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________________ २३० चतुर्थ उल्लास. श्र ॥ सूर्यकुंडने देखतां कुकडो बहुज खुशी थयो. ते पोताना मनमां विचारखा लाग्यो के वी स्थितिमां मारा सोलवर्ष तो वीती गया. क्यां मारी स्त्री ने क्यां मारा घरबारबे ? ॥ १ ॥ हुं हवे क्यां सुधी पक्षीरूपे रहीश ? मारा या अवतारने धिक्कार होजो. वली मारी माता पण जारी संपूर्ण दुस्मन थइ. खरखर हवे मने संसार बहुज सार विमानो लागे बे. ॥ २ ॥ ले नट मुजने फर्या, ॥ म० ॥ पुर पुर देश विदेश ॥ अन श्राव्यो कर्मनो, ॥ म० ॥ पार किशो लवलेश ॥ फीटी नर थयो कुकको, ॥ म० ॥ श्रावकर जोवण दार ॥ दवे मनुष्यपणा तणी, ॥ म० ॥ धरवी होंश लगार ॥ श्र० ॥ ४ ॥ ० ॥ शी ॥ नाटकीया मने साथे लइने देशो देश ने शेहेरे शेहेर फर्या, तो पण दजु मारां कर्मनो लेशमात्र पारव्यो नही. ॥ ३ ॥ हुं मनुष्य फीटीने निरंतर उकरमाने खोलनारो कुकडो थयो. हवे मारे मनुष्य वानी लगारपण होंश शीरीते धारण करवी ॥ ४ ॥ प्रमदाकने पंखी थके, ॥ म० ॥ निशि वासर केम जाय देखी फोगट फुरवुं ॥ म० ॥ चिंत्युं किमपि न थाय ॥ एलें यौवन निर्गम्युं ॥ म० ॥ शो दवे दोशे उघाम ॥ काने दैवने ॥ ० ॥ कोइक पूरो चाड ॥ ० ॥ ६॥ ॥ वली मारी पलीनी पासे पक्षीरूपे रही दिवस ने रात्रि हवे केवी रीते जशे. माटे हवेतो फोकट कुरापो करवानो बे. कारके धारेलुं कांइ यतुं नथी. ॥ ५ ॥ मारी युवावस्था तो सर्व एले गइ. हवे वातनोपश्यो निवेडो वशे तेनी खबर पडती नथी. मने लागे बे के मारो कोइ पूरो चाहियो दैवना कानमां मारे माटे जंभेर्या करे. ॥ ६॥ जोतां कोइनुं लागतुं नथी. ॥ ८ ॥ ताग ॥ जो कोई न थयो श्रापणो ॥ म० ॥ केहना राग विराग स्वारथनुं सगु, ॥ म० ॥ श्रहो जवजलधि आलोची एम कुकडे, ॥ म० ॥ कुंडमां ऊंपादीध ॥ विलखी कहे, ॥ म० ॥ जुंगा ए शुं कीध ॥ ० ॥ १० ॥ ० ॥ दजी ० ॥ ३॥ ० ॥ जोतां जीव्युं ए श्या कामनुं ॥ म० ॥ खोटीए गर्दन श्राश ॥ श्र० ॥ जो कंपा जरूं कुरुमां ॥ म० ॥ तो बूटे दुःख पास ॥ श्र० ॥ ७ ॥ के हनी वधू केहनी पुरी ॥ म० ॥ केदथी माया मोह ॥ कोइ कोइ नहीं, ॥ म० ॥ केदना योग विछोह ॥ ० ॥ अर्थ || हवे वीरीते जीववुं ते पण शुं कामनुं बे ? हवे मनुष्य श्रवानी आशा ते गर्दन श्राशा समा. खरीवाततो एबे के कुंरुमां ऊंपापातकरूं तो मारा दुःखनुं बंधन त्रुटे ॥ ७ ॥ श्र स्त्री कोनी ? श्री नगरी कोनी ? वली कोनी साथे मायाके मोह राखवो ? तेमज कोनो संबंध ने कोनो वियोग ? खरूं ८ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ॥ ॥ ० ॥ ० ॥ ५ ॥ लाग्यो ० ॥ श्र० ॥ सहुं ० ॥ ए ॥ ० ॥ देखी नारी www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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