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________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ तेवांसनी चारे बाजुए मजबुत मेखो गेकी दोरडाथी तेने मजबुत कर्यो. ते जाणे लोकाकारनुं स्वरूप जोवा सारू नससित श्रयेला नविक जीवने जेम सुंदर लागतो होय तेम देखावा लाग्यो. ते वांसना अग्रजाग उपर खाली गेकी ते उपर सोपारी गोठवी. एवीरीते वांसने शणगारीने उनो कर्यो. ॥ए॥ शिवकुवर नटराजनी कुंवारी पुत्री शिवमाला जे जंचे अने नीचे फेंकवा अने चडवा उतरवानी क्रीडाकरनारी हती, तेणे प्रथम राणीने नमस्कार करी चंदराजानी कीर्त्तिनो उच्चार कर्यो अने पनी पोताना पिता प्रमुखनी आज्ञा लश्ने ते वांस उपर चडी. ॥१०॥ हेठे रह्या नट घाट बजावे ढोलमा, नाखे श्रहो अहो अहो हो जला नला बोलडा ॥ मननो नयणनो खेल मचुकीश शिव कहे, बहु नट वंश समंत उरध नयणे रहे ॥ ११॥ श्रावी नट अवतार कला शिखी य, श्हां जो न.खेलीश खेल खेलीशतो किहां प॥आपणी कुलस्थिति एह उपर उद्यम इस्यो, मनमांहि तुंतो खेद सुता मकरीश किस्यो ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ नीचे उन्नारहेला नटो घाटसर ढोल वगाडता हता. अने अहो अहो अने धन्यवादना मीग बोल बोलताहता. शिवराज नट कडेने के हे कुमारी तं मनने स्थिर करजे अने नेत्रने सावधान राखजे. बहुनटो वांस उपर उंची नजरेज ध्यान पूर्वक जोया करे. ॥ ११॥ हे बाला! तुं नटना कुलमा जन्म पामी जे जे कला शीखीगे ते जो अहींआ खेलमां नही बतावीश तो पनी क्या बतावीश? आपणा कुलनी रीति एज ने अने आपणा कुलनो उद्यमपण एज . हे बेटा! तुं मनमां जरापण ते बाबतमां खेद करीश नहीं.॥१२॥ निसुणी जनकनां वचन वंशाग्रे जश् श्रमी, पूगी उपर नानिधरी तिहां परवमी ॥ गणण चड्यो गणणाट शरीरते बोलनो, फरतो दिसे जे हवो चक्र कुलालनो ॥ १३ ॥ नूतल हाको हाक वजामे नटवरा, प्रवर परंदा जेम फिरे उरहा परा ॥ शिव मालाए उलट गुलांटी फ रीजरी, मूक्यो दशमो घार पूगीए थीर करी ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ पितानां वचन सांजली शिवबाला वांसनी टोच उपर चडी अने सोपारी उपर पोतानी नानी स्थापी जेम कुंजारर्नु चक्र फरतुं होय तेवी रीते तेणीए पोताना शरीरने आकाशमां गण गणाट करतुं फेरववा मांड्यु.॥ १३ ॥ जमीन उपर उनेला नटो हाको मारी ढोल वगामता हता, अने जेम मोटा पही उडे तेम वेग करता हता. शिवमालाए उलटी गुलाटमारी पोताना मस्तक (ब्रह्म रंध्र )ने सोपारी नपर चावी स्थिर करी बंधे मस्तके रही. ॥ १५॥ मुनि जेम बंधे मस्तक रही काउस्सग्ग करे,तेम बाला सुकुमाला त्रिकरण थिर धरे॥ त्रीजो उलट्यो खेल करी दृढ श्वासनो, बेठी पूगी उपर सा गरुडासने ॥१५॥ फरीवली फल उपर वाम एमी ठवी, एक चरणथी चक्र लीधो ए कला नवी ॥ लेश पंचवरणनी पंचे पाघमी, कीधो सनाल सरोज सपंखे पांखडी ॥ १६ ॥ . अर्थ ॥ मुनिराज जेम बंधे मस्तके रही कायोत्सर्ग करे तेवी रीते ते सुकुमाल बालाए उंधे मस्तके रही Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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