SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चंदराजानो रास. २६५ प॥५॥ वद्धंन लागे हो सहीतो जग माहे नवं, मूलगु नासे हो मंद ॥ कोश्न जोवे हो उग्यो पुरो पूनमे, बीजनो चाहे हो चंद ॥ प० ॥६॥ अर्थ ॥ लोकिकमां पण एवी केहेवत ने के जे पुरुष पोताने सासरे पडयो रहे ते अधम केहेवाय. ए वात ते जाणता पण नथी. वली जे पेहेली परणेली स्त्री होय ते स्वामिने बहुज वहाली लागवी जोइए तेम बतां मारा नाथ मने केम बेह देता हशे ? ॥ ५ ॥ वली जगत्मां एवी पण रीत जे के नवं होय ते वधारे वहालुं लागे. अने जुर्नु होय ते मध्यम रूपे थइ जाय. जुने पुनमनो चंजमा संपूर्ण (पुरे पुरो) उगे ने ते वखते कोइ पण तेने जोतुं नथी अने बीजनो चंजमा उगे जे त्यारे तेने जोवानी सहु चाहना राखे ॥ ६॥ प्रेमला प्यारी हो मुजने न्यारी त्रेवमी, दीगे स्यो मुज दोष ॥ साचे हुँ चाली हो पेहेला सासुने को, तेणे करी राख्यो हो रोष ॥ ५० ॥७॥ किंवातो हुई हो जिणपुर प्रीतम कूकमो, श्रावतां थावे हो लाज ॥त विहणी हो कुरी केस दिन नीगमुं, कठिन नरोथी हो वाज ॥ पा॥ अर्थ ॥ मारा स्वामिनाथने प्रेमला उपर प्यार भयो भने मारी साधे जुदाइ अझ तेमां मारो शुं दोष तेना मनमां जास्यो हशे ? मने तो एम अनुमान थाय ने के पेहेला हुँ वीरमतीने कहे चालती हती ते कारणथी मारा जपर मारा स्वामिए रोष राख्यो हशे ॥ ७॥ अथवा तो मने एम लागेने के जे नगरमां हुँ कूकडो थयो ते नगरे केम जालं एवी रीते अहीं श्रावतां मारा स्वामिने शरम लागती हशे ? परंतु हे सखियो ! मारा नाथने वियोगे ढुं कुर्या करूं ; हवे मारा दिवसो केम जशे ? कठण हृदयना माणसो पासे जोर चालतुं नथी.॥७॥ महारी रजनी हो सजनी नीने अंशुके, दीण रहे माहारे हो संग ॥ एहवी तो मारी हो विरहनी काला भाकरी, पियुविण पापीडे अनंग ॥ पणाए॥ नणदीरो वीरो हो थावे शीतलता होए,उषध एहनुं दो एह॥ नाग्य किहांथी हो मननो मेवुमो मले, धिग् एकंगो हो नेह ॥ १० ॥ १० ॥ अर्थ ॥ हे सखियो ! रात्रिएज मारी खरी बेहेनपणी बे के जे मारी साथे क्षणेक पण नीनां वस्त्र सहित रह्या विना रेहेती नश्री. अर्थात् रात्रिए मारां वस्त्र आंसुथी जीनां श्रइ जाय . तेश्री तमे जाणशो के पापी अनंगना प्रतापथी मारा पतिविना विरहनी ज्वाला मने एटली बधी भाकरी थापडी ॥ ए॥ मारो नणंदनो वीरो श्रावशे त्यारेज मने शीतलता थशे. मारा विरहानि, एज औषध . परंतु एवं मारूं लाग्य क्यांथी होय के मननो मेलापी आवीने लेटे. वली धिक्कार ने एकंगी स्नेहने के तेनो मारा उपर जरा पण स्नेह नश्री अने हुं तेने माटे फुर्या करूं . ॥ १०॥ फुरतां एहवे हो आव्यो तिहां एक सुवटो,बोल्यो मधुरे हो साद॥केणे तुज उहवी हो बाइ केम तुं दयामणी,के केणे कीधो हो वाद॥ प०॥११॥ देवता नामी हो हुँ तु पंखी परगडो,कहो कोश् मुजने हो काम ॥ कंत विदेशी हो राणी कहे पुःख तेनु, रे खग गुणना हो धाम ॥ ५० ॥ १२ ॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy