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________________ १६६ तृतीय उल्हास. के हे जाल में पण राजाने घणा वखत श्रया दीग नथी तेथी तमे जेम धारोगे तेवी धारणा मारा अंतःकरणमां पण अश् रही .॥६॥ कहीश विचारी एहनो, तमने सरवे नेद ॥ नगरी मांहि सुखे रहो, कोश्न करशो खेद ॥७॥ सनमानी सचिवे प्रजा, पहोता सहु श्रागार ॥ वीरमतीने मंत्रीए, कह्यो प्रजा अधिकार ॥ ७॥ अर्थ ॥ ते संबंधी विचार करी तथा तपास करी जे वात जाणवामां आवशे तेनो मर्म तमने हुँ जणावीश. तमे नगरमां सुखे रहो. कोइ खेद करशो नही. ॥ ७ ॥ प्रधाने प्रजामंझलने विवेक युक्त समजावी सन्मान साथे विदाय कर्याबाद सहु पोत पोताने घेर गया. त्यार पनी वीरमतीने राणीने प्रधाने प्रजामंगखनो सर्व हेवाल जणान्यो. ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १३ मी॥ ॥ राग बिहावडो॥ उरो उरो रे गिरधारी उरो रे, तारा पगनोरे समारू तोरो रे ॥ ए देशी॥ तेह मंत्री माता जणी कहे, एम नूपति बानो केम रहे ॥ श्रावी मुजने कहे प्रजा, श्रमने वेलासर द्यो रजा ॥१॥ शाने राख्यो तमे नृप संग्रही, ए तो वात कां वारू नही ॥रीस चमतो तमे द्यो गाली, पण नकरोमति तमेस्त्रीवाली॥२॥ अर्थ ॥ मंत्रीए श्रावीने वीरमतीने कडं के हे राजमाता हवे राजाजी गाना केवीरीते रहीशकशे? प्रजातो मने वारंवार आवीने कहे जे के अमने विदेश जवानी जलदी रजा आपो ॥१॥ तमे राजाजीने कबजे राख्याने ए वात कां सारी लागती नथी. तमने जो रीस चडे तो सुखेथी मने गालो देवा मांडजो, परंतु आवी स्त्री बुद्धि करो नहीं. स्त्रीनी मति पानीए एवी कहेवत साची करो नही. ॥२॥ नित्य प्रत्ये पुरजनने शुं नांखु, जेम तेम करी तेमने हुं राखं ॥ मास थयो एम एक घणो, तोये पार न पाम्यो हुँ तुम तणो ॥३॥ सहु लोकने मन संशय थयो, नृपचंद न दिसे कहां गयो । नृप विण राज विधुंसला, ते तो ठगले उखल बे मुशला ॥४॥ अर्थ ॥ नागरिक लोको हमेशां श्रावी मने पुण्या करे, तेउने हुँ शुं जवाब दलं ? तेउने महा महेनते समजावीने राखुं बु. लोकोने धीरज श्रापता एक मास वीती गयो परंतु हुं तमारा अंतःकरणनो कां पार पामी शकतो नथी. ॥३॥ सर्व लोकना मनमां एवी शंका अश्छे के राजाजी देखाता नश्री तेथी क्यां गया हशे. लोको कहने के राजा विनानी राज्यगादी तेतो खाली खांडणीयामां बे सांबेला राखवाजेवू . ॥॥ तमे मानो अथवा नवि मानो, तमे चंदने राख्यो सही बानो ॥ बेग तमे बो मोटी गादी, घणी जावा द्यो बोकरवादी ॥५॥ जाण्यो कारण लोक अशातानो, पण मन नवि नेद्यो विमातानो॥ मंत्रीए कह्यु दे तानो, पण न चडे पावश्ए पानो ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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