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________________ १४७ चंदराजानो रास. कहे कन्यानो तात कुंवरने शुं थयुं हो लाल ॥ कुं० ॥ एहनुं सुंदर रूप क्षणेकमां किहां गयु हो लाल ॥ ६ ॥ कहे हिंसक कर जोडी कह्यानुं नहीं हो लालक॥देश पराये कोण सुणे अमतणी कही हो लाल ॥सु॥२॥ अर्थ ॥ आ खबर तत्काल कन्याना पिताने पोहोची, तेपण त्यां आव्यो. ज्यां जुवे त्यां जमाश्ने कोडी जोयो. तेणे बधांने रोता राखी ते वृत्तांत पुग्यो. पण ए नोलो नूपति ए वात पामी शक्यो नहीं.॥१॥ प्रेमलाना पिताए कह्यु, श्रा कुमारने शुं थयुं ? तेनुं सुंदर स्वरूप एक दणमां क्यां चाट्युं गयुं ? हिंसक मंत्रीए कर जोडीने कर्वा के, हे राजा,कां कहेवानी वात नथी. अमारी वात परदेशमां कोण सांजवे तेम ॥२॥ रतिपति सरखो कुंवर तुमे दीगे हतो हो लाल ॥तु॥अमे शहां कर्मने जोग शाने कीधो बतो हो लाल ॥ शा॥ तुम पुत्री कर स्पर्श थकी ए निपज्यु हो लाल ॥ थ॥ कन्या ए माहाराज ने मोती बीपर्नु हो लाल ॥॥३॥ तुम मंदिर ए निरंतर रे जो धारणी हो लाल ॥रे॥ ए विष कन्या सत्य नही हितकारणी हो लाल ॥ना विणगे पुरुष रतन्न क न्यानी संगते हो लाल का कहीए बीएलश्जासहुनी संमते हो लाल ॥सन्धा अर्थ ॥ कामदेवना जेवो सुंदर कुमार तमे जोयो हतो. अमारा कर्म योगे तेने अहीं बतो कर्यो. तमारा पुत्रीना करना स्पर्शश्रीश्रा बनाव बन्यो . महाराज, श्रा कन्या जीपनं मोती . ॥३॥ श्रा धारणी हमेशा तमारा मंदिरमा रहेजो. आ तो विष कन्या बे. ते हित करनारी नथी. श्रा कन्यानी संगते था पुरुष रत्न विनाश पामी गयु. हवे अमे कहीए बीए के, सर्वनी संमतिथी तेने अहींथी लश् जालं.॥४॥ मकरध्वजे सविवात मानी साची करी हो लाल ॥ मा॥डुब्बल कन्या होय नरेशर ते खरी हो लाल न॥ प्रेमला उपरे क्रोध जनकने उपनो हो लाल ॥ज॥ कुष्टिए तेणीवार ग्रह्यो कर नूपनो हो लाल ॥ ग्र॥५॥ नही तुम पुत्री दोष नहीं तेम माहरो हो लाल ॥ना नही मुज जनकनो दोष, नही तेम ताइरो हो लाल ॥न॥ सघलो कर्मनो दोष निवा रीये हो लाल ॥ ए॥ स्त्री हत्यानुं पातिक हैडे विचारीए हो लाल है॥६॥ अर्थ ॥ राजा मकरध्वजे या सर्व वात साची मानी अने मनमा निश्चय कर्यो के, श्रा राजकन्या ख रेखर तेवी हशे. तत्काल पोतानी पुत्री प्रेमला उपर ते पिताने क्रोध उत्पन्न अयो, ते वखते पेला कोडी याए राजानो हाथ काली कह्यु. ॥ ५॥ राजा, तमारी पुत्रीनो दोष नथी तेम मारो पण दोष नथी. मारा पितानो के तमारो दोष नथी. श्रा बधो कर्मनो दोष ने, माटे रोष गेडी दो अने आथी स्त्री हत्यानुं पाप थाय एम हृदयमां विचारो. ॥ ६॥ कनकध्वजने वचन स्वसुर रंज्यो घणुं हो लाल खणकयुं तुम वार्या उपर एहने नही हणुं हो लाल ए॥ एम कही प्रेमला तात स्वमंदिरे श्रावीयो हो लाल ॥स्वा पोतानो सद्बुद्धि प्रधान तेमावीयो हो लाल ॥प्रणा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005375
Book TitleChand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1905
Total Pages396
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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