SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चंदराजानो रास. ३२१ एकादस चिकण गुण गणुं, लंध्यो लाघव योगे हे ॥ स० ॥ इहां चढता प्राणी के पडीया, नडीया मिथ्या नोगे हे ॥ सत् ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ पनी घन घाती जे चार कर्म तेना दलीयां संकोच पाम्यां, जेश्री निर्मल आत्म प्रदेशनो उदास वधवा मांडयो. ते जेम प्रजात समये सूर्यनो उदय अतां रात्रिनो प्रसरेखो अंधकार खसी जाय तेम अयु ॥११॥ अगीश्रारमुं उपशांत मोह नामर्नु चिकणुं गुणगणुं तेतो मात्र लाघव योगथी उलंघी गया. आ गुणगणे चडेला प्राणी कश्क पड़ी गया अने मिथ्या नोगमा फसाइ गया . ॥ १२ ॥ छादश गुण गणे स्थिति मात्रा, अनित्य दशा गुण जाव्या हे ॥स॥ राजज्ञषि तेरमे गुण स्थानक, शैलेशीए श्राव्या हे ॥ स० ॥ १३ ॥ घाती कर्म तणा आवरणा, जे थ गया परमाणु हे ॥ स ॥ कार्य तजी पामी कारणता, धन्य एह गुणगणुं हे ॥ स ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ बारमा गुणस्थानके अनित्यता गुण रूप लावना लावतां अंतर्मुहूर्त मात्र स्थिति करी राजर्षि तेरमा गुणस्थानक-सयोगी केवली पणाने प्राप्त करता हवा ॥१३॥ घाती कर्मना जे आवरण हतां ते संपूर्ण नाश पामी गयां. जेथी तेउनामां कार्यनी शक्ति जेहती ते मटीजतां मात्र कारणता रही. श्रा गुणगणाने धन्य वे.॥ १४ ॥ उदयो केवल नाण दिवाकर, यथाख्यात गुण प्रगट्यो हे ॥ स०॥ लोकाकाश प्रकाश थयो तव, श्रात्म प्रबल दल उलट्यो रे ॥ स॥१५॥ संसारी प्राणीना दीग, गत्यादिक गुण नारी ॥ स ॥ जाणी कर्म तणी विचित्रता, सघली भ्रान्ति निवारी हे ॥ स ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ आ गुणगणे केवल ज्ञानरूपी सूर्यनो उदय भयो; वली यथाख्यात चारित्र रूपी गुण प्रगट अयो. ज्यारे लोककाशने विष रहेला समस्त पदार्थोनो प्रकाश श्रयो त्यारे आत्मानुं प्रबल सैन्य बलवा मांमयुं ॥ १५॥ केवल ज्ञानना प्रनावधी संसारना सर्व प्राणी मात्रना गति प्रमुख नावनुं जाणपणुं श्रयुं. जेथी कर्मनी अत्यंत विचित्रता जाणी, सर्व ब्रान्ति मात्र, निवारण कर्यु. ॥ १६ ॥ दीठी समकित दृष्टि देवे, घाती कर्मनी क्षपणा रे ॥ स ॥ केवल झान उदय अनुमानी, कीधी कर्मनी रचना हे॥ स ॥ १७ ॥ चंद केवली कमलासन बेसी, अञ्जत देशना दीधी हे ॥स ॥ नविके विषय तृषा उपशमवा, अति थादरथी पीधी हे ॥ स० ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ ते समये समकित दृष्टि देवताए घाति कर्मनो नाश जाणी, अनुमानश्री केवलज्ञाननो उदय जाणी लीधो, पनी पोताने योग्य कार्यनी रचना करी॥ १७ ॥ तदनंतर देवे रचेला कमलासन उपर केवली चंद राजर्षिए बेसीने अनुत देशना आपी. अनेक नव्यजीवोए विषयालिलाष रूप तृषाने शांत करवा ते देशना रूपी जलनुं अत्यंत आदर पूर्वक पान कर्युः ॥ १७ ॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy