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चंदराजानो रास. अर्थ ॥ जो, आ नवीन रंगवाली गंगानदी , जेनो प्रवित्र प्रसंग ने एवी ए गंगा कलिकालना मल रूपी कंदने नाश करवाने तरवार जेवी . ॥ ५॥ आ कादववाली श्याम यमुना नदी के तेने तारा नेत्र रूपी कमलश्री निरख. ते नदी पृथ्वी रूपी स्त्रीनो जाणे चोटलो होय तेजी लागे . ॥६॥
कर संज्ञायें गगनथी, निरखाडे हित श्राण ॥
देश नगर वन शैल पह, वापी नदीथ निवाण ॥७॥ अर्थ ॥ वीरमती हेतकरी हाधनी संज्ञाथी आकाशमारही नव नवा देश, नगर, वन, पर्वत, प्रह, वापिका, नदी अने नवाणो गुणावलीने बतावती हती. ॥७॥
॥ ढाल वीशमी ॥ ॥ श्ररज श्ररज सुणोनें रूडा राजीया होजी ॥ ए देशी ॥ एहतुं एहतुं जोय गुणावली दोजी, श्रष्टापद गिरि एह ॥ जरतें जरतें कराव्यो चिहुंमुखो होजी,कंचनमणि जिन गेह॥ निरख निरख विनोद ए नव नवा होनी ॥एशांकणी ॥१॥ संजवादि संजवादि चार दक्षिण दिशा होजी, एहवो प्रगट डे पाठ॥पश्चिम पश्चिम हार जिनेश्वरा होजी, सुपादिक पाठ॥ नि॥२॥
अर्थ ॥ हे गुणावली जो, श्रा अष्टापद पर्वत बे. तेमांजरतचक्रीए चोमुख कांचनमणिनो जिन प्रासाद कराव्यो . आ नवनवा विनोदने निरखीले. ॥१॥ ते विषे एवोपाठ ने के, तेनी दक्षिण दिशामां संभवनाथ विगेरे चार तीर्थकरो , तेना पश्चिम दिशाना घारमा सुपार्शविगेरे आठ तीर्थकरो रह्याने. २ धर्मादि धर्मादि दश तीर्थंकरा होजी, उत्तर दिशि एह ॥षन षन अजित दोय जिनवरा होजी, प्राची दिशि ससनेह ॥ नि॥३॥ शहां जिन शहां जिन नाम उपार्जशे होजी, दश मुख लंका नूपाल ॥ तीरथ तीरथ एद जगमा वडो होजी, सुर नदी वलय विशाल ॥ नि॥४॥ अर्थ ॥ तेनी उत्तर दिशामां धर्मनाथ विगेरे दश तीर्थकरो ने अने पूर्व दिशामां श्रीऋषभ अने अजितनाथ ए बे तीर्थकरो . ॥३॥ लंकानो राजा रावण अहिं आवीने जिननाम कर्म उपार्जन करशे, जेनी श्रासपास वलयाकारे गंगानदी , एवो श्रा गिरि जगत्मां मोटुं तीर्थ जे. ॥४॥ तिमज तिमज देखाड्यो पूरथी होजी, पर्वत शिखर समेत ॥रे! वह रे! वह तमेकरो वंदनाहोजी,हियडे श्राणीजी हेत॥नि॥॥पहिलो पहिलो बारमोबावीशमो होजी, चोवीशमो जिन जाणाचारे चारे विना विंशति जिना होजी,तास निर्वृत्ति निरवाण॥६॥
अर्थ ॥ तेवी रीते दूरथी समेत शिखरनो गिरि बताव्यो अने कह्यु के, अरे वहु,तमे हृदयमां हेत लावी श्रा तीर्थने वंदना करो. ॥५॥ पहेला, बारमा, बावीशमा अने चोवीशमा तीर्थकर ए चार जिनशिवाय विश तीर्थकरोना निर्वाण आ समेतशिखर उपर श्रवाना . ॥६॥ संप्रति संप्रति सत्तर तिथंकरा होजी,पाम्या श्ण गिरि मुक्ति ॥श्हांवलि शहां वलि त्रिण्य त्रिजुवन धनी दोजी,लहेशे अविचल मुक्ति॥ नि॥॥तिमवै तिमवै नार जुन वह होजी,वलीअर्बुदाचल श्च ॥ एहवे एहवे थाव्योपंथमें होजी, श्रीसिकाचल तिल ॥॥
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