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________________ चंदराजानो रास. ॥ मा० ॥ निपट जाएयुं हो मूढ करे बे ॥ मा० ॥ नर थया माटे हो यो शुं माटी ॥ मा० ॥ नही जाये खाटी हो राख्ये घांटी ॥ मा० ॥ २ ॥ ॥ वीरमती गुणावलीने बोलावीने कह्युं के बहु ! तमे ध्यानमा राखजो. चंदे फरी मने बंबेडी बे. ते विमलापुरी मां बे. मनुष्य थयो बे ने हजु तेना मनमांथी अभिमान गयुं नथी ॥ १ ॥ ते वली श्राजापुरीए श्रववानी होंश धरावे बे. ए धारणा ए मूर्ख माणस बहुज मूल जरेली राखे बे. ए पुरुष थी शुं ते एम धारे बे के ए शुरवीर मरद थयो, परंतु मारी साथे विरोध राखीने ते कदापि खाटी जावानो ( फावी शकवानो ) नथी. ॥ २ ॥ खबर तो एहनी हो यइ दशे तुजने ॥ मा० ॥ थइ तुं खोटी दो न कहे मुजने ॥ मा० ॥ हने पाठो हो लिख तुं कागल ॥ मा० ॥ न कहीश वातो दो कोनी गल ॥ मा०॥३॥ थइश जो मुजथी हो हृदयनी जंमी ॥ मा० ॥ तो मुज सरिखी दो न गणीश मूंडी ॥ मा० ॥ मुकी जो होये हो पियु तुज हुंडी ॥ मा० ॥ नांखजो कहुं हुं हो जिहां जल कुंमी ॥ मा० ॥ ४ ॥ ॥ ते संबंधी समाचार तारा तो जाणवामां श्राव्या हशे ? परंतु तुं हवे खोटी थइ (फरी गइ ) बो. मालकां पण वात करती नथी. गमे तेम हो पण तुं तेना उपर फरी कागल लख ने वात तुं कोइनी गल करीश नहीं ॥ ३ ॥ वली कहुं हुं के जो तुं पण मारी साथे गूढ हृदयवाली थइ शतो जाण जे के मारी जेवी कोइ मूंडी नथी. तेमज जो तारा पतिए तारा उपर कांइ हुंडी ( संदेसो पत्र रूपे) मोकली होय तो तने खास कहुं हुं के तेने तो गटर ( जलनी कुंमी ) मां फेंकी देजे. ॥ ४ ॥ विमलपुरीए हो जाइश हुंतो ॥ मा० ॥ श्राजापुरीए हो रहे जे तुं तो ॥ मा० ॥ मंदमतीने दो जइ समजावीश ॥ मा० ॥ तुरतज पाठी दो इहां हुं श्रावीश ॥ मा० ॥ ५ ॥ वहु तव जाखे हो वीरमतीने ॥ मा० कल्पित कहे हो अयुक्त सतीने ॥ मा० ॥ विहंग जे कीधो हो नर मथाये ॥ मा० ॥ दीवा विदुषो हो नवि ए मनाये ॥ मा० ॥ ६ ॥ ՋԱՍ ॥ हुं तो हवे विमलापुरीए जइश, वली तने कहुं हुं के तारे तो आजापुरीमांज रेहेवुं. ए मंद बुद्धिवाला चंदने हुं हींथी जश्ने शिखामण पीने तरतज पानी अहीं आवीश ॥ ५ ॥ गुणावलीए तरतज ते सांजलीने वीरमतीने कह्युं के हे सासूजी ! आप जेवा सतीने एवी युक्त कहिपत तो कवी योग्य नथी. जेने पेज पक्षी बनाव्यो ते पुरुष केम थर शके ? जाते दीवा विना ते मनाय तेम नथी. ॥ ६॥ नदी को अधिक हो तुमची माडी ॥ मा०॥ ए कोइ पिशुने हो वात उमामी ॥ मा० ॥ तमे घर मांहि हो पोषो नवरस | मा० ॥ पण ए नमले हो त्रीजने तेरस || मा० ॥ ७॥ नट तो तिहां लगी हो केम करी ३३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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