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________________ २४२ चतुर्थ उल्हास. श्वताज नथी. वली हे प्रनु ! तुं रूप कटप वृदनी गंयाने तजीने एवो कोण मूर्ख ले के जे कांखरानी गंयाने सेवे ॥ ७ ॥ हे जिनराज ! तारी सेवना रूप वरसादथी श्रा संसार रूप दावानलनो ताप शांत थाय जे. हे नाथ ! तुं रोहणगिरिना शिखर समान गे अर्थात् सर्व गुण रूप रत्नोनी खाण बे. वली सर्व उपसर्ग परिसह सहन करवाने पृथ्वी समान बगे. ॥ ॥जी॥ तुं श्रष्टापद एक (पागंतरे) तुं जग श्रेष्टा एक, ताहरी शक्ति अपरंपरा ॥ जी० ॥ नवोजव ताहरी जक्ति,मुजे देजो जिनेसरा ॥ जी० ॥ए॥जी॥ इत्यादिक स्तुति कीध, चंदे मन शुद्धे तिहां ॥जी॥ ॥जी॥ फरी फरी चिंते नरिंद, किहां गिरिवर वली हुँ किहां ॥जी॥१०॥ __ अर्थ ॥ हे जिनराज ! कर्मरूप सिंहने पण नाश करवाने अष्टापद समान गो. (पागंतर ) तुं जगत्ने विषे एकज सर्वथी श्रेष्ठ गे. तारी शक्ति पार न पामी शकाय तेवी बे. हे नाथ ! मारी मात्र एक विनंति ने के तारी नक्ति मने जवो जवने विषे होजो ॥ ए॥ ए प्रमाणे शुद्ध मनथी चंदराजाए प्रनुनी स्तुति करी. वली चंद राजा वारंवार मनमां विचार्या करे ने के क्या हुँ पामर अने क्यां आ गिरिराज. ॥१०॥ ॥ जी० ॥ श्राव्यो देहरा बहार, चारण कषि तिहां वांदिया ॥जी॥ ॥जी॥ निसुणी ललित उपदेश,राजा राणी श्राणं दिया ।। जी॥११॥ ॥जी॥ शैल प्रदक्षिणा दीध, शिव वरवा फेरा फिर्यो ॥ जी० ॥ ॥जी॥ नूपे लेखे कीध, जे मानवपणुं अणुसर्यो ॥ जी ॥१॥ अर्थ ॥ पनी दंपती देरासरनी बहार श्राव्यां एटले चारण मुनिराजनां दर्शन श्रतां तेमने बनेए वांद्या. ते चारण मुनिनो मनोहर उपदेश सांजली राजा अने राणी हर्ष पाम्यां ॥११॥ अनंतर गिरिराजनी प्रदक्षिणा दीधी ते जाणे शिव वहुने वरवा फेरा फरता होयनी एवी रीते राजाए मनुष्य जवफरी प्राप्त करी पोतानो अवतार सफल को. ॥ १॥ ॥जी॥ दीधी दासीए दोमि, मकरध्वजने वधामणी ॥ जी० ॥ ॥जी॥ विहंग मटी थया चंद, कुंम प्रजावे श्राफणी ॥ जी० ॥ १३॥ ॥ जी० ॥ विमल पुरीनो श्श, हरख्यो असंनव संजवी ॥ जी॥ ॥जी॥ दासी पामी दान, जाणीए थर कमला नवी ॥जी॥ १४॥ ___ अर्थ ॥ एवा अवसरमां दासीए दोडीने मकरध्वज राजाने वधामणी श्रापीके सूर्य कुंडना प्रजावधी पोतानीज मेले पदी ते पदीपणुं मटाडी चंदराजा थया ने ॥ १३ ॥ विमलापुरीनो महाराजा था असंजवित वातने संजवित जाणीने घणुंज हर्ष पाम्यो. तेणे दासीने बहुज दान आप्यु जेथी दासी ते साक्षात् लक्ष्मी समान अश् गइ. ॥१४॥ ॥जी॥ विस्तरी पुरमा वात, रंज्या नरनारी सहु ॥ जी० ॥ ॥जी॥ घर घर वेहेचे लोक, धाश्वधार बहु बहु ॥ जी० ॥१५॥ ॥जी॥ चंद जणी नरनारी, जोवाने उत्सुक थया ॥जी॥ ॥जी॥ प्रगट्या नव नव रंग, जब प्रजुजीनी थक्ष दयां ॥ जी ॥१६॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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