________________
१२२
द्वितीय उदास. ॥ सु० ॥ ३॥स॥ जेम तमे प्रजुगुण थालवी ॥श्रा॥ मुजने कीध कल्याण ॥सु॥ स ॥ तेम श्रमे पण सुपर्नु लयं ॥ सु०॥ मध्य निशाने प्रमाण ॥सु० ॥४॥
अर्थ ॥ जो श्रीजिनराजनी नक्ति करवामां आवे तो संसारनो पार लेवाय जे. श्रीजिन प्रनुना गुण गावाथी घणां स्त्री पुरुष ज्योतिरूप ( तेज स्वरूप-मुक्त) श्रया बे. ॥३॥ जेम तमे प्रजुना गुण गाइ मारु कल्याण कयु. तेम मने पण आजे मध्य रात्रे स्वप्न आव्युं हतुं. ॥४॥
॥स॥ तुमे श्रा थानानगरीश्री॥ न॥ जोयण श्रढारसे सीम ॥ सु॥ सणा जाणुं विमलपुरीतमे गया ॥त॥ सासुपण समीप ॥ सु० ॥५॥ स ॥ तिहां कोश्क नर परणतो ॥ प० ॥ देखो को बेहु तेह ॥ सु०॥
स० ॥ जाग्यो एहवे हुं श्हां ॥ हुं० ॥ कौतुक सुपन श्योएह ॥सु॥६॥ __ अर्थ ॥ जाणे तमे आजानगरीथी अढारसो योजन उपर रहेली विमलपुरीमां गया, त्यां तमारी सासू पण समीप हतां. ॥ ५॥ तमे बन्ने ए त्यां कोई पुरुषने परणतो जोयो हतो, ए पनी हुँ जागी गयो. ए : स्वमानुं शुं कौतुक हशे. ॥६॥
स ॥ तुम कथने मुज सुपनमे ॥ सु० ॥ अंतर रजनी दीस ॥ सु०॥ स ॥ ए बेहुँमांहि कियुं खलं की॥ ए जाणे जगदीश ॥ सु॥७॥ स० ॥ में जाएयुं अनुमानश्री ॥ ॥ सुपननीशी परतीत ॥ सु॥
स॥ सुपन दृष्टांते संसारनी ॥सं॥ खोटी कही रीत ॥ सु० ॥७॥ अर्थ ॥ तमारा कहेवामां अने मारा स्वप्नामां रात्रि दिवसनो अंतर जे. ए बेमां कयुं सत्य .ए पूजा जाणे ॥ ७॥ में अनुमानश्री जाण्यु के, खमानीशी प्रतीति ने. कारण के, संसारनी रीत खोटी कहेवामां स्वप्नानुं दृष्टांत अपाय . ॥ ७॥
॥स ॥ तमे अनुनवीयुं ते खलं ॥ ते ॥ खोटुं निझा जाल ॥ सु॥ स॥ साची सदैव होवे सती ॥॥ कहे एम चंद जुपाल ॥सु॥ ए॥ स॥ पिज वचने विस्मित थ॥ वि०॥ निसुणी निशा संबंध ॥ सु॥
स॥ पण पिउ खोटो पाडवा ॥पा॥ कल्प्यो एक प्रबंध ॥सु० ॥१०॥ अर्थ ॥ जे तमे अनुलव्यु ते खरं . अने हमेसा सती स्त्री साची होय. आप्रमाणे चंद राजा ए कडं. ॥ ए॥पतिनां वचनथी रात्रिनो संबंध सांजली राणी विस्मय पामी गश्. पण पोताना पतिने खोटो पाडवा तत्काल एक नवो प्रबंध कट्पनाथी उन्नो कर्यो. ॥१०॥
॥स० ॥ कहे राणी स्वामीसुणो ॥ स्वा०॥ शिव सेवक हुतो एक ॥सु॥ स॥ सुपनमे दीतुं देहरुं ॥दे॥ सुखडी जो सुविवेक ॥ सु०॥ ११॥ सम् ॥ उठी उधांगले नोतर्या ॥ नो॥ निज न्यातिला सर्व ॥ सु० ॥
सम्॥ पालो श्रावीने जुए ॥ ने ॥ खाली शिव उपवर्ग ॥ सु० ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ राणी कहे -हे राजा, सांबलो. एक शिवनो सेवक हतो, ते विवेकीए स्वप्नामां सुखडीश्री न
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org