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________________ १० तृतीय उदास. वहाली पटराणी तमे दीर्घकाल राज्य लोगवो. ॥३॥ नटराजे कांके जो आपनी आज्ञा होयतो नाटकनुं काम शरू करीए. जेथी आपनी पासेथी इनाम रूप दान मेलवी अमारी दरिजतानो नाश करी नांखीए. वीरमतीए तेऊना उपर दया आणीने नाटक करवानो हुकम कर्यो, जेथी नटना खेलाडी रमत रमवाने तैयारी करवा लाग्या. ॥४॥ मुखर चंडायण काब नला कटिथी कस्या, केशरी पागे केशरी पा धसमस्या ॥ ढिग ढिग ढिग्ग ढिगग्ग सुजंगी गरजीया, सरणाश्ए ट हक्क सोरठ तेम परजीया ॥५॥ मीठी तार रवाज संगीत गति रण कणी, ताल विकट टंकार कणाण कण कण कणी॥श्रालापे स्वर सप्तथी रागने रागिणी, कीधो रागनो मंडप रामततो बणी ॥६॥ अर्थ ॥ नाटकीयाए पोताना मुख चंजमा जेवा श्वेतकर्या. केडकसीने कळावाल्या केसरी रंगना पायजामा पेहेर्या. वली घोर अवाज करनारा अने ढिग ढिग ढिग जेवा शब्द निकलता मोटा ढोल वागवा मांड्या. अने शरणाड टहुकारा करती सोरठ अने परजीया रागमां श्रालाप करवामंडी. ॥ ५॥ मीग तारवाला वाजिंत्रथी संगीतनो रण कपाट थ रह्यो. अने चित्र विचित्र टंकारा करता तालनो कण कपाट श्रवा लाग्यो. सा-री-ग-म-प-ध-नी ए सात स्वरोथी उ राग अने त्रीश रागिणीउना आलाप थवा लाग्या. साक्षात् रागनो मंडप अयो होय एवी संगीतनी बाया बवाइ रही. ॥ ६॥ हंस तुरग गज वाघ स्वरूप नवा करी, खेले प्रथम नटेश विशेष रसे नरी॥ विच विच वक्र संजाषण नयण इसारती, करी करी लोक द साडतो एक हसारती ॥७॥ एहवे गुणावली कुर्कट पिंजर कर ग्रही, बेठी गोखे रमत निरखे रही रही ॥ तव थारोप्यो वंश उत्तंग मनो हरूं, जाणीए उपशम श्रेणी तणो ए सहोदरू ॥ ७॥ अर्थ ॥ शरूयातमां नटराज हंसना, घोडाना, हाश्रीना, वाघना एवा विशेष रस जरेला नवा नवा रूप धारणो करी खेल करतो हवो. वचमां वचमां वक्रोक्तिवालां मीन नाषणो अने अांखना इसारा विगेरे करी लोकोने को हस मुखो हसावतो हास्यरसने जमावतो हतो. ॥ ७॥ एवा अवसरमा गुणावली राणी कुकडानुं पांजरू हाथमा राखीने गोखमां बेठी रमतने जोइ रही. ते समये नटराजे एक जंचो अने मनोहर वास नाटक शालामा उनो कर्यो. ते जाणे मुनिराजनी उपशम श्रेणीनो सहोदर (बंधु )ज होयनी तेवो दिसवा लाग्यो. ॥ ७॥ गेकी मेख अशेष घणे कसणे कस्यो, लोकाकार स्वरूप नविकने उ बस्यो ॥ कीलक वंशने अग्र पूगीफल तिहां धर्यो, शिणगारीने वंश श्स्यो नटुए कर्यो॥ ए ॥ शिवमाला शिव कुंवरनी पुत्री कुमारिका, उत्क्षेपण अपदेपण क्रीमा कारिका ॥ करीराणी प्रणिपत्य ने चंद की रति पढी, जनकादिकनी शीख करीने वंशे चढी ॥ १० ॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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