणा करी उत्कृष्ट व्यवहार साचव्यो. ॥६॥ जोगवी पूरण श्राउ, श्रायन त्रीस हजार ॥ तेहमा वर्षे सहस्त्र एक, पाख्यो संयम जार ॥७॥ अर्थ ॥ त्रीस हजार वर्षतुं संपूर्ण आयुष्य चंद राजर्षिए लोगव्यु, तेमा एक हजार वर्ष सुधी चारित्र पर्याय पाल्यो.॥७॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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